कुरान की 25वीं सूरह, फुरकान (विवेक), मक्का में نازिल हुई थी। इसमें 77 आयतें हैं और यह ईश्वर की महिमा, क़यामत और सच्चे रास्ते पर चलने की सीख देती है। सूरह में ईश्वर की एकता का वर्णन है और उन लोगों की निंदा की गई है जो शिर्क (बहुदेववाद) में फंसे हैं। साथ ही, सच्चे विश्वासियों के लिए जन्नत का وعدा किया गया है। सूरह फुरकान को हर रात पढ़ने से ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है और बुराई से बचा रहने में मदद मिलती है।
सूरह अल फु़रकान हिंदी में पढ़ें
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
تَبَارَكَ ٱلَّذِى نَزَّلَ ٱلْفُرْقَانَ عَلَىٰ عَبْدِهِۦ لِيَكُونَ لِلْعَـٰلَمِينَ نَذِيرًا
त बा-र कल्लजी नज़्ज़ लल् फुरक़ा-न अला अब्दिही लि- यकू-न लिल्आ़लमीन नज़ीरा
(अल्लाह) बहुत बाबरकत है जिसने अपने बन्दे (मोहम्मद) पर कु़रआन नाज़िल किया ताकि सारे जहान के लिए (अल्लाह के अज़ाब से) डराने वाला हो।
ٱلَّذِى لَهُۥ مُلْكُ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ وَلَمْ يَتَّخِذْ وَلَدًۭا وَلَمْ يَكُن لَّهُۥ شَرِيكٌۭ فِى ٱلْمُلْكِ وَخَلَقَ كُلَّ شَىْءٍۢ فَقَدَّرَهُۥ تَقْدِيرًۭا
अल्लजी लहू मुल्कुस् – समावाति वलअर्जि व लम् यत्तखिज् व लदंव् – व लम् यकुल्लहू शरीकुन् फिल् – मुल्कि व ख़ – ल – क कुल – ल शेइन् फ़-क़द्द रहू तक़दीरा
वह अल्लाह कि सारे आसमान व ज़मीन की बादशाहत उसी की है और उसने (किसी को) न अपना लड़का बनाया और न सल्तनत में उसका कोई शरीक है और हर चीज़ को (उसी ने पैदा किया) फिर उस अन्दाज़े से दुरुस्त किया।
وَٱتَّخَذُوا۟ مِن دُونِهِۦٓ ءَالِهَةًۭ لَّا يَخْلُقُونَ شَيْـًۭٔا وَهُمْ يُخْلَقُونَ وَلَا يَمْلِكُونَ لِأَنفُسِهِمْ ضَرًّۭا وَلَا نَفْعًۭا وَلَا يَمْلِكُونَ مَوْتًۭا وَلَا حَيَوٰةًۭ وَلَا نُشُورًۭا
वत्त – ख़जू मिन् दूनिही आलि – हतल् – ला यख़्लुकू – न शैअंव् व हुम् युख़्लकू – न व ला यम्लिकू – न लिअन्फुसिहिम् ज़र्रव् – व ला नफ्अंव् – व ला यम्लिकू न मौतंव् – व ला हयातंव् – व ला नुशूरा
और लोगों ने उसके सिवा दूसरे दूसरे माबूद बना रखें हैं जो कुछ भी पैदा नहीं कर सकते बल्कि वह खुद दूसरे के पैदा किए हुए हैं और वह खुद अपने लिए भी न नुक़सान पर क़ाबू रखते हैं न नफ़ा पर और न मौत ही पर इख्तियार रखते हैं और न जि़न्दगी पर और न मरने के बाद जी उठने पर।
وَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓا۟ إِنْ هَـٰذَآ إِلَّآ إِفْكٌ ٱفْتَرَىٰهُ وَأَعَانَهُۥ عَلَيْهِ قَوْمٌ ءَاخَرُونَ ۖ فَقَدْ جَآءُو ظُلْمًۭا وَزُورًۭا
व क़ालल्लज़ी न क फ़रू इन् हाज़ा इल्ला इफ़्कु निफ़्तराहु व अ- आनहू अ़लैहि कौमुन् आ खरू – नफ़ कद् जाऊ जुल्मंव् – वजूरा
और जो लोग काफ़िर हो गए बोल उठे कि ये (क़ुरआन) तो निरा झूठ है जिसे उस शख़्स (रसूल) ने अपने जी से गढ़ लिया और कुछ और लोगों ने इस इफतिरा परवाज़ी में उसकी मदद भी की है।
وَقَالُوٓا۟ أَسَـٰطِيرُ ٱلْأَوَّلِينَ ٱكْتَتَبَهَا فَهِىَ تُمْلَىٰ عَلَيْهِ بُكْرَةًۭ وَأَصِيلًۭا
व कालू असातीरुल अव्वलीनक्त त बहा फ़हि – य तुम्ला अ़लैहि बुक्र – तंव् – व असीला
तो यक़ीनन ख़ुद उन ही लोगों ने ज़ुल्म व फ़रेब किया है और (ये भी) कहा कि (ये तो) अगले लोगों के ढकोसले हैं जिसे उसने किसी से लिखवा लिया है पस वही सुबह व शाम उसके सामने पढ़ा जाता है।
قُلْ أَنزَلَهُ ٱلَّذِى يَعْلَمُ ٱلسِّرَّ فِى ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ ۚ إِنَّهُۥ كَانَ غَفُورًۭا رَّحِيمًۭا
कुल् अन्ज़ – लहुल्लजी यअ्लमुस्सिर् – र फ़िस्समावाति वल्अर्जि, इन्नहू का – न ग़फूरर्रहीमा
(ऐ रसूल!) तुम कह दो कि इसको उस शख़्स ने नाजि़ल किया है जो सारे आसमान व ज़मीन की पोशीदा बातों को ख़ूब जानता है बेशक वह बड़ा बख़शने वाला मेहरबान है।
وَقَالُوا۟ مَالِ هَـٰذَا ٱلرَّسُولِ يَأْكُلُ ٱلطَّعَامَ وَيَمْشِى فِى ٱلْأَسْوَاقِ ۙ لَوْلَآ أُنزِلَ إِلَيْهِ مَلَكٌۭ فَيَكُونَ مَعَهُۥ نَذِيرًا
व क़ालू मालि – हाज़र्रसूलि यअ्कुलुत्तआ़ – म व यम्शी फिल् अस्वाकि लौ ला उन्ज़ि ल इलैहि म लकुन फ़- यकून म अ़हू नज़ीरा
