यह सूरह मक्की है, इसमें 111 आयतें हैं।
- इसमें नबी यूसुफ (अलैहिस्सलाम) की पूरी कथा का वर्णन किया गया है। इसके द्वारा यह संकेत किया गया है कि मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) जिनको मक्का में कुरैश ने जान से मारने अथवा देश से निकालने की योजना बनाई थी, वह ऐसे ही निष्फल हो जाएंगे जैसे यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) के भाइयों की सारी योजनाएं निष्फल हो गईं। और एक दिन ऐसा भी आया कि सभी भाई उनके आगे हाथ फैलाए खड़े थे। और कुरआन की यह भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुई।
- आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) मदीना हिज्रत कर गए। फिर सन् (8) हिज्री में आपने मक्का को विजय किया तो आपके विरोधी कुरैश आपके आगे उसी प्रकार विवश खड़े थे जैसे यूसुफ (अलैहिस्सलाम) के भाई उनके आगे हाथ फैलाए कह रहे थे कि आप हमें दान कीजिये, अल्लाह दानशीलों को अच्छा बदला देता है। और जैसे यूसुफ (अलैहिस्सलाम) ने अपने भाइयों को क्षमा कर दिया, वैसे ही आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने भी कहा: जाओ, तुम पर कोई दोष नहीं, अल्लाह तुम्हें क्षमा करे वह सर्वोत्तम दयावान् है। आप उनके अत्याचार का बदला ले सकते थे, किन्तु जब आपने उनसे पूछा कि तुम्हारा विचार क्या है कि मैं तुम्हारे साथ क्या करूँगा? तो उनके यह कहने पर कि आप सज्जन भाई तथा सज्जन भाई के पुत्र हैं, आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा: मैं तुमसे वही कहता हूँ जो यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) ने अपने भाइयों से कहा था कि आज तुम पर कोई दोष नहीं, जाओ तुम सभी स्वतंत्र हो। हदीस में है कि सज्जन के सज्जन पुत्र के सज्जन पुत्र, यूसुफ़ पुत्र याकूब पुत्र इसहाक पुत्र इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) हैं। (देखिये: सहीह बुखारी, हदीस नं: 3382) एक दूसरी हदीस में आया है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया कि यदि मैं उतने दिन बंदी रहता जितने दिन यूसुफ (अलैहिस्सलाम) बंदी रहे तो जो व्यक्ति उन्हें बुलाने आया था, मैं उससे कहता: जाओ, तुम्हारे अत्याचार क्षम्य है कि मैं तुम्हारे साथ चला जाता। (देखिये: सहीह बुखारी: हदीस नं: 3372, और सहीह मुस्लिम: हदीस नं: 2370) याद रहे कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के इस कथन से अभिप्राय यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) के सहन की सराहना करना है।
- इस सूरह में यह शिक्षा है कि जो अल्लाह चाहे वही होता है। विरोधियों के चाहने से कुछ नहीं होता, इसमें नव युवकों के लिए अपनी मर्यादा की रक्षा के लिए भी एक शिक्षा है।
सूरह यूसुफ़ को हिंदी में पढ़ें
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
الٓر ۚ تِلْكَ ءَايَـٰتُ ٱلْكِتَـٰبِ ٱلْمُبِينِ
अलिफ्-लाम्-रा, तिल् क आयातुल्-किताबिल मुबीन
अलिफ़ लाम रा, ये वाज़ेए व रौशन किताब की आयतें है।
إِنَّآ أَنزَلْنَـٰهُ قُرْءَٰنًا عَرَبِيًّۭا لَّعَلَّكُمْ تَعْقِلُونَ
इन्ना अन्ज़ल्नाहु क़ुरआनन् अ़-रबिय्यल् लअ्ल्लकुम् तअ्क़िलून
हमने इस किताब (क़ुरान) को अरबी में नाजि़ल किया है ताकि तुम समझो।
نَحْنُ نَقُصُّ عَلَيْكَ أَحْسَنَ ٱلْقَصَصِ بِمَآ أَوْحَيْنَآ إِلَيْكَ هَـٰذَا ٱلْقُرْءَانَ وَإِن كُنتَ مِن قَبْلِهِۦ لَمِنَ ٱلْغَـٰفِلِينَ
नह्नु नक़ुस्सु अ़लै-क अह् स-नल् क़-स-सि बिमा औहैना इलै-क हाज़ल-क़ुरआ-न, व इन् कुन-त मिन् क़ब्लिही लमिनल्-ग़ाफ़िलीन
(ऐ रसूल!) हम तुम पर ये क़ुरान नाजि़ल करके तुम से एक निहायत उम्दा कि़स्सा बयान करते हैं अगरचे तुम इसके पहले (उससे) बिल्कुल बेख़बर थे।
إِذْ قَالَ يُوسُفُ لِأَبِيهِ يَـٰٓأَبَتِ إِنِّى رَأَيْتُ أَحَدَ عَشَرَ كَوْكَبًۭا وَٱلشَّمْسَ وَٱلْقَمَرَ رَأَيْتُهُمْ لِى سَـٰجِدِينَ
इज़् क़ा-ल यूसुफु लि-अबीहि या अ-बति इन्नी रऐतु अ-ह-द अ-श-र कौकबंव्-वश्शम् स वल् क़-म-र रऐतुहुम् ली साजिदीन
(वह वक़्त याद करो) जब यूसूफ ने अपने बाप से कहा ऐ अब्बा मैने ग्यारह सितारों और सूरज चाँद को (ख़्वाब में) देखा है मैने देखा है कि ये सब मुझे सजदा कर रहे हैं।
قَالَ يَـٰبُنَىَّ لَا تَقْصُصْ رُءْيَاكَ عَلَىٰٓ إِخْوَتِكَ فَيَكِيدُوا۟ لَكَ كَيْدًا ۖ إِنَّ ٱلشَّيْطَـٰنَ لِلْإِنسَـٰنِ عَدُوٌّۭ مُّبِينٌۭ
क़ा-ल या बुनय्-य ला तक़्सुस् रूअ्या-क अ़ला इख़्वति क फ़ यकीदू ल-क कैदन्, इन्नश्शैता-न लिल्इन्सानि अदुव्वुम् मुबीन
याक़ूब ने कहा ऐ बेटा (देखो ख़बरदार) कहीं अपना ख़्वाब अपने भाईयों से न दोहराना (वरना) वह लोग तुम्हारे लिए मक्कारी की तदबीर करने लगेगें इसमें तो शक ही नहीं कि शैतान आदमी का खुला हुआ दुश्मन है।
وَكَذَٰلِكَ يَجْتَبِيكَ رَبُّكَ وَيُعَلِّمُكَ مِن تَأْوِيلِ ٱلْأَحَادِيثِ وَيُتِمُّ نِعْمَتَهُۥ عَلَيْكَ وَعَلَىٰٓ ءَالِ يَعْقُوبَ كَمَآ أَتَمَّهَا عَلَىٰٓ أَبَوَيْكَ مِن قَبْلُ إِبْرَٰهِيمَ وَإِسْحَـٰقَ ۚ إِنَّ رَبَّكَ عَلِيمٌ حَكِيمٌۭ
व कज़ालि-क यज्तबी-क रब्बु-क व युअ़ल्लिमु-क मिन् तअ्वीलिल्-अहादीसि व युतिम्मु निअ्म तहू अ़लै-क व अला आलि यअ्क़ू-ब कमा अ-तम्महा अ़ला अ-बवै-क मिन् क़ब्लु इब्राही-म व इस्हा-क़, इन्-न रब्ब-क अ़लीमुन् हकीम
और (जो तुमने देखा है) ऐसा ही होगा कि तुम्हारा परवरदिगार तुमको बरगुज़ीदा (इज़्जतदार) करेगा और तुम्हें ख़्वाबो की ताबीर सिखाएगा और जिस तरह इससे पहले तुम्हारे दादा परदादा इबराहीम और इसहाक़ पर अपनी नेअमत पूरी कर चुका है और इसी तरह तुम पर और याक़ूब की औलाद पर अपनी नेअमत पूरी करेगा बेशक तुम्हारा परवरदिगार बड़ा वाकि़फकार हकीम है।
۞ لَّقَدْ كَانَ فِى يُوسُفَ وَإِخْوَتِهِۦٓ ءَايَـٰتٌۭ لِّلسَّآئِلِينَ
ल-क़द् का-न फी यूसु-फ़ व इख़्वतिही आयातुल् लिस्सा इलीन
(ऐ रसूल) यूसुफ और उनके भाइयों के किस्से में पूछने वाले (यहूद) के लिए (तुम्हारी नुबूवत) की यक़ीनन बहुत सी निशनियाँ हैं।
إِذْ قَالُوا۟ لَيُوسُفُ وَأَخُوهُ أَحَبُّ إِلَىٰٓ أَبِينَا مِنَّا وَنَحْنُ عُصْبَةٌ إِنَّ أَبَانَا لَفِى ضَلَـٰلٍۢ مُّبِينٍ
इज़् क़ालू ल-यूसुफु व अख़ूहु अहब्बु इला अबीना मिन्ना व नह्नु अुस्बतुन्, इन्-न अबाना लफ़ी ज़लालिम्-मुबीन
कि जब (यूसूफ के भाइयों ने) कहा कि बावजूद कि हमारी बड़ी जमाअत है फिर भी यूसुफ़ और उसका हकीक़ी भाई (इब्ने यामीन) हमारे वालिद के नज़दीक बहुत ज़्यादा प्यारे हैं इसमें कुछ शक नहीं कि हमारे वालिद यक़ीनन सरीही (खुली हुयी) ग़लती में पड़े हैं।
ٱقْتُلُوا۟ يُوسُفَ أَوِ ٱطْرَحُوهُ أَرْضًۭا يَخْلُ لَكُمْ وَجْهُ أَبِيكُمْ وَتَكُونُوا۟ مِنۢ بَعْدِهِۦ قَوْمًۭا صَـٰلِحِينَ
उक़्तुलू यूसु-फ अवित्रहूहु अर्ज़य्यख़्लु लकुम् वज्हु अबीकुम् व तकूनू मिम्-बअ्दिही क़ौमन् सालिहीन
(ख़ैर तो अब मुनासिब ये है कि या तो) युसूफ को मार डालो या (कम से कम) उसको किसी जगह (चल कर) फेंक आओ तो अलबत्ता तुम्हारे वालिद की तवज्जो सिर्फ तुम्हारी तरफ हो जाएगा और उसके बाद तुम सबके सब (बाप की तवजज्जो से) भले आदमी हो जाओगें।
قَالَ قَآئِلٌۭ مِّنْهُمْ لَا تَقْتُلُوا۟ يُوسُفَ وَأَلْقُوهُ فِى غَيَـٰبَتِ ٱلْجُبِّ يَلْتَقِطْهُ بَعْضُ ٱلسَّيَّارَةِ إِن كُنتُمْ فَـٰعِلِينَ
क़ा-ल क़ाइलुम्-मिन्हुम् ला तक़्तुलू यूसु-फ व अल्क़ूहु फ़ी-ग़या-बतिल्-जुब्बि यल्तक़ित्हु बअ् ज़ुस्सय्यारति इन् कुन्तुम् फाअिलीन
उनमें से एक कहने वाला बोल उठा कि यूसुफ को जान से तो न मारो हाँ अगर तुमको ऐसा ही करना है तो उसको किसी अन्धे कुएँ में (ले जाकर) डाल दो कोई राहगीर उसे निकालकर ले जाएगा (और तुम्हारा मतलब हासिल हो जाएगा)।
قَالُوا۟ يَـٰٓأَبَانَا مَا لَكَ لَا تَأْمَ۫نَّا عَلَىٰ يُوسُفَ وَإِنَّا لَهُۥ لَنَـٰصِحُونَ
क़ालू या अबाना मा ल-क ला तअ्मन्ना अ़ला यूसु-फ व इन्ना लहू लनासिहून
सब ने (याक़ूब से) कहा अब्बा जान आखि़र उसकी क्या वजह है कि आप यूसुफ के बारे में हमारा ऐतबार नहीं करते।
أَرْسِلْهُ مَعَنَا غَدًۭا يَرْتَعْ وَيَلْعَبْ وَإِنَّا لَهُۥ لَحَـٰفِظُونَ
अरसिल्हु म अ़ना ग़दंय्-यर्-तअ् व यल्अ़ब् व इन्ना लहू लहाफिज़ून
हालांकि हम लोग तो उसके ख़ैर ख़्वाह (भला चाहने वाले) हैं आप उसको कुल हमारे साथ भेज दीजिए कि ज़रा (जंगल) से फल वगै़रह् खाए और खेले कूदे।
قَالَ إِنِّى لَيَحْزُنُنِىٓ أَن تَذْهَبُوا۟ بِهِۦ وَأَخَافُ أَن يَأْكُلَهُ ٱلذِّئْبُ وَأَنتُمْ عَنْهُ غَـٰفِلُونَ
क़ाल इन्नी ल-यह्ज़ुनुनी अन् तज़्हबू बिही व अख़ाफु अंय्यअ्कु-लहुज्जिअ्बु व अन्तुम् अन्हु ग़ाफ़िलून
