Surah Hud In Hindi [11:1-11:123]

यह कुरान की 11वीं सूरह है जो मक्की सूरह है, यानी यह मक्का में उतरी थी।

यह सूरह 123 आयातों पर मुश्तमिल है और इसका नाम नबी हूद (अलैहिस्सलाम) के नाम पर रखा गया है जिनकी कहानी इस सूरह में बयान की गई है।

यह सूरह तौहीद (अल्लाह की एकता), रिसालत (नबुव्वत) और आखिरत (क़यामत और हश्र) के उसूलों पर ज़ोर देती है। इसमें मा़ज़ी क़ौमों को हिदायत की रसाइल पहुंचाने वाले अंबियाओं के इरसाल और उन क़ौमों के इनकार करने की कहानियां बयान की गई हैं।

इसी तरह यह सूरह मुश्रिकों को खौफ दिलाती है और उन्हें तौहीद की तरफ रहनुमाई करती है। यह पाक सूरह मोमिनों को साबित क़दमी का दरसआर भी देती है।

कुछ अहम मौज़ूआत जिन्हें इस सूरह में छुआ गया है:

  1. तौहीद और शिर्क से दूर रहना
  2. आखिरत पर ईमान लाना
  3. सदक़ात देना और ज़कात अदा करना
  4. अल्लाह के रसूल की इतआत करना
  5. सब्र और इस्तिक़ामत पर क़ायम रहना

सूरह हूद को हिंदी में पढ़ें

بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ

बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।

11:1

الٓر ۚ كِتَـٰبٌ أُحْكِمَتْ ءَايَـٰتُهُۥ ثُمَّ فُصِّلَتْ مِن لَّدُنْ حَكِيمٍ خَبِيرٍ

अलिफ्-लाम्-रा, किताबुन् उह्किमत् आयातुहू सुम्-म फुस्सिलत् मिल्लदुन् हकीमिन् ख़बीर
अलिफ़ लाम रा, ये (क़़ुरान) वह किताब है जिसकी आयते एक वाकिफ़कार हकीम की तरफ से (दलाएल से) खूब मुस्तहकिम (मज़बूत) कर दी गयीं।

11:2

أَلَّا تَعْبُدُوٓا۟ إِلَّا ٱللَّهَ ۚ إِنَّنِى لَكُم مِّنْهُ نَذِيرٌۭ وَبَشِيرٌۭ

अल-ला तअ्बुदू इल्लल्ला-ह, इन्ननी लकुम् मिन्हु नज़ीरूंव्-व बशीर
फिर तफ़सीलदार बयान कर दी गयी हैं ये कि अल्लाह के सिवा किसी की परसतिश न करो मै तो उसकी तरफ से तुम्हें (अज़ाब से) डराने वाला और (बहिश्त) ख़ुशख़बरी देने वाला (रसूल) हूँ।

11:3

وَأَنِ ٱسْتَغْفِرُوا۟ رَبَّكُمْ ثُمَّ تُوبُوٓا۟ إِلَيْهِ يُمَتِّعْكُم مَّتَـٰعًا حَسَنًا إِلَىٰٓ أَجَلٍۢ مُّسَمًّۭى وَيُؤْتِ كُلَّ ذِى فَضْلٍۢ فَضْلَهُۥ ۖ وَإِن تَوَلَّوْا۟ فَإِنِّىٓ أَخَافُ عَلَيْكُمْ عَذَابَ يَوْمٍۢ كَبِيرٍ

व अनिस्तग़्फिरू रब्बकुम् सुम्-म तूबू इलैहि युमत्तिअ्कुम् मताअ़न् ह-सनन् इला अ-जलिम् मुसम्मंव् व युअ्ति कुल-ल ज़ी फ़ज़्लिन् फ़ज़्लहू, व इन् तवल्लौ फ़-इन्नी अख़ाफु अ़लैकुम् अ़ज़ा-ब यौमिन् कबीर
और ये भी कि अपने परवरदिगार से मग़फिरत की दुआ माँगों फिर उसकी बारगाह में (गुनाहों से) तौबा करो वही तुम्हें एक मुकर्रर मुद्दत तक अच्छे नुत्फ के फायदे उठाने देगा और वही हर साहबे बुज़ुर्ग को उसकी बुज़ुर्गी (की दाद) अता फरमाएगा और अगर तुमने (उसके हुक्म से) मुँह मोड़ा तो मुझे तुम्हारे बारे में एक बड़े (ख़ौफनाक) दिन के अज़ाब का डर है।

11:4

إِلَى ٱللَّهِ مَرْجِعُكُمْ ۖ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍۢ قَدِيرٌ

इलल्लाहि मर्जिअुकुम्, व हु-व अला कुल्लि शैइन् क़दीर
(याद रखो) तुम सब को (आखि़रकार) अल्लाह ही की तरफ लौटना है और वह हर चीज़ पर (अच्छी तरह) क़ादिर है।

11:5

أَلَآ إِنَّهُمْ يَثْنُونَ صُدُورَهُمْ لِيَسْتَخْفُوا۟ مِنْهُ ۚ أَلَا حِينَ يَسْتَغْشُونَ ثِيَابَهُمْ يَعْلَمُ مَا يُسِرُّونَ وَمَا يُعْلِنُونَ ۚ إِنَّهُۥ عَلِيمٌۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ

अला इन्नहुम् यस्-नून सुदू-रहुम् लियस्तख़्फू मिन्हु, अला ही-न यस्त़ग़्शू-न सियाबहुम्, यअ्लमु मा युसिर्रू-न व मा युअ्लिनू-न, इन्नहू अ़लीमुम्-बिज़ातिस्सुदूर
(ऐ रसूल) देखो ये कुफ्फ़ार (तुम्हारी अदावत में) अपने सीनों को (गोया) दोहरा किए डालते हैं ताकि अल्लाह से (अपनी बातों को) छिपाए रहें (मगर) देखो जब ये लोग अपने कपड़े ख़ूब लपेटते हैं (तब भी तो) अल्लाह (उनकी बातों को) जानता है जो छिपाकर करते हैं और खुल्लम खुल्ला करते हैं इसमें शक नहीं कि वह सीनों के भेद तक को खूब जानता है। (पारा 11 समाप्त)

11:6

۞ وَمَا مِن دَآبَّةٍۢ فِى ٱلْأَرْضِ إِلَّا عَلَى ٱللَّهِ رِزْقُهَا وَيَعْلَمُ مُسْتَقَرَّهَا وَمُسْتَوْدَعَهَا ۚ كُلٌّۭ فِى كِتَـٰبٍۢ مُّبِينٍۢ

व मा मिन् दाब्बतिन् फ़िल्अर्ज़ि इल्ला अ़लल्लाहि रिज़्क़ुहा व यअ्लमु मुस्तक़र्रहा व मुस्तौद-अ़हा, कुल्लुन् फ़ी किताबिम् मुबीन
और ज़मीन पर चलने वालों में कोई ऐसा नहीं जिसकी रोज़ी अल्लाह के जि़म्मे न हो और अल्लाह उनके ठिकाने और (मरने के बाद) उनके सौपे जाने की जगह (क़ब्र) को भी जानता है सब कुछ रौशन किताब (लौहे महफूज़) में मौजूद है।

11:7

وَهُوَ ٱلَّذِى خَلَقَ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضَ فِى سِتَّةِ أَيَّامٍۢ وَكَانَ عَرْشُهُۥ عَلَى ٱلْمَآءِ لِيَبْلُوَكُمْ أَيُّكُمْ أَحْسَنُ عَمَلًۭا ۗ وَلَئِن قُلْتَ إِنَّكُم مَّبْعُوثُونَ مِنۢ بَعْدِ ٱلْمَوْتِ لَيَقُولَنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓا۟ إِنْ هَـٰذَآ إِلَّا سِحْرٌۭ مُّبِينٌۭ

व हुवल्लज़ी ख़-लक़स्-समावाति वल्अर्-ज़ फ़ी सित्तति अय्यामिंव्-व का-न अरशुहू अलल्मा-इ लि-यब्लुवकुम् अय्युकुम् अह्सनु अ-मलन्, व ल-इन् क़ुल्-त इन्नकुम् मब्अूसू-न मिम्-बअ्दिल्-मौति ल-यक़ूलन्नल्लज़ी-न क-फरू इन् हाज़ा इल्ला सिहरूम्-मुबीन
और वह तो वही (क़ादिरे मुतलक़) है जिसने आसमानों और ज़मीन को 6 दिन में पैदा किया और (उस वक़्त) उसका अर्श (फलक नहुम) पानी पर था (उसने आसमान व ज़मीन) इस ग़रज़ से बनाया ताकि तुम लोगों को आज़माए कि तुममे ज़्यादा अच्छी कार गुज़ारी वाला कौन है और (ऐ रसूल) अगर तुम (उनसे) कहोगे कि मरने के बाद तुम सबके सब दोबारा (क़ब्रों से) उठाए जाओगे तो काफि़र लोग ज़रुर कह बैठेगें कि ये तो बस खुला हुआ जादू है।

11:8

وَلَئِنْ أَخَّرْنَا عَنْهُمُ ٱلْعَذَابَ إِلَىٰٓ أُمَّةٍۢ مَّعْدُودَةٍۢ لَّيَقُولُنَّ مَا يَحْبِسُهُۥٓ ۗ أَلَا يَوْمَ يَأْتِيهِمْ لَيْسَ مَصْرُوفًا عَنْهُمْ وَحَاقَ بِهِم مَّا كَانُوا۟ بِهِۦ يَسْتَهْزِءُونَ

व ल-इन् अख़्ख़रना अन्हुमुल्-अ़ज़ा-ब इला उम्मतिम् मअ्दूदतिल्-ल यक़ूलुन्-न मा यह़्बिसुहू, अला यौ-म यअ्तीहिम् लै-स मस्रूफन् अन्हुम् व हा-क़ बिहिम् मा कानू बिही यस्तह्ज़िऊन
और अगर हम गिनती के चन्द रोज़ो तक उन पर अज़ाब करने में देर भी करें तो ये लोग (अपनी शरारत से) बेताम्मुल ज़रुर कहने लगेगें कि (हाए) अज़ाब को कौन सी चीज़ रोक रही है सुन रखो जिस दिन इन पर अज़ाब आ पडे़ तो (फिर) उनके टाले न टलेगा और जिस (अज़ाब) की ये लोग हँसी उड़ाया करते थे वह उनको हर तरह से घेर लेगा।

11:9

وَلَئِنْ أَذَقْنَا ٱلْإِنسَـٰنَ مِنَّا رَحْمَةًۭ ثُمَّ نَزَعْنَـٰهَا مِنْهُ إِنَّهُۥ لَيَـُٔوسٌۭ كَفُورٌۭ

व ल-इन् अज़क़्नल इन्सा-न मिन्ना रह्-मतन् सुम्-म न-ज़अ्नाहा मिन्हु, इन्नहू ल-यऊसुन् कफूर
और अगर हम इन्सान को अपनी रहमत का मज़ा चखायें फिर उसको हम उससे छीन लें तो (उस वक़्त) यक़ीनन बड़ा बेआस और नाशुक्रा हो जाता है।

11:10

وَلَئِنْ أَذَقْنَـٰهُ نَعْمَآءَ بَعْدَ ضَرَّآءَ مَسَّتْهُ لَيَقُولَنَّ ذَهَبَ ٱلسَّيِّـَٔاتُ عَنِّىٓ ۚ إِنَّهُۥ لَفَرِحٌۭ فَخُورٌ ١٠

व ल-इन् अज़क़्नाहु नअ्मा-अ बअ्द ज़र्रा-अ मस्सत्हु ल-यक़ूलन्-न ज़-हबस्सय्यिआतु अ़न्नी इन्नहू ल-फ़रिहुन् फ़खूर
(और हमारी शिकायत करने लगता है) और अगर हम तकलीफ के बाद जो उसे पहुँचती थी राहत व आराम का जाएक़ा चखाए तो ज़रुर कहने लगता है कि अब तो सब सख़्तियाँ मुझसे दफा हो गई इसमें शक नहीं कि वह बड़ा (जल्दी खुश होने शेख़ी बाज़ है।

11:11

إِلَّا ٱلَّذِينَ صَبَرُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ أُو۟لَـٰٓئِكَ لَهُم مَّغْفِرَةٌۭ وَأَجْرٌۭ كَبِيرٌۭ

इल्लल्लज़ी-न स-बरू व अमिलुस्सालिहाति, उलाइ-क लहुम् मग़्फि-रतुंव्-व अज्-रू
न् कबीर
मगर जिन लोगों ने सब्र किया और अच्छे (अच्छे) काम किए (वह ऐसे नहीं) ये वह लोग हैं जिनके वास्ते (अल्लाह की) बखशिश और बहुत बड़ी (खरी) मज़दूरी है।

11:12

فَلَعَلَّكَ تَارِكٌۢ بَعْضَ مَا يُوحَىٰٓ إِلَيْكَ وَضَآئِقٌۢ بِهِۦ صَدْرُكَ أَن يَقُولُوا۟ لَوْلَآ أُنزِلَ عَلَيْهِ كَنزٌ أَوْ جَآءَ مَعَهُۥ مَلَكٌ ۚ إِنَّمَآ أَنتَ نَذِيرٌۭ ۚ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍۢ وَكِيلٌ

फ़-लअल्ल-क तारिकुम् बअ्-ज़ मा यूहा इलै-क व ज़ाइकुम बिही सद्रू-क अंय्यक़ूलू लौ ला उन्ज़ि-ल अलैहि कन्जुन औ जा-अ म-अ़हू म लकुन्, इन्नमा अन्-त नज़ीरून्, वल्लाहु अला कुल्लि शैइंव्-वकील
तो जो चीज़ तुम्हारे पास ‘वही’ के ज़रिए से भेजी है उनमें से बाज़ को (सुनाने के वक़्त) शायद तुम फक़त इस ख़्याल से छोड़ देने वाले हो और तुम तंग दिल हो कि मुबादा ये लोग कह बैंठें कि उन पर खज़ाना क्यों नहीं नाजि़ल किया गया या (उनके तसदीक के लिए) उनके साथ कोई फरिशता क्यों न आया तो तुम सिर्फ (अज़ाब से) डराने वाले हो।

11:13

أَمْ يَقُولُونَ افْتَرَاهُ ۖ قُلْ فَأْتُوا۟ بِعَشْرِ سُوَرٍۢ مِّثْلِهِۦ مُفْتَرَيَـٰتٍۢ وَٱدْعُوا۟ مَنِ ٱسْتَطَعْتُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ إِن كُنتُمْ صَـٰدِقِينَ

अम् यक़ूलूनफ़्तराहु, क़ुल् फ़अतू बिअ़शरि सु-वरिम्-मिस्लिही मुफ़्त रयातिंव्वद्अू मनिस्त-तअ्तुम् मिन् दूनिल्लाहि इन् कुन्तुम् सादिक़ीन
तुम्हें उनका ख़्याल न करना चाहिए और अल्लाह हर चीज़ का जि़म्मेदार है क्या ये लोग कहते हैं कि उस शख़्स (तुम) ने इस क़ुरान) को अपनी तरफ से गढ़ लिया है तो तुम (उनसे साफ साफ) कह दो कि अगर तुम (अपने दावे में) सच्चे हो तो (ज़्यादा नहीं) ऐसे दस सूरे अपनी तरफ से गढ़ के ले आओं।

