यह सूरह मदनी है और इसमें 200 आयतें हैं। इस सूरह की आयत 33 में आले इमरान (इमरान की संतान) का वर्णन हुआ है, जो मर्यम (अलैहिस्सलाम) के पिता का नाम है। इसीलिए इसे “आले इमरान” नाम दिया गया है। इसकी आरंभिक आयतें (1-9) तौहीद (अद्वैतवाद) को प्रस्तुत करते हुए बताती हैं कि कुरआन अल्लाह की वाणी है और धार्मिक विवादों में यही निर्णयकारी है।
आयत 10 से 32 तक अहले किताब और दूसरों को चेतावनी दी गई है कि यदि उन्होंने कुरआन के मार्गदर्शन को, जिसे इस्लाम कहा गया है, नहीं माना, तो यह अल्लाह से कुफ्र होगा और इसका दंड सदैव के लिए नरक होगा। प्रलय के दिन उनके धर्म का वास्तविकता उजागर होगी और वे अपमानित हो जाएंगे।
आयत 33 से 63 तक मर्यम (अलैहिस्सलाम) और ईसा (अलैहिस्सलाम) से संबंधित तथ्यों को उजागर किया गया है, जो उन निराधार विचारों का खंडन करते हैं जिन्हें ईसाईयों ने धर्म में शामिल कर लिया है। इसमें जकरिय्या (अलैहिस्सलाम) और यह्या (अलैहिस्सलाम) का भी वर्णन हुआ है।
आयत 64 से 101 तक अहले किताब ईसाईयों के कुपथ और उनके नैतिक तथा धार्मिक पतन का वर्णन करते हुए मुसलमानों को उनसे बचने के निर्देश दिए गए हैं।
आयत 102 से 120 तक मुसलमानों को इस्लाम पर स्थिर रहने, कुरआन को दृढ़ता से थामे रहने और अपने भीतर एक ऐसा समूह बनाने के निर्देश दिए गए हैं, जो धार्मिक सुधार और सत्य का प्रचार करे। साथ ही, अहले किताब के उपद्रव से सावधान रहने पर बल दिया गया है।
आयत 121 से 189 तक उहुद के युद्ध की स्थितियों की समीक्षा की गई है और उन कमजोरियों की ओर संकेत किया गया है जो उस समय उजागर हुई थीं।
आयत 190 से अंत तक यह वर्णन है कि ईमान कोई अंधविश्वास नहीं है, यह समझ-बूझ और स्वभाव की आवाज है। जब व्यक्ति इसे दिल से स्वीकार कर लेता है, तो उसका संबंध अल्लाह से हो जाता है और उसकी प्रार्थना होती है कि उसका अंत शुभ हो। उस समय उसका पालनहार उसे शुभ परिणाम की शुभ सूचना सुनाता है कि उसने सत्य धर्म का पालन करने में जो योगदान दिया है, वह उसे भरपूर फल देगा। अंत में, सत्य की राह में संघर्ष करने और सत्य तथा असत्य के संघर्ष में स्थिर रहने के निर्देश दिए गए हैं।
सूरह इमरान हिंदी में पढ़े
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
الٓمٓ
अलिफ़्-लाम्-मीम्
अलिफ़, लाम, मीम।
ٱللَّهُ لَآ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ ٱلْحَىُّ ٱلْقَيُّومُ
अल्लाहु ला इला-ह इल्ला हुवल् हय्युल्-क़य्यूम
अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं, वह जीवित, नित्य स्थायी है।
نَزَّلَ عَلَيْكَ ٱلْكِتَـٰبَ بِٱلْحَقِّ مُصَدِّقًۭا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ وَأَنزَلَ ٱلتَّوْرَىٰةَ وَٱلْإِنجِيلَ
नज़्ज़-ल अ़लैकल्-किता-ब बिल्हक़्क़ि मुसद्दिक़ल्लिमा बै-न यदैहि व अन्ज़लत्तौरा-त वल्-इन्जील
उसीने आपपर सत्य के साथ पुस्तक (क़ुर्आन) उतारी है, जो इससे पहले की पुस्तकों के लिए प्रमाणकारी है और उसीने तौरात तथा इंजील उतारी है।
مِن قَبْلُ هُدًۭى لِّلنَّاسِ وَأَنزَلَ ٱلْفُرْقَانَ ۗ إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ بِـَٔايَـٰتِ ٱللَّهِ لَهُمْ عَذَابٌۭ شَدِيدٌۭ ۗ وَٱللَّهُ عَزِيزٌۭ ذُو ٱنتِقَامٍ
मिन् क़ब्लु हुदल्लिन्नासि व अन्ज़-लल् फ़ुर्क़ा-न, इन्नल्लज़ी-न क-फ़रू बिआयातिल्लाहि लहुम् अ़ज़ाबुन् शदीद, वल्लाहु अ़ज़ीज़ुन् ज़ुन्तिक़ाम
इससे पूर्व, लोगों के मार्गदर्शन के लिए और फ़ुर्क़ान उतारा है[1] तथा जिन्होंने अल्लाह की आयतों को अस्वीकार किया, उन्हीं के लिए कड़ी यातना है और अल्लाह प्रभुत्वशाली, बदला लेने वाला है।
إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَخْفَىٰ عَلَيْهِ شَىْءٌۭ فِى ٱلْأَرْضِ وَلَا فِى ٱلسَّمَآءِ
इन्नल्ला-ह ला यख़्फ़ा अ़लैहि शैउन् फ़िल्अर्ज़ि व ला फ़िस्समा-इ
निःसंदेह अल्लाह से आकाशों तथा धरती की कोई चीज़ छुपी नहीं है।
هُوَ ٱلَّذِى يُصَوِّرُكُمْ فِى ٱلْأَرْحَامِ كَيْفَ يَشَآءُ ۚ لَآ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ ٱلْعَزِيزُ ٱلْحَكِيمُ
हुवल्लज़ी युसव्विरुकुम् फिल्अर्-हामि कै-फ़ यशा-उ, ला इला-ह इल्ला हुवल् अ़ज़ीज़ुल् हकीम
वही तुम्हारा रूप आकार गर्भाषयों में जैसे चाहता है, बनाता है। कोई पूज्य नहीं, परन्तु वही प्रभुत्वशाली, तत्वज्ञ।
هُوَ ٱلَّذِىٓ أَنزَلَ عَلَيْكَ ٱلْكِتَـٰبَ مِنْهُ ءَايَـٰتٌۭ مُّحْكَمَـٰتٌ هُنَّ أُمُّ ٱلْكِتَـٰبِ وَأُخَرُ مُتَشَـٰبِهَـٰتٌۭ ۖ فَأَمَّا ٱلَّذِينَ فِى قُلُوبِهِمْ زَيْغٌۭ فَيَتَّبِعُونَ مَا تَشَـٰبَهَ مِنْهُ ٱبْتِغَآءَ ٱلْفِتْنَةِ وَٱبْتِغَآءَ تَأْوِيلِهِۦ ۗ وَمَا يَعْلَمُ تَأْوِيلَهُۥٓ إِلَّا ٱللَّهُ ۗ وَٱلرَّٰسِخُونَ فِى ٱلْعِلْمِ يَقُولُونَ ءَامَنَّا بِهِۦ كُلٌّۭ مِّنْ عِندِ رَبِّنَا ۗ وَمَا يَذَّكَّرُ إِلَّآ أُو۟لُوا۟ ٱلْأَلْبَـٰبِ
हुवल्लज़ी अन्ज़-ल अ़लैकल्-किता-ब मिन्हु आयातुम् मुह्कमातुन् हुन्-न उम्मुल्-किताबि व उ-ख़रु मु-तशाबिहातुन्, फ़-अम्मल्लज़ी-न फ़ी क़ुलूबिहिम् ज़ैग़ुन् फ़-यत्तबिअू-न मा तशा-ब-ह मिन्हुब्तिग़ा- अल्-फ़ित्नति वब्तिग़ा-अ तअ्वीलिही, व मा यअ्लमु तअ्वी-लहू इल्लल्लाहु. वर्रासिख़ू-न फिल्-अिल्मि यक़ूलू-न आमन्ना बिही, कुल्लुम् मिन् अिन्दि रब्बिना, व मा यज़्ज़क्करु इल्ला उलुल्अल्बाब
उसीने आप पर[1] ये पुस्तक (क़ुर्आन) उतारी है, जिसमें कुछ आयतें मुह़कम[2] (सुदृढ़) हैं, जो पुस्तक का मूल आधार हैं तथा कुछ दूसरी मुतशाबिह[3] (संदिग्ध) हैं। तो जिनके दिलों में कुटिलता है, वे उपद्रव की खोज तथा मनमाना अर्थ करने के लिए, संदिग्ध के पीछे पड़ जाते हैं। जबकि उनका वास्तविक अर्थ, अल्लाह के सिवा कोई नहीं जानता तथा जो ज्ञान में पक्के हैं, वे कहते हैं कि सब, हमारे पालनहार के पास से है और बुध्दिमान लोग ही शिक्षा ग्रहण करते हैं।
رَبَّنَا لَا تُزِغْ قُلُوبَنَا بَعْدَ إِذْ هَدَيْتَنَا وَهَبْ لَنَا مِن لَّدُنكَ رَحْمَةً ۚ إِنَّكَ أَنتَ ٱلْوَهَّابُ
रब्बना ला तुज़िग् क़ुलूबना बअ्-द इज़् ‘हदैतना व हब् लना मिल्लदुन्-क रह् म-तन् इन्न-क अन्तल् वह्हाब
(तथा कहते हैः) हे हमारे पालनहार! हमारे दिलों को, हमें मार्गदर्शन देने के पश्चात् कुटिल न कर, वास्तव में, तू बहुत बड़ा दाता है।
رَبَّنَآ إِنَّكَ جَامِعُ ٱلنَّاسِ لِيَوْمٍۢ لَّا رَيْبَ فِيهِ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُخْلِفُ ٱلْمِيعَادَ
रब्बना इन्न-क जामिअुन्नासि लियौमिल्-ला रै-ब फ़ीहि, इन्नल्ला-ह ला युख़्लिफ़ुल मीआ़द
हे मेरे पालनहार! तू उस दिन सबको एकत्र करने वाला है, जिसमें कोई संदेह नहीं। निःसंदेह अल्लाह अपने निर्धारित समय का विरुध्द नहीं करता।
إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ لَن تُغْنِىَ عَنْهُمْ أَمْوَٰلُهُمْ وَلَآ أَوْلَـٰدُهُم مِّنَ ٱللَّهِ شَيْـًۭٔا ۖ وَأُو۟لَـٰٓئِكَ هُمْ وَقُودُ ٱلنَّارِ
इन्नल्लज़ी-न क-फ़रू लन् तुग़्नि-य अ़न्हुम् अम्वालुहुम् व ला औलादुहुम् मिनल्लाहि शैअन्, व उलाइ-क हुम् वक़ूदुन्नार
निश्चय जो क़ाफ़िर हो गये, उनके धन तथा उनकी संतान अल्लाह (की यातना) से (बचाने में) उनके कुछ काम नहीं आयेगी तथा वही अग्नि के ईंधन बनेंगे।
كَدَأْبِ ءَالِ فِرْعَوْنَ وَٱلَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ ۚ كَذَّبُوا۟ بِـَٔايَـٰتِنَا فَأَخَذَهُمُ ٱللَّهُ بِذُنُوبِهِمْ ۗ وَٱللَّهُ شَدِيدُ ٱلْعِقَابِ
क-दअ्बि आलि फ़िर्-औ़-न, वल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिहिम्, कज़्ज़बू बिआयातिना, फ़-अ-ख़-ज़हुमुल्लाहु बिज़ुनूबिहिम्, वल्लाहु शदीदुल् अिक़ाब
जैसे फ़िरऔनियों तथा उनके पहले लोगों की दशा हुई, उन्होंने हमारी निशानियों को मिथ्या कहा, तो अल्लाह ने उनके पापों के कारण उनको धर लिया तथा अल्लाह कड़ा दण्ड देने वाला है।
قُل لِّلَّذِينَ كَفَرُوا۟ سَتُغْلَبُونَ وَتُحْشَرُونَ إِلَىٰ جَهَنَّمَ ۚ وَبِئْسَ ٱلْمِهَادُ
क़ुल् लिल्लज़ी-न क-फ़रू सतुग़्लबू-न व तुह्शरू-न इला जहन्न-म, व बिअ्सल् मिहाद
(हे नबी!) काफ़िरों से कह दो कि तुम शीघ्र ही प्रास्त कर दिये जाओगे तथा नरक की ओर एकत्र किये जाओगे और वह बहुत बुरा ठिकाना[1] है।1. इस में काफ़िरों की मुसलमानों
قَدْ كَانَ لَكُمْ ءَايَةٌۭ فِى فِئَتَيْنِ ٱلْتَقَتَا ۖ فِئَةٌۭ تُقَـٰتِلُ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ وَأُخْرَىٰ كَافِرَةٌۭ يَرَوْنَهُم مِّثْلَيْهِمْ رَأْىَ ٱلْعَيْنِ ۚ وَٱللَّهُ يُؤَيِّدُ بِنَصْرِهِۦ مَن يَشَآءُ ۗ إِنَّ فِى ذَٰلِكَ لَعِبْرَةًۭ لِّأُو۟لِى ٱلْأَبْصَـٰرِ
क़द् का-न लकुम् आ-यतुन् फ़ी फ़ि-अतैनिल् त क़ता, फ़ि-अतुन् तुक़ातिलु फ़ी सबीलिल्लाहि व उख़्रा काफ़ि-रतुंय्यरौ-नहुम् मिस्लैहिम् रअ्यल्-ऐनि, वल्लाहु युअय्यिदु बिनस्रिही मंय्यशा-उ, इन्-न फ़ी ज़ालि-क ल-अिब्रतल्-लिउलिल् अब्सार
वास्तव में, तुम्हारे लिए उन दो दलों में, जो (बद्र में) सम्मुख हो गये, एक निशानी थी; एक अल्लाह की राह में युध्द कर रहा था तथा दूसरा काफ़िर था, वे (अर्थात काफ़िर गिरोह के लोग) अपनी आँखों से देख रहे थे कि ये (मुसलमान) तो दुगने लग रहे हैं तथा अल्लाह अपनी सहायता द्वारा जिसे चाहे, समर्थन देता है। निःसंदेह इसमें समझ-बूझ वालों के लिए बड़ी शिक्षा[1] है।
زُيِّنَ لِلنَّاسِ حُبُّ ٱلشَّهَوَٰتِ مِنَ ٱلنِّسَآءِ وَٱلْبَنِينَ وَٱلْقَنَـٰطِيرِ ٱلْمُقَنطَرَةِ مِنَ ٱلذَّهَبِ وَٱلْفِضَّةِ وَٱلْخَيْلِ ٱلْمُسَوَّمَةِ وَٱلْأَنْعَـٰمِ وَٱلْحَرْثِ ۗ ذَٰلِكَ مَتَـٰعُ ٱلْحَيَوٰةِ ٱلدُّنْيَا ۖ وَٱللَّهُ عِندَهُۥ حُسْنُ ٱلْمَـَٔابِ
ज़ुय्यि-न लिन्नासि हुब्बुश्श-हवाति मिनन्निसा-इ वल्बनी-न वल्- क़नातीरिल्- मुक़न्त-रति मिनज़्ज़-हबि वल्फ़िज़्ज़ति वल्-ख़ैलिल्-मुसव्व-मति वल्-अन्आ़मि वल्हर्सि, ज़ालि-क मताअुल् हयातिद्दुन्या, वल्लाहु अिन्दहू हुस्नुल् मआब
लोगों के लिए उनके मनको मोहने वाली चीज़ें, जैसे स्त्रियाँ, संतान, सोने चाँदी के ढेर, निशान लगे घोड़े, पशुओं तथा खेती शोभनीय बना दी गई हैं। ये सब सांसारिक जीवन के उपभोग्य हैं और उत्तम आवास अल्लाह के पास है।
قُلْ اَؤُنَبِّئُكُمْ بِخَيْرٍ مِّنْ ذٰلِكُمْ ۗ لِلَّذِيْنَ اتَّقَوْا عِنْدَ رَبِّهِمْ جَنّٰتٌ تَجْرِيْ مِنْ تَحْتِهَا الْاَنْهٰرُ خٰلِدِيْنَ فِيْهَا وَاَزْوَاجٌ مُّطَهَّرَةٌ وَّرِضْوَانٌ مِّنَ اللّٰهِ ۗ وَاللّٰهُ بَصِيْرٌۢ بِالْعِبَادِۚ
क़ुल् अ-उनब्बिउकुम् बिख़ैरिम् मिन् ज़ालिकुम्, लिल्लज़ीनत्तक़ौ अिन्-द रब्बिहिम् जन्नातुन् तज्री मिन् तह्तिहल्-अन्हारु ख़ालिदी-न फ़ीहा व अज़्वाजुम्- मुतह्ह-रतुंव्-व रिज़्वानुम् मिनल्लाहि, वल्लाहु बसीरुम् बिल्अिबाद
(हे नबी!) कह दोः क्या मैं तुम्हें इससे उत्तम चीज़ बता दूँ? उनके लिए जो डरें, उनके पालनहार के पास ऐसे स्वर्ग हैं, जिनमें नहरें बह रही हैं। वे उनमें सदावासी होंगे और निर्मल पत्नियाँ होंगी तथा अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त होगी और अल्लाह अपने भक्तों को देख रहा है।
ٱلَّذِينَ يَقُولُونَ رَبَّنَآ إِنَّنَآ ءَامَنَّا فَٱغْفِرْ لَنَا ذُنُوبَنَا وَقِنَا عَذَابَ ٱلنَّارِ
अल्लज़ी-न यक़ूलू-न रब्बना इन्नना आमन्ना फ़ग़्फ़िर् लना ज़ुनूबना व क़िना अ़ज़ाबन्नार
जो (ये) प्रार्थना करते हैं कि हमारे पालनहार! हम ईमान लाये, अतः हमारे पाप क्षमा कर दे और हमें नरक की यातना से बचा।
ٱلصَّـٰبِرِينَ وَٱلصَّـٰدِقِينَ وَٱلْقَـٰنِتِينَ وَٱلْمُنفِقِينَ وَٱلْمُسْتَغْفِرِينَ بِٱلْأَسْحَارِ
अस्साबिरी-न वस्सादिक़ी-न वल्क़ानिती-न वल्मुन्फ़िकी-न वल्मुस्तग़्फ़िरी-न बिल्अस्हार
जो सहनशील हैं, सत्यवादी हैं, आज्ञाकारी हैं, दानशील तथा भोरों में अल्लाह से क्षमा याचना करने वाले हैं।
شَهِدَ ٱللَّهُ أَنَّهُۥ لَآ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ وَٱلْمَلَـٰٓئِكَةُ وَأُو۟لُوا۟ ٱلْعِلْمِ قَآئِمًۢا بِٱلْقِسْطِ ۚ لَآ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ ٱلْعَزِيزُ ٱلْحَكِيمُ
शहिदल्लाहु अन्नहू ला इला-ह इल्ला हु-व, वल्मलाइ-कतु व उलुल्-अिल्मि क़ा-इमम् बिल्क़िस्ति, ला इला-ह इल्ला हुवल्-अ़ज़ीज़ुल् हकीम
अल्लाह साक्षी है, जो न्याय के साथ क़ायम है कि उसके सिवा कोई पूज्य नहीं है, इसी प्रकार फ़रिश्ते और ज्ञानी लोग भी (साक्षी हैं) कि उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। वह प्रभुत्वशाली, तत्वज्ञ है।
إِنَّ ٱلدِّينَ عِندَ ٱللَّهِ ٱلْإِسْلَـٰمُ ۗ وَمَا ٱخْتَلَفَ ٱلَّذِينَ أُوتُوا۟ ٱلْكِتَـٰبَ إِلَّا مِنۢ بَعْدِ مَا جَآءَهُمُ ٱلْعِلْمُ بَغْيًۢا بَيْنَهُمْ ۗ وَمَن يَكْفُرْ بِـَٔايَـٰتِ ٱللَّهِ فَإِنَّ ٱللَّهَ سَرِيعُ ٱلْحِسَابِ
इन्नद्दी-न अिन्दल्लाहिल् इस्लामु, व मख़्त-लफ़ल्लज़ी-न ऊतुल्-किता-ब इल्ला मिम्-बअ्दि मा जा-अहुमुल् अिल्मु बग़्यम् बइनहुम, व मंय्यक्फ़ुर् बिआयातिल्लाहि फ़-इन्नल्ला-ह सरीअुल् हिसाब
निःसंदेह (वास्तविक) धर्म अल्लाह के पास इस्लाम ही है और अह्ले किताब ने जो विभेद किया, तो अपने पास ज्ञान आने के पश्चात् आपस में द्वेष के कारण किया तथा जो अल्लाह की आयतों के साथ कुफ़्र (अस्वीकार) करेगा, तो निश्चय अल्लाह शीघ्र ह़िसाब लेने वाला है।
فَإِنْ حَآجُّوكَ فَقُلْ أَسْلَمْتُ وَجْهِىَ لِلَّهِ وَمَنِ ٱتَّبَعَنِ ۗ وَقُل لِّلَّذِينَ أُوتُوا۟ ٱلْكِتَـٰبَ وَٱلْأُمِّيِّـۧنَ ءَأَسْلَمْتُمْ ۚ فَإِنْ أَسْلَمُوا۟ فَقَدِ ٱهْتَدَوا۟ ۖ وَّإِن تَوَلَّوْا۟ فَإِنَّمَا عَلَيْكَ ٱلْبَلَـٰغُ ۗ وَٱللَّهُ بَصِيرٌۢ بِٱلْعِبَادِ
फ़-इन् हाज्जू-क फ़क़ुल् अस्लम्तु वज़्हि-य लिल्लाहि व मनित्त-ब- अ़नि, व क़ुल लिल्लज़ी-न ऊतुल्-किता-ब वल-उम्मिय्यी-न अ-अस्लम्तुम्, फ़-इन् अस्लमू फ़-क़दिह्तदौ, व इन् तवल्लौ फ़-इन्नमा अ़लैकल्- बलाग़ु, वल्लाहु बसीरुम् बिल्अिबाद
फिर यदि वे आपसे विवाद करें, तो कह दें कि मैं स्वयं तथा जिसने मेरा अनुसरण किया अल्लाह के आज्ञाकारी हो गये तथा अह्ले किताब और उम्मियों (अर्थात जिनके पास कोई किताब नहीं आयी) से कहो कि क्या तुम भी आज्ञाकारी हो गये? यदि वे आज्ञाकारी हो गये, तो मार्गदर्शन पा गये और यदि विमुख हो गये, तो आपका दायित्व (संदेश) पहुँचा[1] देना है तथा अल्लाह भक्तों को देख रहा है।
إِنَّ ٱلَّذِينَ يَكْفُرُونَ بِـَٔايَـٰتِ ٱللَّهِ وَيَقْتُلُونَ ٱلنَّبِيِّـۧنَ بِغَيْرِ حَقٍّۢ وَيَقْتُلُونَ ٱلَّذِينَ يَأْمُرُونَ بِٱلْقِسْطِ مِنَ ٱلنَّاسِ فَبَشِّرْهُم بِعَذَابٍ أَلِيمٍ
इन्नल्लज़ी-न यक्फ़ुरु-न बिआया-तिल्लाहि व यक़्तुलूनन्नबिय्यी-न बिग़ैरि हक़्क़िंव्-व यक़्तुलू-नल्लज़ी-न यअ्मुरू-न बिल्क़िस्ति मिनन्नासि फ़-बश्शिर्हुम् बि-अ़ज़ाबिन अलीम
जो लोग अल्लाह की आयतों के साथ कुफ़्र करते हों तथा नबियों को अवैध वध करते हों, तथा उन लोगों का वध करते हों, जो न्याय का आदेश देते हैं, तो उन्हें दुःखदायी यातना[1] की शुभ सूचना सुना दो।
أُو۟لَـٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ حَبِطَتْ أَعْمَـٰلُهُمْ فِى ٱلدُّنْيَا وَٱلْـَٔاخِرَةِ وَمَا لَهُم مِّن نَّـٰصِرِينَ
उलाइ-कल्लज़ी-न हबितत् अअ्मालुहुम् फ़िद्दुन्या वल्-आख़ि-रति, व मा लहुम् मिन्-नासिरीन
यही हैं, जिनके कर्म संसार तथा परलोक में अकारथ गये और उनका कोई सहायक नहीं होगा।
أَلَمْ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ أُوتُوا۟ نَصِيبًۭا مِّنَ ٱلْكِتَـٰبِ يُدْعَوْنَ إِلَىٰ كِتَـٰبِ ٱللَّهِ لِيَحْكُمَ بَيْنَهُمْ ثُمَّ يَتَوَلَّىٰ فَرِيقٌۭ مِّنْهُمْ وَهُم مُّعْرِضُونَ
अलम् त-र इलल्लज़ी-न ऊतू नसीबम् मिनल्-किताबि युद्औ़-न इला किताबिल्लाहि लि-यह्कु-म बैनहुम् सुम्-म य-तवल्ला फ़रीक़ुम् मिन्हुम् व हुम् मुअ्-रिज़ून
(हे नबी!) क्या आपने उनकी[1] दशा नहीं देखी, जिन्हें पुस्तक का कुछ भाग दिया गया? वे अल्लाह की पुस्तक की ओर बुलाये जा रहे हैं, ताकि उनके बीच निर्णय[2] करे, तो उनका एक गिरोह मुँह फेर रहा है और वे हैं ही मुँह फेरने वाले।
ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمْ قَالُوا۟ لَن تَمَسَّنَا ٱلنَّارُ إِلَّآ أَيَّامًۭا مَّعْدُودَٰتٍۢ ۖ وَغَرَّهُمْ فِى دِينِهِم مَّا كَانُوا۟ يَفْتَرُونَ
ज़ालि-क बि-अन्नहुम् क़ालू लन् तमस्स-नन्नारु इल्ला अय्यामम् मअ्दूदातिंव्-व ग़र्रहुम् फ़ी दीनिहिम् मा कानू यफ़्तरून
उनकी ये दशा इसलिए है कि उन्होंने कहा कि नरक की अग्नि हमें गिनती के कुछ दिन ही छुएगी तथा उन्हें अपने धर्म में उनकी मिथ्या बनायी हुई बातों ने धोखे में डाल रखा है।
فَكَيْفَ إِذَا جَمَعْنَـٰهُمْ لِيَوْمٍۢ لَّا رَيْبَ فِيهِ وَوُفِّيَتْ كُلُّ نَفْسٍۢ مَّا كَسَبَتْ وَهُمْ لَا يُظْلَمُونَ
फ़कइ-फ़ इज़ा जमअ्नाहुम् लियौमिल् ला रै-ब फ़ीहि, व वुफ़्फ़ियत् कुल्लु नफ़्सिम् मा क-सबत् व हुम् ला युज़्लमून
तो उनकी क्या दशा होगी, जब हम उन्हें उस दिन एकत्र करेंगे, जिस (के आने) में कोई संदेह नहीं तथा प्रत्येक प्राणी को उसके किये का भरपूर प्रतिफल दिया जायेगा और किसी के साथ कोई अत्याचार नहीं किया जायेगा?
