Surah Al Anbiya In Hindi [21:1 – 21:112]

Surah Al-Anbiya, Quran ka 21wa surah hai, jo 112 ayatein par mushtamil hai. Yah surah Makki hai, yani yeh Makka mein utari gayi thi. Is surah ka naam “Al-Anbiya” hai, jiska arth “Nabiyon” ya “Paigambaron” se hai. Is surah mein kai paigambaron ke kisse aur unki kahaniyan bayan ki gayi hain, jisme unki mushkilat, unka sabr, aur Allah par unka bharosa dikhaya gaya hai.

Kuch Mukhya Bindu:

  1. Aakhri Din ka Zikr: Is surah ka ek mukhya vishay Qayamat ka din aur uska bayan hai. Insaanon ko yaad dilaya gaya hai ki unhe ek din apne aamal ka hisaab dena hoga.
  2. Nabiyon ki Kahaniyan: Is surah mein Ibrahim (Abraham), Lut (Lot), Nuh (Noah), Dawood (David), Sulaiman (Solomon), Ayub (Job), Yunus (Jonah), Zakariya (Zechariah), Yahya (John the Baptist) aur Isa (Jesus) alaihimus salam jaise paigambaron ka zikr hai. Inke kisse se humein sabr, imaan aur Allah ki rahmat par bharosa karne ki seekh milti hai.
  3. Toheed ka Sandesh: Is surah mein Allah ki wahdaniyat (ekta) ko zor de kar bayan kiya gaya hai. Logon ko shirk (Allah ke saath kisi aur ko shareek karna) se door rehne ki nasihat ki gayi hai.
  4. Risalat ka Bayan: Is surah mein Paigambar Muhammad (PBUH) ki risalat ka bayan hai aur unke sath unke ummat ka zikr hai. Logon ko unki paigambari aur unke sandesh par imaan lane ki nasihat ki gayi hai.
  5. Rahmat aur Rehmat ka Zikr: Allah ki rahmat aur rehmat ka zikr bhi is surah mein hai. Allah apne bande ko mushkil waqt mein madad karta hai, bas bande ko Allah par poora bharosa rakhna chahiye.

Surah Al-Anbiya humein seekhati hai ki musibat aur parikshaon ke samay mein sabr aur imaan banaye rakhna chahiye aur Allah se madad mangni chahiye. Yeh surah insaan ko yaad dilati hai ki ek din har insaan ko apne aamal ka hisaab dena hoga, isliye humein nek kaam karne chahiye aur bure kaamon se bachna chahiye.

सूरह अल अम्बिया हिंदी में पढ़ें

بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ

बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।

21:1

ٱقْتَرَبَ لِلنَّاسِ حِسَابُهُمْ وَهُمْ فِى غَفْلَةٍۢ مُّعْرِضُونَ

इक्त-र-ब लिन्नासि हिसाबुहुम् व हुम् फी ग़फ़्लतिम्-मुअ्-रिजून
लोगों के पास उनका हिसाब (उसका वक़्त) आ पहुँचा और वो हैं कि गफ़लत में पड़े मुँह मोड़े ही जाते हैं।

21:2

مَا يَأْتِيهِم مِّن ذِكْرٍۢ مِّن رَّبِّهِم مُّحْدَثٍ إِلَّا ٱسْتَمَعُوهُ وَهُمْ يَلْعَبُونَ

मा यअ्तीहिम् मिन् ज़िक्रिम्-मिर्रब्बिहिम् मुह्दसिन् इल्लस्त मअुहु व हुम् यल्अ़बून
जब उनके परवरदिगार की तरफ से उनके पास कोई नया हुक्म आता है तो उसे सिर्फ कान लगाकर सुन लेते हैं और (फिर उसका) हँसी खेल उड़ाते हैं।

21:3

لَاهِيَةًۭ قُلُوبُهُمْ ۗ وَأَسَرُّوا۟ ٱلنَّجْوَى ٱلَّذِينَ ظَلَمُوا۟ هَلْ هَـٰذَآ إِلَّا بَشَرٌۭ مِّثْلُكُمْ ۖ أَفَتَأْتُونَ ٱلسِّحْرَ وَأَنتُمْ تُبْصِرُونَ

लाहि – यतन् कुलूबुहुम्, व अ सर्रून् नज्वल्लज़ी-न ज़-लमू हल् हाज़ा इल्ला ब-शरूम्-मिस्लुकुम् अ-फ़तअ्तूनस्सिह्-र व अन्तुम् तुब्सिरून
उनके दिल (आखि़रत के ख़्याल से) बिल्कुल बेख़बर हैं और ये ज़ालिम चुपके-चुपके कानाफूसी किया करते हैं कि ये शख़्स (मोहम्मद कुछ भी नहीं) बस तुम्हारे ही सा आदमी है तो क्या तुम दीदा व दानिस्ता जादू में फँसते हो।

21:4

قَالَ رَبِّى يَعْلَمُ ٱلْقَوْلَ فِى ٱلسَّمَآءِ وَٱلْأَرْضِ ۖ وَهُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلْعَلِيمُ

लाहि – यतन् कुलूबुहुम्, व अ सर्रून् नज्वल्लज़ी-न ज़-लमू हल् हाज़ा इल्ला ब-शरूम्-मिस्लुकुम् अ-फ़तअ्तूनस्सिह्-र व अन्तुम् तुब्सिरून
(तो उस पर) रसूल ने कहा कि मेरा परवरदिगार जितनी बातें आसमान और ज़मीन में होती हैं खू़ब जानता है (फिर क्यों कानाफूसी करते हो) और वह तो बड़ा सुनने वाला वाकि़फ़कार है।

21:5

بَلْ قَالُوٓا۟ أَضْغَـٰثُ أَحْلَـٰمٍۭ بَلِ ٱفْتَرَىٰهُ بَلْ هُوَ شَاعِرٌۭ فَلْيَأْتِنَا بِـَٔايَةٍۢ كَمَآ أُرْسِلَ ٱلْأَوَّلُونَ

बल् क़ालू अज़्गासु अह़्लामिम्-बलिफ़्तराहु बल् हु-व शाअिरून् फ़ल्य अ्तिना बिआयतिन् कमा उर्सिलल् – अव्वलून
(उस पर भी उन लोगों ने इकतेफ़ा न की) बल्कि कहने लगे (ये कु़रआन तो) ख्वाबहाय परीशाँ का मजमूआ है बल्कि उसने खु़द अपने जी से झूट-मूट गढ़ लिया है बल्कि ये शख़्स शायर है और अगर हक़ीकतन रसूल है) तो जिस तरह अगले पैग़म्बर मौजिज़ों के साथ भेजे गए थे।

21:6

مَآ ءَامَنَتْ قَبْلَهُم مِّن قَرْيَةٍ أَهْلَكْنَـٰهَآ ۖ أَفَهُمْ يُؤْمِنُونَ

मा आम-नत् क़ब्लहुम् मिन् क़र्-यतिन् अहलक्नाहा अ- फ़हुम् युअ्मिनून
उसी तरह ये भी कोई मौजिज़ा (जैसा हम कहें) हमारे पास भला लाए तो सही इनसे पहले जिन बस्तियों को तबाह कर डाला (मौजिज़े भी देखकर तो) ईमान न लाए।

21:7

وَمَآ أَرْسَلْنَا قَبْلَكَ إِلَّا رِجَالًۭا نُّوحِىٓ إِلَيْهِمْ ۖ فَسْـَٔلُوٓا۟ أَهْلَ ٱلذِّكْرِ إِن كُنتُمْ لَا تَعْلَمُونَ

व मा अर्सल्ना क़ब्ल-क इल्ला रिजालन् नूही इलैहिम् फ़स्अलू अह़्लज्ज़िक्रि इन् कुन्तुम् ला तअ्लमून
तो क्या ये लोग ईमान लाएँगे और ऐ रसूल हमने तुमसे पहले भी आदमियों ही को (रसूल बनाकर) भेजा था कि उनके पास “वही” भेजा करते थे तो अगर तुम लोग खु़द नहीं जानते हो तो आलिमों से पूँछकर देखो।

21:8

وَمَا جَعَلْنَـٰهُمْ جَسَدًۭا لَّا يَأْكُلُونَ ٱلطَّعَامَ وَمَا كَانُوا۟ خَـٰلِدِينَ

व मा जअ़ल्नाहुम् ज-सदल्-ला यअ्कुलूनत्तआ़-म व मा कानू ख़ालिदीन
और हमने उन (पैग़म्बरों) के बदन ऐसे नहीं बनाए थे कि वह खाना न खाएँ और न वह (दुनिया में) हमेशा रहने सहने वाले थे।

21:9

ثُمَّ صَدَقْنَـٰهُمُ ٱلْوَعْدَ فَأَنجَيْنَـٰهُمْ وَمَن نَّشَآءُ وَأَهْلَكْنَا ٱلْمُسْرِفِينَ

सुम् – म सदक़्नाहुमुल् – वअ् – द फ़ – अन्जैनाहुम् व मन् – नशा उ व अह़्लकनल्-मुस्रिफ़ीन
फिर हमने उन्हें (अपना अज़ाब का) वायदा सच्चा कर दिखाया (और जब अज़ाब आ पहुँचा) तो हमने उन पैग़म्बरों को और जिस जिसको चाहा छुटकारा दिया और हद से बढ़ जाने वालों को हलाक कर डाला।

21:10

لَقَدْ أَنزَلْنَآ إِلَيْكُمْ كِتَـٰبًۭا فِيهِ ذِكْرُكُمْ ۖ أَفَلَا تَعْقِلُونَ

ल-क़द् अन्ज़ल्ना इलैकुम् किताबन् फ़ीहि ज़िक्रुकुम्, अ-फ़ला तअ्किलून
हमने तो तुम लोगों के पास वह किताब (कु़रआआन) नाजि़ल की है जिसमें तुम्हारा (भी) जि़क्रे (ख़ैर) है तो क्या तुम लोग (इतना भी) नहीं समझते।