और हम लोग तो उसके निगेहबान हैं ही याक़ूब ने कहा तुम्हारा उसको ले जाना मुझे सख़्त सदमा पहुँचाना है और मै तो इससे डरता हूँ कि तुम सब के सब उससे बेख़बर हो जाओ और (मुबादा) उसे भेडि़या फाड़ खाए।
قَالُوا۟ لَئِنْ أَكَلَهُ ٱلذِّئْبُ وَنَحْنُ عُصْبَةٌ إِنَّآ إِذًۭا لَّخَـٰسِرُونَ
क़ालू ल-इन् अ-क-लहुज़्ज़िअ्बु व नह्नु अुस्बतुन् इन्ना इज़ल्-लख़ासिरून
वह लोग कहने लगे जब हमारी बड़ी जमाअत है (इस पर भी) अगर उसको भेडि़या खा जाए तो हम लोग यक़ीनन बड़े घाटा उठाने वाले (निकलते) ठहरेगें।
فَلَمَّا ذَهَبُوا۟ بِهِۦ وَأَجْمَعُوٓا۟ أَن يَجْعَلُوهُ فِى غَيَـٰبَتِ ٱلْجُبِّ ۚ وَأَوْحَيْنَآ إِلَيْهِ لَتُنَبِّئَنَّهُم بِأَمْرِهِمْ هَـٰذَا وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ
फ़-लम्मा ज़-हबू बिही व अज्मअू अंय्यज्-अ़लूहु फ़ी ग़या-बतिल-जुब्बि, व औहैना इलैहि लतुनब्बि-अन्नहुम् बिअम्-रिहिम् हाज़ा व हुम् ला यश्अुरून
ग़रज़ यूसुफ को जब ये लोग ले गए और इस पर इत्तेफ़ाक़ कर लिया कि उसको अन्धे कुएँ में डाल दें और (आखि़र ये लोग गुज़रे तो) हमने युसुफ़ के पास ‘वही’भेजी कि तुम घबराओ नहीं हम अनक़रीब तुम्हें मरतबे (उँचे मकाम) पर पहुँचाएगे (तब तुम) उनके उस फेल (बद) से तम्बीह (आग़ाह) करोगे।
وَجَآءُوٓ أَبَاهُمْ عِشَآءًۭ يَبْكُونَ
व जाऊ अबाहुम् अिशाअंय्-यब्कून
जब उन्हें कुछ ध्यान भी न होगा और ये लोग रात को अपने बाप के पास (बनवट) से रोते पीटते हुए आए।
قَالُوا۟ يَـٰٓأَبَانَآ إِنَّا ذَهَبْنَا نَسْتَبِقُ وَتَرَكْنَا يُوسُفَ عِندَ مَتَـٰعِنَا فَأَكَلَهُ ٱلذِّئْبُ ۖ وَمَآ أَنتَ بِمُؤْمِنٍۢ لَّنَا وَلَوْ كُنَّا صَـٰدِقِينَ
क़ालू या अबाना इन्ना ज़हब्ना नस्तबिक़ु व तरक्ना यूसु-फ़ अिन्-द मताअिना फ़-अ-क-लहुज़्-ज़िअ्बु, व मा अन्-त बिमुअ्मिनिल्लना व लौ कुन्ना सादिक़ीन
और कहने लगे ऐ अब्बा हम लोग तो जाकर दौड़ने लगे और यूसुफ को अपने असबाब के पास छोड़ दिया इतने में भेडि़या आकर उसे खा गया हम लोग अगर सच्चे भी हो मगर आपको तो हमारी बात का यक़ीन आने का नहीं।
وَجَآءُو عَلَىٰ قَمِيصِهِۦ بِدَمٍۢ كَذِبٍۢ ۚ قَالَ بَلْ سَوَّلَتْ لَكُمْ أَنفُسُكُمْ أَمْرًۭا ۖ فَصَبْرٌۭ جَمِيلٌۭ ۖ وَٱللَّهُ ٱلْمُسْتَعَانُ عَلَىٰ مَا تَصِفُونَ
व जाऊ अ़ला क़मीसिही बि-दमिन कज़िबिन, क़ा-ल बल् सव्व-लत् लकुम अन्फुसुकुम् अम्रन्, फ़-सब्-रून् जमीलुन्, वल्लाहुल्-मुस्तआ़नु अ़ला मा तसिफून
और ये लोग यूसुफ के कुरते पर झूठ मूठ (भेड़) का खून भी (लगा के) लाए थे, याक़ूब ने कहा (भेडि़या ने ही खाया (बल्कि) तुम्हारे दिल ने तुम्हारे बचाओ के लिए एक बात गढ़ी वरना कुर्ता फटा हुआ ज़रुर होता फिर सब्र व शुक्र है और जो कुछ तुम बयान करते हो उस पर अल्लाह ही से मदद माँगी जाती है।
وَجَآءَتْ سَيَّارَةٌۭ فَأَرْسَلُوا۟ وَارِدَهُمْ فَأَدْلَىٰ دَلْوَهُۥ ۖ قَالَ يَـٰبُشْرَىٰ هَـٰذَا غُلَـٰمٌۭ ۚ وَأَسَرُّوهُ بِضَـٰعَةًۭ ۚ وَٱللَّهُ عَلِيمٌۢ بِمَا يَعْمَلُونَ
व जाअत् सय्यारतुन् फ़-अरसलू वारि-दहुम् फ़-अद्ला दल्वहू, क़ा-ल या बुश्रा हाज़ा ग़ुलामुन्, व अ-सर्रूहु बिज़ा-अतन्, वल्लाहु अ़लीमुम्-बिमा यअ्मलून
और (अल्लाह की शान देखो) एक काफ़ला (वहाँ) आकर उतरा उन लोगों ने अपने सक़्के (पानी भरने वाले) को (पानी भरने) भेजा ग़रज़ उसने अपना डोल डाला ही था (कि यूसुफ उसमें बैठे और उसने ख़ीचा तो निकल आए) वह पुकारा आहा ये तो लड़का है और काफला वालो ने यूसुफ को क़ीमती सरमाया समझकर छिपा रखा हालांकि जो कुछ ये लोग करते थे अल्लाह उससे ख़ूब वाकिफ था।
وَشَرَوْهُ بِثَمَنٍۭ بَخْسٍۢ دَرَٰهِمَ مَعْدُودَةٍۢ وَكَانُوا۟ فِيهِ مِنَ ٱلزَّٰهِدِينَ
व शरौहु बि-स-मनिम् बख़्सिन् दराहि-म मअ्दू – दतिन् व कानू फ़ीहि मिनज़्ज़ाहिदीन
(जब यूसुफ के भाइयों को ख़बर लगी तो आ पहुँचे और उनको अपना ग़ुलाम बताया और उन लोगों ने यूसुफ को गिनती के खोटे चन्द दरहम (बहुत थोड़े दाम पर बेच डाला) और वह लोग तो यूसुफ से बेज़ार हो ही रहे थे।
وَقَالَ ٱلَّذِى ٱشْتَرَىٰهُ مِن مِّصْرَ لِٱمْرَأَتِهِۦٓ أَكْرِمِى مَثْوَىٰهُ عَسَىٰٓ أَن يَنفَعَنَآ أَوْ نَتَّخِذَهُۥ وَلَدًۭا ۚ وَكَذَٰلِكَ مَكَّنَّا لِيُوسُفَ فِى ٱلْأَرْضِ وَلِنُعَلِّمَهُۥ مِن تَأْوِيلِ ٱلْأَحَادِيثِ ۚ وَٱللَّهُ غَالِبٌ عَلَىٰٓ أَمْرِهِۦ وَلَـٰكِنَّ أَكْثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ
व क़ालल्लज़िश्तराहु मिम् मिस्-र लिम्र-अतिही अक्रिमी मस्वाहु असा अंय्यन्फ़-अना औ नत्तखि-ज़हू व-लदन्, व कज़ालि-क मक्कन्ना लियूसु-फ़ फिल्अर्ज़ि, व लिनुअ़ल्लि-महू मिन् तअ्वीलिल्-अहादीसि, वल्लाहु ग़ालिबुन् अ़ला अम्रिही व लाकिन्-न अक्सरन्नासि ला यअ्लमून
(यूसुफ को लेकर मिस्र पहुँचे और वहाँ उसे बड़े नफे़ में बेच डाला) और मिस्र के लोगों से (अज़ीजे़ मिस्र) जिसने (उनको ख़रीदा था अपनी बीवी (ज़ुलेख़ा) से कहने लगा इसको इज़्ज़त व आबरु से रखो अजब नहीं ये हमें कुछ नफा पहुँचाए या (शायद) इसको अपना बेटा ही बना लें और यू हमने यूसुफ को मुल्क (मिस्र) में (जगह देकर) क़ाबिज़ बनाया और ग़रज़ ये थी कि हमने उसे ख़्वाब की बातों की ताबीर सिखायी और अल्लाह तो अपने काम पर (हर तरह के) ग़ालिब व क़ादिर है मगर बहुतेरे लोग (उसको) नहीं जानते।
وَلَمَّا بَلَغَ أَشُدَّهُۥٓ ءَاتَيْنَـٰهُ حُكْمًۭا وَعِلْمًۭا ۚ وَكَذَٰلِكَ نَجْزِى ٱلْمُحْسِنِينَ
व लम्मा ब-ल-ग़ अशुद्-दहू आतैनाहु हुक्मंव्-व अिल्मन्, व कज़ालि क नज्ज़िल-मुह़्सिनीन
और जब यूसुफ अपनी जवानी को पहुँचे तो हमने उनको हुक्म (नुबूवत) और इल्म अता किया और नेकी कारों को हम यूँ ही बदला दिया करते हैं।
وَرَٰوَدَتْهُ ٱلَّتِى هُوَ فِى بَيْتِهَا عَن نَّفْسِهِۦ وَغَلَّقَتِ ٱلْأَبْوَٰبَ وَقَالَتْ هَيْتَ لَكَ ۚ قَالَ مَعَاذَ ٱللَّهِ ۖ إِنَّهُۥ رَبِّىٓ أَحْسَنَ مَثْوَاىَ ۖ إِنَّهُۥ لَا يُفْلِحُ ٱلظَّـٰلِمُونَ
वरा-वदत्हुल्लती हु-व फी बैतिहा अन् नफ्सिही व ग़ल्ल-क़तिल्-अब्वा-ब व क़ालत् है-त ल-क, क़ा-ल मआ़ज़ल्लाहि इन्नहू रब्बी अह़्स-न मस्वा-य, इन्नहू ला युफ्लिहुज़्ज़ालिमून
और जिस औरत ज़ुलेखा के घर में यूसुफ रहते थे उसने अपने (नाजायज़) मतलब हासिल करने के लिए ख़ुद उनसे आरज़ू की और सब दरवाज़े बन्द कर दिए और (बे ताना) कहने लगी लो आओ यूसुफ ने कहा माज़अल्लाह वह (तुम्हारे मियाँ) मेरा मालिक हैं उन्होंने मुझे अच्छी तरह रखा है मै ऐसा ज़ुल्म क्यों कर सकता हूँ बेशक ऐसा ज़ुल्म करने वाले फलाह नहीं पाते।
وَلَقَدْ هَمَّتْ بِهِۦ ۖ وَهَمَّ بِهَا لَوْلَآ أَن رَّءَا بُرْهَـٰنَ رَبِّهِۦ ۚ كَذَٰلِكَ لِنَصْرِفَ عَنْهُ ٱلسُّوٓءَ وَٱلْفَحْشَآءَ ۚ إِنَّهُۥ مِنْ عِبَادِنَا ٱلْمُخْلَصِينَ
व ल-क़द् हम्मत् बिही, व हम्-म बिहा लौ ला अर्-रआ बुरहा-न रब्बिही, कज़ालि-क लिनस्रि-फ़ अन्हुस्सू-अ वल्-फ़ह़्शा-अ, इन्नहू मिन् अिबादिनल् मुख़्लसीन
ज़ुलेखा ने तो उनके साथ (बुरा) इरादा कर ही लिया था और अगर ये भी अपने परवरदिगार की दलीन न देख चुके होते तो क़स्द कर बैठते (हमने उसको यूँ बचाया) ताकि हम उससे बुराई और बदकारी को दूर रखे़ बेशक वह हमारे ख़ालिस बन्दों में से था।
وَٱسْتَبَقَا ٱلْبَابَ وَقَدَّتْ قَمِيصَهُۥ مِن دُبُرٍۢ وَأَلْفَيَا سَيِّدَهَا لَدَا ٱلْبَابِ ۚ قَالَتْ مَا جَزَآءُ مَنْ أَرَادَ بِأَهْلِكَ سُوٓءًا إِلَّآ أَن يُسْجَنَ أَوْ عَذَابٌ أَلِيمٌۭ
वस्त-बक़ल् बा-ब व क़द्दत् क़मी-सहू मिन् दुबुरिंव्-व अल्फ़या सय्यि-दहा लदल्-बाबि, क़ालत् मा जज़ा-उ मन अरा द बि अह़्लि-क सूअन् इल्ला अंय्युस्ज-न औ अ़ज़ाबुन अलीम
और दोनों दरवाजे़ की तरफ झपट पड़े और ज़ुलेख़ा (ने पीछे से उनका कुर्ता पकड़ कर खीचा और) फाड़ डाला और दोनों ने ज़ुलेखा के ख़ाविन्द को दरवाज़े के पास खड़ा पाया ज़ुलेख़ा झट (अपने शौहर से) कहने लगी कि जो तुम्हारी बीबी के साथ बदकारी का इरादा करे उसकी सज़ा इसके सिवा और कुछ नहीं कि या तो कै़द कर दिया जाए।
قَالَ هِىَ رَٰوَدَتْنِى عَن نَّفْسِى ۚ وَشَهِدَ شَاهِدٌۭ مِّنْ أَهْلِهَآ إِن كَانَ قَمِيصُهُۥ قُدَّ مِن قُبُلٍۢ فَصَدَقَتْ وَهُوَ مِنَ ٱلْكَـٰذِبِينَ
क़ा-ल हि-य रा वदत्-नी अन्-नफ़्सी व शहि-द शाहिदुम् मिन् अह़्लिहा, इन् का-न क़मीसुहू क़ुद्-द मिन् क़ुबुलिन् फ़ स-दक़त् व हु-व मिनल्-काज़िबीन
या दर्दनाक अज़ाब में मुब्तिला कर दिया जाए यूसुफ ने कहा उसने ख़ुद (मुझसे मेरी आरज़ू की थी और ज़ुलेख़ा) के कुन्बे वालों में से एक गवाही देने वाले (दूध पीते बच्चे) ने गवाही दी कि अगर उनका कुर्ता आगे से फटा हुआ हो तो ये सच्ची और वह झूठे।