और उन लोगों ने (ये भी) कहा कि ये कैसा रसूल है जो खाना खाता है और बाज़ारों में चलता है फिरता है उसके पास कोई फ़रिश्ता क्यों नहीं नाजि़ल होता कि वह भी उसके साथ (अल्लाह के अज़ाब से) डराने वाला होता।
أَوْ يُلْقَىٰٓ إِلَيْهِ كَنزٌ أَوْ تَكُونُ لَهُۥ جَنَّةٌۭ يَأْكُلُ مِنْهَا ۚ وَقَالَ ٱلظَّـٰلِمُونَ إِن تَتَّبِعُونَ إِلَّا رَجُلًۭا مَّسْحُورًا
औ युल्का इलैहि कन्जुन् औ तकूनु लहू जन्नतुंय् – यअकुलु मिन्हा, व कालज़्ज़ालिमू न इन् तत्तबिअू न इल्ला रजुलम् – मस्हूरा
(कम से कम) इसके पास ख़ज़ाना ही ख़ज़ाना ही (आसमान से) गिरा दिया जाता या (और नहीं तो) उसके पास कोई बाग़ ही होता कि उससे खाता (पीता) और ये ज़ालिम (कुफ़्फ़ार मोमिनों से) कहते हैं कि तुम लोग तो बस ऐसे आदमी की पैरवी करते हो जिस पर जादू कर दिया गया है।
ٱنظُرْ كَيْفَ ضَرَبُوا۟ لَكَ ٱلْأَمْثَـٰلَ فَضَلُّوا۟ فَلَا يَسْتَطِيعُونَ سَبِيلًۭا
उन्जुर कै-फ़ ज़-रबू ल कल्- अम्सा-ल फ़-ज़ल्लू फ़ला यस्ततीअू-न सबीला
(ऐ रसूल!) ज़रा देखो तो कि इन लोगों ने तुम्हारे वास्ते कैसी कैसी फबत्तियाँ गढ़ी हैं और गुमराह हो गए तो अब ये लोग किसी तरह राह पर आ ही नहीं सकते।
تَبَارَكَ ٱلَّذِىٓ إِن شَآءَ جَعَلَ لَكَ خَيْرًۭا مِّن ذَٰلِكَ جَنَّـٰتٍۢ تَجْرِى مِن تَحْتِهَا ٱلْأَنْهَـٰرُ وَيَجْعَل لَّكَ قُصُورًۢا
तबा – रकल्लज़ी इन् शा – अ ज – अ़-ल ल – क ख़ैरम् – मिन् ज़ालि- क जन्नातिन् तज्री मिन् तह्तिहल् – अन्हारू व यज् अल् ल – क कुसूरा
अल्लाह तो ऐसा बारबरकत है कि अगर चाहे तो (एक बाग़ क्या चीज़ है) इससे बेहतर बहुतेरे ऐसे बाग़ात तुम्हारे वास्ते पैदा करे जिन के नीचे नहरें जारी हों और (बाग़ात के अलावा उनमें) तुम्हारे वास्ते महल बना दे।
بَلْ كَذَّبُوا۟ بِٱلسَّاعَةِ ۖ وَأَعْتَدْنَا لِمَن كَذَّبَ بِٱلسَّاعَةِ سَعِيرًا
बल् कज़्ज़बू बिस्सा – अ़ति व अअ्तद्ना लिमन् कज़्ज़ – ब बिस्सा – अ़ति सईरा
(ये सब कुछ नहीं) बल्कि (सच यूँ है कि) उन लोगों ने क़यामत ही को झूठ समझा है और जिस शख़्स ने क़यामत को झूठ समझा उसके लिए हमने जहन्नुम को (दहका के) तैयार कर रखा है।
إِذَا رَأَتْهُم مِّن مَّكَانٍۭ بَعِيدٍۢ سَمِعُوا۟ لَهَا تَغَيُّظًۭا وَزَفِيرًۭا
इज़ा र-अत्हुम् मिम्-मकानिम् – बईदिन समिअू लहा त- ग़य्युजंव् – व ज़फ़ीरा
जब जहन्नुम इन लोगों को दूर से दखेगी तो (जोश खाएगी और) ये लोग उसके जोश व ख़रोश की आवाज़ सुनेंगें।
وَإِذَآ أُلْقُوا۟ مِنْهَا مَكَانًۭا ضَيِّقًۭا مُّقَرَّنِينَ دَعَوْا۟ هُنَالِكَ ثُبُورًۭا
व इज़ा उल्कू मिन्हा मकानन् ज़य्यिकम् – मुक़र्रनी-न दऔ़ हुनालि-क सुबूरा
और जब ये लोग जंजीरों से जकड़कर उसकी किसी तंग जगह मे झोंक दिए जाएँगे तो उस वक़्त मौत को पुकारेंगे।
لَّا تَدْعُوا۟ ٱلْيَوْمَ ثُبُورًۭا وَٰحِدًۭا وَٱدْعُوا۟ ثُبُورًۭا كَثِيرًۭا
ला तद्अुल्यौ – म सुबूरंव् – वाहिदंव् – वद्अू सुबूरन् कसीरा
(उस वक़्त उनसे कहा जाएगा कि) आज एक मौत को न पुकारो बल्कि बहुतेरी मौतों को पुकारो (मगर इससे भी कुछ होने वाला नहीं)।
قُلْ أَذَٰلِكَ خَيْرٌ أَمْ جَنَّةُ ٱلْخُلْدِ ٱلَّتِى وُعِدَ ٱلْمُتَّقُونَ ۚ كَانَتْ لَهُمْ جَزَآءًۭ وَمَصِيرًۭا
कुल् अ – ज़ालि – क ख़ैरुन् अम् जन्नतुल् – खुल्दिल्लती वुअिदल् मुत्तकू – न, कानत् लहुम् जज़ा – अंव् व मसीरा
(ऐ रसूल!) तुम पूछो तो कि जहन्नुम बेहतर है या हमेशा रहने का बाग़ (बेहष्त) जिसका परहेज़गारों से वायदा किया गया है कि वह उन (के आमाल) का सिला होगा और आखि़री ठिकाना।
لَّهُمْ فِيهَا مَا يَشَآءُونَ خَـٰلِدِينَ ۚ كَانَ عَلَىٰ رَبِّكَ وَعْدًۭا مَّسْـُٔولًۭا
लहुम फ़ीहा मा यशाऊ-न ख़ालिदी-न का-न अ़ला रब्बि-क वअ्दम् मस्ऊला
जिस चीज़ की ख़्वाहिश करेंगें उनके लिए वहाँ मौजूद होगी (और) वह हमेशा (उसी हाल में) रहेंगें ये तुम्हारे परवरदिगार पर एक लाजि़मी और माँगा हुआ वायदा है।
وَيَوْمَ يَحْشُرُهُمْ وَمَا يَعْبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ فَيَقُولُ ءَأَنتُمْ أَضْلَلْتُمْ عِبَادِى هَـٰٓؤُلَآءِ أَمْ هُمْ ضَلُّوا۟ ٱلسَّبِيلَ
व यौ-म यह्शुरुहुम् व मा यअ्बुदू – न मिन् दूनिल्लाहि फ़ – यकूलु अ – अन्तुम् अज़्लल्तुम् अिबादी हाउला-इ अम् हुम् ज़ल्लुस्सबील