21:11

وَكَمْ قَصَمْنَا مِن قَرْيَةٍۢ كَانَتْ ظَالِمَةًۭ وَأَنشَأْنَا بَعْدَهَا قَوْمًا ءَاخَرِينَ

व कम् क़सम्ना मिन् क़र – यतिन् कानत् ज़ालि-मतंव् – व अन्शअ्ना बअ्-दहा क़ौमन् आ-ख़रीन
और हमने कितनी बस्तियों को जिनके रहने वाले सरकश थे बरबाद कर दिया और उनके बाद दूसरे लोगों केा पैदा किया।

21:12

فَلَمَّآ أَحَسُّوا۟ بَأْسَنَآ إِذَا هُم مِّنْهَا يَرْكُضُونَ

फ़- लम्मा अ – हस्सू बअ्सना इज़ा हुम् मिन्हा यरकुजून
तो जब उन लोगों ने हमारे अज़ाब की आहट पाई तो एका एकी भागने लगे।

21:13

لَا تَرْكُضُوا۟ وَٱرْجِعُوٓا۟ إِلَىٰ مَآ أُتْرِفْتُمْ فِيهِ وَمَسَـٰكِنِكُمْ لَعَلَّكُمْ تُسْـَٔلُونَ

ला तरकुजू वर्जिअू इला मा उतरिफ़्तुम् फ़ीहि व मसाकिनिकुम् लअ़ल्लकुम् तुस् अलून
(हमने कहा) भागो नहीं और उन्हीं बस्तियों और घरों में लौट जाओ जिनमें तुम चैन करते थे ताकि तुमसे कुछ पूछगछ की जाए।

21:14

قَالُوا۟ يَـٰوَيْلَنَآ إِنَّا كُنَّا ظَـٰلِمِينَ

क़ालू या वैलना इन्ना कुन्ना ज़ालिमीन
वह लोग कहने लगे हाए हमारी शामत बेशक हम सरकश तो ज़रूर थे।

21:15

فَمَا زَالَت تِّلْكَ دَعْوَىٰهُمْ حَتَّىٰ جَعَلْنَـٰهُمْ حَصِيدًا خَـٰمِدِينَ

फ़मा ज़ालत् तिल-क दअ्वाहुम हत्ता जअ़ल्नाहुम् हसीदन् ख़ामिदीन
ग़रज़ वह बराबर यही पड़े पुकारा किए यहाँ तक कि हमने उन्हें कटी हुयी खेती की तरह बिछा के ठन्डा करके ढेर कर दिया।

21:16

وَمَا خَلَقْنَا ٱلسَّمَآءَ وَٱلْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا لَـٰعِبِينَ

व मा ख़लक़्नस्समा – अ वल्अर्-ज़ व मा बैनहुमा लाअिबीन
और हमने आसमान और ज़मीन को और जो कुछ इन दोनों के दरमियान है बेकार लगो नहीं पैदा किया।

21:17

لَوْ أَرَدْنَآ أَن نَّتَّخِذَ لَهْوًۭا لَّٱتَّخَذْنَـٰهُ مِن لَّدُنَّآ إِن كُنَّا فَـٰعِلِينَ

लौ अरद्ना अन् नत्तखि-ज़ लह़्वल् लत्त ख़ज़्नाहु मिल्लदुन्ना इन् कुन्ना फ़ाअिलीन
अगर हम कोई खेल बनाना चाहते तो बेशक हम उसे अपनी तजवीज़ से बना लेते अगर हमको करना होता (मगर हमें शायान ही न था)।

21:18

بَلْ نَقْذِفُ بِٱلْحَقِّ عَلَى ٱلْبَـٰطِلِ فَيَدْمَغُهُۥ فَإِذَا هُوَ زَاهِقٌۭ ۚ وَلَكُمُ ٱلْوَيْلُ مِمَّا تَصِفُونَ

बल् नक्ज़िफु बिल्हक्कि अ़लल्-बातिलि फ़-यदमगुहू फ़-इज़ा हु-व जाहिकुन्, व लकुमुल् – वैलु मिम्मा तसिफून
बल्कि हम तो हक़ को नाहक़ (के सर) पर खींच मारते हैं तो वह बातिल के सर को कुचल देता है फिर वो उसी वक़्त नेस्तो नाबूद हो जाता है और तुम पर अफ़सोस है कि ऐसी-ऐसी नाहक़ बातें बनाया करते हो।

21:19

وَلَهُۥ مَن فِى ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ ۚ وَمَنْ عِندَهُۥ لَا يَسْتَكْبِرُونَ عَنْ عِبَادَتِهِۦ وَلَا يَسْتَحْسِرُونَ

व लहू मन् फ़िस्समावाति वल् अर्जि, व मन् अिन्दहू ला यस्तक्बिरू न अ़न् अिबादतिही व ला यस्तह्सिरून
हालाँकि जो (फरिश्ते) आसमान और ज़मीन में हैं (सब) उसी के (बन्दे) हैं और जो (फरिश्ते) उस सरकार में हैं न तो वो उसकी इबादत की शेख़ी करते हैं और न थकते हैं।

21:20

يُسَبِّحُونَ ٱلَّيْلَ وَٱلنَّهَارَ لَا يَفْتُرُونَ

युसब्बिहूनल्लै-ल वन्नहा-र ला यफ़्तुरून
रात और दिन उसकी तस्बीह किया करते हैं (और) कभी काहिली नहीं करते।

21:21

أَمِ ٱتَّخَذُوٓا۟ ءَالِهَةًۭ مِّنَ ٱلْأَرْضِ هُمْ يُنشِرُونَ

अमित्त ख़जू आलि – हतम् मिनल्अर्ज़ि हुम् युन्शिरून
उन लोगों ने जो माबूद ज़मीन में बना रखे हैं क्या वही (लोगों को) ज़िन्दा करेंगे।

21:22

لَوْ كَانَ فِيهِمَآ ءَالِهَةٌ إِلَّا ٱللَّهُ لَفَسَدَتَا ۚ فَسُبْحَـٰنَ ٱللَّهِ رَبِّ ٱلْعَرْشِ عَمَّا يَصِفُونَ

लौ का न फ़ीहिमा आलि – हतुन् इल्लल्लाहु ल-फ़-स- दता फ़- सुब्हानल्लाहि रब्बिल् अ़र्शि अ़म्मा यसिफून
(बा ग़रज़ मुहाल) ज़मीन व आसमान में अल्लाह कि सिवा चन्द माबूद होते तो दोनों कब के बरबाद हो गए होते तो जो बातें ये लोग अपने जी से (उसके बारे में) बनाया करते हैं अल्लाह जो अर्श का मालिक है उन तमाम ऐबों से पाक व पाकीज़ा है।

21:23

لَا يُسْـَٔلُ عَمَّا يَفْعَلُ وَهُمْ يُسْـَٔلُونَ

ला युस्अलु अ़म्मा यफ्अलु व हुम् युस् अलून
जो कुछ वो करता है उसकी पूछगछ नहीं हो सकती।

21:24

أَمِ ٱتَّخَذُوا۟ مِن دُونِهِۦٓ ءَالِهَةًۭ ۖ قُلْ هَاتُوا۟ بُرْهَـٰنَكُمْ ۖ هَـٰذَا ذِكْرُ مَن مَّعِىَ وَذِكْرُ مَن قَبْلِى ۗ بَلْ أَكْثَرُهُمْ لَا يَعْلَمُونَ ٱلْحَقَّ ۖ فَهُم مُّعْرِضُونَ

अमित्त-ख़ जू मिन् दूनिही आलि-हतन्, कुल् हातू बुरहानकुम् हाज़ा ज़िक्रु मम् मअि-य व ज़िक्रु मन् क़ब्ली, बल् अक्सरूहुम् ला यअ्लमूनल्-हक्-क फ़हुम् मुअ्-रिजून
(हाँ) और उन लोगों से बाज़ पुरस्त होगी क्या उन लोगों ने अल्लाह को छोड़कर कुछ और माबूद बना रखे हैं (ऐ रसूल) तुम कहो कि भला अपनी दलील तो पेश करो जो मेरे (ज़माने में) साथ है उनकी किताब (कु़रआन) और जो लोग मुझ से पहले थे उनकी किताबें (तौरेत वग़ैरह) ये (मौजूद) हैं (उनमें अल्लाह का शरीक बता दो) बल्कि उनमें से अक्सर तो हक़ (बात) को तो जानते ही नहीं।

21:25

وَمَآ أَرْسَلْنَا مِن قَبْلِكَ مِن رَّسُولٍ إِلَّا نُوحِىٓ إِلَيْهِ أَنَّهُۥ لَآ إِلَـٰهَ إِلَّآ أَنَا۠ فَٱعْبُدُونِ

व मा अर्सल्ना मिन् कब्लि-क मिर्रसूलिन् इल्ला नूही इलैहि अन्नहू ला इला-ह इल्ला अ-न फ़अ्बुदून
तो (जब हक़ का जि़क्र आता है) ये लोग मुँह फेर लेते हैं और (ऐ रसूल) हमने तुमसे पहले जब कभी कोई रसूल भेजा तो उसके पास “वही” भेजते रहे कि बस हमारे सिवा कोई माबूद क़ाबिले परसतिश नहीं तो मेरी इबादत किया करो।

21:26

وَقَالُوا۟ ٱتَّخَذَ ٱلرَّحْمَـٰنُ وَلَدًۭا ۗ سُبْحَـٰنَهُۥ ۚ بَلْ عِبَادٌۭ مُّكْرَمُونَ

व क़ालुत्त-ख़ज़र्रह्मानु व-लदन् सुब्हानहू, बल् अिबादुम् मुक्रमून
और (एहले मक्का) कहते हैं कि अल्लाह ने (फरिश्तों को) अपनी औलाद (बेटियाँ) बना रखा है (हालाँकि) वह उससे पाक व पकीज़ा हैं बल्कि (वो फ़रिश्ते) (अल्लाह के) मोअजि़्ज़ बन्दे हैं।