وَإِن كَانَ قَمِيصُهُۥ قُدَّ مِن دُبُرٍۢ فَكَذَبَتْ وَهُوَ مِنَ ٱلصَّـٰدِقِينَ
व इन् का-न क़मीसुहू कुद्-द मिन् दुबुरिन् फ़-क-ज़बत् व हु-व मिनस्सादिक़ीन
और अगर उनका कुर्ता पींछे से फटा हुआ हो तो ये झूठी और वह सच्चे।
فَلَمَّا رَءَا قَمِيصَهُۥ قُدَّ مِن دُبُرٍۢ قَالَ إِنَّهُۥ مِن كَيْدِكُنَّ ۖ إِنَّ كَيْدَكُنَّ عَظِيمٌۭ
फ़-लम्मा रआ क़मी-सहू क़ुद्-द मिन् दुबुरिन् क़ा-ल इन्नहू मिन्कैदिकुन्-न, इन्-न कै-दकुन्-न अ़ज़ीम
फिर जब अज़ीजे़ मिस्र ने उनका कुर्ता पीछे से फटा हुआ देखा तो (अपनी औरत से) कहने लगा ये तुम ही लोगों के चलत्तर है उसमें शक नहीं कि तुम लोगों के चलत्तर बड़े (ग़ज़ब के) होते हैं।
يُوسُفُ أَعْرِضْ عَنْ هَـٰذَا ۚ وَٱسْتَغْفِرِى لِذَنۢبِكِ ۖ إِنَّكِ كُنتِ مِنَ ٱلْخَاطِـِٔينَ
यूसुफु अअ्-रिज़ अन् हाज़ा, वस्तग्फ़िरी लिज़म्बिकि, इन्नकि कुन्ति मिनल्-ख़ातिईन
(और यूसुफ से कहा) ऐ यूसुफ इसको जाने दो और (औरत से कहा) कि तू अपने गुनाह की माफी माँग क्योंकि बेशक तू ही सरतापा ख़तावार है।
۞ وَقَالَ نِسْوَةٌۭ فِى ٱلْمَدِينَةِ ٱمْرَأَتُ ٱلْعَزِيزِ تُرَٰوِدُ فَتَىٰهَا عَن نَّفْسِهِۦ ۖ قَدْ شَغَفَهَا حُبًّا ۖ إِنَّا لَنَرَىٰهَا فِى ضَلَـٰلٍۢ مُّبِينٍۢ
व क़ा-ल निस्वतुन् फ़िल्-मदीनतिम्-र-अतुल् अज़ीज़ि तुराविदु फ़ताहा अन्-नफ्सिही, क़द् श-ग़-फ़हा हुब्बन्, इन्ना ल-नराहा फ़ी ज़लालिम्-मुबीन
और शहर (मिस्र) में औरतें चर्चा करने लगी कि अज़ीज़ (मिस्र) की बीबी अपने ग़ुलाम से (नाजायज़) मतलब हासिल करने की आरज़ू मन्द है बेशक गुलाम ने उसे उलफत में लुभाया है हम लोग तो यक़ीनन उसे सरीही ग़लती में मुब्तिला देखते हैं।
فَلَمَّا سَمِعَتْ بِمَكْرِهِنَّ أَرْسَلَتْ إِلَيْهِنَّ وَأَعْتَدَتْ لَهُنَّ مُتَّكَـًۭٔا وَءَاتَتْ كُلَّ وَٰحِدَةٍۢ مِّنْهُنَّ سِكِّينًۭا وَقَالَتِ ٱخْرُجْ عَلَيْهِنَّ ۖ فَلَمَّا رَأَيْنَهُۥٓ أَكْبَرْنَهُۥ وَقَطَّعْنَ أَيْدِيَهُنَّ وَقُلْنَ حَـٰشَ لِلَّهِ مَا هَـٰذَا بَشَرًا إِنْ هَـٰذَآ إِلَّا مَلَكٌۭ كَرِيمٌۭ
फ़-लम्मा समिअ़त् बिमक् रिहिन्-न अर्-सलत् इलैहिन्-न व अअ्त-दत् लहुन्-न मुत्त-कअंव्-व आतत् कुल-ल वाहि दतिम् मिन्हुन्-न सिक्कीनंव्-व क़ालतिख़्-रूज् अ़लैहिन्-न, फ़-लम्मा रऐ-नहू अक्बर्-नहू व क़त्तअ्-न ऐदियहुन्-न व क़ुल्-न हा-श लिल्लाहि मा हाज़ा ब-शरन्, इन् हाज़ा इल्ला म-लकुन् करीम
तो जब ज़ुलेख़ा ने उनके ताने सुने तो उस ने उन औरतों को बुला भेजा और उनके लिए एक मजलिस आरास्ता की और उसमें से हर एक के हाथ में एक छुरी और एक (नारंगी) दी (और कह दिया कि जब तुम्हारे सामने आए तो काट के एक फ़ाक उसको दे देना) और यूसुफ़ से कहा कि अब इनके सामने से निकल तो जाओ तो जब उन औरतों ने उसे देखा तो उसके बड़ा हसीन पाया तो सब के सब ने (बे खुदी में) अपने अपने हाथ काट डाले और कहने लगी हाय अल्लाह ये आदमी नहीं है ये तो हो न हो बस एक मुअजिज (इज़्ज़त वाला) फ़रिश्ते है।
قَالَتْ فَذَٰلِكُنَّ ٱلَّذِى لُمْتُنَّنِى فِيهِ ۖ وَلَقَدْ رَٰوَدتُّهُۥ عَن نَّفْسِهِۦ فَٱسْتَعْصَمَ ۖ وَلَئِن لَّمْ يَفْعَلْ مَآ ءَامُرُهُۥ لَيُسْجَنَنَّ وَلَيَكُونًۭا مِّنَ ٱلصَّـٰغِرِينَ
क़ालत् फ़ज़ालिकुन्नल्लज़ी लुम्तुन्ननी फ़ीहि, व ल क़द् रावत्तुहू अ़न् नफ़्सिही फ़स्तअ्-स-म, व ल-इल्लम् यफ्अ़ल् मा आमुरूहू लयुस्ज-नन्-न व ल-यकूनम् मिनस्सागिरीन
(तब ज़ुलेख़ा उन औरतों से) बोली कि बस ये वही तो है जिसकी बदौलत तुम सब मुझे मलामत (बुरा भला) करती थीं और हाँ बेशक मैं उससे अपना मतलब हासिल करने की खुद उससे आरज़ू मन्द थी मगर ये बचा रहा और जिस काम का मैं हुक्म देती हूँ अगर ये न करेगा तो ज़रुर क़ैद भी किया जाएगा और ज़लील भी होगा (ये सब बातें यूसुफ ने मेरी बारगाह में) अजऱ् की।
قَالَ رَبِّ ٱلسِّجْنُ أَحَبُّ إِلَىَّ مِمَّا يَدْعُونَنِىٓ إِلَيْهِ ۖ وَإِلَّا تَصْرِفْ عَنِّى كَيْدَهُنَّ أَصْبُ إِلَيْهِنَّ وَأَكُن مِّنَ ٱلْجَـٰهِلِينَ
क़ा-ल रब्बिस्सिज्-नु अहब्बु इलय्-य मिम्मा यद्अू-ननी इलैहि, व इल्ला तस्रिफ् अ़न्नी कैदहुन्-न अस्बु इलैहिन्-न व अकुम् मिनल्-जाहिलीन
ऐ मेरे पालने वाले जिस बात की ये औरते मुझ से ख़्वाहिश रखती हैं उसकी निस्वत (बदले में) मुझे क़ैद ख़ानों ज़्यादा पसन्द है और अगर तू इन औरतों के फ़रेब मुझसे दफा न फरमाएगा तो (शायद) मै उनकी तरफ माएल (झुक) हो जाँऊ ले तो जाओ और जाहिलों में से शुमार किया जाऊँ।
فَٱسْتَجَابَ لَهُۥ رَبُّهُۥ فَصَرَفَ عَنْهُ كَيْدَهُنَّ ۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلْعَلِيمُ
फ़स्तजा-ब लहू रब्बुहू फ़-स-र-फ़ अन्हु कैदहुन्-न, इन्नहू हुवस्-समीअुल अ़लीम
तो उनके परवरदिगार ने उनकी सुन ली और उन औरतों के मकर को दफा कर दिया इसमें शक नहीं कि वह बड़ा सुनने वाला वाकि़फकार है।
ثُمَّ بَدَا لَهُم مِّنۢ بَعْدِ مَا رَأَوُا۟ ٱلْـَٔايَـٰتِ لَيَسْجُنُنَّهُۥ حَتَّىٰ حِينٍۢ
सुम्-म बदा लहुम् मिम्-बअ्दि मा र-अवुल्-आयाति ल-यस्जुनुन्नहु हत्ता हीन
फिर (अज़ीज़ मिस्र और उसके लोगों ने) बावजूद के (यूसुफ की पाक दामिनी की) निशानियाँ देख ली थी उसके बाद भी उनको यही मुनासिब मालूम हुआ।
وَدَخَلَ مَعَهُ ٱلسِّجْنَ فَتَيَانِ ۖ قَالَ أَحَدُهُمَآ إِنِّىٓ أَرَىٰنِىٓ أَعْصِرُ خَمْرًۭا ۖ وَقَالَ ٱلْـَٔاخَرُ إِنِّىٓ أَرَىٰنِىٓ أَحْمِلُ فَوْقَ رَأْسِى خُبْزًۭا تَأْكُلُ ٱلطَّيْرُ مِنْهُ ۖ نَبِّئْنَا بِتَأْوِيلِهِۦٓ ۖ إِنَّا نَرَىٰكَ مِنَ ٱلْمُحْسِنِينَ
व द-ख़-ल म-अ़हुस्सिज्-न फ़-तयानि, क़ा-ल अ-हदुहुमा इन्नी अरानी अअ्सिरू ख़म्रन, व क़ालल्-आख़रू इन्नी अरानी अह़्मिलु फौ-क़ रअ्सी ख़ुब्ज़न् तअ्कुलुत्तैरू मिन्हु, नब्बिअ्ना बितअ्वीलिही, इन्ना नरा-क मिनल्मुह़्सिनीन
कि कुछ मियाद के लिए उनको क़ैद ही करे दें और यूसुफ के साथ और भी दो जवान आदमी (क़ैद ख़ाने) में दाखि़ल हुए (चन्द दिन के बाद) उनमें से एक ने कहा कि मैने ख़्वाब में देखा है कि मै (शराब बनाने के वास्ते अंगूर) निचोड़ रहा हूँ और दूसरे ने कहा (मै ने भी ख़्वाब में) अपने को देखा कि मै अपने सर पर रोटिया उठाए हुए हूँ और चिडि़याँ उसे खा रही हैं (यूसुफ) हमको उसकी ताबीर (मतलब) बताओ क्योंकि हम तुमको यक़ीनन नेकी कारों से समझते हैं।
قَالَ لَا يَأْتِيكُمَا طَعَامٌۭ تُرْزَقَانِهِۦٓ إِلَّا نَبَّأْتُكُمَا بِتَأْوِيلِهِۦ قَبْلَ أَن يَأْتِيَكُمَا ۚ ذَٰلِكُمَا مِمَّا عَلَّمَنِى رَبِّىٓ ۚ إِنِّى تَرَكْتُ مِلَّةَ قَوْمٍۢ لَّا يُؤْمِنُونَ بِٱللَّهِ وَهُم بِٱلْـَٔاخِرَةِ هُمْ كَـٰفِرُونَ
क़ा-ल ला यअ्तीकुमा तआ़मुन् तुर्ज़क़ानिही इल्ला नब्बअ्तुकुमा बितअ्वीलिही क़ब्-ल अंय्यअ्ति-यकुमा, ज़ालिकुमा मिम्मा अ़ल्ल-मनी रब्बी, इन्नी तरक्तु मिल्ल-त क़ौमिल् ला युअ्मिनू-न बिल्लाहि व हुम् बिल्आख़िरति हुम् काफिरून
यूसुफ ने कहा जो खाना तुम्हें (क़ैद ख़ाने से) दिया जाता है वह आने भी न पाएगा कि मै उसके तुम्हारे पास आने के क़ब्ल ही तुम्हे उसकी ताबीर बताऊँगा ये ताबीरे ख़्वाब भी उन बातों के साथ है जो मेरे परवरदिगार ने मुझे तालीम फरमाई है मैं उन लोगों का मज़हब छोड़ बैठा हूँ जो अल्लाह पर इमान नहीं लाते और वह लोग आख़िरत के भी मुन्किर है।
وَٱتَّبَعْتُ مِلَّةَ ءَابَآءِىٓ إِبْرَٰهِيمَ وَإِسْحَـٰقَ وَيَعْقُوبَ ۚ مَا كَانَ لَنَآ أَن نُّشْرِكَ بِٱللَّهِ مِن شَىْءٍۢ ۚ ذَٰلِكَ مِن فَضْلِ ٱللَّهِ عَلَيْنَا وَعَلَى ٱلنَّاسِ وَلَـٰكِنَّ أَكْثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يَشْكُرُونَ
वत्तबअ्तु मिल्ल-त आबाई इब्राही-म व इस्हा-क़ व यअ्क़ू-ब, मा का-न लना अन् नुश्रि-क बिल्लाहि मिन् शैइन्, ज़ालि-क मिन् फ़ज़्लिल्लाहि अ़लैना व अ़लन्नासि व लाकिन्-न अक्सरन्नासि ला यश्कुरून
और मैं तो अपने बाप दादा इब्राहीम व इसहाक़ व याक़ूब के मज़हब पर चलने वाला हूँ मुनासिब नहीं कि हम अल्लाह के साथ किसी चीज़ को (उसका) शरीक बनाएँ ये भी अल्लाह की एक बड़ी मेहरबानी है हम पर भी और तमाम लोगों पर मगर बहुतेरे लोग उसका शुक्रिया (भी) अदा नहीं करते।
يَـٰصَـٰحِبَىِ ٱلسِّجْنِ ءَأَرْبَابٌۭ مُّتَفَرِّقُونَ خَيْرٌ أَمِ ٱللَّهُ ٱلْوَٰحِدُ ٱلْقَهَّارُ
या साहि-बयिस्सिज्-नि अ-अर्बाबुम् मु तफ़र्रिक़ू-न ख़ैरून् अमिल्लाहुल् वाहिदुल-क़ह़्हार
ऐ मेरे कैद ख़ाने के दोनो रफीक़ों (साथियों) (ज़रा ग़ौर तो करो कि) भला जुदा जुदा माबूद अच्छे या ख़ुदाए यकता ज़बरदस्त (अफसोस)।