और जिस दिन अल्लाह उन लोगों को और जिनकी ये लोग अल्लाह को छोड़कर परसतिश किया करते हैं (उनको) जमा करेगा और पूछेगा क्या तुम ही ने हमारे उन बन्दों को गुमराह कर दिया था या ये लोग खुद राहे रास्त से भटक गए थे।
قَالُوا۟ سُبْحَـٰنَكَ مَا كَانَ يَنۢبَغِى لَنَآ أَن نَّتَّخِذَ مِن دُونِكَ مِنْ أَوْلِيَآءَ وَلَـٰكِن مَّتَّعْتَهُمْ وَءَابَآءَهُمْ حَتَّىٰ نَسُوا۟ ٱلذِّكْرَ وَكَانُوا۟ قَوْمًۢا بُورًۭا
कालू सुब्हान – क मा का-न यम्बग़ी लना अन नत्तख़ि-ज़ मिन् दुनि-क मिन् औ लिया-अ व लाकिम् मत्तअ् – तहुम् व आबा -अहुम् हत्ता नसुज़्ज़िक्-र व कानू क़ौमम् बूरा
(उनके माबूद) अर्ज़ करेंगें- सुबहान अल्लाह (हम तो ख़ुद तेरे बन्दे थे) हमें ये किसी तरह ज़ेबा न था कि हम तुझे छोड़कर दूसरे को अपना सरपरस्त बनाते (फिर अपने को क्यों कर माबूद बनाते) मगर बात तो ये है कि तू ही ने इनको बाप दादाओं को चैन दिया-यहाँ तक कि इन लोगों ने (तेरी) याद भुला दी और ये ख़ुद हलाक होने वाले लोग थे।
فَقَدْ كَذَّبُوكُم بِمَا تَقُولُونَ فَمَا تَسْتَطِيعُونَ صَرْفًۭا وَلَا نَصْرًۭا ۚ وَمَن يَظْلِم مِّنكُمْ نُذِقْهُ عَذَابًۭا كَبِيرًۭا
फ़ – क़द् कज़्ज़बूकुम् बिमा तकूलू – न फ़मा तस्ततीअू – न सरफंव् व ला नसरन व मंय्यज्लिम् मिन्कुम् नुज़िक़्हु अ़ज़ाबन् कबीरा
तब (काफि़रों से कहा जाएगा कि) तुम जो कुछ कह रहे हो उसमें तो तुम्हारे माबूदों ने तुम्हें झूठला दिया तो अब तुम न (हमारे अज़ाब के) टाल देने की सकत रखते हो न किसी से मदद ले सकते हो और (याद रखो) तुममें से जो ज़ुल्म करेगा हम उसको बड़े (सख़्त) अज़ाब का (मज़ा) चखाएगें।
وَمَآ أَرْسَلْنَا قَبْلَكَ مِنَ ٱلْمُرْسَلِينَ إِلَّآ إِنَّهُمْ لَيَأْكُلُونَ ٱلطَّعَامَ وَيَمْشُونَ فِى ٱلْأَسْوَاقِ ۗ وَجَعَلْنَا بَعْضَكُمْ لِبَعْضٍۢ فِتْنَةً أَتَصْبِرُونَ ۗ وَكَانَ رَبُّكَ بَصِيرًۭا
व मा अरसल्ना क़ब्ल-क मिनल्-मुरसली-न इल्ला इन्नहुम् ल-यअ्कुलूनत्तआ़-म व यमशू-न फ़िल् – अस्वाकि, व जअ़ल्ना बअ् -ज़कुम् लिबअ्ज़िन फ़ित-नतन् अ-तस्बिरू-न व का-न रब्बु-क बसीरा
और (ऐ रसूल!) हमने तुम से पहले जितने पैग़म्बर भेजे वह सब के सब यक़ीनन बिला शक खाना खाते थे और बाज़ारों में चलते फिरते थे और हमने तुम में से एक को एक का (ज़रिया) आज़माइश बना दिया (मुसलमानों) क्या तुम अब भी सब्र करते हो (या नहीं) और तुम्हारा परवरदिगार (सब की) देख भाल कर रहा है। (पारा 18 समाप्त)
۞ وَقَالَ ٱلَّذِينَ لَا يَرْجُونَ لِقَآءَنَا لَوْلَآ أُنزِلَ عَلَيْنَا ٱلْمَلَـٰٓئِكَةُ أَوْ نَرَىٰ رَبَّنَا ۗ لَقَدِ ٱسْتَكْبَرُوا۟ فِىٓ أَنفُسِهِمْ وَعَتَوْ عُتُوًّۭا كَبِيرًۭا
व क़ालल्लज़ी – न ला यरजू – न लिक़ा – अना लौ ला उन्ज़ि – ल अ़लैनल – मलाइ कतु औ नरा रब्बना, ल – क़दिस्तक्बरू फ़ी अन्फुसिहिम् व अ़तौ अतुव्वन् कबीरा
और जो लोग (क़यामत में) हमारी हुज़ूरी की उम्मीद नहीं रखते कहा करते हैं कि आखि़र फ़रिशते हमारे पास क्यों नहीं नाजि़ल किए गए या हम अपने परवरदिगार को (क्यों नहीं) देखते उन लोगों ने अपने जी में अपने को (बहुत) बड़ा समझ लिया है और बड़ी सरकशी की।
يَوْمَ يَرَوْنَ ٱلْمَلَـٰٓئِكَةَ لَا بُشْرَىٰ يَوْمَئِذٍۢ لِّلْمُجْرِمِينَ وَيَقُولُونَ حِجْرًۭا مَّحْجُورًۭا
यौ म यरौनल् – मलाइ-क-त ला बुश्रा यौमइजिल – लिल्मुज्रिमी-न व यकूलू – न हिज्रम् – मह्जूरा
जिस दिन ये लोग फ़रिश्तों को देखेंगे उस दिन गुनाह गारों को कुछ ख़ुशी न होगी और फ़रिश्तों को देखकर कहेंगे दूर दफान।
وَقَدِمْنَآ إِلَىٰ مَا عَمِلُوا۟ مِنْ عَمَلٍۢ فَجَعَلْنَـٰهُ هَبَآءًۭ مَّنثُورًا
व क़दिम्ना इला मा अ़मिलू मिन् अ़-मलिन् फ़ – जअ़ल्नाहु हबा – अम् मन्सूरा
और उन लोगों ने (दुनिया में) जो कुछ नेक काम किए हैं हम उसकी तरफ तवज्जों करेंगें तो हम उसको (गोया) उड़ती हुयी ख़ाक बनाकर (बरबाद कर) देगें।
أَصْحَـٰبُ ٱلْجَنَّةِ يَوْمَئِذٍ خَيْرٌۭ مُّسْتَقَرًّۭا وَأَحْسَنُ مَقِيلًۭا
अस्हाबुल् – जन्नति यौमइज़िन ख़ै रूम् – मुस्त कर्रंव्-व अह्सनु मक़ीला
उस दिन जन्नत वालों का ठिकाना भी बेहतर है बेहतर होगा और आरमगाह भी अच्छी से अच्छी।
وَيَوْمَ تَشَقَّقُ ٱلسَّمَآءُ بِٱلْغَمَـٰمِ وَنُزِّلَ ٱلْمَلَـٰٓئِكَةُ تَنزِيلًا
