Surah At Tawbah In Hindi [9:1-9:129]

यह सूरह मदनी है और इसमें 129 आयतें हैं।

  • इस सूरह में तौबा की शुभ संदेश तथा वचन भंग करने वाले काफिरों से विरक्त होने की घोषणा की गई है। इसलिए इसका नाम सूरतुत्तौबा और सूरतुल बराआत (विरक्ति) दोनों है।
  • यह सूरह हिजरी 8-9 के बीच मक्का विजय के पश्चात् समय-समय पर नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर उतरी। हिजरी 9 में जब आपने अबू बक्र (रज़ियल्लाहु अनहु) को हज का अमीर बनाकर भेजा, तो इसकी आरंभिक आयतें उतरीं। और यह घोषित किया गया कि काफिरों से संधि तोड़ दी गई है तथा अहले किताब से संबंधित इस्लामी शासन की नीति बताते हुए उन्हें सावधान किया गया।
  • इसमें इस्लामी वर्ष और महीनों का पालन करने का निर्देश दिया गया।
  • तबूक के युद्ध के लिए मुसलमानों को उभारा गया तथा मुनाफिकों की निंदा की गई, जो जिहाद से बचते थे।
  • यह बताया गया कि ज़कात किन्हें दी जाए। और ईमान वालों को सफलता की शुभ संदेश दी गई। मुनाफिकों के साथ जिहाद करने का आदेश दिया गया और उन्हें सुधरने तथा अल्लाह और रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की आज्ञा पालन करने को कहा गया, अन्यथा वे अपने ईमान के दावे में झूठे हैं।
  • नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के सच्चे साथियों को शुभ संदेश देने के साथ ग्रामीण वासियों को उनके निफाक पर धमकी दी गई।
  • जिहाद से बचने वालों के झूठ को उजागर किया गया और ईमानवालों के दोषों को क्षमा करने का एलान किया गया। मुनाफिकों द्वारा मस्जिद बनाकर षड्यंत्र रचने का भंडाफोड़ किया गया तथा मुशरिकों के लिए क्षमा की प्रार्थना करने से रोका गया। साथ ही मदीना के आस-पास के ग्रामीणों को नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के लिए जान देने तथा धर्म को समझने के निर्देश दिए गए।
  • ईमानवालों को जिहाद का निर्देश दिया गया और मुनाफिकों को अंतिम चेतावनी दी गई।
  • अंत में कहा गया कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तुम्हारी केवल भलाई चाहते हैं। इसलिए यदि तुम उनका आदर करोगे तो तुम्हारा ही भला होगा।

सूरह अत-तौबा हिंदी में पढ़ें

بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ

बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।

9:1

بَرَآءَةٌۭ مِّنَ ٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦٓ إِلَى ٱلَّذِينَ عَـٰهَدتُّم مِّنَ ٱلْمُشْرِكِينَ

बराअतुम्-मिनल्लाहि व रसूलिहि इलल्लज़ी-न आहत्तुम् मिनल मुश्रिकीन
(ऐ मुसलमानों!) जिन मुशरिकों से तुम लोगों ने सुलह का समझौता किया था अब अल्लाह और उसके रसूल की तरफ से संधि मुक्त होने की घोषणा है।

9:2

فَسِيحُوا۟ فِى ٱلْأَرْضِ أَرْبَعَةَ أَشْهُرٍۢ وَٱعْلَمُوٓا۟ أَنَّكُمْ غَيْرُ مُعْجِزِى ٱللَّهِ ۙ وَأَنَّ ٱللَّهَ مُخْزِى ٱلْكَـٰفِرِينَ

फ़सीहू फ़िल्अर्ज़ि अर्ब-अ-त अश्हुरिंव्व अ्लमू अन्नकुम् ग़ैरू मुअ्जिज़िल्लाहि, व अन्नल्ला-ह मुख़्ज़िल-काफ़िरीन
तो (ऐ मुशरिकों!) बस तुम चार महीने (ज़ीकादा, जिल हिज्जा, मुहर्रम, रजब) तो (चैन से बेख़तर) धरती में घूम फिर लो और ये समझते रहे कि तुम (किसी तरह) अल्लाह को विवश नहीं कर सकते और ये भी कि अल्लाह काफि़रों को ज़रूर अपमानित करके रहेगा।

9:3

وَأَذَٰنٌۭ مِّنَ ٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦٓ إِلَى ٱلنَّاسِ يَوْمَ ٱلْحَجِّ ٱلْأَكْبَرِ أَنَّ ٱللَّهَ بَرِىٓءٌۭ مِّنَ ٱلْمُشْرِكِينَ ۙ وَرَسُولُهُۥ ۚ فَإِن تُبْتُمْ فَهُوَ خَيْرٌۭ لَّكُمْ ۖ وَإِن تَوَلَّيْتُمْ فَٱعْلَمُوٓا۟ أَنَّكُمْ غَيْرُ مُعْجِزِى ٱللَّهِ ۗ وَبَشِّرِ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ بِعَذَابٍ أَلِيمٍ

व अज़ानुम् मिनल्लाहि व रसूलिही इलन्नासि यौमल्- हज्जिल्-अक्बरि अन्नल्ला-ह बरीउम् मिनल्-मुश्रिकी-न, व रसूलुहू, फ़-इन्तुब्तुम् फहु-व ख़ैरूल्लकुम्, व इन् तवल्लैतुम् फअ्लमू अन्नकुम् ग़ैरू मुअ्जिज़िल्लाहि, व बश्शिरिल्लज़ी-न क-फरू बि-अ़ज़ाबिन अलीम
और अल्लाह और उसके रसूल की तरफ से, बड़े हज के दिन (तुम) लोगों को मुनादी की जाती है कि अल्लाह और उसका रसूल मुशरिकों के प्रति ज़िम्मेदारी से बरी है तो (मुशरिकों) अगर तुम लोगों ने (अब भी) क्षमा याचना की तो तुम्हारे लिए यही अच्छा है और अगर तुम लोगों ने (इससे भी) मुह मोड़ा तो समझ लो कि तुम लोग अल्लाह को हरगिज़ विवश नहीं कर सकते और इनकार करनेवालों के लिए एक दुखद यातना की ख़ुश ख़बरी दे दो।

9:4

إِلَّا ٱلَّذِينَ عَـٰهَدتُّم مِّنَ ٱلْمُشْرِكِينَ ثُمَّ لَمْ يَنقُصُوكُمْ شَيْـًۭٔا وَلَمْ يُظَـٰهِرُوا۟ عَلَيْكُمْ أَحَدًۭا فَأَتِمُّوٓا۟ إِلَيْهِمْ عَهْدَهُمْ إِلَىٰ مُدَّتِهِمْ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ يُحِبُّ ٱلْمُتَّقِينَ

इल्लल्लज़ी-न आहत्तुम् मिनल मुश्रिकी-न सुम्म लम् यन्क़ुसूकुम् शैअंव्-व लम् युज़ाहिरू अलैकुम् अ-हदन् फ़-अतिम्मू इलैहिम् अह्-दहुम् इला मुद्दतिहिम्, इन्नल्ला-ह युहिब्बुल-मुत्तक़ीन
मगर (हाँ) जिन मुशरिकों से तुमने संधि किया था फिर उन लोगों ने भी कभी कुछ तुमसे वचन को पूर्ण करने में कोई  कमी नहीं की और न तुम्हारे मुक़ाबले में किसी की मदद की हो तो उनके संधि को जितनी समय के लिए निर्धारित किया है पूरा कर दो। निश्चय ही अल्लाह आज्ञाकारियों से प्रेम करता है।

9:5

فَإِذَا ٱنسَلَخَ ٱلْأَشْهُرُ ٱلْحُرُمُ فَٱقْتُلُوا۟ ٱلْمُشْرِكِينَ حَيْثُ وَجَدتُّمُوهُمْ وَخُذُوهُمْ وَٱحْصُرُوهُمْ وَٱقْعُدُوا۟ لَهُمْ كُلَّ مَرْصَدٍۢ ۚ فَإِن تَابُوا۟ وَأَقَامُوا۟ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتَوُا۟ ٱلزَّكَوٰةَ فَخَلُّوا۟ سَبِيلَهُمْ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٌۭ رَّحِيمٌۭ

फ़-इज़न्स-लखल् अश्हुरूल्-हुरूमु फक़्तुलुल्- मुश्रिकी-न हैसु वजत्तुमूहूम् व ख़ुज़ूहुम् वह्सुरुहुम् वक़्अुदू लहुम् कुल-ल मर्सदिन्, फ़-इन् ताबू व अक़ामुस्सला-त व आतवुज़्ज़का-त फ़-ख़ल्लू सबीलहुम्, इन्नल्ला-ह ग़फूरुर्रहीम
फिर जब पवित्रता के चार महीने गुज़र जाएँ तो मुशरिको को जहाँ पाओ कत्ल करो और उनको गिरफ्तार कर लो और उनको कै़द करो और हर घात की जगह में उनकी ताक में बैठो फिर अगर वह लोग (अब भी शिर्क से) तौबा कर लें और नमाज़ पढ़ने लगें और ज़कात दे तो उनकी मार्ग छोड़ दो। बेशक अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है।

9:6

وَإِنْ أَحَدٌۭ مِّنَ ٱلْمُشْرِكِينَ ٱسْتَجَارَكَ فَأَجِرْهُ حَتَّىٰ يَسْمَعَ كَلَـٰمَ ٱللَّهِ ثُمَّ أَبْلِغْهُ مَأْمَنَهُۥ ۚ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمْ قَوْمٌۭ لَّا يَعْلَمُونَ

व इन् अ-हदुम् मिनल् मुश्रिकीनस्तजार-क फ- अजिरहु हत्ता यस्म-अ कलामल्लाहि सुम्-म अब्लिग़्हु मअ् म-नहू, ज़ालि-क बिअन्नहुम् क़ौमुल्ला यअ्लमून
और (ऐ रसूल!) अगर मुशरिकीन में से कोई तुमसे पनाह मागें, तो उसको पनाह दे दो यहाँ तक कि वह अल्लाह का कलाम सुन ले फिर उसे उसके सुरक्षित स्थान पर वापस पहुँचा दो, ये इसलिए कि वे ज्ञान नहीं रखते।

9:7

كَيْفَ يَكُونُ لِلْمُشْرِكِينَ عَهْدٌ عِندَ ٱللَّهِ وَعِندَ رَسُولِهِۦٓ إِلَّا ٱلَّذِينَ عَـٰهَدتُّمْ عِندَ ٱلْمَسْجِدِ ٱلْحَرَامِ ۖ فَمَا ٱسْتَقَـٰمُوا۟ لَكُمْ فَٱسْتَقِيمُوا۟ لَهُمْ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ يُحِبُّ ٱلْمُتَّقِينَ

कै-फ़ यकूनु लिल्मुश्रिकी-न अह़्दुन् अिन्दल्लाहि व अिन्-द रसूलिही इल्लल्लज़ी-न आहत्तुम् अिन्दल् मस्जिदिल्-हरामि, फ़मस्तक़ामू लकुम् फ़स्तक़ीमू लहुम्, इन्नल्ला-ह युहिब्बुल मुत्तक़ीन
(जब) मुशरिकीन ने ख़ुद संधि तोड़ा तो उन की कोई संधि अल्लाह के नज़दीक और उसके रसूल के नज़दीक क्योंकर (क़ायम) रह सकता है? मगर जिन लोगों से तुमने मस्जिदे-हराम के पास संधि किया था। तो वह लोग (अपनी संधि) तुमसे क़ायम रखना चाहें तो तुम भी उन से (अपनी संधि) क़ायम रखो। वास्तव में, अल्लाह आज्ञाकारियों से प्रेम करता है।

9:8

كَيْفَ وَإِن يَظْهَرُوا۟ عَلَيْكُمْ لَا يَرْقُبُوا۟ فِيكُمْ إِلًّۭا وَلَا ذِمَّةًۭ ۚ يُرْضُونَكُم بِأَفْوَٰهِهِمْ وَتَأْبَىٰ قُلُوبُهُمْ وَأَكْثَرُهُمْ فَـٰسِقُونَ

कै-फ़ व इंय्य़ज़्हरू अलैकुम् ला यरक़ुबू फ़ीकुम् इल्लंव् -व ला ज़िम्म-तन्, युर्ज़ुनकुम् बिअफ़्वाहिहिम् व तअ्बा क़ुलूबुहुम्, व अक्सरूहुम् फ़ासिक़ून
(उनकी संधि) क्योंकर (रह सकती है) जब (उनकी ये हालत है) कि अगर तुम पर अधिकार पा जाए तो तुम्हारे में न तो रिश्ते नाते ही का लिहाज़ करेगें  तो किसी संधि और किसी वचन का पालन नहीं करेंगे। ये लोग तुम्हें अपनी ज़बानी (जमा खर्च में) खुश कर देते हैं हालाँकि उनके दिल नहीं मानते और उनमें के अधिकांश तो अवज्ञाकारी हैं।

9:9

ٱشْتَرَوْا۟ بِـَٔايَـٰتِ ٱللَّهِ ثَمَنًۭا قَلِيلًۭا فَصَدُّوا۟ عَن سَبِيلِهِۦٓ ۚ إِنَّهُمْ سَآءَ مَا كَانُوا۟ يَعْمَلُونَ

इश्तरौ बिआयातिल्लाहि स-मनन् क़लीलन् फ़-सद्दू अन् सबीलिही, इन्नहुम् सा-अ मा कानू यअ्मलून
और उन लोगों ने अल्लाह की आयतों के बदले थोड़ी सी क़ीमत हासिल करके (लोगों को) अल्लाह की राह से रोक दिया। बेशक ये लोग जो कुछ करते हैं ये बहुत ही बुरा है।

9:10

لَا يَرْقُبُونَ فِى مُؤْمِنٍ إِلًّۭا وَلَا ذِمَّةًۭ ۚ وَأُو۟لَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلْمُعْتَدُونَ

ला यर्क़ुबू-न फी मुअ्मिनिन् इल्लंव्-व ला ज़िम्म-तन्, व उलाइ-क हुमुल मुअ्तदून
ये लोग किसी मोमिन के बारे में न तो नाते-रिश्ते का ख़याल रखते हैं और न क़ौल का क़रार का और वही उल्लंघनकारी हैं।

9:11

فَإِن تَابُوا۟ وَأَقَامُوا۟ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتَوُا۟ ٱلزَّكَوٰةَ فَإِخْوَٰنُكُمْ فِى ٱلدِّينِ ۗ وَنُفَصِّلُ ٱلْـَٔايَـٰتِ لِقَوْمٍۢ يَعْلَمُونَ

फ़-इन् ताबू व अक़ामुस्सला-त व आतवुज़्ज़का-त फ़- इख़्वानुकुम् फ़िद्दीनि, व नुफस्सिलुल्-आयाति लिकौमिंय्य अ्लमून
तो अगर (शिर्क से) तौबा करें और नमाज़ पढ़ने लगें और ज़कात दें तो तुम्हारे धर्म भाई हैं और हम उन लोगों के लिए आयतों का वर्णन कर हे हैं, जो ज्ञान रखते हों।

9:12

وَإِن نَّكَثُوٓا۟ أَيْمَـٰنَهُم مِّنۢ بَعْدِ عَهْدِهِمْ وَطَعَنُوا۟ فِى دِينِكُمْ فَقَـٰتِلُوٓا۟ أَئِمَّةَ ٱلْكُفْرِ ۙ إِنَّهُمْ لَآ أَيْمَـٰنَ لَهُمْ لَعَلَّهُمْ يَنتَهُونَ

व इन्न-कसू ऐमानहुम् मिम्-बअ्दि अह़्दिहिम् व त -अनू फी दीनिकुम् फ़क़ातिलू अ-इम्मतल्-कुफ्रि, इन्नहुम् ला ऐमा-न लहुम् लअ़ल्लहुम् यन्तहून
और अगर ये लोग अपना वचन देने के पश्चात अपनी क़समें तोड़ डालें और तुम्हारे धर्म की निंदा करें, तो तुम कुफ्र के प्रमुखों से खूब लड़ाई करो उनकी क़समें का हरगिज़ कोई विश्वास नहीं, ताकि वे (अत्याचार से) रुक जायेँ।

9:13

أَلَا تُقَـٰتِلُونَ قَوْمًۭا نَّكَثُوٓا۟ أَيْمَـٰنَهُمْ وَهَمُّوا۟ بِإِخْرَاجِ ٱلرَّسُولِ وَهُم بَدَءُوكُمْ أَوَّلَ مَرَّةٍ ۚ أَتَخْشَوْنَهُمْ ۚ فَٱللَّهُ أَحَقُّ أَن تَخْشَوْهُ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ

अला तुक़ातिलू-न क़ौमन् न कसू ऐमानहुम् व हम्मू बि -इख़्राजिर्रसूलि व हुम् ब-दऊकुम् अव्व-ल मर्रतिन्, अतख़्शौनहुम् फ़ल्लाहु अहक़्क़ु अन् तख़्शौहु इन् कुन्तुम् मुअ्मिनीन
(मुसलमानों!) भला तुम उन लोगों से क्यों नहीं लड़ते जिन्होंने अपनी क़समों को तोड़ डाला और रसूल को निकाल बाहर करना (अपने दिल में) ठान लिया था और उन्होंने ही युध्द का आरंभ किया है? क्या तुम उनसे डरते हो? तो अगर तुम सच्चे ईमानदार हो तो अल्लाह उनसे कहीं बढ़ कर तुम्हारे डरने के क़ाबिल है। (आयत संख्या 7 से लेकर 13 तक यह बताया गया है कि शत्रु ने निरन्तर संधि को तोड़ा है। और तुम्हें युध्द के लिये बाध्य कर दिया है। अब उन के अत्याचार और आक्रमण को रोकने का यही उपाय रह गया है कि उन से युध्द किया जाये।)

9:14

قَـٰتِلُوهُمْ يُعَذِّبْهُمُ ٱللَّهُ بِأَيْدِيكُمْ وَيُخْزِهِمْ وَيَنصُرْكُمْ عَلَيْهِمْ وَيَشْفِ صُدُورَ قَوْمٍۢ مُّؤْمِنِينَ

क़ातिलूहुम् युअ़ज़्ज़िबहुमुल्लाहु बिऐदीकुम व युख़्ज़िहिम् व यन्सुरकुम् अलैहिम् व यश्फि सुदू-र क़ौमिम्-मुअ्मिनीन
इनसे बेख़ौफ युध्द करो, अल्लाह तुम्हारे हाथों उन्हें दण्ड देगा, और उन्हें अपमानित करेगा और तुम्हें उन पर विजयी करेगा और ईमान वालों के दिलों का सब दुःख दूर करेगा।

9:15

وَيُذْهِبْ غَيْظَ قُلُوبِهِمْ ۗ وَيَتُوبُ ٱللَّهُ عَلَىٰ مَن يَشَآءُ ۗ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ

व युज़्हिब् ग़ै-ज़ क़ुलूबिहिम्, व यतूबुल्लाहु अ़ला मंय्यशा-उ, वल्लाहु अलीमुन् हकीम
और उन मोनिनीन के दिलों का क्रोध मिटाएगा, (जो कुफ़्फ़ार से पहुँचती है) और अल्लाह जिसपर चाहेगा, दया करेगा और अल्लाह अति ज्ञानी, नीतिज्ञ है।

9:16

أَمْ حَسِبْتُمْ أَن تُتْرَكُوا۟ وَلَمَّا يَعْلَمِ ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ جَـٰهَدُوا۟ مِنكُمْ وَلَمْ يَتَّخِذُوا۟ مِن دُونِ ٱللَّهِ وَلَا رَسُولِهِۦ وَلَا ٱلْمُؤْمِنِينَ وَلِيجَةًۭ ۚ وَٱللَّهُ خَبِيرٌۢ بِمَا تَعْمَلُونَ