مَا تَعْبُدُونَ مِن دُونِهِۦٓ إِلَّآ أَسْمَآءًۭ سَمَّيْتُمُوهَآ أَنتُمْ وَءَابَآؤُكُم مَّآ أَنزَلَ ٱللَّهُ بِهَا مِن سُلْطَـٰنٍ ۚ إِنِ ٱلْحُكْمُ إِلَّا لِلَّهِ ۚ أَمَرَ أَلَّا تَعْبُدُوٓا۟ إِلَّآ إِيَّاهُ ۚ ذَٰلِكَ ٱلدِّينُ ٱلْقَيِّمُ وَلَـٰكِنَّ أَكْثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ
मा तअ्बुदू-न मिन् दुनिही इल्ला अस्मा-अन् सम्मैतुमूहा अन्तुम् व आबाउकुम् मा अन्ज़लल्लाहु बिहा मिन् सुल्तानिन्, इनिल्हुक्मु इल्ला लिल्लाहि, अ-म-र अल्ला तअ्बुदू इल्ला इय्याहु, ज़ालिकद्-दीनुल क़य्यिमु व लाकिन् न अक्सरन्नासि ला यअ्लमून
तुम लोग तो अल्लाह को छोड़कर बस उन चन्द नामों ही को परसतिश करते हो जिन को तुमने और तुम्हारे बाप दादाओं ने गढ़ लिया है अल्लाह ने उनके लिए कोई दलील नहीं नाजि़ल की हुकूमत तो बस अल्लाह ही के वास्ते ख़ास है उसने तो हुक्म दिया है कि उसके सिवा किसी की इबादत न करो यही साीधा दीन है मगर (अफसोस) बहुतेरे लोग नहीं जानते हैं।
يَـٰصَـٰحِبَىِ ٱلسِّجْنِ أَمَّآ أَحَدُكُمَا فَيَسْقِى رَبَّهُۥ خَمْرًۭا ۖ وَأَمَّا ٱلْـَٔاخَرُ فَيُصْلَبُ فَتَأْكُلُ ٱلطَّيْرُ مِن رَّأْسِهِۦ ۚ قُضِىَ ٱلْأَمْرُ ٱلَّذِى فِيهِ تَسْتَفْتِيَانِ
या साहि-बयिस्सिज्-नि अम्मा अ-हदुकुमा फ़-यस्क़ी रब्बहू ख़म्-रन्, व अम्मल्-आख़रू फ़युस्-लबु फ़-तअ्कुलुत्-तैरू मिर्रअ्सिही, कुज़ियल अम्रुल्लज़ी फ़ीहि तस्तफ्तियान
ऐ मेरे क़ैद ख़ाने के दोनो रफीक़ो (अच्छा अब ताबीर सुनो तुममें से एक (जिसने अंगूर देखा रिहा होकर) अपने मालिक को शराब पिलाने का काम करेगा और (दूसरा) जिसने रोटियाँ सर पर (देखी हैं) तो सूली दिया जाएगा और चिडि़या उसके सर से (नोच नोच) कर खाएगी जिस अम्र को तुम दोनों दरयाफ्त करते थे (वह ये है और) फैसला हो चुका है।
وَقَالَ لِلَّذِى ظَنَّ أَنَّهُۥ نَاجٍۢ مِّنْهُمَا ٱذْكُرْنِى عِندَ رَبِّكَ فَأَنسَىٰهُ ٱلشَّيْطَـٰنُ ذِكْرَ رَبِّهِۦ فَلَبِثَ فِى ٱلسِّجْنِ بِضْعَ سِنِينَ
व क़ा-ल लिल्लज़ी ज़न्-न अन्नहू नाजिम् मिन्हुमज़्कुर्नी अिन्-द रब्बि-क, फ़अन्साहुश्शैतानु ज़िक्-र रब्बिही फ-लबि स फिस्सिज्-नि बिज़्-अ सिनीन
और उन दोनों में से जिसकी निस्बत यूसुफ ने समझा था वह रिहा हो जाएगा उससे कहा कि अपने मालिक के पास मेरा भी तज़किरा करना (कि मैं बेजुर्म क़ैद हूँ) तो शैतान ने उसे अपने आक़ा से जि़क्र करना भुला दिया तो यूसुफ क़ैद ख़ाने में कई बरस रहे।
وَقَالَ ٱلْمَلِكُ إِنِّىٓ أَرَىٰ سَبْعَ بَقَرَٰتٍۢ سِمَانٍۢ يَأْكُلُهُنَّ سَبْعٌ عِجَافٌۭ وَسَبْعَ سُنۢبُلَـٰتٍ خُضْرٍۢ وَأُخَرَ يَابِسَـٰتٍۢ ۖ يَـٰٓأَيُّهَا ٱلْمَلَأُ أَفْتُونِى فِى رُءْيَـٰىَ إِن كُنتُمْ لِلرُّءْيَا تَعْبُرُونَ
व क़ालल्-मलिकु इन्नी अरा सब्-अ़ ब क़रातिन् सिमानिंय्य अ्कुलुहुन् न सब्अुन् अिजाफुंव्व सब्-अ सुम्बुलातिन् ख़ुज़् रिं
व्-व उ-ख-र याबिसातिन्, या अय्युहल् म लउ अफ्तूनी फी रूअ्या-य इन् कुन्तुम् लिर्रूअ्या तअ्बुरून
और (इसी असना (बीच) में) बादशाह ने (भी ख़्वाब देखा और) कहा मैने देखा है कि सात मोटी ताज़ी गाए हैं उनको सात दुबली पतली गाय खाए जाती हैं और सात ताज़ी सब्ज़ बालियां (देखीं) और फिर (सात) सूखी बालियां ऐ (मेरे दरबार के) सरदारों अगर तुम लोगों को ख़्वाब की ताबीर देनी आती हो तो मेरे (इस) ख़्वाब के बारे में हुक्म लगाओ।
قَالُوٓا۟ أَضْغَـٰثُ أَحْلَـٰمٍۢ ۖ وَمَا نَحْنُ بِتَأْوِيلِ ٱلْأَحْلَـٰمِ بِعَـٰلِمِينَ
क़ालू अज़्ग़ासु अह़्लामिन्, व मा नह्नु बितअ्वीलिल्-अह़्लामि बिआलिमीन
उन लोगों ने अर्ज की कि ये तो (कुछ) ख़्वाब परे (सा) है और हम लोग ऐसे ख़्वाब (परेशां) की ताबीर तो नहीं जानते हैं।
وَقَالَ ٱلَّذِى نَجَا مِنْهُمَا وَٱدَّكَرَ بَعْدَ أُمَّةٍ أَنَا۠ أُنَبِّئُكُم بِتَأْوِيلِهِۦ فَأَرْسِلُونِ
व क़ालल्लज़ी नजा मिन्हुमा वद्द-क-र बअ्-द उम्मतिन् अ-ना उनब्बिउकुम् बितअ्वीलिही फ़-अर्सिलून
और जिसने उन दोनों में से रिहाई पाई थी (साकी) और उसको एक ज़माने के बाद (यूसुफ का कि़स्सा) याद आया बोल उठा कि मुझे (क़ैद ख़ाने तक) जाने दीजिए तो मैं उसकी ताबीर बताए देता हूँ।
يُوسُفُ أَيُّهَا ٱلصِّدِّيقُ أَفْتِنَا فِى سَبْعِ بَقَرَٰتٍۢ سِمَانٍۢ يَأْكُلُهُنَّ سَبْعٌ عِجَافٌۭ وَسَبْعِ سُنۢبُلَـٰتٍ خُضْرٍۢ وَأُخَرَ يَابِسَـٰتٍۢ لَّعَلِّىٓ أَرْجِعُ إِلَى ٱلنَّاسِ لَعَلَّهُمْ يَعْلَمُونَ
यूसुफु अय्युहस्-सिद्दीक़ु अफ्तिना फ़ी सब्अिब- क़रातिन् सिमानिंय्यअ्कुलुहुन्-न सब्अुन् अिजाफुंव् – व सब्अि सुम्बुलातिन् खुज्रिंव्-व उ-ख़-र याबिसातिल्-लअल्ली अर्जिअु इलन्नासि लअ़ल्लहुम् यअ्लमून
(ग़रज़ वह गया और यूसुफ से कहने लगा) ऐ यूसुफ ऐ बड़े सच्चे (यूसुफ) ज़रा हमें ये तो बताइए कि सात मोटी ताज़ी गायों को सात पतली गाय खाए जाती है और सात बालियां हैं हरी कचवा और फिर (सात) सूखी मुरझाई (इसकी ताबीर क्या है) तो मैं लोगों के पास पलट कर जाऊँ (और बयान करुँ)।
قَالَ تَزْرَعُونَ سَبْعَ سِنِينَ دَأَبًۭا فَمَا حَصَدتُّمْ فَذَرُوهُ فِى سُنۢبُلِهِۦٓ إِلَّا قَلِيلًۭا مِّمَّا تَأْكُلُونَ
क़ा-ल तज़्-रअू-न सब्-अ सिनी-न द-अबन् फ़मा हसत्तुम् फ़ ज़रूहु फ़ी सुम्बुलिही इल्ला क़लीलम्-मिम्मा तअ्कुलून
ताकि उनको भी (तुम्हारी क़दर) मालूम हो जाए यूसुफ ने कहा (इसकी ताबीर ये है) कि तुम लोग लगातार सात बरस काकारी करते रहोगे तो जो (फसल) तुम काटो उस (के दाने) को बालियों में रहने देना (छुड़ाना नहीं) मगर थोड़ा (बहुत) जो तुम खुद खाओ।
ثُمَّ يَأْتِى مِنۢ بَعْدِ ذَٰلِكَ سَبْعٌۭ شِدَادٌۭ يَأْكُلْنَ مَا قَدَّمْتُمْ لَهُنَّ إِلَّا قَلِيلًۭا مِّمَّا تُحْصِنُونَ
सुम्-म यअ्ती मिम्-बअ्दि ज़ालि-क सब्अुन् शिदादुंय्यअ्कुल्-न मा क़द्दम्तुम् लहुन्-न इल्ला क़लीलम् मिम्मा तुह़्सिनून
उसके बाद बड़े सख़्त (खुष्क साली (सूखे) के) सात बरस आयेंगे कि जो कुछ तुम लोगों ने उन सातों साल के वास्ते पहले जमा कर रखा होगा सब खा जायंगें मगर बहुत थोड़ा सा जो तुम (बीज के वास्ते) बचा रखोगे
ثُمَّ يَأْتِى مِنۢ بَعْدِ ذَٰلِكَ عَامٌۭ فِيهِ يُغَاثُ ٱلنَّاسُ وَفِيهِ يَعْصِرُونَ
सुम्-म यअ्ती मिम्-बअ्दि ज़ालि-क आमुन् फ़ीहि युग़ासुन्नासु व फ़ीहि यअ्सिरून
(बस) फिर उसके बाद एक साल आएगा जिसमें लोगों के लिए खूब मेंह बरसेगी (और अंगूर भी खूब फलेगा) और लोग उस साल (उन्हें) शराब के लिए निचोड़ेगें।
وَقَالَ ٱلْمَلِكُ ٱئْتُونِى بِهِۦ ۖ فَلَمَّا جَآءَهُ ٱلرَّسُولُ قَالَ ٱرْجِعْ إِلَىٰ رَبِّكَ فَسْـَٔلْهُ مَا بَالُ ٱلنِّسْوَةِ ٱلَّـٰتِى قَطَّعْنَ أَيْدِيَهُنَّ ۚ إِنَّ رَبِّى بِكَيْدِهِنَّ عَلِيمٌۭ
व क़ालल् मलिकुअ्तूनी बिही, फ़-लम्मा जा-अहुर्रसूलु क़ालर्जिअ् इला रब्बि-क फ़स् अल्हु मा बालुन-निस्वतिल्लाती कत्तअ्-न ऐदि यहुन्-न, इन्-न रब्बी बिकैदिहिन-न अलीम
(ये ताबीर सुनते ही) बादशाह ने हुक्म दिया कि यूसुफ को मेरे हुज़ूर में तो ले आओ फिर जब (शाही) चैबदार (ये हुक्म लेकर) यूसुफ के पास आया तो युसूफ ने कहा कि तुम अपनी सरकार के पास पलट जाओ और उनसे पूछो कि (आप को) कुछ उन औरतों का हाल भी मालूम है जिन्होने (मुझे देख कर) अपने अपने हाथ काट डाले थे कि या मैं उनका तालिब था।
قَالَ مَا خَطْبُكُنَّ إِذْ رَٰوَدتُّنَّ يُوسُفَ عَن نَّفْسِهِۦ ۚ قُلْنَ حَـٰشَ لِلَّهِ مَا عَلِمْنَا عَلَيْهِ مِن سُوٓءٍۢ ۚ قَالَتِ ٱمْرَأَتُ ٱلْعَزِيزِ ٱلْـَٔـٰنَ حَصْحَصَ ٱلْحَقُّ أَنَا۠ رَٰوَدتُّهُۥ عَن نَّفْسِهِۦ وَإِنَّهُۥ لَمِنَ ٱلصَّـٰدِقِينَ
क़ा-ल मा ख़त्बुकुन्-न इज़् रावत्तुन्-न यूसु-फ़ अन् नफ्सिही, क़ुल-न हा-श लिल्लाहि मा अ़लिम्-ना अलैहि मिन् सूइन्, क़ालतिम्र-अतुल् अ़ज़ीज़िल्-आ-न हस्ह-ल्हक़्क़ु, अ-ना रावत्तुहू अन् नफ्सिही व इन्नहू लमिनस्सादिक़ीन
या वह (मेरी) इसमें तो शक ही नहीं कि मेरा परवरदिगार ही उनके मक्र से खू़ब वाकि़फ है चुनान्चे बादशाह ने (उन औरतों को तलब किया) और पूछा कि जिस वक़्त तुम लोगों ने यूसुफ से अपना मतलब हासिल करने की खुद उन से तमन्ना की थी तो हमें क्या मामला पेश आया था वह सब की सब अर्ज़ करने लगी हाशा अल्लाह हमने यूसुफ में तो किसी तरह की बुराई नहीं देखी (तब) अज़ीज़ मिस्र की बीबी (ज़ुलेख़ा) बोल उठी अब तू ठीक ठीक हाल सब पर ज़ाहिर हो ही गया (असल बात ये है कि) मैने खुद उससे अपना मतलब हासिल करने की तमन्ना की थी और बेशक वह यक़ीनन सच्चा है।
ذَٰلِكَ لِيَعْلَمَ أَنِّى لَمْ أَخُنْهُ بِٱلْغَيْبِ وَأَنَّ ٱللَّهَ لَا يَهْدِى كَيْدَ ٱلْخَآئِنِينَ
ज़ालि-क लि-यअ्ल-म अन्नी लम् अख़ुन्हु बिल्ग़ैबि व अन्नल्ला ह ला यह्दी कैदल्-ख़ाइनीन
