Surah Ar-Ra’d In Hindi [13:1-13:43]

mujhe Sūrat Ar-Ra’d ke bāre meṁ bhī jānkārī hai. Sūrat Ar-Ra’d Qur’ān Majīd kī 13vīṁ Sūrat hai. Yah Madanī Sūrat hai jis meṁ 43 āyāteṁ haiṁ.

Is Sūrat ke kuchh aham nukāt nīche diye gaye haiṁ:

  1. Sūrat kā nām “Ar-Ra’d” (“Gargaj”) hai kyuṁki is meṁ bādal, bārishāt aur bijliyoṁ kā zikr hai.
  2. Sūrat meṁ Allāh kī qudrat, āsmānoṁ aur zamīn kī takhlīq, aur rūḥānī aur māddī ‘ālam par ġhaur karne kī hidāyat hai.
  3. Yah Sūrat muttaqīn (Allāh se ḍarne wāloṁ) ke liye khushkhabriyāṁ detī hai aur munkiroṁ ko sazā kī dhamkī detī hai.
  4. Īmān aur a’māl-e-ṣāliḥah ke aham paiġhāmoṁ par zabardast zor diyā gayā hai.
  5. Sūrat meṁ Qur’ān kī hifāzat kā bayān aur is kī hadāyāt par amal karne kī tāqīd hai.
  6. Ākhir meṁ īmāndāroṁ ko ṣabr par qā’im rahne kī tālīm dī gaī hai.

Yah Sūrat īmāndāroṁ ko hidāyat kartī hai aur Allāh par bharosā rakhne kī tāqīd kartī hai.

सूरह र’आद को हिंदी में पढ़ें

بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ

बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।

13:1

الٓمٓر ۚ تِلْكَ ءَايَـٰتُ ٱلْكِتَـٰبِ ۗ وَٱلَّذِىٓ أُنزِلَ إِلَيْكَ مِن رَّبِّكَ ٱلْحَقُّ وَلَـٰكِنَّ أَكْثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يُؤْمِنُونَ

अलिफ्-लाम्-मीम्-रा, तिल्-क आयातुल-किताबि, वल्लज़ी उन्ज़ि-ल इलै-क मिर्रब्बिकल्-हक़्क़ु व लाकिन् -न अक्सरन्नासि ला युअ्मिनून
अलिफ़ लाम मीम रा, ये किताब (क़ुरान) की आयतें है और तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से जो कुछ तुम्हारे पास नाजि़ल किया गया है बिल्कुल ठीक है मगर बहुतेरे लोग ईमान नहीं लाते।

13:2

ٱللَّهُ ٱلَّذِى رَفَعَ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ بِغَيْرِ عَمَدٍۢ تَرَوْنَهَا ۖ ثُمَّ ٱسْتَوَىٰ عَلَى ٱلْعَرْشِ ۖ وَسَخَّرَ ٱلشَّمْسَ وَٱلْقَمَرَ ۖ كُلٌّۭ يَجْرِى لِأَجَلٍۢ مُّسَمًّۭى ۚ يُدَبِّرُ ٱلْأَمْرَ يُفَصِّلُ ٱلْـَٔايَـٰتِ لَعَلَّكُم بِلِقَآءِ رَبِّكُمْ تُوقِنُونَ

अल्लाहुल्लज़ी र-फ़अ़स्समावाति बिग़ैरि अ़ मदिन् तरौनहा सुम्मस्तवा अ़लल्-अ़र्शि व सख़्ख़रश्शम्-स वल्क़-म-र, कुल्लुंय्यज्री लि-अ-जलिम्-मुसम्मन्, यु दब्बिरूल्-अम्-र युफस्सिलुल्-आयाति लअ़ल्लकुम बिलिक़ा-इ रब्बिकुम् तूक़िनून
अल्लाह वही तो है जिसने आसमानों को जिन्हें तुम देखते हो बग़ैर सुतून (खम्बों) के उठाकर खड़ा कर दिया फिर अर्श (के बनाने) पर आमादा हुआ और सूरज और चाँद को (अपना) ताबेदार बनाया कि हर एक वक़्त मुक़र्ररा तक चला करते है वहीं (दुनिया के) हर एक काम का इन्तेज़ाम करता है और इसी ग़रज़ से कि तुम लोग अपने परवरदिगार के सामने हाजि़र होने का यक़ीन करो।

13:3

وَهُوَ ٱلَّذِى مَدَّ ٱلْأَرْضَ وَجَعَلَ فِيهَا رَوَٰسِىَ وَأَنْهَـٰرًۭا ۖ وَمِن كُلِّ ٱلثَّمَرَٰتِ جَعَلَ فِيهَا زَوْجَيْنِ ٱثْنَيْنِ ۖ يُغْشِى ٱلَّيْلَ ٱلنَّهَارَ ۚ إِنَّ فِى ذَٰلِكَ لَـَٔايَـٰتٍۢ لِّقَوْمٍۢ يَتَفَكَّرُونَ

व हुवल्लज़ी मद्दल अर्ज़ व ज-अ-ल फीहा रवासि-य व अन्हारन्, व मिन् कुल्लिस्स मराति ज-अ-ल फ़ीहा ज़ौ जैनिस् नै
नि युग़्शिल्लैलन्नहा-र, इन्-न फ़ी ज़ालि-क लआयातिल्-लिक़ौमिंय्-य-तफ़क्करून
(अपनी) आयतें तफसीलदार बयान करता है और वह वही है जिसने ज़मीन को बिछाया और उसमें (बड़े बड़े) अटल पहाड़ और दरिया बनाए और उसने हर तरह के मेवों की दो दो किस्में पैदा की (जैसे खट्टे मीठे) वही रात (के परदे) से दिन को ढाक देता है इसमें शक नहीं कि जो लोग और ग़ौर व फिक्र करते हैं उनके लिए इसमें (कुदरत अल्लाह की) बहुतेरी निशनियाँ हैं।

13:4

وَفِى ٱلْأَرْضِ قِطَعٌۭ مُّتَجَـٰوِرَٰتٌۭ وَجَنَّـٰتٌۭ مِّنْ أَعْنَـٰبٍۢ وَزَرْعٌۭ وَنَخِيلٌۭ صِنْوَانٌۭ وَغَيْرُ صِنْوَانٍۢ يُسْقَىٰ بِمَآءٍۢ وَٰحِدٍۢ وَنُفَضِّلُ بَعْضَهَا عَلَىٰ بَعْضٍۢ فِى ٱلْأُكُلِ ۚ إِنَّ فِى ذَٰلِكَ لَـَٔايَـٰتٍۢ لِّقَوْمٍۢ يَعْقِلُونَ