अम् हसिब्तुम् अन् तुत्रकू व लम्मा यअ्- लमिल्लाहुल्लज़ी-न जाहदू मिन्कुम् व लम् यत्तख़िज़ू मिन् दूनिल्लाहि व ला रसूलिही व लल्मुअ्मिनी-न वली-जतन्, वल्लाहु ख़बीरूम्-बिमा तअ्मलून 
क्या तुमने ये समझ लिया है कि तुम (यॅू ही) छोड़ दिए जाओगे और अभी तक तो अल्लाह ने उन लोगों को छाँटा ही नहीं, जो तुम में के (राहे अल्लाह में) जिहाद करते हैं और अल्लाह और उसके रसूल और मोमेनीन के सिवा किसी को अपना राज़दार दोस्त नहीं बनाते और जो कुछ भी तुम करते हो, अल्लाह उसकी ख़बर रखता है।

9:17

مَا كَانَ لِلْمُشْرِكِينَ أَن يَعْمُرُوا۟ مَسَـٰجِدَ ٱللَّهِ شَـٰهِدِينَ عَلَىٰٓ أَنفُسِهِم بِٱلْكُفْرِ ۚ أُو۟لَـٰٓئِكَ حَبِطَتْ أَعْمَـٰلُهُمْ وَفِى ٱلنَّارِ هُمْ خَـٰلِدُونَ

मा का-न लिल्मुश्रिकी-न अंय्यअ्मुरू मसाजिदल्लाहि शाहिदी न अ़ला अन्फुसिहिम् बिल्कुफ्रि, उलाइ-क हबितत् अअ्मालुहुम्, व फिन्नारि हुम् ख़ालिदून
मुश्रिकों का ये काम नहीं कि जब वह अपने कुफ्र का ख़ुद इक़रार करते है, तो अल्लाह की मस्जिदों को (जाकर) आबाद करे, यही वह लोग हैं जिनका किया कराया सब व्यर्थ हो गया और ये लोग हमेशा नरक में रहेंगे।

9:18

إِنَّمَا يَعْمُرُ مَسَـٰجِدَ ٱللَّهِ مَنْ ءَامَنَ بِٱللَّهِ وَٱلْيَوْمِ ٱلْـَٔاخِرِ وَأَقَامَ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتَى ٱلزَّكَوٰةَ وَلَمْ يَخْشَ إِلَّا ٱللَّهَ ۖ فَعَسَىٰٓ أُو۟لَـٰٓئِكَ أَن يَكُونُوا۟ مِنَ ٱلْمُهْتَدِينَ

इन्नमा यअ्मुरू मसाजिदल्लाहि मन् आम-न बिल्लाहि वल्यौमिल्-आख़िरि व अक़ामस्सला-त व आतज़्ज़का-त व लम् यख़्-श इल्लल्ला-ह, फ़-अ़सा उलाइ-क अंय्यकूनू मिनल् मुह्तदीन
अल्लाह की मस्जिदों को बस सिर्फ वहीं शख़्स (जाकर) आबाद कर सकता है जो अल्लाह और रोजे़ आख़िरत पर ईमान लाए और नमाज़ पढ़ा करे और ज़कात देता रहे और अल्लाह के सिवा (और) किसी से न डरे। तो आशा है कि वही सीधी राह चलेंगे।

9:19

۞ أَجَعَلْتُمْ سِقَايَةَ ٱلْحَآجِّ وَعِمَارَةَ ٱلْمَسْجِدِ ٱلْحَرَامِ كَمَنْ ءَامَنَ بِٱللَّهِ وَٱلْيَوْمِ ٱلْـَٔاخِرِ وَجَـٰهَدَ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ ۚ لَا يَسْتَوُۥنَ عِندَ ٱللَّهِ ۗ وَٱللَّهُ لَا يَهْدِى ٱلْقَوْمَ ٱلظَّـٰلِمِينَ

अ-जअ़ल्तुम् सिक़ा-यतल्-हाज्जि व अिमा-रतल् मस्जिदिल्-हरामि कमन् आम-न बिल्लाहि वल्यौमिल्-आख़िरि व जाह-द फी सबीलिल्लाहि, ला यस्तवू-न अिन्दल्लाहि, वल्लाहु ला यह़्दिल् क़ौमज़्ज़ालिमीन
क्या तुमने हाजियों को पानी पिलाने और मस्जिदे-हराम (काबा) के प्रबंध को उस व्यक्ति के काम के बराबर ठहरा लिया है, जो अल्लाह और अंतिम दिन पर ईमान लाया और अल्लाह के राह में जेहाद किया? अल्लाह के नज़दीक तो ये लोग बराबर नहीं और अल्लाह अत्याचारियों को सुपथ नहीं दिखाता।

9:20

ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَهَاجَرُوا۟ وَجَـٰهَدُوا۟ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ بِأَمْوَٰلِهِمْ وَأَنفُسِهِمْ أَعْظَمُ دَرَجَةً عِندَ ٱللَّهِ ۚ وَأُو۟لَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلْفَآئِزُونَ

अल्लज़ी-न आमनू व हाजरू व जाहदू फ़ी सबीलिल्लाहि बिअम्वालिहिम् व अन्फुसिहिम्, अअ् -ज़मु द-र-जतन् अिन्दल्लाहि, व उलाइ-क हुमुल् फ़ाइज़ून
जिन लोगों ने ईमान क़़ुबूल किया और (अल्लाह के लिए) हिजरत कर गये और अपने मालों से और अपनी जानों से अल्लाह की राह में जिहाद किया, वह लोग अल्लाह के नज़दीक दर्जें में कही बढ़ कर हैं और वही सफल होने वाले हैं।

9:21

يُبَشِّرُهُمْ رَبُّهُم بِرَحْمَةٍۢ مِّنْهُ وَرِضْوَٰنٍۢ وَجَنَّـٰتٍۢ لَّهُمْ فِيهَا نَعِيمٌۭ مُّقِيمٌ

युबश्शिरूहुम् रब्बुहुम् बिरह़्मतिम् मिन्हु व रिज़्वानिंव्-व जन्नातिल् लहुम् फ़ीहा नईमुम्-मुक़ीम
उनका परवरदिगार उनको अपनी मेहरबानी और प्रसन्नता और ऐसे (हरे भरे) बाग़ों की ख़ुशख़बरी देता है जिसमें उनके लिए स्थायी सुख के साधन हैं।

9:22

خَـٰلِدِينَ فِيهَآ أَبَدًا ۚ إِنَّ ٱللَّهَ عِندَهُۥٓ أَجْرٌ عَظِيمٌۭ

ख़ालिदी-न फ़ीहा अ-बदन्, इन्नल्ला-ह अिन्दहू अज्रुन् अज़ीम
और ये लोग उन बाग़ों में हमेशा-हमेशा तक रहेंगे। बेशक अल्लाह के पास तो बड़ा बड़ा अज्र व (सवाब) है।

9:23

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ لَا تَتَّخِذُوٓا۟ ءَابَآءَكُمْ وَإِخْوَٰنَكُمْ أَوْلِيَآءَ إِنِ ٱسْتَحَبُّوا۟ ٱلْكُفْرَ عَلَى ٱلْإِيمَـٰنِ ۚ وَمَن يَتَوَلَّهُم مِّنكُمْ فَأُو۟لَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلظَّـٰلِمُونَ

या अय्युहल्लज़ीन आमनू ला तत्तख़िज़ू आबा-अकुम् व इख़्वानकुम् औलिया-अ इनिस्त हब्बुल् कुफ्-र अलल् ईमानि, व मंय्य-तवल्लहुम् मिन्कुम् फ़-उलाइ-क हुमुज़्ज़ालिमून
ऐ ईमानदारों! अगर तुम्हारे माँ बाप और तुम्हारे (बहन) भाई ईमान के मुक़ाबले कुफ्र को तरजीह देते हो तो तुम उनको (अपना) हमदर्द न समझो और तुममें जो शख़्स उनसे मित्रता रखेगा तो यही लोग ज़ालिम है।

9:24

قُلْ إِن كَانَ ءَابَآؤُكُمْ وَأَبْنَآؤُكُمْ وَإِخْوَٰنُكُمْ وَأَزْوَٰجُكُمْ وَعَشِيرَتُكُمْ وَأَمْوَٰلٌ ٱقْتَرَفْتُمُوهَا وَتِجَـٰرَةٌۭ تَخْشَوْنَ كَسَادَهَا وَمَسَـٰكِنُ تَرْضَوْنَهَآ أَحَبَّ إِلَيْكُم مِّنَ ٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ وَجِهَادٍۢ فِى سَبِيلِهِۦ فَتَرَبَّصُوا۟ حَتَّىٰ يَأْتِىَ ٱللَّهُ بِأَمْرِهِۦ ۗ وَٱللَّهُ لَا يَهْدِى ٱلْقَوْمَ ٱلْفَـٰسِقِينَ

क़ुल् इन् का-न आबाउकुम् व अब्-नाउकुम् व इख़्वानुकुम् व अज़्वाजुकुम् व अ़शीरतुकुम् व अम्वालु -निक़्त-रफ्तुमूहा व तिजारतुन् तख़्शौ न कसादहा व मसाकिनु तरज़ौनहा अहब्-ब इलैकुम मिनल्लाहि व रसूलिही व जिहादिन् फी सबीलिही फ़ तरब्बसू हत्ता यअ्तियल्लाहु बिअम्रिही, वल्लाहु ला यह़्दिल क़ौमल्-फ़ासिक़ीन
(ऐ रसूल!) तुम कह दो, तुम्हारे बाप, दादा और तुम्हारे बेटे और तुम्हारे भाई बन्द और तुम्हारी बीबियाँ और तुम्हारे रिश्ते-नातेवाले और वह माल जो तुमने कमा के रख छोड़ा हैं और वह तिजारत जिसके मन्द पड़ जाने का तुम्हें भय है और वह घर जिन्हें तुम पसन्द करते हो, अगर तुम्हें अल्लाह से और उसके रसूल से और उसकी राह में जिहाद करने से ज़्यादा पसन्द है, तो तुम ज़रा ठहरो, यहाँ तक कि अल्लाह अपना फ़ैसला (अज़ाब) ले आए और अल्लाह नाफरमान लोगों को मार्ग नहीं दिखाता।

9:25

لَقَدْ نَصَرَكُمُ ٱللَّهُ فِى مَوَاطِنَ كَثِيرَةٍۢ ۙ وَيَوْمَ حُنَيْنٍ ۙ إِذْ أَعْجَبَتْكُمْ كَثْرَتُكُمْ فَلَمْ تُغْنِ عَنكُمْ شَيْـًۭٔا وَضَاقَتْ عَلَيْكُمُ ٱلْأَرْضُ بِمَا رَحُبَتْ ثُمَّ وَلَّيْتُم مُّدْبِرِينَ

ल-क़द् न-स-रकुमुल्लाहु फ़ी मवाति-न कसीरतिंव् व यौ-म हुनैनिन्, इज़् अअ्-जबत्कुम् कस्-रतुकुम् फ़-लम् तुग़्नि अन्कुम् शैअंव्-व ज़ाक़त् अ़लैकुमुल् अरज़ु बिमा रहुबत् सुम्-म वल्लैतुम् मुद्-बिरीन
(मुसलमानों!) अल्लाह बहुत-से अवसरों पर तुम्हारी सहायता कर चुका है और हुनैन (की लड़ाई) के दिन भी, जब तुम अपनी अधिकता पर फूल गए, तो वह तुम्हारे कुछ काम न आई और धरती अपनी विशालता के बावजूद तुम पर तंग हो गई। फिर तुम पीठ कर भाग निकले।

9:26

ثُمَّ أَنزَلَ ٱللَّهُ سَكِينَتَهُۥ عَلَىٰ رَسُولِهِۦ وَعَلَى ٱلْمُؤْمِنِينَ وَأَنزَلَ جُنُودًۭا لَّمْ تَرَوْهَا وَعَذَّبَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ ۚ وَذَٰلِكَ جَزَآءُ ٱلْكَـٰفِرِينَ

सुम्-म अन्ज़लल्लाहु सकीन-तहू अ़ला रसूलिही व अ़लल्-मुअ्मिनी-न व अन्ज़-ल जुनूदल्लम् तरौहा व अज़्ज़बल्लज़ी-न क-फ़रू, व ज़ालि-क जज़ाउल-काफ़िरीन
तब अल्लाह ने अपने रसूल पर और ईमान वालों पर शान्ति उतारी और (रसूल की ख़ातिर से) फरिश्तों के लश्कर भेजे जिन्हें तुम देखते भी नहीं थे और इनकार करनेवालों को यातना दी, और इनकार करनेवालों की यही सज़ा है।

9:27

ثُمَّ يَتُوبُ ٱللَّهُ مِنۢ بَعْدِ ذَٰلِكَ عَلَىٰ مَن يَشَآءُ ۗ وَٱللَّهُ غَفُورٌۭ رَّحِيمٌۭ

सुम्-म यतूबुल्लाहु मिम्-बअ्दि ज़ालि-क अ़ला मंय्यशा-उ, वल्लाहु ग़फूरुर्रहीम
उसके बाद अल्लाह जिसकी चाहे तौबा क़ुबूल करे और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है।

9:28

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ إِنَّمَا ٱلْمُشْرِكُونَ نَجَسٌۭ فَلَا يَقْرَبُوا۟ ٱلْمَسْجِدَ ٱلْحَرَامَ بَعْدَ عَامِهِمْ هَـٰذَا ۚ وَإِنْ خِفْتُمْ عَيْلَةًۭ فَسَوْفَ يُغْنِيكُمُ ٱللَّهُ مِن فَضْلِهِۦٓ إِن شَآءَ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمٌ حَكِيمٌۭ

या अय्युहल्लज़ी-न आमनू इन्नमल-मुश्रिकू-न न-जसुन् फ़ला यक़्रबुल् मस्जिदल्-हरा म बअ्-द आ़मिहिम् हाज़ा, व इन् ख़िफ़्तुम् ऐल-तन् फ़सौ-फ़ युग़्नीकुमुल्लाहु मिन् फ़ज़्लिही इन् शा-अ, इन्नल्ला-ह अलीमुन् हकीम
ऐ ईमान लानेवालो! मुशरिक तो बस अपवित्र ही हैं। अतः इस वर्ष के पश्चात वे मस्जिदे-हराम के पास न आएँ। और अगर तुम (उनसे जुदा होने में) निर्धनता से डरते हो तो अनकरीब ही अल्लाह तुमको अगर चाहेगा तो अपने फज़ल (करम) से धनी कर देगा। वास्तव में, अल्लाह बड़ा सर्वज्ञ, तत्वज्ञ है।

9:29

قَـٰتِلُوا۟ ٱلَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِٱللَّهِ وَلَا بِٱلْيَوْمِ ٱلْـَٔاخِرِ وَلَا يُحَرِّمُونَ مَا حَرَّمَ ٱللَّهُ وَرَسُولُهُۥ وَلَا يَدِينُونَ دِينَ ٱلْحَقِّ مِنَ ٱلَّذِينَ أُوتُوا۟ ٱلْكِتَـٰبَ حَتَّىٰ يُعْطُوا۟ ٱلْجِزْيَةَ عَن يَدٍۢ وَهُمْ صَـٰغِرُونَ

क़ातिलुल्लज़ी-न ला युअ्मिनू-न बिल्लाहि व ला बिल्यौमिल्-आख़िरि व ला युहर्रिमू-न मा हर्रमल्लाहु व रसूलुहू व ला यदीनू-न दीनल्-हक़्क़ि मिनल्लज़ी-न ऊतुल्किता-ब हत्ता युअ्तुल जिज़्य-त अंय्यदिंव्-व हुम् साग़िरून
एहले किताब में से जो लोग न तो (दिल से) अल्लाह ही पर ईमान रखते हैं और न अन्तिम दिन पर और न अल्लाह और उसके रसूल की हराम की हुयी चीज़ों को हराम समझते हैं और, न सत्धर्म को अपना धर्म बनाते हैं, उन लोगों से लड़े जाओ यहाँ तक कि वह लोग सत्ता से विलग होकर (अपने) हाथ से जिज़्या देने लगें।

9:30

وَقَالَتِ ٱلْيَهُودُ عُزَيْرٌ ٱبْنُ ٱللَّهِ وَقَالَتِ ٱلنَّصَـٰرَى ٱلْمَسِيحُ ٱبْنُ ٱللَّهِ ۖ ذَٰلِكَ قَوْلُهُم بِأَفْوَٰهِهِمْ ۖ يُضَـٰهِـُٔونَ قَوْلَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ مِن قَبْلُ ۚ قَـٰتَلَهُمُ ٱللَّهُ ۚ أَنَّىٰ يُؤْفَكُونَ

व क़ालतिल्-यहूदु अुज़ैरू-निब्नुल्लाहि व क़ालतिन्नसारल्-मसीहुब्नुल्लाहि, ज़ालि-क क़ौलुहुम् बिअफ्वाहिहिम्, युज़ाहिऊ-न क़ौलल्लज़ी-न क-फ़रू मिन् क़ब्लु, क़ात-लहुमुल्लाहु, अन्ना युअ्फ़कून
यहूद तो कहते हैं कि उज़ैर अल्लाह के बेटे हैं और नसारा कहते हैं कि मसीहा (ईसा) अल्लाह के बेटे हैं। ये तो उनकी बात है और (वह ख़ुद) उन्हीं के मुँह से ये लोग भी उन्हीं काफ़िरों की सी बातें बनाने लगे जो उनसे पहले गुज़र चुके हैं। उनपर अल्लाह की मार! वे कहाँ बहके जा रहे हैं?