قُلِ ٱللَّهُمَّ مَـٰلِكَ ٱلْمُلْكِ تُؤْتِى ٱلْمُلْكَ مَن تَشَآءُ وَتَنزِعُ ٱلْمُلْكَ مِمَّن تَشَآءُ وَتُعِزُّ مَن تَشَآءُ وَتُذِلُّ مَن تَشَآءُ ۖ بِيَدِكَ ٱلْخَيْرُ ۖ إِنَّكَ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍۢ قَدِيرٌۭ
क़ुलिल्लाहुम्-म मालिकल्मुल्कि तुअ्तिल्- मुल्-क मन् तशा-उ व तन्ज़िअुल्मुल्-क मिम्मन् तशा-उ, व तुअिज़्ज़ु मन् तशा-उ, व तुज़िल्लू मन् तशा-उ, बि-यदिकल्-ख़ैरु, इन्न-क अ़ला कुल्लि शैइन् क़दीर
(हे नबी!) कहोः हे अल्लाह! राज्य के[1] अधिपति (स्वामी)! तू जिसे चाहे, राज्य दे और जिससे चाहे, राज्य छीन ले तथा जिसे चाहे, सम्मान दे और जिसे चाहे, अपमान दे। तेरे ही हाथ में भलाई है। निःसंदेह तू जो चाहे, कर सकता है।
تُولِجُ ٱلَّيْلَ فِى ٱلنَّهَارِ وَتُولِجُ ٱلنَّهَارَ فِى ٱلَّيْلِ ۖ وَتُخْرِجُ ٱلْحَىَّ مِنَ ٱلْمَيِّتِ وَتُخْرِجُ ٱلْمَيِّتَ مِنَ ٱلْحَىِّ ۖ وَتَرْزُقُ مَن تَشَآءُ بِغَيْرِ حِسَابٍۢ
तूलिजुल्लै-ल फ़िन्नहारि व तूलिजुन्नहा-र फ़िल्लैलि व तुख़रिजुल्-हय्-य मिनल्-मय्यिति व तुख़रिजुल् मय्यि-त मिनल्हय्यि, व तर्जुक़ु मन् तशा-उ बिग़ैरि हिसाब
तू रात को दिन में प्रविष्ट कर देता है तथा दिन को रात में प्रविष्ट कर[1] देता है और जीव को निर्जीव से निकालता है तथा निर्जीव को जीव से निकालता है और जिसे चाहे अगणित आजीविका प्रदान करता है।
لَّا يَتَّخِذِ ٱلْمُؤْمِنُونَ ٱلْكَـٰفِرِينَ أَوْلِيَآءَ مِن دُونِ ٱلْمُؤْمِنِينَ ۖ وَمَن يَفْعَلْ ذَٰلِكَ فَلَيْسَ مِنَ ٱللَّهِ فِى شَىْءٍ إِلَّآ أَن تَتَّقُوا۟ مِنْهُمْ تُقَىٰةًۭ ۗ وَيُحَذِّرُكُمُ ٱللَّهُ نَفْسَهُۥ ۗ وَإِلَى ٱللَّهِ ٱلْمَصِيرُ
ला यत्तख़िज़िल्-मुअ्मिनूनल् काफ़िरी-न औलिया-अ मिन् दूनिल्- मुअ्मिनी-न, व मंय्यफ़्अ़ल् ज़ालि-क फ़्लै-स मिनल्लाहि फ़ी शैइन् इल्ला अन् तत्तक़ू मिन्हुम् तुक़ातन्, व युहज़्ज़िरुकुमुल्लाहु नफ़्सहू, व इलल्लाहिल्-मसीर
मोमिनों को चाहिए कि वो ईमान वालों के विरुध्द काफ़िरों को अपना सहायक मित्र न बनायें और जो ऐसा करेगा, उसका अल्लाह से कोई संबंध नहीं। परन्तु उनसे बचने के लिए[1] और अल्लाह तुम्हें स्वयं अपने से डरा रहा है और अल्लाह ही की ओर जाना है।
قُلْ إِن تُخْفُوا۟ مَا فِى صُدُورِكُمْ أَوْ تُبْدُوهُ يَعْلَمْهُ ٱللَّهُ ۗ وَيَعْلَمُ مَا فِى ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَمَا فِى ٱلْأَرْضِ ۗ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍۢ قَدِيرٌۭ
क़ुल इन् तुख़्फ़ू मा फ़ी सुदूरिकुम् औ तुब्दूहु यअ्लम्हुल्लाहु, व यअ्लमु मा फ़िस्समावाति व मा फ़िल्अर्ज़ि, वल्लाहु अ़ला कुल्लि शैइन् क़दीर
(हे नबी!) कह दो कि जो तुम्हारे मन में है, उसे मन ही में रखो या व्यक्त करो, अल्लाह उसे जानता है तथा जो कुछ आकाशों तथा धरती में है, वह सबको जानता है और अल्लाह जो चाहे, कर सकता है।
يَوْمَ تَجِدُ كُلُّ نَفْسٍۢ مَّا عَمِلَتْ مِنْ خَيْرٍۢ مُّحْضَرًۭا وَمَا عَمِلَتْ مِن سُوٓءٍۢ تَوَدُّ لَوْ أَنَّ بَيْنَهَا وَبَيْنَهُۥٓ أَمَدًۢا بَعِيدًۭا ۗ وَيُحَذِّرُكُمُ ٱللَّهُ نَفْسَهُۥ ۗ وَٱللَّهُ رَءُوفٌۢ بِٱلْعِبَادِ
यौ-म तजिदु कुल्लु नफ़्सिम् मा अ़मिलत् मिन् ख़ैरिम् मुह्ज़रंव्-व मा अ़मिलत् मिन् सूइन्, त-वद्दु लौ अन्-न बैनहा व बैनहू अ-मदम् बईदन्, व युहज़्ज़िरुकुमुल्लाहु नफ़्सहू, वल्लाहु रऊफ़ुम् बिल्अिबाद
जिस दिन प्रत्येक प्राणी ने जो सुकर्म किया है, उसे उपस्थित पायेगा तथा जिसने कुकर्म किया है, वह कामना करेगा कि उसके तथा उसके कुकर्मों के बीच बड़ी दूरी होती तथा अल्लाह तुम्हें स्वयं से डराता[1] है और अल्लाह अपने भक्तों के लिए अति करुणामय है।
قُلْ إِن كُنتُمْ تُحِبُّونَ ٱللَّهَ فَٱتَّبِعُونِى يُحْبِبْكُمُ ٱللَّهُ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ذُنُوبَكُمْ ۗ وَٱللَّهُ غَفُورٌۭ رَّحِيمٌۭ
क़ुल् इन् कुन्तुम् तुहिब्बूनल्ला-ह फ़त्तबिअूनी युह्बिब्कुमुल्लाहु व यग़्फ़िर् लकुम् ज़ुनूबकुम, वल्लाहु ग़फ़ूरुर्रहीम
(हे नबी!) कह दोः यदि तुम अल्लाह से प्रेम करते हो, तो मेरा अनुसरण करो, अल्लाह तुमसे प्रेम[1] करेगा तथा तुम्हारे पाप क्षमा कर देगा और अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान् है।
قُلْ أَطِيعُوا۟ ٱللَّهَ وَٱلرَّسُولَ ۖ فَإِن تَوَلَّوْا۟ فَإِنَّ ٱللَّهَ لَا يُحِبُّ ٱلْكَـٰفِرِينَ
क़ुल् अतीअुल्ला-ह वर्रसू-ल फ़-इन् तवल्लौ फ़-इन्नल्ला-ह ला युहिब्बुल् काफ़िरीन
(हे नबी!) कह दोः अल्लाह और रसूल की आज्ञा का अनुपालन करो। फिर भी यदि वे विमुख हों, तो निःसंदेह अल्लाह काफ़िरों से प्रेम नहीं करता।
اِنَّ اللّٰهَ اصْطَفٰىٓ اٰدَمَ وَنُوْحًا وَّاٰلَ اِبْرٰهِيْمَ وَاٰلَ عِمْرٰنَ عَلَى الْعٰلَمِيْنَۙ
इन्नल्लाहस्तफा आद-म व नूहंव्-व आ-ल इब्राही-म व आ-ल अिम्रा-न अ़लल् आ़लमीन
वस्तुतः, अल्लाह ने आदम, नूह़, इब्राहीम की संतान तथा इमरान की संतान को संसार वासियों में चुन लिया था।
ذُرِّيَّةًۢ بَعْضُهَا مِنۢ بَعْضٍۢ ۗ وَٱللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ
ज़ुर्रिय्यतम् बअ्ज़ुहा मिम्-बअ्ज़िन्, वल्लाहु समीअुन् अ़लीम
ये एक-दूसरे की संतान हैं और अल्लाह सब सुनता और जानता है।
إِذْ قَالَتِ ٱمْرَأَتُ عِمْرَٰنَ رَبِّ إِنِّى نَذَرْتُ لَكَ مَا فِى بَطْنِى مُحَرَّرًۭا فَتَقَبَّلْ مِنِّىٓ ۖ إِنَّكَ أَنتَ ٱلسَّمِيعُ ٱلْعَلِيمُ
इज़् क़ा-लतिम्र-अतु अिम्रा-न रब्बि इन्नी नज़र्तु ल-क मा फ़ी बत्नी मुहर्र-रन् फ़-तक़ब्बल् मिन्नी, इन्न-क अन्तस्- समीअुल् अ़लीम
जब इमरान की पत्नी[1] ने कहाः हे मेरे पालनहार! जो मेरे गर्भ में है, मैंने तेरे[3] लिए उसे मुक्त करने की मनौती मान ली है। तू इसे मुझसे स्वीकार कर ले। वास्तव में, तू ही सब कुछ सुनता और जानता है।
فَلَمَّا وَضَعَتْهَا قَالَتْ رَبِّ إِنِّى وَضَعْتُهَآ أُنثَىٰ وَٱللَّهُ أَعْلَمُ بِمَا وَضَعَتْ وَلَيْسَ ٱلذَّكَرُ كَٱلْأُنثَىٰ ۖ وَإِنِّى سَمَّيْتُهَا مَرْيَمَ وَإِنِّىٓ أُعِيذُهَا بِكَ وَذُرِّيَّتَهَا مِنَ ٱلشَّيْطَـٰنِ ٱلرَّجِيمِ
फ़-लम्मा व-ज़अ़त्हा क़ालत् रब्बि इन्नी वज़अ्तुहा उन्सा, वल्लाहु अअ्लमु बिमा व-ज़अ़त्, व लैसज़्ज़-करु कल्उन्सा, व इन्नी सम्मैतुहा मर्य-म व इन्नी उईज़ुहा बि-क व ज़ुर्रिय्य-तहा मिनश्-शैतानिर्- रजीम
फिर जब उसने बालिका जनी, तो (संताप से) कहाः मेरे पालनहार! मुझे तो बालिका हो गयी, हालाँकि जो उसने जना, उसका अल्लाह को भली-भाँति ज्ञान था -और नर नारी के समान नहीं होता- और मैंने उसका नाम मर्यम रखा है और मैं उसे तथा उसकी संतान को धिक्कारे हुए शैतान से तेरी शरण में देती हूँ।[1]
فَتَقَبَّلَهَا رَبُّهَا بِقَبُولٍ حَسَنٍۢ وَأَنۢبَتَهَا نَبَاتًا حَسَنًۭا وَكَفَّلَهَا زَكَرِيَّا ۖ كُلَّمَا دَخَلَ عَلَيْهَا زَكَرِيَّا ٱلْمِحْرَابَ وَجَدَ عِندَهَا رِزْقًۭا ۖ قَالَ يَـٰمَرْيَمُ أَنَّىٰ لَكِ هَـٰذَا ۖ قَالَتْ هُوَ مِنْ عِندِ ٱللَّهِ ۖ إِنَّ ٱللَّهَ يَرْزُقُ مَن يَشَآءُ بِغَيْرِ حِسَابٍ
फ़-तक़ब्ब-लहा रब्बुहा बि-क़बूलिन् ह-सनिंव्-व अम्ब-तहा नबातन् ह-सनंव्-व कफ़्फ़-लहा ज़-करिय्या, कुल्लमा द-ख़-ल अ़लैहा ज़- करिय्यल्-मिह्-रा-ब, व-ज-द अिन्दहा रिज़्क़न् क़ा-ल या मर्यमु अन्ना लकि हाज़ा, क़ालत् हु-व मिन् अिन्दिल्लाहि, इन्नल्ला-ह यर्ज़ुक़ु मंय्यशा-उ बिग़ैरि हिसाब
तो तेरे पालनहार ने उसे भली-भाँति स्वीकार कर लिया तथा उसका अच्छा प्रतिपालन किया और ज़करिय्या को उसका संरक्षक बनाया। ज़करिय्या जबभी उसके मेह़राब (उपासना कोष्ट) में जाता, तो उसके पास कुछ खाद्य पदार्थ पाता, वह कहता कि हे मर्यम! ये कहाँ से (आया) है? वह कहतीः ये अल्लाह के पास से (आया) है। वास्तव में, अल्लाह जिसे चाहता है, अगणित जीविका प्रदा करता है।
هُنَالِكَ دَعَا زَكَرِيَّا رَبَّهُۥ ۖ قَالَ رَبِّ هَبْ لِى مِن لَّدُنكَ ذُرِّيَّةًۭ طَيِّبَةً ۖ إِنَّكَ سَمِيعُ ٱلدُّعَآءِ
हुनालि-क दआ़ ज़-करिय्या रब्बहू, क़ा-ल रब्बि हब् ली मिल्लदुन्-क ज़ुर्रिय्यतन् तय्यि-बतन् इन्न-क समीअुद्दुआ़-इ
तब ज़करिय्या ने अपने पालनहार से प्रार्थना कीः हे मेरे पालनहार! मुझे अपनी ओर से सदाचारी संतान प्रदान कर। निःसंदेह तू प्रार्थना सुनने वाला है।
فَنَادَتْهُ ٱلْمَلَـٰٓئِكَةُ وَهُوَ قَآئِمٌۭ يُصَلِّى فِى ٱلْمِحْرَابِ أَنَّ ٱللَّهَ يُبَشِّرُكَ بِيَحْيَىٰ مُصَدِّقًۢا بِكَلِمَةٍۢ مِّنَ ٱللَّهِ وَسَيِّدًۭا وَحَصُورًۭا وَنَبِيًّۭا مِّنَ ٱلصَّـٰلِحِينَ
फ़नादत्हुल् मलाइ-कतु व हु-व क़ा इमुंय्युसल्ली फ़िल्-मिह्-राबि, अन्नल्ला-ह युबश्शिरु-क बि-यह्या मुसद्दिक़म् बि-कलिमतिम् मिनल्लाहि व सय्यिदंव्-व हसूरंव्-व नबिय्यम् मिनस्सालिहीन
तो फ़रिश्तों ने उसे पुकारा- जब वह मेह़राब में खड़ा नमाज़ पढ़ रहा था- कि अल्लाह तुझे ‘यह़्या’ की शुभ सूचना दे रहा है, जो अल्लाह के शब्द (ईसा) का पुष्टि करने वाला, प्रमुख तथा संयमी और सदाचारियों में से एक नबी होगा।
قَالَ رَبِّ أَنَّىٰ يَكُونُ لِى غُلَـٰمٌۭ وَقَدْ بَلَغَنِىَ ٱلْكِبَرُ وَٱمْرَأَتِى عَاقِرٌۭ ۖ قَالَ كَذَٰلِكَ ٱللَّهُ يَفْعَلُ مَا يَشَآءُ
क़ा-ल रब्बि अन्ना यकूनु ली ग़ुलामुंव्-व क़द् ब-ल-ग़नियल कि-बरु वम्र-अती आ़क़िरुन्, क़ा-ल कज़ालिकल्लाहु यफ़्अ़लु मा यशा-उ
उसने कहाः मेरे पालनहार! मेरे कोई पुत्र कहाँ से होगा, जबकि मैं बूढ़ा हो गया हूँ और मेरी पत्नी बाँझ[1] है? उसने कहाः अल्लाह इसी प्रकार जो चाहता है, कर देता है।
قَالَ رَبِّ ٱجْعَل لِّىٓ ءَايَةًۭ ۖ قَالَ ءَايَتُكَ أَلَّا تُكَلِّمَ ٱلنَّاسَ ثَلَـٰثَةَ أَيَّامٍ إِلَّا رَمْزًۭا ۗ وَٱذْكُر رَّبَّكَ كَثِيرًۭا وَسَبِّحْ بِٱلْعَشِىِّ وَٱلْإِبْكَـٰرِ
क़ा-ल रब्बिज्अ़ल्ली आ-यतन्, क़ा-ल आ-यतु-क अल्ला तुकल्लिमन्ना-स सला-स-त अय्यामिन् इल्ला रम्ज़न्, वज़्कुर् रब्ब-क कसीरंव्-व सब्बिह् बिल्-अ़शिय्यि वल्-इब्कार
उसने कहाः मेरे पालनहार! मेरे लिए कोई लक्षण बना दे। उसने कहाः तेरा लक्षण ये होगा कि तीन दिन तक लोगों से बात नहीं कर सकेगा, परन्तु संकेत से तथा अपने पालनहार का बहुत स्मरण करता रह और संध्या-प्राता उसी की पवित्रता का वर्णन कर।
وَإِذْ قَالَتِ ٱلْمَلَـٰٓئِكَةُ يَـٰمَرْيَمُ إِنَّ ٱللَّهَ ٱصْطَفَىٰكِ وَطَهَّرَكِ وَٱصْطَفَىٰكِ عَلَىٰ نِسَآءِ ٱلْعَـٰلَمِينَ
व इज़् क़ालतिल् मलाइ-कतु या मर्यमु इन्नल्लाहस्तफ़ाकि व तह्ह-रकि वस्तफ़ाकि अ़ला निसा-इल् आ़लमीन
और (याद करो) जब फरिश्तों ने मर्यम से कहाः हे मर्यम! तुझे अल्लाह ने चुन लिया तथा पवित्रता प्रदान की और संसार की स्त्रियों पर तुझे चुन लिया।
يَـٰمَرْيَمُ ٱقْنُتِى لِرَبِّكِ وَٱسْجُدِى وَٱرْكَعِى مَعَ ٱلرَّٰكِعِينَ
या मर्यमुक़्नुती लिरब्बिकि वस्जुदी वर्कई मअ़र्राकिईन
हे मर्यम! अपने पालनहार की आज्ञाकारी रहो, सज्दा करो तथा रुकूअ करने वालों के साथ रुकूअ करती रहो।
ذَٰلِكَ مِنْ أَنۢبَآءِ ٱلْغَيْبِ نُوحِيهِ إِلَيْكَ ۚ وَمَا كُنتَ لَدَيْهِمْ إِذْ يُلْقُونَ أَقْلَـٰمَهُمْ أَيُّهُمْ يَكْفُلُ مَرْيَمَ وَمَا كُنتَ لَدَيْهِمْ إِذْ يَخْتَصِمُونَ
ज़ालि-क मिन् अम्बा-इल् ग़ैबि नूहीहि इलै-क, व मा कुन्-त लदैहिम इज़् युल्क़ू-न अक़्ला-महुम् अय्युहुम् यक्फ़ुलु मर्य म, व मा कुन्-त लदैहिम् इज़् यख़्तसिमून
ये ग़ैब (परोक्ष) की सूचनायें हैं, जिन्हें हम आपकी ओर प्रकाशना कर रहे हैं और आप उनके पास उपस्थित नहीं थे, जब वे अपनी लेखनियाँ[1] फेंक रहे थे कि कौन मर्यम का अभिरक्षण करेगा और न उनके पास उपस्थित थे, जब वे झगड़ रहे थे।
إِذْ قَالَتِ ٱلْمَلَـٰٓئِكَةُ يَـٰمَرْيَمُ إِنَّ ٱللَّهَ يُبَشِّرُكِ بِكَلِمَةٍۢ مِّنْهُ ٱسْمُهُ ٱلْمَسِيحُ عِيسَى ٱبْنُ مَرْيَمَ وَجِيهًۭا فِى ٱلدُّنْيَا وَٱلْـَٔاخِرَةِ وَمِنَ ٱلْمُقَرَّبِينَ
इज़् क़ालतिल् मलाइ कतु या मर्यमु इन्नल्ला-ह युबश्शिरुकि बि-कलि-मतिम् मिन्हुस्मुहुल्- मसीहु ईसब्नु मर्य-म वजीहन् फ़िद्दुन्या वल्आख़ि-रति व मिनल् मुक़र्रबीन
जब फ़रिश्तों ने कहाः हे मर्यम! अल्लाह तुझे अपने एक शब्द[1] की शुभ सूचना दे रहा है, जिसका नाम मसीह़ ईसा पुत्र मर्यम होगा। वह लोक-प्रलोक में प्रमुख तथा (मेरे) समीपवर्तियों में होगा।
وَيُكَلِّمُ ٱلنَّاسَ فِى ٱلْمَهْدِ وَكَهْلًۭا وَمِنَ ٱلصَّـٰلِحِينَ
व युकल्लिमुन्ना-स फ़िल्मह्दि व कह् लंव्-व मिनस्सालिहीन
वह लोगों से गोद में तथा अधेड़ आयु में बातें करेगा और सदाचारियों में होगा।
قَالَتْ رَبِّ أَنَّىٰ يَكُونُ لِى وَلَدٌۭ وَلَمْ يَمْسَسْنِى بَشَرٌۭ ۖ قَالَ كَذَٰلِكِ ٱللَّهُ يَخْلُقُ مَا يَشَآءُ ۚ إِذَا قَضَىٰٓ أَمْرًۭا فَإِنَّمَا يَقُولُ لَهُۥ كُن فَيَكُونُ
क़ालत् रब्बि अन्ना यकूनु ली व-लदुंव्-व लम् यम्सस्नी ब-शरुन्, क़ा-ल कज़ालिकिल्लाहु यख़्लुक़ु मा यशा-उ, इज़ा कज़ा अम्रन् फ़-इन्नमा यक़ूलु लहू कुन् फ़-यकून