व यौ – म त – शक्क़कुस्समा उ बिल् – ग़मामि व नुज्जिलल् – मलाइ कतु तन्ज़ीला
और जिस दिन आसमान बदली के सबब से फट जाएगा और फ़रिशते कसरत से (जूक दर ज़ूक) नाज़िल किए जाएँगे।
ٱلْمُلْكُ يَوْمَئِذٍ ٱلْحَقُّ لِلرَّحْمَـٰنِ ۚ وَكَانَ يَوْمًا عَلَى ٱلْكَـٰفِرِينَ عَسِيرًۭا
अल्मुल्कु यौमइज़ि – निल्हक़्कु लिर्रह्मानि व का- न यौमन् अ़लल् काफ़िरी-न अ़सीरा
उसे दिन की सल्तनत ख़ास अल्लाह ही के लिए होगी और वह दिन काफिरों पर बड़ा सख़्त होगा।
وَيَوْمَ يَعَضُّ ٱلظَّالِمُ عَلَىٰ يَدَيْهِ يَقُولُ يَـٰلَيْتَنِى ٱتَّخَذْتُ مَعَ ٱلرَّسُولِ سَبِيلًۭا
व यौ-म य-अ़ज़्ज़ुज़्ज़ालिमु अ़ला यदैहि यकूलु यालै तनित्तख़ज़्तु मअ़र् – रसूलि सबीला
और जिस दिन जु़ल्म करने वाला अपने हाथ (मारे अफ़सोस के) काटने लगेगा और कहेगा काश रसूल के साथ मैं भी (दीन का सीधा) रास्ता पकड़ता।
يَـٰوَيْلَتَىٰ لَيْتَنِى لَمْ أَتَّخِذْ فُلَانًا خَلِيلًۭا
या वैलता लै – तनी लम् अत्तखिज् फुलानन् ख़लीला
हाए अफसोस काश मै फ़ला शख़्स को अपना दोस्त न बनाता।
لَّقَدْ أَضَلَّنِى عَنِ ٱلذِّكْرِ بَعْدَ إِذْ جَآءَنِى ۗ وَكَانَ ٱلشَّيْطَـٰنُ لِلْإِنسَـٰنِ خَذُولًۭا
ल – क़द अज़ल्लनी अ़निज़्ज़िकरि बअ् – द इज् जा – अनी, व कानश्शैतानु लिलइन्सानि ख़जूला
बेशक यक़ीनन उसने हमारे पास नसीहत आने के बाद मुझे बहकाया और शैतान तो आदमी को रुसवा करने वाला ही है।
وَقَالَ ٱلرَّسُولُ يَـٰرَبِّ إِنَّ قَوْمِى ٱتَّخَذُوا۟ هَـٰذَا ٱلْقُرْءَانَ مَهْجُورًۭا
व कालर्रसूलु या रब्बि इन् – न कौमित्त – ख़जू हाज़ल् – कुरआ-न मह्जूरा
और (उस वक़्त) रसूल (बारगाहे अल्लाह वन्दी में) अर्ज़ करेगें कि ऐ मेरे परवरदिगार मेरी क़ौम ने तो इस क़ुरआन को बेकार बना दिया।
وَكَذَٰلِكَ جَعَلْنَا لِكُلِّ نَبِىٍّ عَدُوًّۭا مِّنَ ٱلْمُجْرِمِينَ ۗ وَكَفَىٰ بِرَبِّكَ هَادِيًۭا وَنَصِيرًۭا
व कज़ालि – क जअ़ल्ना लिकुल्लि नबिय्यिन् अ़दुव्वम् मिनल् – मुज्रिमी – न, व कफ़ा बिरब्बि – क हादियंव् – व नसीरा
और हमने (गोया ख़ुद) गुनाहगारों में से हर नबी के दुशमन बना दिए हैं और तुम्हारा परवरदिगार हिदायत और मददगारी के लिए काफी है।
وَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ لَوْلَا نُزِّلَ عَلَيْهِ ٱلْقُرْءَانُ جُمْلَةًۭ وَٰحِدَةًۭ ۚ كَذَٰلِكَ لِنُثَبِّتَ بِهِۦ فُؤَادَكَ ۖ وَرَتَّلْنَـٰهُ تَرْتِيلًۭا
व कालल्लज़ी – न क – फ़रू लौ ला नुज़्ज़ि-ल अ़लैहिल – कुरआनु जुम्ल – तंव्वाहि- दतन् कज़ालि – क लिनुसब्बि – त बिही फुआद – क व रत्तल्नाहु तरतीला
और कुफ्फार कहने लगे कि उनके ऊपर (आखि़र) क़ुरआन का कुल (एक ही दफा) क्यों नहीं नाजि़ल किया गया (हमने) इस तरह इसलिए (नाजि़ल किया) ताकि तुम्हारे दिल को तस्कीन देते रहें और हमने इसको ठहर ठहर कर नाजि़ल किया।
وَلَا يَأْتُونَكَ بِمَثَلٍ إِلَّا جِئْنَـٰكَ بِٱلْحَقِّ وَأَحْسَنَ تَفْسِيرًا
व ला यअ्तून – क बि-म- सलिन् इल्ला जिअ्ना – क बिल्हक्कि व अह्स-न तफ़्सीरा
और (ये कुफ्फार) चाहे कैसी ही (अनोखी) मसल बयान करेंगे मगर हम तुम्हारे पास (उनका) बिल्कुल ठीक और निहायत उम्दा (जवाब) बयान कर देगें।
ٱلَّذِينَ يُحْشَرُونَ عَلَىٰ وُجُوهِهِمْ إِلَىٰ جَهَنَّمَ أُو۟لَـٰٓئِكَ شَرٌّۭ مَّكَانًۭا وَأَضَلُّ سَبِيلًۭا
अल्लज़ी – न युह्शरू – नं अ़ला वुजूहिहिम् इला जहन्न-म उलाइ – क शर्रूम् – मकानंव् – व अज़ल्लु सबीला
जो लोग (क़यामत के दिन) अपने अपने मोहसिनों के बल जहन्नुम में हकाए जाएगें वही लोग बदतर जगह में होगें और सब से ज़्यादा राहे रास्त से भटकने वाले।
وَلَقَدْ ءَاتَيْنَا مُوسَى ٱلْكِتَـٰبَ وَجَعَلْنَا مَعَهُۥٓ أَخَاهُ هَـٰرُونَ وَزِيرًۭا
व ल-कद् आतैना मूसल् – किता-ब व जअ़ल्ना म-अ़हू अख़ाहु हारू – न वज़ीरा
और अलबत्ता हमने मूसा को किताब (तौरैत) अता की और उनके साथ उनके भाई हारुन को (उनका) वज़ीर बनाया।
فَقُلْنَا ٱذْهَبَآ إِلَى ٱلْقَوْمِ ٱلَّذِينَ كَذَّبُوا۟ بِـَٔايَـٰتِنَا فَدَمَّرْنَـٰهُمْ تَدْمِيرًۭا
फ़- कुल्नज़्हबा इलल् -कौमिल्लज़ी-न कज़्ज़बू बिआयातिना, फ़- दम्मरनाहुम् तदमीरा
तो हमने कहा तुम दोनों उन लोगों के पास जा जो हमारी (कुदरत की) निशानियों को झुठलाते हैं जाओ (और समझाओ जब न माने) तो हमने उन्हें खू़ब बरबाद कर डाला।