21:27

لَا يَسْبِقُونَهُۥ بِٱلْقَوْلِ وَهُم بِأَمْرِهِۦ يَعْمَلُونَ

ला यस्बिकूनहू बिल्क़ौलि व हुम् बिअम्रिही यअ्मलून
ये लोग उसके सामने बढ़कर बोल नहीं सकते और ये लोग उसी के हुक्म पर चलते हैं।

21:28

يَعْلَمُ مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ وَلَا يَشْفَعُونَ إِلَّا لِمَنِ ٱرْتَضَىٰ وَهُم مِّنْ خَشْيَتِهِۦ مُشْفِقُونَ

यअ्लमु मा बै-न ऐदीहिम् व मा ख़ल्फ़हुम् व ला यश्फ़अू-न इल्ला लि-मनिर्तज़ा व हुम् मिन् ख़श्यतिही मुश्फिकून
जो कुछ उनके सामने है और जो कुछ उनके पीछे है (ग़रज़ सब कुछ) वो (अल्लाह) जानता है और ये लोग उस शख़्स के सिवा जिससे अल्लाह राज़ी हो किसी की सिफारिश भी नहीं करते और ये लोग खुद उसके ख़ौफ से (हर वक़्त) डरते रहते हैं।

21:29

۞ وَمَن يَقُلْ مِنْهُمْ إِنِّىٓ إِلَـٰهٌۭ مِّن دُونِهِۦ فَذَٰلِكَ نَجْزِيهِ جَهَنَّمَ ۚ كَذَٰلِكَ نَجْزِى ٱلظَّـٰلِمِينَ

व मंय्यकुल मिन्हुम् इन्नी इलाहुम्-मिन् दूनिही फ़ज़ालि- क नज्ज़ीहि जहन्न-म कज़ालि-क नज्ज़िज़्ज़ालिमीन
और उनमें से जो कोई ये कह दे कि अल्लाह नहीं (बल्कि) मैं माबूद हूँ तो वह (मरदूद बारगाह हुआ) हम उसको जहन्नुम की सज़ा देंगे और सरकशों को हम ऐसी ही सज़ा देते हैं।

21:30

أَوَلَمْ يَرَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓا۟ أَنَّ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضَ كَانَتَا رَتْقًۭا فَفَتَقْنَـٰهُمَا ۖ وَجَعَلْنَا مِنَ ٱلْمَآءِ كُلَّ شَىْءٍ حَىٍّ ۖ أَفَلَا يُؤْمِنُونَ

अ-व लम् यरल्लज़ी-न क-फ़रू अन्नस्समावाति वल् अर्-ज़ कानता रत्क़न् फ़ फ़तक़्नाहुमा, व जअ़ल्ना मिनल्मा इ कुल-ल शैइन् हय्यिन्, अ-फ़ला युअ्मिनून
जो लोग काफ़िर हो बैठे क्या उन लोगों ने इस बात पर ग़ौर नहीं किया कि आसमान और ज़मीन दोनों बस्ता (बन्द) थे तो हमने दोनों को शिगाफ़ता किया (खोल दिया) और हम ही ने जानदार चीज़ को पानी से पैदा किया इस पर भी ये लोग ईमान न लाएँगे।

21:31

وَجَعَلْنَا فِى ٱلْأَرْضِ رَوَٰسِىَ أَن تَمِيدَ بِهِمْ وَجَعَلْنَا فِيهَا فِجَاجًۭا سُبُلًۭا لَّعَلَّهُمْ يَهْتَدُونَ

अ-व लम् यरल्लज़ी-न क-फ़रू अन्नस्समावाति वल् अर्-ज़ कानता रत्क़न् फ़ फ़तक़्नाहुमा, व जअ़ल्ना मिनल्मा इ कुल-ल शैइन् हय्यिन्, अ-फ़ला युअ्मिनून
और हम ही ने ज़मीन पर भारी बोझल पहाड़ बनाए ताकि ज़मीन उन लोगों को लेकर किसी तरफ झुक न पड़े और हम ने ही उसमें लम्बे-चैड़े रास्ते बनाए ताकि ये लोग अपने-अपने मंजि़लें मक़सूद को जा पहुँचे।

21:32

وَجَعَلْنَا ٱلسَّمَآءَ سَقْفًۭا مَّحْفُوظًۭا ۖ وَهُمْ عَنْ ءَايَـٰتِهَا مُعْرِضُونَ

व जअ़ल्नस्-समा-अ सक़्फ़म् महफूज़ंव्-व हुम् अ़न् आयातिहा मुअ्-रिजून
और हम ही ने आसमान को छत बनाया जो हर तरह महफूज़ है और ये लोग उसकी आसमानी निशानियों से मुँह फेर रहे हैं।

21:33

وَهُوَ ٱلَّذِى خَلَقَ ٱلَّيْلَ وَٱلنَّهَارَ وَٱلشَّمْسَ وَٱلْقَمَرَ ۖ كُلٌّۭ فِى فَلَكٍۢ يَسْبَحُونَ

व हुवल्लज़ी ख़-लक़ल्लै-ल वन्नहा-र वश्शम्-स वल्-क-म-र, कुल्लुन् फ़ी फ़-लकिंय्यस्बहून
और वही वह (क़ादिरे मुतलक़) है जिसने रात और दिन और आफ़ताब और माहताब को पैदा किया कि सब के सब एक (एक) आसमान में पैर कर चक्कर लगा रहे हैं।

21:34

وَمَا جَعَلْنَا لِبَشَرٍۢ مِّن قَبْلِكَ ٱلْخُلْدَ ۖ أَفَإِي۟ن مِّتَّ فَهُمُ ٱلْخَـٰلِدُونَ

व हुवल्लज़ी ख़-लक़ल्लै-ल वन्नहा-र वश्शम्-स वल्-क-म-र, कुल्लुन् फ़ी फ़-लकिंय्यस्बहून
और (ऐ रसूल!) हमने तुमसे पहले भी किसी फर्द व बशर को सदा की जि़न्दगी नहीं दी तो क्या अगर तुम मर जाओगे तो ये लोग हमेशा जिया ही करेंगे।

21:35

كُلُّ نَفْسٍۢ ذَآئِقَةُ ٱلْمَوْتِ ۗ وَنَبْلُوكُم بِٱلشَّرِّ وَٱلْخَيْرِ فِتْنَةًۭ ۖ وَإِلَيْنَا تُرْجَعُونَ

व हुवल्लज़ी ख़ – लक़ल्लै – ल वन्नहा – र वश्शम् – स वल्-क-म- र, कुल्लुन् फ़ी फ़ – लकिंय्यस्बहून
(हर शख़्स एक न एक दिन) मौत का मज़ा चखने वाला है और हम तुम्हें मुसीबत व राहत में इम्तेहान की ग़रज़ से आज़माते हैं और (आखि़र कार) हमारी ही तरफ लौटाए जाओगे।

21:36

وَإِذَا رَءَاكَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓا۟ إِن يَتَّخِذُونَكَ إِلَّا هُزُوًا أَهَـٰذَا ٱلَّذِى يَذْكُرُ ءَالِهَتَكُمْ وَهُم بِذِكْرِ ٱلرَّحْمَـٰنِ هُمْ كَـٰفِرُونَ

व इज़ा रआकल्लज़ी न क फ़रू इंय्यत्तख़िजून क इल्ला हुजुवन् अ-हाज़ल्लज़ी यज़्कुरू आलि-ह तकुम् व हुम् बिज़िकरिर्रह्मानि हुम् काफिरून
और (ऐ रसूल!) जब तुम्हें कुफ़्फ़ार देखते हैं तो बस तुमसे मसखरापन करते हैं कि क्या यही हज़रत हैं जो तुम्हारे माबूदों को (बुरी तरह) याद करते हैं हालाँकि ये लोग खु़द अल्लाह की याद से इन्कार करते हैं (तो इनकी बेवकू़फी पर हँसना चाहिए)।

21:37

خُلِقَ ٱلْإِنسَـٰنُ مِنْ عَجَلٍۢ ۚ سَأُو۟رِيكُمْ ءَايَـٰتِى فَلَا تَسْتَعْجِلُونِ

खुलिकल्-इन्सानु मिन् अ़-जलिन् स-उरीकुम् आय़ाती फ़ला तस्तअ्जिलून
आदमी तो बड़ा जल्दबाज़ पैदा किया गया है मैं अनक़रीब ही तुम्हें अपनी (कु़दरत की) निशानियाँ दिखाऊँगा तो तुम मुझसे जल्दी की (धूम) न मचाओ।

21:38

وَيَقُولُونَ مَتَىٰ هَـٰذَا ٱلْوَعْدُ إِن كُنتُمْ صَـٰدِقِينَ

व यकूलू – न मता हाज़ल – वअ्दु इन् कुन्तुम् सादिक़ीन
और लुत्फ़ तो ये है कि कहते हैं कि अगर सच्चे हो तो ये क़यामत का वायदा कब (पूरा) होगा।

21:39

لَوْ يَعْلَمُ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ حِينَ لَا يَكُفُّونَ عَن وُجُوهِهِمُ ٱلنَّارَ وَلَا عَن ظُهُورِهِمْ وَلَا هُمْ يُنصَرُونَ

लौ यस् – लमुल्लज़ी न क फ़रू ही-न ला यकुफ़्फू – न अंव्वुजूहिहिमुन्ना-र व ला अन् जुहूरिहिम् व ला हुम् युन्सरून
और जो लोग काफि़र हो बैठे काश उस वक़्त की हालत से आगाह होते (कि जहन्नुम की आग में खडे़ होंगे) और न अपने चेहरों से आग को हटा सकेंगे और न अपनी पीठ से और न उनकी मदद की जाएगी।

21:40

بَلْ تَأْتِيهِم بَغْتَةًۭ فَتَبْهَتُهُمْ فَلَا يَسْتَطِيعُونَ رَدَّهَا وَلَا هُمْ يُنظَرُونَ