मर्यम ने (आश्चर्य से) कहाः मेरे पालनहार! मुझे पुत्र कहाँ से होगा, मुझे तो किसी पुरुष ने हाथ भी नहीं लगाया है? उसने[1] कहाः इसी प्रकार अल्लाह जो चाहता है, उत्पन्न कर देता है। जब वह किसी काम के करने का निर्णय कर लेता है, तो उसके लिए कहता है किः “हो जा”, तो वह हो जाता है।
وَيُعَلِّمُهُ ٱلْكِتَـٰبَ وَٱلْحِكْمَةَ وَٱلتَّوْرَىٰةَ وَٱلْإِنجِيلَ
व युअ़ल्लिमुहुल्-किता-ब वल्-हिक्म-त वत्तौरा-त वल्-इन्जील
और अल्लाह उसे पुस्तक तथा प्रबोध और तौरात तथा इंजील की शिक्षा देगा।
وَرَسُولًا إِلَىٰ بَنِىٓ إِسْرَٰٓءِيلَ أَنِّى قَدْ جِئْتُكُم بِـَٔايَةٍۢ مِّن رَّبِّكُمْ ۖ أَنِّىٓ أَخْلُقُ لَكُم مِّنَ ٱلطِّينِ كَهَيْـَٔةِ ٱلطَّيْرِ فَأَنفُخُ فِيهِ فَيَكُونُ طَيْرًۢا بِإِذْنِ ٱللَّهِ ۖ وَأُبْرِئُ ٱلْأَكْمَهَ وَٱلْأَبْرَصَ وَأُحْىِ ٱلْمَوْتَىٰ بِإِذْنِ ٱللَّهِ ۖ وَأُنَبِّئُكُم بِمَا تَأْكُلُونَ وَمَا تَدَّخِرُونَ فِى بُيُوتِكُمْ ۚ إِنَّ فِى ذَٰلِكَ لَـَٔايَةًۭ لَّكُمْ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ
व रसूलन् इला बनी इस्राई-ल, अन्नी क़द् जिअ्तुकुम् बिआ-यतिम् मिर्रब्बिकुम् अन्नी अख़्लुक़ु लकुम् मिनत्तीनि कहै-अतित्तैरि फ़-अन्फ़ुख़ु फ़ीहि फ़-यकूनु तैरम् बि-इज़्निल्लाहि, व उब्रिउल्-अक्म-ह वल्-अब्र-स व उह्यिल्मौता बि-इज़्निल्लाहि, व उनब्बिउकुम् बिमा तअ्कुलू-न व मा तद्दख़िरू-न, फ़ी बुयूतिकुम्, इन्-न फ़ी ज़ालि-क लआ-यतल्-लकुम् इन् कुन्तुम् मुअ्मिनीन
और फिर वह बनी इस्राईल का एक रसूल होगा (और कहेगाः) कि मैं तुम्हारे पालनहार की ओर से निशानी लाया हूँ। मैं तुम्हारे लिए मिट्टी से पक्षी के आकार के समान बनाऊँगा, फिर उसमें फूँक दूँगा, तो वह अल्लाह की अनुमति से पक्षी बन जायेगा और अल्लाह की अनुमति से जन्म से अंधे तथा कोढ़ी को स्वस्थ कर दूँगा और मुर्दों को जीवित कर दूँगा तथा जो कुछ तुम खाते तथा अपने घरों में संचित करते हो, उसे तुम्हें बता दूँगा। निःसंदेह, इसमें तुम्हारे लिए बड़ी निशानियाँ हैं, यदि तुम ईमान वाले हो।
وَمُصَدِّقًۭا لِّمَا بَيْنَ يَدَىَّ مِنَ ٱلتَّوْرَىٰةِ وَلِأُحِلَّ لَكُم بَعْضَ ٱلَّذِى حُرِّمَ عَلَيْكُمْ ۚ وَجِئْتُكُم بِـَٔايَةٍۢ مِّن رَّبِّكُمْ فَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ
व मुसद्दिक़ल्लिमा बै-न यदय्-य मिनत्तौराति व लि-उहिल्-ल लकुम् बअ्ज़ल्लज़ी हुर्रि-म अ़लैकुम् व जिअ्तुकुम् बिआ-यतिम् मिर्रब्बिकुम्, फ़त्तक़ुल्ला-ह व अतीअून
तथा मैं उसकी सिध्दि करने वाला हूँ, जो मुझसे पहले की है ‘तौरात’। तुम्हारे लिए कुछ चीज़ों को ह़लाला (वैध) करने वाला हूँ, जो तुमपर ह़राम (अवैध) की गयी हैं तथा मैं तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की निशानी लेकर आया हूँ। अतः तुम अल्लाह से डरो और मेरे आज्ञाकारी हो जाओ।
إِنَّ ٱللَّهَ رَبِّى وَرَبُّكُمْ فَٱعْبُدُوهُ ۗ هَـٰذَا صِرَٰطٌۭ مُّسْتَقِيمٌۭ
इन्नल्ला-ह रब्बी व रब्बुकुम् फ़अ्बुदूहु, हाज़ा सिरातुम् मुस्तक़ीम
वास्तव में, अल्लाह मेरा और तुम सबका पालनहार है। अतः उसी की इबादत (वंदना) करो। यही सीधी डगर है।
فَلَمَّآ اَحَسَّ عِيْسٰى مِنْهُمُ الْكُفْرَ قَالَ مَنْ اَنْصَارِيْٓ اِلَى اللّٰهِ ۗ قَالَ الْحَوَارِيُّوْنَ نَحْنُ اَنْصَارُ اللّٰهِ ۚ اٰمَنَّا بِاللّٰهِ ۚ وَاشْهَدْ بِاَنَّا مُسْلِمُوْنَ
फ़-लम्मा अ-हस्-स ईसा मिन्हुमुल् कुफ़्-र क़ा-ल मन् अन्सारी इलल्लाहि, क़ालल्-हवारिय्यू-न नह्नु अन्सारुल्लाहि आमन्ना बिल्लाहि वश्हद् बि-अन्ना मुस्लिमून
तथा जब ईसा ने उनसे कुफ़्र का संवेदन किया, तो कहाः अल्लाह के धर्म की सहायता में कौन मेरा साथ देगा? तो ह़वारियों (सहचरों) ने कहाः हम अल्लाह के सहायक हैं। हम अल्लाह पर ईमान लाये, तुम इसके साक्षी रहो कि हम मुस्लिम (आज्ञाकारी) हैं।
رَبَّنَآ ءَامَنَّا بِمَآ أَنزَلْتَ وَٱتَّبَعْنَا ٱلرَّسُولَ فَٱكْتُبْنَا مَعَ ٱلشَّـٰهِدِينَ
रब्बना आमन्ना बिमा अन्ज़ल्-त वत्त-बअ्नर्-रसू-ल फ़क्तुब्ना म- अ़श्शाहिदीन
हे हमारे पालनहार! जो कुछ तूने उतारा है, हम उसपर ईमान लाये तथा तेरे रसूल का अनुसरण किया, अतः हमें भी साक्षियों में अंकित कर ले।
وَمَكَرُوا۟ وَمَكَرَ ٱللَّهُ ۖ وَٱللَّهُ خَيْرُ ٱلْمَـٰكِرِينَ
व म-करू व म-करल्लाहु, वल्लाहु ख़ैरुल् माकिरीन
तथा उन्होंने षड्यंत्र[1] रचा और हमने भी योजना रची तथा अल्लाह योजना रचने वालों में सबसे अच्छा है।
إِذْ قَالَ ٱللَّهُ يَـٰعِيسَىٰٓ إِنِّى مُتَوَفِّيكَ وَرَافِعُكَ إِلَىَّ وَمُطَهِّرُكَ مِنَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ وَجَاعِلُ ٱلَّذِينَ ٱتَّبَعُوكَ فَوْقَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓا۟ إِلَىٰ يَوْمِ ٱلْقِيَـٰمَةِ ۖ ثُمَّ إِلَىَّ مَرْجِعُكُمْ فَأَحْكُمُ بَيْنَكُمْ فِيمَا كُنتُمْ فِيهِ تَخْتَلِفُونَ
इज़् क़ालल्लाहु या ईसा इन्नी मु-तवफ़्फ़ी-क व राफ़िअु-क इलय्-य व मुतह्हिरु-क मिनल्लज़ी-न क-फ़रू व जाअिलुल्लज़ीनत्-त-बऊ-क फ़ौक़ल्लज़ी-न क-फ़रू इला यौमिल्- क़ियामति, सुम् -म इलय्-य मर्जिअुकुम् फ़-अह्क़ुमु बैनकुम् फ़ीमा कुन्तुम् फ़ीहि तख़्तलिफ़ून
जब अल्लाह ने कहाः हे ईसा! मैं तुझे पूर्णतः लेने वाला तथा अपनी ओर उठाने वाला हूँ तथा तुझे काफ़िरों से पवित्र (मुक्त) करने वाला हूँ तथा तेरे अनुयायियों को प्रलय के दिन तक काफ़िरों के ऊपर[1] करने वाला हूँ। फिर तुम्हारा लौटना मेरी ही ओर है। तो मैं तुम्हारे बीच उस विषय में निर्णय कर दूँगा, जिसमें तुम विभेद कर रहे हो।
فَأَمَّا ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ فَأُعَذِّبُهُمْ عَذَابًۭا شَدِيدًۭا فِى ٱلدُّنْيَا وَٱلْـَٔاخِرَةِ وَمَا لَهُم مِّن نَّـٰصِرِينَ
फ़-अम्मल्लज़ी-न क-फ़रू फ़-उअ़ज़्ज़िबुहुम् अ़ज़ाबन् शदीदन् फ़िद्दुन्या वल्-आख़ि-रति, व मा लहुम् मिन्-नासिरीन
फिर जो काफ़िर हो गये, उन्हें लोक-प्रलोक में कड़ी यातना दूँगा तथा उनका कोई सहायक न होगा।
وَأَمَّا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ فَيُوَفِّيهِمْ أُجُورَهُمْ ۗ وَٱللَّهُ لَا يُحِبُّ ٱلظَّـٰلِمِينَ
व अम्मल्लज़ी-न आमनू व अ़मिलुस्सालिहाति फ़-युवफ़्फ़ीहिम् उजूरहुम्, वल्लाहु ला युहिब्बुज़्ज़ालिमीन
तथा जो ईमान लाये और सदाचार किये, तो उन्हें उनका भरपूर प्रतिफल दूँगा तथा अल्लाह अत्याचारियों से प्रेम नहीं करता।
ذَٰلِكَ نَتْلُوهُ عَلَيْكَ مِنَ ٱلْـَٔايَـٰتِ وَٱلذِّكْرِ ٱلْحَكِيمِ
ज़ालि-क नत्लूहु अ़लै-क मिनल्-आयाति वज़्ज़िक्रिल हकीम
(हे नबी!) ये हमारी आयतें और तत्वज्ञता की शिक्षा है, जो हम तुम्हें सुना रहे हैं।
إِنَّ مَثَلَ عِيسَىٰ عِندَ ٱللَّهِ كَمَثَلِ ءَادَمَ ۖ خَلَقَهُۥ مِن تُرَابٍۢ ثُمَّ قَالَ لَهُۥ كُن فَيَكُونُ
इन्-न म-स-ल ईसा अिन्दल्लाहि क-म-सलि आद-म, ख़-ल-क़हू मिन् तुराबिन् सुम्-म क़ा-ल लहू कुन् फ़-यकून
वस्तुतः अल्लाह के पास ईसा की मिसाल ऐसी ही है[1], जैसे आदम की। उसे (अर्थात, आदम को) मिट्टी से उत्पन्न किया, फिर उससे कहाः “हो जा” तो वह हो गया।
ٱلْحَقُّ مِن رَّبِّكَ فَلَا تَكُن مِّنَ ٱلْمُمْتَرِينَ
अल्-हक़्क़ु मिर्रब्बि-क फ़ला तकुम् मिनल्-मुम्तरीन
ये आपके पालनहार की ओर से सत्य[1] है, अतः आप संदेह करने वालों में न हों।
فَمَنْ حَآجَّكَ فِيهِ مِنۢ بَعْدِ مَا جَآءَكَ مِنَ ٱلْعِلْمِ فَقُلْ تَعَالَوْا۟ نَدْعُ أَبْنَآءَنَا وَأَبْنَآءَكُمْ وَنِسَآءَنَا وَنِسَآءَكُمْ وَأَنفُسَنَا وَأَنفُسَكُمْ ثُمَّ نَبْتَهِلْ فَنَجْعَل لَّعْنَتَ ٱللَّهِ عَلَى ٱلْكَـٰذِبِينَ
फ़-मन् हाज्ज-क फ़ीहि मिम्-बअ्दि मा जाअ-क मिनल् अिल्मि फ़क़ुल् तआ़लौ नद्अु अब्ना-अना व अब्ना-अकुम् व निसा-अना व निसा-अकुम् व अन्फ़ु-सना व अन्फ़ु-सक़ुम्, सुम्-म नब्तहिल् फ़-नज्अ़ल्-लअ्-नतल्लाहि अ़लल्काज़िबीन
फिर आपके पास ज्ञान आ जाने के पश्चात् कोई आपसे ईसा के विषय में विवाद करे, तो कहो कि आओ, हम अपने पुत्रों तथा तुम्हारे पुत्रों और अपनी स्त्रियों तथा तुम्हारी स्त्रियों को बुलाते हैं और स्वयं को भी, फिर अल्लाह से सविनय प्रार्थना करें कि अल्लाह की धिक्कार मिथ्यावादियों पर[1] हो।
إِنَّ هَـٰذَا لَهُوَ ٱلْقَصَصُ ٱلْحَقُّ ۚ وَمَا مِنْ إِلَـٰهٍ إِلَّا ٱللَّهُ ۚ وَإِنَّ ٱللَّهَ لَهُوَ ٱلْعَزِيزُ ٱلْحَكِيمُ
इन्-न हाज़ा लहुवल् क़-ससुल्-हक़्क़ु, व मा मिन् इलाहिन् इल्लल्लाहु, व इन्नल्ला-ह ल-हुवल्-अ़ज़ीज़ुल हकीम
वास्तव में, यही सत्य वर्णन है तथा अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं। निश्चय अल्लाह ही प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ है।
فَإِن تَوَلَّوْا۟ فَإِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمٌۢ بِٱلْمُفْسِدِينَ
फ़-इन् तवल्लौ फ़-इन्नल्ला-ह अ़लीमुम् बिल्मुफ़्सिदीन
फिर भी यदि वे मुँह[1] फेरें, तो निःसंदेह अल्लाह उपद्रवियों को भली-भाँति जानता है।
قُلْ يَـٰٓأَهْلَ ٱلْكِتَـٰبِ تَعَالَوْا۟ إِلَىٰ كَلِمَةٍۢ سَوَآءٍۭ بَيْنَنَا وَبَيْنَكُمْ أَلَّا نَعْبُدَ إِلَّا ٱللَّهَ وَلَا نُشْرِكَ بِهِۦ شَيْـًۭٔا وَلَا يَتَّخِذَ بَعْضُنَا بَعْضًا أَرْبَابًۭا مِّن دُونِ ٱللَّهِ ۚ فَإِن تَوَلَّوْا۟ فَقُولُوا۟ ٱشْهَدُوا۟ بِأَنَّا مُسْلِمُونَ
कुल् या अह्-लल्-किताबि तआ़लौ इला कलि- मतिन् सवा-इम् बैनना व बैनकुम् अल्ला नअ्बु-द इल्लल्ला-ह व ला नुश्रि-क बिही शैअंव्-व ला यत्तख़ि-ज़ बअ्ज़ुना बअ्ज़न् अर्बाबम् मिन् दूनिल्लाहि, फ़-इन् तवल्लौ फ़-क़ूलुश्-हदू बिअन्ना मुस्लिमून
(हे नबी!) कहो कि हे अह्ले किताब! एक ऐसी बात की ओर आ जाओ, जो हमारे तथा तुम्हारे बीच समान रूप से मान्य है कि अल्लाह के सिवा किसी की इबादत (वंदना) न करें और किसी को उसका साझी न बनायें तथा हममें से कोई एक-दूसरे को अल्लाह के सिवा पालनहार न बनाये। फिर यदि वे विमुख हों, तो आप कह दें कि तुम साक्षी रहो कि हम (अल्लाह के)[1] आज्ञाकारी हैं।
يَـٰٓأَهْلَ ٱلْكِتَـٰبِ لِمَ تُحَآجُّونَ فِىٓ إِبْرَٰهِيمَ وَمَآ أُنزِلَتِ ٱلتَّوْرَىٰةُ وَٱلْإِنجِيلُ إِلَّا مِنۢ بَعْدِهِۦٓ ۚ أَفَلَا تَعْقِلُونَ
या अह्-लल्-किताबि लि-म तुहाज्जू-न फ़ी इब्राही-म व मा उन्ज़ि-लतित्तौरातु वल्-इन्जीलु इल्ला मिम्-बअ्दिही, अ-फ़ला तअ्क़िलून
हे अह्ले किताब! तुम इब्राहीम के बारे में विवाद[1] क्यों करते हो, जबकि तौरात तथा इंजील इब्राहीम के पश्चात् उतारी गई हैं? क्या तुम समझ नहीं रखते?
هَـٰٓأَنتُمْ هَـٰٓؤُلَآءِ حَـٰجَجْتُمْ فِيمَا لَكُم بِهِۦ عِلْمٌۭ فَلِمَ تُحَآجُّونَ فِيمَا لَيْسَ لَكُم بِهِۦ عِلْمٌۭ ۚ وَٱللَّهُ يَعْلَمُ وَأَنتُمْ لَا تَعْلَمُونَ
हा-अन्तुम् हा-उला-इ हाजज्तुम् फ़ीमा लकुम् बिही अिल्मुन् फ़लि-म तुहाज्जू-न फ़ी मा लै-स लकुम् बिही अिल्मुन्, वल्लाहु यअ्लमु व अन्तुम् ला तअ्लमून
और फिर तुम्हीं ने उस विषय में विवाद किया, जिसका तुम्हें कुछ ज्ञान[1] था, तो उस विषय में क्यों विवाद कर रहे हो, जिसका तुम्हें कोई ज्ञान[2] नहीं था? तथा अल्लाह जानता है और तुम नहीं जानते।
مَا كَانَ إِبْرَٰهِيمُ يَهُودِيًّۭا وَلَا نَصْرَانِيًّۭا وَلَـٰكِن كَانَ حَنِيفًۭا مُّسْلِمًۭا وَمَا كَانَ مِنَ ٱلْمُشْرِكِينَ
मा का-न इब्राहीमु यहूदिय्यंव्-व ला नस्रानिय्यंव्-व लाकिन् का-न हनीफ़म् मुस्लिमन्, व मा का-न मिनल् मुश्रिकीन
इब्राहीम न यहूदी था, न नस्रानी (ईसाई)। परन्तु वह एकेश्वरवादी, मुस्लिम ‘आज्ञाकारी’ था तथा वह मिश्रणवादियों में से नहीं था।
إِنَّ أَوْلَى ٱلنَّاسِ بِإِبْرَٰهِيمَ لَلَّذِينَ ٱتَّبَعُوهُ وَهَـٰذَا ٱلنَّبِىُّ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ ۗ وَٱللَّهُ وَلِىُّ ٱلْمُؤْمِنِينَ
इन्-न औलन्नासि बि-इब्राही-म लल्लज़ीनत्त-बअूहु व हाज़न्नबिय्यु वल्लज़ी-न आमनू, वल्लाहु वलिय्युल् मुअ्मिनीन
वास्तव में, इब्राहीम से सबसे अधिक समीप तो वह लोग हैं, जिन्होंने उसका अनुसरण किया तथा ये नबी[1] और जो ईमान लाये और अल्लाह ईमान वालों का संरक्षकभमित्र है।
وَدَّت طَّآئِفَةٌۭ مِّنْ أَهْلِ ٱلْكِتَـٰبِ لَوْ يُضِلُّونَكُمْ وَمَا يُضِلُّونَ إِلَّآ أَنفُسَهُمْ وَمَا يَشْعُرُونَ
वद्दत्ताइ-फ़तुम् मिन् अह्-लिल्-किताबि लौ युज़िल्लू-नकुम, व मा युज़िल्लू-न इल्ला अन्फ़ु-सहुम् व मा यश्अुरून
अहले किताब में से एक गिरोह की कामना है कि तुम्हें कुपथ कर दे। जबकि वे स्वयं को कुपथ कर रहे हैं, परन्तु वे समझते नहीं हैं।
يَـٰٓأَهْلَ ٱلْكِتَـٰبِ لِمَ تَكْفُرُونَ بِـَٔايَـٰتِ ٱللَّهِ وَأَنتُمْ تَشْهَدُونَ
या अह्-लल्-किताबि लि-म तक़्फ़ुरू-न बिआयातिल्लाहि व अन्तुम् तश्हदून
हे अहले किताब! तुम अल्लाह की आयतों[1] के साथ कुफ़्र क्यों कर रहे हो, जबकि तुम साक्षी[2] हो?
يَـٰٓأَهْلَ ٱلْكِتَـٰبِ لِمَ تَلْبِسُونَ ٱلْحَقَّ بِٱلْبَـٰطِلِ وَتَكْتُمُونَ ٱلْحَقَّ وَأَنتُمْ تَعْلَمُونَ
या अह्-लल्-किताबि लि-म तल्बिसूनल् हक़्-क़ बिल्- बातिलि व तक्तुमूनल्-हक़्-क़ व अन्तुम् तअ्लमून
हे अहले किताब! क्यों सत्य को असत्य के साथ मिलाकर संदिग्ध कर देते हो और सत्य को छुपाते हो, जबकि तुम जानते हो?