व फ़िलअर्ज़ि क़ि तअुम् मु-तजाविरातुंव्-व जन्नातुम्-मिन् अअ्नाबिंव्-व ज़रअुव्-व नख़ीलुन् सिन्वानुंव्-व ग़ैरूसिन्वानिंय्युस्क़ा बिमाइंव्वाहिदिन्, व नुफ़ज़्ज़िलु बअ्ज़हा अला बअ्ज़िन् फ़िल्उकुलि, इन्-न फ़ी ज़ालि- क लआयातिल् लिकौमिंय्यअ्क़िलून
और खुरमों (खजूर) के दरख़्त की एक जड़ और दो शाखें और बाज़ अकेला (एक ही शाख़ का) हालांकि सब एक ही पानी से सीचे जाते हैं और फलों में बाज़ को बाज़ पर हम तरजीह देते हैं बेशक जो लोग अक़ल वाले हैं उनके लिए इसमें (कुदरत अल्लाह की) बहुतेरी निशनियाँ हैं।

13:5

۞ وَإِن تَعْجَبْ فَعَجَبٌۭ قَوْلُهُمْ أَءِذَا كُنَّا تُرَٰبًا أَءِنَّا لَفِى خَلْقٍۢ جَدِيدٍ ۗ أُو۟لَـٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ بِرَبِّهِمْ ۖ وَأُو۟لَـٰٓئِكَ ٱلْأَغْلَـٰلُ فِىٓ أَعْنَاقِهِمْ ۖ وَأُو۟لَـٰٓئِكَ أَصْحَـٰبُ ٱلنَّارِ ۖ هُمْ فِيهَا خَـٰلِدُونَ ٥

व इन् तअ्जब् फ़-अ़ जबुन् क़ौलुहम् अ-इज़ा कुन्ना तुराबन् अ इन्ना लफ़ी ख़ल्क़िन् जदीदिन्, उलाइ-कल्लज़ी-न क-फरू बिर्रब्बिहिम्, व उलाइकल्-अ़ग्लालु फी अअ्नाक़िहिम्, व उलाइ-क अस्हाबुन्नारि, हुम् फ़ीहा ख़ालिदून
और अगर तुम्हें (किसी बात पर) ताज्जुब होता है तो उन कुफ्फारों को ये क़ौल ताज्जुब की बात है कि जब हम (सड़गल कर) मिट्टी हो जायंगें तो क्या हम (फिर दोबारा) एक नई जहन्नुम में आयंगे ये वही लोग हैं जिन्होंने अपने परवरदिगार के साथ कुफ्र किया और यही वह लोग हैं जिनकी गर्दनों में (क़यामत के दिन) तौक़ पड़े होगें और यही लोग जहन्नुमी हैं कि ये इसमें हमेशा रहेगें।

13:6

وَيَسْتَعْجِلُونَكَ بِٱلسَّيِّئَةِ قَبْلَ ٱلْحَسَنَةِ وَقَدْ خَلَتْ مِن قَبْلِهِمُ ٱلْمَثُلَـٰتُ ۗ وَإِنَّ رَبَّكَ لَذُو مَغْفِرَةٍۢ لِّلنَّاسِ عَلَىٰ ظُلْمِهِمْ ۖ وَإِنَّ رَبَّكَ لَشَدِيدُ ٱلْعِقَابِ

व यस्तअ्जिलून-क बिस्सय्यि-अति क़ब्लल्-ह-सनति व क़द् ख़लत् मिन् क़ब्लिहिमुल्-मसुलातु, व इन्-न रब्ब-क लज़ु मग़्फि
 रतिल् लिन्नासि अला ज़ुल्मिहिम्, व इन्-न रब्ब-क ल-शदीदुल अिक़ाब
और (ऐ रसूल!) ये लोग तुम से भलाई के क़ब्ल ही बुराई (अज़ाब) की जल्दी मचा रहे हैं हालांकि उनके पहले (बहुत से लोगों की) सज़ाएँ हो चुकी हैं और इसमें शक नहीं की तुम्हारा परवरदिगार बावजूद उनकी शरारत के लोगों पर बड़ा बख़शिश (करम) वाला है और इसमें भी शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार यक़ीनन सख़्त अज़ाब वाला है।

13:7

وَيَقُولُ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ لَوْلَآ أُنزِلَ عَلَيْهِ ءَايَةٌۭ مِّن رَّبِّهِۦٓ ۗ إِنَّمَآ أَنتَ مُنذِرٌۭ ۖ وَلِكُلِّ قَوْمٍ هَادٍ

व यक़ूलुल्लज़ी-न क-फरू लौ ला उन्ज़ि-ल अ़लैहि आयतुम्-मिर्रब्बिही, इन्नमा अन्-त मुन्ज़िरूंव्-व लिकुल्लि क़ौमिन् हाद
और वो लोग काफिर हैं कहते हैं कि इस शख़्स (मोहम्मद) पर उसके परवरदिगार की तरफ से कोई निशानी (हमारी मर्ज़ी के मुताबिक़) क्यों नहीं नाज़िल की जाती ऐ रसूल तुम तो सिर्फ (ख़ौफे अल्लाह से) डराने वाले हो।

13:8

ٱللَّهُ يَعْلَمُ مَا تَحْمِلُ كُلُّ أُنثَىٰ وَمَا تَغِيضُ ٱلْأَرْحَامُ وَمَا تَزْدَادُ ۖ وَكُلُّ شَىْءٍ عِندَهُۥ بِمِقْدَارٍ

अल्लाहु यअ्लमु मा तह़्मिलु कुल्लु उन्सा व मा तग़ीज़ुल्-अरहामु व मा तज़्दादु, व कुल्लु शैइन् अिन्दहू बिमिक़्दार
और हर क़ौम के लिए एक हिदायत करने वाला है हर मादा जो कि पेट में लिए हुए है और उसको अल्लाह ही जानता है व बच्चा दानियों का घटना बढ़ना (भी वही जानता है) और हर चीज़ उसके नज़दीक़ एक अन्दाजे़ से है।

13:9

عَـٰلِمُ ٱلْغَيْبِ وَٱلشَّهَـٰدَةِ ٱلْكَبِيرُ ٱلْمُتَعَالِ

आ़लिमुल्-ग़ैबि वश्शहादतिल् कबीरूल-मु-तआ़ल
(वही) बातिन (छुपे हुवे) व ज़ाहिर का जानने वाला (सब से) बड़ा और आलीशान है।

13:10

سَوَآءٌۭ مِّنكُم مَّنْ أَسَرَّ ٱلْقَوْلَ وَمَن جَهَرَ بِهِۦ وَمَنْ هُوَ مُسْتَخْفٍۭ بِٱلَّيْلِ وَسَارِبٌۢ بِٱلنَّهَارِ

सवाउम्-मिन्कुम् मन् अ सर्रल्-क़ौ ल व मन् ज-ह-र बिही व मन् हु-व मुस्तख़्फिम् बिल्लैलि व सारिबुम्-बिन्नहार
तुम लोगों में जो कोई चुपके से बात कहे और जो शख़्स ज़ोर से पुकार के बोले और जो शख़्स रात की तारीक़ी (अंधेरे) में छुपा बैठा हो और जो शख़्स दिन दहाड़े चला जा रहा हो।