9:31

ٱتَّخَذُوٓا۟ أَحْبَارَهُمْ وَرُهْبَـٰنَهُمْ أَرْبَابًۭا مِّن دُونِ ٱللَّهِ وَٱلْمَسِيحَ ٱبْنَ مَرْيَمَ وَمَآ أُمِرُوٓا۟ إِلَّا لِيَعْبُدُوٓا۟ إِلَـٰهًۭا وَٰحِدًۭا ۖ لَّآ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ ۚ سُبْحَـٰنَهُۥ عَمَّا يُشْرِكُونَ

इत्त-ख़जू अह़्बारहुम् व रूह़्बानहुम् अर्बाबम् मिन् दूनिल्लाहि वल्मसीहब्-न मर्य-म, व मा उमिरू इल्ला लियअ्बुदू इलाहंव्वाहिदन्, ला इला-ह इल्ला हु-व, सुब्हानहू अम्मा युश्रिकून
उन लोगों ने तो अपने अल्लाह को छोड़कर अपनी आलिमों को और अपने ज़ाहिदों को और मरियम के बेटे मसीह को अपना परवरदिगार बना डाला हालाकि उन्होनें सिवाए इसके और हुक्म ही नहीं दिया गया कि ख़़ुदाए यकता (सिर्फ़ अल्लाह) की इबादत करें उसके सिवा (और कोई क़ाबिले परसतिश नहीं)। जिस चीज़ को ये लोग उसका शरीक़ बनाते हैं वह उससे पाक व पाक़ीजा है।

9:32

يُرِيدُونَ أَن يُطْفِـُٔوا۟ نُورَ ٱللَّهِ بِأَفْوَٰهِهِمْ وَيَأْبَى ٱللَّهُ إِلَّآ أَن يُتِمَّ نُورَهُۥ وَلَوْ كَرِهَ ٱلْكَـٰفِرُونَ

युरीदून अंय्युत्फ़िऊ नूरल्लाहि बिअफ़्वाहिहिम् व यअ्बल्लाहु इल्ला अंय्युतिम्-म नूरहु व लौ करिहल् काफिरून
ये लोग चाहते हैं कि अपने मुँह से (फूंक मारकर) अल्लाह के नूर को बुझा दें और अल्लाह इसके सिवा कुछ मानता ही नहीं कि अपने नूर को पूरा ही करके रहे, यद्यपि काफ़िरों को बुरा लगे।

9:33

هُوَ ٱلَّذِىٓ أَرْسَلَ رَسُولَهُۥ بِٱلْهُدَىٰ وَدِينِ ٱلْحَقِّ لِيُظْهِرَهُۥ عَلَى ٱلدِّينِ كُلِّهِۦ وَلَوْ كَرِهَ ٱلْمُشْرِكُونَ

हुवल्लज़ी अर्स-ल रसूलहू बिल्हुदा व दीनिल्-हक़्क़ि लियुज़्हि-रहू अलद्दीनि कुल्लिही, व लौ करिहल् मुश्रिकून
वही है जिसने अपने रसूल को मार्गदर्शन और सत्यधर्म के साथ भेजा ताकि उसको तमाम दीनो पर ग़ालिब(प्रभुत्व) करे यद्यपि मुशरिकों बुरा माना करे।

9:34

۞ يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ إِنَّ كَثِيرًۭا مِّنَ ٱلْأَحْبَارِ وَٱلرُّهْبَانِ لَيَأْكُلُونَ أَمْوَٰلَ ٱلنَّاسِ بِٱلْبَـٰطِلِ وَيَصُدُّونَ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ ۗ وَٱلَّذِينَ يَكْنِزُونَ ٱلذَّهَبَ وَٱلْفِضَّةَ وَلَا يُنفِقُونَهَا فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ فَبَشِّرْهُم بِعَذَابٍ أَلِيمٍۢ

या अय्युहल्लज़ी-न आमनू इन्-न कसीरम् मिनल् अह़्बारि वर्रूह़्बानि ल-यअ्कुलू-न अम्वालन्नासि बिल्बातिलि व यसुद्दू-न अन् सबीलिल्लाहि, वल्लज़ी -न यक्निज़ूनज़्ज़-ह-ब वल्-फिज़्ज़-त व ला युन्फिक़ूनहा फी सबीलिल्लाहि, फ़-बश्शिरहुम् बिअ़ज़ाबिन् अलीम
ऐ ईमान लानेवालो! इसमें उसमें शक नहीं कि (यहूद व नसारा के) बहुतेरे धर्मज्ञाता और संसार-त्यागी संत, लोगों का धन अवैध खा जाते है, और (लोगों को) अल्लाह की राह से रोकते हैं, और जो लोग सोना और चाँदी जमा करते जाते हैं और उसको अल्लाह की राह में खर्च नहीं करते, तो (ऐ रसूल!) उन को दर्दनाक यातना की शुभ सूचना सुना दो।

9:35

يَوْمَ يُحْمَىٰ عَلَيْهَا فِى نَارِ جَهَنَّمَ فَتُكْوَىٰ بِهَا جِبَاهُهُمْ وَجُنُوبُهُمْ وَظُهُورُهُمْ ۖ هَـٰذَا مَا كَنَزْتُمْ لِأَنفُسِكُمْ فَذُوقُوا۟ مَا كُنتُمْ تَكْنِزُونَ

यौ-म युह़्मा अलैहा फी नारि जहन्न-म फतुक्-वा बिहा जिबाहुहुम् व जुनूबुहुम् व ज़ुहूरूहुम्, हाज़ा मा कनज़्तुम् लिअन्फुसिकुम् फ़जूक़ू मा कुन्तुम् तक्निज़ून
जिस दिन वह (सोना चाँदी) जहन्नुम की आग में गर्म (और लाल) किया जाएगा फिर उससे उनके ललाटों और उनके पहलू और उनकी पीठें दाग़ी जाएगी (और उनसे कहा जाएगा) ये वह है जिसे तुमने अपने लिए (दुनिया में) जमा करके रखा था तो (अब) अपने जमा किए का मज़ा चखो!

9:36

إِنَّ عِدَّةَ ٱلشُّهُورِ عِندَ ٱللَّهِ ٱثْنَا عَشَرَ شَهْرًۭا فِى كِتَـٰبِ ٱللَّهِ يَوْمَ خَلَقَ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضَ مِنْهَآ أَرْبَعَةٌ حُرُمٌۭ ۚ ذَٰلِكَ ٱلدِّينُ ٱلْقَيِّمُ ۚ فَلَا تَظْلِمُوا۟ فِيهِنَّ أَنفُسَكُمْ ۚ وَقَـٰتِلُوا۟ ٱلْمُشْرِكِينَ كَآفَّةًۭ كَمَا يُقَـٰتِلُونَكُمْ كَآفَّةًۭ ۚ وَٱعْلَمُوٓا۟ أَنَّ ٱللَّهَ مَعَ ٱلْمُتَّقِينَ

इन्-न अिद्द-तश्शुहूरि अिन्दल्लाहिस्-ना अ-श-र शह्-रन् फी किताबिल्लाहि यौ-म ख़-लक़स्समावाति वल्अर्-ज़ मिन्हा अर्ब-अतुन् हुरूमुन्, ज़ालिकद्दीनुल-क़य्यिमु, फ़ला तज़्लिमू फीहिन्-न अन्फु-सकुम्, व क़ातिलुल, मुश्रिकी-न काफ्फ़-तन् कमा युक़ातिलूनकुम् काफ्फ़ तन्, वअ्लमू अन्नल्ला-ह मअ़ल्मुत्तक़ीन
इसमें तो शक ही नहीं कि अल्लाह ने जिस दिन आसमान व ज़मीन को पैदा किया (उसी दिन से) अल्लाह के नज़दीक अल्लाह की किताब (लौहे महफूज़) में महीनों की गिनती बारह महीने है उनमें से चार महीने (अदब व) हुरमत के हैं यही दीन सीधी राह है तो उन चार महीनों में तुम अपने ऊपर (मार काट) करके ज़़ुल्म न करो और मुशरिकीन जिस तरह तुम से सबके बस मिलकर लड़ते हैं तुम भी उसी तरह सबके सब मिलकर उन से लड़ों और ये जान लो कि अल्लाह तो यक़ीनन डर रखनेवालों के साथ है।

9:37

إِنَّمَا ٱلنَّسِىٓءُ زِيَادَةٌۭ فِى ٱلْكُفْرِ ۖ يُضَلُّ بِهِ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ يُحِلُّونَهُۥ عَامًۭا وَيُحَرِّمُونَهُۥ عَامًۭا لِّيُوَاطِـُٔوا۟ عِدَّةَ مَا حَرَّمَ ٱللَّهُ فَيُحِلُّوا۟ مَا حَرَّمَ ٱللَّهُ ۚ زُيِّنَ لَهُمْ سُوٓءُ أَعْمَـٰلِهِمْ ۗ وَٱللَّهُ لَا يَهْدِى ٱلْقَوْمَ ٱلْكَـٰفِرِينَ

इन्नमन्नसी-उ ज़ियादतुन् फ़िल्कुफ्रि युज़ल्लु बिहिल्लज़ी-न क-फरू युहिल्लूनहू आमंव्-व युहर्रिमूनहू आमल्-लियुवातिऊ अिद्द-त मा हर्रमल्लाहु फयुहिल्लू मा हर्रमल्लाहु, ज़ुय्यि-न लहुम् सू-उ अअ्मालिहिम्, वल्लाहु ला यह्दिल क़ौमल्-काफ़िरीन
महीनों का आगे पीछे कर देना भी कुफ़्र ही की ज़्यादती है। कि उनकी बदौलत कुफ़्फ़ार (और) बहक जाते हैं। 
एक बरस तो उसी एक महीने को हलाल समझ लेते हैं और (दूसरे) साल उसी महीने को हराम कहते हैं। ताकि अल्लाह ने जो (चार महीने) हराम किए हैं उनकी गिनती ही पूरी कर लें और अल्लाह की हराम की हुयी चीज़ को हलाल कर लें। उनके अपने बुरे कर्म उनके लिए सुहाने हो गए हैं और अल्लाह काफिर लोगो को सीधा मार्ग नहीं दिखाता।

9:38

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ مَا لَكُمْ إِذَا قِيلَ لَكُمُ ٱنفِرُوا۟ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ ٱثَّاقَلْتُمْ إِلَى ٱلْأَرْضِ ۚ أَرَضِيتُم بِٱلْحَيَوٰةِ ٱلدُّنْيَا مِنَ ٱلْـَٔاخِرَةِ ۚ فَمَا مَتَـٰعُ ٱلْحَيَوٰةِ ٱلدُّنْيَا فِى ٱلْـَٔاخِرَةِ إِلَّا قَلِيلٌ

या अय्युहल्लज़ी-न आमनू मा लकुम् इज़ा क़ी-ल लकुमुन्फिरू फ़ी सबीलिल्लाहिस्सा क़ल्तुम् इलल्-अर्ज़ि, अ-रज़ीतुम् बिल्हयातिद्दुन्या मिनल्-आख़िरति, फ़मा मताअुल्-हयातिद्दुन्या फिल्आख़िरति इल्ला क़लील
ऐ ईमान वालो! तुम्हें क्या हो गया है कि जब तुमसे कहा जाता है कि अल्लाह की राह में (जिहाद के लिए) निकलो तो तुम ढीले हो कर ज़मीन की तरफ झुके पड़ते हो, क्या तुम आख़िरत (परलोक) की अपेक्षा सांसारिक जीवन से प्रसन्न हो गये हो? तो (समझ लो कि) दुनिया की ज़िन्दगी का साज़ो सामान (परलोक के) ऐश व आराम के मुक़ाबले में बहुत ही थोड़ा है।

9:39

إِلَّا تَنفِرُوا۟ يُعَذِّبْكُمْ عَذَابًا أَلِيمًۭا وَيَسْتَبْدِلْ قَوْمًا غَيْرَكُمْ وَلَا تَضُرُّوهُ شَيْـًۭٔا ۗ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍۢ قَدِيرٌ

इल्ला तन्फिरू युअ़ज़्ज़िब़्कुम् अ़ज़ाबन् अलीमंव्-व यस्तब्दिल् क़ौमन् ग़ैरकुम् व ला तज़ुर्रूहु शैअन्, वल्लाहु अला कुल्लि शैइन् क़दीर
अगर (अब भी) तुम न निकलोगे, तो तुम्हें अल्लाह दुःखदायी यातना देगा, और तुम्हारे बदले किसी दूसरी क़ौम को ले आएगा और तुम उसका कुछ भी बिगाड़ नहीं सकते और अल्लाह जो चाहे कर सकता है।

9:40

إِلَّا تَنصُرُوهُ فَقَدْ نَصَرَهُ ٱللَّهُ إِذْ أَخْرَجَهُ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ ثَانِىَ ٱثْنَيْنِ إِذْ هُمَا فِى ٱلْغَارِ إِذْ يَقُولُ لِصَـٰحِبِهِۦ لَا تَحْزَنْ إِنَّ ٱللَّهَ مَعَنَا ۖ فَأَنزَلَ ٱللَّهُ سَكِينَتَهُۥ عَلَيْهِ وَأَيَّدَهُۥ بِجُنُودٍۢ لَّمْ تَرَوْهَا وَجَعَلَ كَلِمَةَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ ٱلسُّفْلَىٰ ۗ وَكَلِمَةُ ٱللَّهِ هِىَ ٱلْعُلْيَا ۗ وَٱللَّهُ عَزِيزٌ حَكِيمٌ

इल्ला तन्सुरूहू फ़-क़द् न-सरहुल्लाहु इज़् अख़्र-जहुल्लज़ी-न क-फरू सानियस्नैनी इज़् हुमा फ़िल्ग़ारि इज़् यक़ूलु लिसाहिबिही ला तह़्ज़न् इन्नल्ला-ह म अना, फ़-अन्ज़ लल्लाहु सकीन-तहू अलैहि व अय्य-दहू बिजुनूदिल्लम् तरौहा व ज-अ-ल कलि-मतल्लज़ी-न क-फ़रूस्सुफ्ला, व कलि-मतुल्लाहि हियल्-अुल्या, वल्लाहु अ़ज़ीज़ुन् हकीम
अगर तुम उस रसूल की मदद न करोगे तो (कुछ परवाह् नहीं अल्लाह मददगार है) उसने तो अपने रसूल की उस वक़्त मदद की जब उसकी कुफ़्फ़ार (मक्का) ने (घर से) निकल बाहर किया उस वक़्त सिर्फ (दो आदमी थे) दूसरे रसूल थे जब वह दोनो गुफा में थे। जब अपने साथी को (उसकी गिरिया व रोने) पर) समझा रहे थे कि घबराओ नहीं अल्लाह यक़ीनन हमारे साथ है तो अल्लाह ने उन पर अपनी (तरफ से) शान्ति उतार दी और (फरिश्तों के) ऐसी सेनाओं से उनकी मदद की जिनको तुम लोगों ने देखा तक नहीं और इनकार करनेवालों का बोल नीचा कर दिया, और अल्लाह ही का बोल बाला है और अल्लाह तो अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।

9:41

ٱنفِرُوا۟ خِفَافًۭا وَثِقَالًۭا وَجَـٰهِدُوا۟ بِأَمْوَٰلِكُمْ وَأَنفُسِكُمْ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ ۚ ذَٰلِكُمْ خَيْرٌۭ لَّكُمْ إِن كُنتُمْ تَعْلَمُونَ

इन्फिरू ख़िफ़ाफंव्-व सिक़ालंव् व जाहिदू बिअम्वा लिकुम् व अन्फुसिकुम् फ़ी सबीलिल्लाहि, ज़ालिकुम् ख़ैरूल्लकुम् इन् कुन्तुम् तअ्लमून
(मुसलमानों) चाहे आपके पास कम या अधिक सामान या धन हो। बहर हाल जब तुमको हुक्म दिया जाए, फौरन चल खड़े हो। और अपनी जानों से, अपने मालों से अल्लाह की राह में जिहाद करो। अगर तुम (कुछ जानते हो तो) समझ लो कि यही तुम्हारे लिए बेहतर है।

9:42

لَوْ كَانَ عَرَضًۭا قَرِيبًۭا وَسَفَرًۭا قَاصِدًۭا لَّٱتَّبَعُوكَ وَلَـٰكِنۢ بَعُدَتْ عَلَيْهِمُ ٱلشُّقَّةُ ۚ وَسَيَحْلِفُونَ بِٱللَّهِ لَوِ ٱسْتَطَعْنَا لَخَرَجْنَا مَعَكُمْ يُهْلِكُونَ أَنفُسَهُمْ وَٱللَّهُ يَعْلَمُ إِنَّهُمْ لَكَـٰذِبُونَ

लौ का-न अ-रज़न् क़रीबंव्-व स-फ़रन् क़ासिदल्लत्तबअू-क व लाकिम्-बअुदत् अलैहिमुश्शुक्कतु, व स-यह़्लि फू-न बिल्लाहि लविस्त-तअ्ना ल-ख़रज्-ना म-अ़कुम्, युह़्लिकू-न अन्फु-सहुम्, वल्लाहु यअ्लमु इन्नहुम् लकाज़िबून
(ऐ रसूल!) अगर लाभ समीप और सफर आसान होता, तो यक़ीनन ये लोग तुम्हारा साथ देते। किन्तु मार्ग की दूरी उन्हें कठिन और बहुत दीर्घ प्रतीत हुई। और अगर पीछे रह जाने की वज़ह से पूछोगे तो ये लोग फौरन अल्लाह की क़समें खाएगें कि अगर हम में सामर्थ्य होती तो हम भी ज़रूर तुम लोगों के साथ ही चल खड़े होते। ये लोग झूठी कसमें खाकर अपनी जान आप हलाक किए डालते हैं।और अल्लाह तो जानता है कि ये लोग बेशक झूठे हैं।

9:43

عَفَا ٱللَّهُ عَنكَ لِمَ أَذِنتَ لَهُمْ حَتَّىٰ يَتَبَيَّنَ لَكَ ٱلَّذِينَ صَدَقُوا۟ وَتَعْلَمَ ٱلْكَـٰذِبِينَ

अ़फ़ल्लाहु अन्-क, लि-म अज़िन्-त लहुम् हत्ता य -तबय्य-न लकल्लज़ी-न स-द-क़ू व तअ्-लमल् काज़िबीन
(ऐ रसूल!) अल्लाह आपको क्षमा करे! तुमने उन्हें (पीछे रह जाने की) इजाज़त ही क्यों दी। ताकि (तुम) अगर ऐसा न करते तो) तुम पर सच बोलने वाले उजागर हो जाते और तुम झूटों को जान लेते।

9:44

لَا يَسْتَـْٔذِنُكَ ٱلَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِٱللَّهِ وَٱلْيَوْمِ ٱلْـَٔاخِرِ أَن يُجَـٰهِدُوا۟ بِأَمْوَٰلِهِمْ وَأَنفُسِهِمْ ۗ وَٱللَّهُ عَلِيمٌۢ بِٱلْمُتَّقِينَ

ला यस्तअ्ज़िनुकल्लज़ी-न युअ्मिनू-न बिल्लाहि वल्यौमिल्-आख़िरि अंय्युजाहिदू बिअम्वालिहिम् व अन्फुसिहिम्, वल्लाहु अलीमुम् बिल्मुत्तक़ीन
(ऐ रसूल!) जो लोग (दिल से) अल्लाह और अंतिम दिन पर ईमान रखते हैं, वह तो अपने माल से और अपनी जानों से जिहाद (न) करने की इजाज़त मागने के नहीं (बल्कि वह ख़ुद जाएगें) और अल्लाह डर रखनेवालों से खूब वाकि़फ है।

9:45

إِنَّمَا يَسْتَـْٔذِنُكَ ٱلَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِٱللَّهِ وَٱلْيَوْمِ ٱلْـَٔاخِرِ وَٱرْتَابَتْ قُلُوبُهُمْ فَهُمْ فِى رَيْبِهِمْ يَتَرَدَّدُونَ

इन्नमा यस्तअ्ज़िनुकल्लज़ी-न ला युअ्मिनू-न बिल्लाहि वलयौमिल्-आख़िरि वरताबत् क़ुलूबुहुम् फहुम् फी रैबिहिम् य-तरद्ददून
(पीछे रह जाने की) इजाज़त तो बस वही लोग मागेंगे जो अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान नहीं रखते। और उनके दिल सन्देह में पड़े हैं, तो वह अपने सन्देह में डाँवाडोल हो रहे हैं। (कि क्या करें क्या न करें)

9:46

۞ وَلَوْ أَرَادُوا۟ ٱلْخُرُوجَ لَأَعَدُّوا۟ لَهُۥ عُدَّةًۭ وَلَـٰكِن كَرِهَ ٱللَّهُ ٱنۢبِعَاثَهُمْ فَثَبَّطَهُمْ وَقِيلَ ٱقْعُدُوا۟ مَعَ ٱلْقَـٰعِدِينَ

व लौ अरादुल-खुरू-ज ल-अअ़द्दू लहू अुद्दतंव्-व लाकिन् करिहल्लाहुम् बिआ-सहुम् फ़ सब्ब तहुम् व क़ीलक़्अुदू मअल् क़ाअिदीन
और अगर ये लोग (घर से) निकलने की ठान लेते, तो अवश्य उसके लिए कुछ तैयारी करते। मगर (बात ये है) कि अल्लाह ने उनके साथ भेजने को नापसन्द किया, अतः उन्हें आलसी बना दिया और उनसे कह दिया गया कि तुम बैठने वालों के साथ बैठे (मक्खी मारते) रहो।

9:47

لَوْ خَرَجُوا۟ فِيكُم مَّا زَادُوكُمْ إِلَّا خَبَالًۭا وَلَأَوْضَعُوا۟ خِلَـٰلَكُمْ يَبْغُونَكُمُ ٱلْفِتْنَةَ وَفِيكُمْ سَمَّـٰعُونَ لَهُمْ ۗ وَٱللَّهُ عَلِيمٌۢ بِٱلظَّـٰلِمِينَ