(ये वाक़िया चैबदार ने यूसुफ से बयान किया (यूसुफ ने कहा) ये किस्से मैने इसलिए छेड़ा) ताकि तुम्हारे बादशाह को मालूम हो जाए कि मैने अज़ीज़ की ग़ैबत में उसकी (अमानत में ख़यानत नहीं की) और ख़़ुदा ख़यानत करने वालों की मक्कारी हरगिज़ चलने नहीं देता। (पारा 12 समाप्त)
۞ وَمَآ أُبَرِّئُ نَفْسِىٓ ۚ إِنَّ ٱلنَّفْسَ لَأَمَّارَةٌۢ بِٱلسُّوٓءِ إِلَّا مَا رَحِمَ رَبِّىٓ ۚ إِنَّ رَبِّى غَفُورٌۭ رَّحِيمٌۭ
व मा उबर्रिउ नफ़्सी, इन्नन्नफ्-स ल-अम्मा-रतुम्-बिस्सू-इ इल्ला मा रहि-म रब्बी, इन्-न रब्बी ग़फूरुर्रहीम
और (यूं तो) मै भी अपने नफ्स को गुनाहो से बे लौस नहीं कहता हूँ क्योंकि (मैं भी बशर हूँ और नफ्स बराबर बुराई की तरफ उभारता ही है मगर जिस पर मेरा परवरदिगार रहम फरमाए (और गुनाह से बचाए)।
وَقَالَ ٱلْمَلِكُ ٱئْتُونِى بِهِۦٓ أَسْتَخْلِصْهُ لِنَفْسِى ۖ فَلَمَّا كَلَّمَهُۥ قَالَ إِنَّكَ ٱلْيَوْمَ لَدَيْنَا مَكِينٌ أَمِينٌۭ
व क़ालल्-मलिकुअ्तूनी बिही अस्तख़्लिस्हु लिनफ़्सी, फ़-लम्मा कल्ल-महू क़ा-ल इन्नकल्-यौ-म लदैना मकीनुन् अमीन
इसमें शक नहीं कि मेरा परवरदिगार बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है और बादशाह ने हुक्म दिया कि यूसुफ को मेरे पास ले आओ तो मैं उनको अपने ज़ाती काम के लिए ख़ास कर लूंगा फिर उसने यूसुफ से बातें की तो यूसुफ की आला क़ाबलियत साबित हुयी (और) उसने हुक्म दिया कि तुम आज (से) हमारे सरकार में यक़ीन बावक़ार (और) मुअतबर हो।
قَالَ ٱجْعَلْنِى عَلَىٰ خَزَآئِنِ ٱلْأَرْضِ ۖ إِنِّى حَفِيظٌ عَلِيمٌۭ
क़ालज्अ़ल्नी अ़ला ख़ज़ाइनिल्-अर्ज़ि, इन्नी हफ़ीजुन अलीम
यूसुफ ने कहा (जब अपने मेरी क़दर की है तो) मुझे मुल्की ख़ज़ानों पर मुक़र्रर कीजिए क्योंकि मैं (उसका) अमानतदार ख़ज़ान्ची (और) उसके हिसाब व किताब से भी वाकि़फ हूँ।
وَكَذَٰلِكَ مَكَّنَّا لِيُوسُفَ فِى ٱلْأَرْضِ يَتَبَوَّأُ مِنْهَا حَيْثُ يَشَآءُ ۚ نُصِيبُ بِرَحْمَتِنَا مَن نَّشَآءُ ۖ وَلَا نُضِيعُ أَجْرَ ٱلْمُحْسِنِينَ
व कज़ालि-क मक्कन्ना लियूसु-फ़ फ़िलअर्ज़ि य-तबव्वउ मिन्हा हैसु यशा-उ, नुसीबु बिरह् मतिना मन्-नशा-उ वला नुज़ीअु अज्रल्-मुह़्सिनीन
(ग़रज़ यूसुफ शाही ख़ज़ानो के अफसर मुक़र्रर हुए) और हमने यूसुफ को यूं मुल्क (मिस्र) पर क़ाबिज़ बना दिया कि उसमें जहाँ चाहें रहें हम जिस पर चाहते हैं अपना फज़ल करते हैं और हमने नेको कारो के अज्र को अकारत नहीं करते।
وَلَأَجْرُ ٱلْـَٔاخِرَةِ خَيْرٌۭ لِّلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَكَانُوا۟ يَتَّقُونَ
व ल अज्रुल्-आखिरति खैरूल्-लिल्लज़ी-न आमनू व कानू यत्तक़ून
और जो लोग इमान लाए और परहेज़गारी करते रहे उनके लिए आख़िरत का अज्र उसी से कही बेहतर है।
وَجَآءَ إِخْوَةُ يُوسُفَ فَدَخَلُوا۟ عَلَيْهِ فَعَرَفَهُمْ وَهُمْ لَهُۥ مُنكِرُونَ
व जा-अ इख़्वतु यूसु-फ़ फ़-द-ख़लू अ़लैहि फ़-अ-र-फहुम् व हुम् लहू मुन्किरून
(और चूंकि कनआन में भी कहत (सूखा) था इस वजह से) यूसुफ के (सौतेले भाई ग़ल्ला ख़रीदने को मिस्र में) आए और यूसुफ के पास गए तो उनको फौरन ही पहचान लिया और वह लोग उनको न पहचान सके।
وَلَمَّا جَهَّزَهُم بِجَهَازِهِمْ قَالَ ٱئْتُونِى بِأَخٍۢ لَّكُم مِّنْ أَبِيكُمْ ۚ أَلَا تَرَوْنَ أَنِّىٓ أُوفِى ٱلْكَيْلَ وَأَنَا۠ خَيْرُ ٱلْمُنزِلِينَ
व लम्मा जह्ह-ज़हुम् बि-जहाज़िहिम् क़ालअ्तूनी बि- अख़िल्-लकुम् मिन अबीकुम्, अला तरौ-न अन्नी ऊफ़िल्-कै-ल व अ-ना
ख़ैरूल्-मुन्ज़िलीन
और जब यूसुफ ने उनके (ग़ल्ले का) सामान दुरूस्त कर दिया और वह जाने लगे तो यूसुफ़ ने (उनसे कहा) कि (अबकी आना तो) अपने सौतेले भाई को (जिसे घर छोड़ आए हो) मेरे पास लेते आना क्या तुम नहीं देखते कि मै यक़ीनन नाप भी पूरी देता हूँ और बहुत अच्छा मेहमान नवाज़ भी हूँ।
فَإِن لَّمْ تَأْتُونِى بِهِۦ فَلَا كَيْلَ لَكُمْ عِندِى وَلَا تَقْرَبُونِ
फ़-इल्लम् तअ्तूनी बिही फ़ला कै-ल लकुम् अिन्दी वला तक़् रबून
पस अगर तुम उसको मेरे पास न लाओगे तो तुम्हारे लिए न मेरे पास कुछ न कुछ (ग़ल्ला वग़ैरह) होगा।
قَالُوا۟ سَنُرَٰوِدُ عَنْهُ أَبَاهُ وَإِنَّا لَفَـٰعِلُونَ
क़ालू सनुराविदु अन्हु अबाहु व इन्ना लफ़ाअिलून
न तुम लोग मेरे क़रीब ही चढ़ने पाओगे वह लोग कहने लगे हम उसके वालिद से उसके बारे में जाते ही दरख़्वास्त करेंगे।
وَقَالَ لِفِتْيَـٰنِهِ ٱجْعَلُوا۟ بِضَـٰعَتَهُمْ فِى رِحَالِهِمْ لَعَلَّهُمْ يَعْرِفُونَهَآ إِذَا ٱنقَلَبُوٓا۟ إِلَىٰٓ أَهْلِهِمْ لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُونَ
व क़ा-ल लिफ़ित्यानिहिज्-अ़लू बिज़ा-अ़ तहुम् फी रिहालिहिम् लअ़ल्लहुम् यअ्-रिफूनहा इज़न्क़-लबू इला अह़्लिहिम् लअ़ल्लहुम् यर्जिअून
और हम ज़रुर इस काम को पूरा करेंगें और यूसुफ ने अपने मुलाजि़मों (नौकरों) को हुक्म दिया कि उनकी (जमा) पूंजी उनके बोरो में (चूपके से) रख दो ताकि जब ये लोग अपने एहलो (अयाल) के पास लौट कर जाएं तो अपनी पूंजी को पहचान ले।
فَلَمَّا رَجَعُوٓا۟ إِلَىٰٓ أَبِيهِمْ قَالُوا۟ يَـٰٓأَبَانَا مُنِعَ مِنَّا ٱلْكَيْلُ فَأَرْسِلْ مَعَنَآ أَخَانَا نَكْتَلْ وَإِنَّا لَهُۥ لَحَـٰفِظُونَ
फ़-लम्मा र-जअू इला अबीहिम् क़ालू या अबाना मुनि -अ़ मिन्नल्कैलु फ़-अर्सिल् म अ़ना अख़ाना नक्तल् व इन्ना लहू लहाफ़िज़ून
(और इस लालच में) शायद फिर पलट के आयें ग़रज़ जब ये लोग अपने वालिद के पास पलट के आए तो सब ने मिलकर अज्र की ऐ अब्बा हमें (आइन्दा) गल्ले मिलने की मुमानिअत (मना) कर दी गई है तो आप हमारे साथ हमारे भाई (बिन यामीन) को भेज दीजिए।
قَالَ هَلْ ءَامَنُكُمْ عَلَيْهِ إِلَّا كَمَآ أَمِنتُكُمْ عَلَىٰٓ أَخِيهِ مِن قَبْلُ ۖ فَٱللَّهُ خَيْرٌ حَـٰفِظًۭا ۖ وَهُوَ أَرْحَمُ ٱلرَّٰحِمِينَ
क़ा-ल हल् आमनुकुम् अ़लैहि इल्ला कमा अमिन्तुकुम् अ़ला अ़ख़ीहि मिन क़ब्लु, फ़ल्लाहु ख़ैरून् हाफ़िज़ंव्-व हु-व अर्हमुर्-राहिमीन
ताकि हम (फिर) गल्ला लाए और हम उसकी पूरी हिफाज़त करेगें याक़ूब ने कहा मै उसके बारे में तुम्हारा ऐतबार नहीं करता मगर वैसा ही जैसा कि उससे पहले उसके मांजाए (भाई) के बारे में किया था तो ख़ुद उसका सबसे बेहतर हिफाज़त करने वाला है और वही सब से ज़्यादा रहम करने वाला है।
وَلَمَّا فَتَحُوا۟ مَتَـٰعَهُمْ وَجَدُوا۟ بِضَـٰعَتَهُمْ رُدَّتْ إِلَيْهِمْ ۖ قَالُوا۟ يَـٰٓأَبَانَا مَا نَبْغِى ۖ هَـٰذِهِۦ بِضَـٰعَتُنَا رُدَّتْ إِلَيْنَا ۖ وَنَمِيرُ أَهْلَنَا وَنَحْفَظُ أَخَانَا وَنَزْدَادُ كَيْلَ بَعِيرٍۢ ۖ ذَٰلِكَ كَيْلٌۭ يَسِيرٌۭ
व लम्मा फ़-तहू मता अहुम् व जदू बिज़ाअ तहुम् रूद्दत इलैहिम्, क़ालू या अबाना मा नब़्ग़ी, हाज़िही बिज़ा-अतुना रूद्दत इलैना, व नमीरू अह़्लना व नह़्फ़ज़ु अख़ाना व नज़्दादु कै-ल बईरिन्, ज़ालि-क कैलुंय्यसीर
और जब उन लोगों ने अपने अपने असबाब खोले तो अपनी अपनी पूंजी को देखा कि (वैसे ही) वापस कर दी गई है तो (अपने बाप से) कहने लगे ऐ अब्बा हमें (और) क्या चाहिए (देखिए) यह हमारी जमा पूंजी हमें वापस दे दी गयी है और (ग़ल्ला मुफ्त मिला अब इब्ने यामीन को जाने दीजिए तो) हम अपने एहलो अयाल के वास्ते ग़ल्ला लादें और अपने भाई की पूरी हिफाज़त करेगें और एक बार शतर ग़ल्ला और बढ़वा लायंगे।
قَالَ لَنْ أُرْسِلَهُۥ مَعَكُمْ حَتَّىٰ تُؤْتُونِ مَوْثِقًۭا مِّنَ ٱللَّهِ لَتَأْتُنَّنِى بِهِۦٓ إِلَّآ أَن يُحَاطَ بِكُمْ ۖ فَلَمَّآ ءَاتَوْهُ مَوْثِقَهُمْ قَالَ ٱللَّهُ عَلَىٰ مَا نَقُولُ وَكِيلٌۭ
क़ा-ल लन् उर्सि-लहू म-अ़कुम् हत्ता तुअ्तूनि मौसिक़म्-मिनल्लाहि ल-तअ्तुन्ननी बिही इल्ला अंय्युहा-त बिकुम्, फ़ लम्मा आतौहु मौसि-कहुम् क़ालल्लाहु अ़ला मा नक़ूलु वकील
ये जो अबकी दफा लाए थे थोड़ा सा ग़ल्ला है याकूब ने कहा जब तक तुम लोग मेरे सामने खुदा से एहद न कर लोगे कि तुम उसको ज़रुर मुझ तक (सही व सालिम) ले आओगे मगर हाँ जब तुम खुद घिर जाओ तो मजबूरी है वरना मै तुम्हारे साथ हरगिज़ उसको न भेजूंगा फिर जब उन लोगों ने उनके सामने एहद कर लिया तो याक़ूब ने कहा कि हम लोग जो कह रहे हैं ख़ुदा उसका ज़ामिन है।
وَقَالَ يَـٰبَنِىَّ لَا تَدْخُلُوا۟ مِنۢ بَابٍۢ وَٰحِدٍۢ وَٱدْخُلُوا۟ مِنْ أَبْوَٰبٍۢ مُّتَفَرِّقَةٍۢ ۖ وَمَآ أُغْنِى عَنكُم مِّنَ ٱللَّهِ مِن شَىْءٍ ۖ إِنِ ٱلْحُكْمُ إِلَّا لِلَّهِ ۖ عَلَيْهِ تَوَكَّلْتُ ۖ وَعَلَيْهِ فَلْيَتَوَكَّلِ ٱلْمُتَوَكِّلُونَ
व क़ा-ल या बनिय्-य ला तद्ख़ुलू मिम्-बाबिंव्-वाहिदिंव् वद्ख़ुलू मिन् अब्वाबिम् मु-तफ़र्रि-क़तिन्, व मा उ़ग्-नी