13:11

لَهُۥ مُعَقِّبَـٰتٌۭ مِّنۢ بَيْنِ يَدَيْهِ وَمِنْ خَلْفِهِۦ يَحْفَظُونَهُۥ مِنْ أَمْرِ ٱللَّهِ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُغَيِّرُ مَا بِقَوْمٍ حَتَّىٰ يُغَيِّرُوا۟ مَا بِأَنفُسِهِمْ ۗ وَإِذَآ أَرَادَ ٱللَّهُ بِقَوْمٍۢ سُوٓءًۭا فَلَا مَرَدَّ لَهُۥ ۚ وَمَا لَهُم مِّن دُونِهِۦ مِن وَالٍ

लहू मुअ़क्क़िबातुम् मिम्-बैनि यदैहि व मिन् ख़ल्फ़िही यह्फ़ज़ूनहू मिन् अमरिल्लाहि, इन्नल्लाह ला युग़य्यिरू मा बिक़ौमिन् हत्ता युग़य्यिरू मा बिअन्फुसिहिम्, व इज़ा अरादल्लाहु बिक़ौमिन् सूअन् फला म-रद्-द लहू, व मा लहुम् मिन् दूनिही मिंव्वाल
(उसके नज़दीक) सब बराबर हैं (आदमी किसी हालत में हो मगर) उस अकेले के लिए उसके आगे उसके पीछे उसके निगेहबान (फ़रिश्ते) मुक़र्रर हैं कि उसको हुक्म अल्लाह से हिफाज़त करते हैं जो (नेअमत) किसी क़ौम को हासिल हो बेशक वह लोग खुद अपनी नफ्सानी हालत में तग्य्युर न डालें अल्लाह हरगिज़ तग़्य्युर नहीं डाला करता और जब अल्लाह किसी क़ौम पर बुराई का इरादा करता है तो फिर उसका कोई टालने वाला नहीं और न उसका उसके सिवा कोई वाली और (सरपरस्त) है।

13:12

هُوَ ٱلَّذِى يُرِيكُمُ ٱلْبَرْقَ خَوْفًۭا وَطَمَعًۭا وَيُنشِئُ ٱلسَّحَابَ ٱلثِّقَالَ

हुवल्लज़ी युरीकुमुल्-बर् क़ ख़ौफंव्-व त-म अंव्-व युन्शिउस्-सहाबस् सिक़ाल
वह वही तो है जो तुम्हें डराने और लालच देने के वास्ते बिजली की चमक दिखाता है और पानी से भरे बोझल बादलों को पैदा करता है।

13:13

وَيُسَبِّحُ ٱلرَّعْدُ بِحَمْدِهِۦ وَٱلْمَلَـٰٓئِكَةُ مِنْ خِيفَتِهِۦ وَيُرْسِلُ ٱلصَّوَٰعِقَ فَيُصِيبُ بِهَا مَن يَشَآءُ وَهُمْ يُجَـٰدِلُونَ فِى ٱللَّهِ وَهُوَ شَدِيدُ ٱلْمِحَالِ

व युसब्बिहुर्रअदु बिहम्दिही वल्मलाइ-कतु मिन् ख़ीफ़तिही, व युर्सिलुस्सवाअि-क़ फ़युसीबु बिहा मंय्यशा-उ व हुम् युजादिलू-न फ़िल्लाहि, व हु-व शदीदुल-मिहाल
और ग़र्ज और फ़रिश्ते उसके ख़ौफ से उसकी हम्दो सना की तस्बीह किया करते हैं वही (आसमान से) बिजलियों को भेजता है फिर उसे जिस पर चाहता है गिरा भी देता है और ये लोग अल्लाह के बारे में (ख़्वामाख़्वाह) झगड़े करते हैं हालांकि वह बड़ा सख़्त क़ूवत वाला है।

13:14

لَهُۥ دَعْوَةُ ٱلْحَقِّ ۖ وَٱلَّذِينَ يَدْعُونَ مِن دُونِهِۦ لَا يَسْتَجِيبُونَ لَهُم بِشَىْءٍ إِلَّا كَبَـٰسِطِ كَفَّيْهِ إِلَى ٱلْمَآءِ لِيَبْلُغَ فَاهُ وَمَا هُوَ بِبَـٰلِغِهِۦ ۚ وَمَا دُعَآءُ ٱلْكَـٰفِرِينَ إِلَّا فِى ضَلَـٰلٍۢ

लहू दअ्वतुल्-हक़्क़ि, वल्लज़ी न यद्अू-न मिन् दूनिही ला यस्तजीबू-न लहुम् बिशैइन् इल्ला कबासिति कफ़्फ़ैहि इलल्-मा-इ लियब़्लु-ग़ फ़ाहु वमा हु-व बिबालिगिही, वमा दुआ़उल्-काफ़िरी-न इल्ला फ़ी ज़लाल
(मुसीबत के वक़्त) उसी का (पुकारना) ठीक पुकारना है और जो लोग उसे छोड़कर (दूसरों को) पुकारते हैं वह तो उनकी कुछ सुनते तक नहीं मगर जिस तरह कोई शख़्स (बग़ैर उॅगलियाँ मिलाए) अपनी दोनों हथेलियाँ पानी की तरफ फैलाए ताकि पानी उसके मुँह में पहुँच जाए हालांकि वह किसी तरह पहुँचने वाला नहीं और (इसी तरह) काफिरों की दुआ गुमराही में (पड़ी बहकी फिरा करती है)।

13:15

وَلِلَّهِ يَسْجُدُ مَن فِى ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ طَوْعًۭا وَكَرْهًۭا وَظِلَـٰلُهُم بِٱلْغُدُوِّ وَٱلْـَٔاصَالِ ۩

व लिल्लाहि यस्जुदु मन् फिस्समावाति वल् अर्ज़ि तौअंव्-व करहंव्-व ज़िलालुहुम् बिल्ग़ुदुव्वि वल् आसाल *सज़्दा*
और आसमानों और ज़मीन में (मख़लूक़ात से) जो कोई भी है खुशी से या ज़बरदस्ती सब (अल्लाह के आगे सर बसजूद हैं और (इसी तरह) उनके साए भी सुबह व शाम (सजदा करते हैं)।

13:16

قُلْ مَن رَّبُّ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ قُلِ ٱللَّهُ ۚ قُلْ أَفَٱتَّخَذْتُم مِّن دُونِهِۦٓ أَوْلِيَآءَ لَا يَمْلِكُونَ لِأَنفُسِهِمْ نَفْعًۭا وَلَا ضَرًّۭا ۚ قُلْ هَلْ يَسْتَوِى ٱلْأَعْمَىٰ وَٱلْبَصِيرُ أَمْ هَلْ تَسْتَوِى ٱلظُّلُمَـٰتُ وَٱلنُّورُ ۗ أَمْ جَعَلُوا۟ لِلَّهِ شُرَكَآءَ خَلَقُوا۟ كَخَلْقِهِۦ فَتَشَـٰبَهَ ٱلْخَلْقُ عَلَيْهِمْ ۚ قُلِ ٱللَّهُ خَـٰلِقُ كُلِّ شَىْءٍۢ وَهُوَ ٱلْوَٰحِدُ ٱلْقَهَّـٰرُ