लौ ख़-रजू फ़ीकुम् मा ज़ादूकुम इल्ला ख़बालंव्-व ल-औज़अू ख़िलालकुम् यब्ग़ूनकुमुल् फ़ित् न-त, व फ़ीकुम् सम्माअू-न लहुम्, वल्लाहु अलीमुम्-बिज़्ज़ालिमीन
यदि वे तुम्हारे साथ निकलते भी तो तुम्हारे अन्दर ख़राबी के सिवा किसी और चीज़ की अभिवृद्धि नहीं करते। और तुम्हारे बीच उपद्रव के लिए दौड़ धूप करते। और तुममें वह भी हैं, जो उनकी बातों पर ध्यान देते हैं और अल्लाह अत्याचारियों को भली-भाँति जानता है।

9:48

لَقَدِ ٱبْتَغَوُا۟ ٱلْفِتْنَةَ مِن قَبْلُ وَقَلَّبُوا۟ لَكَ ٱلْأُمُورَ حَتَّىٰ جَآءَ ٱلْحَقُّ وَظَهَرَ أَمْرُ ٱللَّهِ وَهُمْ كَـٰرِهُونَ

ल-क़दिब्त-ग़वुल फित् न-त मिन् क़ब्लु व क़ल्लबू ल-कल् उमू-र हत्ता जाअल्-हक़्क़ु व ज़-ह-र अम्रुल्लाहि व हुम् कारिहून
(ए रसूल!) उन्होंने तो इससे पहले भी उपद्रव मचाना चाहा था। और वे तुम्हारे विरुद्ध घटनाओं और मामलों के उलटने-पलटने में लगे रहे, यहाँ तक कि हक़ आ पहुचा और अल्लाह का आदेश प्रकट होकर रहा, यद्यपि उन्हें अप्रिय ही लगता रहा।

9:49

وَمِنْهُم مَّن يَقُولُ ٱئْذَن لِّى وَلَا تَفْتِنِّىٓ ۚ أَلَا فِى ٱلْفِتْنَةِ سَقَطُوا۟ ۗ وَإِنَّ جَهَنَّمَ لَمُحِيطَةٌۢ بِٱلْكَـٰفِرِينَ

व मिन्हुम् मंय्यक़ूलुअ्ज़ल्ली व ला तफ़्तिन्नी, अला फ़िल्-फ़ित्-नति स-क़तू, व इन्-न जहन्न-म लमुही-ततुम् बिल्काफ़िरीन
उन लोगों में से कुछ ऐसे भी हैं जो साफ कहते हैं कि मुझे तो (पीछे रह जाने की) अनुमति दे दीजिए और मुझ परीक्षा में न फॅसाइए। (ऐ रसूल!) परीक्षा में तो ये पहले ही से पड़े हुए हैं और जहन्नुम तो काफिरों का यक़ीनन घेरे हुए ही हैं।

9:50

إِن تُصِبْكَ حَسَنَةٌۭ تَسُؤْهُمْ ۖ وَإِن تُصِبْكَ مُصِيبَةٌۭ يَقُولُوا۟ قَدْ أَخَذْنَآ أَمْرَنَا مِن قَبْلُ وَيَتَوَلَّوا۟ وَّهُمْ فَرِحُونَ

इन् तुसिब्-क ह-स-नतुन् तसुअ्हुम्, व इन् तुसिब्-क मुसीबतुंय्यक़ूलू क़द् अख़ज़्ना अम्-रना मिन् क़ब्लु व य -तवल्लौ व हुम् फ़रिहून
तुमको कोई फायदा पहुचा तो उन को बुरा मालूम होता है और अगर तुम पर कोई मुसीबत आ पड़ती तो ये लोग कहते हैं कि (इस वजह से) हमने पहले ही अपनी सावधानी बरत ली थी और (ये कह कर) ख़ुश (तुम्हारे पास से उठकर) वापस लौटतें है।

9:51

قُل لَّن يُصِيبَنَآ إِلَّا مَا كَتَبَ ٱللَّهُ لَنَا هُوَ مَوْلَىٰنَا ۚ وَعَلَى ٱللَّهِ فَلْيَتَوَكَّلِ ٱلْمُؤْمِنُونَ

क़ुल् लंय्युसीबना इल्ला मा क-तबल्लाहु लना, हु-व मौलाना, व अ़लल्लाहि फ़ल्य-तवक्कलिल् मुअ्मिनून
(ऐ रसूल!) तुम कह दो कि हम पर हरगिज़ कोई मुसीबत पड़ नही सकती मगर जो अल्लाह ने तुम्हारे लिए (हमारी तक़दीर में) लिख दिया है। वही हमारा मालिक है और ईमानवालों को चाहिए भी कि अल्लाह ही पर भरोसा रखें।

9:52

قُلْ هَلْ تَرَبَّصُونَ بِنَآ إِلَّآ إِحْدَى ٱلْحُسْنَيَيْنِ ۖ وَنَحْنُ نَتَرَبَّصُ بِكُمْ أَن يُصِيبَكُمُ ٱللَّهُ بِعَذَابٍۢ مِّنْ عِندِهِۦٓ أَوْ بِأَيْدِينَا ۖ فَتَرَبَّصُوٓا۟ إِنَّا مَعَكُم مُّتَرَبِّصُونَ

क़ुल हल् तरब्बसू-न बिना इल्ला इह़्दल हुस्-नयैनि, व नह़्नु न-तरब्बसु बिकुम् अंय्युसी-बकुमुल्लाहु बिअ़ज़ाबिम् मिन् अिन्दिही औ बिऐदीना, फ़-तरब्बसू इन्ना म-अ़कुम् मु-तरब्बिसून
(ऐ रसूल!) तुम मुनाफिकों से कह दो कि तुम तो हमारे लिए (फतेह या शहादत) दो भलाइयों में से एक के अनावश्यक प्रतीक्षा कर रहे हो, और हम तुम्हारे बारे में इसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं कि अल्लाह तुम पर (ख़ास) अपने ही से कोई यातना नाज़िल करे या हमारे हाथों से फिर (अच्छा) तुम भी इन्तेज़ार करो, हम भी तुम्हारे साथ  इन्तेज़ार करते हैं।

9:53

قُلْ أَنفِقُوا۟ طَوْعًا أَوْ كَرْهًۭا لَّن يُتَقَبَّلَ مِنكُمْ ۖ إِنَّكُمْ كُنتُمْ قَوْمًۭا فَـٰسِقِينَ

क़ुल अन्फ़िक़ू तौअन् औ कर्हल्-लंय्यु तक़ब्ब-ल मिन्कुम्, इन्नकुम् कुन्तुम् क़ौमन् फ़ासिक़ीन
(ऐ रसूल!) तुम चाहे स्वेच्छापूर्वक ख़र्च करो या अनिच्छापूर्वक, तुमसे कुछ भी स्वीकार न किया जाएगा। तुम यक़ीनन अवज्ञाकारी लोग हो।

9:54

وَمَا مَنَعَهُمْ أَن تُقْبَلَ مِنْهُمْ نَفَقَـٰتُهُمْ إِلَّآ أَنَّهُمْ كَفَرُوا۟ بِٱللَّهِ وَبِرَسُولِهِۦ وَلَا يَأْتُونَ ٱلصَّلَوٰةَ إِلَّا وَهُمْ كُسَالَىٰ وَلَا يُنفِقُونَ إِلَّا وَهُمْ كَـٰرِهُونَ

व मा म-न अहुम् अन् तुक़्ब-ल मिन्हुम् न-फक़ातुहुम् इल्ला अन्नहुम् क-फरू बिल्लाहि व बि-रसूलिही वला यअ् तू नस्सला-त इल्ला व हुम् कुसाला व ला युन्फिक़ू-न इल्ला व हुम् कारिहून
और उनकी ख़ैरात के क़ुबूल किए जाने में और कोई वजह मायने नहीं मगर यही कि उन लोगों ने अल्लाह और उसके रसूल की नाफ़रमानी की। और वे नमाज़ के लिए आलसी होकर आते हैं और अल्लाह की राह में खर्च भी करते हैं तो अनिच्छा से।

9:55

فَلَا تُعْجِبْكَ أَمْوَٰلُهُمْ وَلَآ أَوْلَـٰدُهُمْ ۚ إِنَّمَا يُرِيدُ ٱللَّهُ لِيُعَذِّبَهُم بِهَا فِى ٱلْحَيَوٰةِ ٱلدُّنْيَا وَتَزْهَقَ أَنفُسُهُمْ وَهُمْ كَـٰفِرُونَ

फ़ला तुअ्जिब्-क अम्वालुहुम् वला औलादुहुम्, इन्नमा युरीदुल्लाहु लियुअ़ज़्ज़ि-बहुम् बिहा फ़िल्हयातिद्दुन्या व तज़्ह-क़ अन्फुसुहुम् व हुम् काफ़िरून
(ऐ रसूल!) तुम को न तो उनके धन हैरत में डाले और न उनकी औलाद (क्योंकि) अल्लाह तो ये चाहता है कि उनको आल व माल की वजह से सांसारिक जीवन (ही) में यातना करे और जब उनकी जानें निकलें तब भी वह काफिर (के काफिर ही) रहें।

9:56

وَيَحْلِفُونَ بِٱللَّهِ إِنَّهُمْ لَمِنكُمْ وَمَا هُم مِّنكُمْ وَلَـٰكِنَّهُمْ قَوْمٌۭ يَفْرَقُونَ

व यह़्लिफू-न बिल्लाहि इन्नहुम् लमिन्कुम्, व मा हुम् मिन्कुम् व लाकिन्नहुम् क़ौमुंय्यफ्रक़ून
और (मुसलमानों!) ये लोग अल्लाह की शपथ लेकर कहते हैं कि वे तुम में से हैं, हालांकि वह लोग तुममें के नहीं हैं मगर ये भयभीत लोग हैं।

9:57

لَوْ يَجِدُونَ مَلْجَـًٔا أَوْ مَغَـٰرَٰتٍ أَوْ مُدَّخَلًۭا لَّوَلَّوْا۟ إِلَيْهِ وَهُمْ يَجْمَحُونَ

लौ यजिदू न मल्ज अन् औ मग़ारातिन् औ मुद्द-ख़लल -लवल्लौ इलैहि व हुम् यज्महून
कि यदि कहीं ये लोग पनाह की जगह (कि़ले) या (छिपने के लिए) गुफा या घुस बैठने की कोई (और) जगह पा जाए तो उसी तरफ मुंह उठाते हुए भाग जाएँ।

9:58

وَمِنْهُم مَّن يَلْمِزُكَ فِى ٱلصَّدَقَـٰتِ فَإِنْ أُعْطُوا۟ مِنْهَا رَضُوا۟ وَإِن لَّمْ يُعْطَوْا۟ مِنْهَآ إِذَا هُمْ يَسْخَطُونَ

व मिन्हुम् मंय्यल्मिज़ु-क फ़िस्स दक़ाति, फ़-इन् उअ्तू मिन्हा रज़ू व इल्लम् युअ्तौ मिन्हा इज़ा हुम् यस्-ख़तून
(ऐ रसूल!) उनमें से कुछ तो ऐसे भी हैं जो तुम्हें सदक़ों (की तक़सीम) में इल्ज़ाम देते हैं फिर अगर उनमे से कुछ (हिस्सा) दे दिया गया तो खुश हो गए और अगर उसमें से उन्हें कुछ नहीं दिया गया तो बस फौरन ही क्रोधित होने लगते हैं।

9:59

وَلَوْ أَنَّهُمْ رَضُوا۟ مَآ ءَاتَىٰهُمُ ٱللَّهُ وَرَسُولُهُۥ وَقَالُوا۟ حَسْبُنَا ٱللَّهُ سَيُؤْتِينَا ٱللَّهُ مِن فَضْلِهِۦ وَرَسُولُهُۥٓ إِنَّآ إِلَى ٱللَّهِ رَٰغِبُونَ

व लौ अन्नहुम् रज़ू मा आताहुमुल्लाहु व रसूलुहू, व क़ालू हस्बुनल्लाहु सयुअ्तीनल्लाहु मिन् फ़ज़्लिही व रसूलुहू, इन्ना इलल्लाहि राग़िबून
और जो कुछ अल्लाह ने और उसके रसूल ने उनको दिया था अगर ये लोग उस पर राज़ी रहते और कहते कि अल्लाह हमारे वास्ते काफी है। जल्द ही अल्लाह हमें अपने फज़ल व करम से और उसका रसूल दे ही देगा हम तो यक़ीनन अल्लाह ही की तरफ लौ लगाए बैठे हैं।

9:60

۞ إِنَّمَا ٱلصَّدَقَـٰتُ لِلْفُقَرَآءِ وَٱلْمَسَـٰكِينِ وَٱلْعَـٰمِلِينَ عَلَيْهَا وَٱلْمُؤَلَّفَةِ قُلُوبُهُمْ وَفِى ٱلرِّقَابِ وَٱلْغَـٰرِمِينَ وَفِى سَبِيلِ ٱللَّهِ وَٱبْنِ ٱلسَّبِيلِ ۖ فَرِيضَةًۭ مِّنَ ٱللَّهِ ۗ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌۭ

इन्नमस्स दक़ातु लिल्फु-क़रा-इ वल्मसाकीनि वल्आ़मिली-न अलैहा वल्मुअल्ल-फ़ति क़ुलूबुहुम् व फ़िर्रिक़ाबि वल्ग़ारिमी-न व फ़ी सबीलिल्लाहि वब्-निस्सबीलि, फ़री-ज़तम् मिनल्लाहि, वल्लाहु अ़लीमुन् हकीम
सदक़े तो बस ग़रीबों, मुहताजों और उन लोगों के लिए हैं, जो इस काम पर नियुक्त हों और उनके लिए जिनके दिलों को आकृष्ट करना औऱ परचाना अभीष्ट हो और गर्दनों को छुड़ाने और क़र्ज़दारों और तावान भरनेवालों की सहायता करने में, अल्लाह के मार्ग में, मुसाफ़िरों की सहायता करने में लगाने के लिए हैं। ये हुकूक़ अल्लाह की तरफ से मुक़र्रर किए हुए हैं और अल्लाह सर्वज्ञ, तत्वज्ञ है।

9:61

وَمِنْهُمُ ٱلَّذِينَ يُؤْذُونَ ٱلنَّبِىَّ وَيَقُولُونَ هُوَ أُذُنٌۭ ۚ قُلْ أُذُنُ خَيْرٍۢ لَّكُمْ يُؤْمِنُ بِٱللَّهِ وَيُؤْمِنُ لِلْمُؤْمِنِينَ وَرَحْمَةٌۭ لِّلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ مِنكُمْ ۚ وَٱلَّذِينَ يُؤْذُونَ رَسُولَ ٱللَّهِ لَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌۭ

व मिन्हुमुल्लज़ी-न युअ्ज़ूनन्नबिय्-य व यक़ूलू-न हु-व उज़ुनुन् , क़ुल उज़ुनु ख़ैरिल्लकुम्, युअ्मिनु बिल्लाहि व युअ्मिनु लिल्मुअ्मिनी-न व रह़्मतुल् लिल्लज़ी-न आमनू मिन्कुम्, वल्लज़ी-न युअ्ज़ू-न रसूलल्लाहि लहुम् अज़ाबुन् अलीम
और उसमें से कुछ ऐसे भी हैं जो (हमारे) रसूल को सताते हैं और कहते हैं कि ये कान देकर यानी तवज्जो से हर बात सुनते हैं (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि (कान तो हैं मगर) तुम्हारी भलाई सुनने के कान हैं कि अल्लाह पर ईमान रखते हैं और मोमिनीन की (बातों) का यक़ीन रखते हैं और तुममें से जो लोग ईमान ला चुके हैं उनके लिए रहमत और जो लोग रसूले अल्लाह को सताते हैं उनके लिए दर्दनाक अज़ाब हैं।

9:62

يَحْلِفُونَ بِٱللَّهِ لَكُمْ لِيُرْضُوكُمْ وَٱللَّهُ وَرَسُولُهُۥٓ أَحَقُّ أَن يُرْضُوهُ إِن كَانُوا۟ مُؤْمِنِينَ

यह़्लिफू-न बिल्लाहि लकुम् लियुरज़ूकुम्, वल्लाहु व रसूलुहू अहक़्क़ु अंय्युरज़ूहु इन् कानू मुअ्मिनीन
(मुसलमानों!) ये लोग तुम्हारे सामने अल्लाह की क़समें खाते हैं ताकि तुम्हें राज़ी कर ले हालाकि अगर ये लोग सच्चे ईमानदार है तो अल्लाह और उसका रसूल कहीं ज़्यादा हक़दार है कि उसको प्रसन्न रखें।

9:63

أَلَمْ يَعْلَمُوٓا۟ أَنَّهُۥ مَن يُحَادِدِ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ فَأَنَّ لَهُۥ نَارَ جَهَنَّمَ خَـٰلِدًۭا فِيهَا ۚ ذَٰلِكَ ٱلْخِزْىُ ٱلْعَظِيمُ

अलम् यअ्लमू अन्नहू मंय्युहादिदिल्ला-ह व रसूलहू फ़-अन्-न लहू ना-र जहन्न-म ख़ालिदन् फ़ीहा, ज़ालिकल् ख़िज़्युल-अ़ज़ीम
क्या ये लोग ये भी नहीं जानते कि जिस शख़्स ने अल्लाह और उसके रसूल का विरोध किया तो इसमें शक ही नहीं कि उसके लिए नरक की आग (तैयार रखी) है। जिसमें वह हमेशा (जलता भुनता) रहेगा यही तो बड़ा अपमान है

9:64

يَحْذَرُ ٱلْمُنَـٰفِقُونَ أَن تُنَزَّلَ عَلَيْهِمْ سُورَةٌۭ تُنَبِّئُهُم بِمَا فِى قُلُوبِهِمْ ۚ قُلِ ٱسْتَهْزِءُوٓا۟ إِنَّ ٱللَّهَ مُخْرِجٌۭ مَّا تَحْذَرُونَ

यह़्ज़रूल मुनाफ़िक़ू-न अन् तुनज़्ज़-ल अलैहिम् सूरतुन् तुनब्बिउहुम् बिमा फ़ी क़ुलूबिहिम्, क़ुलिस्तह़्ज़िऊ, इन्नल्ला-ह मुख़रिजुम् मा तह़्ज़रून
मुनाफे़क़ीन इस बात से डरतें हैं कि (कहीं ऐसा न हो) इन मुलसमानों पर (रसूल की माअरफ़त) कोई सूरा नाजि़ल हो जाए जो उनको जो कुछ उन मुनाफिक़ीन के दिल में है बता दे (ऐ रसूल) तुम कह दो कि (अच्छा) तुम मसख़रापन किए जाओ।

9:65

وَلَئِن سَأَلْتَهُمْ لَيَقُولُنَّ إِنَّمَا كُنَّا نَخُوضُ وَنَلْعَبُ ۚ قُلْ أَبِٱللَّهِ وَءَايَـٰتِهِۦ وَرَسُولِهِۦ كُنتُمْ تَسْتَهْزِءُونَ

व ल-इन् सअल्तहुम् ल-यक़ूलुन्-न इन्नमा कुन्ना नख़ूज़ु व नल् अबु, क़ुल अबिल्लाहि व आयातिही व रसूलिही कुन्तुम् तस्तह़्ज़िऊन
जिससे तुम डरते हो अल्लाह उसे ज़रूर ज़ाहिर कर देगा और अगर तुम उनसे पूछो (कि ये हरकत थी) तो ज़रूर यूही कहेगें कि हम तो यूही बातचीत (दिल्लगी) बाज़ी ही कर रहे थे तुम कहो कि हाए क्या तुम अल्लाह से और उसकी आयतों से और उसके रसूल से हॅसी कर रहे थे।