11:14

فَإِلَّمْ يَسْتَجِيبُوا۟ لَكُمْ فَٱعْلَمُوٓا۟ أَنَّمَآ أُنزِلَ بِعِلْمِ ٱللَّهِ وَأَن لَّآ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ ۖ فَهَلْ أَنتُم مُّسْلِمُونَ

फ-इल्लम् यस्तजीबू लकुम् फअ्लमू अन्नमा उन्ज़ि-ल बिअिल्मिल्लाहि व अल्ला इला-ह इल्ला हु-व, फ़-हल् अन्तुम् मुस्लिमून
और अल्लाह के सिवा जिस जिस के तुम्हे बुलाते बन पड़े मदद के वास्ते बुला लो उस पर अगर वह तुम्हारी न सुने तो समझ ले कि (ये क़़ुरान) सिर्फ अल्लाह के इल्म से नाजि़ल किया गया है और ये कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं तो क्या तुम अब भी इस्लाम लाओगे (या नहीं)।

11:15

مَن كَانَ يُرِيدُ ٱلْحَيَوٰةَ ٱلدُّنْيَا وَزِينَتَهَا نُوَفِّ إِلَيْهِمْ أَعْمَـٰلَهُمْ فِيهَا وَهُمْ فِيهَا لَا يُبْخَسُونَ

मन् का-न युरीदुल् हयातद्दुन्या व जीन-तहा नुवफ्फ़ि इलैहिम् अअ्मालहुम् फ़ीहा व हुम् फ़ीहा ला युब्ख़सून
नेकी करने वालों में से जो शख़्स दुनिया की जि़न्दगी और उसके रिज़क़ का तालिब हो तो हम उन्हें उनकी कारगुज़ारियों का बदला दुनिया ही में पूरा पूरा भर देते हैं और ये लोग दुनिया में घाटे में नहीं रहेगें।

11:16

أُو۟لَـٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ لَيْسَ لَهُمْ فِى ٱلْـَٔاخِرَةِ إِلَّا ٱلنَّارُ ۖ وَحَبِطَ مَا صَنَعُوا۟ فِيهَا وَبَـٰطِلٌۭ مَّا كَانُوا۟ يَعْمَلُونَ

उलाइ-कल्लज़ी-न लै-स लहुम् फिल्-आख़िरति इल्लन्नारू, व हबि-त मा स-नअू फ़ीहा व बातिलुम्-मा कानू यअ्मलून
मगर (हाँ) ये वह लोग हैं जिनके लिए आखि़रत में (जहन्नुम की) आग के सिवा कुछ नहीं और जो कुछ दुनिया में उन लोगों ने किया धरा था सब अकारत (बर्बाद) हो गया और जो कुछ ये लोग करते थे सब मलियामेट हो गया।

11:17

أَفَمَن كَانَ عَلَىٰ بَيِّنَةٍۢ مِّن رَّبِّهِۦ وَيَتْلُوهُ شَاهِدٌۭ مِّنْهُ وَمِن قَبْلِهِۦ كِتَـٰبُ مُوسَىٰٓ إِمَامًۭا وَرَحْمَةً ۚ أُو۟لَـٰٓئِكَ يُؤْمِنُونَ بِهِۦ ۚ وَمَن يَكْفُرْ بِهِۦ مِنَ ٱلْأَحْزَابِ فَٱلنَّارُ مَوْعِدُهُۥ ۚ فَلَا تَكُ فِى مِرْيَةٍۢ مِّنْهُ ۚ إِنَّهُ ٱلْحَقُّ مِن رَّبِّكَ وَلَـٰكِنَّ أَكْثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يُؤْمِنُونَ

अ-फ-मन् का-न अला बय्यिनतिम् मिर्रब्बिही व यत्लूहु शाहिदुम् मिन्हु व मिन् क़ब्लिही किताबु मूसा इमामंव्- व रह्-मतन्, उलाइ-क युअ्मिनू-न बिही, व मंय्यक्फुर बिही मिनल् अह़्ज़ाबि फन्नारू मौअिदुहू, फला तकु फी मिर यतिम् मिन्हु, इन्नहुल-हक़्क़ु मिर्रब्बि-क व लाकिन्-न अक्सरन्नासि ला युअ्मिनून
तो क्या जो शख़्स अपने परवरदिगार की तरफ से रौशन दलील पर हो और उसके पीछे ही पीछे उनका एक गवाह हो और उसके क़बल मूसा की किताब (तौरैत) जो (लोगों के लिए) पेशवा और रहमत थी (उसकी तसदीक़ करती हो वह बेहतर है या कोई दूसरा) यही लोग सच्चे इमान लाने वाले और तमाम फिरक़ों में से जो शख़्स भी उसका इन्कार करे तो उसका ठिकाना बस आतिश (जहन्नुम) है तो फिर तुम कहीं उसकी तरफ से शक में न पड़े रहना, बेशक ये क़़ुरान तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से बरहक़ है मगर बहुतेरे लोग इमान नही लाते।

11:18

وَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّنِ ٱفْتَرَىٰ عَلَى ٱللَّهِ كَذِبًا ۚ أُو۟لَـٰٓئِكَ يُعْرَضُونَ عَلَىٰ رَبِّهِمْ وَيَقُولُ ٱلْأَشْهَـٰدُ هَـٰٓؤُلَآءِ ٱلَّذِينَ كَذَبُوا۟ عَلَىٰ رَبِّهِمْ ۚ أَلَا لَعْنَةُ ٱللَّهِ عَلَى ٱلظَّـٰلِمِينَ

व मन् अज़्लमु मिम्-मनिफ़्तरा अ़लल्लाहि कज़िबन्, उलाइ-क युअ्-रज़ू-न अ़ला रब्बिहिम् व यक़ूलुल्-अश्हादु हा-उलाइल्लज़ी न क-ज़बू अ़ला रब्बिहिम्, अला लअ्नतुल्लाहि अ़लज़्ज़ालिमीन
और ये जो शख़्स अल्लाह पर झूठ मूठ बोहतान बांधे उससे ज़्यादा ज़ालिम कौन होगा ऐसे लोग अपने परवरदिगार के हुज़ूर में पेश किए जाएगें और गवाह इज़हार करेगें कि यही वह लोग हैं जिन्होंने अपने परवरदिगार पर झूट (बोहतान)बांधा था सुन रखो कि ज़ालिमों पर अल्लाह की फिटकार है।

11:19

ٱلَّذِينَ يَصُدُّونَ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ وَيَبْغُونَهَا عِوَجًۭا وَهُم بِٱلْـَٔاخِرَةِ هُمْ كَـٰفِرُونَ

अल्लज़ी-न यसुद्दू-न अन् सबीलिल्लाहि व यब्ग़ूनहा अि-वजन्, व हुम् बिल्आख़िरति हुम् काफ़िरून
जो अल्लाह के रास्ते से लोगों को रोकते हैं और उसमें कज़ी (टेढ़ा पन) निकालना चाहते हैं और यही लोग आखि़रत के भी मुन्किर है।

11:20

أُو۟لَـٰٓئِكَ لَمْ يَكُونُوا۟ مُعْجِزِينَ فِى ٱلْأَرْضِ وَمَا كَانَ لَهُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ مِنْ أَوْلِيَآءَ ۘ يُضَـٰعَفُ لَهُمُ ٱلْعَذَابُ ۚ مَا كَانُوا۟ يَسْتَطِيعُونَ ٱلسَّمْعَ وَمَا كَانُوا۟ يُبْصِرُونَ

उलाइ-क लम् यकूनू मुअ्जिज़ी-न फ़िल्अर्ज़ि व मा का-न लहुम् मिन् दूनिल्लाहि मिन् औलिया-अ• युज़ा अ़फु लहुमुल अ़ज़ाबु, मा कानू यस्ततीअूनस्सम्-अ वमा कानू युब्सिरून
ये लोग रुए ज़मीन में न अल्लाह को हरा सकते है और न अल्लाह के सिवा उनका कोई सरपरस्त होगा उनका अज़ाब दूना कर दिया जाएगा ये लोग (हसद के मारे) न तो (हक़ बात) सुन सकते थे न देख सकते थे।

11:21

أُو۟لَـٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ خَسِرُوٓا۟ أَنفُسَهُمْ وَضَلَّ عَنْهُم مَّا كَانُوا۟ يَفْتَرُونَ

उलाइ-कल्लज़ी-न ख़सिरू अन्फु-सहुम् व ज़ल्-ल अन्हुम् मा कानू यफ़्तरून
ये वह लोग हैं जिन्होंने कुछ अपना ही घाटा किया और जो इफ़्तेरा परदाजि़याँ (झूठी बातें) ये लोग करते थे (क़यामत में सब) उन्हें छोड़ के चल होगी।

11:22

لَا جَرَمَ أَنَّهُمْ فِى ٱلْـَٔاخِرَةِ هُمُ ٱلْأَخْسَرُونَ

ला ज-र-म अन्नहुम् फिल-आख़िरति हुमुल्-अख़्सरून
इसमें शक नहीं कि यही लोग आखि़रत में बड़े घाटा उठाने वाले होगें।

11:23

إِنَّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ وَأَخْبَتُوٓا۟ إِلَىٰ رَبِّهِمْ أُو۟لَـٰٓئِكَ أَصْحَـٰبُ ٱلْجَنَّةِ ۖ هُمْ فِيهَا خَـٰلِدُونَ

इन्नल्लज़ी-न आमनू व अ़मिलुस्सालिहाति व अख़्बतू इला रब्बिहिम्, उलाइ-क अस्हाबुल्-जन्नति, हुम् फ़ीहा ख़ालिदून
बेशक जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए और अपने परवरदिगार के सामने आजज़ी से झुके यही लोग जन्नती हैं कि ये बेहिश्त में हमेशा रहेगें।

11:24

۞ مَثَلُ ٱلْفَرِيقَيْنِ كَٱلْأَعْمَىٰ وَٱلْأَصَمِّ وَٱلْبَصِيرِ وَٱلسَّمِيعِ ۚ هَلْ يَسْتَوِيَانِ مَثَلًا ۚ أَفَلَا تَذَكَّرُونَ

म-सलुल्-फ़रीक़ैनि कल् अअ्मा वल्-असम्मि वल्बसीरि वस्समीअि, हल् यस्तवियानि म-सलन्, अ-फ़ला तज़क्करून
(काफिर,मुसलमान) दोनों फरीक़ की मसल अन्धे और बहरे और देखने वाले और सुनने वाले की सी है क्या ये दोनो मसल में बराबर हो सकते हैं तो क्या तुम लोग ग़ौर नहीं करते और हमने नूह को ज़रुर उन की क़ौम के पास भेजा।

11:25

وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا نُوحًا إِلَىٰ قَوْمِهِۦٓ إِنِّى لَكُمْ نَذِيرٌۭ مُّبِينٌ

व ल-क़द् अरसल्ना नूहन् इला क़ौमिही, इन्नी लकुम् नज़ीरूम् मुबीन
(और उन्होने अपनी क़ौम से कहा कि) मैं तो तुम्हारा (अज़ाबे अल्लाह से) सरीही धमकाने वाला हूँ।

11:26

أَن لَّا تَعْبُدُوٓا۟ إِلَّا ٱللَّهَ ۖ إِنِّىٓ أَخَافُ عَلَيْكُمْ عَذَابَ يَوْمٍ أَلِيمٍۢ

अल्ला तअ्बुदू इल्लल्ला-ह, इन्नी अख़ाफु अ़लैकुम् अ़ज़ा-ब यौमिन् अलीम
(और) ये (समझता हूँ) कि तुम अल्लाह के सिवा किसी की परसतिश न करो मैं तुम पर एक दर्दनाक दिन (क़यामत) के अज़ाब से डराता हूँ।

11:27

فَقَالَ ٱلْمَلَأُ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ مِن قَوْمِهِۦ مَا نَرَىٰكَ إِلَّا بَشَرًۭا مِّثْلَنَا وَمَا نَرَىٰكَ ٱتَّبَعَكَ إِلَّا ٱلَّذِينَ هُمْ أَرَاذِلُنَا بَادِىَ ٱلرَّأْىِ وَمَا نَرَىٰ لَكُمْ عَلَيْنَا مِن فَضْلٍۭ بَلْ نَظُنُّكُمْ كَـٰذِبِينَ

फ़क़ालल् म-लउल्लज़ी-न क-फरू मिन् क़ौमिही मा नरा-क इल्ला ब-शरम् मिस्-लना वमा नराकत्त-ब-अ-क इल्लल्लज़ी-न हुम् अराज़िलुना बादियर्-रअ्यि, व मा नरा लकुम् अ़लैना मिन फ़ज्लिम-बल् नज़ुन्नुकुम् काज़िबीन
तो उनके सरदार जो काफि़र थे कहने लगे कि हम तो तुम्हें अपना ही सा एक आदमी समझते हैं और हम तो देखते हैं कि तुम्हारे पैरोकार हुए भी हैं तो बस सिर्फ हमारे चन्द रज़ील (नीच) लोग (और वह भी बे सोचे समझे सरसरी नज़र में) और हम तो अपने ऊपर तुम लोगों की कोई फज़ीलत नहीं देखते बल्कि तुम को झूठा समझते हैं।

11:28

قَالَ يَـٰقَوْمِ أَرَءَيْتُمْ إِن كُنتُ عَلَىٰ بَيِّنَةٍۢ مِّن رَّبِّى وَءَاتَىٰنِى رَحْمَةًۭ مِّنْ عِندِهِۦ فَعُمِّيَتْ عَلَيْكُمْ أَنُلْزِمُكُمُوهَا وَأَنتُمْ لَهَا كَـٰرِهُونَ

क़ा-ल या क़ौमि अ-रऐतुम् इन् कुन्तु अला बय्यिनतिम्-मिर्रब्बी व आतानी रह्-म-तिन् अिन्दिही फ़-अुम्मियत् अलैकुम, अनुल्ज़िमुकुमूहा व अन्तुम् लहा कारिहून
(नूह ने) कहा ऐ मेरी क़ौम क्या तुमने ये समझा है कि अगर मैं अपने परवरदिगार की तरफ से एक रौशन दलील पर हूँ और उसने अपनी सरकार से रहमत (नुबूवत) अता फरमाई और वह तुम्हें सुझाई नहीं देती तो क्या मैं उसको (ज़बरदस्ती) तुम्हारे गले मंढ़ सकता हूँ।

11:29

وَيَـٰقَوْمِ لَآ أَسْـَٔلُكُمْ عَلَيْهِ مَالًا ۖ إِنْ أَجْرِىَ إِلَّا عَلَى ٱللَّهِ ۚ وَمَآ أَنَا۠ بِطَارِدِ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ ۚ إِنَّهُم مُّلَـٰقُوا۟ رَبِّهِمْ وَلَـٰكِنِّىٓ أَرَىٰكُمْ قَوْمًۭا تَجْهَلُونَ