وَقَالَت طَّآئِفَةٌۭ مِّنْ أَهْلِ ٱلْكِتَـٰبِ ءَامِنُوا۟ بِٱلَّذِىٓ أُنزِلَ عَلَى ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَجْهَ ٱلنَّهَارِ وَٱكْفُرُوٓا۟ ءَاخِرَهُۥ لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُونَ
व क़ालत्ताइ-फ़तुम् मिन् अह्-लिल्-किताबि आमिनू बिल्लज़ी उन्ज़ि-ल अ़लल्लज़ी-न आमनू वज्हन्नहारि वक्फ़ुरू आख़ि-रहू लअ़ल्लहुम् यर्जिअून
अहले किताब के एक समुदाय ने कहा कि दिन के आरंभ में उसपर ईमान ले आओ, जो ईमान वालों पर उतारा गया है और उसके अन्त (अर्थातः संध्या-समय) कुफ़्र कर दो, संभवतः वे फिर[1] जायें।
وَلَا تُؤْمِنُوٓا۟ إِلَّا لِمَن تَبِعَ دِينَكُمْ قُلْ إِنَّ ٱلْهُدَىٰ هُدَى ٱللَّهِ أَن يُؤْتَىٰٓ أَحَدٌۭ مِّثْلَ مَآ أُوتِيتُمْ أَوْ يُحَآجُّوكُمْ عِندَ رَبِّكُمْ ۗ قُلْ إِنَّ ٱلْفَضْلَ بِيَدِ ٱللَّهِ يُؤْتِيهِ مَن يَشَآءُ ۗ وَٱللَّهُ وَٰسِعٌ عَلِيمٌۭ
व ला तुअ्मिनू इल्ला लिमन् तबि-अ़ दीनकुम, क़ुल् इन्नल्हुदा हुदल्लाहि, अंय्युअ्ता अ-हदुम् मिस्-ल मा ऊतीतुम् औ युहाज्जूकुम् अिन्- द रब्बिकुम्, क़ुल् इन्नल् फ़ज़्-ल बि-यदिल्लाहि, युअ्तीहि मंय्यशा-उ, वल्लाहु वासिअुन् अ़लीम
और केवल उसी की मानो, जो तुम्हारे (धर्म) का अनुसरण करे। (हे नबी!) कह दो कि मार्गदर्शन तो वही है, जो अल्लाह का मार्गदर्शन है। (और ये भी न मानो कि) जो (धर्म) तुम्हें दिया गया है, वैसा किसी और को दिया जायेगा अथवा वे तुमसे तुम्हारे पालनहार के पास विवाद कर सकेंगे। आप कह दें कि प्रदान अल्लाह के हाथ में है, वह जिसे चाहे, देता है और अल्लाह विशाल ज्ञानी है।
يَخْتَصُّ بِرَحْمَتِهِۦ مَن يَشَآءُ ۗ وَٱللَّهُ ذُو ٱلْفَضْلِ ٱلْعَظِيمِ
यख़्तस्सु बिरह्-मतिही मंय्यशा-उ, वल्लाहु ज़ुल्फ़ज़्लिल् अ़ज़ीम
वह जिसे चाहे, अपनी दया के साथ विशेष कर देता है तथा अल्लाह बड़ा दानशील है।
وَمِنْ اَهْلِ الْكِتٰبِ مَنْ اِنْ تَأْمَنْهُ بِقِنْطَارٍ يُّؤَدِّهٖٓ اِلَيْكَۚ وَمِنْهُمْ مَّنْ اِنْ تَأْمَنْهُ بِدِيْنَارٍ لَّا يُؤَدِّهٖٓ اِلَيْكَ اِلَّا مَا دُمْتَ عَلَيْهِ قَاۤىِٕمًا ۗ ذٰلِكَ بِاَنَّهُمْ قَالُوْا لَيْسَ عَلَيْنَا فِى الْاُمِّيّٖنَ سَبِيْلٌۚ وَيَقُوْلُوْنَ عَلَى اللّٰهِ الْكَذِبَ وَهُمْ يَعْلَمُوْنَ
व मिन् अह्-लिल्-किताबि मन् इन् तअ्मन्हु बिक़िन्तारिंय्युअद्दिही इलै-क, व मिन्हुम् मन् इन् तअ्मन्हु बिदीनारिल् ला युअद्दिही इलै-क इल्ला मा दुम्-त अ़लैहि क़ा इमन्, ज़ालि-क बि-अन्नहुम् क़ालू लै-स अ़लैना फ़िल्उम्मिय्यी-न सबीलुन्, व यक़ूलू-न अ़लल्लाहिल्-कज़ि-ब व हुम् यअ्लमून
तथा अह्ले किताब में से वो भी है, जिसके पास चाँदी-सोने का ढेर धरोहर रख दो, तो उसे तुम्हें चुका देगा तथा उनमें वो भी है, जिसके पास एक दीनार[1] भी धरोहर रख दो, तो तुम्हें नहीं चुकायेगा, परन्तु जब सदा उसके सिर पर सवार रहो। ये (बात) इसलिए है कि उन्होंने कहा कि उम्मियों के बारे में हमपर कोई दोष[2] नहीं तथा अल्लाह पर जानते हुए झूठ बोलते हैं।
بَلَىٰ مَنْ أَوْفَىٰ بِعَهْدِهِۦ وَٱتَّقَىٰ فَإِنَّ ٱللَّهَ يُحِبُّ ٱلْمُتَّقِينَ
बला मन् औफ़ा बि-अ़ह्दिही वत्तक़ा फ़-इन्नल्ला-ह युहिब्बुल् मुत्तक़ीन
क्यों नहीं, जिसने अपना वचन पूरा किया और (अल्लाह से) डरा, तो वास्तव में अल्लाह डरने वालों से प्रेम करता है।
إِنَّ ٱلَّذِينَ يَشْتَرُونَ بِعَهْدِ ٱللَّهِ وَأَيْمَـٰنِهِمْ ثَمَنًۭا قَلِيلًا أُو۟لَـٰٓئِكَ لَا خَلَـٰقَ لَهُمْ فِى ٱلْـَٔاخِرَةِ وَلَا يُكَلِّمُهُمُ ٱللَّهُ وَلَا يَنظُرُ إِلَيْهِمْ يَوْمَ ٱلْقِيَـٰمَةِ وَلَا يُزَكِّيهِمْ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌۭ
इन्नल्लज़ी-न यश्तरू-न बि-अह्दिल्लाहि व ऐमानिहिम् स-मनन् कलीलन् उलाइ-क ला ख़ला-क़ लहुम् फिल्-आख़ि-रति व ला युकल्लिमुहुमुल्लाहु व ला यन्ज़ुरु इलैहिम् यौमल्-क़ियामति व ला युज़क्कीहिम्, व लहुम् अ़ज़ाबुन् अलीम
निःसंदेह जो अल्लाह के[1] वचन तथा अपनी शपथों के बदले तनिक मूल्य खरीदते हैं, उन्हीं का आख़िरत (परलोक) में कोई भाग नहीं, न प्रलय के दिन अल्लाह उनसे बात करेगा और न उनकी ओर देखेगा और न उन्हें पवित्र करेगा तथा उन्हीं के लिए दुःखदायी यातना है।
وَإِنَّ مِنْهُمْ لَفَرِيقًۭا يَلْوُۥنَ أَلْسِنَتَهُم بِٱلْكِتَـٰبِ لِتَحْسَبُوهُ مِنَ ٱلْكِتَـٰبِ وَمَا هُوَ مِنَ ٱلْكِتَـٰبِ وَيَقُولُونَ هُوَ مِنْ عِندِ ٱللَّهِ وَمَا هُوَ مِنْ عِندِ ٱللَّهِ وَيَقُولُونَ عَلَى ٱللَّهِ ٱلْكَذِبَ وَهُمْ يَعْلَمُونَ
व इन्-न मिन्हुम् ल-फ़रीकंय्यल्वू-न अल्सि-न-तहुम् बिल्किताबि लि-तह्सबूहु मिनल्-किताबि व मा हु-व मिनल्-किताबि, व यक़ूलू-न हु-व मिन् अिन्दिल्लाहि व मा हु-व मिन् अिन्दिल्लाहि, व यक़ूलू-न अ़लल्लाहिल्- कज़ि-ब व हुम् यअ्लमून
और बेशक उनमें से एक गिरोह[1] ऐसा है, जो अपनी ज़बानों को किताब पढ़ते समय मरोड़ते हैं, ताकि तुम उसे पुस्तक में से समझो, जबकि वह पुस्तक में से नहीं है और कहते हैं कि वह अल्लाह के पास से है, जबकि वह अल्लाह के पास से नहीं है और अल्लाह पर जानते हुए झूठ बोलते हैं।
مَا كَانَ لِبَشَرٍ أَن يُؤْتِيَهُ ٱللَّهُ ٱلْكِتَـٰبَ وَٱلْحُكْمَ وَٱلنُّبُوَّةَ ثُمَّ يَقُولَ لِلنَّاسِ كُونُوا۟ عِبَادًۭا لِّى مِن دُونِ ٱللَّهِ وَلَـٰكِن كُونُوا۟ رَبَّـٰنِيِّـۧنَ بِمَا كُنتُمْ تُعَلِّمُونَ ٱلْكِتَـٰبَ وَبِمَا كُنتُمْ تَدْرُسُونَ
मा का-न लि-ब-शरिन् अंय्युअ्ति-यहुल्लाहुल् किता-ब वल्हुक्-म वन्नुबुव्व-त सुम्- म यक़ू-ल लिन्नासि कूनू अिबादल्ली मिनू दूनिल्लाहि व लाकिन् कूनू रब्बानिय्यी-न बिमा कुन्तुम् तुअ़ल्लिमूनल्-किता-ब व बिमा कुन्तुम् तद्-रूसून
किसी पुरुष जिसे अल्लाह ने पुस्तक, निर्णय शक्ति और नुबुव्वत दी हो, उसके लिए योग्य नहीं कि लोगों से कहे कि अल्लाह को छोड़कर मेरे दास बन जाओ[1], अपितु (वह तो यही कहेगा कि) तुम अल्लाह वाले बन जाओ। इस कारण कि तुम पुस्तक की शिक्षा देते हो तथा इस कारण कि उसका अध्ययन स्वयं भी करते रहते हो।
وَلَا يَأْمُرَكُمْ أَن تَتَّخِذُوا۟ ٱلْمَلَـٰٓئِكَةَ وَٱلنَّبِيِّـۧنَ أَرْبَابًا ۗ أَيَأْمُرُكُم بِٱلْكُفْرِ بَعْدَ إِذْ أَنتُم مُّسْلِمُونَ
व ला यअ्मु-रकुम् अन् तत्तख़िज़ुल्-मलाइ-क-त वन्नबिय्यी-न अर्बाबन्, अ-यअ्मुरुकुम् बिल्कुफ़्रि बअ्-द इज़् अन्तुम् मुस्लिमून
तथा वह तुम्हें कभी आदेश नहीं देगा कि फ़रिश्तों तथा नबियों को अपना पालनहार[1] (पूज्य) बना लो। क्या तुम्हें कुफ़्र करने का आदेश देगा, जबकि तुम अल्लाह के आज्ञाकारी हो?
وَإِذْ أَخَذَ ٱللَّهُ مِيثَـٰقَ ٱلنَّبِيِّـۧنَ لَمَآ ءَاتَيْتُكُم مِّن كِتَـٰبٍۢ وَحِكْمَةٍۢ ثُمَّ جَآءَكُمْ رَسُولٌۭ مُّصَدِّقٌۭ لِّمَا مَعَكُمْ لَتُؤْمِنُنَّ بِهِۦ وَلَتَنصُرُنَّهُۥ ۚ قَالَ ءَأَقْرَرْتُمْ وَأَخَذْتُمْ عَلَىٰ ذَٰلِكُمْ إِصْرِى ۖ قَالُوٓا۟ أَقْرَرْنَا ۚ قَالَ فَٱشْهَدُوا۟ وَأَنَا۠ مَعَكُم مِّنَ ٱلشَّـٰهِدِينَ
व इज़् अ-ख़ज़ल्लाहु मीसाक़न्-नबिय्यी-न लमा आतैतुकुम् मिन् किताबिंव्-व हिक्मतिन् सुम्- म जा-अकुम् रसूलुम् मुसद्दिक़ुल्लिमा म अ़कुम् लतुअ्मिनुन्-न बिही व ल-तन्सुरुन्नहू, क़ा-ल अ- अक़्रर्तुम् व अ-ख़ज़्तुम् अ़ला ज़ालिकुम् इस्री, क़ालू अक़्रर्ना, क़ा-ल फ़श्हदू व अ-ना म-अ़कुम् मिनश्शाहिदीन
तथा (याद करो) जब अल्लाह ने नबियों से वचन लिया कि जबभी मैं तुम्हें कोई पुस्तक और प्रबोध (तत्वदर्शिता) दूँ, फिर तुम्हारे पास कोई रसूल उसे प्रमाणित करते हुए आये, जो तुम्हारे पास है, तो तुम अवश्य उसपर ईमान लाना और उसका समर्थन करना। (अल्लाह) ने कहाः क्या तुमने स्वीकार किया और इसपर मेरे वचन का भार उठाया? तो सबने कहाः हमने स्वीकार कर लिया। अल्लाह ने कहाः तुम साक्षी रहो और मैं भी तुम्हारे[1] साथ साक्षियों में से हूँ।
فَمَن تَوَلَّىٰ بَعْدَ ذَٰلِكَ فَأُو۟لَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلْفَـٰسِقُونَ
फ़-मन् तवल्ला बअ्-द ज़ालि-क फ़-उलाइ-क हुमुल् फ़ासिक़ून
फिर जिसने इसके[1] पश्चात् मुँह फेर लिया, तो वही अवज्ञाकारी है।
أَفَغَيْرَ دِينِ ٱللَّهِ يَبْغُونَ وَلَهُۥٓ أَسْلَمَ مَن فِى ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ طَوْعًۭا وَكَرْهًۭا وَإِلَيْهِ يُرْجَعُونَ
अ-फ़ग़इ-र दीनिल्लाहि यब़्ग़ू-न व लहू अस्ल-म मन् फ़िस्समावाति वल्अर्ज़ि तौअ़ंव्-व कर्-हंव्-व इलैहि युर्जअून
तो क्या वे अल्लाह के धर्म (इस्लाम) के सिवा (कोई दूसरा धर्म) खोज रहे हैं? जबकि जो आकाशों तथा धरती में है, स्वेच्छा तथा अनिच्छा उसी के आज्ञाकारी[1] हैं तथा सब उसी की ओर फेरे[2] जायेंगे।
قُلْ ءَامَنَّا بِٱللَّهِ وَمَآ أُنزِلَ عَلَيْنَا وَمَآ أُنزِلَ عَلَىٰٓ إِبْرَٰهِيمَ وَإِسْمَـٰعِيلَ وَإِسْحَـٰقَ وَيَعْقُوبَ وَٱلْأَسْبَاطِ وَمَآ أُوتِىَ مُوسَىٰ وَعِيسَىٰ وَٱلنَّبِيُّونَ مِن رَّبِّهِمْ لَا نُفَرِّقُ بَيْنَ أَحَدٍۢ مِّنْهُمْ وَنَحْنُ لَهُۥ مُسْلِمُونَ
क़ुल् आमन्ना बिल्लाहि व मा उन्ज़ि-ल अ़लैना व मा उन्ज़ि-ल अ़ला इब्राही-म व इस्माई-ल व इस्हा-क़ व यअ्क़ू-ब वल्अस्बाति व मा ऊति-य मूसा व ईसा वन्नबिय्यू-न मिर्रब्बिहिम्, ला नुफ़र्रिक़ु बइ-न अ-हदिम् मिन्हुम्, व नह्नु लहू मुस्लिमून
(हे नबी!) आप कहें कि हम अल्लाह पर तथा जो हमपर उतारा गया और जो इब्राहीम, इस्माईल, इस्ह़ाक़, याक़ूब एवं (उनकी) संतानों पर उतारा गया तथा जो मूसा, ईसा तथा अन्य नबियों को उनके पालनहार की ओर से प्रदान किया गया है, (उनपर) ईमान लाये। हम उन (नबियों) में किसी के बीच कोई अंतर नहीं[1] करते और हम उसी (अल्लाह) के आज्ञाकारी हैं।
وَمَن يَبْتَغِ غَيْرَ ٱلْإِسْلَـٰمِ دِينًۭا فَلَن يُقْبَلَ مِنْهُ وَهُوَ فِى ٱلْـَٔاخِرَةِ مِنَ ٱلْخَـٰسِرِينَ
व मंय्यब्तग़ि ग़ैरल्-इस्लामि दीनन् फ़-लंय्युक़्ब-ल मिन्हु, व हु-व फ़िल्-आख़ि-रति मिनल् ख़ासिरीन
और जो भी इस्लाम के सिवा (किसी और धर्म) को चाहेगा, तो उसे उससे कदापि स्वीकार नहीं किया जायेगा और वे प्रलोक में क्षतिग्रस्तों में होगा।
كَيْفَ يَهْدِى ٱللَّهُ قَوْمًۭا كَفَرُوا۟ بَعْدَ إِيمَـٰنِهِمْ وَشَهِدُوٓا۟ أَنَّ ٱلرَّسُولَ حَقٌّۭ وَجَآءَهُمُ ٱلْبَيِّنَـٰتُ ۚ وَٱللَّهُ لَا يَهْدِى ٱلْقَوْمَ ٱلظَّـٰلِمِينَ
कै-फ़ यह्दिल्लाहु क़ौमन् क-फ़रू बअ्-द ईमानिहिम् व शहिदू अन्नर्रसू-ल हक्कुंव्-व जा-अहुमुल्बय्यिनातु, वल्लाहु ला यह्दिल् क़ौमज़्ज़ालिमीन
अल्लाह ऐसी जाति को कैसे मार्गदर्शन देगा, जो अपने ईमान के पश्चात् काफ़िर हो गये और साक्षी रहे कि ये रसूल सत्य हैं तथा उनके पास खुले तर्क आ गये? और अल्लाह अत्याचारियों को मार्गदर्शन नहीं देता।
أُو۟لَـٰٓئِكَ جَزَآؤُهُمْ أَنَّ عَلَيْهِمْ لَعْنَةَ ٱللَّهِ وَٱلْمَلَـٰٓئِكَةِ وَٱلنَّاسِ أَجْمَعِينَ
उलाइ-क जज़ाउहुम् अन्-न अ़लैहिम् लअ्-नतल्लाहि वल्मलाइ-कति वन्नासि अज्मईन
इन्हीं का प्रतिकार (बदला) ये है कि उनपर अल्लाह तथा फ़रिश्तों और सब लोगों की धिक्कार होगी।
خَـٰلِدِينَ فِيهَا لَا يُخَفَّفُ عَنْهُمُ ٱلْعَذَابُ وَلَا هُمْ يُنظَرُونَ
ख़ालिदी-न फ़ीहा ला युख़फ़्फ़फ़ु अ़न्हुमुल्-अ़ज़ाबु व ला हुम् युन्ज़रून
वे उसमें सदावासी होंगे, उनसे यातना कम नहीं की जायेगी और न उन्हें अवकाश दिया जायेगा।
إِلَّا ٱلَّذِينَ تَابُوا۟ مِنۢ بَعْدِ ذَٰلِكَ وَأَصْلَحُوا۟ فَإِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٌۭ رَّحِيمٌ
इल्लल्लज़ी-न ताबू मिम्- बअ्दि ज़ालि-क व अस्लहू फ़-इन्नल्ला-ह ग़फ़ूरुर्रहीम
परन्तु जिन्होंने इसके पश्चात् तौबा (क्षमा याचना) कर ली तथा सुधार कर लिया, तो निश्चय अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है।
إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ بَعْدَ إِيمَـٰنِهِمْ ثُمَّ ٱزْدَادُوا۟ كُفْرًۭا لَّن تُقْبَلَ تَوْبَتُهُمْ وَأُو۟لَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلضَّآلُّونَ
इन्नल्लज़ी-न क-फ़रू बअ्-द ईमानिहिम् सुम्मज़्दादू कुफ़्रल्-लन् तुक़्ब-ल तौबतुहुम् व उलाइ-क हुमुज़्ज़ाल्लून
वास्तव में, जो अपने ईमान लाने के पश्चात् काफ़िर हो गये, फिर कुफ़्र में बढ़ते गये, तो उनकी तौबा (क्षमा याचना) कदापि[1] स्वीकार नहीं की जायेगी तथा वही कुपथ हैं।
إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ وَمَاتُوا۟ وَهُمْ كُفَّارٌۭ فَلَن يُقْبَلَ مِنْ أَحَدِهِم مِّلْءُ ٱلْأَرْضِ ذَهَبًۭا وَلَوِ ٱفْتَدَىٰ بِهِۦٓ ۗ أُو۟لَـٰٓئِكَ لَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌۭ وَمَا لَهُم مِّن نَّـٰصِرِينَ
इन्नल्लज़ी-न क-फ़रू व मातू व हुम् कुफ़्फ़ारुन् फ-लंय्युक़्ब -ल मिन् अ-हदिहिम् मिल्उल्-अर्ज़ि ज़-हबंव्-व लविफ़्तदा बिही, उलाइ-क लहुम् अ़ज़ाबुन् अलीमुंव्-व मा लहुम् मिन्नासिरीन
निश्चय जो काफ़िर हो गये तथा काफ़िर रहते हुए मर गये, तो उनसे धरती भर सोना भी स्वीकार नहीं किया जायेगा, यद्यपि उसके द्वारा अर्थदणड दे। उन्हीं के लिए दुःखदायी यातना है और उनका कोई सहायक न होगा।
لَن تَنَالُوا۟ ٱلْبِرَّ حَتَّىٰ تُنفِقُوا۟ مِمَّا تُحِبُّونَ ۚ وَمَا تُنفِقُوا۟ مِن شَىْءٍۢ فَإِنَّ ٱللَّهَ بِهِۦ عَلِيمٌۭ
लन् तनालुल्बिर्-र हत्ता तुन्फ़िक़ू मिम्मा तुहिब्बू-न, व मा तुन्फ़िक़ू मिन् शैइन् फ़-इन्नल्ला-ह बिही अ़लीम
तुम पुण्य[1] नहीं पा सकोगे, जब तक उसमें से दान न करो, जिससे मोह रखते हो तथा तुम जो भी दान करोगे, वास्तव में, अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है।
كُلُّ الطَّعَامِ كَانَ حِلًّا لِّبَنِيْٓ اِسْرَاۤءِيْلَ اِلَّا مَا حَرَّمَ اِسْرَاۤءِيْلُ عَلٰى نَفْسِهٖ مِنْ قَبْلِ اَنْ تُنَزَّلَ التَّوْرٰىةُ ۗ قُلْ فَأْتُوْا بِالتَّوْرٰىةِ فَاتْلُوْهَآ اِنْ كُنْتُمْ صٰدِقِيْنَ
कुल्लुत्तआ़मि का-न हिल्लल् लि-बनी इस्राई-ल इल्ला मा हर्र-म इस्राईलु अ़ला नफ़्सिही मिन् क़ब्लि अन् तुनज़्ज़लत्तौरातु, क़ुल् फ़अ्तू बित्तौराति फ़त्लूहा इन् कुन्तुम् सादिक़ीन
प्रत्येक खाद्य पदार्थ बनी इस्राईल[1] के लिए ह़लाल (वैध) थे, परन्तु जिसे इस्राईल ने अपने ऊपर ह़राम (अवैध) कर लिया, इससे पहले कि तौरात उतारी जाये। (हे नबी!) कहो कि तौरात लाओ तथा उसे पढ़ो, यदि तुम सत्यवादि हो।
فَمَنِ ٱفْتَرَىٰ عَلَى ٱللَّهِ ٱلْكَذِبَ مِنۢ بَعْدِ ذَٰلِكَ فَأُو۟لَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلظَّـٰلِمُونَ
फ़-मनिफ़्तरा अलल्लाहिल् कज़ि-ब मिम्-बअ्दि ज़ालि-क फ़-उलाइ-क हुमुज़्ज़ालिमून
फिर इसके पश्चात् जो अल्लाह पर मिथ्या आरोप लगायें, तो वही वास्तव, में अत्याचारी हैं।
قُلْ صَدَقَ ٱللَّهُ ۗ فَٱتَّبِعُوا۟ مِلَّةَ إِبْرَٰهِيمَ حَنِيفًۭا وَمَا كَانَ مِنَ ٱلْمُشْرِكِينَ
क़ुल् स-दक़ल्लाहु फ़त्तबिअू मिल्ल-त इब्राही-म हनीफ़न्, व मा का-न मिनल् मुश्रिकीन
उनसे कह दो, अललाह सच्चा है, इसलिए तुम एकेश्वरवादी इब्राहीम के धर्म पर चलो तथा वह मिश्रणवादियों में से नहीं था।
إِنَّ أَوَّلَ بَيْتٍۢ وُضِعَ لِلنَّاسِ لَلَّذِى بِبَكَّةَ مُبَارَكًۭا وَهُدًۭى لِّلْعَـٰلَمِينَ
इन्-न अव्व-ल बैतिंव्वुज़ि-अ़ लिन्नासि लल्लज़ी बि-बक्क-त मुबा-रकव्ं-व हुदल्- लिल्आ़लमीन
निःसंदेह पहला घर, जो मानव के लिए (अल्लाह की वंदना का केंद्र) बनाया गया, वह वही है, जो मक्का में है, जो शुभ तथा संसार वासियों के लिए मार्गदर्शन है।
فِيهِ ءَايَـٰتٌۢ بَيِّنَـٰتٌۭ مَّقَامُ إِبْرَٰهِيمَ ۖ وَمَن دَخَلَهُۥ كَانَ ءَامِنًۭا ۗ وَلِلَّهِ عَلَى ٱلنَّاسِ حِجُّ ٱلْبَيْتِ مَنِ ٱسْتَطَاعَ إِلَيْهِ سَبِيلًۭا ۚ وَمَن كَفَرَ فَإِنَّ ٱللَّهَ غَنِىٌّ عَنِ ٱلْعَـٰلَمِينَ
फ़ीहि आयातुम् बय्यिनातुम् मक़ामु इब्राही-म, व मन् द-ख़-लहू का-न आमिनन्, व लिल्लाहि अ़लन्नासि हिज्जुल्बैति मनिस्तता-अ़ इलैहि सबीलन्, व मन् क-फ़-र फ़-इन्नल्ला-ह ग़निय्युन् अ़निल् आ़लमीन
उसमें खुली निशानियाँ हैं, (जिनमें) मक़ामे[1] इब्राहीम है तथा जो कोई उस (की सीमा) में प्रवेश कर गया, तो वह शांत (सुरक्षित) हो गया। तथा अल्लाह के लिए लोगों पर इस घर का ह़ज अनिवार्य है, जो उसतक राह पा सकता हो तथा जो कुफ़्र करेगा, तो अल्लाह संसार वासियों से निस्पृह है।
قُلْ يَـٰٓأَهْلَ ٱلْكِتَـٰبِ لِمَ تَكْفُرُونَ بِـَٔايَـٰتِ ٱللَّهِ وَٱللَّهُ شَهِيدٌ عَلَىٰ مَا تَعْمَلُونَ
क़ुल् या अह्-लल्-किताबि लि-म तक्फ़ुरू-न बिआयातिल्लाहि वल्लाहु शहीदुन् अ़ला मा तअ्मलून
(हे नबी!) आप कह दें कि हे अह्ले किताब! ये क्या है कि तुम अल्लाह की आयतों के साथ कुफ़्र कर रहे हो, जबकि अल्लाह तुम्हारे कर्मों का साक्षी है?
قُلْ يَـٰٓأَهْلَ ٱلْكِتَـٰبِ لِمَ تَصُدُّونَ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ مَنْ ءَامَنَ تَبْغُونَهَا عِوَجًۭا وَأَنتُمْ شُهَدَآءُ ۗ وَمَا ٱللَّهُ بِغَـٰفِلٍ عَمَّا تَعْمَلُونَ
क़ुल् या अह्-लल्-किताबि लि-म तसुद्दू-न अ़न् सबीलिल्लाहि मन् आम-न तब्ग़ूनहा अि-वजंव्-व अन्तुम् शु-हदा-उ, व मल्लाहु बिग़ाफ़िलिन् अ़म्मा तअ्मलून
हे अह्ले किताब! किस लिए लोगों को, जो ईमान लाना चाहें, अल्लाह की राह से रोक रहे हो, उसे उलझाना चाहते हो, जबकि तुम साक्षी[1] हो और अल्लाह तुम्हारे कर्मों से असूचित नहीं है?