9:66

لَا تَعْتَذِرُوا۟ قَدْ كَفَرْتُم بَعْدَ إِيمَـٰنِكُمْ ۚ إِن نَّعْفُ عَن طَآئِفَةٍۢ مِّنكُمْ نُعَذِّبْ طَآئِفَةًۢ بِأَنَّهُمْ كَانُوا۟ مُجْرِمِينَ

ला तअ्तज़िरू क़द् कफ़र्तुम् बअ्-द ईमानिकुम्, इन्नअ्फु अन् ताइ-फ़तिम् मिन्कुम् नुअ़ज़्ज़िब् ताइ-फ़तम् बिअन्नहुम् कानू मुज्रिमीन
अब बातें न बनाओं हक़ तो ये हैं कि तुम ईमान लाने के बाद काफि़र हो बैठे अगर हम तुममें से कुछ लोगों से दरगुज़र भी करें तो हम कुछ लोगों को सज़ा ज़रूर देगें इस वजह से कि ये लोग कुसूरवार ज़रूर हैं।

9:67

ٱلْمُنَـٰفِقُونَ وَٱلْمُنَـٰفِقَـٰتُ بَعْضُهُم مِّنۢ بَعْضٍۢ ۚ يَأْمُرُونَ بِٱلْمُنكَرِ وَيَنْهَوْنَ عَنِ ٱلْمَعْرُوفِ وَيَقْبِضُونَ أَيْدِيَهُمْ ۚ نَسُوا۟ ٱللَّهَ فَنَسِيَهُمْ ۗ إِنَّ ٱلْمُنَـٰفِقِينَ هُمُ ٱلْفَـٰسِقُونَ

अल्मुनाफ़िक़ू-न वल्मुनाफ़िक़ातु बअ्ज़ुहुम् मिम् -बअ्ज़िन् • यअ्मुरू-न बिल्मुन्करि व यन्हौ-न अनिल् -मअरूफि व यक़्बिज़ू न ऐदि-यहुम्, नसुल्ला-ह फ़-नसि-यहुम्, इन्नल-मुनाफ़िक़ी न हुमुल्-फ़ासिक़ून
मुनाफिक़ मर्द और मुनाफिक़ औरतें एक दूसरे के बाहम जिन्स हैं कि (लोगों को) बुरे काम का तो हुक्म करते हैं और नेक कामों से रोकते हैं और अपने हाथ (राहे अल्लाह में ख़र्च करने से) बन्द रखते हैं (सच तो यह है कि) ये लोग अल्लाह को भूल बैठे तो अल्लाह ने भी (गोया) उन्हें भुला दिया बेशक मुनाफि़क़ बदचलन है।

9:68

وَعَدَ ٱللَّهُ ٱلْمُنَـٰفِقِينَ وَٱلْمُنَـٰفِقَـٰتِ وَٱلْكُفَّارَ نَارَ جَهَنَّمَ خَـٰلِدِينَ فِيهَا ۚ هِىَ حَسْبُهُمْ ۚ وَلَعَنَهُمُ ٱللَّهُ ۖ وَلَهُمْ عَذَابٌۭ مُّقِيمٌۭ

व-अदल्लाहुल् मुनाफ़िक़ी-न वल्मुनाफ़िक़ाति वल्कुफ्फ़ा-र ना-र जहन्न-म ख़ालिदी-न फ़ीहा, हि-य हस्बुहुम्, व ल-अ-नहुमुल्लाहु, व लहुम् अज़ाबुम् मुक़ीम
मुनाफिक़ मर्द और मुनाफिक़ औरतें और काफिरों से अल्लाह ने जहन्नुम की आग का वायदा तो कर लिया है कि ये लोग हमेशा उसी में रहेगें और यही उन के लिए काफ़ी है और अल्लाह ने उन पर लानत की है और उन्हीं के लिए दाइमी (हमेशा रहने वाला) अज़ाब है।

9:69

كَٱلَّذِينَ مِن قَبْلِكُمْ كَانُوٓا۟ أَشَدَّ مِنكُمْ قُوَّةًۭ وَأَكْثَرَ أَمْوَٰلًۭا وَأَوْلَـٰدًۭا فَٱسْتَمْتَعُوا۟ بِخَلَـٰقِهِمْ فَٱسْتَمْتَعْتُم بِخَلَـٰقِكُمْ كَمَا ٱسْتَمْتَعَ ٱلَّذِينَ مِن قَبْلِكُم بِخَلَـٰقِهِمْ وَخُضْتُمْ كَٱلَّذِى خَاضُوٓا۟ ۚ أُو۟لَـٰٓئِكَ حَبِطَتْ أَعْمَـٰلُهُمْ فِى ٱلدُّنْيَا وَٱلْـَٔاخِرَةِ ۖ وَأُو۟لَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلْخَـٰسِرُونَ

कल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिकुम् कानू अशद्-द मिन्कुम् कुव्वतंव्-व अक्स-र अम्वालंव्-व औलादन, फ़स् तम् तअू बि-ख़लाक़िहिम् फ़स् तम् तअ्तुम् बि- ख़लाक़िकुम कमस् तम्त अल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिकुम् बि-ख़लाक़िहिम् व ख़ुज़्तुम् कल्लज़ी ख़ाज़ू, उलाइ-क हबितत् अअ्मालुहुम् फ़िद्दुन्या वल्आख़िरति व उलाइ-क हुमुल-ख़ासिरून
(मुनाफिक़ो तुम्हारी तो) उनकी मसल है जो तुमसे पहले थे वह लोग तुमसे कू़वत में (भी) ज़्यादा थे और औलाद में (भी) कही बढ़ कर तो वह अपने हिस्से से भी फ़ायदा उठा हो चुके तो जिस तरह तुम से पहले लोग अपने हिस्से से फायदा उठा चुके हैं इसी तरह तुम ने अपने हिस्से से फायदा उठा लिया और जिस तरह वह बातिल में घुसे रहे उसी तरह तुम भी घुसे रहे ये वह लोग हैं जिन का सब किया धरा दुनिया और आखि़रत (दोनों) में अकारत हुआ और यही लोग घाटे में हैं।

9:70

أَلَمْ يَأْتِهِمْ نَبَأُ ٱلَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ قَوْمِ نُوحٍۢ وَعَادٍۢ وَثَمُودَ وَقَوْمِ إِبْرَٰهِيمَ وَأَصْحَـٰبِ مَدْيَنَ وَٱلْمُؤْتَفِكَـٰتِ ۚ أَتَتْهُمْ رُسُلُهُم بِٱلْبَيِّنَـٰتِ ۖ فَمَا كَانَ ٱللَّهُ لِيَظْلِمَهُمْ وَلَـٰكِن كَانُوٓا۟ أَنفُسَهُمْ يَظْلِمُونَ

अलम् यअ्तिहिम् न-बउल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिहिम् क़ौमि नूहिंव्-व आदिंव्व समू-द, व क़ौमि इब्राही-म व अस्हाबि मद य-न वल्मुअ्तफ़िकाति, अतत्हुम् रूसुलुहुम् बिल्बय्यिनाति, फ़मा कानल्लाहु लि-यज़्लि-महुम् व लाकिन् कानू अन्फु-सहुम् यज़्लिमून
क्या इन मुनाफिक़ों को उन लोगों की ख़बर नहीं पहुँची है जो उनसे पहले हो गुज़रे हैं नूह की क़ौम और आद और समूद और इबराहीम की क़ौम और मदियन वाले और उलटी हुयी बस्तियों के रहने वाले कि उनके पास उनके रसूल वाजेए (और रौशन) मौजिज़े लेाकर आए तो (वह मुब्तिलाए अज़ाब हुए) और अल्लाह ने उन पर जुल्म नहीं किया मगर ये लोग ख़ुद अपने ऊपर जुल्म करते थे।

9:71

وَٱلْمُؤْمِنُونَ وَٱلْمُؤْمِنَـٰتُ بَعْضُهُمْ أَوْلِيَآءُ بَعْضٍۢ ۚ يَأْمُرُونَ بِٱلْمَعْرُوفِ وَيَنْهَوْنَ عَنِ ٱلْمُنكَرِ وَيُقِيمُونَ ٱلصَّلَوٰةَ وَيُؤْتُونَ ٱلزَّكَوٰةَ وَيُطِيعُونَ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥٓ ۚ أُو۟لَـٰٓئِكَ سَيَرْحَمُهُمُ ٱللَّهُ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٌۭ

वल्मुअ्मिनू-न वल्मुअ्मिनातु बअ्ज़ुहुम् औलिया-उ बअ्ज़िन्, यअ्मुरू-न बिल मअ्-रूफ़ि व यन्हौ-न अनिल्मुन्करि व युक़ीमूनस्सला-त व युअ्तूनज़्ज़का-त व युतीअूनल्ला-ह व रसूलहू, उलाइ-क स-यर् हमुहुमुल्लाहु, इन्नल्ला-ह अ़ज़ीज़ुन हकीम
और ईमानदार मर्द और ईमानदार औरते उनमें से बाज़ के बाज़ रफीक़ है और नामज़ पाबन्दी से पढ़ते हैं और ज़कात देते हैं और अल्लाह और उसके रसूल की फरमाबरदारी करते हैं यही लोग हैं जिन पर अल्लाह अनक़रीब रहम करेगा बेषक अल्लाह ग़ालिब हिकमत वाला है।

9:72

وَعَدَ ٱللَّهُ ٱلْمُؤْمِنِينَ وَٱلْمُؤْمِنَـٰتِ جَنَّـٰتٍۢ تَجْرِى مِن تَحْتِهَا ٱلْأَنْهَـٰرُ خَـٰلِدِينَ فِيهَا وَمَسَـٰكِنَ طَيِّبَةًۭ فِى جَنَّـٰتِ عَدْنٍۢ ۚ وَرِضْوَٰنٌۭ مِّنَ ٱللَّهِ أَكْبَرُ ۚ ذَٰلِكَ هُوَ ٱلْفَوْزُ ٱلْعَظِيمُ

व-अ़ दल्लाहुल् मुअ्मिनी-न वल्मुअ्मिनाति जन्नातिन् तज्री मिन् तह़्तिहल्-अन्हारू ख़ालिदी-न फ़ीहा व मसाकि-न तय्यि-बतन् फी जन्नाति अदनिन्, व रिज़्वानुम् मिनल्लाहि अक्बरू, ज़ालि-क हुवल् फौज़ुल् -अ़ज़ीम
अल्लाह ने ईमानदार मर्दों और ईमानदारा औरतों से (बेहशत के) उन बाग़ों का वायदा कर लिया है जिनके नीचे नहरें जारी हैं और वह उनमें हमेषा रहेगें (बेहश्त अदन के बाग़ो में उम्दा उम्दा मकानात का (भी वायदा फरमाया) और अल्लाह की ख़़ुशनूदी उन सबसे बालातर है- यही तो बड़ी (आला दर्जे की) कामयाबी है।

9:73

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِىُّ جَـٰهِدِ ٱلْكُفَّارَ وَٱلْمُنَـٰفِقِينَ وَٱغْلُظْ عَلَيْهِمْ ۚ وَمَأْوَىٰهُمْ جَهَنَّمُ ۖ وَبِئْسَ ٱلْمَصِيرُ

या अय्युहन्नबिय्यू ज़ाहिदिल्-कुफ़्फ़ा-र वल्मुनाफ़िक़ी- न वग़्लुज़् अलैहिम्, व मअ्वाहुम् जहन्नमु, व बिअ्सल मसीर
ऐ रसूल कुफ़्फ़ार के साथ (तलवार से) और मुनाफिकों के साथ (ज़बान से) जिहाद करो और उन पर सख़्ती करो और उनका ठिकाना तो जहन्नुम ही है और वह (क्या) बुरी जगह है।

9:74

يَحْلِفُونَ بِٱللَّهِ مَا قَالُوا۟ وَلَقَدْ قَالُوا۟ كَلِمَةَ ٱلْكُفْرِ وَكَفَرُوا۟ بَعْدَ إِسْلَـٰمِهِمْ وَهَمُّوا۟ بِمَا لَمْ يَنَالُوا۟ ۚ وَمَا نَقَمُوٓا۟ إِلَّآ أَنْ أَغْنَىٰهُمُ ٱللَّهُ وَرَسُولُهُۥ مِن فَضْلِهِۦ ۚ فَإِن يَتُوبُوا۟ يَكُ خَيْرًۭا لَّهُمْ ۖ وَإِن يَتَوَلَّوْا۟ يُعَذِّبْهُمُ ٱللَّهُ عَذَابًا أَلِيمًۭا فِى ٱلدُّنْيَا وَٱلْـَٔاخِرَةِ ۚ وَمَا لَهُمْ فِى ٱلْأَرْضِ مِن وَلِىٍّۢ وَلَا نَصِيرٍۢ

यह़्लिफू-न बिल्लाहि मा क़ालू, व ल-क़द् क़ालू कलि-मतल्कुफ्रि व क-फरू बअ्-द इस्लामिहिम् व हम्मू बिमा लम् यनालू, व मा न-क़मू इल्ला अन् अग़्नाहुमुल्लाहु व रसूलुहू मिन् फ़ज्लिही, फ़-इंय्यतूबू यकु खैरल्लहुम्, व इंय्य-तवल्लौ युअ़ज़्ज़िबहुमुल्लाहु अ़ज़ाबन अलीमन्, फिद्दुन्या वल्आख़िरति, व मा लहुम् फिल्अर्ज़ि मिंव्वलिय्यिंव्वला नसीर
ये मुनाफे़क़ीन अल्लाह की क़समें खाते है कि (कोई बुरी बात) नहीं कही हालाकि उन लोगों ने कुफ्ऱ का कलमा ज़रूर कहा और अपने इस्लाम के बाद काफिर हो गए और जिस बात पर क़ाबू न पा सके उसे ठान बैठे और उन लोगें ने (मुसलमानों से) सिर्फ इस वजह से अदावत की कि अपने फज़ल व करम से अल्लाह और उसके रसूल ने दौलत मन्द बना दिया है तो उनके लिए उसमें ख़ैर है कि ये लोग अब भी तौबा कर लें और अगर ये न मानेगें तो अल्लाह उन पर दुनिया और आखि़रत में दर्दनाक अज़ाब नाजि़ल फरमाएगा और तमाम दुनिया में उन का न कोई हामी होगा और न मददगार।

9:75

۞ وَمِنْهُم مَّنْ عَـٰهَدَ ٱللَّهَ لَئِنْ ءَاتَىٰنَا مِن فَضْلِهِۦ لَنَصَّدَّقَنَّ وَلَنَكُونَنَّ مِنَ ٱلصَّـٰلِحِينَ

व मिन्हुम् मन् आ-हदल्ला-ह ल-इन् आताना मिन् फ़ज़्लिही लनस्सद्-द-क़न्-न व ल-नकूनन्-न मिनस्सालिहीन
और इन (मुनाफे़की़न) में से बाज़ ऐसे भी हैं जो अल्लाह से क़ौल क़रार कर चुके थे कि अगर हमें अपने फज़ल (व करम) से (कुछ माल) देगा तो हम ज़रूर ख़ैरात किया करेगें और नेकोकार बन्दे हो जाएगें।

9:76

فَلَمَّآ ءَاتَىٰهُم مِّن فَضْلِهِۦ بَخِلُوا۟ بِهِۦ وَتَوَلَّوا۟ وَّهُم مُّعْرِضُونَ

फ़-लम्मा आताहुम् मिन् फ़ज़्लिही बख़िलू बिही व त- वल्लौ व हुम् मुअ्-रिज़ून
तो जब अल्लाह ने अपने फज़ल (व करम) से उन्हें अता फरमाया-तो लगे उसमें बुख़्ल करने और कतराकर मुह फेरने।

9:77

فَأَعْقَبَهُمْ نِفَاقًۭا فِى قُلُوبِهِمْ إِلَىٰ يَوْمِ يَلْقَوْنَهُۥ بِمَآ أَخْلَفُوا۟ ٱللَّهَ مَا وَعَدُوهُ وَبِمَا كَانُوا۟ يَكْذِبُونَ

फ़-अअ्क़-बहुम् निफ़ाक़न् फ़ी क़ुलूबिहिम् इला यौमि यल्क़ौनहू बिमा अख़्लफुल्ला-ह मा व अ़दूहु व बिमा कानू यक्ज़िबून
फिर उनसे उनके ख़ामयाजे़ (बदले) में अपनी मुलाक़ात के दिन (क़यामत) तक उनके दिल में (गोया खुद) निफाक डाल दिया इस वजह से उन लोगों ने जो अल्लाह से वायदा किया था उसके खि़लाफ किया और इस वजह से कि झूठ बोला करते थे।

9:78

أَلَمْ يَعْلَمُوٓا۟ أَنَّ ٱللَّهَ يَعْلَمُ سِرَّهُمْ وَنَجْوَىٰهُمْ وَأَنَّ ٱللَّهَ عَلَّـٰمُ ٱلْغُيُوبِ

अलम् यअ्लमू अन्नल्ला-ह यअ्लमु सिर्रहुम् व नज्वाहुम् व अन्नल्ला-ह अ़ल्लामुल ग़ुयूब
क्या वह लोग इतना भी न जानते थे कि अल्लाह (उनके) सारे भेद और उनकी सरगोशी (सब कुछ) जानता है और ये कि ग़ैब की बातों से ख़ूब आगाह है।

9:79

ٱلَّذِينَ يَلْمِزُونَ ٱلْمُطَّوِّعِينَ مِنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ فِى ٱلصَّدَقَـٰتِ وَٱلَّذِينَ لَا يَجِدُونَ إِلَّا جُهْدَهُمْ فَيَسْخَرُونَ مِنْهُمْ ۙ سَخِرَ ٱللَّهُ مِنْهُمْ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ

अल्लज़ी-न यल्मिज़ूनल मुत्तव्विई-न मिनल् मुअ्मिनी -न फ़िस्स दक़ाति वल्लज़ी-न ला यजिदू-न इल्ला जुह़्दहुम् फ़-यस्ख़रू-न मिन्हुम्, सख़िरल्लाहु मिन्हुम् व लहुम् अज़ाबुन् अलीम
जो लोग दिल खोलकर ख़ैरात करने वाले मोमिनीन पर (रियाकारी का) और उन मोमिनीन पर जो सिर्फ अपनी मशक्कत (मेहनत) की मज़दूरी पाते (शख़ी का) इल्ज़ाम लगाते हैं फिर उनसे मसख़रापन करते तो अल्लाह भी उन से मसख़रापन करेगा और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है।

9:80

ٱسْتَغْفِرْ لَهُمْ أَوْ لَا تَسْتَغْفِرْ لَهُمْ إِن تَسْتَغْفِرْ لَهُمْ سَبْعِينَ مَرَّةًۭ فَلَن يَغْفِرَ ٱللَّهُ لَهُمْ ۚ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمْ كَفَرُوا۟ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ ۗ وَٱللَّهُ لَا يَهْدِى ٱلْقَوْمَ ٱلْفَـٰسِقِينَ

इस्तग़्फिर् लहुम् औ ला तस्तग़्फिर लहुम्, इन् तस्तग़्फिर् लहुम् सब्ई-न मर्रतन् फ़-लंय्यग्फ़िरल्लाहु लहुम, ज़ालि-क बिअन्नहुम क-फरू बिल्लाहि व रसूलिही, वल्लाहु ला यह़्दिल् क़ौमल-फ़ासिक़ीन
(ऐ रसूल) ख़्वाह तुम उन (मुनाफिक़ों) के लिए मग़फिरत की दुआ मागों या उनके लिए मग़फिरत की दुआ न मागों (उनके लिए बराबर है) तुम उनके लिए सत्तर बार भी बखि़्शश की दुआ मांगोगे तो भी अल्लाह उनको हरगिज़ न बख़्शेगा ये (सज़ा) इस सबब से है कि उन लोगों ने अल्लाह और उसके रसूल के साथ कुफ्र किया और अल्लाह बदकार लोगों को मंजि़लें मकसूद तक नहीं पहुँचाया करता।