व या क़ौमि ला अस् अलुकुम् अ़लैहि मालन्, इन् अज्रि-य इल्ला अ़लल्लाहि व मा अ-ना बितारिदिल्लज़ी-न आमनू, इन्नहुम् मुलाक़ू रब्बिहिम् व लाकिन्नी अराकुम् क़ौमन् तज्हलून
और तुम हो कि उसको नापसन्द किए जाते हो और ऐ मेरी क़ौम मैं तो तुमसे इसके सिले में कुछ माल का तालिब नहीं मेरी मज़दूरी तो सिर्फ अल्लाह के जि़म्मे है और मै तो तुम्हारे कहने से उन लोगों को जो इमान ला चुके हैं निकाल नहीं सकता (क्योंकि) ये लोग भी ज़रुर अपने परवरदिगार के हुज़ूर में हाजि़र होगें मगर मै तो देखता हूँ कि कुछ तुम ही लोग (नाहक़) जिहालत करते हो।

11:30

وَيَـٰقَوْمِ مَن يَنصُرُنِى مِنَ ٱللَّهِ إِن طَرَدتُّهُمْ ۚ أَفَلَا تَذَكَّرُونَ

व या क़ौमि मंय्यन्सुरूनी मिनल्लाहि इन् तरत्तुहुम्, अ-फला तज़क्करून
और मेरी क़ौम अगर मै इन (बेचारे ग़रीब) (ईमानदारों) को निकाल दूँ तो अल्लाह (के अज़ाब) से (बचाने में) मेरी मदद कौन करेगा तो क्या तुम इतना भी ग़ौर नहीं करते।

11:31

وَلَآ أَقُولُ لَكُمْ عِندِى خَزَآئِنُ ٱللَّهِ وَلَآ أَعْلَمُ ٱلْغَيْبَ وَلَآ أَقُولُ إِنِّى مَلَكٌۭ وَلَآ أَقُولُ لِلَّذِينَ تَزْدَرِىٓ أَعْيُنُكُمْ لَن يُؤْتِيَهُمُ ٱللَّهُ خَيْرًا ۖ ٱللَّهُ أَعْلَمُ بِمَا فِىٓ أَنفُسِهِمْ ۖ إِنِّىٓ إِذًۭا لَّمِنَ ٱلظَّـٰلِمِينَ

व ला अक़ूलु लकुम् अिन्दी ख़ज़ाइनुल्लाहि व ला अअ्लमुल-ग़ै-ब वला अक़ूलु इन्नी म-लकुंव्-वला अक़ूलु लिल्लज़ी-न तज़्दरी अअ्युनुकुम् लंय्युअ्ति-यहुमुल्लाहु खैरन्, अल्लाहु अअ्लमु बिमा फी अन्फुसिहिम्, इन्नी इज़ल्-लमिनज़्ज़ालिमीन
और मै तो तुमसे ये नहीं कहता कि मेरे पास खुदाई ख़ज़ाने हैं और न (ये कहता हूँ कि) मै ग़ैब दां हूँ (गै़ब का जानने वाला) और ये कहता हूँ कि मै फरिश्ता हूँ और जो लोग तुम्हारी नज़रों में ज़लील हैं उन्हें मैं ये नहीं कहता कि अल्लाह उनके साथ हरगिज़ भलाई नहीं करेगा उन लोगों के दिलों की बात अल्लाह ही खूब जानता है और अगर मै ऐसा कहूँ तो मै भी यक़ीनन ज़ालिम हूँ।

11:32

قَالُوا۟ يَـٰنُوحُ قَدْ جَـٰدَلْتَنَا فَأَكْثَرْتَ جِدَٰلَنَا فَأْتِنَا بِمَا تَعِدُنَآ إِن كُنتَ مِنَ ٱلصَّـٰدِقِينَ

क़ालू या नूहु क़द् जादल्तना फ़-अक्सर् त जिदालना फ़अतिना बिमा तअिदुना इन् कुन् त मिनस्सादिक़ीन
वह लोग कहने लगे ऐ नूह तुम हम से यक़ीनन झगड़े और बहुत झगड़े फिर तुम सच्चे हो तो जिस (अज़ाब) की तुम हमें धमकी देते थे हम पर ला चुको।

11:33

قَالَ إِنَّمَا يَأْتِيكُم بِهِ ٱللَّهُ إِن شَآءَ وَمَآ أَنتُم بِمُعْجِزِينَ

क़ा-ल इन्नमा यअ्तीकुम् बिहिल्लाहु इन् शा-अ व मा अन्तुम् बिमुअ्जिज़ीन
नूह ने कहा अगर चाहेगा तो बस अल्लाह ही तुम पर अज़ाब लाएगा और तुम लोग किसी तरह उसे हरा नहीं सकते और अगर मै चाहूँ तो तुम्हारी (कितनी ही) ख़ैर ख़्वाही (भलाई) करुँ।

11:34

وَلَا يَنفَعُكُمْ نُصْحِىٓ إِنْ أَرَدتُّ أَنْ أَنصَحَ لَكُمْ إِن كَانَ ٱللَّهُ يُرِيدُ أَن يُغْوِيَكُمْ ۚ هُوَ رَبُّكُمْ وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ

व ला यन्फ़अुकुम् नुस्ही इन् अरत्तु अन् अन्स-ह लकुम् इन् कानल्लाहु युरीदु अंय्युग़्वि-यकुम, हु-व रब्बुकुम्, व इलैहि तुर्जअून
अगर अल्लाह को तुम्हारा बहकाना मंज़ूर है तो मेरी ख़ैर ख़्वाही कुछ भी तुम्हारे काम नहीं आ सकती वही तुम्हारा परवरदिगार है और उसी की तरफ तुम को लौट जाना है।

11:35

أَمْ يَقُولُونَ ٱفْتَرَىٰهُ ۖ قُلْ إِنِ ٱفْتَرَيْتُهُۥ فَعَلَىَّ إِجْرَامِى وَأَنَا۠ بَرِىٓءٌۭ مِّمَّا تُجْرِمُونَ

अम् यक़ूलूनफ्तराहु, क़ुल इनिफ्तरैतुहू फ़-अलय्-य इजरामी व अ-ना बरीउम्-मिम्मा तुज्रिमून
(ऐ रसूल) क्या (कुफ़्फ़ारे मक्का भी) कहते हैं कि क़ुरान को उस (तुम) ने गढ़ लिया है तुम कह दो कि अगर मैने उसको गढ़ा है तो मेरे गुनाह का वबाल मुझ पर होगा और तुम लोग जो (गुनाह करके) मुजरिम होते हो उससे मै बरीउल जि़म्मा (अलग) हूँ।

11:36

وَأُوحِىَ إِلَىٰ نُوحٍ أَنَّهُۥ لَن يُؤْمِنَ مِن قَوْمِكَ إِلَّا مَن قَدْ ءَامَنَ فَلَا تَبْتَئِسْ بِمَا كَانُوا۟ يَفْعَلُونَ

व ऊहि-य इला नूहिन् अन्नहू लंय्युअ्मि-न मिन् क़ौमि-क इल्ला मन् क़द् आम-न फ़ला तब्तइस् बिमा कानू यफअ़लून
और नूह के पास ये ‘वही’ भेज दी गई कि जो ईमान ला चुका उनके सिवा अब कोई शख़्स तुम्हारी क़ौम से हरगिज़ ईमान न लाएगा तो तुम ख्वाहमा ख़्वाह उनकी कारस्तानियों का (कुछ) ग़म न खाओ।

11:37

وَٱصْنَعِ ٱلْفُلْكَ بِأَعْيُنِنَا وَوَحْيِنَا وَلَا تُخَـٰطِبْنِى فِى ٱلَّذِينَ ظَلَمُوٓا۟ ۚ إِنَّهُم مُّغْرَقُونَ

वस्-नअिल-फुल्-क बिअअ्युनिना व वह़्यिना व ला तुख़ातिब्-नि फ़िल्लज़ी-न ज़-लमू, इन्नहुम् मुग्रक़ून
और (बिस्मिल्लाह करके) हमारे रुबरु और हमारे हुक्म से कशती बना डालो और जिन लोगों ने ज़ुल्म किया है उनके बारे में मुझसे सिफारिश न करना क्योंकि ये लोग ज़रुर डुबा दिए जाएँगें।

11:38

وَيَصْنَعُ ٱلْفُلْكَ وَكُلَّمَا مَرَّ عَلَيْهِ مَلَأٌۭ مِّن قَوْمِهِۦ سَخِرُوا۟ مِنْهُ ۚ قَالَ إِن تَسْخَرُوا۟ مِنَّا فَإِنَّا نَسْخَرُ مِنكُمْ كَمَا تَسْخَرُونَ

व यस्-नअुल्फुल्-क, व कुल्लमा मर्र अ़लैहि म लउम्मिन् क़ौमिही सख़िरू मिन्हु, क़ा-ल इन् तस्ख़रू मिन्ना फ़-इन्ना नस्ख़रू मिन्कुम् कमा तस्ख़रून
और नूह कशती बनाने लगे और जब कभी उनकी क़ौम के सरबर आवुरदा लोग उनके पास से गुज़रते थे तो उनसे मसख़रापन करते नूह (जवाब में) कहते कि अगर इस वक़्त तुम हमसे मसखरापन करते हो तो जिस तरह तुम हम पर हँसते हो हम तुम पर एक वक़्त हँसेगें।

11:39

فَسَوْفَ تَعْلَمُونَ مَن يَأْتِيهِ عَذَابٌۭ يُخْزِيهِ وَيَحِلُّ عَلَيْهِ عَذَابٌۭ مُّقِيمٌ

फ़सौ-फ़ तअ्लमू-न, मंय्यअ्तीहि अज़ाबुंय्युख़्ज़ीहि व यहिल्लु अलैहि अ़ज़ाबुम् मुक़ीम
और तुम्हें अनक़रीब ही मालूम हो जाएगा कि किस पर अज़ाब नाजि़ल होता है कि (दुनिया में) उसे रुसवा कर दे और किस पर (क़यामत में) दाइमी अज़ाब नाजि़ल होता है।

11:40

حَتَّىٰٓ إِذَا جَآءَ أَمْرُنَا وَفَارَ ٱلتَّنُّورُ قُلْنَا ٱحْمِلْ فِيهَا مِن كُلٍّۢ زَوْجَيْنِ ٱثْنَيْنِ وَأَهْلَكَ إِلَّا مَن سَبَقَ عَلَيْهِ ٱلْقَوْلُ وَمَنْ ءَامَنَ ۚ وَمَآ ءَامَنَ مَعَهُۥٓ إِلَّا قَلِيلٌۭ

हत्ता इज़ा जा-अ अम्रुना व फ़ारत्तन्नूरू, क़ुल्नह् मिल् फ़ीहा मिन् कुल्लिन् ज़ौजैनिस्-नैनि व अह़्ल-क इल्ला मन् स-ब-क़ अ़लैहिल् क़ौलु व मन् आम-न, व मा आम-न म-अ़हू इल्ला क़लील
यहाँ तक कि जब हमारा हुक्म (अज़ाब) आ पहुँचा और तन्नूर से जोश मारने लगा तो हमने हुक्म दिया (ऐ नूह) हर किस्म के जानदारों में से (नर मादा का) जोड़ा (यानि) दो दो ले लो और जिस (की) हलाकत (तबाही) का हुक्म पहले ही हो चुका हो उसके सिवा अपने सब घर वाले और जो लोग ईमान ला चुके उन सबको कश्ती (नाँव) में बैठा लो और उनके साथ ईमान भी थोड़े ही लोग लाए थे।

11:41

۞ وَقَالَ ٱرْكَبُوا۟ فِيهَا بِسْمِ ٱللَّهِ مَجْر۪ىٰهَا وَمُرْسَىٰهَآ ۚ إِنَّ رَبِّى لَغَفُورٌۭ رَّحِيمٌۭ

व क़ालर् कबू फ़ीहा बिस्मिल्लाहि मज् रेहा व मुरसाहा, इन्-न रब्बी ल ग़फूरुर्रहीम
और नूह ने (अपने साथियों से) कहा बिस्मिल्ला मज़रीहा मुरसाहा (अल्लाह ही के नाम से उसका बहाओ और ठहराओ है) कश्ती में सवार हो जाओ बेशक मेरा परवरदिगार बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है।

11:42

وَهِىَ تَجْرِى بِهِمْ فِى مَوْجٍۢ كَٱلْجِبَالِ وَنَادَىٰ نُوحٌ ٱبْنَهُۥ وَكَانَ فِى مَعْزِلٍۢ يَـٰبُنَىَّ ٱرْكَب مَّعَنَا وَلَا تَكُن مَّعَ ٱلْكَـٰفِرِينَ

व हि-य तज्री बिहिम् फ़ी मौजिन् कल्जिबालि, व नादा नूहु-निब्-नहू व का-न फ़ी मअ्ज़िलिंय-या बुनय्यर्कब् म-अ़ना व ला तकुम् म-अ़ल् काफ़िरीन
और कश्ती है कि पहाड़ों की सी (ऊँची) लहरों में उन लोगों को लिए हुए चली जा रही है और नूह ने अपने बेटे को जो उनसे अलग थलग एक गोशे (कोने) में था आवाज़ दी ऐ मेरे फरज़न्द हमारी कश्ती में सवार हो लो और काफिरों के साथ न रह।

11:43

قَالَ سَـَٔاوِىٓ إِلَىٰ جَبَلٍۢ يَعْصِمُنِى مِنَ ٱلْمَآءِ ۚ قَالَ لَا عَاصِمَ ٱلْيَوْمَ مِنْ أَمْرِ ٱللَّهِ إِلَّا مَن رَّحِمَ ۚ وَحَالَ بَيْنَهُمَا ٱلْمَوْجُ فَكَانَ مِنَ ٱلْمُغْرَقِينَ

क़ा-ल स-आवी इला ज-बलिंय्यअ्सिमुनी मिनल्मा-इ, क़ा-ल ला आसिमल्यौ-म मिन् अम्रिल्लाहि इल्ला मर्रहि-म, व हा-ल बैनहुमल् मौजु फका-न मिनल् मुग़्-र-क़ीन
(मुझे माफ कीजिए) मै तो अभी किसी पहाड़ का सहारा पकड़ता हूँ जो मुझे पानी (में डूबने) से बचा लेगा नूह ने (उससे) कहा (अरे कम्बख़्त) आज अल्लाह के अज़ाब से कोई बचाने वाला नहीं मगर अल्लाह ही जिस पर रहम फरमाएगा और (ये बात हो रही थी कि) यकायक दोनो बाप बेटे के दरम्यिान एक मौज हाएल हो गई और वह डूब कर रह गया।