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ إِن تُطِيعُوا۟ فَرِيقًۭا مِّنَ ٱلَّذِينَ أُوتُوا۟ ٱلْكِتَـٰبَ يَرُدُّوكُم بَعْدَ إِيمَـٰنِكُمْ كَـٰفِرِينَ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू इन् तुतीअू फ़रीक़म् मिनल्लज़ी-न ऊतुल्-किता-ब यरुद् दूकुम् बअ्-द ईमानिकुम् काफ़िरीन
हे ईमान वालो! यदि तुम अह्ले किताब के किसी गिरोह की बात मानोगे, तो वह तुम्हारे ईमान के पश्चात् फिर तुम्हें काफ़िर बना देंगे।
وَكَيْفَ تَكْفُرُونَ وَأَنتُمْ تُتْلَىٰ عَلَيْكُمْ ءَايَـٰتُ ٱللَّهِ وَفِيكُمْ رَسُولُهُۥ ۗ وَمَن يَعْتَصِم بِٱللَّهِ فَقَدْ هُدِىَ إِلَىٰ صِرَٰطٍۢ مُّسْتَقِيمٍۢ
व कै-फ़ तक़्फुरू-न व अन्तुम् तुल्ला अ़लैकुम् आयातुल्लाहि व फ़ीकुम् रसूलुहू, व मंय्यअ्तसिम् बिल्लाहि फ़-क़द् हुदि-य इला सिरातिम् मुस्तक़ीम
तथा तुम कुफ़्र कैसे करोगे, जबकि तुम्हारे सामने अललाह की आयतें पढ़ी जा रही हैं और तुममें उसके रसूल[1] मौजूद हैं? और जिसने अल्लाह को[2] थाम लिया, तो उसे सुपथ दिखा दिया गया।
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ ٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ حَقَّ تُقَاتِهِۦ وَلَا تَمُوتُنَّ إِلَّا وَأَنتُم مُّسْلِمُونَ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनुत्तक़ुल्ला-ह हक़् क़-तुक़ातिही व ला तमूतुन्-न इल्ला व अन्तुम् मुस्लिमून
हे ईमान वालो! अल्लाह से ऐसे डरो, जो वास्तव में, उससे डरना हो तथा तुम्हारी मौत इस्लाम पर रहते हुए ही आनी चाहिए।
وَٱعْتَصِمُوا۟ بِحَبْلِ ٱللَّهِ جَمِيعًۭا وَلَا تَفَرَّقُوا۟ ۚ وَٱذْكُرُوا۟ نِعْمَتَ ٱللَّهِ عَلَيْكُمْ إِذْ كُنتُمْ أَعْدَآءًۭ فَأَلَّفَ بَيْنَ قُلُوبِكُمْ فَأَصْبَحْتُم بِنِعْمَتِهِۦٓ إِخْوَٰنًۭا وَكُنتُمْ عَلَىٰ شَفَا حُفْرَةٍۢ مِّنَ ٱلنَّارِ فَأَنقَذَكُم مِّنْهَا ۗ كَذَٰلِكَ يُبَيِّنُ ٱللَّهُ لَكُمْ ءَايَـٰتِهِۦ لَعَلَّكُمْ تَهْتَدُونَ
वअ्तसिमू बि-हब्लिल्लाहि जमीअ़ंव्-व ला तफ़र्रक़ू, वज़्कुरू निअ्-मतल्लाहि अ़लैकुम् इज़् कुन्तुम् अअ्दा -अन् फ़-अल्ल-फ़ बै-न क़ुलूबिकुम् फ़-अस्बह्तुम् बिनिअ्मतिही इख़्वानन्, व कुन्तुम् अ़ला शफा हुफ़्रतिम् मिनन्नारि फ़-अन्क़-ज़कुम् मिन्हा, कज़ालि-क युबय्यिनुल्लाहु लकुम् आयातिही लअ़ल्लकुम् तह्तदून
तथा अल्लाह की रस्सी[1] को सब मिलकर दृढ़ता से पकड़ लो और विभेद में न पड़ो तथा अपने ऊपर अललाह के पुरस्कार को याद करो, जब तुम एक-दूसरे के शत्रु थे, तो तुम्हारे दिलों को जोड़ दिया और तुम उसके पुरस्कार के कारण भाई-भाई हो गए तथा तुम अग्नि के गड़हे के किनारे पर थे, तो तुम्हें उससे निकाल दिया। इसी प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतें उजागर करता है, ताकि तुम मार्गदर्शन पा जाओ।
وَلْتَكُن مِّنكُمْ أُمَّةٌۭ يَدْعُونَ إِلَى ٱلْخَيْرِ وَيَأْمُرُونَ بِٱلْمَعْرُوفِ وَيَنْهَوْنَ عَنِ ٱلْمُنكَرِ ۚ وَأُو۟لَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلْمُفْلِحُونَ
वल्तकुम् मिन्कुम् उम्मतुंय्यद् अू-न इलल्ख़ैरि व यअ्मुरू-न बिल्मअ्-रूफ़ि व यन्हौ-न अ़निल्मुन्करि, व उलाइ-क हुमुल् मुफ़्लिहून
तथा तुममें एक समुदाय ऐसा अवश्य होना चाहिए, जो भली बातों[1] की ओर बुलाये, भलाई का आदेश देता रहे, बुराई[2] से रोकता रहे और वही सफल होंगे।
وَلَا تَكُونُوا۟ كَٱلَّذِينَ تَفَرَّقُوا۟ وَٱخْتَلَفُوا۟ مِنۢ بَعْدِ مَا جَآءَهُمُ ٱلْبَيِّنَـٰتُ ۚ وَأُو۟لَـٰٓئِكَ لَهُمْ عَذَابٌ عَظِيمٌۭ
व ला तकूनू कल्लज़ी-न तफ़र्रक़ू वख़्त-लफ़ू मिम्-बअ्दि मा जा- अहुमुल्-बय्यिनातु, व उलाइ-क लहुम् अ़ज़ाबुन् अ़ज़ीम
तथा उनके[1] समान न हो जाओ, जो खुली निशानियाँ आने के पश्चात्, विभेद तथा आपसी विरोध में पड़ गये और उन्हीं के लिए घोर यातना है।
يَوْمَ تَبْيَضُّ وُجُوهٌۭ وَتَسْوَدُّ وُجُوهٌۭ ۚ فَأَمَّا ٱلَّذِينَ ٱسْوَدَّتْ وُجُوهُهُمْ أَكَفَرْتُم بَعْدَ إِيمَـٰنِكُمْ فَذُوقُوا۟ ٱلْعَذَابَ بِمَا كُنتُمْ تَكْفُرُونَ
यौ-म तब्यज़्ज़ु वुजूहुंव्-व तस्वद्दु वुजूहुन्, फ़-अम्मल्लज़ीनस्-वद्दत् वुजूहुहुम्, अ-कफ़र्तुम् बअ्-द ईमानिकुम् फ़ज़ूकुल्-अ़ज़ा-ब बिमा कुन्तुम् तक्फ़ुरून
जिस दिन बहुत-से मुख उजले तथा बहुत-से मुख काले होंगे। फिर जिनके मुख काले होंगे (उनसे कहा जायेगाः) क्या तुमने अपने ईमान के पश्चात् कुफ़्र कर लिया था? तो अपने कुफ़्र करने का दण्ड चखो।
وَأَمَّا ٱلَّذِينَ ٱبْيَضَّتْ وُجُوهُهُمْ فَفِى رَحْمَةِ ٱللَّهِ هُمْ فِيهَا خَـٰلِدُونَ
व अम्मल्लज़ीनब्-यज़्ज़त् वुजूहुहुम् फ़-फ़ी रह्-मतिल्लाहि, हुम् फ़ीहा ख़ालिदून
तथा जिनके मुख उजले होंगे, वे अल्लाह की दया (स्वर्ग) में रहेंगे। व उसमें सदावासी होंगे।
تِلْكَ ءَايَـٰتُ ٱللَّهِ نَتْلُوهَا عَلَيْكَ بِٱلْحَقِّ ۗ وَمَا ٱللَّهُ يُرِيدُ ظُلْمًۭا لِّلْعَـٰلَمِينَ
तिल्-क आयातुल्लाहि नत्लूहा अ़लै-क बिल्हक़्क़ि, व मल्लाहु युरीदु ज़ुल्मल् लिल्आ़लमीन
ये अल्लाह की आयतें हैं, जो हम आपको ह़क़ के साथ सुना रहे हैं तथा अल्लाह संसार वासियों पर अत्याचार नहीं करना चाहता।
وَلِلَّهِ مَا فِى ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَمَا فِى ٱلْأَرْضِ ۚ وَإِلَى ٱللَّهِ تُرْجَعُ ٱلْأُمُورُ
व लिल्लाहि मा फ़िस्समावाति व मा फ़िल्अर्ज़ि, व इलल्लाहि तुर्जअुल उमूर
तथा अल्लाह ही का है, जो आकाशों में और जो धरती में है तथा अल्लाह ही की ओर सब विषय फेरे जायेंगे।
كُنتُمْ خَيْرَ أُمَّةٍ أُخْرِجَتْ لِلنَّاسِ تَأْمُرُونَ بِٱلْمَعْرُوفِ وَتَنْهَوْنَ عَنِ ٱلْمُنكَرِ وَتُؤْمِنُونَ بِٱللَّهِ ۗ وَلَوْ ءَامَنَ أَهْلُ ٱلْكِتَـٰبِ لَكَانَ خَيْرًۭا لَّهُم ۚ مِّنْهُمُ ٱلْمُؤْمِنُونَ وَأَكْثَرُهُمُ ٱلْفَـٰسِقُونَ
कुन्तुम् ख़ै-र उम्मतिन् उख़रिजत् लिन्नासि तअ्मुरू-न बिल्मअ्-रूफ़ि व तन्हौ-न अ़निल्मुन्करि व तुअ्मिनू-न बिल्लाहि, व लौ आम-न अह्लुल्-किताबि लका-न ख़ैरल्लहुम, मिन्हुमुल् मुअ्मिनू-न व अक्सरुहुमुल् फ़ासिक़ून
तुम, सबसे अच्छी उम्मत हो, जिसे सब लोगों के लिए उत्पन्न किया गया है कि तुम भलाई का आदेश देते हो तथा बुराई से रोकते हो और अल्लाह पर ईमान (विश्वास) रखते[1] हो। यदि अह्ले किताब ईमान लाते, तो उनके लिए अच्छा होता। उनमें कुछ ईमान वाले हैं और अधिक्तर अवज्ञाकारी हैं।
لَن يَضُرُّوكُمْ إِلَّآ أَذًۭى ۖ وَإِن يُقَـٰتِلُوكُمْ يُوَلُّوكُمُ ٱلْأَدْبَارَ ثُمَّ لَا يُنصَرُونَ
लंय्यज़ुर्रूकुम् इल्ला अज़न्, व इंय्युक़ातिलूकुम् युवल्लूकुमुल् अद्-बार, सुम्- म ला युन्सरून
वे तुम्हें सताने के सिवा कोई हानि पहुँचा नहीं सकेंगे और यदि तुमसे युध्द करेंगे, तो वे तुम्हें पीठ दिखा देंगे। फिर सहायता नहीं दिए जायेंगे।
ضُرِبَتْ عَلَيْهِمُ ٱلذِّلَّةُ أَيْنَ مَا ثُقِفُوٓا۟ إِلَّا بِحَبْلٍۢ مِّنَ ٱللَّهِ وَحَبْلٍۢ مِّنَ ٱلنَّاسِ وَبَآءُو بِغَضَبٍۢ مِّنَ ٱللَّهِ وَضُرِبَتْ عَلَيْهِمُ ٱلْمَسْكَنَةُ ۚ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمْ كَانُوا۟ يَكْفُرُونَ بِـَٔايَـٰتِ ٱللَّهِ وَيَقْتُلُونَ ٱلْأَنۢبِيَآءَ بِغَيْرِ حَقٍّۢ ۚ ذَٰلِكَ بِمَا عَصَوا۟ وَّكَانُوا۟ يَعْتَدُونَ
ज़ुरिबत् अ़लैहिमुज़्ज़िल्लतु ऐनमा सुक़िफ़ू इल्ला बि-हब्लिम् मिनल्लाहि व हब्लिम्-मिनन्नासि व बाऊ बि-ग़-ज़बिम् मिनल्लाहि व ज़ुरिबत् अ़लैहिमुल्- मस्क-नतु, ज़ालि-क बि-अन्नहुम् कानू यक्फ़ुरु-न बिआयातिल्लाहि व यक़्तुलूनल्-अम्बिया-अ बिग़ैरि हक़्क़िन्, ज़ालि-क बिमा अ़-सव् व कानू यअ्तदून
इन (यहूदियों) पर जहाँ भी रहें, अपमान थोंप दिया गया है, (ये और बात है कि) अल्लाह की शरण[1] अथवा लोगों की शरण में हों[2], ये अल्लाह के प्रकोप के अधिकारी हो गये तथा इनपर दरिद्रता थोंप दी गयी। ये इस कारण हुआ कि ये अल्लाह की आयतों के साथ कुफ़्र कर रहे थे और नबियों का अवैध वध कर रहे थे। ये इस कारण कि इन्होंने अवज्ञा की और (धर्म की) सीमा का उल्लंघन कर रहे थे।
لَيْسُوْا سَوَاۤءً ۗ مِنْ اَهْلِ الْكِتٰبِ اُمَّةٌ قَاۤىِٕمَةٌ يَّتْلُوْنَ اٰيٰتِ اللّٰهِ اٰنَاۤءَ الَّيْلِ وَهُمْ يَسْجُدُوْنَ
लैसू सवाअन्, मिन् अह्-लिल्-किताबि उम्मतुन् क़ाइ-मतुंय्यत्लू-न आयातिल्लाहि आनाअल्लैलि व हुम् यस्जुदून
वे सभी समान नहीं हैं; अह्ले किताब में एक( सत्य पर) स्थित उम्मत[1] भी है, जो अल्लाह की आयतें रातों में पढ़ते हैं तथा सज्दा करते रहते हैं।
يُؤْمِنُونَ بِٱللَّهِ وَٱلْيَوْمِ ٱلْـَٔاخِرِ وَيَأْمُرُونَ بِٱلْمَعْرُوفِ وَيَنْهَوْنَ عَنِ ٱلْمُنكَرِ وَيُسَـٰرِعُونَ فِى ٱلْخَيْرَٰتِ وَأُو۟لَـٰٓئِكَ مِنَ ٱلصَّـٰلِحِينَ
युअ्मिनू-न बिल्लाहि वल्यौमिल्-आख़िरि व यअ्मुरू-न बिल्-मअ्-रूफ़ि व यन्हौ-न अ़निल्मुन्करि व युसारिअू-न फ़िल्ख़ैराति, व उलाइ-क मिनस्सालिहीन
अल्लाह तथा अंतिम दिन (प्रलय) पर ईमान रखते हैं, भलाई का आदेश देते हैं, बुराई से रोकते हैं, भलाईयों में अग्रसर रहते हैं और यही सदाचारियों में हैं।
وَمَا يَفْعَلُوا۟ مِنْ خَيْرٍۢ فَلَن يُكْفَرُوهُ ۗ وَٱللَّهُ عَلِيمٌۢ بِٱلْمُتَّقِينَ
व मा यफ़्अ़लू मिन् ख़ैरिन् फ़-लंय्युक्फ़रूहु, वल्लाहु अ़लीमुम् बिल्-मुत्तक़ीन
वे, जो भी भलाई करेंगे, उसकी उपेक्षा (अनादर) नहीं की जायेगी और अल्लाह आज्ञाकारियों को भली-भाँति जानता है।
إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ لَن تُغْنِىَ عَنْهُمْ أَمْوَٰلُهُمْ وَلَآ أَوْلَـٰدُهُم مِّنَ ٱللَّهِ شَيْـًۭٔا ۖ وَأُو۟لَـٰٓئِكَ أَصْحَـٰبُ ٱلنَّارِ ۚ هُمْ فِيهَا خَـٰلِدُونَ
इन्नल्लज़ी-न क-फ़रू लन् तुग़्नि-य अ़न्हुम् अम्वालुहुम् व ला औलादुहुम् मिनल्लाहि शैअन्, व उलाइ-क अस्हाबुन्नारि हुम् फ़ीहा ख़ालिदून
(परन्तु) जो काफ़िर[1] हो गये, उनके धन और उनकी संतान अल्लाह (की यातना) से उन्हें तनिक भी बचा नहीं सकेगी तथा वही नारकी हैं, वही उसमें सदावासी होंगे।
مَثَلُ مَا يُنفِقُونَ فِى هَـٰذِهِ ٱلْحَيَوٰةِ ٱلدُّنْيَا كَمَثَلِ رِيحٍۢ فِيهَا صِرٌّ أَصَابَتْ حَرْثَ قَوْمٍۢ ظَلَمُوٓا۟ أَنفُسَهُمْ فَأَهْلَكَتْهُ ۚ وَمَا ظَلَمَهُمُ ٱللَّهُ وَلَـٰكِنْ أَنفُسَهُمْ يَظْلِمُونَ
म-सलु मा युन्फ़िक़ू-न फ़ी हाज़िहिल् हयातिद्दुन्या क-म-सलि रीहिन् फ़ीहा सिर्रुन् असाबत् हर्-स क़ौमिन् ज़-लमू अन्फ़ु-सहुम् फ़-अह्-लकत्हु, व मा ज़-ल-महुमुल्लाहु व लाकिन् अन्फ़ु-सहुम् यज़्लिमून
जो दान, वे इस सांसारिक जीवन में करते हैं, वो उस वायु के समान है, जिसमें पाला हो, जो किसी क़ौम की खेती को लग जाये, जिन्होंने अपने ऊपर अत्याचार[1] किया हो और उसका नाश कर दे तथा अल्लाह ने उनपर अत्याचार नहीं किया, परन्तु वे स्वयं अपने ऊपर अत्याचार कर रहे थे।
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ لَا تَتَّخِذُوا۟ بِطَانَةًۭ مِّن دُونِكُمْ لَا يَأْلُونَكُمْ خَبَالًۭا وَدُّوا۟ مَا عَنِتُّمْ قَدْ بَدَتِ ٱلْبَغْضَآءُ مِنْ أَفْوَٰهِهِمْ وَمَا تُخْفِى صُدُورُهُمْ أَكْبَرُ ۚ قَدْ بَيَّنَّا لَكُمُ ٱلْـَٔايَـٰتِ ۖ إِن كُنتُمْ تَعْقِلُونَ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तत्तख़िज़ू बितान- तम् मिन् दूनिकुम् ला यअ्लूनकुम् ख़बालन्, वद्दू मा अ़नित्तुम् क़द् ब-दतिल्-बग़्ज़ा-उ मिन् अफ़्वाहिहिम्, व मा तुख़्फ़ी सुदूरुहुम् अक्बरु, क़द् बय्यन्ना लकुमुल्-आयाति इन् कुन्तुम् तअ्क़िलून
हे ईमान वालो! अपनों के सिवा किसी को अपना भेदी न बनाओ[1], वे तुम्हारा बिगाड़ने में तनिक भी नहीं चूकेंगे, उनहें वही बात भाती है, जिससे तुम्हें दुःख हो। उनके मुखों से शत्रुता खुल चुकी है तथा जो उनके दिल छुपा रहे हैं, वो इससे बढ़कर है। हमने तुम्हारे लिए आयतों का वर्णन कर दिया है, यदि तुम समझो।
هَـٰٓأَنتُمْ أُو۟لَآءِ تُحِبُّونَهُمْ وَلَا يُحِبُّونَكُمْ وَتُؤْمِنُونَ بِٱلْكِتَـٰبِ كُلِّهِۦ وَإِذَا لَقُوكُمْ قَالُوٓا۟ ءَامَنَّا وَإِذَا خَلَوْا۟ عَضُّوا۟ عَلَيْكُمُ ٱلْأَنَامِلَ مِنَ ٱلْغَيْظِ ۚ قُلْ مُوتُوا۟ بِغَيْظِكُمْ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمٌۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ
हा-अन्तुम् उला-इ तुहिब्बूनहुम् व ला युहिब्बूनकुम् व तुअ्मिनू-न बिल्किताबि कुल्लिही, व इज़ा लक़ूकुम् क़ालू आमन्ना, व इज़ा ख़लौ अ़ज़्ज़ू अ़लैकुमुल्-अनामि-ल मिनल्-ग़ैज़ि, क़ुल् मूतू बिग़ैज़िक़ुम्, इन्नल्ला-ह अ़लीमुम् बिज़ातिस्सुदूर
सावधान! तुमही वो हो कि उनसे प्रेम करते हो, जबकि वे तुमसे प्रेम नहीं करते और तुम सभी पुस्तकों पर ईमान रखते हो, जबकि वे जब तुमसे मिलते हैं, तो कहते हैं कि हम ईमान लाये और जब अकेले होते हैं, तो क्रोध से तुमपर उँगलियों की पोरें चबाते हैं। कह दो कि अपने क्रोध से मर जाओ। निःसंदेह अल्लाह सीनों की बातों को जानता है।
إِن تَمْسَسْكُمْ حَسَنَةٌۭ تَسُؤْهُمْ وَإِن تُصِبْكُمْ سَيِّئَةٌۭ يَفْرَحُوا۟ بِهَا ۖ وَإِن تَصْبِرُوا۟ وَتَتَّقُوا۟ لَا يَضُرُّكُمْ كَيْدُهُمْ شَيْـًٔا ۗ إِنَّ ٱللَّهَ بِمَا يَعْمَلُونَ مُحِيطٌۭ
इन् तम्सस्कुम् ह-स-नतुन् तसुअ्हुम्, व इन् तुसिब्कुम् सय्यि-अतुंय्यफ़्रहू बिहा, व इन् तस्बिरू व तत्तक़ू ला यज़ुर्रुकुम् कैदुहुम् शैअन, इन्नल्ला-ह बिमा यअ्मलू-न मुहीत
यदि तुम्हारा कुछ भला हो, तो उन्हें बुरा लगता है और यदि तुम्हारा कुछ बुरा हो जाये, तो वे उससे प्रसन्न हो जाते हैं। अलबत्ता, यदि तुम सहन करते रहे और आज्ञाकारी रहे, तो उनका छल तुम्हें कोई हानि नहीं पहुँचायेगा। उनके सभी कर्म अल्लाह के घेरे में हैं।
وَإِذْ غَدَوْتَ مِنْ أَهْلِكَ تُبَوِّئُ ٱلْمُؤْمِنِينَ مَقَـٰعِدَ لِلْقِتَالِ ۗ وَٱللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ
व इज़् ग़दौ-त मिन् अह्-लिक तुबव्विउल्- मुअ्मिनी-न मक़ाअि-द लिल्क़ितालि, वल्लाहु समीअुन् अ़लीम
तथा (हे नबी! वो समय याद करें) जब आप प्रातः अपने घर से निकले, ईमान वालों को युध्द[1] के स्थानों पर नियुक्त कर रहे थे तथा अल्लाह सब कुछ सुनने-जानने वाला है।
إِذْ هَمَّت طَّآئِفَتَانِ مِنكُمْ أَن تَفْشَلَا وَٱللَّهُ وَلِيُّهُمَا ۗ وَعَلَى ٱللَّهِ فَلْيَتَوَكَّلِ ٱلْمُؤْمِنُونَ
इज़् हम्मत्ता-इ-फ़तानि मिन्कुम् अन् तफ़्शला, वल्लाहु वलिय्युहुमा, व अ़लल्लाहि फ़ल्य-तवक्कलिल् मुअ्मिनून
तथा (याद करें) जब आपमें से दो गिरोहों[1] ने कायरता दिखाने का विचार किया और अल्लाह उनका रक्षक था तथा ईमान वालों को अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए।
وَلَقَدْ نَصَرَكُمُ ٱللَّهُ بِبَدْرٍۢ وَأَنتُمْ أَذِلَّةٌۭ ۖ فَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ
व लक़द् न-स-रकुमुल्लाहु बि-बद् रिंव् अन्तुम् अज़िल्लतुन् फ़त्तक़ुल्ला-ह लअ़ल्लकुम् तश्कुरून
अल्लाह बद्र में तुम्हारी सहायता कर चुका है, जब तुम निर्बल थे। अतः अल्लाह से डरते रहो, ताकि उसके कृतज्ञ रहो।
إِذْ تَقُولُ لِلْمُؤْمِنِينَ أَلَن يَكْفِيَكُمْ أَن يُمِدَّكُمْ رَبُّكُم بِثَلَـٰثَةِ ءَالَـٰفٍۢ مِّنَ ٱلْمَلَـٰٓئِكَةِ مُنزَلِينَ
इज़् तक़ूलु लिल्-मुअ्मिनी-न अलंय्यक्फ़ि-यकुम् अंय्युमिद्दकुम् रब्बुकुम् बि-सलासति आलाफिम् मिनल्-मलाइ-कति मुन्ज़लीन
(हे नबी! वो समय भी याद करें) जब आप ईमान वालों से कह रहे थेः क्या तुम्हारे लिए ये बस नहीं है कि अल्लाह तुम्हें (आकाश से) उतारे हुए, तीन हज़ार फ़रिश्तों द्वारा समर्थन दे?