9:81

فَرِحَ ٱلْمُخَلَّفُونَ بِمَقْعَدِهِمْ خِلَـٰفَ رَسُولِ ٱللَّهِ وَكَرِهُوٓا۟ أَن يُجَـٰهِدُوا۟ بِأَمْوَٰلِهِمْ وَأَنفُسِهِمْ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ وَقَالُوا۟ لَا تَنفِرُوا۟ فِى ٱلْحَرِّ ۗ قُلْ نَارُ جَهَنَّمَ أَشَدُّ حَرًّۭا ۚ لَّوْ كَانُوا۟ يَفْقَهُونَ

फ़रिहल मुख़ल्लफू न बिमक़् अदिहिम् ख़िला-फ़ रसूलिल्लाहि व करिहू अंय्युज़ाहिदू बिअम्वालिहिम् व अन्फुसिहिम् फ़ी सबीलिल्लाहि व क़ालू ला तन्फिरू फ़िल्हर्रि, क़ुल नारू जहन्न-म अशद्दु हर्रन्, लौ कानू यफ्क़हून
(जंगे तबूक़ में) रसूले अल्लाह के पीछे रह जाने वाले अपनी जगह बैठ रहने (और जिहाद में न जाने) से ख़ुश हुए और अपने माल और आपनी जानों से अल्लाह की राह में जिहाद करना उनको मकरू मालूम हुआ और कहने लगे (इस) गर्मी में (घर से) न निकलो (ऐ रसूल) तुम कह दो कि जहन्नुम की आग (जिसमें तुम चलोगे उससे कहीं ज़्यादा गर्म है।

9:82

فَلْيَضْحَكُوا۟ قَلِيلًۭا وَلْيَبْكُوا۟ كَثِيرًۭا جَزَآءًۢ بِمَا كَانُوا۟ يَكْسِبُونَ

फ़ल्यज़्हकू क़लीलंव् वल्यब्कू कसीरन, जज़ाअम् – बिमा कानू यक्सिबून
अगर वह कुछ समझें जो कुछ वह किया करते थे उसके बदले उन्हें चाहिए कि वह बहुत कम हॅसें और बहुत रोएँ।

9:83

فَإِن رَّجَعَكَ ٱللَّهُ إِلَىٰ طَآئِفَةٍۢ مِّنْهُمْ فَٱسْتَـْٔذَنُوكَ لِلْخُرُوجِ فَقُل لَّن تَخْرُجُوا۟ مَعِىَ أَبَدًۭا وَلَن تُقَـٰتِلُوا۟ مَعِىَ عَدُوًّا ۖ إِنَّكُمْ رَضِيتُم بِٱلْقُعُودِ أَوَّلَ مَرَّةٍۢ فَٱقْعُدُوا۟ مَعَ ٱلْخَـٰلِفِينَ

फ़-इर्र-ज-अ़कल्लाहु इला ताइ-फ़तिम् मिन्हुम् फ़स्तअ्ज़नू-क लिल्ख़ुरूजि फक़ुल्-लन् तख़्रुजू मअि- य अ-बदंव्-व लन् तुक़ातिलू मअि-य अदुव्वन, इन्नकुम् रज़ीतुम बिल्क़ुअूदि अव्व-ल मर्रतिन् फक़्अुदू मअ़ल् ख़ालिफ़ीन
तो (ऐ रसूल) अगर अल्लाह तुम इन मुनाफेक़ीन के किसी गिरोह की तरफ (जिहाद से सहीसालिम) वापस लाए फिर तुमसे (जिहाद के वास्ते) निकलने की इजाज़त माँगें तो तुम साफ़ कह दो कि तुम मेरे साथ (जिहाद के वास्ते) हरगिज़ न निकलने पाओगे और न हरगिज़ दुश्मन से मेरे साथ लड़ने पाओगे जब तुमने पहली मरतबा (घर में) बैठे रहना पसन्द किया तो (अब भी) पीछे रह जाने वालों के साथ (घर में) बैठे रहो।

9:84

وَلَا تُصَلِّ عَلَىٰٓ أَحَدٍۢ مِّنْهُم مَّاتَ أَبَدًۭا وَلَا تَقُمْ عَلَىٰ قَبْرِهِۦٓ ۖ إِنَّهُمْ كَفَرُوا۟ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ وَمَاتُوا۟ وَهُمْ فَـٰسِقُونَ

व ला तुसल्लि अ़ला अ-हदिम् मिन्हुम् मा-त अ-बदंव् – व ला तक़ुम् अला क़ब्रिही, इन्नहुम् क-फरू बिल्लाहि व रसूलिही व मातू व हुम् फ़ासिक़ून
और (ऐ रसूल) उन मुनाफिक़ीन में से जो मर जाए तो कभी ना किसी पर नमाजे़ जनाज़ा पढ़ना और न उसकी क़ब्र पर (जाकर) खडे़ होना इन लोगों ने यक़ीनन अल्लाह और उसके रसूल के साथ कुफ्ऱ किया और बदकारी की हालत में मर (भी) गए।

9:85

وَلَا تُعْجِبْكَ أَمْوَٰلُهُمْ وَأَوْلَـٰدُهُمْ ۚ إِنَّمَا يُرِيدُ ٱللَّهُ أَن يُعَذِّبَهُم بِهَا فِى ٱلدُّنْيَا وَتَزْهَقَ أَنفُسُهُمْ وَهُمْ كَـٰفِرُونَ

व ला तुअ्जिब्-क अम्वालुहुम् व औलादुहुम्, इन्नमा युरीदुल्लाहु अंय्युअ़ज़्ज़ि-बहुम् बिहा फ़िद्दुन्या व तज़्ह- क़ अन्फुसुहुम् व हुम् काफिरून
और उनके माल और उनकी औलाद (की कसरत) तुम्हें ताज्जुब (हैरत) मने डाले (क्योकि) अल्लाह तो बस ये चाहता है कि दुनिया में भी उनके माल और औलाद की बदौलत उनको अज़ाब में मुब्तिला करे और उनकी जान निकालने लगे तो उस वक़्त भी ये काफि़र (के काफि़र ही) रहें।

9:86

وَإِذَآ أُنزِلَتْ سُورَةٌ أَنْ ءَامِنُوا۟ بِٱللَّهِ وَجَـٰهِدُوا۟ مَعَ رَسُولِهِ ٱسْتَـْٔذَنَكَ أُو۟لُوا۟ ٱلطَّوْلِ مِنْهُمْ وَقَالُوا۟ ذَرْنَا نَكُن مَّعَ ٱلْقَـٰعِدِينَ

व इज़ा उन्ज़िलत् सूरतुन् अन् आमिनू बिल्लाहि व जाहिदू म-अ रसूलिहिस्तअ्ज़-न-क उलुत्तौलि मिन्हुम् व क़ालू ज़र्ना नकुम् मअल् क़ाअिदीन
और जब कोई सूरा इस बारे में नाजि़ल हुआ कि अल्लाह को मानों और उसके रसूल के साथ जिहाद करो तो जो उनमें से दौलत वाले हैं वह तुमसे इजाज़त मांगते हैं और कहते हैं कि हमें (यहीं छोड़ दीजिए) कि हम भी (घर बैठने वालो के साथ (बैठे) रहें।

9:87

رَضُوا۟ بِأَن يَكُونُوا۟ مَعَ ٱلْخَوَالِفِ وَطُبِعَ عَلَىٰ قُلُوبِهِمْ فَهُمْ لَا يَفْقَهُونَ

रज़ू बिअंय्यकूनू मअल् ख़्वालिफ़ि व तुबि-अ़ अला क़ुलूबिहिम् फ़हुम् ला यफ़्क़हून
ये इस बात से ख़ुश हैं कि पीछे रह जाने वालों (औरतों, बच्चों, बीमारो के साथ बैठे) रहें और (गोया) उनके दिल।

9:88

لَـٰكِنِ ٱلرَّسُولُ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ مَعَهُۥ جَـٰهَدُوا۟ بِأَمْوَٰلِهِمْ وَأَنفُسِهِمْ ۚ وَأُو۟لَـٰٓئِكَ لَهُمُ ٱلْخَيْرَٰتُ ۖ وَأُو۟لَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلْمُفْلِحُونَ

लाकिनिर्रसूलु वल्लज़ी-न आमनू म-अहू जाहदू बिअम्वालिहिम् व अन्फुसिहिम्, व उलाइ-क लहुमुल् – ख़ैरातु व उलाइ-क हुमुल मुफ्लिहून
पर मोहर कर दी गई तो ये कुछ नहीं समझतें। मगर रसूल और जो लोग उनके साथ ईमान लाए हैं उन लोगों ने अपने अपने माल और अपनी अपनी जानों से जिहाद किया- यही वह लोग हैं जिनके लिए (हर तरह की) भलाइयाँ हैं और यही लोग कामयाब होने वाले हैं।

9:89

أَعَدَّ ٱللَّهُ لَهُمْ جَنَّـٰتٍۢ تَجْرِى مِن تَحْتِهَا ٱلْأَنْهَـٰرُ خَـٰلِدِينَ فِيهَا ۚ ذَٰلِكَ ٱلْفَوْزُ ٱلْعَظِيمُ

अ-अद्दल्लाहु लहुम् जन्नातिन् तज्री मिन् तह़्तिहल् अन्हारू ख़ालिदी-न फ़ीहा, ज़ालिकल् फौज़ुल अज़ीम
अल्लाह ने उनके वास्ते (बेहष्त) के वह (हरे भरे) बाग़ तैयार कर रखे हैं जिनके (दरख़्तों के) नीचे नहरे जारी हैं (और ये) इसमें हमेशा रहेंगें यही तो बड़ी कामयाबी हैं।

9:90

وَجَآءَ ٱلْمُعَذِّرُونَ مِنَ ٱلْأَعْرَابِ لِيُؤْذَنَ لَهُمْ وَقَعَدَ ٱلَّذِينَ كَذَبُوا۟ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ ۚ سَيُصِيبُ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ مِنْهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌۭ

व जाअल् मुअ़ज़्ज़िरू-न मिनल् अअ्-राबि लियुअ् ज़-न लहुम् व क़-अदल्लज़ी-न क-ज़बुल्ला-ह व रसूलहू, सयुसीबुल्लज़ी-न क-फ़रू मिन्हुम् अ़ज़ाबुन अलीम
और (तुम्हारे पास) कुछ हीला करने वाले गवार देहाती (भी) आ मौजदू हुए ताकि उनको भी (पीछे रह जाने की) इजाज़त दी जाए और जिन लोगों ने अल्लाह और उसके रसूल से झूठ कहा था वह (घर में) बैठ रहे (आए तक नहीं) उनमें से जिन लोंगों ने कुफ्ऱ एख़्तेयार किया अनक़रीब ही उन पर दर्दनाक अज़ाब आ पहुँचेगा।

9:91

لَّيْسَ عَلَى ٱلضُّعَفَآءِ وَلَا عَلَى ٱلْمَرْضَىٰ وَلَا عَلَى ٱلَّذِينَ لَا يَجِدُونَ مَا يُنفِقُونَ حَرَجٌ إِذَا نَصَحُوا۟ لِلَّهِ وَرَسُولِهِۦ ۚ مَا عَلَى ٱلْمُحْسِنِينَ مِن سَبِيلٍۢ ۚ وَٱللَّهُ غَفُورٌۭ رَّحِيمٌۭ

लै-स अ़लज़्जु-अफ़ा इ वला अलल् मरज़ा वला अलल्लज़ी-न ला यजिदू-न मा युन्फ़िक़ू-न ह-रजुन् इज़ा न-सहू लिल्लाहि व रसूलिही, मा अलल् मुह्सिनी-न मिन् सबीलिन्, वल्लाहु ग़फूरुर्रहीम
(ऐ रसूल जिहाद में न जाने का) न तो कमज़ोरों पर कुछ गुनाह है न बीमारों पर और न उन लोगों पर जो कुछ नहीं पाते कि ख़र्च करें बशर्ते कि ये लोग अल्लाह और उसके रसूल की ख़ैर ख़्वाही करें नेकी करने वालों पर (इल्ज़ाम की) कोई सबील नहीं और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है।

9:92

وَلَا عَلَى ٱلَّذِينَ إِذَا مَآ أَتَوْكَ لِتَحْمِلَهُمْ قُلْتَ لَآ أَجِدُ مَآ أَحْمِلُكُمْ عَلَيْهِ تَوَلَّوا۟ وَّأَعْيُنُهُمْ تَفِيضُ مِنَ ٱلدَّمْعِ حَزَنًا أَلَّا يَجِدُوا۟ مَا يُنفِقُونَ

वला अ़लल्लज़ी-न इज़ा मा अतौ-क लितह़्मि-लहुम् क़ुल्-त ला अजिदु मा अह़्मिलुकुम् अ़लैहि, तवल्लौ व अअ्युनुहुम् तफ़ीज़ु मिनद्-दम्अिह-ज़नन् अल्ला यजिदू मा युन्फ़िक़ून
और न उन्हीं लोगों पर कोई इल्ज़ाम है जो तुम्हारे पास आए कि तुम उनके लिए सवारी बाहम पहुँचा दो और तुमने कहा कि मेरे पास (तो कोई सवारी) मौजूद नहीं कि तुमको उस पर सवार करूँ तो वह लोग (मजबूरन) फिर गए और हसरत (व अफसोस) उसे उस ग़म में कि उन को ख़र्च मयस्सर न आया।

9:93

۞ إِنَّمَا ٱلسَّبِيلُ عَلَى ٱلَّذِينَ يَسْتَـْٔذِنُونَكَ وَهُمْ أَغْنِيَآءُ ۚ رَضُوا۟ بِأَن يَكُونُوا۟ مَعَ ٱلْخَوَالِفِ وَطَبَعَ ٱللَّهُ عَلَىٰ قُلُوبِهِمْ فَهُمْ لَا يَعْلَمُونَ

इन्नमस्सबीलु अलल्लज़ी-न यस्तअ्ज़िनून-क व हुम् अग़्निया-उ, रज़ू बिअंय्यकूनू मअ़ल् ख़्वालिफ़ि, व त-बअ़ल्लाहु अला क़ुलूबिहिम् फ़हुम् ला यअ्लमून
उनकी आँखों से आँसू जारी थे (इल्ज़ाम की) सबील तो सिर्फ उन्हीं लोगों पर है जिन्होंने बावजूद मालदार होने के तुमसे (जिहाद में) न जाने की इजाज़त चाही और उनके पीछे रह जाने वाले (औरतों,बच्चों) के साथ रहना पसन्द आया और अल्लाह ने उनके दिलों पर (गोया) मोहर कर दी है तो ये लोग कुछ नहीं जानते।

9:94

يَعْتَذِرُونَ إِلَيْكُمْ إِذَا رَجَعْتُمْ إِلَيْهِمْ ۚ قُل لَّا تَعْتَذِرُوا۟ لَن نُّؤْمِنَ لَكُمْ قَدْ نَبَّأَنَا ٱللَّهُ مِنْ أَخْبَارِكُمْ ۚ وَسَيَرَى ٱللَّهُ عَمَلَكُمْ وَرَسُولُهُۥ ثُمَّ تُرَدُّونَ إِلَىٰ عَـٰلِمِ ٱلْغَيْبِ وَٱلشَّهَـٰدَةِ فَيُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ

यअ्तज़िरू-न इलैकुम् इज़ा र-जअ्तुम् इलैहिम्, क़ुल-ला तअ्तज़िरू लन्नुअ्मि-न लकुम् क़द् नब्ब अनल्लाहु मिन् अख्बारिकुम्, व स-यरल्लाहु अ-म-लकुम् व रसूलुहू सुम्म तुरद्दू-न इला आलिमिल्ग़ैबि वश्शहादति फ़्युनब्बिउकुम् बिमा कुन्तुम् तअ्मलून
जब तुम उनके पास (जिहाद से लौट कर) वापस आओगे तो ये (मुनाफिक़ीन) तुमसे (तरह तरह) की माअज़रत करेंगे (ऐ रसूल) तुम कह दो कि बातें न बनाओ हम हरगि़ज़ तुम्हारी बात न मानेंगे (क्योंकि) हमे तो अल्लाह ने तुम्हारे हालात से आगाह कर दिया है अनक़ीरब अल्लाह और उसका रसूल तुम्हारी कारस्तानी को मुलाहज़ा फरमाएगें फिर तुम ज़ाहिर व बातिन के जानने वालों (अल्लाह) की हुज़ूरी में लौटा दिए जाओगे तो जो कुछ तुम (दुनिया में) करते थे (ज़र्रा ज़र्रा) बता देगा।

9:95

سَيَحْلِفُونَ بِٱللَّهِ لَكُمْ إِذَا ٱنقَلَبْتُمْ إِلَيْهِمْ لِتُعْرِضُوا۟ عَنْهُمْ ۖ فَأَعْرِضُوا۟ عَنْهُمْ ۖ إِنَّهُمْ رِجْسٌۭ ۖ وَمَأْوَىٰهُمْ جَهَنَّمُ جَزَآءًۢ بِمَا كَانُوا۟ يَكْسِبُونَ

स-यह़्लिफू-न बिल्लाहि लकुम् इज़न्क़लब्तुम् इलैहिम् लितुअ्-रिज़ू अन्हुम्, फ़-अअ्-रिज़ू अन्हुम्, इन्नहुम् रिज्युंव-व मअ्वाहुम् जहन्नमु, जज़ाअम् बिमा कानू यक्सिबून
जब तुम उनके पास (जिहाद से) वापस आओगे तो तुम्हारे सामने अल्लाह की क़समें खाएगें ताकि तुम उनसे दरगुज़र करो तो तुम उनकी तरफ से मुँह फेर लो बेशक ये लोग नापाक हैं और उनका ठिकाना जहन्नुम है (ये) सज़ा है उसकी जो ये (दुनिया में) किया करते थे।

9:96

يَحْلِفُونَ لَكُمْ لِتَرْضَوْا۟ عَنْهُمْ ۖ فَإِن تَرْضَوْا۟ عَنْهُمْ فَإِنَّ ٱللَّهَ لَا يَرْضَىٰ عَنِ ٱلْقَوْمِ ٱلْفَـٰسِقِينَ

यह़्लिफू-न लकुम् लितरज़ौ अन्हुम्, फ़-इन् तरज़ौ अ़न्हुम् फ़-इन्नल्ला-ह ला यरज़ा अनिल् क़ौमिल्-फ़ासिक़ीन
तुम्हारे सामने ये लोग क़समें खाते हैं ताकि तुम उनसे राज़ी हो (भी) जाओ तो अल्लाह बदकार लोगों से हरगिज़ कभी राज़ी नहीं होगा।

9:97

ٱلْأَعْرَابُ أَشَدُّ كُفْرًۭا وَنِفَاقًۭا وَأَجْدَرُ أَلَّا يَعْلَمُوا۟ حُدُودَ مَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ عَلَىٰ رَسُولِهِۦ ۗ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌۭ

अल्अअ़राबु अशद्दु कुफ्रंव्-व निफाक़ंव् व अज्दरू अल्ला यअ्लमू हुदू-द मा अन्ज़लल्लाहु अला रसूलिही, वल्लाहु अ़लीमुन्, हकीम
(ये) अरब के गॅवार देहाती कुफ्र व निफाक़ में बड़े सख़्त हैं और इसी क़ाबिल हैं कि जो किताब अल्लाह ने अपने रसूल पर नाजि़ल फरमाई है उसके एहक़ाम न जानें और अल्लाह तो बड़ा दाना हकीम है।

9:98

وَمِنَ ٱلْأَعْرَابِ مَن يَتَّخِذُ مَا يُنفِقُ مَغْرَمًۭا وَيَتَرَبَّصُ بِكُمُ ٱلدَّوَآئِرَ ۚ عَلَيْهِمْ دَآئِرَةُ ٱلسَّوْءِ ۗ وَٱللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌۭ

व मिनल्-अअ्-राबि मंय्यत्तख़िज़ु मा युन्फ़िक़ु मग़्र्मंव्-व य-तरब्बसु बिकुमुद् दवाइ-र, अलैहिम् दाइ-रतुस्सौ-इ, वल्लाहु समीअुन् अ़लीम
और कुछ गॅवार देहाती (ऐसे भी हैं कि जो कुछ अल्लाह की) राह में खर्च करते हैं उसे तावान (जुर्माना) समझते हैं और तुम्हारे हक़ में (ज़माने की) गर्दिशों के मुन्तजि़र (इन्तेज़ार में) हैं उन्हीं पर (ज़माने की) बुरी गर्दिश पड़े और अल्लाह तो सब कुछ सुनता जानता है।

9:99

وَمِنَ ٱلْأَعْرَابِ مَن يُؤْمِنُ بِٱللَّهِ وَٱلْيَوْمِ ٱلْـَٔاخِرِ وَيَتَّخِذُ مَا يُنفِقُ قُرُبَـٰتٍ عِندَ ٱللَّهِ وَصَلَوَٰتِ ٱلرَّسُولِ ۚ أَلَآ إِنَّهَا قُرْبَةٌۭ لَّهُمْ ۚ سَيُدْخِلُهُمُ ٱللَّهُ فِى رَحْمَتِهِۦٓ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٌۭ رَّحِيمٌۭ

व मिनल-अअ्-राबि मंय्युअ्मिनु बिल्लाहि वल्यौमिल् आख़िरि व यत्तख़िज़ु मा युन्फ़िक़ु क़ुरूबातिन् अिन्दल्लाहि व स-लवातिर्रसूलि, अला इन्नहा क़ुर- बतुल्लहुम् सयुदख़िलुहुमुल्लाहु फ़ी रह़्मतिही, इन्नल्ला-ह ग़फूरुर्रहीम
और कुछ देहाती तो ऐसे भी हैं जो अल्लाह और आखि़रत पर ईमान रखते हैं और जो कुछ खर्च करते है उसे अल्लाह की (बारगाह में) नज़दीकी और रसूल की दुआओं का ज़रिया समझते हैं आगाह रहो वाक़ई ये (ख़ैरात) ज़रूर उनके तक़र्रुब (क़रीब होने का) का बाइस है अल्लाह उन्हें बहुत जल्द अपनी रहमत में दाखि़ल करेगा बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है।

9:100

وَٱلسَّـٰبِقُونَ ٱلْأَوَّلُونَ مِنَ ٱلْمُهَـٰجِرِينَ وَٱلْأَنصَارِ وَٱلَّذِينَ ٱتَّبَعُوهُم بِإِحْسَـٰنٍۢ رَّضِىَ ٱللَّهُ عَنْهُمْ وَرَضُوا۟ عَنْهُ وَأَعَدَّ لَهُمْ جَنَّـٰتٍۢ تَجْرِى تَحْتَهَا ٱلْأَنْهَـٰرُ خَـٰلِدِينَ فِيهَآ أَبَدًۭا ۚ ذَٰلِكَ ٱلْفَوْزُ ٱلْعَظِيمُ

वस्साबिक़ू नल् अव्वलू न मिनल्मुहाजिरी-न वल् अन्सारि वल्लज़ीनत्त-ब अूहुम् बि-इह़्सानिर्- रज़ियल्लाहु अन्हुम् व रज़ू अन्हु व अ-अद्-द लहुम् जन्नातिन् तज्री तह् तहल्-अन्हारू ख़ालिदी-न फ़ीहा अ-बदन्, ज़ालिकल् फौज़ुल अज़ीम
और मुहाजिरीन व अन्सार में से (ईमान की तरफ) सबक़त (पहल) करने वाले और वह लोग जिन्होंने नेक नीयती से (कुबूले ईमान में उनका साथ दिया अल्लाह उनसे राज़ी और वह अल्लाह से ख़ुश और उनके वास्ते अल्लाह ने (वह हरे भरे) बाग़ जिन के नीचे नहरें जारी हैं तैयार कर रखे हैं वह हमेशा अब्दआलाबाद (हमेशा) तक उनमें रहेगें यही तो बड़ी कामयाबी हैं।

9:101

وَمِمَّنْ حَوْلَكُم مِّنَ ٱلْأَعْرَابِ مُنَـٰفِقُونَ ۖ وَمِنْ أَهْلِ ٱلْمَدِينَةِ ۖ مَرَدُوا۟ عَلَى ٱلنِّفَاقِ لَا تَعْلَمُهُمْ ۖ نَحْنُ نَعْلَمُهُمْ ۚ سَنُعَذِّبُهُم مَّرَّتَيْنِ ثُمَّ يُرَدُّونَ إِلَىٰ عَذَابٍ عَظِيمٍۢ

व मिम्-मन् हौलकुम् मिनल-अअ्-राबि मुनाफ़िक़ू-न, व मिन् अह़्लिल-मदीनति, म-रदू अलन्निफ़ाक़ि, ला तअ्लमुहुम्, नह्नु नअ्लमुहुम्, सनुअ़ज़्ज़िबुहुम् मर्रतैनि सुम्-म युरद्दू-न इला अ़ज़ाबिन अज़ीम
और (मुसलमानों) तुम्हारे एतराफ़ (आस पास) के गॅवार देहातियों में से बाज़ मुनाफिक़ (भी) हैं और ख़ुद मदीने के रहने वालों मे से भी (बाज़ मुनाफिक़ हैं) जो निफ़ाक पर अड़ गए हैं (ऐ रसूल) तुम उन को नहीं जानते (मगर) हम उनको (ख़ूब) जानते हैं अनक़रीब हम (दुनिया में) उनकी दोहरी सज़ा करेगें फिर ये लोग (क़यामत में) एक बड़े अज़ाब की तरफ लौटाए जाएगें।

9:102

وَءَاخَرُونَ ٱعْتَرَفُوا۟ بِذُنُوبِهِمْ خَلَطُوا۟ عَمَلًۭا صَـٰلِحًۭا وَءَاخَرَ سَيِّئًا عَسَى ٱللَّهُ أَن يَتُوبَ عَلَيْهِمْ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٌۭ رَّحِيمٌ

व आखरू-नअ् त-रफू बिज़ुनूबिहिम् ख़-लतू अ़-मलन् सालिहंव्-व आख़-र सय्यिअन्, असल्लाहु अंय्यतू-ब अ़लैहिम्, इन्नल्ला-ह ग़फूरुर्रहीम
और कुछ लोग हैं जिन्होंने अपने गुनाहों का (तो) एकरार किया (मगर) उन लोगों ने भले काम को और कुछ बुरे काम को मिला जुला (कर गोलमाल) कर दिया क़रीब है कि अल्लाह उनकी तौबा कु़बूल करे (क्योंकि) अल्लाह तो यक़ीनी बड़ा बख़्षने वाला मेहरबान हैं।

9:103

خُذْ مِنْ أَمْوَٰلِهِمْ صَدَقَةًۭ تُطَهِّرُهُمْ وَتُزَكِّيهِم بِهَا وَصَلِّ عَلَيْهِمْ ۖ إِنَّ صَلَوٰتَكَ سَكَنٌۭ لَّهُمْ ۗ وَٱللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ

ख़ुज़् मिन् अम्वालिहिम् स-द-क़तन् तुतह़्हिरूहुम् व तुज़क्कीहिम् बिहा व सल्लि अलैहिम्, इन्-न सलात-क स-कनुल्लहुम्, वल्लाहु समीअुन् अलीम
(ऐ रसूल) तुम उनके माल की ज़कात लो (और) इसकी बदौलत उनको (गुनाहो से) पाक साफ करों और उनके वास्ते दुआए ख़ैर करो क्योंकि तुम्हारी दुआ इन लोगों के हक़ में इत्मेनान (का बाइस है) और अल्लाह तो (सब कुछ) सुनता (और) जानता है।

9:104

أَلَمْ يَعْلَمُوٓا۟ أَنَّ ٱللَّهَ هُوَ يَقْبَلُ ٱلتَّوْبَةَ عَنْ عِبَادِهِۦ وَيَأْخُذُ ٱلصَّدَقَـٰتِ وَأَنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلتَّوَّابُ ٱلرَّحِيمُ

अलम् यअ्लमू अन्नल्ला-ह हु-व यक़्बलुत्तौब-त अन् अिबादिही व यअ्ख़ुज़ुस्स-दक़ाति व अन्नल्ला-ह हुवत्-तव्वाबुर्रहीम
क्या इन लोगों ने इतने भी नहीं जाना यक़ीनन अल्लाहबन्दों की तौबा क़़ुबूल करता है और वही ख़ैरातें (भी) लेता है और इसमें शक नहीं कि वही तौबा का बड़ा कु़बूल करने वाला मेहरबान है।

9:105

وَقُلِ ٱعْمَلُوا۟ فَسَيَرَى ٱللَّهُ عَمَلَكُمْ وَرَسُولُهُۥ وَٱلْمُؤْمِنُونَ ۖ وَسَتُرَدُّونَ إِلَىٰ عَـٰلِمِ ٱلْغَيْبِ وَٱلشَّهَـٰدَةِ فَيُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ

व क़ुलिअ्मलू फ़-स-यरल्लाहु अ-म-लकुम् व रसूलुहू वल्-मुअ्मिनू-न, व सतुरद्दू-न इला आलिमिल-ग़ैबि वश्शहा दति फ़-युनब्बिउकुम् बिमा कुन्तुम् तअ्मलून
और (ऐ रसूल) तुम कह दो कि तुम लोग अपने अपने काम किए जाओ अभी तो अल्लाह और उसका रसूल और मोमिनीन तुम्हारे कामों को देखेगें और बहुत जल्द (क़यामत में) ज़ाहिर व बातिन के जानने वाले (अल्लाह) की तरफ लौटाए जाएगें तब वह जो कुछ भी तुम करते थे तुम्हें बता देगा।

9:106

وَءَاخَرُونَ مُرْجَوْنَ لِأَمْرِ ٱللَّهِ إِمَّا يُعَذِّبُهُمْ وَإِمَّا يَتُوبُ عَلَيْهِمْ ۗ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌۭ

व आख़रू-न मुरजौ-न लिअम्रिल्लाहि इम्मा युअ़ज़्ज़िबुहुम् व इम्मा यतूबु अलैहिम्, वल्लाहु अलीमुन् हकीम
और कुछ लोग हैं जो हुक्मे अल्लाह के उम्मीदवार किए गए हैं (उसको अख़्तेयार है) ख़्वाह उन पर अज़ाब करे या उन पर मेहरबानी करे और अल्लाह (तो) बड़ा वाकिफकार हिकमत वाला है।

9:107

وَٱلَّذِينَ ٱتَّخَذُوا۟ مَسْجِدًۭا ضِرَارًۭا وَكُفْرًۭا وَتَفْرِيقًۢا بَيْنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ وَإِرْصَادًۭا لِّمَنْ حَارَبَ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ مِن قَبْلُ ۚ وَلَيَحْلِفُنَّ إِنْ أَرَدْنَآ إِلَّا ٱلْحُسْنَىٰ ۖ وَٱللَّهُ يَشْهَدُ إِنَّهُمْ لَكَـٰذِبُونَ

वल्लज़ीनत्त-ख़ज़ू मस्जिदन ज़िरारंव्-व कुफ्रंव् व तफ्रीक़म्-बैनल्मुअ्मिनी-न व इरसादल्-लिमन् हा-रबल्ला-ह व रसूलहू मिन् क़ब्लु, व ल यह़्लिफुन्-न इन् अरद्-ना इल्लल्-हुस्-ना, वल्लाहु यश्हदु इन्नहुम् लकाज़िबून
और (वह लोग भी मुनाफिक़ हैं) जिन्होने (मुसलमानों के) नुकसान पहुचाने और कुफ्ऱ करने वाले और मोमिनीन के दरम्यिान तफरक़ा (फूट) डालते और उस शख़्स की घात में बैठने के वास्ते मस्जिद बनाकर खड़ी की है जो अल्लाह और उसके रसूल से पहले लड़ चुका है (और लुत्फ़ तो ये है कि) ज़रूर क़समें खाएगें कि हमने भलाई के सिवा कुछ और इरादा ही नहीं किया और अल्लाह ख़ुद गवाही देता है।

9:108

لَا تَقُمْ فِيهِ أَبَدًۭا ۚ لَّمَسْجِدٌ أُسِّسَ عَلَى ٱلتَّقْوَىٰ مِنْ أَوَّلِ يَوْمٍ أَحَقُّ أَن تَقُومَ فِيهِ ۚ فِيهِ رِجَالٌۭ يُحِبُّونَ أَن يَتَطَهَّرُوا۟ ۚ وَٱللَّهُ يُحِبُّ ٱلْمُطَّهِّرِينَ

ला तक़ुम् फ़ीहि अ-बदन्, ल-मस्जिदुन् उस्सि-स अलत्तक़्वा मिन् अव्वलि यौमिन् अ-हक़्क़ु अन् तक़ू-म फ़ीहि, फीहि रिजालुंय्युहिब्बू-न अंय्यत तह़्हरू, वल्लाहु युहिब्बुल मुत्तह़्हिरीन
ये लोग यक़ीनन झूठे है (ऐ रसूल) तुम इस (मस्जिद) में कभी खड़े भी न होना वह मस्जिद जिसकी बुनियाद अव्वल रोज़ से परहेज़गारी पर रखी गई है वह ज़रूर उसकी ज़्यादा हक़दार है कि तुम उसमें खडे़ होकर (नमाज़ पढ़ो क्योंकि) उसमें वह लोग हैं जो पाक व पाकीज़ा रहने को पसन्द करते हैं और अल्लाह भी पाक व पाकीज़ा रहने वालों को दोस्त रखता है।

9:109

أَفَمَنْ أَسَّسَ بُنْيَـٰنَهُۥ عَلَىٰ تَقْوَىٰ مِنَ ٱللَّهِ وَرِضْوَٰنٍ خَيْرٌ أَم مَّنْ أَسَّسَ بُنْيَـٰنَهُۥ عَلَىٰ شَفَا جُرُفٍ هَارٍۢ فَٱنْهَارَ بِهِۦ فِى نَارِ جَهَنَّمَ ۗ وَٱللَّهُ لَا يَهْدِى ٱلْقَوْمَ ٱلظَّـٰلِمِينَ

अ-फ़-मन् अस्स-स बुन्यानहू अ़ला तक़्वा मिनल्लाहि व रिज़्वानिन् ख़ैरून् अम् मन् अस्स-स बुन्यानहू अला शफा जुरूफ़िन् हारिन् फ़न्हा-र बिही फी नारि जहन्न-म, वल्लाहु ला यह़्दिल कौमज़्-ज़ालिमीन
क्या जिस शख़्स ने अल्लाह के ख़ौफ और ख़ुशनूदी पर अपनी इमारत की बुनियाद डाली हो वह ज़्यादा अच्छा है या वह शख़्स जिसने अपनी इमारत की बुनियाद इस बोदे किनारे के लब पर रखी हो जिसमें दरार पड़ चुकी हो और अगर वह चाहता हो फिर उसे ले दे के जहन्नुम की आग में फट पडे़ और अल्लाह ज़ालिम लोगों को मंजि़लें मक़सूद तक नहीं पहुचाया करता।

9:110

لَا يَزَالُ بُنْيَـٰنُهُمُ ٱلَّذِى بَنَوْا۟ رِيبَةًۭ فِى قُلُوبِهِمْ إِلَّآ أَن تَقَطَّعَ قُلُوبُهُمْ ۗ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ

ला यज़ालु बुन्यानु-हुमुल्लज़ी बनौ री-बतन् फ़ी क़ुलूबिहिम् इल्ला अन् त-क़त्त-अ क़ुलूबुहुम्, वल्लाहु अ़लीमुन् हकीम
(ये इमारत की) बुनियाद जो उन लोगों ने क़ायम की उसके सबब से उनके दिलो में हमेषा धरपकड़ रहेगी यहाँ तक कि उनके दिलों के परख़चे उड़ जाएँ और अल्लाह तो बड़ा वाकि़फकार हकीम हैं।

9:111

۞ إِنَّ ٱللَّهَ ٱشْتَرَىٰ مِنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ أَنفُسَهُمْ وَأَمْوَٰلَهُم بِأَنَّ لَهُمُ ٱلْجَنَّةَ ۚ يُقَـٰتِلُونَ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ فَيَقْتُلُونَ وَيُقْتَلُونَ ۖ وَعْدًا عَلَيْهِ حَقًّۭا فِى ٱلتَّوْرَىٰةِ وَٱلْإِنجِيلِ وَٱلْقُرْءَانِ ۚ وَمَنْ أَوْفَىٰ بِعَهْدِهِۦ مِنَ ٱللَّهِ ۚ فَٱسْتَبْشِرُوا۟ بِبَيْعِكُمُ ٱلَّذِى بَايَعْتُم بِهِۦ ۚ وَذَٰلِكَ هُوَ ٱلْفَوْزُ ٱلْعَظِيمُ

इन्नल्लाहश्तरा मिनल्मुअ्मिनी न अन्फु सहुम् व अम्वालहुम् बिअन्-न लहुमुल्जन्न-त, युक़ातिलू-न फ़ी सबीलिल्लाहि फ़-यक़्तुलू-न व युक़्तलू-न, वअ्दन् अलैहि हक़्क़न् फित्तौराति वल्इन्जीलि वल्क़ुरआनि, व मन् औफ़ा बि-अ़ह़्दिही मिनल्लाहि फ़स्तब्शिरू बिबैअिकुमुल्लज़ी बायअ्तुम् बिही, व ज़ालि-क हुवल् फौज़ुल अज़ीम
इसमें तो शक ही नहीं कि अल्लाह ने मोमिनीन से उनकी जानें और उनके माल इस बात पर ख़रीद लिए हैं कि (उनकी क़ीमत) उनके लिए बेहष्त है (इसी वजह से) ये लोग अल्लाह की राह में लड़ते हैं तो (कुफ़्फ़ार को) मारते हैं और ख़ुद (भी) मारे जाते हैं (ये) पक्का वायदा है (जिसका पूरा करना) अल्लाह पर लाजि़म है और ऐसा पक्का है कि तौरैत और इन्जील और क़ुरान (सब) में (लिखा हुआ है) और अपने एहद का पूरा करने वाला अल्लाह से बढ़कर कौन है तुम तो अपनी ख़रीद फरोख़्त से जो तुमने अल्लाह से की है खुषियाँ मनाओ यही तो बड़ी कामयाबी है।

9:112

ٱلتَّـٰٓئِبُونَ ٱلْعَـٰبِدُونَ ٱلْحَـٰمِدُونَ ٱلسَّـٰٓئِحُونَ ٱلرَّٰكِعُونَ ٱلسَّـٰجِدُونَ ٱلْـَٔامِرُونَ بِٱلْمَعْرُوفِ وَٱلنَّاهُونَ عَنِ ٱلْمُنكَرِ وَٱلْحَـٰفِظُونَ لِحُدُودِ ٱللَّهِ ۗ وَبَشِّرِ ٱلْمُؤْمِنِينَ

अत्ता-इबूनल्-आबिदूनल् हामिदूनस् सा-इहूनर् – राकिअूनस्-साजिदूनल् आमिरू-न बिल्मअ्-रूफ़ि वन्नाहू-न अनिल्मुन्करि वल्हाफ़िज़ू-न लिहुदूदिल्लाहि, व बश्शिरिल् मुअ्मिनीन
(ये लोग) तौबा करने वाले इबादत गुज़ार (अल्लाह की) हम्दो सना (तारीफ़) करने वाले (उस की राह में) सफर करने वाले रूकूउ करने वाले सजदा करने वाले नेक काम का हुक्म करने वाले और बुरे काम से रोकने वाले और अल्लाह की (मुक़र्रर की हुयी) हदो को निगाह रखने वाले हैं और (ऐ रसूल) उन मोमिनीन को (बेहिष्त की) ख़ुषख़बरी दे दो।