11:44

وَقِيلَ يَـٰٓأَرْضُ ٱبْلَعِى مَآءَكِ وَيَـٰسَمَآءُ أَقْلِعِى وَغِيضَ ٱلْمَآءُ وَقُضِىَ ٱلْأَمْرُ وَٱسْتَوَتْ عَلَى ٱلْجُودِىِّ ۖ وَقِيلَ بُعْدًۭا لِّلْقَوْمِ ٱلظَّـٰلِمِينَ

व क़ी-ल या अरज़ुब्लई मा-अकि व या समा-उ अक़्लिई व ग़ीज़ल-मा-उ व क़ुज़ियल्-अम्रू वस्तवत् अलल् – जूदिय्यि व क़ी-ल बुअ्दल् लिल्-क़ौमिज़्ज़ालिमीन
और (ग़ैब अल्लाह की तरफ से) हुक्म दिया गया कि ऐ ज़मीन अपना पानी जज़्ब (शेख) करे और ऐ आसमान (बरसने से) थम जा और पानी घट गया और (लोगों का) काम तमाम कर दिया गया और कश्ती जो वही (पहाड़) पर जा ठहरी और (चारो तरफ) पुकार दिया गया कि ज़ालिम लोगों को (अल्लाह की रहमत से) दूरी हो।

11:45

وَنَادَىٰ نُوحٌۭ رَّبَّهُۥ فَقَالَ رَبِّ إِنَّ ٱبْنِى مِنْ أَهْلِى وَإِنَّ وَعْدَكَ ٱلْحَقُّ وَأَنتَ أَحْكَمُ ٱلْحَـٰكِمِينَ

व नादा नूहुर्-रब्बहू फ़क़ा-ल रब्बि इन्नब्-नी मिन् अह़्ली व इन्-न वअ्द-कल्-हक़्क़ु व अन्-त अह़्कमुल्-हाकिमीन
और (जिस वक़्त नूह का बेटा ग़रक (डूब) हो रहा था तो नूह ने अपने परवरदिगार को पुकारा और अर्ज़ की ऐ मेरे परवरदिगार इसमें तो शक नहीं कि मेरा बेटा मेरे एहल (घर वालों) में शामिल है और तूने वादा किया था कि तेरे एहल को बचा लूँगा) और इसमें शक नहीं कि तेरा वायदा सच्चा है और तू सारे (जहान) के हाकिमों से बड़ा हाकिम है।

11:46

قَالَ يَـٰنُوحُ إِنَّهُۥ لَيْسَ مِنْ أَهْلِكَ ۖ إِنَّهُۥ عَمَلٌ غَيْرُ صَـٰلِحٍۢ ۖ فَلَا تَسْـَٔلْنِ مَا لَيْسَ لَكَ بِهِۦ عِلْمٌ ۖ إِنِّىٓ أَعِظُكَ أَن تَكُونَ مِنَ ٱلْجَـٰهِلِينَ

क़ा-ल या नूहु इन्नहू लै-स मिन् अह़्लि-क, इन्नहू अ-मलुन् ग़ैरू सालिहिन, फ़ला तस्अल्नि मा लै-स ल-क बिही अिल्मुन, इन्नी अअिज़ु-क अन् तकू-न मिनल्-जाहिलीन
(तू मेरे बेटे को नजात दे) अल्लाह ने फरमाया ऐ नूह तुम (ये क्या कह रहे हो) हरगिज़ वह तुम्हारे एहल में शामिल नहीं वह बेशक बदचलन है (देखो जिसका तुम्हें इल्म नहीं है मुझसे उसके बारे में (दरख़्वास्त न किया करो और नादानों की सी बातें न करो) नूह ने अर्ज़ की ऐ मेरे परवरदिगार मै तुझ ही से पनाह मागँता हूँ कि जिस चीज़ का मुझे इल्म न हो मै उसकी दरख़्वास्त करुँ।

11:47

قَالَ رَبِّ إِنِّىٓ أَعُوذُ بِكَ أَنْ أَسْـَٔلَكَ مَا لَيْسَ لِى بِهِۦ عِلْمٌۭ ۖ وَإِلَّا تَغْفِرْ لِى وَتَرْحَمْنِىٓ أَكُن مِّنَ ٱلْخَـٰسِرِينَ

क़ा-ल रब्बि इन्नी अअूज़ु बि-क अन् अस्अ-ल-क मा लै-स ली बिही अिल्मुन्, व इल्ला तग़्फिर् ली व तरहम्-नी
 अकुम् मिनल्-ख़ासिरीन
और अगर तु मुझे (मेरे कसूर न बख़्श देगा और मुझ पर रहम न खाएगा तो मैं सख़्त घाटा उठाने वालों में हो जाऊँगा (जब तूफान जाता रहा तो) हुक्म दिया गया ऐ नूह हमारी तरफ से सलामती और उन बरकतों के साथ कश्ती से उतरो।

11:48

قِيلَ يَـٰنُوحُ ٱهْبِطْ بِسَلَـٰمٍۢ مِّنَّا وَبَرَكَـٰتٍ عَلَيْكَ وَعَلَىٰٓ أُمَمٍۢ مِّمَّن مَّعَكَ ۚ وَأُمَمٌۭ سَنُمَتِّعُهُمْ ثُمَّ يَمَسُّهُم مِّنَّا عَذَابٌ أَلِيمٌۭ

क़ी-ल या नूहुह्बित बिसलामिम् मिन्ना व ब-रकातिन् अलै-क व अ़ला उ-ममिम् मिम्-मम्म-अ-क, व उ-ममुन् सनुमत्तिअुहुम् सुम्-म यमस्सुहुम् मिन्ना अ़ज़ाबुन् अलीम
जो तुम पर हैं और जो लोग तुम्हारे साथ हैं उनमें से न कुछ लोगों पर और (तुम्हारे बाद) कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें हम थोड़े ही दिन बाद बहरावर करेगें फिर हमारी तरफ से उनको दर्दनाक अज़ाब पहुँचेगा।

11:49

تِلْكَ مِنْ أَنۢبَآءِ ٱلْغَيْبِ نُوحِيهَآ إِلَيْكَ ۖ مَا كُنتَ تَعْلَمُهَآ أَنتَ وَلَا قَوْمُكَ مِن قَبْلِ هَـٰذَا ۖ فَٱصْبِرْ ۖ إِنَّ ٱلْعَـٰقِبَةَ لِلْمُتَّقِينَ

तिल्-क मिन् अम्बाइल्-ग़ैबि नूहीहा इलै-क, मा कुन् -त तअ्लमुहा अन्-त वला क़ौमु-क मिन् क़ब्लि हाज़ा, फस्बिर, इन्नल् आक़ि-ब-त लिल्मुत्तक़ीन
(ऐ रसूल) ये ग़ैब की चन्द ख़बरे हैं जिनको तुम्हारी तरफ वही के ज़रिए पहुँचाते हैं जो उसके क़ब्ल न तुम जानते थे और न तुम्हारी क़ौम ही (जानती थी) तो तुम सब्र करो इसमें शक नहीं कि आखि़ारत (की खूबियाँ) परहेज़गारों ही के वास्ते हैं।

11:50

وَإِلَىٰ عَادٍ أَخَاهُمْ هُودًۭا ۚ قَالَ يَـٰقَوْمِ ٱعْبُدُوا۟ ٱللَّهَ مَا لَكُم مِّنْ إِلَـٰهٍ غَيْرُهُۥٓ ۖ إِنْ أَنتُمْ إِلَّا مُفْتَرُونَ

व इला आदिन् अख़ाहुम हूदन, क़ा-ल या क़ौमिअ्बुदुल्ला-ह मा लकुम् मिन् इलाहिन् ग़ैरूहू, इन् अन्तुम् इल्ला मुफ़्तरून
और (हमने) क़ौमे आद के पास उनके भाई हूद को (पैग़म्बर बनाकर भेजा और) उन्होनें अपनी क़ौम से कहा ऐ मेरी क़ौम अल्लाह ही की परसतिश करों उसके सिवा कोई तुम्हारा माबूद नहीं तुम बस निरे इफ़तेरा परदाज़ (झूठी बात बनाने वाले) हो।

11:51

يَـٰقَوْمِ لَآ أَسْـَٔلُكُمْ عَلَيْهِ أَجْرًا ۖ إِنْ أَجْرِىَ إِلَّا عَلَى ٱلَّذِى فَطَرَنِىٓ ۚ أَفَلَا تَعْقِلُونَ

या क़ौमि ला अस् अलुकुम् अ़लैहि अज्रन्, इन् अज्रि-य इल्ला अ़लल्लज़ी फ़-त-रनी, अ-फ़ला तअ्क़िलून
ऐ मेरी क़ौम मै उस (समझाने पर तुमसे कुछ मज़दूरी नहीं माँगता मेरी मज़दूरी तो बस उस शख़्स के जि़म्मे है जिसने मुझे पैदा किया तो क्या तुम (इतना भी) नहीं समझते।

11:52

وَيَـٰقَوْمِ ٱسْتَغْفِرُوا۟ رَبَّكُمْ ثُمَّ تُوبُوٓا۟ إِلَيْهِ يُرْسِلِ ٱلسَّمَآءَ عَلَيْكُم مِّدْرَارًۭا وَيَزِدْكُمْ قُوَّةً إِلَىٰ قُوَّتِكُمْ وَلَا تَتَوَلَّوْا۟ مُجْرِمِينَ

व या क़ौमिस्तग़्फिरू रब्बकुम् सुम्-म तूबू इलैहि युरसिलिस्समा-अ अ़लैकुम मिद्रारंव् व यज़िद्कुम् क़ुव्व-तन् इला क़ुव्वतिकुम वला त-तवल्लौ मुज्रिमीन
और ऐ मेरी क़ौम अपने परवरदिगार से मग़फिरत की दुआ माँगों फिर उसकी बारगाह में अपने (गुनाहों से) तौबा करो तो वह तुम पर मूसलाधार मेह आसमान से बरसाएगा ख़ुश्क साली न हेागी और तुम्हारी क़ूवत (ताक़त) में और क़ूवत बढ़ा देगा और मुजरिम बन कर उससे मुँह न मोड़ों।

11:53

قَالُوا۟ يَـٰهُودُ مَا جِئْتَنَا بِبَيِّنَةٍۢ وَمَا نَحْنُ بِتَارِكِىٓ ءَالِهَتِنَا عَن قَوْلِكَ وَمَا نَحْنُ لَكَ بِمُؤْمِنِينَ

क़ालू या हूदु मा जिअ्तना बि-बय्यि-नतिंव्-व मा नह्नु बितारिकी आलि-हतिना अन् क़ौलि-क व मा नह्नु ल-क बिमुअ्मिनीन
वह लोग कहने लगे ऐ हूद तुम हमारे पास कोई दलील लेकर तो आए नहीं और तुम्हारे कहने से अपने ख़़ुदाओं को तो छोड़ने वाले नहीं और न हम तुम पर ईमान लाने वाले हैं।

11:54

إِن نَّقُولُ إِلَّا ٱعْتَرَىٰكَ بَعْضُ ءَالِهَتِنَا بِسُوٓءٍۢ ۗ قَالَ إِنِّىٓ أُشْهِدُ ٱللَّهَ وَٱشْهَدُوٓا۟ أَنِّى بَرِىٓءٌۭ مِّمَّا تُشْرِكُونَ

इन्नक़ूलु इल्लअ्-तरा-क बअ्ज़ु आलि-हतिना बिसूइन्, क़ा-ल इन्नी हा उशहिदुल्ला-ह वश्हदू अन्नी बरीउम्-मिम्मा तुश्रिकून
हम तो बस ये कहते हैं कि हमारे ख़ुदाओं में से किसने तुम्हें मजनून (दीवाना) बना दिया है (इसी वजह से तुम) बहकी बहकी बातें करते हो हूद ने जवाब दिया बेशक मै अल्लाह को गवाह करता हूँ और तुम भी गवाह रहो कि तुम अल्लाह के सिवा (दूसरों को) उसका शरीक बनाते हो।

11:55

مِن دُونِهِۦ ۖ فَكِيدُونِى جَمِيعًۭا ثُمَّ لَا تُنظِرُونِ

मिन् दूनिही फ़कीदूनी जमीअ़न् सुम् -म ला तुन्ज़िरून 
इसमे मै बेज़ार हूँ तो तुम सब के सब मेरे साथ मक्कारी करो और मुझे (दम मारने की) मोहलत भी न दो तो मुझे परवाह नहीं।

11:56

إِنِّى تَوَكَّلْتُ عَلَى ٱللَّهِ رَبِّى وَرَبِّكُم ۚ مَّا مِن دَآبَّةٍ إِلَّا هُوَ ءَاخِذٌۢ بِنَاصِيَتِهَآ ۚ إِنَّ رَبِّى عَلَىٰ صِرَٰطٍۢ مُّسْتَقِيمٍۢ

इन्नी तवक्कल्तु अ़लल्लाहि रब्बी व रब्बिकुम्, मा मिन् दाब्बतिन् इल्ला हु-व आख़िज़ुम् बिनासि-यतिहा, इन्-न रब्बी अ़ला सिरातिम् मुस्तक़ीम
मै तो सिर्फ अल्लाह पर भरोसा रखता हूँ जो मेरा भी परवरदिगार है और तुम्हारा भी परवरदिगार है और रुए ज़मीन पर जितने चलने वाले हैं सबकी चोटी उसी के साथ है इसमें तो शक ही नहीं कि मेरा परवरदिगार (इन्साफ की) सीधी राह पर है।

11:57

فَإِن تَوَلَّوْا۟ فَقَدْ أَبْلَغْتُكُم مَّآ أُرْسِلْتُ بِهِۦٓ إِلَيْكُمْ ۚ وَيَسْتَخْلِفُ رَبِّى قَوْمًا غَيْرَكُمْ وَلَا تَضُرُّونَهُۥ شَيْـًٔا ۚ إِنَّ رَبِّى عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍ حَفِيظٌۭ

फ-इन् तवल्लौ फ़-क़द् अब्लग़्तुकुम् मा उर्सिल्तु बिही इलैकुम्, व यस्तख़्लिफु रब्बी क़ौमन् ग़ैरकुम्, व ला तज़ुर्रुनहू शैअन्, इन्-न रब्बी अ़ला कुल्लि शैइन् हफ़ीज़
इस पर भी अगर तुम उसके हुक्म से मुँह फेरे रहो तो जो हुक्म दे कर मैं तुम्हारे पास भेजा गया था उसे तो मैं यक़ीनन पहुँचा चुका और मेरा परवरदिगार (तुम्हारी नाफरमानी पर तुम्हें हलाक करें) तुम्हारे सिवा दूसरी क़ौम को तुम्हारा जानशीन करेगा और तुम उसका कुछ भी बिगाड़ नहीं सकते इसमें तो शक नहीं है कि मेरा परवरदिगार हर चीज़ का निगेहबान है।

11:58

وَلَمَّا جَآءَ أَمْرُنَا نَجَّيْنَا هُودًۭا وَٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ مَعَهُۥ بِرَحْمَةٍۢ مِّنَّا وَنَجَّيْنَـٰهُم مِّنْ عَذَابٍ غَلِيظٍۢ