क़ुल् मर्रब्बुस्समावाति वलअर्ज़ि, क़ुलिल्लाहु, क़ुल अ-फ़त्तख़ज़्तुम् मिन् दूनिही औलिया-अ ला यम्लिकू-न लिअन्फुसिहिम् नफ्अंव्-व ला ज़र्रन्, क़ुल हल यस्तविल्-अअ्मा वल्बसीरू, अम् हल् तस्तविज़्ज़ुलुमातु वन्नूरू, अम् ज-अ़लू लिल्लाहि शु-रका-अ ख़-लक़ू क-ख़ल्क़िही फ़-तशाबहल्-ख़ल्क़ु अ़लैहिम्, क़ुलिल्लाहु ख़ालिक़ु कुल्लि शैइंव्व हुवल् वाहिदुल् क़ह़्हार
(ऐ रसूल!) तुम पूछो कि (आखि़र) आसमान और ज़मीन का परवरदिगार कौन है (ये क्या जवाब देगें) तुम कह दो कि अल्लाह है (ये भी कह दो कि क्या तुमने उसके सिवा दूसरे कारसाज़ बना रखे हैं जो अपने लिए आप न तो नफे़ पर क़ाबू रखते हैं न ज़रर (नुकसान) पर (ये भी तो) पूछो कि भला (कहीं) अन्धा और आँखों वाला बराबर हो सकता है (हरगिज़ नहीं) (या कहीं) अंधेरा और उजाला बराबर हो सकता है (हरगिज़ नहीं) इन लोगों ने अल्लाह के कुछ शरीक़ ठहरा रखे हैं क्या उन्हें अल्लाह ही की सी मख़लूक़ पैदा कर रखी है जिनके सबब मख़लूकात उन पर मुशतबा हो गई है (और उनकी खुदाई के क़ायल हो गए) तुम कह दो कि अल्लाह ही हर चीज़ का पैदा करने वाला और वही यकता और सिपर (सब पर) ग़ालिब है।

13:17

أَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءًۭ فَسَالَتْ أَوْدِيَةٌۢ بِقَدَرِهَا فَٱحْتَمَلَ ٱلسَّيْلُ زَبَدًۭا رَّابِيًۭا ۚ وَمِمَّا يُوقِدُونَ عَلَيْهِ فِى ٱلنَّارِ ٱبْتِغَآءَ حِلْيَةٍ أَوْ مَتَـٰعٍۢ زَبَدٌۭ مِّثْلُهُۥ ۚ كَذَٰلِكَ يَضْرِبُ ٱللَّهُ ٱلْحَقَّ وَٱلْبَـٰطِلَ ۚ فَأَمَّا ٱلزَّبَدُ فَيَذْهَبُ جُفَآءًۭ ۖ وَأَمَّا مَا يَنفَعُ ٱلنَّاسَ فَيَمْكُثُ فِى ٱلْأَرْضِ ۚ كَذَٰلِكَ يَضْرِبُ ٱللَّهُ ٱلْأَمْثَالَ

अन्ज़-ल मिनस्समा-इ माअन् फ़सालत् औदि यतुम् बि -क़-दरिहा फ़ह्त मलस्सैलु ज़-बदर्-राबियन्, व मिम्मा यू क़िदू-न अ़लैहि फिन्नारिब्तिग़ा-अ हिल्यतिन् औ मताअिन् ज़-बदुम्-मिस्लुहू, कज़ालि-क यज़्रिबुल्लाहुल-हक़्-क़ वल्बाति-ल, फ़-अम्मज़्ज़-बदु फ़-यज़्हबु जुफ़ा-अन्, व अम्मा मा यन्फअुन्ना-स फ़यम्कुसु फ़िल्अर्ज़ि, कज़ालि-क यज़्रिबुल्लाहुल-अम्साल
उसी ने आसमान से पानी बरसाया फिर अपने अपने अन्दाज़े से नाले बह निकले फिर पानी के रेले पर (जोश खाकर) फूला हुआ झाग (फेन) आ गया और उस चीज़ (धातु) से भी जिसे ये लोग ज़ेवर या कोई असबाब बनाने की ग़रज़ से आग में तपाते हैं इसी तरह फेन आ जाता है (फिर अलग हो जाता है) यूं अल्लाह हक़ व बातिल की मसले बयान फरमाता है (कि पानी हक़ की मिसाल और फेन बातिल की) ग़रज़ फेन तो खुश्क होकर ग़ायब हो जाता है जिससे लोगों को नफा पहुँचता है (पानी) वह ज़मीन में ठहरा रहता है यूं अल्लाह (लोगों के समझाने के वास्ते) मसले बयान फरमाता है।

13:18

لِلَّذِينَ ٱسْتَجَابُوا۟ لِرَبِّهِمُ ٱلْحُسْنَىٰ ۚ وَٱلَّذِينَ لَمْ يَسْتَجِيبُوا۟ لَهُۥ لَوْ أَنَّ لَهُم مَّا فِى ٱلْأَرْضِ جَمِيعًۭا وَمِثْلَهُۥ مَعَهُۥ لَٱفْتَدَوْا۟ بِهِۦٓ ۚ أُو۟لَـٰٓئِكَ لَهُمْ سُوٓءُ ٱلْحِسَابِ وَمَأْوَىٰهُمْ جَهَنَّمُ ۖ وَبِئْسَ ٱلْمِهَادُ

लिल्लज़ीनस्तजाबू लिरब्बिहिमुल हुस्ना, वल्लज़ी-न लम् यस्तजीबू लहू लौ अन्-न लहुम् मा  फिल्अर्ज़ि जमीअंव्-व मिस्लहू म-अहू लफ़्तदौ बिही, उलाइ-क लहुम् सूउल्-हिसाबि, व मअ्वाहुम् ज-हन्नमु, व बिअ्सल्-मिहाद
जिन लोगों ने अपने परवरदिगार का कहना माना उनके लिए बहुत बेहतरी है और जिन लोगों ने उसका कहा न माना (क़यामत में उनकी ये हालत होगी) कि अगर उन्हें रुए ज़मीन के सब ख़ज़ाने बल्कि उसके साथ इतना और मिल जाए तो ये लोग अपनी नजात के बदले उसको (ये खुशी) दे डालें (मगर फिर भी कोई फायदा नहीं) यही लोग हैं जिनसे बुरी तरह हिसाब लिया जाएगा और आखि़र उन का ठिकाना जहन्नुम है और वह क्या बुरी जगह है।

13:19

۞ أَفَمَن يَعْلَمُ أَنَّمَآ أُنزِلَ إِلَيْكَ مِن رَّبِّكَ ٱلْحَقُّ كَمَنْ هُوَ أَعْمَىٰٓ ۚ إِنَّمَا يَتَذَكَّرُ أُو۟لُوا۟ ٱلْأَلْبَـٰبِ

अ-फ़मंय्यअ्लमु अन्नमा उन्ज़ि-ल इलै-क मिर्रब्बिकल्- हक़्क़ु क-मन् हु-व अअ्मा, इन्नमा य-तज़क्करू उलुल-अल्बाब
(ऐ रसूल!) भला वह शख़्स जो ये जानता है कि जो कुछ तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से तुम पर नाजि़ल हुआ है बिल्कुल ठीक है कभी उस शख़्स के बराबर हो सकता है जो मुत्तलिक़ (पूरा) अंधा है (हरगिज़ नहीं)।