بَلَىٰٓ ۚ إِن تَصْبِرُوا۟ وَتَتَّقُوا۟ وَيَأْتُوكُم مِّن فَوْرِهِمْ هَـٰذَا يُمْدِدْكُمْ رَبُّكُم بِخَمْسَةِ ءَالَـٰفٍۢ مِّنَ ٱلْمَلَـٰٓئِكَةِ مُسَوِّمِينَ
बला इन् तस्बिरू व तत्तक़ू व यअ्तूकुम् मिन् फ़ौरिहिम् हाज़ा युम्दिद्कुम् रब्बुकुम् बि-ख़म्सति आलाफिम् मिनल् मलाइ-कति मुसव्विमीन
क्यों[1] नहीं? यदि तुम सहन करोगे, आज्ञाकारी रहोगे और वे (शत्रु) तुम्हारे पास अपनी उत्तेजना के साथ आ गये, तो तुम्हारा पालनहार तुम्हें (तीन नहीं,) पाँच हज़ार चिन्ह[2] लगे फ़रिश्तों द्वारा समर्थन देगा।
وَمَا جَعَلَهُ ٱللَّهُ إِلَّا بُشْرَىٰ لَكُمْ وَلِتَطْمَئِنَّ قُلُوبُكُم بِهِۦ ۗ وَمَا ٱلنَّصْرُ إِلَّا مِنْ عِندِ ٱللَّهِ ٱلْعَزِيزِ ٱلْحَكِيمِ
व मा ज-अ़-लहुल्लाहु इल्ला बुश्रा लकुम् व लि-तत्मइन् -न क़ुलूबुकुम् बिही, व मन्नस्रु इल्ला मिन् अिन्दिल्लाहिल् अ़ज़ीज़िल् हकीम
और अल्लाह ने इसे तुम्हारे लिए केवल शुभ सूचना बनाया है और ताकि तुम्हारे दिलों को संतोष हो जाये और समर्थन तो केवल अल्लाह ही के पास से है, जो प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ है।
لِيَقْطَعَ طَرَفًۭا مِّنَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓا۟ أَوْ يَكْبِتَهُمْ فَيَنقَلِبُوا۟ خَآئِبِينَ
लि-यक़्त-अ़ त रफ़म् मिनल्लज़ी-न क-फ़रू औ यक्बि-तहुम् फ़-यन्क़लिबू ख़ा-इबीन
ताकि[1] वह काफ़िरों का एक भाग काट दे अथवा उन्हें अपमानित कर दे। फिर वे असफल वापस हो जायेँ।
لَيْسَ لَكَ مِنَ ٱلْأَمْرِ شَىْءٌ أَوْ يَتُوبَ عَلَيْهِمْ أَوْ يُعَذِّبَهُمْ فَإِنَّهُمْ ظَـٰلِمُونَ
लै-स ल-क मिनल् अम्रि शैउन् औ यतू-ब अ़लैहिम् औ युअ़ज़्ज़ि-बहुम् फ़-इन्नहुम् ज़ालिमून
हे नबी! इस[1] विषय में आपको कोई अधिकार नहीं, अल्लाह चाहे तो उनकी क्षमा याचना स्वीकार[2] करे या दण्ड[3] दे, क्योंकि वे अत्याचारी हैं।
وَلِلَّهِ مَا فِى ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَمَا فِى ٱلْأَرْضِ ۚ يَغْفِرُ لِمَن يَشَآءُ وَيُعَذِّبُ مَن يَشَآءُ ۚ وَٱللَّهُ غَفُورٌۭ رَّحِيمٌۭ
व लिल्लाहि मा फ़िस्समावाति व मा फ़िल्अर्ज़ि, यग़्फ़िरु लिमंय्यशा-उ व युअ़ज़्ज़िबु मंय्यशा-उ, वल्लाहु ग़फ़ूरुर्रहीम
अल्लाह ही का है, जो कुछ आकाशों तथा धरती में है, वह जिसे चाहे, क्षमा करे और जिसे चाहे, दण्ड दे तथा अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान् है।
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ لَا تَأْكُلُوا۟ ٱلرِّبَوٰٓا۟ أَضْعَـٰفًۭا مُّضَـٰعَفَةًۭ ۖ وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तअ्कुलुर्रिबा अज़्आ़फ़म् मुज़ा-अ़-फ़तन्, वत्तक़ुल्ला-ह लअ़ल्लकुम् तुफ़्लिहून
हे ईमान वालो! कई-कई गुणा करके ब्याज[1] न खाओ तथा अल्लाह से डरो, ताकि सफल हो जाओ।
وَٱتَّقُوا۟ ٱلنَّارَ ٱلَّتِىٓ أُعِدَّتْ لِلْكَـٰفِرِينَ
वत्तक़ुन्-नारल्लती उअिद्दत् लिल्-काफ़िरीन
तथा उस अग्नि से बचो, जो काफ़िरों के लिए तैयार की गयी है।
وَأَطِيعُوا۟ ٱللَّهَ وَٱلرَّسُولَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ
व अतीअुल्ला-ह वर्रसू-ल लअ़ल्लकुम् तुर्हमून
तथा अल्लाह और रसूल के आज्ञाकारी रहो, ताकि तुमपर दया की जाये।
وَسَارِعُوْٓا اِلٰى مَغْفِرَةٍ مِّنْ رَّبِّكُمْ وَجَنَّةٍ عَرْضُهَا السَّمٰوٰتُ وَالْاَرْضُۙ اُعِدَّتْ لِلْمُتَّقِيْنَۙ
व सारिअू इला मग़्फ़ि-रतिम् मिर्रब्बिकुम् व जन्नतिन् अ़र्जुहस्-समावातु वल्-अर्ज़ु, उअिद्दत् लिल्मुत्तक़ीन
और अपने पालनहार की क्षमा और उस स्वर्ग की ओर अग्रसर हो जाओ, जिसकी चौड़ाई आकाशों तथा धरती के बराबर है, वह आज्ञाकारियों के लिए तैयार की गयी है।
ٱلَّذِينَ يُنفِقُونَ فِى ٱلسَّرَّآءِ وَٱلضَّرَّآءِ وَٱلْكَـٰظِمِينَ ٱلْغَيْظَ وَٱلْعَافِينَ عَنِ ٱلنَّاسِ ۗ وَٱللَّهُ يُحِبُّ ٱلْمُحْسِنِينَ
अल्लज़ी-न युन्फ़िक़ू-न फ़िस्सर्रा-इ वज़्ज़र्रा-इ वल्काज़िमीनल्-ग़ै-ज़ वल्आ़फ़ी-न अ़निन्नासि, वल्लाहु युहिब्बुल् मुह्सिनीन
जो सुविधा तथा असुविधा की दशा में दान करते रहते हैं, क्रोध पी जाते और लोगों के दोष क्षमा कर दिया करते हैं और अल्लाह सदाचारियों से प्रेम करता है।
وَٱلَّذِينَ إِذَا فَعَلُوا۟ فَـٰحِشَةً أَوْ ظَلَمُوٓا۟ أَنفُسَهُمْ ذَكَرُوا۟ ٱللَّهَ فَٱسْتَغْفَرُوا۟ لِذُنُوبِهِمْ وَمَن يَغْفِرُ ٱلذُّنُوبَ إِلَّا ٱللَّهُ وَلَمْ يُصِرُّوا۟ عَلَىٰ مَا فَعَلُوا۟ وَهُمْ يَعْلَمُونَ
वल्लज़ी-न इज़ा फ़-अ़लू फ़ाहि-शतन् औ ज़-लमू अन्फ़ु-सहुम् ज़ करुल्ला-ह फ़स्तग़्फ़रू लिज़ुनूबिहिम्, व मंय्यग़्फ़िरुज़्ज़ुनू-ब इल्लल्लाहु, व लम् युसिर्रु अ़ला मा फ़-अ़लू व हुम् यअ्लमून
और जब कभी वे कोई बड़ा पाप कर जायेँ अथवा अपने ऊपर अत्याचार कर लें, तो अल्लाह को याद करते हैं, फिर अपने पापों के लिए क्षमा माँगते हैं -तथा अल्लाह के सिवा कौन है, जो पापों को क्षमा करे?- और अपने किये पर जान-बूझ कर अड़े नहीं रहते।
أُو۟لَـٰٓئِكَ جَزَآؤُهُم مَّغْفِرَةٌۭ مِّن رَّبِّهِمْ وَجَنَّـٰتٌۭ تَجْرِى مِن تَحْتِهَا ٱلْأَنْهَـٰرُ خَـٰلِدِينَ فِيهَا ۚ وَنِعْمَ أَجْرُ ٱلْعَـٰمِلِينَ
उलाइ-क जज़ाउहुम् मग़्फ़िरतुम् मिर्रब्बिहिम् व जन्नातुन् तज्री मिन् तह्तिहल्-अन्हारु ख़ालिदी-न फ़ीहा, व निअ्-म अज्रूल् आ़मिलीन
उन्हीं का प्रतिफल (बदला) उनके पालनहार की क्षमा तथा ऐसे स्वर्ग हैं, जिनमें नहरें परवाहित हैं, जिनमें वे सदावासी होंगे। तो क्या ही अच्छा है सत्कर्मियों का ये प्रतिफल!
قَدْ خَلَتْ مِن قَبْلِكُمْ سُنَنٌۭ فَسِيرُوا۟ فِى ٱلْأَرْضِ فَٱنظُرُوا۟ كَيْفَ كَانَ عَـٰقِبَةُ ٱلْمُكَذِّبِينَ
क़द् ख़लत् मिन् क़ब्लिकुम् सु-ननुन्, फ़सीरू फ़िल्अर्ज़ि फ़न्ज़ुरू कै-फ़ का-न आ़क़ि-बतुल् मुकज़्ज़िबीन
तुमसे पहले भी इसी प्रकार हो चुका[1] है। तुम धरती में फिरो और देखो कि झुठलाने वालों का परिणाम कैसा रहा?
هَـٰذَا بَيَانٌۭ لِّلنَّاسِ وَهُدًۭى وَمَوْعِظَةٌۭ لِّلْمُتَّقِينَ
हाज़ा बयानुल्-लिन्नासि व हुदंव्-व मौअि-ज़तुल् लिल्मुत्तक़ीन
ये (क़ुर्आन) लोगों के लिए एक वर्णन, मार्गदर्शन और एक शिक्षा है, (अल्लाह से) डरने वालों के लिए।
وَلَا تَهِنُوا۟ وَلَا تَحْزَنُوا۟ وَأَنتُمُ ٱلْأَعْلَوْنَ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ
व ला तहिनू व ला तह्ज़नू व अन्तुमुल्-अअ्लौ-न इन् कुन्तुम् मुअ्मिनीन
(इसपराजय से) तुम निर्बल तथा उदासीन न बनो और तुमही सर्वोच्च रहोगे, यदि तुम ईमान वाले हो।
إِن يَمْسَسْكُمْ قَرْحٌۭ فَقَدْ مَسَّ ٱلْقَوْمَ قَرْحٌۭ مِّثْلُهُۥ ۚ وَتِلْكَ ٱلْأَيَّامُ نُدَاوِلُهَا بَيْنَ ٱلنَّاسِ وَلِيَعْلَمَ ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَيَتَّخِذَ مِنكُمْ شُهَدَآءَ ۗ وَٱللَّهُ لَا يُحِبُّ ٱلظَّـٰلِمِينَ
इंय्यम्सस्कुम् क़र्हुन् फ़-क़द् मस्सल्क़ौ-म क़र्हुम् मिस्लुहू, व तिल्कल्-अय्यामु नुदाविलुहा बैनन्नासि, व लि-यअ्-लमल्लाहुल्लज़ी-न आमनू व यत्तख़ि-ज़ मिन्कुम् शु-हदा-अ, वल्लाहु ला युहिब्बुज़्ज़ालिमीन
यदि तुम्हें कोई घाव लगा है, तो क़ौम (शत्रु)[1] को भी इसी के समान घाव लग चुका है तथा उन दिनों को हम लोगों के बीच फेरते[2] रहते हैं। ताकि अल्लाह उन लोगों को जान ले,[1] जो ईमान लाये और तुममें से साक्षी बनाये और अल्लाह अत्याचारियों से प्रेम नहीं करता।
وَلِيُمَحِّصَ ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَيَمْحَقَ ٱلْكَـٰفِرِينَ
व लियु मह्हिसल्लाहुल्लज़ी-न आमनू व यम्ह-क़ल् काफ़िरीन
तथा ताकि अल्लाह उन्हें शुध्द कर दे, जो ईमान लाये हैं और काफ़िरों को नाश कर दे।
أَمْ حَسِبْتُمْ أَن تَدْخُلُوا۟ ٱلْجَنَّةَ وَلَمَّا يَعْلَمِ ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ جَـٰهَدُوا۟ مِنكُمْ وَيَعْلَمَ ٱلصَّـٰبِرِينَ
अम् हसिब्तुम् अन् तद्ख़ुलुल्-जन्न-त व लम्मा यअ्- लमिल्लाहुल्लज़ी-न जाहदू मिन्कुम् व यअ्-लमस्साबिरीन
क्या तुमने समझ रखा है कि स्वर्ग में प्रवेश कर जाओगे? जबकि अल्लाह ने (परीक्षा करके) उन्हें नहीं जाना है, जिन्होंने तुममें से जिहाद किया है और न सहनशीलों को जाना है?
وَلَقَدْ كُنتُمْ تَمَنَّوْنَ ٱلْمَوْتَ مِن قَبْلِ أَن تَلْقَوْهُ فَقَدْ رَأَيْتُمُوهُ وَأَنتُمْ تَنظُرُونَ
व ल-क़द् कुन्तुम् तमन्नौनल्मौ-त मिन् क़ब्लि अन् तल्क़ौहु, फ़-क़द् रऐतुमूहु व अन्तुम् तन्ज़ुरून
तथा तुम मौत की कामना कर[1] रहे थे, इससे पूर्व कि उसका सामना करो, तो अब तुमने उसे आँखों से देख लिया है और देख रहे हो।
وَمَا مُحَمَّدٌ إِلَّا رَسُولٌۭ قَدْ خَلَتْ مِن قَبْلِهِ ٱلرُّسُلُ ۚ أَفَإِي۟ن مَّاتَ أَوْ قُتِلَ ٱنقَلَبْتُمْ عَلَىٰٓ أَعْقَـٰبِكُمْ ۚ وَمَن يَنقَلِبْ عَلَىٰ عَقِبَيْهِ فَلَن يَضُرَّ ٱللَّهَ شَيْـًۭٔا ۗ وَسَيَجْزِى ٱللَّهُ ٱلشَّـٰكِرِينَ
व मा मुहम्मदुन् इल्ला रसूलुन्, क़द् ख़लत् मिन् कब्लिहिर्रुसुलु, अ-फ़-इम्मा-त औ क़ुतिलन्-क़लब्तुम् अ़ला अअ्क़ाबिकुम्, व मंय्यन्क़लिब् अ़ला अ़क़िबैहि फ़-लंय्यज़ुर्रल्ला-ह शैअन्, व स- यज्ज़िल्लाहुश्शाकिरीन
मुह़म्मद केवल एक रसूल हैं, इससे पहले बहुत-से रसूल हो चुके हैं, तो क्या यदि वो मर गये अथवा मार दिये गये, तो तुम अपनी एड़ियों के बल[1] फिर जाओगे? तथा जो अपनी एड़ियों के बल फिर जायेगा, वो अल्लाह को कुछ हानि नहीं पहुँचा सकेगा और अल्लाह शीघ्र ही कृतज्ञों को प्रतिफल प्रदान करेगा।
وَمَا كَانَ لِنَفْسٍ أَن تَمُوتَ إِلَّا بِإِذْنِ ٱللَّهِ كِتَـٰبًۭا مُّؤَجَّلًۭا ۗ وَمَن يُرِدْ ثَوَابَ ٱلدُّنْيَا نُؤْتِهِۦ مِنْهَا وَمَن يُرِدْ ثَوَابَ ٱلْـَٔاخِرَةِ نُؤْتِهِۦ مِنْهَا ۚ وَسَنَجْزِى ٱلشَّـٰكِرِينَ
व मा का-न लि-नफ़्सिन् अन् तमू-त इल्ला बि-इज़्निल्लाहि किताबम् मुअज्जलन्, व मंय्युरिद् सवाबद्दुन्या नुअ्तिही मिन्हा, व मंय्युरिद् सवाबल्-आख़ि-रति नुअ्तिही मिन्हा, व स-नज्ज़िश्शाकिरीन
कोई प्राणी ऐसा नहीं कि अल्लाह की अनुमति के बिना मर जाये, उसका अंकित निर्धारित समय है। जो सांसारिक प्रतिफल चाहेगा, हम उसे उसमें से कुछ देंगे तथा जो परलोक का प्रतिफल चाहेगा, हम उसे उसमें से देंगे और हम कृतज्ञों को शीघ्र ही प्रतिफल देंगे।
وَكَأَيِّن مِّن نَّبِىٍّۢ قَـٰتَلَ مَعَهُۥ رِبِّيُّونَ كَثِيرٌۭ فَمَا وَهَنُوا۟ لِمَآ أَصَابَهُمْ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ وَمَا ضَعُفُوا۟ وَمَا ٱسْتَكَانُوا۟ ۗ وَٱللَّهُ يُحِبُّ ٱلصَّـٰبِرِينَ
व क-अय्यिम् मिन् नबिय्यिन् क़ा-त-ल, म-अ़हू रिब्बिय्यू-न कसीरुन्, फ़मा व हनू लिमा असाबहुम् फ़ी सबीलिल्लाहि व मा ज़अुफ़ू व मस्तकानू, वल्लाहु युहिब्बुस्साबिरीन
कितने ही नबी थे, जिनके साथ होकर बहुत-से अल्लाह वालों ने युध्द किया, तो वे अल्लाह की राह में आयी आपदा पर न आलसी हुए, न निर्बल बने और न (शत्रु से) दबे तथा अल्लाह धैर्यवानों से प्रेम करता है।
وَمَا كَانَ قَوْلَهُمْ إِلَّآ أَن قَالُوا۟ رَبَّنَا ٱغْفِرْ لَنَا ذُنُوبَنَا وَإِسْرَافَنَا فِىٓ أَمْرِنَا وَثَبِّتْ أَقْدَامَنَا وَٱنصُرْنَا عَلَى ٱلْقَوْمِ ٱلْكَـٰفِرِينَ
व मा का-न क़ौलहुम् इल्ला अन् क़ालू रब्बनग़्फ़िर् लना ज़ुनूबना व इस्राफ़ना फ़ी अम्रिना व सब्बित् अक़्दामना वन्सुर्ना अ़लल्-क़ौमिल् काफ़िरीन
तथा उनका कथन बस यही था कि उन्होंने कहाः हे हमारे पालनहार! हमारे लिए हमारे पापों को क्षमा कर दे तथा हमारे विषय में हमारी अति को। और हमारे पैरों को दृढ़ कर दे और काफ़िर जाति के विरुध्द हमारी सहायता कर।
فَـَٔاتَىٰهُمُ ٱللَّهُ ثَوَابَ ٱلدُّنْيَا وَحُسْنَ ثَوَابِ ٱلْـَٔاخِرَةِ ۗ وَٱللَّهُ يُحِبُّ ٱلْمُحْسِنِينَ
फ़-आताहुमुल्लाहु सवाबद्दुन्या व हुस्-न सवाबिल्-आख़ि-रति, वल्लाहु युहिब्बुल-मुह़्सिनीन
तो अल्लाह ने उन्हें सांसारिक प्रतिफल तथा आख़िरत (परलोक) का अच्छा प्रतिफल प्रदान कर दिया तथा अल्लाह सुकर्मियों से प्रेम करता है।
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ إِن تُطِيعُوا۟ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ يَرُدُّوكُمْ عَلَىٰٓ أَعْقَـٰبِكُمْ فَتَنقَلِبُوا۟ خَـٰسِرِينَ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू इन् तुतीअुल्लज़ी-न क-फ़रू यरुद्रूकुम् अ़ला अअ्क़ाबिकुम् फ़-तन्क़लिबू ख़ासिरीन
हे ईमान वालो! यदि तुम काफ़िरों की बात मानोगे, तो वे तुम्हें तुम्हारी एड़ियों के बल फेर देंगे और तुम फिर से क्षति में पड़ जाओगे।
بَلِ ٱللَّهُ مَوْلَىٰكُمْ ۖ وَهُوَ خَيْرُ ٱلنَّـٰصِرِينَ
बलिल्लाहु मौलाकुम्, व हु-व ख़ैरुन्-नासिरीन
बल्कि अल्लाह तुम्हारा रक्षक है तथा वह सबसे अच्छा सहायक है।
سَنُلْقِى فِى قُلُوبِ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ ٱلرُّعْبَ بِمَآ أَشْرَكُوا۟ بِٱللَّهِ مَا لَمْ يُنَزِّلْ بِهِۦ سُلْطَـٰنًۭا ۖ وَمَأْوَىٰهُمُ ٱلنَّارُ ۚ وَبِئْسَ مَثْوَى ٱلظَّـٰلِمِينَ
सनुल्क़ी फ़ी क़ुलूबिल्लज़ी-न क-फ़रुर्रूअ्-ब बिमा अश्रकू बिल्लाहि मा लम् युनज़्ज़िल् बिही सुल्तानन्, व मअ्वाहुमुन्नारु, व बिअ्-स मस्वज़्ज़ालिमीन
शीघ्र ही हम काफ़िरों के दिलों में तुम्हारा भय डाल देंगे, इस कारण कि उन्होंने अल्लाह का साझी उसे बना लिया है, जिसका कोई तर्क (प्रमाण) अल्लाह ने नहीं उतारा है और इनका आवास नरक है और वह क्या ही बुरा आवास है?