बल् तअ्तीहिम् ब़ग्त – तन् फ़ – तब्हतुहुम् फ़ला यस्ततीअू – न रद्दहा व ला हुम् युन्ज़रून
(क़यामत कुछ जता कर तो आने से रही) बल्कि वह तो अचानक उन पर आ पड़ेगी और उन्हें हक्का बक्का कर देगी फिर उस वक़्त उसमें न उसके हटाने की मजाल होगी और न उन्हें दी ही जाएगी।

21:41

وَلَقَدِ ٱسْتُهْزِئَ بِرُسُلٍۢ مِّن قَبْلِكَ فَحَاقَ بِٱلَّذِينَ سَخِرُوا۟ مِنْهُم مَّا كَانُوا۟ بِهِۦ يَسْتَهْزِءُونَ

व ल-क़दिस्तुह्ज़ि-अ बिरूसुलिम् – मिन् क़ब्लि-क फ़हा-क बिल्लज़ी-न सख़िरू मिन्हुम् मा कानू बिही यस्तह्ज़िऊन
और (ऐ रसूल!) कुछ तुम ही नहीं तुमसे पहले पैग़म्बरों के साथ मसख़रापन किया जा चुका है तो उन पैग़म्बरों से मसख़रापन करने वालों को उस सख़्त अज़ाब ने आ घेर लिया जिसकी वह हँसी उड़ाया करते थे।

21:42

قُلْ مَن يَكْلَؤُكُم بِٱلَّيْلِ وَٱلنَّهَارِ مِنَ ٱلرَّحْمَـٰنِ ۗ بَلْ هُمْ عَن ذِكْرِ رَبِّهِم مُّعْرِضُونَ

कुल मंय्यक्ल-उकुम् बिल्लैलि वन्नहारि मिनर्रहमानि, बल हुम् अन् जिक्रि रब्बिहिम् मुअ्-रिजून
(ऐ रसूल!) तुम उनसे पूछो तो कि अल्लाह (के अज़ाब) से (बचाने में) रात को या दिन को तुम्हारा कौन पहरा दे सकता है उस पर डरना तो दर किनार बल्कि ये लोग अपने परवरदिगार की याद से मुँह फेरते हैं।

21:43

أَمْ لَهُمْ ءَالِهَةٌۭ تَمْنَعُهُم مِّن دُونِنَا ۚ لَا يَسْتَطِيعُونَ نَصْرَ أَنفُسِهِمْ وَلَا هُم مِّنَّا يُصْحَبُونَ

अम् लहुम् आलि-हतुन् तम्नअहुम् मिन् दूनिना, ला यस्ततीअू – न नस्-र अन्फुसिहिम् व ला हुम् मिन्ना युस्हबून
क्या हमारे सिवा उनके कुछ और परवरदिगार हैं कि जो उनको (हमारे अज़ाब से) बचा सकते हैं (वह क्या बचाएँगे) ये लोग खु़द अपनी तो मदद कर ही नहीं सकते और न हमारे अज़ाब से उन्हें पनाह दी जाएगी।

21:44

بَلْ مَتَّعْنَا هَـٰٓؤُلَآءِ وَءَابَآءَهُمْ حَتَّىٰ طَالَ عَلَيْهِمُ ٱلْعُمُرُ ۗ أَفَلَا يَرَوْنَ أَنَّا نَأْتِى ٱلْأَرْضَ نَنقُصُهَا مِنْ أَطْرَافِهَآ ۚ أَفَهُمُ ٱلْغَـٰلِبُونَ

बल् मत्तअ्ना हाउला-इ व आबा – अहुम् हत्ता ता-ल अ़लैहिमुल् – अुमुरू, अ-फला यरौ न अन्ना नअ्तिल-अर्ज़ नन्कुसुहा मिन् अतराफ़िहा अ-फ़हुमुल्-ग़ालिबून
बल्कि हम ही से उनको और उनके बुज़ुर्गों को आराम व चैन रहा यहाँ तक कि उनकी उमरें बढ़ गई तो फिर क्या ये लोग नहीं देखते कि हम रूए ज़मीन को चारों तरफ से क़ब्ज़ा करते और उसको फतेह करते चले आते हैं तो क्या (अब भी यही लोग कुफ़्फ़ारे मक्का) ग़ालिब और वर हैं।

21:45

قُلْ إِنَّمَآ أُنذِرُكُم بِٱلْوَحْىِ ۚ وَلَا يَسْمَعُ ٱلصُّمُّ ٱلدُّعَآءَ إِذَا مَا يُنذَرُونَ

कुल इन्नमा उन्ज़िरूकुम् बिल्वह़्यि व ला यस्मअुस्-सुम्मुद्दुआ-अ इज़ा मा युन्ज़रून
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं तो बस तुम लोगों को “वही” के मुताबिक़ (अज़ाब से) डराता हूँ (मगर तुम लोग गोया बहरे हो) और बहरों को जब डराया जाता है तो वह पुकारने ही को नहीं सुनते (डरें क्या ख़ाक)।

21:46

وَلَئِن مَّسَّتْهُمْ نَفْحَةٌۭ مِّنْ عَذَابِ رَبِّكَ لَيَقُولُنَّ يَـٰوَيْلَنَآ إِنَّا كُنَّا ظَـٰلِمِينَ

व ल – इम् – मस्सत्हुम् नफ़्हतुम् मिन् अ़ज़ाबि रब्बि – क ल – यकूलुन् – न या वैलना इन्ना कुन्ना ज़ालिमीन
और (ऐ रसूल) अगर कहीं उनको तुम्हारे परवरदिगार के अज़ाब की ज़रा सी हवा भी लग गई तो बेसाक़ता बोल उठें हाय अफसोस वाक़ई हम ही ज़ालिम थे।

21:47

وَنَضَعُ ٱلْمَوَٰزِينَ ٱلْقِسْطَ لِيَوْمِ ٱلْقِيَـٰمَةِ فَلَا تُظْلَمُ نَفْسٌۭ شَيْـًۭٔا ۖ وَإِن كَانَ مِثْقَالَ حَبَّةٍۢ مِّنْ خَرْدَلٍ أَتَيْنَا بِهَا ۗ وَكَفَىٰ بِنَا حَـٰسِبِينَ

व न-ज़अल्-मवाज़ीनल किस्-त लियौमिल् – क़ियामति फ़ला तुज़्लमु नफ़्सुन शैअन्, व इन् का न मिस्का – ल हब्बतिम् – मिन् ख़र् दलिन् अतैना बिहा, व कफ़ा बिना हासिबीन
और क़यामत के दिन तो हम (बन्दों के भले बुरे आमाल तौलने के लिए) इन्साफ़ की तराज़ू में खड़ी कर देंगे तो फिर किसी शख़्स पर कुछ भी ज़ुल्म न किया जाएगा और अगर राई के दाने के बराबर भी किसी का (अमल) होगा तो तुम उसे ला हाजि़र करेंगे और हम हिसाब करने के वास्ते बहुत काफ़ी हैं।

21:48

وَلَقَدْ ءَاتَيْنَا مُوسَىٰ وَهَـٰرُونَ ٱلْفُرْقَانَ وَضِيَآءًۭ وَذِكْرًۭا لِّلْمُتَّقِينَ

वल – कद् आतैना मूसा व हारूनल्-फुर्का-न व जियाअंव् – व ज़िक्रल लिल्मुत्तक़ीन
और हम ही ने यक़ीनन मूसा और हारून को (हक़ व बातिल की) जुदा करने वाली किताब (तौरेत) और परहेज़गारों के लिए अज़सरतापा नूर और नसीहत अता की।

21:49

ٱلَّذِينَ يَخْشَوْنَ رَبَّهُم بِٱلْغَيْبِ وَهُم مِّنَ ٱلسَّاعَةِ مُشْفِقُونَ

अल्लज़ी-न यख़्शौ न रब्बहुम् बिल्ग़ैबि व हुम् मिनस्सा-अ़ति मुश्फिकून
जो बिना देखे अपने परवरदिगार से ख़ौफ खाते हैं और ये लोग रोज़े क़यामत से भी डरते हैं।

21:50

وَهَـٰذَا ذِكْرٌۭ مُّبَارَكٌ أَنزَلْنَـٰهُ ۚ أَفَأَنتُمْ لَهُۥ مُنكِرُونَ

व हाज़ा ज़िक्रुम् मुबा-रकुन् अन्ज़ल्नाहु, अ- फ़अन्तुम् लहू मुन्किरून
और ये (कुरान भी) एक बाबरकत तज़किरा है जिसको हमने उतारा है तो क्या तुम लोग इसको नहीं मानते।

21:51

۞ وَلَقَدْ ءَاتَيْنَآ إِبْرَٰهِيمَ رُشْدَهُۥ مِن قَبْلُ وَكُنَّا بِهِۦ عَـٰلِمِينَ

व-ल-कद् आतैना इब्राही-म रुश्दहू मिन् कब्लु व कुन्ना बिही आ़लिमीन
और इसमें भी शक नहीं कि हमने इब्राहीम को पहले ही से फ़हेम सलीम अता की थी और हम उन (की हालत) से खू़ब वाकि़फ थे।

21:52

إِذْ قَالَ لِأَبِيهِ وَقَوْمِهِۦ مَا هَـٰذِهِ ٱلتَّمَاثِيلُ ٱلَّتِىٓ أَنتُمْ لَهَا عَـٰكِفُونَ

इज् का-ल लिअबीहि व क़ौमिही मा हाजिहित्तमासीलुल्लती अन्तुम् लहा आ़किफून
जब उन्होंने अपने (मुँह भोले) बाप और अपनी क़ौम से कहा ये मूरतें जिनकी तुम लोग मुजाबिरी करते हो आखि़र क्या (बला) है।

21:53

قَالُوا۟ وَجَدْنَآ ءَابَآءَنَا لَهَا عَـٰبِدِينَ

कालू वजदना आबा-अना लहा आ़बिदीन
वह लोग बोले (और तो कुछ नहीं जानते मगर) अपने बडे़ बूढ़ों को इनही की परसतिश करते देखा है।