व लम्मा जा-अ अम्रूना नज्जैना हूदंव्वल्लज़ी-न आमनू म-अ़हू बिरह्-मतिम्-मिन्ना, व नज्जैनाहुम् मिन् अ़ज़ाबिन् ग़लीज़
और जब हमारा (अज़ाब का) हुक्म आ पहुँचा तो हमने हूद को और जो लोग उसके साथ इमान लाए थे अपनी मेहरबानी से नजात दिया और उन सबको सख़्त अज़ाब से बचा लिया।

11:59

وَتِلْكَ عَادٌۭ ۖ جَحَدُوا۟ بِـَٔايَـٰتِ رَبِّهِمْ وَعَصَوْا۟ رُسُلَهُۥ وَٱتَّبَعُوٓا۟ أَمْرَ كُلِّ جَبَّارٍ عَنِيدٍۢ

व तिल-क आदुन्, ज-हदू बिआयाति रब्बिहिम् व असौ रूसु-लहु वत्त-बअू अम्-र कुल्लि जब्बारिन् अ़नीद
(ऐ रसूल) ये हालात क़ौमे आद के हैं जिन्होंने अपने परवरदिगार की आयतों से इन्कार किया और उसके पैग़म्बरों की नाफ़रमानी की और हर सरकश (दुश्मन अल्लाह) के हुक्म पर चलते रहें।

11:60

وَأُتْبِعُوا۟ فِى هَـٰذِهِ ٱلدُّنْيَا لَعْنَةًۭ وَيَوْمَ ٱلْقِيَـٰمَةِ ۗ أَلَآ إِنَّ عَادًۭا كَفَرُوا۟ رَبَّهُمْ ۗ أَلَا بُعْدًۭا لِّعَادٍۢ قَوْمِ هُودٍۢ

व उत्बिअू फ़ी हाज़िहिद्दुन्या लअ्न-तंव् -व यौमल् -क़ियामति, अला-इन्-न आदन् क-फरू रब्बहुम, अला बुअ्दल् लिआदिन क़ौमि हूद
और इस दुनिया में भी लानत उनके पीछे लगा दी गई और क़यामत के दिन भी (लगी रहेगी) देख क़ौमे आद ने अपने परवरदिगार का इन्कार किया देखो हूद की क़ौमे आद (हमारी बारगाह से) धुत्कारी पड़ी है।

11:61

۞ وَإِلَىٰ ثَمُودَ أَخَاهُمْ صَـٰلِحًۭا ۚ قَالَ يَـٰقَوْمِ ٱعْبُدُوا۟ ٱللَّهَ مَا لَكُم مِّنْ إِلَـٰهٍ غَيْرُهُۥ ۖ هُوَ أَنشَأَكُم مِّنَ ٱلْأَرْضِ وَٱسْتَعْمَرَكُمْ فِيهَا فَٱسْتَغْفِرُوهُ ثُمَّ تُوبُوٓا۟ إِلَيْهِ ۚ إِنَّ رَبِّى قَرِيبٌۭ مُّجِيبٌۭ

व इला समू-द अख़ाहुम् सालिहन्, क़ा-ल या क़ौमिअ्बुदुल्ला-ह मा लकुम् मिन् इलाहिन् ग़ैरूहू, हु-व अन्श-अकुम् मिनल्अर्ज़ि वस्तअ्म-रकुम् फ़ीहा फ़स्तग़्फिरूहु सुम्-म तूबू इलैहि, इन्-न रब्बी क़रीबुम् मुजीब
और (हमने) क़ौमे समूद के पास उनके भाई सालेह को (पैग़म्बर बनाकर भेजा) तो उन्होंने (अपनी क़ौम से) कहा ऐ मेरी क़ौम अल्लाह ही की परसतिश करो उसके सिवा कोई तुम्हारा माबूद नहीं उसी ने तुमको ज़मीन (की मिट्टी) से पैदा किया और तुमको उसमें बसाया तो उससे मग़फिरत की दुआ माँगों फिर उसकी बारगाह में तौबा करो (बेशक मेरा परवरदिगार (हर शख़्स के) क़रीब और सबकी सुनता और दुआ क़ुबूल करता है।

11:62

قَالُوا۟ يَـٰصَـٰلِحُ قَدْ كُنتَ فِينَا مَرْجُوًّۭا قَبْلَ هَـٰذَآ ۖ أَتَنْهَىٰنَآ أَن نَّعْبُدَ مَا يَعْبُدُ ءَابَآؤُنَا وَإِنَّنَا لَفِى شَكٍّۢ مِّمَّا تَدْعُونَآ إِلَيْهِ مُرِيبٍۢ

क़ालू या सालिहु क़द् कुन्-त फ़ीना मरजुव्वन् क़ब्-ल हाज़ा अतन्हाना अन्-नअ्बु-द मा यअ्बुदु आबाउना व इन्नना लफ़ी शक्किम् मिम्मा तद्अूना इलैहि मुरीब
वह लोग कहने लगे ऐ सालेह इसके पहले तो तुमसे हमारी उम्मीदें वाबस्ता थी तो क्या अब तुम जिस चीज़ की परसतिश हमारे बाप दादा करते थे उसकी परसतिश से हमें रोकते हो और जिस दीन की तरफ तुम हमें बुलाते हो हम तो उसकी निस्बत ऐसे शक में पड़े हैं।

11:63

قَالَ يَـٰقَوْمِ أَرَءَيْتُمْ إِن كُنتُ عَلَىٰ بَيِّنَةٍۢ مِّن رَّبِّى وَءَاتَىٰنِى مِنْهُ رَحْمَةًۭ فَمَن يَنصُرُنِى مِنَ ٱللَّهِ إِنْ عَصَيْتُهُۥ ۖ فَمَا تَزِيدُونَنِى غَيْرَ تَخْسِيرٍۢ

क़ा-ल या क़ौमि अ-रऐतुम् इन् कुन्तु अला बय्यि – नतिम् मिर्रब्बी व आतानी मिन्हु रह्-मतन् फ़ मंय्यन्सुरूनी मिनल्लाहि इन् अ़सैतुहू, फ़मा तज़ीदू -ननी ग़ै-र तख़्सीर
कि उसने हैरत में डाल दिया है सालेह ने जवाब दिया ऐ मेरी क़ौम भला देखो तो कि अगर मैं अपने परवरदिगार की तरफ से रौशन दलील पर हूँ और उसने मुझे अपनी (बारगाह) मे रहमत (नबूवत) अता की है इस पर भी अगर मै उसकी नाफ़रमानी करुँ तो अल्लाह (के अज़ाब से बचाने में) मेरी मदद कौन करेगा-फिर तुम सिवा नुक़सान के मेरा कुछ बढ़ा दोगे नहीं।

11:64

وَيَـٰقَوْمِ هَـٰذِهِۦ نَاقَةُ ٱللَّهِ لَكُمْ ءَايَةًۭ فَذَرُوهَا تَأْكُلْ فِىٓ أَرْضِ ٱللَّهِ وَلَا تَمَسُّوهَا بِسُوٓءٍۢ فَيَأْخُذَكُمْ عَذَابٌۭ قَرِيبٌۭ

व या क़ौमि हाज़िही नाक़तुल्लाहि लकुम् आयतन् फ़-ज़रूहा तअ्कुल् फी अरज़िल्लाहि व ला तमस्सूहा बिसूइन् फ़-यअ्ख़ु-ज़कुम् अ़ज़ाबुन क़रीब
ऐ मेरी क़ौम ये अल्लाह की (भेजी हुयी) ऊँटनी है तुम्हारे वास्ते (मेरी नबूवत का) एक मौजिज़ा है तो इसको (उसके हाल पर) छोड़ दो कि अल्लाह की ज़मीन में (जहाँ चाहे) खाए और उसे कोई तकलीफ न पहुँचाओ।

11:65

فَعَقَرُوهَا فَقَالَ تَمَتَّعُوا۟ فِى دَارِكُمْ ثَلَـٰثَةَ أَيَّامٍۢ ۖ ذَٰلِكَ وَعْدٌ غَيْرُ مَكْذُوبٍۢ

फ़-अ़-क़रूहा फ़क़ा-ल तमत्तअू फ़ी दारिकुम् सलास -त अय्यामिन्, ज़ालि-क वअ्दुन ग़ैरू मक्ज़ूब
(वरना) फिर तुम्हें फौरन ही (अल्लाह का) अज़ाब ले डालेगा इस पर भी उन लोगों ने उसकी कूँचे काटकर (मार) डाला तब सालेह ने कहा अच्छा तीन दिन तक (और) अपने अपने घर में चैन (उड़ा लो)।

11:66

فَلَمَّا جَآءَ أَمْرُنَا نَجَّيْنَا صَـٰلِحًۭا وَٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ مَعَهُۥ بِرَحْمَةٍۢ مِّنَّا وَمِنْ خِزْىِ يَوْمِئِذٍ ۗ إِنَّ رَبَّكَ هُوَ ٱلْقَوِىُّ ٱلْعَزِيزُ

फ़-लम्मा जा-अ अम्रुना नज्जैना सालिहंव्-वल्लज़ी-न आमनू म-अ़हू बिरह्-मतिम्-मिन्ना व मिन् ख़िज़्यि यौमिइज़िन्, इन्-न रब्ब-क हुवल् क़विय्युल अ़ज़ीज़
यही अल्लाह का वादा है जो कभी झूठा नहीं होता फिर जब हमारा (अज़ाब का) हुक्म आ पहुँचा तो हमने सालेह और उन लोगों को जो उसके साथ ईमान लाए थे अपनी मेहरबानी से नजात दी और उस दिन की रुसवाई से बचा लिया इसमें शक नहीं कि तेरा परवरदिगार ज़बरदस्त ग़ालिब है।

11:67

وَأَخَذَ ٱلَّذِينَ ظَلَمُوا۟ ٱلصَّيْحَةُ فَأَصْبَحُوا۟ فِى دِيَـٰرِهِمْ جَـٰثِمِينَ

व अ-ख़ज़ल्लज़ी न ज़ लमुस्सैहतु फ़-अस्बहू फी दियारिहिम् जासिमीन
और जिन लोगों ने ज़ुल्म किया था उनको एक सख़्त चिघाड़ ने ले डाला तो वह लोग अपने अपने घरों में औंधें पड़े रह गये।

11:68

كَأَن لَّمْ يَغْنَوْا۟ فِيهَآ ۗ أَلَآ إِنَّ ثَمُودَا۟ كَفَرُوا۟ رَبَّهُمْ ۗ أَلَا بُعْدًۭا لِّثَمُودَ

कअल्लम् य़ग़्नौ फ़ीहा, अला इन्-न समू-द क-फरू रब्बहुम, अला बुअ्दल् लि-समूद
और ऐसे मर मिटे कि गोया उनमें कभी बसे ही न थे तो देखो क़ौमे समूद ने अपने परवरदिगार की नाफरमानी की और (सज़ा दी गई) सुन रखो कि क़ौमे समूद (उसकी बारगाह से) धुत्कारी हुई है।

11:69

وَلَقَدْ جَآءَتْ رُسُلُنَآ إِبْرَٰهِيمَ بِٱلْبُشْرَىٰ قَالُوا۟ سَلَـٰمًۭا ۖ قَالَ سَلَـٰمٌۭ ۖ فَمَا لَبِثَ أَن جَآءَ بِعِجْلٍ حَنِيذٍۢ

व ल-क़द् जाअत् रूसुलुना इब्राही-म बिल्बुश्रा क़ालू सलामन्, क़ा-ल सलामुन् फ़मा लबि-स अन् जा-अ बिअिज्लिन् हनीज़
और हमारे भेजे हुए (फरिश्ते) इब्राहीम के पास खुशखबरी लेकर आए और उन्होंने (इब्राहीम को) सलाम किया (इब्राहीम ने) सलाम का जवाब दिया फिर इब्राहीम एक बछड़े का भुना हुआ (गोश्त) ले आए।

11:70

فَلَمَّا رَءَآ أَيْدِيَهُمْ لَا تَصِلُ إِلَيْهِ نَكِرَهُمْ وَأَوْجَسَ مِنْهُمْ خِيفَةًۭ ۚ قَالُوا۟ لَا تَخَفْ إِنَّآ أُرْسِلْنَآ إِلَىٰ قَوْمِ لُوطٍۢ

फ़-लम्मा रआ ऐदि-यहुम् ला तसिलु इलैहि नकि-रहुम् व औज-स मिन्हुम् ख़ीफ़-तन्, क़ालू ला तख़फ् इन्ना उरसिल्ना इला क़ौमि लूत
(और साथ खाने बैठें) फिर जब देखा कि उनके हाथ उसकी तरफ नहीं बढ़ते तो उनकी तरफ से बदगुमान हुए और जी ही जी में डर गए (उसको वह फरिश्ते समझे) और कहने लगे आप डरे नहीं हम तो क़ौम लूत की तरफ (उनकी सज़ा के लिए) भेजे गए हैं।

11:71

وَٱمْرَأَتُهُۥ قَآئِمَةٌۭ فَضَحِكَتْ فَبَشَّرْنَـٰهَا بِإِسْحَـٰقَ وَمِن وَرَآءِ إِسْحَـٰقَ يَعْقُوبَ

वम्र अतुहू क़ाइ-मतुन् फ़-ज़हिकत् फ़-बश्शर्नाहा बि-इस्हा-क, व मिंव्वरा-इ इस्हा-क़ यअ्क़ूब
और इब्राहीम की बीबी (सायरा) खड़ी हुयी थी वह (ये ख़बर सुनकर) हँस पड़ी तो हमने (उन्हें फरिशतों के ज़रिए से) इसहाक़ के पैदा होने की खुशख़बरी दी और इसहाक़ के बाद याक़ूब की।

11:72

قَالَتْ يَـٰوَيْلَتَىٰٓ ءَأَلِدُ وَأَنَا۠ عَجُوزٌۭ وَهَـٰذَا بَعْلِى شَيْخًا ۖ إِنَّ هَـٰذَا لَشَىْءٌ عَجِيبٌۭ

क़ालत् या वैलता अ-अलिदु व अ-ना अ़जूजुंव् व हाज़ा बअ्ली शैख़न्, इन्-न हाज़ा लशैउन् अ़जीब
वह कहने लगी ऐ है क्या अब मै बच्चा जनने बैठॅूगी मैं तो बुढि़या हूँ और ये मेरे मियाँ भी बूढे़ है ये तो एक बड़ी ताज्जुब खेज़ बात है।

11:73

قَالُوٓا۟ أَتَعْجَبِينَ مِنْ أَمْرِ ٱللَّهِ ۖ رَحْمَتُ ٱللَّهِ وَبَرَكَـٰتُهُۥ عَلَيْكُمْ أَهْلَ ٱلْبَيْتِ ۚ إِنَّهُۥ حَمِيدٌۭ مَّجِيدٌۭ