وَلَقَدْ صَدَقَكُمُ ٱللَّهُ وَعْدَهُۥٓ إِذْ تَحُسُّونَهُم بِإِذْنِهِۦ ۖ حَتَّىٰٓ إِذَا فَشِلْتُمْ وَتَنَـٰزَعْتُمْ فِى ٱلْأَمْرِ وَعَصَيْتُم مِّنۢ بَعْدِ مَآ أَرَىٰكُم مَّا تُحِبُّونَ ۚ مِنكُم مَّن يُرِيدُ ٱلدُّنْيَا وَمِنكُم مَّن يُرِيدُ ٱلْـَٔاخِرَةَ ۚ ثُمَّ صَرَفَكُمْ عَنْهُمْ لِيَبْتَلِيَكُمْ ۖ وَلَقَدْ عَفَا عَنكُمْ ۗ وَٱللَّهُ ذُو فَضْلٍ عَلَى ٱلْمُؤْمِنِينَ
व ल-क़द् स-द-क़कुमुल्लाहु वअ्दहू इज़् तहुस्सूनहुम् बि-इज़्निही, हत्ता इज़ा फ़शिल्तुम् व तनाज़अ्तुम् फ़िल्अम्रि व अ़सैतुम् मिम्-बअ्दि मा अराकुम् मा तुहिब्बू-न, मिन्कुम् मंय्युरीदुदुन्या व मिन्कुम् मंय्युरीदुल्-आख़ि-र-त, सुम्-म स-र-फ़कुम् अ़न्हुम् लि-यब्तलि-यकुम्, व ल-क़द् अ़फ़ा अ़न्कुम्, वल्लाहु ज़ू फ़ज़्लिन् अ़लल् मुअ्मिनीन
तथा अल्लाह ने तुमसे अपना वचन सच कर दिखाया है, जब तुम उसकी अनुमति से, उनहें काट[1] रहे थे, यहाँ तक कि जब तुमने कायरता दिखायी तथा (रसूल के) आदेश[2] में विभेद कर लिया और अवज्ञा की, इसके पश्चात् कि तुम्हें वह (विजय) दिखा दी, जिसे तुम चाहते थे। तुममें से कुछ संसार चाहते हैं तथा कुछ परलोक चाहते हैं। फिर तुम्हें उनसे फेर दिया, ताकि तुम्हारी परीक्षा ले और तुम्हें क्षमा कर दिया तथा अल्लाह ईमान वालों के लिए दानशील है।
اِذْ تُصْعِدُوْنَ وَلَا تَلْوٗنَ عَلٰٓى اَحَدٍ وَّالرَّسُوْلُ يَدْعُوْكُمْ فِيْٓ اُخْرٰىكُمْ فَاَثَابَكُمْ غَمًّا ۢبِغَمٍّ لِّكَيْلَا تَحْزَنُوْا عَلٰى مَا فَاتَكُمْ وَلَا مَآ اَصَابَكُمْ ۗ وَاللّٰهُ خَبِيْرٌ ۢبِمَا تَعْمَلُوْنَ
इज़् तुस्अिदू-न व ला तल्वू-न अ़ला अ-हदिंव्-वर्रसूलु यद्अूकुम् फ़ी उख़्राकुम् फ़-असाबकुम् ग़म्मम्-बिग़म्मिल् लिकैला तह्ज़नू अ़ला मा फ़ातकुम् व ला मा असाबकुम, वल्लाहु ख़बीरुम् बिमा तअ्मलून
(और याद करो) जब तुम चढ़े (भागे) जा रहे थे और किसी की ओर मुड़कर नहीं देख रहे थे और रसूल तुम्हें तुम्हारे पीछे से पुकार[1] रहे थे, तो (अल्लाह ने) तुम्हें शोक के बदले शोक दे दिया, ताकि जो तुमसे खो गया और जो दुख तुम्हें पहुँचा, उसपर उदासीन न हो तथा अल्लाह उससे सूचित है, जो तुम कर रहे हो।
ثُمَّ أَنزَلَ عَلَيْكُم مِّنۢ بَعْدِ ٱلْغَمِّ أَمَنَةًۭ نُّعَاسًۭا يَغْشَىٰ طَآئِفَةًۭ مِّنكُمْ ۖ وَطَآئِفَةٌۭ قَدْ أَهَمَّتْهُمْ أَنفُسُهُمْ يَظُنُّونَ بِٱللَّهِ غَيْرَ ٱلْحَقِّ ظَنَّ ٱلْجَـٰهِلِيَّةِ ۖ يَقُولُونَ هَل لَّنَا مِنَ ٱلْأَمْرِ مِن شَىْءٍۢ ۗ قُلْ إِنَّ ٱلْأَمْرَ كُلَّهُۥ لِلَّهِ ۗ يُخْفُونَ فِىٓ أَنفُسِهِم مَّا لَا يُبْدُونَ لَكَ ۖ يَقُولُونَ لَوْ كَانَ لَنَا مِنَ ٱلْأَمْرِ شَىْءٌۭ مَّا قُتِلْنَا هَـٰهُنَا ۗ قُل لَّوْ كُنتُمْ فِى بُيُوتِكُمْ لَبَرَزَ ٱلَّذِينَ كُتِبَ عَلَيْهِمُ ٱلْقَتْلُ إِلَىٰ مَضَاجِعِهِمْ ۖ وَلِيَبْتَلِىَ ٱللَّهُ مَا فِى صُدُورِكُمْ وَلِيُمَحِّصَ مَا فِى قُلُوبِكُمْ ۗ وَٱللَّهُ عَلِيمٌۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ
सुम्-म अन्ज़-ल अ़लैकुम् मिम्-बअ्दिल्-ग़म्मि अ-म-नतन् नुआ़संय्यग़्शा ता-इ-फ़तम् मिन्कुम्, व ता-इ-फ़तुन् क़द् अहम्मत्हुम् अन्फ़ुसुहुम् यज़ुन्नू-न बिल्लाहि ग़ैरल्-हक़्क़ि ज़न्नल्-जाहिलिय्यति, यक़ूलू-न हल्-लना मिनल्-अम्रि मिन् शैइन्, क़ुल् इन्नल्-अम्-र कुल्लहू लिल्लाहि, युख़्फ़ू-न फ़ी अन्फ़ुसिहिम् मा ला युब्दू-न ल-क, यक़ूलू-न लौ का-न लना मिनल्-अम्रि शैउम् मा क़ुतिल्ना हाहुना, क़ुल् लौ कुन्तुम् फ़ी बुयूतीकुम् ल-ब-रज़ल्लज़ी-न कुति-ब अ़लैहिमुल्क़त्लु इला मज़ाजिअिहिम्, व लि-यब्तलियल्लाहु मा फ़ी सुदूरिकुम् व लियु-मह्हि-स मा फ़ी क़ुलूबिकुम्, वल्लाहु अ़लीमुम् बिज़ातिस्सुदूर
फिर तुमपर शोक के पश्चात् शान्ति (ऊँघ) उतार दी, जो तुम्हारे एक गिरोह[1] को आने लगी और एक गिरोह को अपनी[2] पड़ी हुई थी। वे अल्लाह के बारे में असत्य जाहिलिय्यत की सोच सोच रहे थे। वे कह रहे थे कि क्या हमारा भी कुछ अधिकार है? (हे नबी!) कह दें कि सब अधिकार अल्लाह को है। वे अपने मनों में जो छुपा रहे थे, आपको नहीं बता रहे थे। वे कह रहे थे कि यदि हमारा कुछ भी अधिकार होता, तो यहाँ मारे नहीं जाते। आप कह दें: यदि तुम अपने घरों में रहते, तबभी जिनके (भाग्य में) मारा जाना लिखा है, वे अपने निहत होने के स्थानों की ओर निकल आते और ताकि अल्लाह जो तुम्हारे दिलों में है, उसकी परीक्षा ले तथा जो तुम्हारे दिलों में है, उसे शुध्द कर दे और अल्लाह दिलों के भेदों से अवगत है।
إِنَّ ٱلَّذِينَ تَوَلَّوْا۟ مِنكُمْ يَوْمَ ٱلْتَقَى ٱلْجَمْعَانِ إِنَّمَا ٱسْتَزَلَّهُمُ ٱلشَّيْطَـٰنُ بِبَعْضِ مَا كَسَبُوا۟ ۖ وَلَقَدْ عَفَا ٱللَّهُ عَنْهُمْ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٌ حَلِيمٌۭ
इन्नल्लज़ी-न तवल्लौ मिन्कुम् यौमल्-तक़ल् जम्आ़नि, इन्नमस्तज़ल्लहुमुश्शैतानु बि-बअ्ज़ि मा क-सबू, व ल-क़द् अ़फ़ल्लाहु अ़न्हुम्, इन्नल्ला-ह ग़फ़ूरुन् हलीम
वस्तुतः तुममें से जिन्होंने दो गिरोहों के सम्मुख होने के दिन मुँह फेर लिया, शैतान ने उनहें उनके कुछ कुकर्मों के कारण फिसला दिया तथा अल्लाह ने उन्हें क्षमा कर दिया है। वास्तव में, अल्लाह अति क्षमाशील सहनशील है।
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ لَا تَكُونُوا۟ كَٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ وَقَالُوا۟ لِإِخْوَٰنِهِمْ إِذَا ضَرَبُوا۟ فِى ٱلْأَرْضِ أَوْ كَانُوا۟ غُزًّۭى لَّوْ كَانُوا۟ عِندَنَا مَا مَاتُوا۟ وَمَا قُتِلُوا۟ لِيَجْعَلَ ٱللَّهُ ذَٰلِكَ حَسْرَةًۭ فِى قُلُوبِهِمْ ۗ وَٱللَّهُ يُحْىِۦ وَيُمِيتُ ۗ وَٱللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌۭ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तकूनू कल्लज़ी-न क-फ़रू व क़ालू लि-इख़्वानिहिम् इज़ा ज़-रबू फ़िल्अर्ज़ि औ कानू ग़ुज़्ज़ल्-लौ कानू अिन्दना मा मातू व मा क़ुतिलू, लि-यज्अ़लल्लाहु ज़ालि-क हस्र-तन् फ़ी क़ुलूबिहिम्, वल्लाहु युह्-यी व युमीतु, वल्लाहु बिमा तअ्मलू-न बसीर
हे ईमान वालो! उनके समान न हो जाओ, जो काफ़िर हो गये तथा अपने भाईयों से -जब यात्रा में हों अथवा युध्द में- कहा कि यदि वे हमारे पास होते, तो न मरते और न मारे जाते, ताकि अल्लाह उनके दिलों में इसे संताप बना दे और अल्लाह ही जीवित करता तथा मौत देता है और अल्लाह जो तुम कर रहे हो, उसे देख रहा है।
وَلَئِن قُتِلْتُمْ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ أَوْ مُتُّمْ لَمَغْفِرَةٌۭ مِّنَ ٱللَّهِ وَرَحْمَةٌ خَيْرٌۭ مِّمَّا يَجْمَعُونَ
व ल-इन् क़ुतिल्तुम् फ़ी सबीलिल्लाहि औ मुत्तुम् ल -मग़्फ़ि-रतुम् मिनल्लाहि व रह्-मतुन् ख़ैरुम् मिम्मा यज्मअून
यदि तुम अल्लाह की राह में मार दिये जाओ अथवा मर जाओ, तो अल्लाह की क्षमा उससे उत्तम है, जो, लोग एकत्र कर रहे हैं।
وَلَئِن مُّتُّمْ أَوْ قُتِلْتُمْ لَإِلَى ٱللَّهِ تُحْشَرُونَ
व ल-इम्मु-त्तुम् औ क़ुतिल्तुम् ल-इलल्लाहि तुह्शरून
तथा यदि तुम मर गये अथवा मार दिये गये, तो अल्लाह ही के पास एकत्र किये जाओगे।
فَبِمَا رَحْمَةٍۢ مِّنَ ٱللَّهِ لِنتَ لَهُمْ ۖ وَلَوْ كُنتَ فَظًّا غَلِيظَ ٱلْقَلْبِ لَٱنفَضُّوا۟ مِنْ حَوْلِكَ ۖ فَٱعْفُ عَنْهُمْ وَٱسْتَغْفِرْ لَهُمْ وَشَاوِرْهُمْ فِى ٱلْأَمْرِ ۖ فَإِذَا عَزَمْتَ فَتَوَكَّلْ عَلَى ٱللَّهِ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ يُحِبُّ ٱلْمُتَوَكِّلِينَ
फ़बिमा रह्-मतिम् मिनल्लाहि लिन्-त लहुम्, व लौ कुन्-त फ़ज़्ज़न् ग़लीज़ल्क़ल्बि लन्फ़ज़्ज़ू मिन् हौलि-क, फ़अ्फ़ु अ़न्हुम् वस्तग़्फ़िर् लहुम् व शाविर्हुम् फ़िल्-अम्रि, फ़-इज़ा अ़ज़म्-त फ़-तवक्कल् अ़लल्लाहि, इन्नल्ला-ह युहिब्बुल मु-तवक्किलीन।
अल्लाह की दया के कारण ही आप उनके लिए[1] कोमल (सुशील) हो गये और यदि आप अक्खड़ तथा कड़े दिल के होते, तो वे आपके पास से बिखर जाते। अतः, उन्हें क्षमा कर दो और उनके लिए क्षमा की प्रार्थना करो तथा उनसे भी मामले में प्रामर्श करो, फिर जब कोई दृढ़ संकल्प ले लो, तो अल्लाह पर भरोसा करो। निःसंदेह, अल्लाह भरोसा रखने वालों से प्रेम करता है।
إِن يَنصُرْكُمُ ٱللَّهُ فَلَا غَالِبَ لَكُمْ ۖ وَإِن يَخْذُلْكُمْ فَمَن ذَا ٱلَّذِى يَنصُرُكُم مِّنۢ بَعْدِهِۦ ۗ وَعَلَى ٱللَّهِ فَلْيَتَوَكَّلِ ٱلْمُؤْمِنُونَ
इंय्यन्सुर्कुमुल्लाहु फ़ला ग़ालि-ब लकुम्, व इंय्यख़्ज़ुल्कुम् फ़-मन् ज़ल्लज़ी यन्सुरुकुम् मिम्- बअ्दिही, व अ़लल्लाहि फ़ल्य-तवक्कलिल् मुअ्मिनून
यदि अल्लाह तुम्हारी सहायता करे, तो तुमपर कोई प्रभुत्व नहीं पा सकता तथा यदि तुम्हारी सहायता न करे, तो फिर कौन है, जो उसके पश्चात तुम्हारी सहायता कर सके? अतः ईमान वालों को अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिये।
وَمَا كَانَ لِنَبِىٍّ أَن يَغُلَّ ۚ وَمَن يَغْلُلْ يَأْتِ بِمَا غَلَّ يَوْمَ ٱلْقِيَـٰمَةِ ۚ ثُمَّ تُوَفَّىٰ كُلُّ نَفْسٍۢ مَّا كَسَبَتْ وَهُمْ لَا يُظْلَمُونَ
व मा का-न लि-नबिय्यिन् अंय्यग़ुल्-ल, व मंय्यग़्लुल् यअ्ति बिमा ग़ल्-ल यौमल्-क़ियामति, सुम्-म तुवफ़्फ़ा कुल्लु नफ़्सिम् मा क-सबत् व हुम् ला युज़्लमून
किसी नबी के लिए योग्य नहीं कि अपभोग[1] करे और जो अपभोग करेगा, प्रलय के दिन उसे लायेगा। फिर प्रत्येक प्राणी को, उसकी कमाई का भरपूर प्रतिकार (बदला) दिया जायेगा तथा उनपर अत्याचार नहीं किया जायेगा।
أَفَمَنِ ٱتَّبَعَ رِضْوَٰنَ ٱللَّهِ كَمَنۢ بَآءَ بِسَخَطٍۢ مِّنَ ٱللَّهِ وَمَأْوَىٰهُ جَهَنَّمُ ۚ وَبِئْسَ ٱلْمَصِيرُ
अ-फ़ मनित्त-ब-अ़ रिज़्वानल्लाहि क-मम्बा-अ बि-स-ख़तिम् मिनल्लाहि व मअ्वाहु जहन्नमु, व बिअ्सल्-मसीर
तो क्या जिसने अल्लाह की प्रसन्नता का अनुसरण किया हो, उसके समान हो जायेगा, जो अल्लाह का क्रोध[1] लेकर फिरा और उसका आवास नरक है?
هُمْ دَرَجَـٰتٌ عِندَ ٱللَّهِ ۗ وَٱللَّهُ بَصِيرٌۢ بِمَا يَعْمَلُونَ
हुम् द-रजातुन् अिन्दल्लाहि, वल्लाहु बसीरुम्-बिमा यअ्मलून
अल्लाह के पास उनकी श्रेणियाँ हैं तथा अल्लाह उसे देख[1] रहा है, जो वे कर रहे हैं।
لَقَدْ مَنَّ ٱللَّهُ عَلَى ٱلْمُؤْمِنِينَ إِذْ بَعَثَ فِيهِمْ رَسُولًۭا مِّنْ أَنفُسِهِمْ يَتْلُوا۟ عَلَيْهِمْ ءَايَـٰتِهِۦ وَيُزَكِّيهِمْ وَيُعَلِّمُهُمُ ٱلْكِتَـٰبَ وَٱلْحِكْمَةَ وَإِن كَانُوا۟ مِن قَبْلُ لَفِى ضَلَـٰلٍۢ مُّبِينٍ
ल-क़द् मन्नल्लाहु अ़लल् मुअ्मिनी-न इज़् ब-अ़-स फ़ीहिम् रसूलम्-मिन् अन्फ़ुसिहिम् यत्लू अ़लैहिम् आयातिही व युज़क्कीहिम् व युअ़ल्लिमुहुमुल्-किता-ब वल्-हिक्म-त, व इन् कानू मिन् क़ब्लु लफ़ी ज़लालिम् मुबीन
अल्लाह ने ईमान वालों पर उपकार किया है कि उनमें उन्हीं में से एक रसूल भेजा, जो उनके सामने (अल्लाह) की आयतें पढ़ता है, उन्हें शुध्द करता है तथा उन्हें पुस्तक (क़ुर्आन) और ह़िक्मत (सुन्नत) की शिक्षा देता है, यद्यपि वे इससे पहले खुले कुपथ में थे।
أَوَلَمَّآ أَصَـٰبَتْكُم مُّصِيبَةٌۭ قَدْ أَصَبْتُم مِّثْلَيْهَا قُلْتُمْ أَنَّىٰ هَـٰذَا ۖ قُلْ هُوَ مِنْ عِندِ أَنفُسِكُمْ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍۢ قَدِيرٌۭ
अ-व-लम्मा असाबत्कुम् मुसीबतुन् क़द् असब्तुम् मिस्लैहा, क़ुल्तुम् अन्ना हाज़ा, क़ुल् हु-व मिन् अिन्दि अन्फ़ुसिकुम्, इन्नल्ला-ह अ़ला कुल्लि शैइन् क़दीर
तथा जब तुम्हें एक दुःख पहुँचा,[1] जबकि इसके दुगना (दुःख) तुमने (उन्हें) पहुँचाया है[2], तो तुमने कह दिया कि ये कहाँ से आ गया? (हे नबी!) कह दोः ये तुम्हारे पास से[3] आया है। वास्तव में, अल्लाह जो चाहे, कर सकता है।
وَمَآ أَصَـٰبَكُمْ يَوْمَ ٱلْتَقَى ٱلْجَمْعَانِ فَبِإِذْنِ ٱللَّهِ وَلِيَعْلَمَ ٱلْمُؤْمِنِينَ
व मा असाबकुम् यौमल्-तक़ल् जम्आ़नि फ़बि-इज़्निल्लाहि व लि-यअ्-लमल् मुअ्मिनीन
तथा जो भी आपदा, दो गिरोहों के सम्मुख होने के दिन, तुमपर आई, तो वो अल्लाह की अनुमति से (आई)। ताकि वह ईमान वालों को जान ले।
وَلِيَعْلَمَ ٱلَّذِينَ نَافَقُوا۟ ۚ وَقِيلَ لَهُمْ تَعَالَوْا۟ قَـٰتِلُوا۟ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ أَوِ ٱدْفَعُوا۟ ۖ قَالُوا۟ لَوْ نَعْلَمُ قِتَالًۭا لَّٱتَّبَعْنَـٰكُمْ ۗ هُمْ لِلْكُفْرِ يَوْمَئِذٍ أَقْرَبُ مِنْهُمْ لِلْإِيمَـٰنِ ۚ يَقُولُونَ بِأَفْوَٰهِهِم مَّا لَيْسَ فِى قُلُوبِهِمْ ۗ وَٱللَّهُ أَعْلَمُ بِمَا يَكْتُمُونَ
व लि-यअ्-लमल्लज़ी-न नाफ़क़ू, व क़ी-ल लहुम् तआ़लौ क़ातिलू फ़ी सबीलिल्लाहि अविद्फ़अू, क़ालू लौ नअ्लमु क़ितालल्- लत्त-बअ्नाकुम, हुम् लिल्कुफ़्रि यौमइज़िन् अक़्रबु मिन्हुम् लिल्-ईमानि, यक़ूलू-न बिअफ़्वाहिहिम् मा लै-स फ़ी क़ुलूबिहिम्, वल्लाहु अअ्लमु बिमा यक्तुमून
और ताकि उन्हें जान ले, जो मुनाफ़िक़ हैं। (जब) उनसे कहा गया कि आओ, अल्लाह की राह में युध्द करो अथवा रक्षा करो, तो उन्होंने कहा कि यदि हम युध्द होना जानते, तो अवश्य तुम्हारा साथ देते। वे उस दिन ईमान से अधिक कुफ़्र के समीप थे, व अपने मुखों से ऐसी बात बोल रहे थे, जो उनके दिलों में नहीं थी तथा अल्लाह, जिसे वे छुपा रहे थे, अधिक जानता था।
ٱلَّذِينَ قَالُوا۟ لِإِخْوَٰنِهِمْ وَقَعَدُوا۟ لَوْ أَطَاعُونَا مَا قُتِلُوا۟ ۗ قُلْ فَٱدْرَءُوا۟ عَنْ أَنفُسِكُمُ ٱلْمَوْتَ إِن كُنتُمْ صَـٰدِقِينَ
अल्लज़ी-न क़ालू लि-इख़्वानिहिम् व क़-अ़दू लौ अताअूना मा क़ुतिलू, क़ुल् फ़द्रऊ अ़न् अन्फ़ुसिकुमुल्मौ-त इन् कुन्तुम् सादिक़ीन
इन्होंने ही अपने भाईयों से कहा और (स्वयं घरों में) आसीन रह गयेः यदि वे हमारी बात मानते, तो मारे नहीं जाते! (हे नबी!) कह दोः फिर तो मौत से[1] अपनी रक्षा कर लो, यदि तुम सच्चे हो।
وَلَا تَحْسَبَنَّ ٱلَّذِينَ قُتِلُوا۟ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ أَمْوَٰتًۢا ۚ بَلْ أَحْيَآءٌ عِندَ رَبِّهِمْ يُرْزَقُونَ
व ला तह्सबन्नल्लज़ी-न क़ुतिलू फ़ी सबीलिल्लाहि अम्वातन्, बल् अह्-याउन् अिन्-द रब्बिहिम् युर्ज़क़ून
जो अल्लाह की राह में मार दिये गये, तो तुम उन्हें मरा हुआ न समझो, बल्कि वे जीवित हैं[1], अपने पालनहार के पास जीविका दिये जा रहे हैं।
فَرِحِينَ بِمَآ ءَاتَىٰهُمُ ٱللَّهُ مِن فَضْلِهِۦ وَيَسْتَبْشِرُونَ بِٱلَّذِينَ لَمْ يَلْحَقُوا۟ بِهِم مِّنْ خَلْفِهِمْ أَلَّا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ
फ़रिही न बिमा आताहुमुल्लाहु मिन् फ़ज़्लिही, व यस्तब्शिरू-न बिल्लज़ी-न लम् यल्हक़ू बिहिम् मिन् ख़ाल्फिहिम्, अल्ला ख़ौफ़ुन् अ़लैहिम् व ला हुम् यह्ज़नून
तथा उससे प्रसन्न हैं, जो अल्लाह ने उन्हें अपनी दया से प्रदान किया है और उनके लिए प्रसन्न (हर्षित) हो रहे हैं, जो उनसे मिले नहीं, उनके पीछे[1] रह गये हैं कि उन्हें कोई डर नहीं होगा और न वे उदासीन होंगे।
يَسْتَبْشِرُوْنَ بِنِعْمَةٍ مِّنَ اللّٰهِ وَفَضْلٍۗ وَاَنَّ اللّٰهَ لَا يُضِيْعُ اَجْرَ الْمُؤْمِنِيْنَ ࣖ
यस्तब्शिरू-न बिनिअ्मतिम् मिनल्लाहि व फ़ज़्लिंव्-व अन्नल्ला-ह ला युज़ीअु अज्रल् मुअ्मिनीन
वे अल्लाह के पुरस्कार और प्रदान के कारण प्रसन्न हो रहे हैं तथा इसपर कि अल्लाह ईमान वालों का प्रतिफल व्यर्थ नहीं करता।
ٱلَّذِينَ ٱسْتَجَابُوا۟ لِلَّهِ وَٱلرَّسُولِ مِنۢ بَعْدِ مَآ أَصَابَهُمُ ٱلْقَرْحُ ۚ لِلَّذِينَ أَحْسَنُوا۟ مِنْهُمْ وَٱتَّقَوْا۟ أَجْرٌ عَظِيمٌ
अल्लज़ीनस्तजाबू लिल्लाहि वर्रसूलि मिम्-बअ्दि मा असाबहुमुल्क़र्हु, लिल्लज़ी-न अह्सनू मिन्हुम् वत्तक़ौ अज्रुन् अ़ज़ीम
जिन्होंने अल्लाह और रसूल की पुकार स्वीकार[1] की, इसके पश्चात् कि उन्हें आघात पहुँचा, उनमें से उनके लिए जिन्होंने सुकर्म किया तथा (अल्लाह से) डरे, महा प्रतिफल है।
ٱلَّذِينَ قَالَ لَهُمُ ٱلنَّاسُ إِنَّ ٱلنَّاسَ قَدْ جَمَعُوا۟ لَكُمْ فَٱخْشَوْهُمْ فَزَادَهُمْ إِيمَـٰنًۭا وَقَالُوا۟ حَسْبُنَا ٱللَّهُ وَنِعْمَ ٱلْوَكِيلُ
अल्लज़ी-न क़ा-ल लहुमुन्नासु इन्नन्ना-स क़द् ज-मअू लकुम् फ़ख़्शौहुम् फ़-ज़ादहुम् ईमानंव्-व क़ालू हस्बुनल्लाहु व निअ्मल् वकील
ये वे लोग हैं, जिनसे लोगों ने कहा कि तुम्हारे लिए लोगों (शत्रु) ने (वापिस आने का) संकल्प[1] लिया है। अतः उनसे डरो, तो इस (सूचना) ने उनके ईमान को और अधिक कर दिया और उन्होंने कहाः हमें अल्लाह बस है और वह अच्छा काम बनाने वाला है।
فَٱنقَلَبُوا۟ بِنِعْمَةٍۢ مِّنَ ٱللَّهِ وَفَضْلٍۢ لَّمْ يَمْسَسْهُمْ سُوٓءٌۭ وَٱتَّبَعُوا۟ رِضْوَٰنَ ٱللَّهِ ۗ وَٱللَّهُ ذُو فَضْلٍ عَظِيمٍ
फ़न्क़-लबू बिनिअ्मतिम्-मिनल्लाहि व फ़ज़्लिल्-लम् यम्सस्हुम् सूउंव्-वत्त-बअू रिज़्वानल्लाहि, वल्लाहु ज़ू फ़ज़्लिन् अ़ज़ीम
तथा अल्लाह के अनुग्रह एवं दया के साथ[1] वापिस हुए। उन्हें कोई दुःख नहीं पहुँचा तथा अल्लाह की प्रसन्नता पर चले और अल्लाह बड़ा दयाशील है।
إِنَّمَا ذَٰلِكُمُ ٱلشَّيْطَـٰنُ يُخَوِّفُ أَوْلِيَآءَهُۥ فَلَا تَخَافُوهُمْ وَخَافُونِ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ
इन्नमा ज़ालिकुमुश्शैतानु युख़व्विफ़ु औलिया-अहू, फ़ला तख़ाफ़ूहुम् व ख़ाफ़ूनि इन् कुन्तुम् मुअ्मिनीन
वह शैतान है, जो तुम्हें अपने सहयोगियों से डरा रहा है, तो उनसे[1] न डरो तथा मुझी से डरो यदि तुम ईमान वाले हो।
وَلَا يَحْزُنكَ ٱلَّذِينَ يُسَـٰرِعُونَ فِى ٱلْكُفْرِ ۚ إِنَّهُمْ لَن يَضُرُّوا۟ ٱللَّهَ شَيْـًۭٔا ۗ يُرِيدُ ٱللَّهُ أَلَّا يَجْعَلَ لَهُمْ حَظًّۭا فِى ٱلْـَٔاخِرَةِ ۖ وَلَهُمْ عَذَابٌ عَظِيمٌ
व ला यह्ज़ुन्कल्लज़ी-न युसारिअू-न फ़िल्कुफ्रि, इन्नहुम् लंय्यज़ुर्रुल्ला-ह शैअन्, युरीदुल्लाहु अल्ला यज्अ़-ल लहुम् हज़्ज़न् फ़िल्-आख़िरति, व लहुम् अ़ज़ाबुन् अ़ज़ीम
(हे नबी!) आपको वे काफ़िर उदासीन न करें, जो कुफ़्र में अग्रसर हैं, वे अल्लाह को कोई हानि नहीं पहुँचा सकेंगे। अल्लाह चाहता है कि आख़िरत (परलोक) में उनका कोई भाग न बनाये तथा उन्हीं के लिए घोर यातना है।
إِنَّ ٱلَّذِينَ ٱشْتَرَوُا۟ ٱلْكُفْرَ بِٱلْإِيمَـٰنِ لَن يَضُرُّوا۟ ٱللَّهَ شَيْـًۭٔا وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌۭ
इन्नल्लज़ीनश्-त-रवुल्-क़ुफ़्-र बिल्-ईमानि लंय्यज़ुर्रुल्ला-ह शैअन्, व लहुम् अ़ज़ाबुन् अलीम
वस्तुतः जिन्होंने ईमान के बदले कुफ़्र खरीद लिया, वे अल्लाह को कोई हानि नहीं पहुँचा सकेंगे तथा उन्हीं के दुःखदायी यातना है।
وَلَا يَحْسَبَنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓا۟ أَنَّمَا نُمْلِى لَهُمْ خَيْرٌۭ لِّأَنفُسِهِمْ ۚ إِنَّمَا نُمْلِى لَهُمْ لِيَزْدَادُوٓا۟ إِثْمًۭا ۚ وَلَهُمْ عَذَابٌۭ مُّهِينٌۭ
व ला यह्सबन्नल्लज़ी-न क-फ़रू अन्नमा नुम्ली लहुम् ख़ौरुल् लिअन्फ़ुसिहिम्, इन्नमा नुम्ली लहुम् लि-यज़्दादू इस्मन्, व लहुम् अ़ज़ाबुम्- मुहीन
जो काफ़िर हो गये, वे कदापि ये न समझें कि हमारा उन्हें अवसर[1] देना, उनके लिए अच्छा है, वास्तव में, हम उन्हें इसलिए अवसर दे रहे हैं कि उनके पाप[2] अधिक हो जायेँ तथा उन्हीं के लिए अपमानकारी यातना है।
مَّا كَانَ ٱللَّهُ لِيَذَرَ ٱلْمُؤْمِنِينَ عَلَىٰ مَآ أَنتُمْ عَلَيْهِ حَتَّىٰ يَمِيزَ ٱلْخَبِيثَ مِنَ ٱلطَّيِّبِ ۗ وَمَا كَانَ ٱللَّهُ لِيُطْلِعَكُمْ عَلَى ٱلْغَيْبِ وَلَـٰكِنَّ ٱللَّهَ يَجْتَبِى مِن رُّسُلِهِۦ مَن يَشَآءُ ۖ فَـَٔامِنُوا۟ بِٱللَّهِ وَرُسُلِهِۦ ۚ وَإِن تُؤْمِنُوا۟ وَتَتَّقُوا۟ فَلَكُمْ أَجْرٌ عَظِيمٌۭ
मा कानल्लाहु लि-य-ज़रल् मुअ्मिनी-न अ़ला मा अन्तुम् अ़लैहि हत्ता यमीज़ल्-ख़बी-स मिनत्तय्यिबि, व मा कानल्लाहु लियुत्लि-अ़कुम् अ़लल्-ग़ैबि व लाकिन्नल्ला-ह यज्तबी मिर्रुसुलिही मंय्यशा-उ, फ़-आमिनू बिल्लाहि व रुसुलिही, व इन् तुअ्मिनू व तत्तक़ू फ़-लकुम् अज्रून् अ़ज़ीम
अल्लाह ऐसा नहीं है कि ईमान वालों को उसी (दशा) पर छोड़ दे, जिसपर तुम हो, जब तक बुरे को अच्छे से अलग न कर दे और अल्लाह ऐसा (भी) नहीं है कि तुम्हें ग़ैब (परोक्ष) से[1] सूचित कर दे, परन्तु अल्लाह अपने रसूलों में से (परोक्ष पर अवगत करने के लिए) जिसे चाहे, चुन लेता है तथा यदि तुम ईमान लाओ और अल्लाह से डरते रहो, तो तुम्हारे लिए बड़ा प्रतिफल है।
وَلَا يَحْسَبَنَّ ٱلَّذِينَ يَبْخَلُونَ بِمَآ ءَاتَىٰهُمُ ٱللَّهُ مِن فَضْلِهِۦ هُوَ خَيْرًۭا لَّهُم ۖ بَلْ هُوَ شَرٌّۭ لَّهُمْ ۖ سَيُطَوَّقُونَ مَا بَخِلُوا۟ بِهِۦ يَوْمَ ٱلْقِيَـٰمَةِ ۗ وَلِلَّهِ مِيرَٰثُ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ ۗ وَٱللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرٌۭ
व ला यह्सबन्नल्लज़ी-न यब्ख़लू-न बिमा आताहुमुल्लाहु मिन् फज़्लिही हु-व ख़ैरल्लहुम्, बल् हु-व शर्रूल्लहुम्, सयुतव्वक़ू-न मा बख़िलू बिही यौमल्-क़ियामति, व लिल्लाहि मीरासुस्समावाति वल् अर्ज़ि, वल्लाहु बिमा तअ्मलू-न ख़बीर
वे लोग कदापि ये न समझें, जो उसमें कृपण (कंजसी) करते हैं, जो अल्लाह ने उन्हों अपनी दया से प्रदान किया[1] है कि वह उनके लिए अच्छा है, बल्कि वह उनके लिए बुरा है, जिसमें उन्होंने कृपण किया है। प्रलय के दिन उसे उनके गले का हार[2] बना दिया जायेगा और आकाशों तथा धरती की मीरास (उत्तराधिकार) अल्लाह के[3] लिए है तथा अल्लाह जो कुछ तुम करते हो, उससे सूचित है।
لَّقَدْ سَمِعَ ٱللَّهُ قَوْلَ ٱلَّذِينَ قَالُوٓا۟ إِنَّ ٱللَّهَ فَقِيرٌۭ وَنَحْنُ أَغْنِيَآءُ ۘ سَنَكْتُبُ مَا قَالُوا۟ وَقَتْلَهُمُ ٱلْأَنۢبِيَآءَ بِغَيْرِ حَقٍّۢ وَنَقُولُ ذُوقُوا۟ عَذَابَ ٱلْحَرِيقِ
ल-क़द् समिअ़ल्लाहु क़ौलल्लज़ी-न क़ालू इन्नल्ला-ह फ़क़ीरूंव्-व नह्नु अग़्निया-उ, सनक्तुबु मा क़ालू व क़त्लहुमुल्-अम्बिया-अ बिग़ैरि हक़्क़िंव्-व नक़ूलु ज़ूक़ू अ़ज़ाबल् हरीक़
अल्लाह ने उनकी बात सुन ली है, जिन्होंने कहा कि अल्लाह निर्धन और हम धनी[1] हैं, उन्होंने जो कुछ कहा है, हम उसे लिख लेंगे और उनके नबियों की अवैध हत्या करने को भी, तथा कहेंगे कि दहन की यातना चखो।
ذَٰلِكَ بِمَا قَدَّمَتْ أَيْدِيكُمْ وَأَنَّ ٱللَّهَ لَيْسَ بِظَلَّامٍۢ لِّلْعَبِيدِ
ज़ालि-क बिमा क़द्द-मत् ऐदीकुम् व अन्नल्ला-ह लै-स बिज़ल्लामिल् लिल्-अ़बीद
ये तुम्हारे करतूतों का दुष्परिणाम है तथा वास्तव में, अल्लाह बंदों के लिए तनिक भी अत्याचारी नहीं है।
ٱلَّذِينَ قَالُوٓا۟ إِنَّ ٱللَّهَ عَهِدَ إِلَيْنَآ أَلَّا نُؤْمِنَ لِرَسُولٍ حَتَّىٰ يَأْتِيَنَا بِقُرْبَانٍۢ تَأْكُلُهُ ٱلنَّارُ ۗ قُلْ قَدْ جَآءَكُمْ رُسُلٌۭ مِّن قَبْلِى بِٱلْبَيِّنَـٰتِ وَبِٱلَّذِى قُلْتُمْ فَلِمَ قَتَلْتُمُوهُمْ إِن كُنتُمْ صَـٰدِقِينَ
अल्लज़ी-न क़ालू इन्नल्ला-ह अ़हि-द इलैना अल्ला नुअ्मि-न लि-रसूलिन् हत्ता यअ्ति-यना बिक़ुर्बानिन् तअ्कुलुहुन्नारु, क़ुल् क़द् जा-अकुम् रुसुलुम् मिन् क़ब्ली बिल्-बय्यिनाति व बिल्लज़ी क़ुल्तुम् फ़लि-म क़तल्तुमूहुम् इन् कुन्तुम् सादिक़ीन
जिन्होंने कहाः अल्लाह ने हमसे वचन लिया है कि किसी रसूल का विश्वास न करें, जब तक हमारे समक्ष ऐसी बली न दें, जिसे अग्नि खा[1] जाये। (हे नबी!) आप कह दें कि मुझसे पूर्व बहुत-से रसूल खुली निशानियाँ और वो चीज़ लाये, जो तुमने कही, तो तुमने उनकी हत्या क्यों कर दी, यदि तुम सच्चे हो तो?