13:20

ٱلَّذِينَ يُوفُونَ بِعَهْدِ ٱللَّهِ وَلَا يَنقُضُونَ ٱلْمِيثَـٰقَ

अल्लज़ी-न यूफू-न बिअ़ह़्दिल्लाहि वला यन्क़ुज़ूनल्-मीसाक़
इससे तो बस कुछ समझदार लोग ही नसीहत हासिल करते हैं वह लोग है कि अल्लाह से जो एहद किया उसे पूरा करते हैं और अपने पैमान को नहीं तोड़ते।

13:21

وَٱلَّذِينَ يَصِلُونَ مَآ أَمَرَ ٱللَّهُ بِهِۦٓ أَن يُوصَلَ وَيَخْشَوْنَ رَبَّهُمْ وَيَخَافُونَ سُوٓءَ ٱلْحِسَابِ

वल्लज़ी-न यसिलू-न मा अ-मरल्लाहु बिही अंय्यूस-ल व यख़्शौ-न रब्बहुम् व यख़ाफू न सूअल् हिसाब
(ये) वह लोग हैं कि जिन (ताल्लुक़ात) के क़ायम रखने का अल्लाह ने हुक्म दिया उन्हें क़ायम रखते हैं और अपने परवरदिगार से डरते हैं और (क़यामत के दिन) बुरी तरह हिसाब लिए जाने से ख़ौफ खाते हैं।

13:22

وَٱلَّذِينَ صَبَرُوا۟ ٱبْتِغَآءَ وَجْهِ رَبِّهِمْ وَأَقَامُوا۟ ٱلصَّلَوٰةَ وَأَنفَقُوا۟ مِمَّا رَزَقْنَـٰهُمْ سِرًّۭا وَعَلَانِيَةًۭ وَيَدْرَءُونَ بِٱلْحَسَنَةِ ٱلسَّيِّئَةَ أُو۟لَـٰٓئِكَ لَهُمْ عُقْبَى ٱلدَّارِ

वल्लज़ी-न स-बरूब्तिग़ा-अ वज्हि रब्बिहिम् व अक़ामुस्सला त व अन्फक़ू मिम्मा रज़क़्नाहुम् सिर्रव् व अलानि-यतंव्-व यद् रऊ-न बिल्ह-स-नतिस्सय्यि-अ-त उलाइ-क लहुम् अुक़्बद्दार
और (ये) वह लोग हैं जो अपने परवरदिगार की खुशनूदी हासिल करने की ग़रज़ से (जो मुसीबत उन पर पड़ी है) झेल गए और पाबन्दी से नमाज़ अदा की और जो कुछ हमने उन्हें रोज़ी दी थी उसमें से छिपाकर और खुल कर अल्लाह की राह में खर्च किया और ये लोग बुराई को भी भलाई स दफा करते हैं -यही लोग हैं जिनके लिए आखि़रत की खूबी मख़सूस है।

13:23

جَنَّـٰتُ عَدْنٍۢ يَدْخُلُونَهَا وَمَن صَلَحَ مِنْ ءَابَآئِهِمْ وَأَزْوَٰجِهِمْ وَذُرِّيَّـٰتِهِمْ ۖ وَٱلْمَلَـٰٓئِكَةُ يَدْخُلُونَ عَلَيْهِم مِّن كُلِّ بَابٍۢ

जन्नातु अ़द्-निंय्यद्ख़ुलू-नहा व मन् स-ल-ह मिन् आबाइहिम् व अज़्वाजिहिम् व जुर्रिय्यातिहिम् वल्मलाइ -कतु यद्ख़ुलू-न अ़लैहिम् मिन कुल्लि बाब
(यानि) हमेश रहने के बाग़ जिनमें वह आप जाएंगे और उनके बाप, दादाओं, बीवियों और उनकी औलाद में से जो लोग नेको कार है (वह सब भी) और फरिश्ते बहिश्त के हर दरवाजे़ से उनके पास आएगें।

13:24

سَلَـٰمٌ عَلَيْكُم بِمَا صَبَرْتُمْ ۚ فَنِعْمَ عُقْبَى ٱلدَّارِ

सलामुन् अलैकुम् बिमा सबर्तुम् फ़निअ्-म अुक़्बद्दार
और सलाम अलैकुम (के बाद कहेगें) कि (दुनिया में) तुमने सब्र किया (ये उसी का सिला है देखो) तो आख़िरत का घर कैसा अच्छा है।

13:25

وَٱلَّذِينَ يَنقُضُونَ عَهْدَ ٱللَّهِ مِنۢ بَعْدِ مِيثَـٰقِهِۦ وَيَقْطَعُونَ مَآ أَمَرَ ٱللَّهُ بِهِۦٓ أَن يُوصَلَ وَيُفْسِدُونَ فِى ٱلْأَرْضِ ۙ أُو۟لَـٰٓئِكَ لَهُمُ ٱللَّعْنَةُ وَلَهُمْ سُوٓءُ ٱلدَّارِ

वल्लज़ी न यन्क़ुज़ू-न अ़ह्दल्लाहि मिम्-बअ्दि मीसाक़िही व यक़्तअू-न मा अ-मरल्लाहु बिही अंय्यूस -ल व युफ्सिदू-न फ़िल्अर्ज़ि, उलाइ-क लहुमुल्लअ् – नतु व लहुम् सूउद्दार
और जो लोग अल्लाह से एहद व पैमान को पक्का करने के बाद तोड़ डालते हैं और जिन (तालुकात बाहमी) के क़ायम रखने का अल्लाह ने हुक्म दिया है उन्हें क़तआ (तोड़ते) करते हैं और रुए ज़मीन पर फ़साद फैलाते फिरते हैं ऐसे ही लोग हैं जिनके लिए लानत है और ऐसे ही लोगों के वास्ते बड़ा घर (जहन्नुम) है।

13:26

ٱللَّهُ يَبْسُطُ ٱلرِّزْقَ لِمَن يَشَآءُ وَيَقْدِرُ ۚ وَفَرِحُوا۟ بِٱلْحَيَوٰةِ ٱلدُّنْيَا وَمَا ٱلْحَيَوٰةُ ٱلدُّنْيَا فِى ٱلْـَٔاخِرَةِ إِلَّا مَتَـٰعٌۭ

अल्लाहु यब्सुतुर्रिज़्-क़ लिमंय्यशा-उ व यक़्दिरू, व फ़रिहू बिल्हयातिद्दुन्या, व मल्हयातुद्दुन्या फ़िल -आख़िरति इल्ला मताअ्
और अल्लाह ही जिसके लिए चाहता है रोज़ी को बढ़ा देता है और जिसके लिए चाहता है तंग करता है और ये लोग दुनिया की (चन्द रोज़ा) जि़न्दगी पर बहुत निहाल हैं हालांकि दुनियावी जि़न्दगी (नईम) आखि़रत के मुक़ाबिल में बिल्कुल बेहकीक़त चीज़ है।