21:54

قَالَ لَقَدْ كُنتُمْ أَنتُمْ وَءَابَآؤُكُمْ فِى ضَلَـٰلٍۢ مُّبِينٍۢ

का-ल ल-क़द् कुन्तुम् अन्तुम् व आबाउकुम् फ़ी ज़लालिम्-मुबीन
इब्राहीम ने कहा यक़ीनन तुम भी और तुम्हारे बुर्जु़ग भी खुली हुई गुमराही में पड़े हुए थे।

21:55

قَالُوٓا۟ أَجِئْتَنَا بِٱلْحَقِّ أَمْ أَنتَ مِنَ ٱللَّـٰعِبِينَ

कालू अजिअ् – तना बिल्हक्कि अम् अन् त मिनल्-लाअिबीन
वह लोग कहने लगे तो क्या तुम हमारे पास हक़ बात लेकर आए हो या तुम भी (यूँ ही) दिल्लगी करते हो।

21:56

قَالَ بَل رَّبُّكُمْ رَبُّ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ ٱلَّذِى فَطَرَهُنَّ وَأَنَا۠ عَلَىٰ ذَٰلِكُم مِّنَ ٱلشَّـٰهِدِينَ

का-ल बर्-रब्बुकुम् रब्बुस्समावाति वल अर्जिल्लज़ी फ़-त- रहुन्-न व अन अ़ला ज़ालिकुम मिनश्-शाहिदीन
इब्राहीम ने कहा मज़ाक नहीं ठीक कहता हूँ कि तुम्हारे माबूद बुत नहीं बल्कि तुम्हारा परवरदिगार आसमान व ज़मीन का मालिक है जिसने उनको पैदा किया और मैं खु़द इस बात का तुम्हारे सामने गवाह हूँ।

21:57

وَتَٱللَّهِ لَأَكِيدَنَّ أَصْنَـٰمَكُم بَعْدَ أَن تُوَلُّوا۟ مُدْبِرِينَ

व तल्लाहि ल-अकीदन् न असनामकुम् बअ्-द अन् तुवल्लू मुदबिरीन
और अपने जी में कहा अल्लाह की क़सम तुम्हारे पीठ फेरने के बाद में तुम्हारे बुतों के साथ एक चाल चलूँगा।

21:58

فَجَعَلَهُمْ جُذَٰذًا إِلَّا كَبِيرًۭا لَّهُمْ لَعَلَّهُمْ إِلَيْهِ يَرْجِعُونَ

फ़-ज-अ़-लहुम् जुज़ाज़न् इल्ला कबीरल् – लहुम् लअ़ल्लहुम् इलैहि यर्जिअून
चुनान्चे इब्राहीम ने उन बुतों को (तोड़कर) चकनाचूर कर डाला मगर उनके बड़े बुत को (इसलिए रहने दिया) ताकि ये लोग ईद से पलटकर उसकी तरफ रूजू करें।

21:59

قَالُوا۟ مَن فَعَلَ هَـٰذَا بِـَٔالِهَتِنَآ إِنَّهُۥ لَمِنَ ٱلظَّـٰلِمِينَ

कालू मन् फ़-अ़-ल हाज़ा बिआलि-हतिना इन्नहू लमिनज़्ज़ालिमीन
(जब कुफ़्फ़ार को मालूम हुआ) तो कहने लगे जिसने ये गुस्ताख़ी हमारे माबूदों के साथ की है उसने यक़ीनी बड़ा ज़ुल्म किया।

21:60

قَالُوا۟ سَمِعْنَا فَتًۭى يَذْكُرُهُمْ يُقَالُ لَهُۥٓ إِبْرَٰهِيمُ

कालू समिअ्ना फ़-तंय्य़ज़्कुरूहुम् युकालु लहू इब्राहीम
(कुछ लोग) कहने लगे हमने एक नौजवान को जिसको लोग इब्राहीम कहते हैं उन बुतों का (बुरी तरह) जि़क्र करते सुना था।

21:61

قَالُوا۟ فَأْتُوا۟ بِهِۦ عَلَىٰٓ أَعْيُنِ ٱلنَّاسِ لَعَلَّهُمْ يَشْهَدُونَ

कालू फ़अतू बिही अ़ला अअ्युनिन्नासि लअ़ल्लहुम् यश्हदून
लोगों ने कहा तो अच्छा उसको सब लोगों के सामने (गिरफ़्तार करके) ले आओ ताकि वह (जो कुछ कहें) लोग उसके गवाह रहें।

21:62

قَالُوٓا۟ ءَأَنتَ فَعَلْتَ هَـٰذَا بِـَٔالِهَتِنَا يَـٰٓإِبْرَٰهِيمُ

कालू अ-अन् त फ़ अ़ल-त हाज़ा बिआलि-हतिना या इब्राहीम
(ग़रज़ इब्राहीम आए) और लोगों ने उनसे पूछा कि क्यों इब्राहीम क्या तुमने माबूदों के साथ ये हरकत की है।

21:63

قَالَ بَلْ فَعَلَهُۥ كَبِيرُهُمْ هَـٰذَا فَسْـَٔلُوهُمْ إِن كَانُوا۟ يَنطِقُونَ

का-ल बल् फ़-अ़-लहू कबीरूहुम् हाज़ा फ़स्अलूहुम् इन् कानू यन्तिकून
इब्राहीम ने कहा बल्कि ये हरकत इन बुतों (खु़दाओं) के बड़े (अल्लाह) ने की है तो अगर ये बुत बोल सकते हों तो उनही से पूछ के देखो।

21:64

فَرَجَعُوٓا۟ إِلَىٰٓ أَنفُسِهِمْ فَقَالُوٓا۟ إِنَّكُمْ أَنتُمُ ٱلظَّـٰلِمُونَ

फ़-र-जअू इला अन्फुसिहिम् फक़ालू इन्नकुम् अन्तुमुज़्ज़ालिमून
इस पर उन लोगों ने अपने जी में सोचा तो (एक दूसरे से) कहने लगे बेशक तुम ही लोग खु़द बर सरे नाहक़़ हो।

21:65

ثُمَّ نُكِسُوا۟ عَلَىٰ رُءُوسِهِمْ لَقَدْ عَلِمْتَ مَا هَـٰٓؤُلَآءِ يَنطِقُونَ

सुम्-म नुकिसू अ़ला रूऊसिहिम् ल-क़द् अ़लिम्-त मा हाउला इ यन्तिकून
फिर उन लोगों के सर इसी गुमराही में झुका दिए गए (और तो कुछ बन न पड़ा मगर ये बोले) तुमको तो अच्छी तरह मालूम है कि ये बुत बोला नहीं करते।

21:66

قَالَ أَفَتَعْبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ مَا لَا يَنفَعُكُمْ شَيْـًۭٔا وَلَا يَضُرُّكُمْ

qal ‘afataebudun min dun ٱlllah ma la yanfaeukum shayanۭ̉a wala yadurrukum
(फिर इनसे क्या पूछे) इब्राहीम ने कहा तो क्या तुम लोग अल्लाह को छोड़कर ऐसी चीज़ों की परसतिश करते हो जो न तुम्हें कुछ नफा ही पहुँचा सकती है और न तुम्हारा कुछ नुक़सान ही कर सकती है।

21:67

أُفٍّۢ لَّكُمْ وَلِمَا تَعْبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ ۖ أَفَلَا تَعْقِلُونَ

उफ्फिल् – लकुम् व लिमा तअ्बुदू – न मिन् दूनिल्लाहि, अ- फ़ला तअ्किलून
तुफ़ है तुम पर उस चीज़ पर जिसे तुम अल्लाह के सिवा पूजते हो तो क्या तुम इतना भी नहीं समझते।

21:68

قَالُوا۟ حَرِّقُوهُ وَٱنصُرُوٓا۟ ءَالِهَتَكُمْ إِن كُنتُمْ فَـٰعِلِينَ

क़ालू हर्रिकूहु वन्सुरू आलि – ह – तकुम् इन् कुन्तुम् फ़ाअिलीन
(आखि़र) वह लोग (बाहम) कहने लगे कि अगर तुम कुछ कर सकते हो तो इब्राहीम को आग में जला दो और अपने खु़दाओं की मदद करो।

21:69

قُلْنَا يَـٰنَارُ كُونِى بَرْدًۭا وَسَلَـٰمًا عَلَىٰٓ إِبْرَٰهِيمَ

कुल्ना या नारू कूनी बर्दंव् – व सलामन् अ़ला इब्राहीम
(ग़रज़) उन लोगों ने इबराहीम को आग में डाल दिया तो हमने हुक्म दिया ऐ आग तू इबराहीम पर बिल्कुल ठन्डी और सलामती का बाइस हो जा।

21:70

وَأَرَادُوا۟ بِهِۦ كَيْدًۭا فَجَعَلْنَـٰهُمُ ٱلْأَخْسَرِينَ

व अरादू बिही कैदन् फ़-जअ़ल्लाहुमुल-अख़्सरीन
(कि उनको कोई तकलीफ़ न पहुँचे) और उन लोगों ने इबराहीम के साथ चालबाज़ी करनी चाही थी तो हमने इन सब को नाकाम कर दिया।

21:71

وَنَجَّيْنَـٰهُ وَلُوطًا إِلَى ٱلْأَرْضِ ٱلَّتِى بَـٰرَكْنَا فِيهَا لِلْعَـٰلَمِينَ

व नज्जैनाहु व लूतन् इलल् – अर्ज़िल्लती बारक्ना फ़ीहा लिल्आ़लमीन
और हम ने ही इबराहीम और लूत को (सरकशों से) सही व सालिम निकालकर इस सर ज़मीन (शाम बैतुलमुक़द्दस) में जा पहुँचाया जिसमें हमने सारे जहाँन के लिए तरह-तरह की बरकत अता की थी।

21:72

وَوَهَبْنَا لَهُۥٓ إِسْحَـٰقَ وَيَعْقُوبَ نَافِلَةًۭ ۖ وَكُلًّۭا جَعَلْنَا صَـٰلِحِينَ