अ़न्कुम् मिनल्लाहि मिन् शैइन्, इनिल्हुक्मु इल्ला लिल्लाहि, अलैहि तवक्कल्तु, व अ़लैहि फ़ल्य-तवक्कलिल्-मु तवक्किलून
और याक़ूब ने (नसीहतन चलते वक़्त बेटो से) कहा ऐ फरज़न्दों (देखो ख़बरदार) सब के सब एक ही दरवाजे़ से न दाखि़ल होना (कि कहीं नज़र न लग जाए) और मुताफरिक़ (अलग अलग) दरवाज़ों से दाखि़ल होना और मै तुमसे (उस बात को जो) अल्लाह की तरफ से (आए) कुछ टाल भी नहीं सकता हुक्म तो (और असली) अल्लाह ही के वास्ते है मैने उसी पर भरोसा किया है और भरोसा करने वालों को उसी पर भरोसा करना चाहिए।
وَلَمَّا دَخَلُوا۟ مِنْ حَيْثُ أَمَرَهُمْ أَبُوهُم مَّا كَانَ يُغْنِى عَنْهُم مِّنَ ٱللَّهِ مِن شَىْءٍ إِلَّا حَاجَةًۭ فِى نَفْسِ يَعْقُوبَ قَضَىٰهَا ۚ وَإِنَّهُۥ لَذُو عِلْمٍۢ لِّمَا عَلَّمْنَـٰهُ وَلَـٰكِنَّ أَكْثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ
व लम्मा-द-ख़लू मिन् हैसु अ-म-रहुम् अबूहुम्, मा का न युग़्-नि अ़न्हुम् मिनल्लाहि मिन् शैइन् इल्ला हा-जतन् फी नफ्सि यअ्क़ू-ब क़ज़ाहा, व इन्नहू लज़ू अिल्मिल्-लिमा अल्लम्-ना हु व लाकिन्-न अक्सरन्नासि ला यअ्लमून
और जब ये सब भाई जिस तरह उनके वालिद ने हुक्म दिया था उसी तरह (मिस्र में) दाखि़ल हुए मगर जो हुक्म अल्लाह की तरफ से आने को था उसे याक़ूब कुछ भी टाल नहीं सकते थे मगर (हाँ) याक़ूब के दिल में एक तमन्ना थी जिसे उन्होंने भी यूं पूरा कर लिया क्योंकि इसमे तो शक नहीं कि उसे चूंकि हमने तालीम दी थी साहिबे इल्म ज़रुर था मगर बहुतेरे लोग (उससे भी) वाकि़फ नहीं।
وَلَمَّا دَخَلُوا۟ عَلَىٰ يُوسُفَ ءَاوَىٰٓ إِلَيْهِ أَخَاهُ ۖ قَالَ إِنِّىٓ أَنَا۠ أَخُوكَ فَلَا تَبْتَئِسْ بِمَا كَانُوا۟ يَعْمَلُونَ
व लम्मा द-ख़लू अला यूसु-फ़ आवा इलैहि अख़ाहु क़ा-ल इन्नी अ-ना अख़ू-क फ़ला तब्तइस् बिमा कानू यअ्मलून
और जब ये लोग यूसुफ के पास पहुँचे तो यूसुफ ने अपने हक़ीक़ी (सगे) भाई को अपने पास (बग़ल में) जगह दी और (चुपके से) उस (इब्ने यामीन) से कह दिया कि मै तुम्हारा भाई (यूसुफ) हूँ तो जो कुछ (बदसुलूकियाँ) ये लोग तुम्हारे साथ करते रहे हैं उसका रंज न करो।
فَلَمَّا جَهَّزَهُم بِجَهَازِهِمْ جَعَلَ ٱلسِّقَايَةَ فِى رَحْلِ أَخِيهِ ثُمَّ أَذَّنَ مُؤَذِّنٌ أَيَّتُهَا ٱلْعِيرُ إِنَّكُمْ لَسَـٰرِقُونَ
फ़-लम्मा जह्ह ज़हुम् बि जहाज़िहिम् ज अ़लस्सिक़ाय-त फी रह्-लि अख़ीहि सुम्-म अज़्ज़-न मुअज़्ज़िनुन् अय्यतुहल् ईरू इन्नकुम् लसारिक़ून
फिर जब यूसुफ ने उन का साज़ो सामान सफर ग़ल्ला (वग़ैरह) दुरुस्त करा दिया तो अपने भाई के असबाब में पानी पीने का कटोरा (यूसुफ के इशारे) से रखवा दिया फिर एक मुनादी ललकार के बोला कि ऐ काफ़िले वालों (हो न हो) यक़ीनन तुम्ही लोग ज़रुर चोर हो।
قَالُوا۟ وَأَقْبَلُوا۟ عَلَيْهِم مَّاذَا تَفْقِدُونَ
क़ालू व अक़बलू अ़लैहिम् माज़ा तफ्क़िदून
ये सुन कर ये लोग पुकारने वालों की तरफ भिड़ पड़े और कहने लगे (आखि़र) तुम्हारी क्या चीज़ गुम हो गई है।
قَالُوا۟ نَفْقِدُ صُوَاعَ ٱلْمَلِكِ وَلِمَن جَآءَ بِهِۦ حِمْلُ بَعِيرٍۢ وَأَنَا۠ بِهِۦ زَعِيمٌۭ
क़ालू नफ्क़िदु सुवाअ़ल्- मलिकि व लिमन् जा-अ बिही हिम्लु बईरिंव्-व अ-ना बिही ज़ईम
उन लोगों ने जवाब दिया कि हमें बादशाह का प्याला नहीं मिलता है और मै उसका ज़ामिन हूँ कि जो शख़्स उसको ला हाजिर करेगा उसको एक ऊँट के बोझ बराबर (ग़ल्ला इनाम) मिलेगा।
قَالُوا۟ تَٱللَّهِ لَقَدْ عَلِمْتُم مَّا جِئْنَا لِنُفْسِدَ فِى ٱلْأَرْضِ وَمَا كُنَّا سَـٰرِقِينَ
क़ालू तल्लाहि ल-क़द् अ़लिम्तुम् मा जिअ्ना लिनुफ्सि-द फ़िल्अर्ज़ि व मा कुन्ना सारिक़ीन
तब ये लेाग कहने लगे अल्लाह की क़सम तुम तो जानते हो कि (तुम्हारे) म़ुल्क में हम फसाद करने की ग़रज़ से नहीं आए थे और हम लोग तो कुछ चोर तो हैं नहीं।
قَالُوا۟ فَمَا جَزَٰٓؤُهُۥٓ إِن كُنتُمْ كَـٰذِبِينَ
क़ालू फ़मा जज़ाउहू इन् कुन्तुम् काज़िबीन
तब वह मुलाजिमों बोले कि अगर तुम झूठे निकले तो फिर चोर की क्या सज़ा होगी।
قَالُوا۟ جَزَٰٓؤُهُۥ مَن وُجِدَ فِى رَحْلِهِۦ فَهُوَ جَزَٰٓؤُهُۥ ۚ كَذَٰلِكَ نَجْزِى ٱلظَّـٰلِمِينَ
क़ालू जज़ाउहू मंव्वुजि-द फी रह़्लिही फ़हु-व जज़ाउहू, कज़ालि-क नज्ज़िज़्ज़ालिमीन
(वे धड़क) बोल उठे कि उसकी सज़ा ये है कि जिसके बोरे में वह (माल) निकले तो वही उसका बदला है (तो वह माल के बदले में ग़ुलाम बना लिया जाए)।
فَبَدَأَ بِأَوْعِيَتِهِمْ قَبْلَ وِعَآءِ أَخِيهِ ثُمَّ ٱسْتَخْرَجَهَا مِن وِعَآءِ أَخِيهِ ۚ كَذَٰلِكَ كِدْنَا لِيُوسُفَ ۖ مَا كَانَ لِيَأْخُذَ أَخَاهُ فِى دِينِ ٱلْمَلِكِ إِلَّآ أَن يَشَآءَ ٱللَّهُ ۚ نَرْفَعُ دَرَجَـٰتٍۢ مَّن نَّشَآءُ ۗ وَفَوْقَ كُلِّ ذِى عِلْمٍ عَلِيمٌۭ
फ़-ब-द-अ बिऔअि-यतिहिम् क़ब्-ल विआ़-इ अख़ीहि सुम्मस्तख़्-जहा मिंव्विआ़ इ अख़ीहि, कज़ालि-क किद्-ना
लियूसु-फ, मा का-न लियअ्ख़ु-ज़ अख़ाहु फ़ी दीनिल्-मलिकि इल्ला अंय्यशाअल्लाहु, नरफ़अु द-रजातिम् मन्-नशा-उ, व फौ-क़ कुल्लि ज़ी अिल्मिन् अ़लीम
हम लोग तो (अपने यहाँ) ज़ालिमों (चोरों) को इसी तरह सज़ा दिया करते हैं ग़रज़ यूसुफ ने अपने भाई का थैला खोलने ने से क़ब्ल दूसरे भाइयों के थैलों से (तलाशी) शुरु की उसके बाद (आखि़र में) उस प्याले को यूसुफ ने अपने भाई के थैले से बरामद किया यूसुफ को भाई के रोकने की हमने यू तदबीर बताइ वरना (बादशाह मिस्र) के क़ानून के मुवाफिक़ अपने भाई को रोक नहीं सकते थे मगर हाँ जब अल्लाह चाहे हम जिसे चाहते हैं उसके दर्जे बुलन्द कर देते हैं और (दुनिया में) हर साहबे इल्म से बढ़कर एक और आलिम है।
۞ قَالُوٓا۟ إِن يَسْرِقْ فَقَدْ سَرَقَ أَخٌۭ لَّهُۥ مِن قَبْلُ ۚ فَأَسَرَّهَا يُوسُفُ فِى نَفْسِهِۦ وَلَمْ يُبْدِهَا لَهُمْ ۚ قَالَ أَنتُمْ شَرٌّۭ مَّكَانًۭا ۖ وَٱللَّهُ أَعْلَمُ بِمَا تَصِفُونَ
क़ालू इंय्यस् रिक़् फ़-क़द् स-र-क़ अख़ुल्लहू मिन् क़ब्लु, फ़-असर्रहा यूसुफु फ़ी नफ्सिही व लम् युब्दिहा लहुम्, क़ा-ल अन्तुम् शर्रूम्-मकानन्, वल्लाहु अअ्लमु बिमा तसिफून
(ग़रज़) इब्ने यामीन रोक लिए गए तो ये लोग कहने लगे अगर उसने चोरी की तो (कौन ताज्जुब है) इसके पहले इसका भाई (यूसुफ) चोरी कर चुका है तो यूसुफ ने (उसका कुछ जवाब न दिया) उसको अपने दिल में पोशीदा (छुपाये) रखा और उन पर ज़ाहिर न होने दिया मगर ये कह दिया कि तुम लोग बड़े ख़ाना ख़राब (बुरे आदमी) हो।
قَالُوا۟ يَـٰٓأَيُّهَا ٱلْعَزِيزُ إِنَّ لَهُۥٓ أَبًۭا شَيْخًۭا كَبِيرًۭا فَخُذْ أَحَدَنَا مَكَانَهُۥٓ ۖ إِنَّا نَرَىٰكَ مِنَ ٱلْمُحْسِنِينَ
क़ालू या अय्युहल्-अज़ीज़ु इन्-न लहू अबन् शैख़न् कबीरन् फ़ख़ुज् अ-ह-दना मकानहू, इन्ना नरा-क मिनल् मुह्सिनीन
और जो (उसके भाई की चोरी का हाल बयान करते हो अल्लाह खूब बवाकि़फ है (इस पर) उन लोगों ने कहा ऐ अज़ीज़ उस (इब्ने यामीन) के वालिद बहुत बूढ़े (आदमी) हैं (और इसको बहुत चाहते हैं) तो आप उसके ऐवज़ (बदले) हम में से किसी को ले लीजिए और उसको छोड़ दीजिए।
قَالَ مَعَاذَ ٱللَّهِ أَن نَّأْخُذَ إِلَّا مَن وَجَدْنَا مَتَـٰعَنَا عِندَهُۥٓ إِنَّآ إِذًۭا لَّظَـٰلِمُونَ
क़ा-ल मआ़ज़ल्लाहि अन् नअ्ख़ु-ज़ इल्ला मंव्व-जद्-ना मता-अना अिन्दहू, इन्ना इज़ल्-लज़ालिमून
क्योंकि हम आपको बहुत नेको कार बुर्ज़ुग समझते हैं यूसुफ ने कहा माज़ अल्लाह (ये क्यों कर हो सकता है कि) हमने जिसकी पास अपनी चीज़ पाई है उसे छोड़कर दूसरे को पकड़ लें (अगर हम ऐसा करें) तो हम ज़रुर बड़े बेइन्साफ ठहरे।
فَلَمَّا ٱسْتَيْـَٔسُوا۟ مِنْهُ خَلَصُوا۟ نَجِيًّۭا ۖ قَالَ كَبِيرُهُمْ أَلَمْ تَعْلَمُوٓا۟ أَنَّ أَبَاكُمْ قَدْ أَخَذَ عَلَيْكُم مَّوْثِقًۭا مِّنَ ٱللَّهِ وَمِن قَبْلُ مَا فَرَّطتُمْ فِى يُوسُفَ ۖ فَلَنْ أَبْرَحَ ٱلْأَرْضَ حَتَّىٰ يَأْذَنَ لِىٓ أَبِىٓ أَوْ يَحْكُمَ ٱللَّهُ لِى ۖ وَهُوَ خَيْرُ ٱلْحَـٰكِمِينَ
फ़लम्मस्तै-असू मिन्हु ख़-लसू नजिय्यन्, क़ा-ल कबीरूहुम् अलम् तअ्लमू अन्-न अबाकुम् क़द् अ-ख़-ज़ अ़लैकुम् मौसिक़म् मिनल्लाहि व मिन् क़ब्लु मा फर्रत्तुम् फी यू सु-फ़, फ़-लन् अब़्-र-हल्-अर्-ज़ हत्ता यअ्ज़-न ली अबी औ यह्कुमल्लाहु ली, व हु-व ख़ैरूल्-हाकिमीन
फिर जब यूसुफ की तरफ से मायूस हुए तो बाहम मशवरा करने के लिए अलग खड़े हुए तो जो शख़्स उन सब में बड़ा था (यहूदा) कहने लगा (भाइयों) क्या तुम को मालूम नहीं कि तुम्हार वालिद ने तुम लोगों से अल्लाह का एहद करा लिया था और उससे तुम लोग यूसुफ के बारे में क्या कुछ ग़लती कर ही चुके हो तो (भाई) जब तक मेरे वालिद मुझे इजाज़त (न) दें या खुद अल्लाह मुझे कोई हुक्म (न) दे मै उस सर ज़मीन से हरगिज़ न हटूँगा और अल्लाह तो सब हुक्म देने वालो से कहीं बेहतर है।