وَقَوْمَ نُوحٍۢ لَّمَّا كَذَّبُوا۟ ٱلرُّسُلَ أَغْرَقْنَـٰهُمْ وَجَعَلْنَـٰهُمْ لِلنَّاسِ ءَايَةًۭ ۖ وَأَعْتَدْنَا لِلظَّـٰلِمِينَ عَذَابًا أَلِيمًۭا
व कौ – म नूहिल् – लम्मा कज़्ज़बुर्रुसु – ल अग्ररक़्नाहुम व जअ़ल्नाहुम लिन्नासि आ-यतन्, व अअ्तद ना लिज़्ज़ालिमी-न अ़ज़ाबन अलीमा
और नूह की क़ौम को जब उन लोगों ने (हमारे) पैग़म्बरों को झुठलाया तो हमने उन्हें डुबो दिया और हमने उनको लोगों (के हैरत) की निशानी बनाया और हमने ज़ालिमों के वास्ते दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है।
وَعَادًۭا وَثَمُودَا۟ وَأَصْحَـٰبَ ٱلرَّسِّ وَقُرُونًۢا بَيْنَ ذَٰلِكَ كَثِيرًۭا
व आदंव्-व समू-द व अस्हाबर्रस्सि व कुरूनम् – बै-न ज़ालि- क कसीरा
और (इसी तरह) आद और समूद और नहर वालों और उनके दरम्यिान में बहुत सी जमाअतों को (हमने हलाक कर डाला)।
وَكُلًّۭا ضَرَبْنَا لَهُ ٱلْأَمْثَـٰلَ ۖ وَكُلًّۭا تَبَّرْنَا تَتْبِيرًۭا
व कुल्लन् ज़रब्ना लहुल् – अम्सा-ल व कुल्लन् तब्बरना तत्बीरा
और हमने हर एक से मिसालें बयान कर दी थीं और (खूब समझाया) मगर न माना।
وَلَقَدْ أَتَوْا۟ عَلَى ٱلْقَرْيَةِ ٱلَّتِىٓ أُمْطِرَتْ مَطَرَ ٱلسَّوْءِ ۚ أَفَلَمْ يَكُونُوا۟ يَرَوْنَهَا ۚ بَلْ كَانُوا۟ لَا يَرْجُونَ نُشُورًۭا
व ल – क़द् अतौ अलल् – क़र् – यतिल्लती उम्ति – रत् म – तरस्सौ – इ, अ – फ़लम् यकूनू यरौनहा बल कानू ला यरजू – न नुशूरा
हमने उनको ख़ूब सत्यानास कर छोड़ा और ये लोग (कुफ़्फ़ारे मक्का) उस बस्ती पर (हो) आए हैं जिस पर (पत्थरों की) बुरी बारिश बरसाई गयी तो क्या उन लोगों ने इसको देखा न होगा मगर (बात ये है कि) ये लोग मरने के बाद जी उठने की उम्मीद नहीं रखते (फिर क्यों इमान लाएँ)।
وَإِذَا رَأَوْكَ إِن يَتَّخِذُونَكَ إِلَّا هُزُوًا أَهَـٰذَا ٱلَّذِى بَعَثَ ٱللَّهُ رَسُولًا
व इज़ा रऔ – क इंय्यत्तख़िजून – क इल्ला हुजुवा, अहाज़ल्लज़ी ब – अ़सल्लाहु रसूला
और (ऐ रसूल!) ये लोग तुम्हें जब देखते हैं तो तुम से मसख़रा पन ही करने लगते हैं कि क्या यही वह (हज़रत) हैं जिन्हें अल्लाह ने रसूल बनाकर भेजा है (माज़ अल्लाह)।
إِن كَادَ لَيُضِلُّنَا عَنْ ءَالِهَتِنَا لَوْلَآ أَن صَبَرْنَا عَلَيْهَا ۚ وَسَوْفَ يَعْلَمُونَ حِينَ يَرَوْنَ ٱلْعَذَابَ مَنْ أَضَلُّ سَبِيلًا
इन् का – द लयुज़िल्लुना अन् आलि – हतिना लौ ला अन् सबरना अ़लैहा, व सौ-फ़ यअ्लमू – न ही-न यरौनल् – अ़ज़ा – ब मन् अज़ल्लु सबीला
अगर बुतों की परसतिश पर साबित क़दम न रहते तो इस शख़्स ने हमको हमारे माबूदों से बहका दिया था और बहुत जल्द (क़यामत में) जब ये लोग अज़ाब को देखेंगें तो उन्हें मालूम हो जाएगा कि राहे रास्त से कौन ज़्यादा भटका हुआ था।
أَرَءَيْتَ مَنِ ٱتَّخَذَ إِلَـٰهَهُۥ هَوَىٰهُ أَفَأَنتَ تَكُونُ عَلَيْهِ وَكِيلًا
अ – रऐ त मनित्त – ख़-ज़ इला – हहू हवाहु, अ-फ़अन् – त तकूनु अ़लैहि वकीला
क्या तुमने उस शख़्स को भी देखा है जिसने अपनी नफ़सियानी ख़्वाहिश को अपना माबूद बना रखा है तो क्या तुम उसके जि़म्मेदार हो सकते हो (कि वह गुमराह न हों)।
أَمْ تَحْسَبُ أَنَّ أَكْثَرَهُمْ يَسْمَعُونَ أَوْ يَعْقِلُونَ ۚ إِنْ هُمْ إِلَّا كَٱلْأَنْعَـٰمِ ۖ بَلْ هُمْ أَضَلُّ سَبِيلًا
अम् तह्सबु अन् – न अक्स – रहुम् यस्मअू- न औ यअ्किलू – न, इन् हुम् इल्ला कल् – अन्आमि बल् हुम् अज़ल्लु सबीला
क्या ये तुम्हारा ख़्याल है कि इन (कुफ़्फ़ारों) में अक्सर (बात) सुनते या समझते है (नहीं) ये तो बस बिल्कुल मिस्ल जानवरों के हैं बल्कि उन से भी ज़्यादा रहे (रास्त) से भटके हुए।
أَلَمْ تَرَ إِلَىٰ رَبِّكَ كَيْفَ مَدَّ ٱلظِّلَّ وَلَوْ شَآءَ لَجَعَلَهُۥ سَاكِنًۭا ثُمَّ جَعَلْنَا ٱلشَّمْسَ عَلَيْهِ دَلِيلًۭا
अलम् – त-र इला रब्बि-क कै-फ़ मद्दज्ज़िल् -ल व लौ शा-अ ल-ज – अ़-लहू साकिनन् सुम्-म जअ़ल्नश्शम्-स अ़लैहि दलीला
(ऐ रसूल!) क्या तुमने अपने परवरदिगार की कु़दरत की तरफ नज़र नहीं की कि उसने क्योंकर साये को फैला दिया अगर वह चहता तो उसे (एक ही जगह) ठहरा हुआ कर देता फिर हमने आफ़ताब को (उसकी शीनाख़्त के वास्ते) उसका रहनुमा बना दिया।