क़ालू अतअ्जबी-न मिन् अमरिल्लाहि रह्-मतुल्लाहि व ब-रकातुहू अ़लैकुम् अह़्लल्बैति, इन्नहू हमीदुम्-मजीद
वह फरिश्ते बोले (हाए) तुम अल्लाह की कुदरत से तअज्जुब करती हो ऐ एहले बैत (नबूवत) तुम पर अल्लाह की रहमत और उसकी बरकते (नाज़िल हो) इसमें शक नहीं कि वह क़ाबिल हम्द (वासना) बुज़ुर्ग हैं।

11:74

فَلَمَّا ذَهَبَ عَنْ إِبْرَٰهِيمَ ٱلرَّوْعُ وَجَآءَتْهُ ٱلْبُشْرَىٰ يُجَـٰدِلُنَا فِى قَوْمِ لُوطٍ

फ़-लम्मा ज़-ह-ब अन् इब्राहीमर्-रौअु व जाअत्हुल्-बुशरा युजादिलुना फ़ी क़ौमि लूत
फिर जब इब्राहीम (के दिल) से ख़ौफ जाता रहा और उनके पास (औलाद की) खुशख़बरी भी आ चुकी तो हम से क़ौमे लूत के बारे में झगड़ने लगे।

11:75

إِنَّ إِبْرَٰهِيمَ لَحَلِيمٌ أَوَّٰهٌۭ مُّنِيبٌۭ

इन्-न इब्राही-म ल-हलीमुन् अव्वाहुम् मुनीब
बेशक इब्राहीम बुर्दबार नरम दिल (हर बात में अल्लाह की तरफ) रुजू (ध्यान) करने वाले थे।

11:76

يَـٰٓإِبْرَٰهِيمُ أَعْرِضْ عَنْ هَـٰذَآ ۖ إِنَّهُۥ قَدْ جَآءَ أَمْرُ رَبِّكَ ۖ وَإِنَّهُمْ ءَاتِيهِمْ عَذَابٌ غَيْرُ مَرْدُودٍۢ

या इब्राहीमु अअ्-रिज़् अन् हाज़ा, इन्नहू क़द् जा-अ अम्रु रब्बि-क, व इन्नहुम् आतीहिम् अ़ज़ाबुन ग़ैरू मरदूद
(हमने कहा) ऐ इब्राहीम इस बात में हट मत करो (इस बार में) जो हुक्म तुम्हारे परवरदिगार का था वह क़तअन आ चुका और इसमें शक नहीं कि उन पर ऐसा अज़ाब आने वाले वाला है।

11:77

وَلَمَّا جَآءَتْ رُسُلُنَا لُوطًۭا سِىٓءَ بِهِمْ وَضَاقَ بِهِمْ ذَرْعًۭا وَقَالَ هَـٰذَا يَوْمٌ عَصِيبٌۭ

व लम्मा जाअत् रूसुलुना लूतन् सी-अ बिहिम् व ज़ा-क़ बिहिम् ज़रअंव्-व क़ा-ल हाज़ा यौमुन् अ़सीब
जो किसी तरह टल नहीं सकता और जब हमारे भेजे हुए फ़रिश्ते (लड़को की सूरत में) लूत के पास आए तो उनके ख़्याल से रजीदा हुए और उनके आने से तंग दिल हो गए और कहने लगे कि ये (आज का दिन) सख़्त मुसीबत का दिन है।

11:78

وَجَآءَهُۥ قَوْمُهُۥ يُهْرَعُونَ إِلَيْهِ وَمِن قَبْلُ كَانُوا۟ يَعْمَلُونَ ٱلسَّيِّـَٔاتِ ۚ قَالَ يَـٰقَوْمِ هَـٰٓؤُلَآءِ بَنَاتِى هُنَّ أَطْهَرُ لَكُمْ ۖ فَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَلَا تُخْزُونِ فِى ضَيْفِىٓ ۖ أَلَيْسَ مِنكُمْ رَجُلٌۭ رَّشِيدٌۭ

व जा-अहू क़ौमुहू युह्-रअू-न इलैहि, व मिन् क़ब्लु कानू यअ्मलूनस्-सय्यिआति, क़ा-ल या क़ौमि हा-उला-इ बनाती हुन्-न अत्हरू लकुम् फत्तक़ुल्ला-ह व ला तुख़्ज़ूनि फी ज़ैफी, अलै-स मिन्कुम् रजुलुर्रशीद
और उनकी क़ौम (लड़को की आवाज़ सुनकर बुरे इरादे से) उनके पास दौड़ती हुयी आई और ये लोग उसके क़ब्ल भी बुरे काम किया करते थे लूत ने (जब उनको) आते देखा तो कहा ऐ मेरी क़ौम ये हमारी क़ौम की बेटियाँ (मौजूद हैं) उनसे निकाह कर लो ये तुम्हारी वास्ते जायज़ और ज़्यादा साफ सुथरी हैं तो अल्लाह से डरो और मुझे मेरे मेहमान के बारे में रुसवा न करो क्या तुम में से कोई भी समझदार आदमी नहीं है।

11:79

قَالُوا۟ لَقَدْ عَلِمْتَ مَا لَنَا فِى بَنَاتِكَ مِنْ حَقٍّۢ وَإِنَّكَ لَتَعْلَمُ مَا نُرِيدُ

क़ालू ल-क़द् अलिम्-त मा लना फ़ी बनाति-क मिन् हक़्क़िन व इन्न-क ल-तअ्लमु मा नुरीद
उन (कम्बख़्तो) न जवाब दिया तुम को खूब मालूम है कि तुम्हारी क़ौम की लड़कियों की हमें कुछ हाजत (जरूरत) नही है और जो बात हम चाहते है वह तो तुम ख़ूब जानते हो।

11:80

قَالَ لَوْ أَنَّ لِى بِكُمْ قُوَّةً أَوْ ءَاوِىٓ إِلَىٰ رُكْنٍۢ شَدِيدٍۢ

क़ा-ल लौ अन्-न ली बिकुम् क़ुव्वतन् औ आवी इला रूक्निन् शदीद
लूत ने कहा काश मुझमें तुम्हारे मुक़ाबले की कूवत होती या मै किसी मज़बूत किले मे पनाह ले सकता।

11:81

قَالُوا۟ يَـٰلُوطُ إِنَّا رُسُلُ رَبِّكَ لَن يَصِلُوٓا۟ إِلَيْكَ ۖ فَأَسْرِ بِأَهْلِكَ بِقِطْعٍۢ مِّنَ ٱلَّيْلِ وَلَا يَلْتَفِتْ مِنكُمْ أَحَدٌ إِلَّا ٱمْرَأَتَكَ ۖ إِنَّهُۥ مُصِيبُهَا مَآ أَصَابَهُمْ ۚ إِنَّ مَوْعِدَهُمُ ٱلصُّبْحُ ۚ أَلَيْسَ ٱلصُّبْحُ بِقَرِيبٍۢ

क़ालू या लूतु इन्ना रूसुलु रब्बि-क लंय्यसिलू इलै-क फ़-अस्रि बिअह्-लि-क बिक़ित्अिम्-मिनल्लैलि व ला यल्तफित् मिन्कुम् अ हदुन् इल्लम्-र-अ-त-क, इन्नहू मुसीबुहा मा असाबहुम, इन्-न मौअि-दहुमु स्सुब्हु, अलैसस्-सुबहु बि-क़रीब
वह फरिश्ते बोले ऐ लूत हम तुम्हारे परवरतिदगार के भेजे हुए (फरिश्ते हैं तुम घबराओ नहीं) ये लोग तुम तक हरगिज़ (नहीं पहुँच सकते तो तुम कुछ रात रहे अपने लड़कों बालों समैत निकल भागो और तुममें से कोई इधर मुड़ कर भी न देखे मगर तुम्हारी बीबी कि उस पर भी यक़ीनन वह अज़ाब नाज़िल होने वाला है जो उन लोगों पर नाजि़ल होगा और उन (के अज़ाब का) वादा बस सुबह है क्या सुबह क़रीब नहीं।

11:82

فَلَمَّا جَآءَ أَمْرُنَا جَعَلْنَا عَـٰلِيَهَا سَافِلَهَا وَأَمْطَرْنَا عَلَيْهَا حِجَارَةًۭ مِّن سِجِّيلٍۢ مَّنضُودٍۢ

फ़-लम्मा जा-अ अम्रुना जअ़ल्ना आलि-यहा साफ़ि-लहा व अम्तर्ना अलैहा हिजा-रतम् मिन् सिज्जीलिम्-मन्ज़ूदिम
फिर जब हमारा (अज़ाब का) हुक्म आ पहुँचा तो हमने (बस्ती की ज़मीन के तबके) उलट कर उसके ऊपर के हिस्से को नीचे का बना दिया और उस पर हमने खरन्जेदार पत्थर ताबड़ तोड़ बरसाए।

11:83

مُّسَوَّمَةً عِندَ رَبِّكَ ۖ وَمَا هِىَ مِنَ ٱلظَّـٰلِمِينَ بِبَعِيدٍۢ

मुसव्व मतन् अिन्-द रब्बि-क, व मा हि-य मिनज़्ज़ालिमी-न बि बईद
जिन पर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से निशा न बनाए हुए थे और वह बस्ती (उन) ज़ालिमों (कुफ़्फ़ारे मक्का) से कुछ दूर नहीं।

11:84

۞ وَإِلَىٰ مَدْيَنَ أَخَاهُمْ شُعَيْبًۭا ۚ قَالَ يَـٰقَوْمِ ٱعْبُدُوا۟ ٱللَّهَ مَا لَكُم مِّنْ إِلَـٰهٍ غَيْرُهُۥ ۖ وَلَا تَنقُصُوا۟ ٱلْمِكْيَالَ وَٱلْمِيزَانَ ۚ إِنِّىٓ أَرَىٰكُم بِخَيْرٍۢ وَإِنِّىٓ أَخَافُ عَلَيْكُمْ عَذَابَ يَوْمٍۢ مُّحِيطٍۢ

व इला मद्-यन अख़ाहुम् शुऐबन्, क़ा-ल या क़ौमि अ्बुदुल्ला-ह मा लकुम मिन् इलाहिन् ग़ैरूहू, व ला तन्क़ुसुल-मिक्या-ल वल्मीज़ा-न इन्नी अराकुम् बिख़ैरिंव्-व इन्नी अख़ाफु अलैकुम् अ़ज़ा-ब यौमिम् मुहीत
और हमने मदयन वालों के पास उनके भाई शोएब को पैग़म्बर बना कर भेजा उन्होंने (अपनी क़ौम से) कहा ऐ मेरी क़ौम अल्लाह की इबादत करो उसके सिवा तुम्हारा कोई अल्लाह नहीं और नाप और तौल में कोई कमी न किया करो मै तो तुम को आसूदगी (ख़ुशहाली) में देख रहा हूँ (फिर घटाने की क्या ज़रुरत है) और मै तो तुम पर उस दिन के अज़ाब से डराता हूँ जो (सबको) घेर लेगा।

11:85

وَيَـٰقَوْمِ أَوْفُوا۟ ٱلْمِكْيَالَ وَٱلْمِيزَانَ بِٱلْقِسْطِ ۖ وَلَا تَبْخَسُوا۟ ٱلنَّاسَ أَشْيَآءَهُمْ وَلَا تَعْثَوْا۟ فِى ٱلْأَرْضِ مُفْسِدِينَ

व या क़ौमि औफुल-मिक्या-ल वल्मीज़ा-न बिल-क़िस्ति व ला तब्ख़सुन्ना-स अश्या-अहुम् व ला तअ्सौ फ़िल्अर्ज़ी मुफ़्सिदीन
और ऐ मेरी क़ौम पैमाने और तराज़ू़ इन्साफ़ के साथ पूरे पूरे रखा करो और लेागों को उनकी चीज़े कम न दिया करो और रुए ज़मीन में फसाद न फैलाते फिरो।

11:86

بَقِيَّتُ ٱللَّهِ خَيْرٌۭ لَّكُمْ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ ۚ وَمَآ أَنَا۠ عَلَيْكُم بِحَفِيظٍۢ

बक़िय्यतुल्लाहि ख़ैरुल्लकुम् इन् कुन्तुम मुअ्मिनी-न, व मा अ-ना अ़लैकुम् बि हफ़ीज़
अगर तुम सच्चे मोमिन हो तो अल्लाह का बकि़या तुम्हारे वास्ते कही अच्छा है और मैं तो कुछ तुम्हारा निगेहबान नहीं।

11:87

قَالُوا۟ يَـٰشُعَيْبُ أَصَلَوٰتُكَ تَأْمُرُكَ أَن نَّتْرُكَ مَا يَعْبُدُ ءَابَآؤُنَآ أَوْ أَن نَّفْعَلَ فِىٓ أَمْوَٰلِنَا مَا نَشَـٰٓؤُا۟ ۖ إِنَّكَ لَأَنتَ ٱلْحَلِيمُ ٱلرَّشِيدُ

क़ालू या शुऐबु अ-सलातु-क तअ्मुरू-क अन् नत्रु-क मा यअ्बुदु आबाउना औ अन् नफ़्अ-ल फ़ी अम्वालिना मा नशा-उ, इन्न-क ल-अन्तल् हलीमुर्रशीद
वह लोग कहने लगे ऐ शोएब क्या तुम्हारी नमाज़ (जिसे तुम पढ़ा करते हो) तुम्हें ये सिखाती है कि जिन (बुतों) की परसतिष हमारे बाप दादा करते आए उन्हें हम छोड़ बैठें या हम अपने मालों में जो कुछ चाहे कर बैठें तुम ही तो बस एक बुर्दबार और समझदार (रह गए) हो।

11:88

قَالَ يَـٰقَوْمِ أَرَءَيْتُمْ إِن كُنتُ عَلَىٰ بَيِّنَةٍۢ مِّن رَّبِّى وَرَزَقَنِى مِنْهُ رِزْقًا حَسَنًۭا ۚ وَمَآ أُرِيدُ أَنْ أُخَالِفَكُمْ إِلَىٰ مَآ أَنْهَىٰكُمْ عَنْهُ ۚ إِنْ أُرِيدُ إِلَّا ٱلْإِصْلَـٰحَ مَا ٱسْتَطَعْتُ ۚ وَمَا تَوْفِيقِىٓ إِلَّا بِٱللَّهِ ۚ عَلَيْهِ تَوَكَّلْتُ وَإِلَيْهِ أُنِيبُ

क़ा-ल या क़ौमि अ-रऐतुम् इन् कुन्तु अ़ला बय्यि- नतिम् मिर्रब्बी व र-ज़-क़नी मिन्हु रिज़्क़न् ह-सनन्, व मा उरीदु अन् उख़ालि-फकुम् इला मा अन्हाकुम् अ़न्हु, इन् उरीदु इल्लल्-इस्ला-ह मस्त तअ्तु, व मा तौफ़ीक़ी इल्ला बिल्लाहि, अ़लैहि तवक्कल्तु व इलैहि उनीब
शोएब ने कहा ऐ मेरी क़ौम अगर मै अपने परवरदिगार की तरफ से रौशन दलील पर हूँ और उसने मुझे (हलाल) रोज़ी खाने को दी है (तो मै भी तुम्हारी तरह हराम खाने लगूँ) और मै तो ये नहीं चाहता कि जिस काम से तुम को रोकूँ तुम्हारे बर खि़लाफ (बदले) आप उसको करने लगूं मैं तो जहाँ तक मुझे बन पड़े इसलाह (भलाई) के सिवा (कुछ और) चाहता ही नहीं और मेरी ताईद तो अल्लाह के सिवा और किसी से हो ही नहीं सकती इस पर मैने भरोसा कर लिया है और उसी की तरफ रुज़ू करता हूँ।