व व – हब्ना लहू इस्हा – क़ व यअ्कू – ब नाफ़ि – लतन्, व कुल्लन् जअ़ल्ना सालिहीन
और हमने इबराहीम को इनाम में इसहाक़ (जैसा बैटा) और याकू़ब (जैसा पोता) इनायत फरमाया हमने सबको नेक बख़्त बनाया।

21:73

وَجَعَلْنَـٰهُمْ أَئِمَّةًۭ يَهْدُونَ بِأَمْرِنَا وَأَوْحَيْنَآ إِلَيْهِمْ فِعْلَ ٱلْخَيْرَٰتِ وَإِقَامَ ٱلصَّلَوٰةِ وَإِيتَآءَ ٱلزَّكَوٰةِ ۖ وَكَانُوا۟ لَنَا عَـٰبِدِينَ

व जअ़ल्नाहुम् अ- इम्म तंय्यह्दू-न बिअम्रिना व औहैना इलैहिम् फ़िअ्लल्-ख़ैराति व इकामस्सलाति व ईता अज़्ज़काति व कानू लना आ़बिदीन
और उन सबको (लोगों का) पेशवा बनाया कि हमारे हुक्म से (उनकी) हिदायत करते थे और हमने उनके पास नेक काम करने और नमाज़ पढ़ने और ज़कात देने की “वही” भेजी थी और ये सब के सब हमारी ही इबादत करते थे।

21:74

وَلُوطًا ءَاتَيْنَـٰهُ حُكْمًۭا وَعِلْمًۭا وَنَجَّيْنَـٰهُ مِنَ ٱلْقَرْيَةِ ٱلَّتِى كَانَت تَّعْمَلُ ٱلْخَبَـٰٓئِثَ ۗ إِنَّهُمْ كَانُوا۟ قَوْمَ سَوْءٍۢ فَـٰسِقِينَ

व लूतन् आतैनाहु हुक्मंव् – व अिल्मंव् – व नज्जैनाहु मिनल्- करयतिल्लती कानत् तअ्मलुल् -ख़बाइ-स, इन्नहुम् कानू क़ौ-म सौइन फ़ासिकीन
और लूत को भी हम ही ने फ़हमे सलीम और नबूवत अता की और हम ही ने उस बस्ती से जहाँ के लोग बदकारियाँ करते थे नजात दी इसमें शक नहीं कि वह लोग बड़े बदकार आदमी थे।

21:75

وَأَدْخَلْنَـٰهُ فِى رَحْمَتِنَآ ۖ إِنَّهُۥ مِنَ ٱلصَّـٰلِحِينَ

व अद्खल्नाहु फी रह्मतिना, इन्नहू मिनस् – सालिहीन
और हमने लूत को अपनी रहमत में दाखि़ल कर लिया इसमें शक नहीं कि वह नेकोंकार बन्दों में से थे।

21:76

وَنُوحًا إِذْ نَادَىٰ مِن قَبْلُ فَٱسْتَجَبْنَا لَهُۥ فَنَجَّيْنَـٰهُ وَأَهْلَهُۥ مِنَ ٱلْكَرْبِ ٱلْعَظِيمِ

व नूहन् इज् नादा मिन् क़ब्लु फ़स्त – जब्ना लहू फनज्जैनाहु व अह़्लहू मिनल् कर्बिल् अ़ज़ीम
और (ऐ रसूल लूत से भी) पहले (हमने) नूह को नबूवत पर फ़ायज़ किया जब उन्होंने (हमको) आवाज़ दी तो हमने उनकी (दुआ) सुन ली फिर उनको और उनके साथियों को (तूफ़ान की) बड़ी सख़्त मुसीबत से नजात दी।

21:77

وَنَصَرْنَـٰهُ مِنَ ٱلْقَوْمِ ٱلَّذِينَ كَذَّبُوا۟ بِـَٔايَـٰتِنَآ ۚ إِنَّهُمْ كَانُوا۟ قَوْمَ سَوْءٍۢ فَأَغْرَقْنَـٰهُمْ أَجْمَعِينَ

व नसर्नाहु मिनल् – कौमिल्लज़ी – न कज़्ज़बू बिआयातिना, इन्नहुम् कानू क़ौ-म सौइन् फ़-अग्रक़्नाहुम् अज्मईन
और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया था उनके मुक़ाबले में उनकी मदद की बेशक ये लोग (भी) बहुत बुऱे लोग थे तो हमने उन सबको डुबा मारा।

21:78

وَدَاوُۥدَ وَسُلَيْمَـٰنَ إِذْ يَحْكُمَانِ فِى ٱلْحَرْثِ إِذْ نَفَشَتْ فِيهِ غَنَمُ ٱلْقَوْمِ وَكُنَّا لِحُكْمِهِمْ شَـٰهِدِينَ

व नसर्नाहु मिनल् – कौमिल्लज़ी – न कज़्ज़बू बिआयातिना, इन्नहुम् कानू क़ौ-म सौइन् फ़-अग्रक़्नाहुम् अज्मईन
और (ऐ रसूल इनको) दाऊद और सुलेमान का (वाक़्या याद दिलाओ) जब ये दोनों एक खेती के बारे में जिसमें रात के वक़्त कुछ लोगों की बकरियाँ (घुसकर) चर गई थी फैसला करने बैठे और हम उन लोगों के कि़स्से को देख रहे थे (कि बाहम इक़तेलाफ़ हुआ)।

21:79

فَفَهَّمْنَـٰهَا سُلَيْمَـٰنَ ۚ وَكُلًّا ءَاتَيْنَا حُكْمًۭا وَعِلْمًۭا ۚ وَسَخَّرْنَا مَعَ دَاوُۥدَ ٱلْجِبَالَ يُسَبِّحْنَ وَٱلطَّيْرَ ۚ وَكُنَّا فَـٰعِلِينَ

फ़- फ़ह्हम्नाहा सुलैमा-न व कुल्लन् आतैना हुक्मंव् – व अिल्मंव् – व सख़्खरना म-अ़ दावूदल – जिबा ल युसब्बिह् – न वत्तै-र, व कुन्ना फ़ाअिलीन
तो हमने सुलेमान को (इसका सही फ़ैसला समझा दिया) और (यूँ तो) सबको हम ही ने फहमे सलीम और इल्म अता किया और हम ही ने पहाड़ों को दाऊद का ताबेए कर दिया था था कि उनके साथ (अल्लाह की) तस्बीह किया करते थे और परिन्दों को (भी ताबेए कर दिया था) और हम ही (ये अजाऐब) किया करते थे।

21:80

وَعَلَّمْنَـٰهُ صَنْعَةَ لَبُوسٍۢ لَّكُمْ لِتُحْصِنَكُم مِّنۢ بَأْسِكُمْ ۖ فَهَلْ أَنتُمْ شَـٰكِرُونَ

व अ़ल्लम्नाहु सन् अ़-त लबूसिल् – लकुम् लितुह्सि – नकुम् मिम् – बअ्सिकुम् फ़ – हल् अन्तुम् शाकिरून
और हम ही ने उनको तुम्हारी जंगी पोशिश (जि़राह) का बनाना सिखा दिया ताकि तुम्हें (एक दूसरे के) वार से बचाए तो क्या तुम (अब भी) उसके शुक्रगुज़ार न बनोगे।

21:81

وَلِسُلَيْمَـٰنَ ٱلرِّيحَ عَاصِفَةًۭ تَجْرِى بِأَمْرِهِۦٓ إِلَى ٱلْأَرْضِ ٱلَّتِى بَـٰرَكْنَا فِيهَا ۚ وَكُنَّا بِكُلِّ شَىْءٍ عَـٰلِمِينَ

व लिसुलैमानर्री ह आ़सि-फ़तन् तज्री बिअम्रिही इलल् – अर्जिल्लती बारक्ना फ़ीहा, व कुन्ना बिकुल्लि शैइन् आ़लिमीन
और (हम ही ने) बड़े ज़ोरों की हवा को सुलेमान का (ताबेए कर दिया था) कि वह उनके हुक्म से इस सरज़मीन (बैतुलमुक़द्दस) की तरफ चला करती थी जिसमें हमने तरह-तरह की बरकतें अता की थी और हम तो हर चीज़ से खू़ब वाकि़फ़ थे (और) है।

21:82

وَمِنَ ٱلشَّيَـٰطِينِ مَن يَغُوصُونَ لَهُۥ وَيَعْمَلُونَ عَمَلًۭا دُونَ ذَٰلِكَ ۖ وَكُنَّا لَهُمْ حَـٰفِظِينَ

व मिनश्शयातीनि मंय्यगूसू-न लहू व यअ्मलू-न अ़-मलन् दू – न ज़ालि – क व कुन्ना लहुम् हाफ़िज़ीन
और जिन्नात में से जो लोग (समन्दर में) ग़ोता लगाकर (जवाहरात निकालने वाले) थे और उसके अलावा और काम भी करते थे (सुलेमान का ताबेए कर दिया था) और हम ही उनके निगेहबान थे।

21:83

۞ وَأَيُّوبَ إِذْ نَادَىٰ رَبَّهُۥٓ أَنِّى مَسَّنِىَ ٱلضُّرُّ وَأَنتَ أَرْحَمُ ٱلرَّٰحِمِينَ

व अय्यू-ब इज् नादा रब्बहू अन्नी मस्सनियज् – जुरू व अन्-त अरहमुर् राहिमीन
(कि भाग न जाएँ) और (ऐ रसूल) अय्यूब (का कि़स्सा याद करो) जब उन्होंने अपने परवरदिगार से दुआ की कि (ख़ुदा वन्द) बीमारी तो मेरे पीछे लग गई है और तू तो सब रहम करने वालो से (बढ़ कर है मुझ पर तरस खा)।

21:84

فَٱسْتَجَبْنَا لَهُۥ فَكَشَفْنَا مَا بِهِۦ مِن ضُرٍّۢ ۖ وَءَاتَيْنَـٰهُ أَهْلَهُۥ وَمِثْلَهُم مَّعَهُمْ رَحْمَةًۭ مِّنْ عِندِنَا وَذِكْرَىٰ لِلْعَـٰبِدِينَ