فَإِن كَذَّبُوكَ فَقَدْ كُذِّبَ رُسُلٌۭ مِّن قَبْلِكَ جَآءُو بِٱلْبَيِّنَـٰتِ وَٱلزُّبُرِ وَٱلْكِتَـٰبِ ٱلْمُنِيرِ
फ़-इन् कज़्ज़बू-क फ़-क़द् कुज़्ज़ि-ब रुसुलुम् मिन् क़ब्लि-क जाऊ बिल्बय्यिनाति वज़्ज़ुबुरि वल्-किताबिल् मुनीर
फिर यदि इन्होंने[1] आपको झुठला दिया, तो आपसे पहले भी बहुत-से रसूल झुठलाये गये हैं, जो खुली निशानियाँ तथा (आकाशीय) ग्रंथ और प्रकाशक पुस्तकें लाये[2]।
كُلُّ نَفْسٍۢ ذَآئِقَةُ ٱلْمَوْتِ ۗ وَإِنَّمَا تُوَفَّوْنَ أُجُورَكُمْ يَوْمَ ٱلْقِيَـٰمَةِ ۖ فَمَن زُحْزِحَ عَنِ ٱلنَّارِ وَأُدْخِلَ ٱلْجَنَّةَ فَقَدْ فَازَ ۗ وَمَا ٱلْحَيَوٰةُ ٱلدُّنْيَآ إِلَّا مَتَـٰعُ ٱلْغُرُورِ
कुल्लु नफ़्सिन् ज़ा-इ-क़तुल्मौति, व इन्नमा तुवफ़्फ़ौ-न उजू-रकुम् यौमल्-क़ियामति, फ़-मन् ज़ुह्ज़ि-ह अ़निन्नारि व उद्ख़िलल्-जन्न-त फ़-क़द् फ़ा-ज़, व मल्हयातुद्-दुन्या इल्ला मताअुल् ग़ुरूर
प्रत्येक प्राणी को मौत का स्वाद चखना है और तुम्हें, तुम्हारे कर्मों का प्रलय के दिन भरपूर प्रतिफल दिया जायेगा, तो (उस दिन) जो व्यक्ति नरक से बचा लिया गया तथा स्वर्ग में प्रवेश पा गया[1], तो वह सफल हो गया तथा सांसारिक जीवन धोखे की पूंजी के सिवा कुछ नहीं है।
لَتُبْلَوُنَّ فِيْٓ اَمْوَالِكُمْ وَاَنْفُسِكُمْۗ وَلَتَسْمَعُنَّ مِنَ الَّذِيْنَ اُوْتُوا الْكِتٰبَ مِنْ قَبْلِكُمْ وَمِنَ الَّذِيْنَ اَشْرَكُوْٓا اَذًى كَثِيْرًا ۗ وَاِنْ تَصْبِرُوْا وَتَتَّقُوْا فَاِنَّ ذٰلِكَ مِنْ عَزْمِ الْاُمُوْرِ
लतुब्लवुन् न फ़ी अम्वालिकुम् व अन्फ़ुसिकुम्, व ल-तस्मअुन्-न मिनल्लज़ी-न ऊतुल्-किता-ब मिन् क़ब्लिकुम् व मिनल्लज़ी-न अश्रकू अज़न् कसीरन्, व इन् तस्बिरू व तत्तक़ू फ़-इन्-न ज़ालि-क मिन् अ़ज़्मिल उमूर
(हे ईमान वालो!) तुम्हारे धनों तथा प्राणों में तुम्हारी परीक्षा अवश्य ली जायेगी और तुम उनसे अवश्य बहुत सी दुःखद बातें सुनोगे, जो तुमसे पूर्व पुस्तक दिये गये तथा उनसे जो मिश्रणवादी[1] हैं। अब यदि तुमने सहन किया और (अल्लाह से) डरते रहे, तो ये बड़ी साहस की बात होगी।
وَإِذْ أَخَذَ ٱللَّهُ مِيثَـٰقَ ٱلَّذِينَ أُوتُوا۟ ٱلْكِتَـٰبَ لَتُبَيِّنُنَّهُۥ لِلنَّاسِ وَلَا تَكْتُمُونَهُۥ فَنَبَذُوهُ وَرَآءَ ظُهُورِهِمْ وَٱشْتَرَوْا۟ بِهِۦ ثَمَنًۭا قَلِيلًۭا ۖ فَبِئْسَ مَا يَشْتَرُونَ
व इज़् अ-ख़ज़ल्लाहु मिसाक़ल्लज़ी-न ऊतुल्-किता-ब लतु-बय्यिनुन्नहू लिन्नासि व ला तक्तुमूनहू, फ़-न-बज़ूहु वरा-अ ज़ुहूरिहिम् वश्तरौ बिही स-मनन् क़लीलन्, फ़-बिअ्-स मा यश्तरून
तथा (हे नबी! याद करो) जब अल्लाह ने उनसे दृढ़ वचन लिया था, जो पुस्तक[1] दिये गये कि तुम अवश्य इसे लोगों के लिए उजागर करते रहोगे और इसे छुपाओगे नहीं। तो उन्होंने इस वचन को अपने पीछे डाल दिया (भंग कर दिया) और उसके बदले तनिक मूल्य खरीद[2] लिया। तो वे कितनी बुरी चीज़ खरीद रहे हैं?
لَا تَحْسَبَنَّ ٱلَّذِينَ يَفْرَحُونَ بِمَآ أَتَوا۟ وَّيُحِبُّونَ أَن يُحْمَدُوا۟ بِمَا لَمْ يَفْعَلُوا۟ فَلَا تَحْسَبَنَّهُم بِمَفَازَةٍۢ مِّنَ ٱلْعَذَابِ ۖ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌۭ
ला तह्सबन्नल्लज़ी-न यफ़्रहू-न बिमा अतव्-व युहिब्बू – न अंय्युह्-मदू बिमा लम् यफ़्अ़लू फ़ला तह्सबन्नहुम् बि-मफ़ाज़तिम् मिनल्-अ़ज़ाबि, व लहुम् अ़ज़ाबुन् अलीम
(हे नबी!) जो[1] अपने करतूतों पर प्रसन्न हो रहे हैं और चाहते हैं कि उन कर्मों के लिए सराहे जायें, जो उन्होंने नहीं किये। आप उन्हें कदापि न समझें कि यातना से बचे रहेंगे तथा (वास्तविकता ये कि) उन्हीं के लिए दुःखदायी यातना है।
وَلِلَّهِ مُلْكُ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ ۗ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍۢ قَدِيرٌ
व लिल्लाहि मुल्कुस्समावाति वल्अर्ज़ि, वल्लाहु अ़ला कुल्लि शैइन क़दीर
तथा आकाशों और धरती का राज्य अल्लाह ही का है तथा अल्लाह जो चाहे, कर सकता है।
إِنَّ فِى خَلْقِ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ وَٱخْتِلَـٰفِ ٱلَّيْلِ وَٱلنَّهَارِ لَـَٔايَـٰتٍۢ لِّأُو۟لِى ٱلْأَلْبَـٰبِ
इन्-न फ़ी ख़ल्क़िस्समावाति वल्अर्ज़ि वख़्तिलाफ़िल्लैलि वन्नहारि ल-आयातिल्-लिउलिल् अल्बाब
वस्तुतः आकाशों तथा धरती की रचना और रात्रि तथा दिवस के एक के पश्चात् एक आते-जाते रहने में, मतिमानों के लिए बहुत सी निशानियाँ (लक्षण)[1] हैं।
ٱلَّذِينَ يَذْكُرُونَ ٱللَّهَ قِيَـٰمًۭا وَقُعُودًۭا وَعَلَىٰ جُنُوبِهِمْ وَيَتَفَكَّرُونَ فِى خَلْقِ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ رَبَّنَا مَا خَلَقْتَ هَـٰذَا بَـٰطِلًۭا سُبْحَـٰنَكَ فَقِنَا عَذَابَ ٱلنَّارِ
अल्लज़ी-न यज़्कुरूनल्ला-ह क़ियामंव्-व क़ुअूदंव्-व अ़ला जुनूबिहिम् व य-तफ़क्करू-न फ़ी ख़ल्किस्समावाति वल्अर्ज़ि, रब्बना मा ख़लक़्-त हाज़ा बातिलन्, सुब्हान-क फ़क़िना अ़ज़ाबन्नार
जो खड़े, बैठे तथा सोए (प्रत्येक स्थिति में,) अल्लाह की याद करते तथ आकाशों और धरती की रचना में विचार करते रहते हैं। (कहते हैः) हे हमारे पालनहार! तूने ये सब[1] व्यर्थ नहीं रचा है। हमें अग्नि के दण्ड से बचा ले।
رَبَّنَآ إِنَّكَ مَن تُدْخِلِ ٱلنَّارَ فَقَدْ أَخْزَيْتَهُۥ ۖ وَمَا لِلظَّـٰلِمِينَ مِنْ أَنصَارٍۢ
रब्बना इन्न-क मन् तुद्ख़िलिन्-ना-र फ़-क़द् अख़्ज़ैतहू, व मा लिज़्ज़ालिमी-न मिन् अन्सार
हे हमारे पालनहार! तूने जिसे नरक में झोंक दिया, उसे अपमानित कर दिया और अत्याचारियों का कोई सहायक न होगा।
رَّبَّنَآ إِنَّنَا سَمِعْنَا مُنَادِيًۭا يُنَادِى لِلْإِيمَـٰنِ أَنْ ءَامِنُوا۟ بِرَبِّكُمْ فَـَٔامَنَّا ۚ رَبَّنَا فَٱغْفِرْ لَنَا ذُنُوبَنَا وَكَفِّرْ عَنَّا سَيِّـَٔاتِنَا وَتَوَفَّنَا مَعَ ٱلْأَبْرَارِ
रब्बना इन्नना समिअ्ना मुनादियंय्युनादी लिल्ईमानि अन् आमिनू बि-रब्बिकुम् फ़-आमन्ना, रब्बना फ़ग़्फिर् लना ज़ुनूबना व कफ़्फ़िर अ़न्ना सय्यिआतिना व तवफ़्फ़ना मअ़ल् अब्रार
हे हमारे पालनहार! हमने एक[1] पुकारने वाले को ईमान के लिए पुकारते हुए सुना कि अपने पालनहार पर ईमान लाओ, तो हम ईमान ले आये। हे हमारे पालनहार! हमारे पाप क्षमा कर दे तथा हमारी बुराईयों को अनदेखी कर दे तथा हमारी मौत पुनीतों (सदाचारियों) के साथ हो।
رَبَّنَا وَءَاتِنَا مَا وَعَدتَّنَا عَلَىٰ رُسُلِكَ وَلَا تُخْزِنَا يَوْمَ ٱلْقِيَـٰمَةِ ۗ إِنَّكَ لَا تُخْلِفُ ٱلْمِيعَادَ
रब्बना व आतिना मा व-अ़त्तना अ़ला रुसुलि-क व ला तुख़्ज़िना यौमल्-क़ियामति, इन्न-क ला तुख़्लिफ़ुल मीआ़द
हे हमारे पालनहार! हमें, तूने रसूलों द्वारा जो वचन दिया है, हमें वो प्रदान कर तथा प्रलय के दिन हमें अपमानित न कर, वास्तव में तू वचन विरोधी नहीं है।
فَٱسْتَجَابَ لَهُمْ رَبُّهُمْ أَنِّى لَآ أُضِيعُ عَمَلَ عَـٰمِلٍۢ مِّنكُم مِّن ذَكَرٍ أَوْ أُنثَىٰ ۖ بَعْضُكُم مِّنۢ بَعْضٍۢ ۖ فَٱلَّذِينَ هَاجَرُوا۟ وَأُخْرِجُوا۟ مِن دِيَـٰرِهِمْ وَأُوذُوا۟ فِى سَبِيلِى وَقَـٰتَلُوا۟ وَقُتِلُوا۟ لَأُكَفِّرَنَّ عَنْهُمْ سَيِّـَٔاتِهِمْ وَلَأُدْخِلَنَّهُمْ جَنَّـٰتٍۢ تَجْرِى مِن تَحْتِهَا ٱلْأَنْهَـٰرُ ثَوَابًۭا مِّنْ عِندِ ٱللَّهِ ۗ وَٱللَّهُ عِندَهُۥ حُسْنُ ٱلثَّوَابِ
फ़स्तजा-ब लहुम् रब्बुहुम् अन्नी ला उज़ीअु अ़-म-ल आ़मिलिम् मिन्कुम् मिन् ज़-करिन् औ उन्सा, बअ्ज़ुकुम् मिम्-बअ्ज़िन्, फ़ल्लज़ी-न हाजरू व उख़्रिजू मिन् दियारिहिम् व ऊज़ू फ़ी सबीली व क़ातलू व क़ुतिलू ल-उकफ़्फ़िरन्-न अ़न्हुम् सय्यिआतिहिम् व ल-उद्ख़िलन्नहुम् जन्नातिन् तज्री मिन् तह्तिहल् अन्हारु, सवाबम् मिन् अिन्दिल्लाहि, वल्लाहु अिन्दहू हुस्नुस्सवाब
तो उनके पालनहार ने उनकी (प्रार्थना) सुन ली, (तथा कहा किः) निःसंदेह मैं किसी कार्यकर्ता के कार्य को व्यर्थ नहीं करता[1], नर हो अथवा नारी। तो जिन्होंने हिजरत (प्रस्थान) की, अपने घरों से निकाले गये, मेरी राह में सताये गये और युध्द किया तथा मारे गये, तो हम अवश्य उनके दोषों को क्षमा कर देंगे तथा उन्हें ऐसे स्वर्गों में प्रवेश देंगे, जिनमें नहरें बह रही हैं। ये अल्लाह के पास से उनका प्रतिफल होगा और अल्लाह ही के पास अच्छा प्रतिफल है।
لَا يَغُرَّنَّكَ تَقَلُّبُ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ فِى ٱلْبِلَـٰدِ
ला यग़ुर्रन्न-क त-क़ल्लुबुल्लज़ी-न क-फ़रू फ़िल्बिलाद
(हे नबी!) नगरों में काफ़िरों का (सुविधा के साथ) फिरना आपको धोखे में न डाल दे।
مَتَـٰعٌۭ قَلِيلٌۭ ثُمَّ مَأْوَىٰهُمْ جَهَنَّمُ ۚ وَبِئْسَ ٱلْمِهَادُ
मताअुन् क़लीलुन्, सुम्-म मअ्वाहुम् जहन्न-मु, व बिअ्सल् मिहाद
ये तनिक लाभ[1] है, फिर उनका स्थान नरक है और वह क्या ही बुरा आवास है!
لَـٰكِنِ ٱلَّذِينَ ٱتَّقَوْا۟ رَبَّهُمْ لَهُمْ جَنَّـٰتٌۭ تَجْرِى مِن تَحْتِهَا ٱلْأَنْهَـٰرُ خَـٰلِدِينَ فِيهَا نُزُلًۭا مِّنْ عِندِ ٱللَّهِ ۗ وَمَا عِندَ ٱللَّهِ خَيْرٌۭ لِّلْأَبْرَارِ
लाकिनिल्लज़ीनत्तक़ौ रब्बहुम् लहुम् जन्नातुन् तज्री मिन् तह्तिहल् अन्हारु ख़ालिदी-न फ़ीहा नुज़ुलम् मिन् अिन्दिल्लाहि, व मा अिन्दल्लाहि ख़ैरुल्- लिल्- अब्रार
परन्तु जो अपने पालनहार से डरे, तो उनके लिए ऐसे स्वर्ग हैं, जिनमें नहरें प्रवाहित हैं। उनमें वे सदावासी होंगे। ये अल्लाह के पास से अतिथि सत्कार होगा तथा जो अल्लाह के पास है, पुनीतों के लिए उत्तम है।
وَإِنَّ مِنْ أَهْلِ ٱلْكِتَـٰبِ لَمَن يُؤْمِنُ بِٱللَّهِ وَمَآ أُنزِلَ إِلَيْكُمْ وَمَآ أُنزِلَ إِلَيْهِمْ خَـٰشِعِينَ لِلَّهِ لَا يَشْتَرُونَ بِـَٔايَـٰتِ ٱللَّهِ ثَمَنًۭا قَلِيلًا ۗ أُو۟لَـٰٓئِكَ لَهُمْ أَجْرُهُمْ عِندَ رَبِّهِمْ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ سَرِيعُ ٱلْحِسَابِ
व इन्- न मिन् अह्-लिल्-किताबि ल-मंय्युमिनु बिल्लाहि व मा उन्ज़ि-ल इलैकुम् व मा उन्ज़ि-ल इलैहिम् ख़ाशिई-न लिल्लाहि, ला यश्तरू-न बिआयातिल्लाहि स-मनन् क़लीलन्, उलाइ-क लहुम् अज्रुहुम् अिन्-द रब्बिहिम्, इन्नल्ला-ह सरीअुल् हिसाब
और निःसंदेह अह्ले किताब (अर्थात यहूद और ईसाई) में से कुछ ऐसे भी हैं, जो अल्लाह पर ईमान रखते हैं और तुम्हारी ओर जो उतारा गया है, उसपर भी, अल्लाह से डरे रहते हैं और उसकी आयतों को थोड़ी थोड़ी क़ीमतों पर बेचते भी नहीं[1]। उनका बदला उनके रब के पास है। निःसंदेह अल्लाह जल्दी ही हिसाब लेने वाला है।
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ ٱصْبِرُوا۟ وَصَابِرُوا۟ وَرَابِطُوا۟ وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनुस्बिरू व साबिरू व राबितू, वत्तक़ुल्ला-ह लअ़ल्लकुम् तुफ़्लिहून
हे ईमान वालो! तुम धैर्य रखो[1], एक-दूसरे को थामे रखो, जिहाद के लिए तैयार रहो और अल्लाह से डरते रहो, ताकि तुम अपने उद्देश्य को पहुँचो।