ٱرْجِعُوٓا۟ إِلَىٰٓ أَبِيكُمْ فَقُولُوا۟ يَـٰٓأَبَانَآ إِنَّ ٱبْنَكَ سَرَقَ وَمَا شَهِدْنَآ إِلَّا بِمَا عَلِمْنَا وَمَا كُنَّا لِلْغَيْبِ حَـٰفِظِينَ
इर्जिअू इला अबीकुम् फ़क़ूलू या अबाना इन्नब्-न-क स-र-क़, वमा शहिद्-ना इल्ला बिमा अ़लिम्-ना वमा कुन्ना लिल्ग़ैबि हाफ़िज़ीन
तुम लोग अपने वालिद के पास पलट के जाओ और उनसे जाकर अज्र करो ऐ अब्बा अपके साहबज़ादे ने चोरी की और हम लोगों ने तो अपनी समझ के मुताबिक़ (उसके ले आने का एहद किया था और हम कुछ (अज्र) ग़ैबी (आफत) के निगेहबान थे नहीं।
وَسْـَٔلِ ٱلْقَرْيَةَ ٱلَّتِى كُنَّا فِيهَا وَٱلْعِيرَ ٱلَّتِىٓ أَقْبَلْنَا فِيهَا ۖ وَإِنَّا لَصَـٰدِقُونَ
वस्अलिल्-क़र्य-तल्लती कुन्ना फ़ीहा वल्ईरल्लती अक़्बल्ना फ़ीहा, व इन्ना लसादिक़ून
और आप इस बस्ती (मिस्र) के लोगों से जिसमें हम लोग थे दरयाफ़्त कर लीजिए और इस क़ाफले से भी जिसमें आए हैं (पूछ लीजिए) और हम यक़ीनन बिल्कुल सच्चे हैं।
قَالَ بَلْ سَوَّلَتْ لَكُمْ أَنفُسُكُمْ أَمْرًۭا ۖ فَصَبْرٌۭ جَمِيلٌ ۖ عَسَى ٱللَّهُ أَن يَأْتِيَنِى بِهِمْ جَمِيعًا ۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلْعَلِيمُ ٱلْحَكِيمُ
क़ा-ल बल् सव्वलत् लकुम् अन्फुसुकुम् अम्रन्, फ़- सब्-रू-न् जमीलुन्, अंसल्लाहु अंय्यअ्ति-यनी बिहिम् जमीअ़न्, इन्नहू हुवल् अ़लीमुल्-हकीम
(ग़रज़ जब उन लोगों ने जाकर बयान किया तो) याक़ूब न कहा (उसने चोरी नहीं की) बल्कि ये बात तुमने अपने दिल से गढ़ ली है तो (ख़ैर) सब्र (और अल्लाह का) शुक्र अल्लाह से तो (मुझे) उम्मीद है कि मेरे सब (लड़कों) को मेरे पास पहुँचा दे बेशक वह बड़ा वाकिफ़ कार हकीम है।
وَتَوَلَّىٰ عَنْهُمْ وَقَالَ يَـٰٓأَسَفَىٰ عَلَىٰ يُوسُفَ وَٱبْيَضَّتْ عَيْنَاهُ مِنَ ٱلْحُزْنِ فَهُوَ كَظِيمٌۭ
व तवल्ला अ़न्हुम् व क़ा-ल या अ-सफा अ़ला यूसु-फ़ वब्यज़्ज़त् ऐनाहु मिनल्-हुज़्-नि फहु-व कज़ीम
और याक़ूब ने उन लोगों की तरफ से मुँह फेर लिया और (रोकर) कहने लगे हाए अफसोस यूसुफ पर और (इस क़दर रोए कि) उनकी आँखें सदमे से सफेद हो गई वह तो बड़े रंज के ज़ाबित (झेलने वाले) थे।
قَالُوا۟ تَٱللَّهِ تَفْتَؤُا۟ تَذْكُرُ يُوسُفَ حَتَّىٰ تَكُونَ حَرَضًا أَوْ تَكُونَ مِنَ ٱلْهَـٰلِكِينَ
क़ालू तल्लाहि तफ़्तउ तज़्कुरू यूसु-फ़ हत्ता तकू-न ह-रज़न् औ तकू-न मिनल्-हालिकीन
(ये देखकर उनके बेटे) कहने लगे कि आप तो हमेशा यूसुफ को याद ही करते रहिएगा यहाँ तक कि बीमार हो जाएगा या जान ही दे दीजिएगा।
قَالَ إِنَّمَآ أَشْكُوا۟ بَثِّى وَحُزْنِىٓ إِلَى ٱللَّهِ وَأَعْلَمُ مِنَ ٱللَّهِ مَا لَا تَعْلَمُونَ
क़ा-ल इन्नमा अश्कू बस्सी व हुज़्नी इलल्लाहि व अअ्लमु मिनल्लाहि मा ला तअ्लमून
याक़ूब ने कहा (मै तुमसे कुछ नहीं कहता) मैं तो अपनी बेक़रारी व रंज की शिकायत अल्लाह ही से करता हूँ और अल्लाह की तरफ से जो बातें मै जानता हूँ तुम नहीं जानते हो।
يَـٰبَنِىَّ ٱذْهَبُوا۟ فَتَحَسَّسُوا۟ مِن يُوسُفَ وَأَخِيهِ وَلَا تَا۟يْـَٔسُوا۟ مِن رَّوْحِ ٱللَّهِ ۖ إِنَّهُۥ لَا يَا۟يْـَٔسُ مِن رَّوْحِ ٱللَّهِ إِلَّا ٱلْقَوْمُ ٱلْكَـٰفِرُونَ
या बनिय्यज़्हबू फ़-तहस्ससू मिंय्यूसु-फ़ व अख़ीहि वला तै-असु मिरौंहिल्लाहि, इन्नहू ला यै-असू मिरौंहिल्लाहि इल्लल् क़ौमुल्-काफिरून
ऐ मेरी फरज़न्द (एक बार फिर मिस्र) जाओ और यूसुफ और उसके भाई को (जिस तरह बने) ढूँढ के ले आओ और अल्लाह की रहमत से ना उम्मीद न हो क्योंकि अल्लाह की रहमत से काफिर लोगो के सिवा और कोई ना उम्मीद नहीं हुआ करता।
فَلَمَّا دَخَلُوا۟ عَلَيْهِ قَالُوا۟ يَـٰٓأَيُّهَا ٱلْعَزِيزُ مَسَّنَا وَأَهْلَنَا ٱلضُّرُّ وَجِئْنَا بِبِضَـٰعَةٍۢ مُّزْجَىٰةٍۢ فَأَوْفِ لَنَا ٱلْكَيْلَ وَتَصَدَّقْ عَلَيْنَآ ۖ إِنَّ ٱللَّهَ يَجْزِى ٱلْمُتَصَدِّقِينَ
फ़-लम्मा द-ख़लू अ़लैहि क़ालू या अय्युहल् अ़ज़ीजु मस्सना व अह़्ल-नज़्जुर्रु व जिअ्ना बिबिज़ा-अतिम्- मुज़्जातिन् फ़औफ़ि लनल्कै-ल व तसद्दक़् अ़लैना, इन्नल्ला-ह यज्ज़िल मु-तसद्दिक़ीन
फिर जब ये लोग यूसुफ के पास गए तो (बहुत गिड़गिड़ाकर) अज्र की कि ऐ अज़ीज़ हमको और हमारे (सारे) कुनबे को कहत की वजह से बड़ी तकलीफ हो रही है और हम कुछ थोड़ी सी पूंजी लेकर आए हैं तो हम को (उसके ऐवज़ पर पूरा ग़ल्ला दिलवा दीजिए और (क़ीमत ही पर नहीं) हम को (अपना) सदक़ा खै़रात दीजिए इसमें तो शक नहीं कि अल्लाह सदक़ा ख़ैरात देने वालों को जजाए ख़ैर देता है।
قَالَ هَلْ عَلِمْتُم مَّا فَعَلْتُم بِيُوسُفَ وَأَخِيهِ إِذْ أَنتُمْ جَـٰهِلُونَ
क़ा-ल हल् अलिम्तुम् मा फ़अ़ल्तुम् बियूसु-फ़ व अख़ीहि इज़् अन्तुम् जाहिलून
(अब तो यूसुफ से न रहा गया) कहा तुम्हें कुछ मालूम है कि जब तुम जाहिल हो रहे थे तो तुम ने यूसुफ और उसके भाई के साथ क्या क्या सुलूक किए।
قَالُوٓا۟ أَءِنَّكَ لَأَنتَ يُوسُفُ ۖ قَالَ أَنَا۠ يُوسُفُ وَهَـٰذَآ أَخِى ۖ قَدْ مَنَّ ٱللَّهُ عَلَيْنَآ ۖ إِنَّهُۥ مَن يَتَّقِ وَيَصْبِرْ فَإِنَّ ٱللَّهَ لَا يُضِيعُ أَجْرَ ٱلْمُحْسِنِينَ
क़ालू अ-इन्न-क ल-अन्-त यूसुफु, क़ा-ल अ-ना यूसुफु व हाज़ा अख़ी, क़द् मन्नल्लाहु अ़लैना, इन्नहू मंय्यत्तक़ि व यस्बिर् फ़- इन्नल्ला-ह ला युज़ीअु अज्रल-मुह्सिनीन
(उस पर वह लोग चैके) और कहने लगे (हाए) क्या तुम ही यूसुफ हो, यूसुफ ने कहा हाँ मै ही यूसुफ हूँ और यह मेरा भाई है बेशक ख़ुदा ने मुझ पर अपना फज़ल व (करम) किया है क्या इसमें शक नहीं कि जो शख़्स (उससे) डरता है (और मुसीबत में) सब्र करे तो ख़ुदा हरगिज़ (ऐसे नेको कारों का) अज्र बरबाद नहीं करता।
قَالُوا۟ تَٱللَّهِ لَقَدْ ءَاثَرَكَ ٱللَّهُ عَلَيْنَا وَإِن كُنَّا لَخَـٰطِـِٔينَ
क़ालू तल्लाहि ल-क़द् आस-रकल्लाहु अ़लैना व इन् कुन्ना लख़ातिईन
वह लोग कहने लगे ख़ुदा की क़सम तुम्हें ख़ुदा ने यक़ीनन हम पर फज़ीलत दी है और बेशक हम ही यक़ीनन (अज़सरतापा) ख़तावार थे।
قَالَ لَا تَثْرِيبَ عَلَيْكُمُ ٱلْيَوْمَ ۖ يَغْفِرُ ٱللَّهُ لَكُمْ ۖ وَهُوَ أَرْحَمُ ٱلرَّٰحِمِينَ
क़ा-ल ला तस्-री-ब अ़लैकुमुल्-यौ-म, यग़्फिरूल्लाहु लकुम्, व हु-व अर्हमुर् राहिमीन
यूसुफ ने कहा अब आज से तुम पर कुछ इल्ज़ाम नहीं ख़ुदा तुम्हारे गुनाह माफ फरमाए वह तो सबसे ज़्यादा रहीम है ये मेरा कुर्ता ले जाओ।
ٱذْهَبُوا۟ بِقَمِيصِى هَـٰذَا فَأَلْقُوهُ عَلَىٰ وَجْهِ أَبِى يَأْتِ بَصِيرًۭا وَأْتُونِى بِأَهْلِكُمْ أَجْمَعِينَ
इज़्हबू बि-क़मीसी हाज़ा फ़अल्क़ूहु अ़ला वज्हि-अबी यअ्ति बसीरन्, वअ्तूनी बिअह़्लिकुम् अज्मईन
और उसको अब्बा जान के चेहरे पर डाल देना कि वह फिर बीना हो जाएगें (देखने लगेंगे) और तुम लोग अपने सब लड़के बालों को लेकर मेरे पास चले आओ।
وَلَمَّا فَصَلَتِ ٱلْعِيرُ قَالَ أَبُوهُمْ إِنِّى لَأَجِدُ رِيحَ يُوسُفَ ۖ لَوْلَآ أَن تُفَنِّدُونِ ٩٤
व लम्मा फ़-स-लतिल्-ईरू क़ा-ल अबूहुम् इन्नी ल-अजिदु री-ह यूसु-फ़ लौ ला अन् तुफ़न्निदून
और जो ही ये काफि़ला मिस्र से चला था कि उन लोगों के वालिद (याक़ूब) ने कहा दिया था कि अगर मुझे सठिया या हुआ न कहो तो बात कहूँ कि मुझे यूसुफ की बू मालूम हो रही है।
قَالُوا۟ تَٱللَّهِ إِنَّكَ لَفِى ضَلَـٰلِكَ ٱلْقَدِيمِ
क़ालू तल्लाहि इन्न-क लफ़ी ज़लालिकल् क़दीम
वह लोग कुनबे वाले (पोते वग़ैराह) कहने लगे आप यक़ीनन अपने पुराने ख़याल (मोहब्बत) में (पड़े हुए) हैं।
فَلَمَّآ أَن جَآءَ ٱلْبَشِيرُ أَلْقَىٰهُ عَلَىٰ وَجْهِهِۦ فَٱرْتَدَّ بَصِيرًۭا ۖ قَالَ أَلَمْ أَقُل لَّكُمْ إِنِّىٓ أَعْلَمُ مِنَ ٱللَّهِ مَا لَا تَعْلَمُونَ
फ़-लम्मा अन् जाअल्-बशीरू अल्क़ाहु अ़ला वज्हिही फ़र्तद्-द बसीरन्, क़ा-ल अलम् अक़ुल् लकुम्, इन्नी अअ्लमु मिनल्लाहि मा ला तअ्लमून
फिर (यूसुफ की) खुशखबरी देने वाला आया और उनके कुर्ते को उनके चेहरे पर डाल दिया तो याक़ूब फौरन फिर दोबारा आँख वाले हो गए (तब याक़ूब ने बेटों से) कहा क्यों मै तुमसे न कहता था जो बातें खु़दा की तरफ से मै जानता हूँ तुम नहीं जानते।
قَالُوا۟ يَـٰٓأَبَانَا ٱسْتَغْفِرْ لَنَا ذُنُوبَنَآ إِنَّا كُنَّا خَـٰطِـِٔينَ
क़ालू या अबानस्तग़्फिर् लना ज़ुनूबना इन्ना कुन्ना ख़ातिईन
उन लोगों ने अज्र की ऐ अब्बा हमारे गुनाहों की मग़फिरत की (ख़ुदा की बारगाह में) हमारे वास्ते दुआ माँगिए हम बेशक अज़सरतापा गुनेहगार हैं।
قَالَ سَوْفَ أَسْتَغْفِرُ لَكُمْ رَبِّىٓ ۖ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلْغَفُورُ ٱلرَّحِيمُ