ثُمَّ قَبَضْنَـٰهُ إِلَيْنَا قَبْضًۭا يَسِيرًۭا
सुम् – म क़बज्नाहु इलैना क़ब्ज़ंय्यसीरा
फिर हमने उसको थोड़ा थोड़ा करके अपनी तरफ़ खीच लिया।
وَهُوَ ٱلَّذِى جَعَلَ لَكُمُ ٱلَّيْلَ لِبَاسًۭا وَٱلنَّوْمَ سُبَاتًۭا وَجَعَلَ ٱلنَّهَارَ نُشُورًۭا
व हुवल्लज़ी ज-अ़-ल लकुमुल्ले – ल लिबासंव् – वन्नौ – म सुबातंव्-व ज-अ़लन्नहा-र नुशूरा
और वही तो वह (नाज़िल) है जिसने तुम्हारे वास्ते रात को पर्दा बनाया और नींद को राहत और दिन को (कारोबार के लिए) उठ खड़ा होने का वक़्त बनाया।
وَهُوَ ٱلَّذِىٓ أَرْسَلَ ٱلرِّيَـٰحَ بُشْرًۢا بَيْنَ يَدَىْ رَحْمَتِهِۦ ۚ وَأَنزَلْنَا مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءًۭ طَهُورًۭا
व हुवल्लज़ी – अर् – सलर्रिया ह बुश्रम्-बै-न यदै रह्मतिही व अन्ज़ल्ना मिनस्समा इ मा-अन् तहूरा
और वही तो वह (नाज़िल) है जिसने अपनी रहमत (बारिश) के आगे आगे हवाओं को खुश ख़बरी देने के लिए (पेश ख़ेमा बना के) भेजा और हम ही ने आसमान से बहुत पाक और सुथरा हुआ पानी बरसाया।
لِّنُحْـِۧىَ بِهِۦ بَلْدَةًۭ مَّيْتًۭا وَنُسْقِيَهُۥ مِمَّا خَلَقْنَآ أَنْعَـٰمًۭا وَأَنَاسِىَّ كَثِيرًۭا
लिनुह़्यि-य बिही बल्द-तम् मैतंव्-व नुस्कि – यहू मिम्मा ख़लक़्ना अन्आ़मंव् – व अनासिय् – य कसीरा
ताकि हम उसके ज़रिए से मुर्दा (वीरान) शहर को जि़न्दा (आबाद) कर दें और अपनी मख़लूकात में से चैपायों और बहुत से आदमियों को उससे सेराब करें।
وَلَقَدْ صَرَّفْنَـٰهُ بَيْنَهُمْ لِيَذَّكَّرُوا۟ فَأَبَىٰٓ أَكْثَرُ ٱلنَّاسِ إِلَّا كُفُورًۭا
व ल – कद् सर्रफ़्नाहु बैनहुम् लियज़्ज़क्करू फ़ – अबा अक्सरुन्नासि इल्ला कुफूरा
और हमने पानी को उनके दरम्यिान (तरह तरह से) तक़सीम किया ताकि लोग नसीहत हासिल करें मगर अक्सर लोगों ने नाशुक्री के सिवा कुछ न माना।
وَلَوْ شِئْنَا لَبَعَثْنَا فِى كُلِّ قَرْيَةٍۢ نَّذِيرًۭا
व लौ शिअ्ना ल-बअ़स्ना फ़ी कुल्लि कर् – यतिन् नज़ीरा
और अगर हम चाहते तो हर बस्ती में ज़रुर एक (अज़ाबे नाज़िल से) डराने वाला पैग़म्बर भेजते।
فَلَا تُطِعِ ٱلْكَـٰفِرِينَ وَجَـٰهِدْهُم بِهِۦ جِهَادًۭا كَبِيرًۭا
फ़ला तुतिअिल्- काफ़िरी-न व जाहिद्हुम् बिही जिहादन् कबीरा
(तो ऐ रसूल!) तुम काफिरों की इताअत न करना और उनसे कु़रआन के (दलाएल) से खू़ब लड़ों।
۞ وَهُوَ ٱلَّذِى مَرَجَ ٱلْبَحْرَيْنِ هَـٰذَا عَذْبٌۭ فُرَاتٌۭ وَهَـٰذَا مِلْحٌ أُجَاجٌۭ وَجَعَلَ بَيْنَهُمَا بَرْزَخًۭا وَحِجْرًۭا مَّحْجُورًۭا
व हुवल्लज़ी म – रजल् – बहरैनि हाज़ा अ़जबुन् फुरातुंव् – व हाज़ा मिल्हुन् उजाजुन् व ज-अ़ ल बैनहुमा बर् ज़ख़ंव्-व हिज्रम्-मह्जूरा
और वही तो वह (नाज़िल) है जिसने दरयाओं को आपस में मिला दिया (और बावजूद कि) ये खालिस मज़ेदार मीठा है और ये बिल्कुल खारी कड़वा (मगर दोनों को मिलाया) और दोनों के दरम्यिान एक आड़ और मज़बूत ओट बना दी है (कि गड़बड़ न हो)।
وَهُوَ ٱلَّذِى خَلَقَ مِنَ ٱلْمَآءِ بَشَرًۭا فَجَعَلَهُۥ نَسَبًۭا وَصِهْرًۭا ۗ وَكَانَ رَبُّكَ قَدِيرًۭا
व हुवल्लज़ी ख़-ल-क़ मिनल् – मा-इ ब-शरन् फ़-ज-अ़-लहू न-सबंव्-व सिहरन्, व का-न रब्बु क क़दीरा
और वही तो वह (नाज़िल) है जिसने पानी (मनी) से आदमी को पैदा किया फिर उसको ख़ानदान और सुसराल वाला बनाया और (ऐ रसूल!) तुम्हारा परवरदिगार हर चीज़ पर क़ादिर है।
وَيَعْبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ مَا لَا يَنفَعُهُمْ وَلَا يَضُرُّهُمْ ۗ وَكَانَ ٱلْكَافِرُ عَلَىٰ رَبِّهِۦ ظَهِيرًۭا
व यअ्बुदू-न मिन् दूनिल्लाहि मा ला यन्फ़अुहुम् व ला यजुर्रुहुम्, व कानल् – काफ़िरु अ़ला रब्बिही ज़हीरा
और लोग (कुफ़्फ़ारे मक्का) नाज़िल को छोड़कर उस चीज़ की परसतिश करते हैं जो न उन्हें नफा ही दे सकती है और न नुक़सान ही पहुँचा सकती है और काफिर (अबूजहल) तो हर वक़्त अपने परवरदिगार की मुख़ालेफत पर ज़ोर लगाए हुए है।
وَمَآ أَرْسَلْنَـٰكَ إِلَّا مُبَشِّرًۭا وَنَذِيرًۭا
व मा अर्सल्ना – क इल्ला मुबश्शिरंव् – व नज़ीरा
और (ऐ रसूल!) हमने तो तुमको बस (नेकी को जन्नत की) खुशबरी देने वाला और (बुरों को अज़ाब से) डराने वाला बनाकर भेजा है।