फ़स्त जब्ना लहू फ़- कश़फ़्ना मा बिही मिन् जुरिंव् – व आतैनाहु अह़्लहू व मिस्लहुम् म अ़हुम रह्म तम् मिन् अिन्दिना व ज़िक्रा लिल् आ़बिदीन
तो हमने उनकी दुआ कु़बूल की तो हमने उनका जो कुछ दर्द दुख था रफ़ा कर दिया और उन्हें उनके लड़के बाले बल्कि उनके साथ उतनी ही और भी महज़ अपनी ख़ास मेहरबानी से और इबादत करने वालों की इबरत के वास्ते अता किए।

21:85

وَإِسْمَـٰعِيلَ وَإِدْرِيسَ وَذَا ٱلْكِفْلِ ۖ كُلٌّۭ مِّنَ ٱلصَّـٰبِرِينَ

व इस्माई – ल व इद्री-स व ज़ल्किफ्लि, कुल्लुम् मिनस्साबिरीन
और (ऐ रसूल) इसमाईल और इदरीस और जु़लकिफ़ली (के वाक़यात से याद करो) ये सब साबिर बन्दे थे।

21:86

وَأَدْخَلْنَـٰهُمْ فِى رَحْمَتِنَآ ۖ إِنَّهُم مِّنَ ٱلصَّـٰلِحِينَ

व अद्ख़ल्नाहुम् फी रह्मतिना, इन्नहुम् मिनस्सालिहीन
और हमने उन सबको अपनी (ख़ास) रहमत में दाखि़ल कर लिया बेशक ये लोग नेक बन्दे थे।

21:87

وَذَا ٱلنُّونِ إِذ ذَّهَبَ مُغَـٰضِبًۭا فَظَنَّ أَن لَّن نَّقْدِرَ عَلَيْهِ فَنَادَىٰ فِى ٱلظُّلُمَـٰتِ أَن لَّآ إِلَـٰهَ إِلَّآ أَنتَ سُبْحَـٰنَكَ إِنِّى كُنتُ مِنَ ٱلظَّـٰلِمِينَ

व ज़न्नूनि इज् ज़-ह-ब मुग़ाज़िबन् फ़-ज़न्-न अल्लन् नक्दि-र अ़लैहि फ़नादा फिज़्ज़ुलुमाति अल्-ला इला-ह इल्ला अन् – त सुब्हान – क इन्नी कुन्तु मिनज़्ज़ालिमीन
और ज़वालऐ नून (यूनुस को याद करो) जबकि गुस्से में आकर चलते हुए और ये ख़्याल न किया कि हम उन पर रोज़ी तंग न करेंगे (तो हमने उन्हें मछली के पेट में पहुँचा दिया) तो (घटाटोप) अँधेरे में (घबराकर) चिल्ला उठा कि (परवरदिगार) तेरे सिवा कोई माबूद नहीं तू (हर ऐब से) पाक व पाकीज़ा है बेशक मैं कुसूरवार हूँ।

21:88

فَٱسْتَجَبْنَا لَهُۥ وَنَجَّيْنَـٰهُ مِنَ ٱلْغَمِّ ۚ وَكَذَٰلِكَ نُـۨجِى ٱلْمُؤْمِنِينَ

व ज़न्नूनि इज् ज़-ह-ब मुग़ाज़िबन् फ़-ज़न्-न अल्लन् नक्दि-र अ़लैहि फ़नादा फिज़्ज़ुलुमाति अल्-ला इला-ह इल्ला अन् – त सुब्हान – क इन्नी कुन्तु मिनज़्ज़ालिमीन
तो हमने उनकी दुआ कु़बूल की और उन्हें रंज से नजात दी और हम तो ईमानवालों को यूँ ही नजात दिया करते हैं।

21:89

وَزَكَرِيَّآ إِذْ نَادَىٰ رَبَّهُۥ رَبِّ لَا تَذَرْنِى فَرْدًۭا وَأَنتَ خَيْرُ ٱلْوَٰرِثِينَ

व ज़- करिय्या इज् नादा रब्बहू रब्बि ला तज़रनी फर्दंव् -व अन्-त ख़ैरूल्-वारिसीन
और ज़करिया (को याद करो) जब उन्होंने (मायूसी की हालत में) अपने परवरदिगार से दुआ की ऐ मेरे पालने वाले मुझे तन्हा (बे औलाद) न छोड़ और तू तो सब वारिसों से बेहतर है।

21:90

فَٱسْتَجَبْنَا لَهُۥ وَوَهَبْنَا لَهُۥ يَحْيَىٰ وَأَصْلَحْنَا لَهُۥ زَوْجَهُۥٓ ۚ إِنَّهُمْ كَانُوا۟ يُسَـٰرِعُونَ فِى ٱلْخَيْرَٰتِ وَيَدْعُونَنَا رَغَبًۭا وَرَهَبًۭا ۖ وَكَانُوا۟ لَنَا خَـٰشِعِينَ

फ़स्त-जब्ना लहू व व-हब्ना लहू यह़्या व अस्लह़्ना लहू ज़ौजहू, इन्नहुम् कानू युसारिअू-न फ़िल्ख़ैराति व यद्अूनना र ग़बंव्-व र-हबन्, व कानू लना ख़ाशिईन
तो हमने उनकी दुआ सुन ली और उन्हें यहया सा बेटा अता किया और हमने उनके लिए उनकी बीवी को अच्छी बना दिया इसमें शक नहीं कि ये सब नेक कामों में जल्दी करते थे और हमको बड़ी रग़बत और ख़ौफ के साथ पुकारा करते थे और हमारे आगे गिड़गिड़ाया करते थे।

21:91

وَٱلَّتِىٓ أَحْصَنَتْ فَرْجَهَا فَنَفَخْنَا فِيهَا مِن رُّوحِنَا وَجَعَلْنَـٰهَا وَٱبْنَهَآ ءَايَةًۭ لِّلْعَـٰلَمِينَ

वल्लती अह् – सनत् फ़र् – जहा फ़-नफ़ख़्ना फ़ीहा मिर्रूहिना व जअ़ल्नाहा वब्नाहा आयतल् लिल्आ़लमीन
और (ऐ रसूल) उस बीबी को (याद करो) जिसने अपनी अज़मत की हिफाज़त की तो हमने उन (के पेट) में अपनी तरफ से रूह फूँक दी और उनको और उनके बेटे (ईसा) को सारे जहाँन के वास्ते (अपनी क़ुदरत की) निशानी बनाया।

21:92

إِنَّ هَـٰذِهِۦٓ أُمَّتُكُمْ أُمَّةًۭ وَٰحِدَةًۭ وَأَنَا۠ رَبُّكُمْ فَٱعْبُدُونِ

इन् – न हाज़िही उम्मतुकुम् उम्मतंव्वाहि – दतंव् व अ-न रब्बुकुम् फ़अबुदून
बेशक ये तुम्हारा दीन (इस्लाम) एक ही दीन है और मैं तुम्हारा परवरदिगार हूँ तो मेरी ही इबादत करो।

21:93

وَتَقَطَّعُوٓا۟ أَمْرَهُم بَيْنَهُمْ ۖ كُلٌّ إِلَيْنَا رَٰجِعُونَ

व त-क़त्तअू अम्रहुम् बैनहुम्, कुल्लुन् इलैना राजिअून 
और लोगों ने बाहम (इक़तेलाफ़ करके) अपने दीन को टुकड़े -टुकड़े कर डाला (हालाँकि) वो सब के सब हिरफिर के हमारे ही पास आने वाले हैं।

21:94

فَمَن يَعْمَلْ مِنَ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ وَهُوَ مُؤْمِنٌۭ فَلَا كُفْرَانَ لِسَعْيِهِۦ وَإِنَّا لَهُۥ كَـٰتِبُونَ

फ़- मंय्यअ्मल मिनस्सालिहाति व हु – व मुअ्मिनुन् फला कुफरा-न लिसअ्यिही व इन्ना लहू कातिबून
(उस वक़्त फैसला हो जाएगा कि) तो जो शख़्स अच्छे-अच्छे काम करेगा और वह ईमानवाला भी हो तो उसकी कोशिश अकारत न की जाएगी और हम उसके आमाल लिखते जाते हैं।

21:95

وَحَرَٰمٌ عَلَىٰ قَرْيَةٍ أَهْلَكْنَـٰهَآ أَنَّهُمْ لَا يَرْجِعُونَ

व हरामुन् अ़ला क़रयतिन् अह़्लक्नाहा अन्नहुम् ला यर्जिअून
और जिस बस्ती को हमने तबाह कर डाला मुमकिन नहीं कि वह लोग क़यामत के दिन हिरफिर के से (हमारे पास) न लौटे।

21:96

حَتَّىٰٓ إِذَا فُتِحَتْ يَأْجُوجُ وَمَأْجُوجُ وَهُم مِّن كُلِّ حَدَبٍۢ يَنسِلُونَ

हत्ता इज़ा फुतिहत् यअ्जूजु व मअजूजु व हुम् मिन् कुल्लि ह – दबिंय् – यन्सिलून
बस इतना (तवक्कुफ़ तो ज़रूर होगा) कि जब याजूद माजूद (हद ऐ सिकन्दरी) की कै़द से खोल दिए जाएँगे और ये लोग (ज़मीन की) हर बुलन्दी से दौड़ते हुए निकल पड़ें।

21:97

وَٱقْتَرَبَ ٱلْوَعْدُ ٱلْحَقُّ فَإِذَا هِىَ شَـٰخِصَةٌ أَبْصَـٰرُ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ يَـٰوَيْلَنَا قَدْ كُنَّا فِى غَفْلَةٍۢ مِّنْ هَـٰذَا بَلْ كُنَّا ظَـٰلِمِينَ