13:27

وَيَقُولُ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ لَوْلَآ أُنزِلَ عَلَيْهِ ءَايَةٌۭ مِّن رَّبِّهِۦ ۗ قُلْ إِنَّ ٱللَّهَ يُضِلُّ مَن يَشَآءُ وَيَهْدِىٓ إِلَيْهِ مَنْ أَنَابَ

व यक़ूलुल्लज़ी-न क-फरू लौ ल उन्ज़ि-ल अ़लैहि आयतुम् मिर्रब्बिही, क़ुल इन्नल्ला-ह युज़िल्लु मंय्यशा-उ व यह्दी इलैहि मन् अनाब
और जिन लोगों ने कुफ्र अख़तियार किया वह कहते हैं कि उस (शख़्स यानि तुम) पर हमारी ख़्वाहिश के मुवाफिक़ कोई मौजिज़ा उसके परवरदिगार की तरफ से क्यों नहीं नाजि़ल होता तुम उनसे कह दो कि इसमें शक नहीं कि अल्लाह जिसे चाहता है गुमराही में छोड़ देता है।

13:28

ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَتَطْمَئِنُّ قُلُوبُهُم بِذِكْرِ ٱللَّهِ ۗ أَلَا بِذِكْرِ ٱللَّهِ تَطْمَئِنُّ ٱلْقُلُوبُ

अल्लज़ी-न आमनू व तत्मइन्नु क़ुलूबुहुम् बिज़िक् रिल्लाहि, अला बिज़िक् रिल्लाहि तत्मइन्नुल-क़ुलूब
और जिसने उसकी तरफ रुज़ू की उसे अपनी तरफ पहुँचने की राह दिखाता है (ये) वह लोग हैं जिन्होंने इमान कुबूल किया और उनके दिलों को अल्लाह की चाह से तसल्ली हुआ करती है।

13:29

ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ طُوبَىٰ لَهُمْ وَحُسْنُ مَـَٔابٍۢ

अल्लज़ी-न आमनू व अ़मिलुस्सालिहाति तूबा लहुम् व हुस्-नु मआब
जिन लोगों ने इमान क़ुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए उनके वास्ते (बहिश्त में) तूबा (दरख़्त) और ख़ुशहाली और अच्छा अन्जाम है।

13:30

كَذَٰلِكَ أَرْسَلْنَـٰكَ فِىٓ أُمَّةٍۢ قَدْ خَلَتْ مِن قَبْلِهَآ أُمَمٌۭ لِّتَتْلُوَا۟ عَلَيْهِمُ ٱلَّذِىٓ أَوْحَيْنَآ إِلَيْكَ وَهُمْ يَكْفُرُونَ بِٱلرَّحْمَـٰنِ ۚ قُلْ هُوَ رَبِّى لَآ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ عَلَيْهِ تَوَكَّلْتُ وَإِلَيْهِ مَتَابِ

कज़ालि-क अर्सल्ना-क फ़ी उम्मतिन् क़द् खलत् मिन् क़ब्लिहा उ-ममुल्-लितत्लु-व अलैहिमुल्लज़ी औहैना इलै-क व हुम् यक्फुरू-न बिर्रह़्मानि, क़ुल हु-व रब्बी ला इला-ह इल्ला हु-व, अलैहि तवक्कल्तु व इलैहि मताब
(ऐ रसूल! जिस तरह हमने और पैग़म्बर भेजे थे) उसी तरह हमने तुमको उस उम्मत में भेजा है जिससे पहले और भी बहुत सी उम्मते गुज़र चुकी हैं -ताकि तुम उनके सामने जो क़ुरान हमने वही के ज़रिए से तुम्हारे पास भेजा है उन्हें पढ़ कर सुना दो और ये लोग (कुछ तुम्हारे ही नहीं बल्कि सिरे से) अल्लाह ही के मुन्किर हैं तुम कह दो कि वही मेरा परवरदिगार है उसके सिवा कोई माबूद नहीं मै उसी पर भरोसा रखता हूँ और उसी तरफ रुजू करता हूँ।

13:31

وَلَوْ أَنَّ قُرْءَانًۭا سُيِّرَتْ بِهِ ٱلْجِبَالُ أَوْ قُطِّعَتْ بِهِ ٱلْأَرْضُ أَوْ كُلِّمَ بِهِ ٱلْمَوْتَىٰ ۗ بَل لِّلَّهِ ٱلْأَمْرُ جَمِيعًا ۗ أَفَلَمْ يَا۟يْـَٔسِ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ أَن لَّوْ يَشَآءُ ٱللَّهُ لَهَدَى ٱلنَّاسَ جَمِيعًۭا ۗ وَلَا يَزَالُ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ تُصِيبُهُم بِمَا صَنَعُوا۟ قَارِعَةٌ أَوْ تَحُلُّ قَرِيبًۭا مِّن دَارِهِمْ حَتَّىٰ يَأْتِىَ وَعْدُ ٱللَّهِ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُخْلِفُ ٱلْمِيعَادَ

व लौ अन्-न क़ुरआनन् सुय्यिरत् बिहिल्-जिबालु औ क़ुत्तिअ़त् बिहिल्-अर्-ज़ु औ कुल्लि-म बिहिल्मौता, बल् लिल्लाहिल्-अम्रु जमीअ़न्, अ-फ़लम् यऐ असिल्लज़ी-न आमनू अल्- लौ यशाउल्लाहु ल-हदन्ना स जमीअ़न्, व ला यज़ालुल्लज़ी-न क-फरू तुसीबुहुम् बिमा स नअू क़ारि अतुन् औ तहुल्लु क़रीबम् मिन् दारिहिम् हत्ता यअ्ति-य वअ्दुल्लाहि, इन्नल्ला-ह ला युख़्लिफुल-मीआ़द
और अगर कोई ऐसा क़ुरान (भी नाजि़ल हेाता) जिसकी बरकत से पहाड़ (अपनी जगह) चल खड़े होते या उसकी वजह से ज़मीन (की मुसाफ़त (दूरी)) तय की जाती और उसकी बरकत से मुर्दे बोल उठते (तो भी ये लोग मानने वाले न थे) बल्कि सच यूँ है कि सब काम का एख़्तेयार अल्लाह ही को है तो क्या अभी तक इमानदारों को चैन नहीं आया कि अगर अल्लाह चाहता तो सब लोगों की हिदायत कर देता और जिन लोगों ने कुफ्र एख़्तेयार किया उन पर उनकी करतूत की सज़ा में कोई (न कोई) मुसीबत पड़ती ही रहेगी या (उन पर पड़ी) तो उनके घरों के आस पास (ग़रज़) नाजि़ल होगी (ज़रुर) यहाँ तक कि अल्लाह का वायदा (फतेह मक्का) पूरा हो कर रहे और इसमें शक नहीं कि अल्लाह हरगिज़ खि़लाफ़े वायदा नहीं करता।