11:89

وَيَـٰقَوْمِ لَا يَجْرِمَنَّكُمْ شِقَاقِىٓ أَن يُصِيبَكُم مِّثْلُ مَآ أَصَابَ قَوْمَ نُوحٍ أَوْ قَوْمَ هُودٍ أَوْ قَوْمَ صَـٰلِحٍۢ ۚ وَمَا قَوْمُ لُوطٍۢ مِّنكُم بِبَعِيدٍۢ

व या क़ौमि ला यज्रिमन्नकुम् शिक़ाक़ी अंय्युसी-बकुम् मिस्लु मा असा-ब क़ौ-म नूहिन् औ क़ौ-म हूदिन् औ क़ौ-म सालिहिन्, व मा क़ौमु लूतिम्-मिन्कुम् बि-बईद
और ऐ मेरी क़ौमे मेरी जि़द कही तुम से ऐसा जुर्म न करा दे जैसी मुसीबत क़ौम नूह या हूद या सालेह पर नाजि़ल हुयी थी वैसी ही मुसीबत तुम पर भी आ पड़े और लूत की क़ौम (का ज़माना) तो (कुछ ऐसा) तुमसे दूर नहीं (उन्हीं के इबरत हासिल करो।

11:90

وَٱسْتَغْفِرُوا۟ رَبَّكُمْ ثُمَّ تُوبُوٓا۟ إِلَيْهِ ۚ إِنَّ رَبِّى رَحِيمٌۭ وَدُودٌۭ

वस्तग़्फिरू रब्बकुम् सुम्-म तूबू इलैहि, इन्-न रब्बी रहीमुंव्वदूद
और अपने परवरदिगार से अपनी मग़फिरत की दुआ माँगों फिर उसी की बारगाह में तौबा करो बेशक मेरा परवरदिगार बड़ा मोहब्बत वाला मेहरबान है।

11:91

قَالُوا۟ يَـٰشُعَيْبُ مَا نَفْقَهُ كَثِيرًۭا مِّمَّا تَقُولُ وَإِنَّا لَنَرَىٰكَ فِينَا ضَعِيفًۭا ۖ وَلَوْلَا رَهْطُكَ لَرَجَمْنَـٰكَ ۖ وَمَآ أَنتَ عَلَيْنَا بِعَزِيزٍۢ

क़ालू या शुऐबु मा नफ़्क़हु कसीरम्-मिम्मा तक़ूलु व इन्ना ल-नरा-क फीना ज़ईफ़न्, व लौ ला रह्तु-क ल-रजम्-ना
-क, वमा अन्-त अलैना बि-अज़ीज़
और वह लोग कहने लगे ऐ शोएब जो बाते तुम कहते हो उनमें से अक्सर तो हमारी समझ ही में नहीं आयी और इसमें तो शक नहीं कि हम तुम्हें अपने लोगों में बहुत कमज़ोर समझते है और अगर तुम्हारा क़बीला न हेाता तो हम तुम को (कब का) संगसार कर चुके होते और तुम तो हम पर किसी तरह ग़ालिब नहीं आ सकते।

11:92

قَالَ يَـٰقَوْمِ أَرَهْطِىٓ أَعَزُّ عَلَيْكُم مِّنَ ٱللَّهِ وَٱتَّخَذْتُمُوهُ وَرَآءَكُمْ ظِهْرِيًّا ۖ إِنَّ رَبِّى بِمَا تَعْمَلُونَ مُحِيطٌۭ

क़ा-ल या क़ौमि अ-रह्ती अ-अ़ज़्ज़ु अलैकुम् मिनल्लाहि, वत्तख़ज़्तुमूहु वरा-अकुम् ज़िह्-रिय्यन्, इन्-न रब्बी बिमा तअ्मलू-न मुहीत
शोएब ने कहा ऐ मेरी क़ौम! क्या मेरे कबीले का दबाव तुम पर अल्लाह से भी बढ़ कर है (कि तुम को उसका ये ख़्याल) और अल्लाह को तुम लोगों ने अपने वास्ते पीछे डाल दिया है बेशक मेरा परवरदिगार तुम्हारे सब आमाल पर अहाता किए हुए है।

11:93

وَيَـٰقَوْمِ ٱعْمَلُوا۟ عَلَىٰ مَكَانَتِكُمْ إِنِّى عَـٰمِلٌۭ ۖ سَوْفَ تَعْلَمُونَ مَن يَأْتِيهِ عَذَابٌۭ يُخْزِيهِ وَمَنْ هُوَ كَـٰذِبٌۭ ۖ وَٱرْتَقِبُوٓا۟ إِنِّى مَعَكُمْ رَقِيبٌۭ

व या क़ौमिअ्-मलू अला मकानतिकुम् इन्नी आमिलुन्, सौ-फ़ तअ्लमू-न, मंय्यअ्तीहि अज़ाबुंय्युख़्ज़ीहि व मन् हु-व काज़िबुन्, वर्तक़िबू इन्नी म-अ़कुम् रक़ीब
और ऐ मेरी क़ौम! तुम अपनी जगह (जो चाहो) करो मैं भी (बजाए खुद) कुछ करता हू अनक़रीब ही तुम्हें मालूम हो जाएगा कि किस पर अज़ाब नाजि़ल होता है जा उसको (लोगों की नज़रों में) रुसवा कर देगा और (ये भी मालूम हो जाएगा कि) कौन झूठा है तुम भी मुन्तिज़र रहो मैं भी तुम्हारे साथ इन्तेज़ार करता हूँ।

11:94

وَلَمَّا جَآءَ أَمْرُنَا نَجَّيْنَا شُعَيْبًۭا وَٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ مَعَهُۥ بِرَحْمَةٍۢ مِّنَّا وَأَخَذَتِ ٱلَّذِينَ ظَلَمُوا۟ ٱلصَّيْحَةُ فَأَصْبَحُوا۟ فِى دِيَـٰرِهِمْ جَـٰثِمِينَ

व लम्मा जा-अ-अम्रुना नज्जैना शुऐबंव्-वल्लज़ी-न आमनू म अ़हू बिरह्-मतिम्-मिन्ना व अ-ख-ज़तिल्लज़ी-न ज़-लमुस्सैहतु फ़-अस्बहू फी दियारिहिम् जासिमीन
और जब हमारा (अज़ाब का) हुक्म आ पहुँचा तो हमने शोऐब और उन लोगों को जो उसके साथ इमान लाए थे अपनी मेहरबानी से बचा लिया और जिन लोगों ने ज़ुल्म किया था उनको एक चिंघाड़ ने ले डाला फिर तो वह सबके सब अपने घरों में औंधे पड़े रह गए।

11:95

كَأَن لَّمْ يَغْنَوْا۟ فِيهَآ ۗ أَلَا بُعْدًۭا لِّمَدْيَنَ كَمَا بَعِدَتْ ثَمُودُ

कअल्लम् य़ग़्नौ फ़ीहा, अला बुअ्दल् लिमद्-य-न कमा बअिदत् समूद
(और वह ऐसे मर मिटे) कि गोया उन बस्तियों में कभी बसे ही न थे सुन रखो कि जिस तरह समूद (अल्लाह की बारगाह से) धुत्कारे गए उसी तरह एहले मदियन की भी धुत्कारी हुयी।

11:96

وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا مُوسَىٰ بِـَٔايَـٰتِنَا وَسُلْطَـٰنٍۢ مُّبِينٍ

व ल-क़द् अरसल्ना मूसा बिआयातिना व सुल्तानिम्-मुबीन
और बेशक हमने मूसा को अपनी निशनियाँ और रौशन दलील देकर।

11:97

إِلَىٰ فِرْعَوْنَ وَمَلَإِي۟هِۦ فَٱتَّبَعُوٓا۟ أَمْرَ فِرْعَوْنَ ۖ وَمَآ أَمْرُ فِرْعَوْنَ بِرَشِيدٍۢ

इला फिरऔ-न व म-लइही फत्तबअू अम्-र फ़िरऔ-न, वमा अम्-रू फ़िरऔ-न बि-रशीद
फिरौन और उसके अम्र (सरदारों) के पास (पैग़म्बर बना कर) भेजा तो लोगों ने फिरौन ही का हुक्म मान लिया (और मूसा की एक न सुनी) हालांकि फिरौन का हुक्म कुछ जॅचा समझा हुआ न था।

11:98

يَقْدُمُ قَوْمَهُۥ يَوْمَ ٱلْقِيَـٰمَةِ فَأَوْرَدَهُمُ ٱلنَّارَ ۖ وَبِئْسَ ٱلْوِرْدُ ٱلْمَوْرُودُ

यक़्दुमु क़ौमहू यौमल-क़ियामति फ़औ-र-दहुमुन्ना-र, व बिअ्सल विरदुल-मौरूद
क़यामत के दिन वह अपनी क़ौम के आगे आगे चलेगा और उनको दोज़ख़ में ले जाकर झोंक देगा और ये लोग किस क़दर बड़े घाट उतारे गए।

11:99

وَأُتْبِعُوا۟ فِى هَـٰذِهِۦ لَعْنَةًۭ وَيَوْمَ ٱلْقِيَـٰمَةِ ۚ بِئْسَ ٱلرِّفْدُ ٱلْمَرْفُودُ

व उत्बिअू फ़ी हाज़िही लअ्-नतंव्-व यौमल् क़ियामति, बिअ्सर्रिफ्दुल मरफूद
और (इस दुनिया) में भी लानत उनके पीछे पीछे लगा दी गई और क़यामत के दिन भी (लगी रहेगी) क्या बुरा इनाम है जो उन्हें मिला।

11:100

ذَٰلِكَ مِنْ أَنۢبَآءِ ٱلْقُرَىٰ نَقُصُّهُۥ عَلَيْكَ ۖ مِنْهَا قَآئِمٌۭ وَحَصِيدٌۭ

ज़ालि-क मिन् अम्बाइल्क़ुरा नक़ुस्सुहू अ़लै-क मिन्हा क़ाइमुंव्-व हसीद
(ऐ रसूल!) ये चन्द बस्तियों के हालात हैं जो हम तुम से बयान करते हैं उनमें से बाज़ तो (उस वक़्त तक) क़ायम हैं और बाज़ का तहस नहस हो गया।

11:101

وَمَا ظَلَمْنَـٰهُمْ وَلَـٰكِن ظَلَمُوٓا۟ أَنفُسَهُمْ ۖ فَمَآ أَغْنَتْ عَنْهُمْ ءَالِهَتُهُمُ ٱلَّتِى يَدْعُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ مِن شَىْءٍۢ لَّمَّا جَآءَ أَمْرُ رَبِّكَ ۖ وَمَا زَادُوهُمْ غَيْرَ تَتْبِيبٍۢ

व मा ज़लम्-ना हुम् व लाकिन् ज़-लमू अन्फु-सहुम् फ़मा अग्–नत् अन्हुम् आलि-हतुहुमुल्लती यद्अू-न मिन् दूनिल्लाहि मिन् शैइल्-लम्मा जा-अ अम्-रू रब्बि-क, वमा ज़ादूहुम् ग़ै-र तत्बीब
और हमने किसी तरह उन पर ज़ल्म नहीं किया बल्कि उन लोगों ने आप अपने ऊपर (नाफरमानी करके) ज़ुल्म किया फिर जब तुम्हारे परवरदिगार का (अज़ाब का) हुक्म आ पहुँचा तो न उसके वह माबूद ही काम आए जिन्हें अल्लाह को छोड़कर पुकारा करते थें और न उन माबूदों ने हलाक करने के सिवा कुछ फायदा ही पहुँचाया बल्कि उन्हीं की परसतिश की बदौलत अज़ाब आया।

11:102

وَكَذَٰلِكَ أَخْذُ رَبِّكَ إِذَآ أَخَذَ ٱلْقُرَىٰ وَهِىَ ظَـٰلِمَةٌ ۚ إِنَّ أَخْذَهُۥٓ أَلِيمٌۭ شَدِيدٌ

व कज़ालि-क अख़्ज़ु रब्बि-क इज़ा अ-ख़ज़ल्-क़ुरा व हि-य ज़ालि-मतुन्, इन्-न अख़्ज़हू अलीमुन् शदीद
और (ऐ रसूल) बस्तियों के लोगों की सरकशी से जब तुम्हारा परवरदिगार अज़ाब में पकड़ता है तो उसकी पकड़ ऐसी ही होती है बेशक पकड़ तो दर्दनाक (और सख़्त) होती है।

11:103

إِنَّ فِى ذَٰلِكَ لَـَٔايَةًۭ لِّمَنْ خَافَ عَذَابَ ٱلْـَٔاخِرَةِ ۚ ذَٰلِكَ يَوْمٌۭ مَّجْمُوعٌۭ لَّهُ ٱلنَّاسُ وَذَٰلِكَ يَوْمٌۭ مَّشْهُودٌۭ

इन्-न फ़ी ज़ालि-क लआयतल् लिमन् ख़ा-फ़ अ़ज़ाबल् आख़िरति, ज़ालि-क यौमुम् मज्मूअुल्, लहुन्नासु व ज़ालि-क यौमुम्-मश्हूद
इसमें तो शक नहीं कि उस शख़्स के वास्ते जो अज़ाब आख़िरत से डरता है (हमारी कुदरत की) एक निशानी है ये वह रोज़ होगा कि सारे (जहाँन) के लोग जमा किए जायंगे और यही वह दिन होगा कि (हमारी बारगाह में) सब हाजिर किए जायंगे।

11:104

وَمَا نُؤَخِّرُهُۥٓ إِلَّا لِأَجَلٍۢ مَّعْدُودٍۢ

व मा नु-अख़्ख़िरूहू इल्ला लि-अ जलिम् मअ्दूद
और हम बस एक मुअय्युन मुद्दत तक इसमें देर कर रहे है। जिस दिन वह आ पहुँचेगा तो बग़ैर हुक्मे अल्लाह कोई शख़्स बात भी तो नहीं कर सकेगा फिर।

11:105

يَوْمَ يَأْتِ لَا تَكَلَّمُ نَفْسٌ إِلَّا بِإِذْنِهِۦ ۚ فَمِنْهُمْ شَقِىٌّۭ وَسَعِيدٌۭ

यौ-म यअ्ति ला तकल्लमु नफ्सुन् इल्ला बि-इज़्-निही, फ़-मिन्हुम् शक़िय्युंव व सईद
कुछ लोग उनमे से बदबख़्त होगें और कुछ लोग नेक बख़्त।