قُلْ مَآ أَسْـَٔلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ إِلَّا مَن شَآءَ أَن يَتَّخِذَ إِلَىٰ رَبِّهِۦ سَبِيلًۭا
कुल् मा अस्अलुकुम् अ़लैहि मिन् अज्रिन् इल्ला मन् शा-अ अंय्यत्तखि-ज़ इला रब्बिही सबीला
और उन लोगों से तुम कह दो कि मै इस (तबलीगे़ रिसालत) पर तुमसे कुछ मज़दूरी तो माँगता नहीं हूँ मगर तमन्ना ये है कि जो चाहे अपने परवरदिगार तक पहुँचने की राह पकडे़।
وَتَوَكَّلْ عَلَى ٱلْحَىِّ ٱلَّذِى لَا يَمُوتُ وَسَبِّحْ بِحَمْدِهِۦ ۚ وَكَفَىٰ بِهِۦ بِذُنُوبِ عِبَادِهِۦ خَبِيرًا
व तवक्कल् अ़लल्-हय्यिल्लज़ी ला यमूतु व सब्बिह् बिहम्दिही, व कफ़ा बिही बिजुनूबि अबादिही ख़बीरा
और (ऐ रसूल!) तुम उस (नाज़िल) पर भरोसा रखो जो ऐसा जि़न्दा है कि कभी नहीं मरेगा और उसकी हम्द व सना की तस्बीह पढ़ो और वह अपने बन्दों के गुनाहों की वाकि़फ कारी में काफी है (वह ख़ुद समझ लेगा)।
ٱلَّذِى خَلَقَ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا فِى سِتَّةِ أَيَّامٍۢ ثُمَّ ٱسْتَوَىٰ عَلَى ٱلْعَرْشِ ۚ ٱلرَّحْمَـٰنُ فَسْـَٔلْ بِهِۦ خَبِيرًۭا ٥٩
अल्लज़ी ख़-लक़स्समावाति वलअर्ज़ व मा बैनहुमा फ़ी सित्तति अय्यामिन् सुम्मस्तवा अ़लल्-अ़र्शि, अर्रह़्मानु फ़स्अल् बिही ख़बीरा
जिसने सारे आसमान व ज़मीन और जो कुछ उन दोनों में है छहः दिन में पैदा किया फिर अर्श (के बनाने) पर आमादा हुआ और वह बड़ा मेहरबान है तो तुम उसका हाल किसी बाख़बर ही से पूछना।
وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ ٱسْجُدُوا۟ لِلرَّحْمَـٰنِ قَالُوا۟ وَمَا ٱلرَّحْمَـٰنُ أَنَسْجُدُ لِمَا تَأْمُرُنَا وَزَادَهُمْ نُفُورًۭا ۩
व इज़ा क़ी-ल लहुमुस्जुदू लिर्रह्मानि कालू व मर्रह्मानु अ-नस्जुदु लिमा तअ्मुरुना व ज़ा-दहुम् नुफूरा *सज़्दा*
और जब उन कुफ्फारों से कहा जाता है कि रहमान (नाज़िल) को सजदा करो तो कहते हैं कि रहमान क्या चीज़ है तुम जिसके लिए कहते हो हम उस का सजदा करने लगें और (इससे) उनकी नफ़रत और बढ़ जाती है।
تَبَارَكَ ٱلَّذِى جَعَلَ فِى ٱلسَّمَآءِ بُرُوجًۭا وَجَعَلَ فِيهَا سِرَٰجًۭا وَقَمَرًۭا مُّنِيرًۭا
तबा – रकल्लज़ी ज अ़-ल फ़िस्समा इ बुरुजंव् व ज-अ़-ल फ़ीहा सिराजंव् व क़-मरम् मुनीरा
बहुत बाबरकत है वह अल्लाह जिसने आसमान में बुर्ज बनाए और उन बुर्जों में (आफ़ताब का) चिराग़ और जगमगाता चाँद बनाया।
وَهُوَ ٱلَّذِى جَعَلَ ٱلَّيْلَ وَٱلنَّهَارَ خِلْفَةًۭ لِّمَنْ أَرَادَ أَن يَذَّكَّرَ أَوْ أَرَادَ شُكُورًۭا
व हुवल्लज़ी ज-अ़लल्लै – ल वन्नहा-र खिल्फ़ – तल लिमन् अरा – द अंय्यज़्ज़क्क-र औ अरा-द शुकूरा
और वही तो वह (अल्लाह) है जिसने रात और दिन (एक) को (एक का) जानशीन बनाया (ये) उस के (समझने के) लिए है जो नसीहत हासिल करना चाहे या शुक्र गुज़ारी का इरादा करें।
وَعِبَادُ ٱلرَّحْمَـٰنِ ٱلَّذِينَ يَمْشُونَ عَلَى ٱلْأَرْضِ هَوْنًۭا وَإِذَا خَاطَبَهُمُ ٱلْجَـٰهِلُونَ قَالُوا۟ سَلَـٰمًۭا
व अिबादुर्रह्मानिल्लज़ी-न यम्शू-न अ़लल्-अर्जि हौनंव्-व इज़ा खा-त बहुमुल्-जाहिलू-न कालू सलामा
और (ख़ुदाए) रहमान के ख़ास बन्दे तो वह हैं जो ज़मीन पर फिरौतनी के साथ चलते हैं और जब जाहिल उनसे (जिहालत) की बात करते हैं तो कहते हैं कि सलाम (तुम सलामत रहो)।
وَٱلَّذِينَ يَبِيتُونَ لِرَبِّهِمْ سُجَّدًۭا وَقِيَـٰمًۭا
वल्लज़ी-न यबीतू-न लिरब्बिहिम् सुज्जदंव् व कियामा
और वह लोग जो अपने परवरदिगार के वास्ते सज़दे और क़याम में रात काट देते हैं।
وَٱلَّذِينَ يَقُولُونَ رَبَّنَا ٱصْرِفْ عَنَّا عَذَابَ جَهَنَّمَ ۖ إِنَّ عَذَابَهَا كَانَ غَرَامًا
वल्लज़ी-न यकूलू-न रब्ब नस्रिफ् अ़न्ना अ़ज़ा-ब जहन्न-म इन्-न अ़ज़ा-बहा का-न ग़रामा
और वह लोग जो दुआ करते हैं कि परवरदिगारा हम से जहन्नुम का अज़ाब फेरे रहना क्योंकि उसका अज़ाब बहुत (सख़्त और पाएदार होगा)।
إِنَّهَا سَآءَتْ مُسْتَقَرًّۭا وَمُقَامًۭا
इन्नहा साअत् मुस्त-क़र्रव-व मुक़ामा
शक वह बहुत बुरा ठिकाना और बुरा मक़ाम है
وَٱلَّذِينَ إِذَآ أَنفَقُوا۟ لَمْ يُسْرِفُوا۟ وَلَمْ يَقْتُرُوا۟ وَكَانَ بَيْنَ ذَٰلِكَ قَوَامًۭا
वल्लज़ी-न इज़ा अन्फ़कू लम् युस्रिफू व लम् यक्तुरू व का-न बै-न ज़ालि-क क़वामा