9:113

مَا كَانَ لِلنَّبِىِّ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ أَن يَسْتَغْفِرُوا۟ لِلْمُشْرِكِينَ وَلَوْ كَانُوٓا۟ أُو۟لِى قُرْبَىٰ مِنۢ بَعْدِ مَا تَبَيَّنَ لَهُمْ أَنَّهُمْ أَصْحَـٰبُ ٱلْجَحِيمِ

मा का-न लिन्नबिय्यि वल्लज़ी-न आमनू अंय्यस्तग़्फिरू लिल्मुश्रिकी-न व लौ कानू उली क़ुर्बा मिम्-बअ्दि मा तबय्य-न लहुम् अन्नहुम् अस्हाबुल्-जहीम
नबी और मोमिनीन पर जब ज़ाहिर हो चुका कि मुशरेकीन जहन्नुमी है तो उसके बाद मुनासिब नहीं कि उनके लिए मग़फिरत की दुआए माँगें अगरचे वह मुशरेकीन उनके क़राबतदार हो (क्यों न) हो।

9:114

وَمَا كَانَ ٱسْتِغْفَارُ إِبْرَٰهِيمَ لِأَبِيهِ إِلَّا عَن مَّوْعِدَةٍۢ وَعَدَهَآ إِيَّاهُ فَلَمَّا تَبَيَّنَ لَهُۥٓ أَنَّهُۥ عَدُوٌّۭ لِّلَّهِ تَبَرَّأَ مِنْهُ ۚ إِنَّ إِبْرَٰهِيمَ لَأَوَّٰهٌ حَلِيمٌۭ

व मा कानस्तिग़्फ़ारू इब्राही-म लिअबीहि इल्ला अम्- मौअि-दतिंव् व-अ-दहा इय्याहु, फ़-लम्मा तबय्य-न लहू अन्नहू अदुव्वुल्-लिल्लाहि त बर्र-अ मिन्हु, इन्-न इब्राही-म ल-अव्वाहुन् हलीम
और इबराहीम का अपने बाप के लिए मग़फिरत की दुआ माँगना सिर्फ इस वायदे की वजह से था जो उन्होंने अपने बाप से कर लिया था फिर जब उनको मालूम हो गया कि वह यक़ीनी अल्लाह का दुश्मन है तो उससे बेज़ार हो गए, बेशक इबराहीम यक़ीनन बड़े दर्दमन्द बुर्दबार (सहन करने वाले) थे।

9:115

وَمَا كَانَ ٱللَّهُ لِيُضِلَّ قَوْمًۢا بَعْدَ إِذْ هَدَىٰهُمْ حَتَّىٰ يُبَيِّنَ لَهُم مَّا يَتَّقُونَ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ بِكُلِّ شَىْءٍ عَلِيمٌ

व मा कानल्लाहु लियुज़िल्-ल क़ौमम् बअ्-द इज़् हदाहुम् हत्ता युबय्यि-न लहुम् मा यत्तक़ू-न, इन्नल्ला-ह बिकुल्लि शैइन् अलीम
अल्लाह की ये शान नहीं कि किसी क़ौम को जब उनकी हिदायत कर चुका हो उसके बाद बेशक अल्लाह उन्हें गुमराह कर दे हता (यहां तक) कि वह उन्हीं चीज़ों को बता दे जिससे वह परहेज़ करें बेशक अल्लाह हर चीज़ से (वाकि़फ है)।

9:116

إِنَّ ٱللَّهَ لَهُۥ مُلْكُ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ ۖ يُحْىِۦ وَيُمِيتُ ۚ وَمَا لَكُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ مِن وَلِىٍّۢ وَلَا نَصِيرٍۢ

इन्नल्ला-ह लहू मुल्कुस्समावाति वल्अर्ज़ि, युह़्यी व युमीतु, व मा लकुम् मिन् दूनिल्लाहि मिंव्वलिय्यिंव्-वला नसीर
इसमें तो शक ही नहीं कि सारे आसमान व ज़मीन की हुकूमत अल्लाह ही के लिए ख़ास है वही (जिसे चाहे) जिलाता है और (जिसे चाहे) मारता है और तुम लोगों का अल्लाह के सिवा न कोई सरपरस्त है न मददगार।

9:117

لَّقَد تَّابَ ٱللَّهُ عَلَى ٱلنَّبِىِّ وَٱلْمُهَـٰجِرِينَ وَٱلْأَنصَارِ ٱلَّذِينَ ٱتَّبَعُوهُ فِى سَاعَةِ ٱلْعُسْرَةِ مِنۢ بَعْدِ مَا كَادَ يَزِيغُ قُلُوبُ فَرِيقٍۢ مِّنْهُمْ ثُمَّ تَابَ عَلَيْهِمْ ۚ إِنَّهُۥ بِهِمْ رَءُوفٌۭ رَّحِيمٌۭ

ल-क़त्ताबल्लाहु अलन्नबिय्यि वल्मुहाजिरी-न वल् अन्सारिल्लज़ीनत् त-बअूहु फ़ी सा अ़तिल्-अुस्रति मिम्-बअ्दि मा का-द यज़ीग़ु क़ुलूबु फरीक़िम् मिन्हुम् सुम्-म ता-ब अ़लैहिम्, इन्नहू बिहिम् रऊफुर्रहीम
अलबत्ता अल्लाह ने नबी और उन मुहाजिरीन अन्सार पर बड़ा फज़ल किया जिन्होंने तंगदस्ती के वक़्त रसूल का साथ दिया और वह भी उसके बाद कि क़रीब था कि उनमे से कुछ लोगों के दिल जगमगा जाएँ फिर अल्लाह ने उन पर (भी) फज़ल किया इसमें शक नहीं कि वह उन लोगों पर पड़ा तरस खाने वाला मेहरबान है।

9:118

وَعَلَى ٱلثَّلَـٰثَةِ ٱلَّذِينَ خُلِّفُوا۟ حَتَّىٰٓ إِذَا ضَاقَتْ عَلَيْهِمُ ٱلْأَرْضُ بِمَا رَحُبَتْ وَضَاقَتْ عَلَيْهِمْ أَنفُسُهُمْ وَظَنُّوٓا۟ أَن لَّا مَلْجَأَ مِنَ ٱللَّهِ إِلَّآ إِلَيْهِ ثُمَّ تَابَ عَلَيْهِمْ لِيَتُوبُوٓا۟ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلتَّوَّابُ ٱلرَّحِيمُ

व अलस्-सला-सतिल्लज़ी-न खुल्लिफू, हत्ता इज़ा ज़ाक़त् अ़लैहिमुल्-अर्ज़ु बिमा रहुबत् व ज़ाक़त् अ़लैहिम् अन्फुसुहुम् व ज़न्नू अल्ला मल्ज-अ मिनल्लाहि इल्ला इलैहि, सुम्-म ता-ब अलैहिम् लि-यतूबू, इन्नल्ला-ह हुवत्तव्वाबुर्रहीम
और उन यमीमों पर (भी फज़ल किया) जो (जिहाद से पीछे रह गए थे और उन पर सख़्ती की गई) यहाँ तक कि ज़मीन बावजूद उस वसअत (फैलाव) के उन पर तंग हो गई और उनकी जानें (तक) उन पर तंग हो गई और उन लोगों ने समझ लिया कि अल्लाह के सिवा और कहीं पनाह की जगह नहीं फिर अल्लाह ने उनको तौबा की तौफीक दी ताकि वह (अल्लाह की तरफ) रूजू करें बेशक अल्लाह ही बड़ा तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान है।

9:119

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ ٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَكُونُوا۟ مَعَ ٱلصَّـٰدِقِينَ

या अय्युहल्लज़ी-न आमनुत्तक़ुल्ला-ह व कूनू मअ़स्सादिक़ीन
ऐ ईमानदारों अल्लाह से डरो और सच्चों के साथ हो जाओ।

9:120

مَا كَانَ لِأَهْلِ ٱلْمَدِينَةِ وَمَنْ حَوْلَهُم مِّنَ ٱلْأَعْرَابِ أَن يَتَخَلَّفُوا۟ عَن رَّسُولِ ٱللَّهِ وَلَا يَرْغَبُوا۟ بِأَنفُسِهِمْ عَن نَّفْسِهِۦ ۚ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمْ لَا يُصِيبُهُمْ ظَمَأٌۭ وَلَا نَصَبٌۭ وَلَا مَخْمَصَةٌۭ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ وَلَا يَطَـُٔونَ مَوْطِئًۭا يَغِيظُ ٱلْكُفَّارَ وَلَا يَنَالُونَ مِنْ عَدُوٍّۢ نَّيْلًا إِلَّا كُتِبَ لَهُم بِهِۦ عَمَلٌۭ صَـٰلِحٌ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُضِيعُ أَجْرَ ٱلْمُحْسِنِينَ

मा का-न लिअह़्लिल-मदीनति व मन् हौ-लहुम् मिनल्-अअ्-राबि अंय्य-तख़ल्लफू अर्रसूलिल्लाहि व ला यर्ग़बू बिअन्फुसिहिम् अन् नफ़्सिही, ज़ालि-क बिअन्नहुम् ला युसीबुहुम् ज़-मउंव्व ला न-सबुंव्व ला मख़्म-सतुन फ़ी सबीलिल्लाहि व ला य-तऊ-न मौति अंय्यग़ीज़ुल्-कुफ्फा-र वला यनालू-न मिन् अदुव्विन्- नैलन् इल्ला कुति-ब लहुम् बिही अ-मलुन् सालिहुन्, इन्नल्ला-ह ला युज़ीअु अज्रल्-मुह़्सिनीन
मदीने के रहने वालों और उनके गिर्दोनवा (आस पास) देहातियों को ये जायज़ न था कि रसूल अल्लाह का साथ छोड़ दें और न ये (जायज़ था) कि रसूल की जान से बेपरवा होकर अपनी जानों के बचाने की फ्रिक करें ये हुक्म उसी सब्ब से था कि उन (जिहाद करने वालों) को अल्लाह की रूह में जो तकलीफ़ प्यास की या मेहनत या भूख की षिद्दत की पहुँचती है या ऐसी राह चलते हैं जो कुफ़्फ़ार के ग़ैज़ (ग़ज़ब का बाइस हो या किसी दुश्मन से कुछ ये लोग हासिल करते हैं तो बस उसके ऐवज़ में (उनके नामए अमल में) एक नेक काम लिख दिया जाएगा बेशक अल्लाह नेकी करने वालों का अज्र (व सवाब) बरबाद नहीं करता है।

9:121

وَلَا يُنفِقُونَ نَفَقَةًۭ صَغِيرَةًۭ وَلَا كَبِيرَةًۭ وَلَا يَقْطَعُونَ وَادِيًا إِلَّا كُتِبَ لَهُمْ لِيَجْزِيَهُمُ ٱللَّهُ أَحْسَنَ مَا كَانُوا۟ يَعْمَلُونَ

व ला युन्फ़िक़ू-न न-फ-क़तन् सग़ी-रतंव्-वला कबी-रतंव्-वला यक़्तअू-न वादियन् इल्ला कुति-ब लहुम् लियज्ज़ि यहुमुल्लाहु अह़्स-न मा कानू यअ्मलून
और ये लोग (अल्लाह की राह में) थोड़ा या बहुत माल नहीं खर्च करते और किसी मैदान को नहीं क़तआ करते मगर फौरन (उनके नामाए अमल में) उनके नाम लिख दिया जाता है ताकि अल्लाह उनकी कारगुज़ारियों का उन्हें अच्छे से अच्छा बदला अता फरमाए।

9:122

۞ وَمَا كَانَ ٱلْمُؤْمِنُونَ لِيَنفِرُوا۟ كَآفَّةًۭ ۚ فَلَوْلَا نَفَرَ مِن كُلِّ فِرْقَةٍۢ مِّنْهُمْ طَآئِفَةٌۭ لِّيَتَفَقَّهُوا۟ فِى ٱلدِّينِ وَلِيُنذِرُوا۟ قَوْمَهُمْ إِذَا رَجَعُوٓا۟ إِلَيْهِمْ لَعَلَّهُمْ يَحْذَرُونَ

व मा कानल्-मुअ्मिनू-न लियन्फ़िरू काफ्फ़-तन्, फ़लौ ला न-फ़-र मिन् कुल्लि फिरक़तिम् मिन्हुम् ताइ-फतुल् लि-य तफ़क़्क़हू फ़िद्दीनि व लियुन्ज़िरू क़ौमहुम् इज़ा र-जअू इलैहिम् लअ़ल्लहुम् यह़्ज़रून
और ये भी मुनासिब नहीं कि मोमिननि कुल के कुल (अपने घरों में) निकल खड़े हों उनमें से हर गिरोह की एक जमाअत (अपने घरों से) क्यों नहीं निकलती ताकि इल्मे दीन हासिल करे और जब अपनी क़ौम की तरफ पलट के आवे तो उनको (अज्र व आखि़रत से) डराए ताकि ये लोग डरें।

9:123

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ قَـٰتِلُوا۟ ٱلَّذِينَ يَلُونَكُم مِّنَ ٱلْكُفَّارِ وَلْيَجِدُوا۟ فِيكُمْ غِلْظَةًۭ ۚ وَٱعْلَمُوٓا۟ أَنَّ ٱللَّهَ مَعَ ٱلْمُتَّقِينَ

या अय्युहल्लज़ी-न आमनू कातिलुल्लज़ी-न यलूनकुम् मिनल्कुफ्फ़ारि वल्यजिदू फ़ीकुम् गिल्ज़-तन्, वअ्लमू अन्नल्ला-ह मअ़ल्मुत्तकीन
ऐ इमानदारों कुफ्फार में से जो लोग तुम्हारे आस पास के है उन से लड़ों और (इस तरह लड़ना) चाहिए कि वह लोग तुम में करारापन महसूस करें और जान रखो कि बेशुबहा अल्लाह परहेज़गारों के साथ है।

9:124

وَإِذَا مَآ أُنزِلَتْ سُورَةٌۭ فَمِنْهُم مَّن يَقُولُ أَيُّكُمْ زَادَتْهُ هَـٰذِهِۦٓ إِيمَـٰنًۭا ۚ فَأَمَّا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ فَزَادَتْهُمْ إِيمَـٰنًۭا وَهُمْ يَسْتَبْشِرُونَ

व इज़ा मा उन्ज़िलत् सूरतुन् फ़-मिन्हुम् मंय्यक़ूलु अय्युकुम् जादत्हु हाज़िही ईमानन्, फ़-अम्मल्लज़ी-न आमनू फ़ज़ादत्हुम् ईमानंव्-व हुम् यस्तब्शिरून
और जब कोई सूरा नाजि़ल किया गया तो उन मुनाफिक़ीन में से (एक दूसरे से) पूछता है कि भला इस सूरे ने तुममें से किसी का ईमान बढ़ा दिया तो जो लोग ईमान ला चुके हैं उनका तो इस सूरे ने ईमान बढ़ा दिया और वह वहा उसकी खुशियाँ मनाते है।

9:125

وَأَمَّا ٱلَّذِينَ فِى قُلُوبِهِم مَّرَضٌۭ فَزَادَتْهُمْ رِجْسًا إِلَىٰ رِجْسِهِمْ وَمَاتُوا۟ وَهُمْ كَـٰفِرُونَ

व अम्मल्लज़ी-न फी क़ुलूबिहिम् म-रज़ुन् फज़ादत्हुम् रिज्सन् इला रिज्सिहिम् व मातू व हुम् काफिरून
मगर जिन लोगों के दिल में (निफाक़ की) बीमारी है तो उन (पिछली) ख़बासत पर इस सूरो ने एक ख़बासत और बढ़ा दी और ये लोग कुफ्ऱ ही की हालत में मर गए।

9:126

أَوَلَا يَرَوْنَ أَنَّهُمْ يُفْتَنُونَ فِى كُلِّ عَامٍۢ مَّرَّةً أَوْ مَرَّتَيْنِ ثُمَّ لَا يَتُوبُونَ وَلَا هُمْ يَذَّكَّرُونَ

अ-वला यरौ-न अन्नहुम् युफ्तनू-न फ़ी कुल्लि आमिम्-मर्र-तन् औ मर्रतैनि सुम्म ला यतूबू-न वला हुम् यज़्ज़क्करून
क्या वह लोग (इतना भी) नहीं देखते कि हर साल एक मरतबा या दो मरतबा बला में मुबितला किए जाते हैं फिर भी न तो ये लोग तौबा ही करते हैं और न नसीहत ही मानते हैं।

9:127

وَإِذَا مَآ أُنزِلَتْ سُورَةٌۭ نَّظَرَ بَعْضُهُمْ إِلَىٰ بَعْضٍ هَلْ يَرَىٰكُم مِّنْ أَحَدٍۢ ثُمَّ ٱنصَرَفُوا۟ ۚ صَرَفَ ٱللَّهُ قُلُوبَهُم بِأَنَّهُمْ قَوْمٌۭ لَّا يَفْقَهُونَ

व इज़ा मा उन्ज़िलत् सूरतुन् न-ज़-र बअ्ज़ुहुम् इला बअ्ज़िन्, हल् यराकुम् मिन् अ-हदिन् सुम्मन्स-रफू, स -रफ़ल्लाहु क़ुलूबहुम् बिअन्नहुम् क़ौमुल् ला यफ़्क़हून
और जब कोई सूरा नाजि़ल किया गया तो उसमें से एक की तरफ एक देखने लगा (और ये कहकर कि) तुम को कोई मुसलमान देखता तो नहीं है फिर (अपने घर) पलट जाते हैं (ये लोग क्या पलटेगें गोया) अल्लाह ने उनके दिलों को पलट दिया है इस सबब से कि ये बिल्कुल नासमझ लोग हैं।

9:128

لَقَدْ جَآءَكُمْ رَسُولٌۭ مِّنْ أَنفُسِكُمْ عَزِيزٌ عَلَيْهِ مَا عَنِتُّمْ حَرِيصٌ عَلَيْكُم بِٱلْمُؤْمِنِينَ رَءُوفٌۭ رَّحِيمٌۭ

ल-क़द् जा-अकुम् रसूलुम् मिन् अन्फुसिकुम् अज़ीज़ुन अ़लैहि मा अनित्तुम् हरीसुन् अ़लैकुम् बिल्मुअ्मिनी न रऊफुर्रहीम
लोगों तुम ही में से (हमारा) एक रसूल तुम्हारे पास आ चुका (जिसकी शफक़्क़त (मेहरबानी) की ये हालत है कि) उस पर शाक़ (दुख) है कि तुम तकलीफ उठाओ और उसे तुम्हारी बेहूदी का हौका है इमानदारो पर हद दर्जे शफीक़ मेहरबान हैं।

9:129

فَإِن تَوَلَّوْا۟ فَقُلْ حَسْبِىَ ٱللَّهُ لَآ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ ۖ عَلَيْهِ تَوَكَّلْتُ ۖ وَهُوَ رَبُّ ٱلْعَرْشِ ٱلْعَظِيمِ

फ इन् तवल्लौ फ़क़ुल हस्बियल्लाहु, ला इला-ह इल्ला हु-व, अलैहि तवक्कल्तु व हु-व रब्बुल अर्शिल्-अज़ीम
ऐ रसूल अगर इस पर भी ये लोग (तुम्हारे हुक्म से) मुँह फेरें तो तुम कह दो कि मेरे लिए अल्लाह काफी है उसके सिवा कोई माबूद नहीं मैने उस पर भरोसा रखा है वही अर्श (ऐसे) बुर्जूग (मख़लूका का) मालिक है।

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