11:106

فَأَمَّا ٱلَّذِينَ شَقُوا۟ فَفِى ٱلنَّارِ لَهُمْ فِيهَا زَفِيرٌۭ وَشَهِيقٌ

फ़-अम्मल्लज़ी न शक़ू फ़फ़िन्नारि लहुम् फ़ीहा ज़फ़ीरूंव्-व शहीक़
तो जो लोग बदबख़्त है वह दोज़ख़ में होगें और उसी में उनकी हाए वाए और चीख़ पुकार होगी।

11:107

خَـٰلِدِينَ فِيهَا مَا دَامَتِ ٱلسَّمَـٰوَٰتُ وَٱلْأَرْضُ إِلَّا مَا شَآءَ رَبُّكَ ۚ إِنَّ رَبَّكَ فَعَّالٌۭ لِّمَا يُرِيدُ

ख़ालिदी न फीहा मा दामतिस्समावातु वलअर्ज़ु इल्ला मा शा-अ रब्बु-क, इन्-न रब्ब-क फ़अ्आलुल्लिमा युरीद
वह लोग जब तक आसमान और ज़मीन में है हमेशा उसी मे रहेगें मगर जब तुम्हारा परवरदिगार (नजात देना) चाहे बेशक तुम्हारा परवरदिगार जो चाहता है कर ही डालता है।

11:108

۞ وَأَمَّا ٱلَّذِينَ سُعِدُوا۟ فَفِى ٱلْجَنَّةِ خَـٰلِدِينَ فِيهَا مَا دَامَتِ ٱلسَّمَـٰوَٰتُ وَٱلْأَرْضُ إِلَّا مَا شَآءَ رَبُّكَ ۖ عَطَآءً غَيْرَ مَجْذُوذٍۢ

व अम्मल्लज़ी-न सुअिदू फ़फ़िल्-जन्नति ख़ालिदी-न फ़ीहा मा दामतिस्समावातु वल् अर्ज़ु इल्ला मा शा-अ रब्बु-क, अताअन् ग़ै-र मज्जूज़
और जो लोग नेक बख़्त हैं वह तो बेहेशत में होगें (और) जब तक आसमान व ज़मीन (बाक़ी) है वह हमेशा उसी में रहेगें मगर जब तेरा परवरदिगार चाहे (सज़ा देकर आख़िर में जन्नत में ले जाए।

11:109

فَلَا تَكُ فِى مِرْيَةٍۢ مِّمَّا يَعْبُدُ هَـٰٓؤُلَآءِ ۚ مَا يَعْبُدُونَ إِلَّا كَمَا يَعْبُدُ ءَابَآؤُهُم مِّن قَبْلُ ۚ وَإِنَّا لَمُوَفُّوهُمْ نَصِيبَهُمْ غَيْرَ مَنقُوصٍۢ

फला तकु फ़ी मिर्यतिम् मिम्मा यअ्बुदु हा-उला-इ, मा यअ्बुदू-न इल्ला कमा यअ्बुदु आबाउहुम् मिन् क़ब्लु, व इन्ना लमुवफ्फूहुम् नसीबहुम् ग़ै-र मन्क़ूस
ये वह बख़्शिश है जो कभी मनक़तआ (खत्म) न होगी तो ये लोग (अल्लाह के अलावा) जिसकी परसतिश करते हैं तुम उससे शक में न पड़ना ये लोग तो बस वैसी इबादत करते हैं जैसी उनसे पहले उनके बाप दादा करते थे और हम ज़रुर (क़यामत के दिन) उनको (अज़ाब का) पूरा पूरा हिस्सा बग़ैर कम किए देगें।

11:110

وَلَقَدْ ءَاتَيْنَا مُوسَى ٱلْكِتَـٰبَ فَٱخْتُلِفَ فِيهِ ۚ وَلَوْلَا كَلِمَةٌۭ سَبَقَتْ مِن رَّبِّكَ لَقُضِىَ بَيْنَهُمْ ۚ وَإِنَّهُمْ لَفِى شَكٍّۢ مِّنْهُ مُرِيبٍۢ

व ल-क़द् आतैना मूसल् किता-ब फ़ख़्तुलि-फ़ फ़ीहि, वलौ ला कलि-मतुन् स-बक़त् मिर्रब्बि-क लक़ुज़ि-य बैनहुम, व इन्नहुम् लफ़ी शक्किम मिन्हु मुरीब
और हमने मूसा को किताब तौरैत अता की तो उसमें (भी) झगड़े डाले गए और अगर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से हुक्म कोइ पहले ही न हो चुका होता तो उनके दरमियान (कब का) फैसला यक़ीनन हो गया होता और ये लोग (कुफ़्फ़ारे मक्का) भी इस (क़ुरान) की तरफ से बहुत गहरे शक में पड़े हैं।

11:111

وَإِنَّ كُلًّۭا لَّمَّا لَيُوَفِّيَنَّهُمْ رَبُّكَ أَعْمَـٰلَهُمْ ۚ إِنَّهُۥ بِمَا يَعْمَلُونَ خَبِيرٌۭ

व इन्-न कुल्लल्-लम्मा लयुवफ्फियन्नहुम् रब्बु-क अअ्मालहुम, इन्नहू बिमा यअ्मलू-न ख़बीर
और इसमें तो शक ही नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार उनकी कारस्तानियों का बदला भरपूर देगा (क्यूंकि) जो उनकी करतूतें हैं उससे वह खूब वाकि़फ है।

11:112

فَٱسْتَقِمْ كَمَآ أُمِرْتَ وَمَن تَابَ مَعَكَ وَلَا تَطْغَوْا۟ ۚ إِنَّهُۥ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌۭ

फ़स्तक़िम् कमा उमिर्-त व मन् ता-ब म-अ-क वला तत्ग़ौ, इन्नहू बिमा तअ्मलू-न बसीर
तो (ऐ रसूल!) जैसा तुम्हें हुक्म दिया है तुम और वह लोग भी जिन्होंने तुम्हारे साथ (कुफ्र से) तौबा की है ठीक साबित क़दम रहो और सरकशी न करो (क्योंकि) तुम लोग जो कुछ भी करते हो वह यक़ीनन देख रहा है।

11:113

وَلَا تَرْكَنُوٓا۟ إِلَى ٱلَّذِينَ ظَلَمُوا۟ فَتَمَسَّكُمُ ٱلنَّارُ وَمَا لَكُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ مِنْ أَوْلِيَآءَ ثُمَّ لَا تُنصَرُونَ

व ला तर्कनू इलल्लज़ी-न ज़-लमू फ़-तमस्सकुमुन्नारू, वमा लकुम् मिन् दूनिल्लाहि मिन् औलिया-अ सुम्-म ला तुन्सरून
और (मुसलमानों) जिन लोगों ने (हमारी नाफरमानी करके) अपने ऊपर ज़ुल्म किया है उनकी तरफ माएल (झुकना) न होना और वरना तुम तक भी (दोज़ख़) की आग आ लपटेगी और अल्लाह के सिवा और लोग तुम्हारे सरपरस्त भी नहीं हैं फिर तुम्हारी मदद कोई भी नहीं करेगा।

11:114

وَأَقِمِ ٱلصَّلَوٰةَ طَرَفَىِ ٱلنَّهَارِ وَزُلَفًۭا مِّنَ ٱلَّيْلِ ۚ إِنَّ ٱلْحَسَنَـٰتِ يُذْهِبْنَ ٱلسَّيِّـَٔاتِ ۚ ذَٰلِكَ ذِكْرَىٰ لِلذَّٰكِرِينَ

व अक़िमिस्सला-त त-र फयिन्नहारि व ज़ु-लफम् मिनल्लैलि, इन्नल-ह-सनाति युज़्हिब्-नस् सय्यिआति, ज़ालि-क ज़िक्रा लिज़्ज़ाकिरीन
और (ऐ रसूल!) दिन के दोनो किनारे और कुछ रात गए नमाज़ पढ़ा करो (क्योंकि) नेकियाँ यक़ीनन गुनाहों को दूर कर देती हैं और (हमारी) याद करने वालो के लिए ये (बातें) नसीहत व इबरत हैं।

11:115

وَٱصْبِرْ فَإِنَّ ٱللَّهَ لَا يُضِيعُ أَجْرَ ٱلْمُحْسِنِينَ

वस्बिर् फ़-इन्नल्ला-ह ला युज़ीअु अज्रल्-मुह़्सिनीन
और (ऐ रसूल!) तुम सब्र करो क्योंकि अल्लाह नेकी करने वालों का अज्र बरबाद नहीं करता।

11:116

فَلَوْلَا كَانَ مِنَ ٱلْقُرُونِ مِن قَبْلِكُمْ أُو۟لُوا۟ بَقِيَّةٍۢ يَنْهَوْنَ عَنِ ٱلْفَسَادِ فِى ٱلْأَرْضِ إِلَّا قَلِيلًۭا مِّمَّنْ أَنجَيْنَا مِنْهُمْ ۗ وَٱتَّبَعَ ٱلَّذِينَ ظَلَمُوا۟ مَآ أُتْرِفُوا۟ فِيهِ وَكَانُوا۟ مُجْرِمِينَ

फ़लौ ला का-न मिनल्क़ुरूनि मिन् क़ब्लिकुम् उलू बक़िय्यतिंय्यन्हौ-न अनिल्फ़सादि फिल्अर्ज़ि इल्ला क़लीलम् मिम्-मन् अन्जैना मिन्हुम्, वत्त-बअ़ल्लज़ी-न ज़-लमू मा उत्रिफू फ़ीहि व कानू मुज्रिमीन
फिर जो लोग तुमसे पहले गुज़र चुके हैं उनमें कुछ लोग ऐसे अक़ल वाले क्यों न हुए जो (लोगों को) रुए ज़मीन पर फसाद फैलाने से रोका करते (ऐसे लोग थे तो) मगर बहुत थोड़े से और ये उन्हीं लोगों से थे जिनको हमने अज़ाब से बचा लिया और जिन लोगों ने नाफरमानी की थी वह उन्हीं (लज़्ज़तों) के पीछे पड़े रहे और जो उन्हें दी गई थी और ये लोग मुजरिम थे ही।

11:117

وَمَا كَانَ رَبُّكَ لِيُهْلِكَ ٱلْقُرَىٰ بِظُلْمٍۢ وَأَهْلُهَا مُصْلِحُونَ

वमा का-न रब्बु-क लियुह़्लिकल्-क़ुरा बिज़ुल्मिंव्-व अह्लुहा मुस्लिहून
और तुम्हारा परवरदिगार ऐसा (बे इन्साफ) कभी न था कि बस्तियों को जबरदस्ती उजाड़ देता और वहाँ के लोग नेक चलन हों।

11:118

وَلَوْ شَآءَ رَبُّكَ لَجَعَلَ ٱلنَّاسَ أُمَّةًۭ وَٰحِدَةًۭ ۖ وَلَا يَزَالُونَ مُخْتَلِفِينَ

व लौ शा-अ रब्बु-क ल-ज अ़लन्ना-स उम्मतंव्-वाहि-दतंव्-व ला यज़ालू-न मुख़्तलिफ़ीन
और अगर तुम्हारा परवरदिगार चाहता तो बेशक तमाम लोगों को एक ही (किस्म की) उम्मत बना देता (मगर) उसने न चाहा इसी (वजह से) लोग हमेशा आपस में फूट डाला करेगें।

11:119

إِلَّا مَن رَّحِمَ رَبُّكَ ۚ وَلِذَٰلِكَ خَلَقَهُمْ ۗ وَتَمَّتْ كَلِمَةُ رَبِّكَ لَأَمْلَأَنَّ جَهَنَّمَ مِنَ ٱلْجِنَّةِ وَٱلنَّاسِ أَجْمَعِينَ

इल्ला मर्राहि-म रब्बु-क, व लिज़ालि-क ख-ल-क़हुम्, व तम्मत् कलि-मतु रब्बि-क ल-अम्ल-अन्-न जहन्न-म मिनल्-जिन्नति वन्नासि अज्मईन
मगर जिस पर तुम्हारा परवरदिगार रहम फरमाए और इसलिए तो उसने उन लोगों को पैदा किया (और इसी वजह से तो) तुम्हारा परवरदिगार का हुक्म क़तई पूरा होकर रहा कि हम यक़ीनन जहन्नुम को तमाम जिन्नात और आदमियों से भर देगें।

11:120

وَكُلًّۭا نَّقُصُّ عَلَيْكَ مِنْ أَنۢبَآءِ ٱلرُّسُلِ مَا نُثَبِّتُ بِهِۦ فُؤَادَكَ ۚ وَجَآءَكَ فِى هَـٰذِهِ ٱلْحَقُّ وَمَوْعِظَةٌۭ وَذِكْرَىٰ لِلْمُؤْمِنِينَ

व कुल्लन् नक़ुस्सु अ़लै-क मिन् अम्बाइर्रूसुलि मा नुसब्बितु बिही फुआद-क, व जाअ-क फी हाज़िहिल्-हक़्क़ु व मौअि-ज़तुंव्-व ज़िक्रा लिल्मुअ्मिनीन
और (ऐ रसूल!) पैग़म्बरों के हालत में से हम उन तमाम कि़स्सों को तुम से बयान किए देते हैं जिनसे हम तुम्हारे दिल को मज़बूत कर देगें और उन्हीं क़िस्सों में तुम्हारे पास हक़ (क़ुरान) और मोमिनीन के लिए नसीहत और याद दहानी भी आ गई।

11:121

وَقُل لِّلَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ ٱعْمَلُوا۟ عَلَىٰ مَكَانَتِكُمْ إِنَّا عَـٰمِلُونَ

व क़ुल लिल्लज़ी-न ला युअ्मिनून अ्मलू अ़ला मकानतिकुम्, इन्ना आ़मिलून
और (ऐ रसूल!) जो लोग ईमान नहीं लाते उनसे कहो कि तुम बजाए ख़ुद अमल करो हम भी कुछ (अमल) करते हैं।

11:122

وَٱنتَظِرُوٓا۟ إِنَّا مُنتَظِرُونَ

वन्तज़िरू, इन्ना मुन्तज़िरून
(नतीजे का) तुम भी इन्तज़ार करो हम (भी) मुन्तिजि़र है।

11:123

وَلِلَّهِ غَيْبُ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ وَإِلَيْهِ يُرْجَعُ ٱلْأَمْرُ كُلُّهُۥ فَٱعْبُدْهُ وَتَوَكَّلْ عَلَيْهِ ۚ وَمَا رَبُّكَ بِغَـٰفِلٍ عَمَّا تَعْمَلُونَ

व लिल्लाहि ग़ैबुस्समावाति वल्अर्ज़ि व इलैहि युर्जअुल् -अम्रू कुल्लुहू फ़अ्बुद्हु व तवक्कल् अ़लैहि व मा रब्बु-क बिग़ाफ़िलिन् अम्मा तअ्मलून
और सारे आसमान व ज़मीन की पोशीदा बातों का इल्म ख़ास अल्लाह ही को है और उसी की तरफ हर काम हिर फिर कर लौटता है तुम उसी की इबादत करो और उसी पर भरोसा रखो और जो कुछ तुम लोग करते हो उससे अल्लाह बेख़बर नहीं।

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