वक्त – रबल् – वअ्दुल्हक़्कु फ़-इज़ा हि-य शाखि-सतुन् अब्सारूल्लज़ी-न क-फ़रू, या वैलना क़द् कुन्ना फ़ी ग़फ़्लतिम् – मिन् हाज़ा बल् कुन्ना ज़ालिमीन
और क़यामत का सच्चा वायदा नज़दीक आ जाए तो फिर काफ़िरों की आँखे एक दम से पथरा दी जाएँ (और कहने लगे) हाय हमारी शामत कि हम तो इस (दिन) से ग़फलत ही में (पड़े) रहे बल्कि (सच तो यूँ है कि अपने ऊपर) हम आप ज़ालिम थे।

21:98

إِنَّكُمْ وَمَا تَعْبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ حَصَبُ جَهَنَّمَ أَنتُمْ لَهَا وَٰرِدُونَ

इन्नकुम् व मा तअ्बुदू – न मिन् दूनिल्लाहि ह – सबु जहन्न-म, अन्तुम् लहा वारिदून
(उस दिन किहा जाएगा कि ऐ कुफ़्फ़ार) तुम और जिस चीज़ की तुम अल्लाह के सिवा परसतिश करते थे यक़ीनन जहन्नुम की ईधन (जलावन) होंगे (और) तुम सबको उसमें उतरना पड़ेगा।

21:99

لَوْ كَانَ هَـٰٓؤُلَآءِ ءَالِهَةًۭ مَّا وَرَدُوهَا ۖ وَكُلٌّۭ فِيهَا خَـٰلِدُونَ

लौ का-न हाउला – इ आलि – हतम् मा व-रदूहा, व कुल्लुन् फ़ीहा ख़ालिदून
अगर ये (सच्चे) माबूद होते तो उन्हें दोज़ख़ में न जाना पड़ता और (अब तो) सबके सब उसी में हमेशा रहेंगे।

21:100

لَهُمْ فِيهَا زَفِيرٌۭ وَهُمْ فِيهَا لَا يَسْمَعُونَ

लहुम् फीहा ज़फ़ीरूंव्-व हुम् फ़ीहा ला यस्मअून
उन लोगों की दोज़ख़ में चिंघाड़ होगी और ये लोग (अपने शोर व ग़ुल में) किसी की बात भी न सुन सकेंगे।

21:101

إِنَّ ٱلَّذِينَ سَبَقَتْ لَهُم مِّنَّا ٱلْحُسْنَىٰٓ أُو۟لَـٰٓئِكَ عَنْهَا مُبْعَدُونَ

इन्नल्लज़ी-न स-बक़त् लहुम् मिन्नल्-हुस्ना उलाइ-क अन्हा मुब् अ़दून
ज़बान अलबत्ता जिन लोगों के वास्ते हमारी तरफ से पहले ही भलाई (तक़दीर में लिखी जा चुकी) वह लोग दोज़ख़ से दूर ही दूर रखे जाएँगे।

21:102

لَا يَسْمَعُونَ حَسِيسَهَا ۖ وَهُمْ فِى مَا ٱشْتَهَتْ أَنفُسُهُمْ خَـٰلِدُونَ

ला यस्मअू-न हसी-सहा व हुम् फ़ी मश्त-हत् अन्फुसुहुम् ख़ालिदून
(यहाँ तक) कि ये लोग उसकी भनक भी न सुनेंगे और ये लोग हमेशा अपनी मनमाँगी मुरादों में (चैन से) रहेंगे।

21:103

لَا يَحْزُنُهُمُ ٱلْفَزَعُ ٱلْأَكْبَرُ وَتَتَلَقَّىٰهُمُ ٱلْمَلَـٰٓئِكَةُ هَـٰذَا يَوْمُكُمُ ٱلَّذِى كُنتُمْ تُوعَدُونَ

ला यह्जुनुहुमुल फ़-ज़अुल अक्बरू व त-तलक़्क़ाहुमुल – मलाइ – कतु, हाज़ा यौमुकुमुल्लज़ी कुन्तुम् तूअ़दून
और उनको (क़यामत का) बड़े से बड़ा ख़ौफ़ भी दहशत में न लाएगा और फ़रिश्ते उन से खु़शी-खु़शी मुलाक़ात करेंगे और ये खु़शख़बरी देंगे कि यही वह तुम्हारा (खु़शी का) दिन है जिसका (दुनिया में) तुमसे वायदा किया जाता था।

21:104

يَوْمَ نَطْوِى ٱلسَّمَآءَ كَطَىِّ ٱلسِّجِلِّ لِلْكُتُبِ ۚ كَمَا بَدَأْنَآ أَوَّلَ خَلْقٍۢ نُّعِيدُهُۥ ۚ وَعْدًا عَلَيْنَآ ۚ إِنَّا كُنَّا فَـٰعِلِينَ

यौ-म नत्विस्-समा-अ क-तय्यिस सिजिल्लि लिल्कुतुबि, कमा बदअ्ना अव्व-ल ख़ल्किन् नुईदुहू, वअ्दन् अ़लैना, इन्ना कुन्ना फ़ाअिलीन
(ये) वह दिन (होगा) जब हम आसमान को इस तरह लपेटेंगे जिस तरह ख़तों का तूमार लपेटा जाता है जिस तरह हमने (मख़लूक़ात को) पहली बार पैदा किया था (उसी तरह) दोबारा (पैदा) कर छोड़ेगें (ये वह) वायदा (है जिसका करना) हम पर (लाजि़म) है और हम उसे ज़रूर करके रहेंगे।

21:105

وَلَقَدْ كَتَبْنَا فِى ٱلزَّبُورِ مِنۢ بَعْدِ ٱلذِّكْرِ أَنَّ ٱلْأَرْضَ يَرِثُهَا عِبَادِىَ ٱلصَّـٰلِحُونَ

व ल-क़द् कतब्ना फिज़्ज़बूरि मिम्-बअ्दिज़्ज़िकरि अन्नल् अर्-ज़ यरिसुहा अिबादि-यस्सालिहून
और हमने तो नसीहत (तौरेत) के बाद यक़ीनन जुबूर में लिख ही दिया था कि रूए ज़मीन के वारिस हमारे नेक बन्दे होंगे।

21:106

إِنَّ فِى هَـٰذَا لَبَلَـٰغًۭا لِّقَوْمٍ عَـٰبِدِينَ

इन्-न फी हाज़ा ल-बलाग़ल् लिक़ौमिन् आबिदीन
इसमें शक नहीं कि इसमें इबादत करने वालों के लिए (एहकामें अल्लाह की) तबलीग़ है।

21:107

وَمَآ أَرْسَلْنَـٰكَ إِلَّا رَحْمَةًۭ لِّلْعَـٰلَمِينَ

व मा अर्सल्ना-क इल्ला रह्म-तल्-लिल्आ़लमीन
और (ऐ रसूल) हमने तो तुमको सारे दुनिया जहाँन के लोगों के हक़ में अज़सरतापा रहमत बनाकर भेजा।

21:108

قُلْ إِنَّمَا يُوحَىٰٓ إِلَىَّ أَنَّمَآ إِلَـٰهُكُمْ إِلَـٰهٌۭ وَٰحِدٌۭ ۖ فَهَلْ أَنتُم مُّسْلِمُونَ

कुल् इन्नमा यूहा इलय्-य अन्नमा इलाहुकुम् इलाहुंव्वाहिदुन् फ़ हल अन्तुम् मुस्लिमून
तुम कह दो कि मेरे पास तो बस यही “वही” आई है कि तुम लोगों का माबूद बस यकता अल्लाह है तो क्या तुम (उसके) फरमाबरदार बन्दे बनते हो।

21:109

فَإِن تَوَلَّوْا۟ فَقُلْ ءَاذَنتُكُمْ عَلَىٰ سَوَآءٍۢ ۖ وَإِنْ أَدْرِىٓ أَقَرِيبٌ أَم بَعِيدٌۭ مَّا تُوعَدُونَ

फ़- इन् तवल्लौ फ़कुल आज़न्तुकुम् अ़ला सवा-इन्, व इन् अद्री अ-क़रीबुन् अम् बईदुम् मा तूअ़दून
फिर अगर ये लोग (उस पर भी) मुँह फेरें तो तुम कह दो कि मैंने तुम सबको यकसाँ ख़बर कर दी है और मैं नहीं जानता कि जिस (अज़ाब) का तुमसे वायदा किया गया है क़रीब आ पहुँचा या (अभी) दूर है।

21:110

إِنَّهُۥ يَعْلَمُ ٱلْجَهْرَ مِنَ ٱلْقَوْلِ وَيَعْلَمُ مَا تَكْتُمُونَ

इन्नहू यअ्लमुल्-जह्-र मिनल्-क़ौलि व यअ्लमु मा तक्तुमून
इसमें शक नहीं कि वह उस बात को भी जानता है जो पुकार कर कही जाती है और जिसे तुम लोग छिपाते हो उससे भी खू़ब वाकि़फ है।

21:111

وَإِنْ أَدْرِى لَعَلَّهُۥ فِتْنَةٌۭ لَّكُمْ وَمَتَـٰعٌ إِلَىٰ حِينٍۢ

व इन् अद्री लअ़ल्लहू फ़ित् नतुल्लकुम् व मताअुन् इला हीन
और मैं ये भी नहीं जानता कि शायद ये (ताख़ीरे अज़ाब तुम्हारे) वास्ते इम्तिहान हो और एक मोअययन मुद्दत तक (तुम्हारे लिए) चैन हो।

21:112

قَـٰلَ رَبِّ ٱحْكُم بِٱلْحَقِّ ۗ وَرَبُّنَا ٱلرَّحْمَـٰنُ ٱلْمُسْتَعَانُ عَلَىٰ مَا تَصِفُونَ

का-ल रब्बिह्कुम् बिल्हक्कि व रब्बुनर्रहमानुल- मुस्तआ़नु अ़ला मा तसिफून
(आखि़र) रसूल ने दुआ की ऐ मेरे पालने वाले तू ठीक-ठीक मेरे और काफिरों के दरम्यिान फैसला कर दे और हमार परवरदिगार बड़ा मेहरबान है कि उसी से इन बातों में मदद माँगी जाती है जो तुम लोग बयान करते हो।

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