और वह लोग कि जब खर्च करते हैं तो न फुज़ूल ख़र्ची करते हैं और न तंगी करते हैं और उनका ख़र्च उसके दरमेयान औसत दर्जे का रहता है।
وَٱلَّذِينَ لَا يَدْعُونَ مَعَ ٱللَّهِ إِلَـٰهًا ءَاخَرَ وَلَا يَقْتُلُونَ ٱلنَّفْسَ ٱلَّتِى حَرَّمَ ٱللَّهُ إِلَّا بِٱلْحَقِّ وَلَا يَزْنُونَ ۚ وَمَن يَفْعَلْ ذَٰلِكَ يَلْقَ أَثَامًۭا
वल्लज़ी-न ला यद्अू-न मअ़ल्लाहि इलाहन् आख़-र व ला यक्तुलूनन्-नफ़्सल्लती हर्रमल्लाहु इल्ला बिल्- हक़्क़ि व ला यज्नू-न, व मंय्यफ़अ़ल् ज़ालि-क यल्-क असामा
और वह लोग जो अल्लाह के साथ दूसरे माबूदों की परसतिश नही करते और जिस जान के मारने को अल्लाह ने हराम कर दिया है उसे नाहक़ क़त्ल नहीं करते और न जि़ना करते हैं और जो शख़्स ऐसा करेगा वह आप अपने गुनाह की सज़ा भुगतेगा।
يُضَـٰعَفْ لَهُ ٱلْعَذَابُ يَوْمَ ٱلْقِيَـٰمَةِ وَيَخْلُدْ فِيهِۦ مُهَانًا
युजाअ़फ् लहुल्-अ़ज़ाबु यौमल्-कियामति व यख़्लुद् फ़ीही मुहाना
कि क़यामत के दिन उसके लिए अज़ाब दूना कर दिया जाएगा और उसमें हमेशा ज़लील व ख़वार रहेगा।
إِلَّا مَن تَابَ وَءَامَنَ وَعَمِلَ عَمَلًۭا صَـٰلِحًۭا فَأُو۟لَـٰٓئِكَ يُبَدِّلُ ٱللَّهُ سَيِّـَٔاتِهِمْ حَسَنَـٰتٍۢ ۗ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورًۭا رَّحِيمًۭا
इल्ला मन् ता-ब व आम न व अ़मि-ल अ़-मलन् सालिहन् फ़-उलाइ-क युबद्दिलुल्लाहु सय्यिआतिहिम् ह-सनातिन्, व कानल्लाहु ग़फूरर्-रहीमा
मगर (हाँ) जिस शख़्स ने तौबा की और इमान क़ुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए तो (अलबत्ता) उन लोगों की बुराइयों को अल्लाह नेकियों से बदल देगा और अल्लाह तो बड़ा बख़शने वाला मेहरबान है।
وَمَن تَابَ وَعَمِلَ صَـٰلِحًۭا فَإِنَّهُۥ يَتُوبُ إِلَى ٱللَّهِ مَتَابًۭا
व मन् ता-ब व अ़मि-ल सालिहन् फ़-इन्नहू यतूबु इलल्लाहि मताबा
और जिस शख़्स ने तौबा कर ली और अच्छे अच्छे काम किए तो बेशक उसने अल्लाह की तरफ़ (सच्चे दिल से) हक़ीकक़तन रुजु की।
وَٱلَّذِينَ لَا يَشْهَدُونَ ٱلزُّورَ وَإِذَا مَرُّوا۟ بِٱللَّغْوِ مَرُّوا۟ كِرَامًۭا
वल्लज़ी-न ला यशहदूनज़्जू-र व इज़ा मर्रू बिल्लग्वि मर्रू किरामा
और वह लोग जो फ़रेब के पास ही नही खड़े होते और वह लोग जब किसी बेहूदा काम के पास से गुज़रते हैं तो बुज़ुर्गाना अन्दाज़ से गुज़र जाते हैं।
وَٱلَّذِينَ إِذَا ذُكِّرُوا۟ بِـَٔايَـٰتِ رَبِّهِمْ لَمْ يَخِرُّوا۟ عَلَيْهَا صُمًّۭا وَعُمْيَانًۭا
वल्लज़ी-न इज़ा जुक्किरू बिआयाति रब्बिहिम् लम् यखिर्रू अ़लैहा सुम्मंव्-व अुम्याना
और वह लोग कि जब उन्हें उनके परवरदिगार की आयतें याद दिलाई जाती हैं तो बहरे अन्धें होकर गिर नहीं पड़ते बल्कि जी लगाकर सुनते हैं।
وَٱلَّذِينَ يَقُولُونَ رَبَّنَا هَبْ لَنَا مِنْ أَزْوَٰجِنَا وَذُرِّيَّـٰتِنَا قُرَّةَ أَعْيُنٍۢ وَٱجْعَلْنَا لِلْمُتَّقِينَ إِمَامًا
वल्लजी-न यकूलू – न रब्बना हब् लना मिन् अज़्वाजिना व जुर्रिय्यातिना कुर्र-त अअ्युनिंव् वज्अ़ल्ना लिल्मुत्तकी-न इमामा
और वह लोग जो (हमसे) अर्ज़ करते हैं कि परवरदिगार हमें हमारी बीबियों और औलादों की तरफ़ से आँखों की ठन्डक अता फरमा और हमको परहेज़गारों का पेशवा बना।
أُو۟لَـٰٓئِكَ يُجْزَوْنَ ٱلْغُرْفَةَ بِمَا صَبَرُوا۟ وَيُلَقَّوْنَ فِيهَا تَحِيَّةًۭ وَسَلَـٰمًا
उलाइ – क युज़्ज़ौनल गुर्फ़ त बिमा स-बरू व युलक़्क़ौ न फ़ीहा तहिय्य तंव् व सलामा
ये वह लोग हैं जिन्हें उनकी जज़ा में (बेहष्त के) बाला ख़ाने अता किए जाएँगें और वहाँ उन्हें ताज़ीम व सलाम (का बदला) पेश किया जाएगा।
خَـٰلِدِينَ فِيهَا ۚ حَسُنَتْ مُسْتَقَرًّۭا وَمُقَامًۭا
ख़ालिदी-न फ़ीहा हसुनत् मुस्तक़र्रंव्-व मुक़ामा
ये लोग उसी में हमेशा रहेंगें और वह रहने और ठहरने की अच्छी जगह है।
قُلْ مَا يَعْبَؤُا۟ بِكُمْ رَبِّى لَوْلَا دُعَآؤُكُمْ ۖ فَقَدْ كَذَّبْتُمْ فَسَوْفَ يَكُونُ لِزَامًۢا
कुल् मा यअ् – बउ बिकुम् रब्बी लौ ला दुआ़उकुम् फ़ – कद् कज़्ज़ब्तुम् फ़सौ – फ़ यकूनु लिज़ामा
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगर दुआ नही किया करते तो मेरा परवरदिगार भी तुम्हारी कुछ परवाह नही करता तुमने तो (उसके रसूल को) झुठलाया तो अन क़रीब ही (उसका वबाल) तुम्हारे सर पडे़गा।