13:32

وَلَقَدِ ٱسْتُهْزِئَ بِرُسُلٍۢ مِّن قَبْلِكَ فَأَمْلَيْتُ لِلَّذِينَ كَفَرُوا۟ ثُمَّ أَخَذْتُهُمْ ۖ فَكَيْفَ كَانَ عِقَابِ

वल-क़दिस्तुह्ज़ि-अ बिरूसुलिम् मिन् क़ब्लि-क फ़ अम्लैतु लिल्लज़ी न क फरू सुम् म अख़ज़्तुहुम्, फ़कै-फ़ का-न अिक़ाब
और (ऐ रसूल!) तुमसे पहले भी बहुतेरे पैग़म्बरों की हँसी उड़ाई जा चुकी है तो मैने (चन्द रोज़) काफिरों को मोहलत दी फिर (आखि़र कार) हमने उन्हें ले डाला फिर (तू क्या पूछता है कि) हमारा अज़ाब कैसा था।

13:33

أَفَمَنْ هُوَ قَآئِمٌ عَلَىٰ كُلِّ نَفْسٍۭ بِمَا كَسَبَتْ ۗ وَجَعَلُوا۟ لِلَّهِ شُرَكَآءَ قُلْ سَمُّوهُمْ ۚ أَمْ تُنَبِّـُٔونَهُۥ بِمَا لَا يَعْلَمُ فِى ٱلْأَرْضِ أَم بِظَـٰهِرٍۢ مِّنَ ٱلْقَوْلِ ۗ بَلْ زُيِّنَ لِلَّذِينَ كَفَرُوا۟ مَكْرُهُمْ وَصُدُّوا۟ عَنِ ٱلسَّبِيلِ ۗ وَمَن يُضْلِلِ ٱللَّهُ فَمَا لَهُۥ مِنْ هَادٍۢ

अ-फ मन् हु-व क़ाइमुन् अला कुल्लि नफ़्सिम्-बिमा क सबत्, व ज-अलू लिल्लाहि शु-रका-अ, क़ुल् सम्मूहुम्, अम् तुनब्बिऊनहू बिमा ला यअ्लमु फिल्अर्ज़ि अम् बिज़ाहिरिम्-मिनल्क़ौलि, बल् ज़ुय्यि-न लिल्लज़ी-न क -फरू मक्-रू
हुम् व सुद्दू अनिस्सबीलि, व मंय्युज़्लिलिल्लाहु फमा लहू मिन् हाद
क्या जो (अल्लाह) हर एक शख़्स के आमाल की ख़बर रखता है (उनको यूं ही छोड़ देगा हरगिज़ नहीं) और उन लोगों ने अल्लाह के (दूसरे दूसरे) शरीक ठहराए (ऐ रसूल तुम उनसे कह दो कि तुम आखि़र उनके नाम तो बताओं या तुम अल्लाह को ऐसे शरीक़ो की ख़बर देते हो जिनको वह जानता तक नहीं कि वह ज़मीन में (किधर बसते) हैं या (निरी ऊपर से बातें बनाते हैं बल्कि (असल ये है कि) काफिरों को उनकी मक्कारियाँ भली दिखाई गई है और वह (गोया) राहे रास्त से रोक दिए गए हैं और जिस शख़्स को अल्लाह गुमराही में छोड़ दे तो उसका कोई हिदायत करने वाला नहीं।

13:34

لَّهُمْ عَذَابٌۭ فِى ٱلْحَيَوٰةِ ٱلدُّنْيَا ۖ وَلَعَذَابُ ٱلْـَٔاخِرَةِ أَشَقُّ ۖ وَمَا لَهُم مِّنَ ٱللَّهِ مِن وَاقٍۢ

लहुम् अ़ज़ाबुन् फ़िल्हयातिद्दुन्या व ल-अ़ज़ाबुल – आख़िरति अशक़्क़ु व मा लहुम् मिनल्लाहि मिंव्वाक़
इन लोगों के वास्ते दुनियावी ज़िन्दगी में (भी) अज़ाब है और आख़िरत का अज़ाब तो यक़ीनी और बहुत सख़्त खुलने वाला है (और) (फिर) अल्लाह (के ग़ज़ब) से उनको कोई बचाने वाला (भी) नहीं।

13:35

۞ مَّثَلُ ٱلْجَنَّةِ ٱلَّتِى وُعِدَ ٱلْمُتَّقُونَ ۖ تَجْرِى مِن تَحْتِهَا ٱلْأَنْهَـٰرُ ۖ أُكُلُهَا دَآئِمٌۭ وَظِلُّهَا ۚ تِلْكَ عُقْبَى ٱلَّذِينَ ٱتَّقَوا۟ ۖ وَّعُقْبَى ٱلْكَـٰفِرِينَ ٱلنَّارُ

म-स लुल-जन्नतिल्लती वुअिदल् मुत्तक़ू-न, तज्री मिन् तह्तिहल्-अन्हारू, उकुलुहा दाइमुंव्व ज़िल्लुहा, तिल्-क अुक़्बल्लज़ीनत्तक़ौ, व उक़्बल् काफ़िरीनन्नार
जिस बाग़ (बहिश्त) का परहेज़गारों से वायदा किया गया है उसकी सिफत ये है कि उसके नीचे नहरें जारी होगी उसके मेवे सदाबहार और ऐसे ही उसकी छांव भी ये अन्जाम है उन लोगों को जो (दुनिया में) परहेज़गार थे और काफिरों का अन्जाम (जहन्नुम की) आग है।

13:36

وَٱلَّذِينَ ءَاتَيْنَـٰهُمُ ٱلْكِتَـٰبَ يَفْرَحُونَ بِمَآ أُنزِلَ إِلَيْكَ ۖ وَمِنَ ٱلْأَحْزَابِ مَن يُنكِرُ بَعْضَهُۥ ۚ قُلْ إِنَّمَآ أُمِرْتُ أَنْ أَعْبُدَ ٱللَّهَ وَلَآ أُشْرِكَ بِهِۦٓ ۚ إِلَيْهِ أَدْعُوا۟ وَإِلَيْهِ مَـَٔابِ

वल्लज़ी-न आतैनाहुमुल्-किता-ब यफ्-रहू-न बिमा उन्ज़ि-ल इलै-क व मिनल्-अह्ज़ाबि मंय्युन्किरू बअ्ज़हू, क़ुल इन्नमा उमिर्तु अन् अअ्बुदल्ला-ह व ला उश्रि-क बिही, इलैहि अद्अू व इलैहि मआब
और (ए रसूल) जिन लोगों को हमने किताब दी है वह तो जो (एहकाम) तुम्हारे पास नाजि़ल किए गए हैं सब ही से खुश होते हैं और बाज़ फिरके़ उसकी बातों से इन्कार करते हैं तुम (उनसे) कह दो कि (तुम मानो या न मानो) मुझे तो ये हुक्म दिया गया है कि मै अल्लाह ही की इबादत करु और किसी को उसका शरीक न बनाऊ मै (सब को) उसी की तरफ बुलाता हूँ और हर शख़्स को हिर फिर कर उसकी तरफ जाना है।