क़ा-ल सौ-फ़ अस्तग़्फिरू लकुम् रब्बी, इन्नहू हुवल् ग़फूरुर्रहीम
याक़ूब ने कहा मै बहुत जल्द अपने परवरदिगार से तुम्हारी मग़फिरत की दुआ करुगाँ बेशक वह बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है।
فَلَمَّا دَخَلُوا۟ عَلَىٰ يُوسُفَ ءَاوَىٰٓ إِلَيْهِ أَبَوَيْهِ وَقَالَ ٱدْخُلُوا۟ مِصْرَ إِن شَآءَ ٱللَّهُ ءَامِنِينَ
फ़-लम्मा द-ख़लू अ़ला यूसु-फ़ आवा इलैहि अ-बवैहि व क़ालद्ख़ुलू मिस्-र इन्शा-अल्लाहु आमिनीन
(ग़रज़) जब फिर ये लोग (मय याकू़ब के) चले और यूसुफ शहर के बाहर लेने आए तो जब ये लोग यूसुफ के पास पहुँचे तो यूफ ने अपने माँ बाप को अपने पास जगह दी और (उनसे) कहा कि अब इनशा अल्लाह बड़े इत्मिनान से मिस्र में चलिए।
وَرَفَعَ أَبَوَيْهِ عَلَى ٱلْعَرْشِ وَخَرُّوا۟ لَهُۥ سُجَّدًۭا ۖ وَقَالَ يَـٰٓأَبَتِ هَـٰذَا تَأْوِيلُ رُءْيَـٰىَ مِن قَبْلُ قَدْ جَعَلَهَا رَبِّى حَقًّۭا ۖ وَقَدْ أَحْسَنَ بِىٓ إِذْ أَخْرَجَنِى مِنَ ٱلسِّجْنِ وَجَآءَ بِكُم مِّنَ ٱلْبَدْوِ مِنۢ بَعْدِ أَن نَّزَغَ ٱلشَّيْطَـٰنُ بَيْنِى وَبَيْنَ إِخْوَتِىٓ ۚ إِنَّ رَبِّى لَطِيفٌۭ لِّمَا يَشَآءُ ۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلْعَلِيمُ ٱلْحَكِيمُ
व र-फ़-अ अ-बवैहि अ़लल्-अर्शि व ख़र्रू लहू सुज्जदन्, व क़ा-ल या अ-बति हाज़ा तअ्वीलु रूअ्या-य मिन् क़ब्लु, क़द् ज-अ़-लहा रब्बी हक़्क़न्, व क़द् अह्स-न बी इज़् अख़्र-जनी मिनस्सिज्-नि व जा-अ बिकुम् मिनल्बद्-वि मिम्-बअ्दि अन् न-ज़ग़श्शैतानु बैनी व बै-न इख़्वती, इन्-न रब्बी लतीफुल्लिमा यशा-उ, इन्नहू हुवल् अ़लीमुल्-हकीम
(ग़रज़) पहुँचकर यूसुफ ने अपने माँ बाप को तख़्त पर बिठाया और सब के सब यूसुफ की ताज़ीम के वास्ते उनके सामने सजदे में गिर पड़े (उस वक़्त) यूसुफ ने कहा ऐ अब्बा ये ताबीर है मेरे उस पहले ख़्वाब की कि मेरे परवरदिगार ने उसे सच कर दिखाया बेशक उसने मेरे साथ एहसान किया जब उसने मुझे क़ैद ख़ाने से निकाला और बावजूद कि मुझ में और मेरे भाईयों में शैतान ने फसाद डाल दिया था उसके बाद भी आप लोगों को गाँव से (शहर में) ले आया (और मुझसे मिला दिया) बेशक मेरा परवरदिगार जो कुछ करता है उसकी तद्बीर खूब जानता है बेशक वह बड़ा वाकिफकार हकीम है।
۞ رَبِّ قَدْ ءَاتَيْتَنِى مِنَ ٱلْمُلْكِ وَعَلَّمْتَنِى مِن تَأْوِيلِ ٱلْأَحَادِيثِ ۚ فَاطِرَ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ أَنتَ وَلِىِّۦ فِى ٱلدُّنْيَا وَٱلْـَٔاخِرَةِ ۖ تَوَفَّنِى مُسْلِمًۭا وَأَلْحِقْنِى بِٱلصَّـٰلِحِينَ
रब्बि क़द् आतैतनी मिनल्मुल्कि व अ़ल्लम्तनी मिन् तअ्वीलिल्-अहादीसि, फ़ातिरस्समावाति वल्अर्ज़ि, अन्-त वलिय्यी फ़िद्दुन्या वल्आख़िरति, तवफ़्फ़नी मुस्लिमंव्-व अल्हिक़्नी बिस्सालिहीन
(उसके बाद यूसुफ ने दुआ की ऐ परवरदिगार तूने मुझे मुल्क भी अता फरमाया और मुझे ख्वाब की बातों की ताबीर भी सिखाई ऐ आसमान और ज़मीन के पैदा करने वाले तू ही मेरा मालिक सरपरस्त है दुनिया में भी और आखि़रत में भी तू मुझे (दुनिया से) मुसलमान उठाये और मुझे नेको कारों में शामिल फरमा।
ذَٰلِكَ مِنْ أَنۢبَآءِ ٱلْغَيْبِ نُوحِيهِ إِلَيْكَ ۖ وَمَا كُنتَ لَدَيْهِمْ إِذْ أَجْمَعُوٓا۟ أَمْرَهُمْ وَهُمْ يَمْكُرُونَ
ज़ालि-क मिन् अम्बाइल्ग़ैबि नूहीहि इलै-क, वमा कुन्-त लदैहिम् इज़् अज्मअू अम्रहुम् व हुम् यम्कुरून
(ऐ रसूल!) ये किस्सा ग़ैब की ख़बरों में से है जिसे हम तुम्हारे पास वही के ज़रिए भेजते हैं (और तुम्हें मालूम होता है वरना जिस वक़्त यूसुफ के भाई बाहम अपने काम का मशवरा कर रहे थे और (हलाक की) तदबीरे कर रहे थे।
وَمَآ أَكْثَرُ ٱلنَّاسِ وَلَوْ حَرَصْتَ بِمُؤْمِنِينَ
व मा अक्सरून्नासि व लौ हरस्-त बिमुअ्मिनीन
तुम उनके पास मौजूद न थे और कितने ही चाहो मगर बहुतेरे लोग इमान लाने वाले नहीं हैं।
وَمَا تَسْـَٔلُهُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ ۚ إِنْ هُوَ إِلَّا ذِكْرٌۭ لِّلْعَـٰلَمِينَ
व मा तस्अलुहुम् अ़लैहि मिन् अज्रिन्, इन् हु-व इल्ला ज़िक् रूल्-लिल आ़लमीन
हालांकि तुम उनसे (तबलीगे़ रिसालत का) कोई सिला नहीं माँगते और ये (क़ुरान) तो सारे जहाँन के वास्ते नसीहत (ही नसीहत) है।
وَكَأَيِّن مِّنْ ءَايَةٍۢ فِى ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ يَمُرُّونَ عَلَيْهَا وَهُمْ عَنْهَا مُعْرِضُونَ
व क-अय्यिम्-मिन् आयतिन् फ़िस्समावाति वल्अर्ज़ि यमुर्रू-न अ़लैहा व हुम् अन्हा मुअ्-रिज़ून
और आसमानों और ज़मीन में (ख़ुदा की क़ुदरत की) कितनी निशनियाँ हैं जिन पर ये लोग (दिन रात) ग़ुज़ारा करते हैं और उससे मुँह फेरे रहते हैं।
وَمَا يُؤْمِنُ أَكْثَرُهُم بِٱللَّهِ إِلَّا وَهُم مُّشْرِكُونَ
वमा युअ्मिनु अक्सरूहुम् बिल्लाहि इल्ला व हुम् मुश्रिकून
और अक्सर लोगों की ये हालत है कि वह ख़ुदा पर इमान तो नहीं लाते मगर शिर्क किए जाते हैं।
أَفَأَمِنُوٓا۟ أَن تَأْتِيَهُمْ غَـٰشِيَةٌۭ مِّنْ عَذَابِ ٱللَّهِ أَوْ تَأْتِيَهُمُ ٱلسَّاعَةُ بَغْتَةًۭ وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ
अ-फ़-अमिनू अन् तअ्ति-यहुम् गाशि-यतुम् मिन् अ़ज़ाबिल्लाहि औ तअ्ति-यहुमुस्साअ़तु ब़ग्त-तंव्-व हुम् ला यश्अुरून
तो क्या ये लोग इस बात से मुतमइन हो बैठे हैं कि उन पर ख़ुदा का अज़ाब आ पड़े जो उन पर छा जाए या उन पर अचानक क़यामत ही आ जाए और उनको कुछ ख़बर भी न हो।
قُلْ هَـٰذِهِۦ سَبِيلِىٓ أَدْعُوٓا۟ إِلَى ٱللَّهِ ۚ عَلَىٰ بَصِيرَةٍ أَنَا۠ وَمَنِ ٱتَّبَعَنِى ۖ وَسُبْحَـٰنَ ٱللَّهِ وَمَآ أَنَا۠ مِنَ ٱلْمُشْرِكِينَ
क़ुल हाजिही सबीली अद्अू इलल्लाहि, अ़ला बसीरतिन् अ-ना व मनित्त-ब अ़नी, व सुब्हानल्लाहि व मा अ-ना मिनल्-मुश्रिकीन
(ऐ रसूल!) उन से कह दो कि मेरा तरीका तो ये है कि मै (लोगों) को ख़ुदा की तरफ बुलाता हूँ मैं और मेरा पैरव (पीछे चलने वाले) (दोनों) मज़बूत दलील पर हैं और ख़ुदा (हर ऐब व नुक़स से) पाक व पाकीज़ा है और मै मुशरेकीन से नहीं हूँ।
وَمَآ أَرْسَلْنَا مِن قَبْلِكَ إِلَّا رِجَالًۭا نُّوحِىٓ إِلَيْهِم مِّنْ أَهْلِ ٱلْقُرَىٰٓ ۗ أَفَلَمْ يَسِيرُوا۟ فِى ٱلْأَرْضِ فَيَنظُرُوا۟ كَيْفَ كَانَ عَـٰقِبَةُ ٱلَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ ۗ وَلَدَارُ ٱلْـَٔاخِرَةِ خَيْرٌۭ لِّلَّذِينَ ٱتَّقَوْا۟ ۗ أَفَلَا تَعْقِلُونَ
व मा अर्सल्ना मिन् क़ब्लि-क इल्ला रिजालन् नूही इलैहिम् मिन् अह्-लिल्क़ुरा, अ फ़लम् यसीरू फ़िल्अर्ज़ि फ़-यन्ज़ुरू कै-फ़ का-न आ़कि-बतुल्लज़ी- न मिन् क़ब्लिहिम्, व लदारूल-आख़िरति ख़ैरूल्- लिल्लज़ीनत्तक़ौ, अ-फ़ला तअ्क़िलून
और (ऐ रसूल!) तुमसे पहले भी हम गाँव ही के रहने वाले कुछ मर्दों को (पैग़म्बर बनाकर) भेजा किए है कि हम उन पर वही नाजि़ल करते थे तो क्या ये लोग रुए ज़मीन पर चले फिरे नहीं कि ग़ौर करते कि जो लोग उनसे पहले हो गुज़रे हैं उनका अन्जाम क्या हुआ और जिन लोगों ने परहेज़गारी एख़्तेयार की उनके लिए आखि़रत का घर (दुनिया से) यक़ीनन कहीं ज्यादा बेहतर है क्या ये लोग नहीं समझते
حَتَّىٰٓ إِذَا ٱسْتَيْـَٔسَ ٱلرُّسُلُ وَظَنُّوٓا۟ أَنَّهُمْ قَدْ كُذِبُوا۟ جَآءَهُمْ نَصْرُنَا فَنُجِّىَ مَن نَّشَآءُ ۖ وَلَا يُرَدُّ بَأْسُنَا عَنِ ٱلْقَوْمِ ٱلْمُجْرِمِينَ
हत्ता इज़स्तै-असर्-रूसुलु व ज़न्नू अन्नहुम् क़द् कुज़िबू जा अहुम् नस्-रूना, फ़नुज्जि-य मन् नशा-उ, व ला युरद्दु बअ्सुना अनिल् क़ौमिल्-मुज्रिमीन
पहले के पैग़म्बरो ने तबलीग़े रिसालत यहाँ वक कि जब (क़ौम के इमान लाने से) पैग़म्बर मायूस हो गए और उन लोगों ने समझ लिया कि वह झुठलाए गए तो उनके पास हमारी (ख़ास) मदद आ पहुँची तो जिसे हमने चाहा नजात दी और हमारा अज़ाब गुनेहगार लोगों के सर से तो टाला नहीं जाता
لَقَدْ كَانَ فِى قَصَصِهِمْ عِبْرَةٌۭ لِّأُو۟لِى ٱلْأَلْبَـٰبِ ۗ مَا كَانَ حَدِيثًۭا يُفْتَرَىٰ وَلَـٰكِن تَصْدِيقَ ٱلَّذِى بَيْنَ يَدَيْهِ وَتَفْصِيلَ كُلِّ شَىْءٍۢ وَهُدًۭى وَرَحْمَةًۭ لِّقَوْمٍۢ يُؤْمِنُونَ
ल-क़द् का-न फ़ी क़-ससिहिम् अिब्रतुल्-लिउलिल्-अल्बाबि, मा का न हदीसंय्युफ्तरा व लाकिन् तस्दीक़ल्लज़ी बै-न यदैहि व तफ़्सी-ल कुल्लि शैइंव्-व हुदंव्-व रह़्म-तल् लिकौमिंय्युअ्मिनून
इसमें शक नहीं कि उन लोगों के किस्सों में अक़लमन्दों के वास्ते (अच्छी ख़ासी) इबरत (व नसीहत) है ये (क़ुरान) कोई ऐसी बात नहीं है जो (ख्वाहामा ख्वाह) गढ़ ली जाए बल्कि (जो आसमानी किताबें) इसके पहले से मौजूद हैं उनकी तसदीक़ है और हर चीज़ की तफसील और इमानदारों के वास्ते (अज़सरतापा) हिदायत व रहमत है।