13:37

وَكَذَٰلِكَ أَنزَلْنَـٰهُ حُكْمًا عَرَبِيًّۭا ۚ وَلَئِنِ ٱتَّبَعْتَ أَهْوَآءَهُم بَعْدَ مَا جَآءَكَ مِنَ ٱلْعِلْمِ مَا لَكَ مِنَ ٱللَّهِ مِن وَلِىٍّۢ وَلَا وَاقٍۢ

व कज़ालि-क अन्ज़ल्नाहु हुक्मन् अ-रबिय्यन्, व ल-इनित्त बअ्-त अह़्वा-अहुम् बअ्-द मा जाअ-क मिनल्- अिल्मि, मा ल-क मिनल्लाहि मिंव्वलिय्यिंव्-व ला वाक़
और यूँ हमने उस क़ुरान को अरबी (ज़बान) का फरमान नाज़िल फरमाया और (ऐ रसूल) अगर कहीं तुमने इसके बाद को तुम्हारे पास इल्म (क़ुरान) आ चुका उन की नफसियानी ख़्वाहिशों की पैरवी कर ली तो (याद रखो कि) फिर अल्लाह की तरफ से न कोई तुम्हारा सरपरस्त होगा न कोई बचाने वाला।

13:38

وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا رُسُلًۭا مِّن قَبْلِكَ وَجَعَلْنَا لَهُمْ أَزْوَٰجًۭا وَذُرِّيَّةًۭ ۚ وَمَا كَانَ لِرَسُولٍ أَن يَأْتِىَ بِـَٔايَةٍ إِلَّا بِإِذْنِ ٱللَّهِ ۗ لِكُلِّ أَجَلٍۢ كِتَابٌۭ

व ल-क़द् अरसल्ना रूसुलम् मिन् क़ब्लि-क व जअ़ल्ना लहुम् अज़्वाजंव्-व ज़ुर्रिय्य तन्, व मा का-न लि-रसूलिन् अंय्यअ्ति-य बिआयतिन् इल्ला बि- इज़्निल्लाहि, लिकुल्लि अ-जलिन् किताब
और हमने तुमसे पहले और (भी) बहुतेरे पैग़म्बर भेजे और हमने उनको बीवियाँ भी दी और औलाद (भी अता की) और किसी पैग़म्बर की ये मजाल न थी कि कोई मौजिज़ा अल्लाह की इजाज़त के बगैर ला दिखाए हर एक वक़्त (मौऊद) के लिए (हमारे यहाँ) एक (कि़स्म की) तहरीर (होती) है।

13:39

يَمْحُوا۟ ٱللَّهُ مَا يَشَآءُ وَيُثْبِتُ ۖ وَعِندَهُۥٓ أُمُّ ٱلْكِتَـٰبِ

यम्हुल्लाहु मा यशा-उ व युस्बितु, व अिन्दहू उम्मुल् – किताब
फिर इसमें से अल्लाह जिसको चाहता है मिटा देता है और (जिसको चाहता है बाक़ी रखता है और उसके पास असल किताब (लौहे महफूज़) मौजूद है।

13:40

وَإِن مَّا نُرِيَنَّكَ بَعْضَ ٱلَّذِى نَعِدُهُمْ أَوْ نَتَوَفَّيَنَّكَ فَإِنَّمَا عَلَيْكَ ٱلْبَلَـٰغُ وَعَلَيْنَا ٱلْحِسَابُ ٤٠

व इम्मा नुरियन्न-क बअ्ज़ल्लज़ी नअिदुहुम् औ न-तवफ़्फ़-यन्न-क फ-इन्नमा अ़लैकल्-बलाग़ु व अ़लैनल् -हिसाब
और (ए रसूल!) जो जो वायदे (अज़ाब वगै़रह के) हम उन कुफ्फारों से करते हैं चाहे, उनमें से बाज़ तुम्हारे सामने पूरे कर दिखाएँ या तुम्हें उससे पहले उठा लें बहर हाल तुम पर तो सिर्फ एहकाम का पहुचा देना फर्ज़ है।

13:41

أَوَلَمْ يَرَوْا۟ أَنَّا نَأْتِى ٱلْأَرْضَ نَنقُصُهَا مِنْ أَطْرَافِهَا ۚ وَٱللَّهُ يَحْكُمُ لَا مُعَقِّبَ لِحُكْمِهِۦ ۚ وَهُوَ سَرِيعُ ٱلْحِسَابِ

अ-व लम् यरौ अन्ना नअ्तिल् अर्-ज़ नन्क़ुसुहा मिन् अत्राफ़िहा, वल्लाहु यह्कुमु ला मुअ़क़्क़ि-ब लिहुक्मिही, व हु-व सरीअुल्-हिसाब
और उनसे हिसाब लेना हमारा काम है क्या उन लोगों ने ये बात न देखी कि हम ज़मीन को (फ़ुतुहाते इस्लाम से) उसके तमाम एतराफ (चारो ओर) से (सवाह कुफ्र में) घटाते चले आते हैं और अल्लाह जो चाहता है हुक्म देता है उसके हुक्म का कोई टालने वाला नहीं और बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है।

13:42

وَقَدْ مَكَرَ ٱلَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ فَلِلَّهِ ٱلْمَكْرُ جَمِيعًۭا ۖ يَعْلَمُ مَا تَكْسِبُ كُلُّ نَفْسٍۢ ۗ وَسَيَعْلَمُ ٱلْكُفَّـٰرُ لِمَنْ عُقْبَى ٱلدَّارِ

व क़द् म-करल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिहिम् फ़लिल्लाहिल्- मक्-रू जमीअ़न्, यअ्लमु मा तक्सिबु कुल्लु नफ्सिन्, व स-यअ्लमुल्-कुफ़्फ़ारू लिमन् अुक़बद्दार
और जो लोग उन (कुफ्फार मक्के) से पहले हो गुज़रे हैं उन लोगों ने भी पैग़म्बरों की मुख़ालफत में बड़ी बड़ी तदबीरे की तो (ख़ाक न हो सका क्योंकि) सब तदबीरे तो अल्लाह ही के हाथ में हैं जो शख़्स जो कुछ करता है वह उसे खूब जानता है और अनक़रीब कुफ्फार को भी मालूम हो जाएगा कि आखि़रत की खूबी किस के लिए है।

13:43

وَيَقُولُ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ لَسْتَ مُرْسَلًۭا ۚ قُلْ كَفَىٰ بِٱللَّهِ شَهِيدًۢا بَيْنِى وَبَيْنَكُمْ وَمَنْ عِندَهُۥ عِلْمُ ٱلْكِتَـٰبِ

व यक़ूलुल्लज़ी-न क फरू लस् त मुर्सलन्, क़ुल् कफ़ा बिल्लाहि शहीदम्-बैनी व बैनकुम्, व मन् अिन्दहू अिल्मुल्-किताब
और (ऐ रसूल!) काफिर लोग कहते हैं कि तुम पैग़म्बर नही हो तो तुम (उनसे) कह दो कि मेरे और तुम्हारे दरम्यिान मेरी रिसालत की गवाही के वास्ते अल्लाह और वह शख़्स जिसके पास (आसमानी) किताब का इल्म है काफी है।

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