यह सूरह मदनी है और इसमें 75 आयतें हैं। यह सूरह सन् 2 हिज्री में बद्र के युद्ध के बाद उतरी थी। जब काफिरों ने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को मारने की योजना बनाई और आप मदीना हिजरत कर गए, तब उन्होंने अब्दुल्लाह बिन उब्य्य को पत्र लिखकर धमकी दी कि अगर उन्होंने नबी को मदीना से नहीं निकाला, तो वे मदीना पर हमला कर देंगे। इसके बाद, मुसलमानों के लिए यही उपाय था कि वे शाम के व्यापारिक मार्ग से अपने विरोधियों को रोक दें।
सन् 2 हिज्री में मक्का का एक बड़ा काफिला शाम से मक्का वापस आ रहा था। जब वह मदीना के पास पहुँचा, तो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) अपने साथियों के साथ उसकी ताक में निकल पड़े। मुसलमानों के भय से काफिले के मुखिया अबू सुफयान ने एक व्यक्ति को मक्का भेज दिया कि मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) अपने साथियों के साथ तुम्हारे काफिले की ताक में हैं। यह सुनते ही मक्का से एक हज़ार की सेना निकल पड़ी। अबू सुफयान दूसरी राह से बच निकला, लेकिन मक्का की सेना ने सोचा कि मुसलमानों को सदा के लिए कुचल दिया जाए। इस प्रकार मुसलमानों और काफिरों के बीच बद्र के क्षेत्र में पहला ऐतिहासिक संघर्ष हुआ, जिसमें मक्का के 70 प्रमुख काफिर मारे गए और इतने ही बंदी बना लिए गए।
यह इस्लाम का प्रथम ऐतिहासिक युद्ध था जिसमें सत्य की विजय हुई। इस सूरह में युद्ध से संबंधित कई नैतिक शिक्षाएँ दी गई हैं, जैसे कि जिहाद धर्म की रक्षा के लिए होना चाहिए, धन के लोभ या किसी पर अत्याचार के लिए नहीं। विजय होने पर अल्लाह का आभारी होना चाहिए क्योंकि विजय उसी की सहायता से होती है। अपनी वीरता पर गर्व नहीं करना चाहिए।
जो गैर-मुस्लिम अत्याचार न करें, उन पर आक्रमण नहीं करना चाहिए। जिनसे संधि हो, उन पर धोखा देकर आक्रमण नहीं करना चाहिए और न ही उनके विरुद्ध किसी की सहायता करनी चाहिए। शत्रु से जो सामान (गनीमत) मिले, उसे अल्लाह का माल समझना चाहिए और उसके नियमानुसार उसका पाँचवाँ भाग निर्धनों और अनाथों की सहायता के लिए खर्च करना अनिवार्य है। इसमें युद्ध के बंदियों को भी शिक्षा प्रद शैली में संबोधित किया गया है।
इस सूरह से इस्लामी जिहाद की वास्तविकता की जानकारी मिलती है। शत्रु से जो सामान (गनीमत) मिले, उसे अल्लाह का माल समझना चाहिए और उसके नियमानुसार उसका पाँचवाँ भाग निर्धनों और अनाथों की सहायता के लिए खर्च करना अनिवार्य है। इसमें युद्ध के बंदियों को भी शिक्षा प्रद शैली में संबोधित किया गया है। इस सूरह से इस्लामी जिहाद की वास्तविकता की जानकारी मिलती है।
सूरह अल-अनफाल हिंदी में पढ़ें
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
يَسْـَٔلُونَكَ عَنِ ٱلْأَنفَالِ ۖ قُلِ ٱلْأَنفَالُ لِلَّهِ وَٱلرَّسُولِ ۖ فَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَأَصْلِحُوا۟ ذَاتَ بَيْنِكُمْ ۖ وَأَطِيعُوا۟ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥٓ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ
यस् अलून-क अनिल्-अन्फालि, क़ुलिल्-अन्फालु लिल्लाहि वर्रसूलि, फ़त्तक़ुल्ला-ह व अस्लिहू ज़ा-त बैनिकुम्, व अतीअुल्ला-ह व रसूलहू इन् कुन्तुम् मुअ्मिनीन
(हे नबी!) आपसे (आपके साथी) युध्द में प्राप्त धन के विषय में प्रश्न कर रहे हैं। तुम कह दो कि युद्ध में प्राप्त धन अल्लाह और रसूल के वास्ते हैं। तो अल्लाह से डरो (और) अपने आपस के सम्बन्धों को ठीक रखो। और अगर तुम सच्चे (ईमानदार) हो तो अल्लाह की और उसके रसूल के आज्ञाकारी रहो।
إِنَّمَا ٱلْمُؤْمِنُونَ ٱلَّذِينَ إِذَا ذُكِرَ ٱللَّهُ وَجِلَتْ قُلُوبُهُمْ وَإِذَا تُلِيَتْ عَلَيْهِمْ ءَايَـٰتُهُۥ زَادَتْهُمْ إِيمَـٰنًۭا وَعَلَىٰ رَبِّهِمْ يَتَوَكَّلُونَ
इन्नमल् मुअ्मिनूनल्लज़ी-न इज़ा ज़ुकिरल्लाहु वजिलत् क़ुलूबुहुम् व इज़ा तुलियत् अलैहिम् आयातुहू ज़ादत्हुम् ईमानंव्-व अला रब्बिहिम् य-तवक्कलून
सच्चे ईमानदार तो बस वही लोग हैं कि जब (उनके सामने) अल्लाह का ज़िक्र किया जाता है तो उनके दिल हिल जाते हैं और जब उनके सामने उसकी आयतें पढ़ी जाती हैं तो उनके ईमान को और भी ज़्यादा कर देती हैं और वह लोग बस अपने परवरदिगार ही पर भरोसा रखते हैं।
ٱلَّذِينَ يُقِيمُونَ ٱلصَّلَوٰةَ وَمِمَّا رَزَقْنَـٰهُمْ يُنفِقُونَ
अल्लज़ी-न युक़ीमूनस्सला-त व मिम्मा रज़क़्नाहुम् युन्फ़िक़ून
नमाज़ को पाबन्दी से अदा करते हैं और जो हम ने उन्हें दिया हैं उसमें से (राहे अल्लाह में) ख़र्च करते हैं।
أُو۟لَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلْمُؤْمِنُونَ حَقًّۭا ۚ لَّهُمْ دَرَجَـٰتٌ عِندَ رَبِّهِمْ وَمَغْفِرَةٌۭ وَرِزْقٌۭ كَرِيمٌۭ
उलाइ-क हुमुल-मुअ्मिनू-न हक़्क़न्, लहुम् द-रजातुन् अिन्-द रब्बिहिम् व मग़्फि-रतुंव् व रिज़्क़ुन् करीम
यही तो सच्चे ईमानदार हैं उन्हीं के लिए उनके परवरदिगार के यहाँ (बड़े बड़े) दर्जे हैं और बक्शीश और इज़्ज़त और आबरू के साथ रोज़ी है (ये माले ग़नीमत का झगड़ा वैसा ही है)।
كَمَآ أَخْرَجَكَ رَبُّكَ مِنۢ بَيْتِكَ بِٱلْحَقِّ وَإِنَّ فَرِيقًۭا مِّنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ لَكَـٰرِهُونَ
कमा अख़्र-ज-क रब्बु-क मिम्-बैति-क बिल्हक़्क़ि, व इन्-न फरीक़म् मिनल्-मुअ्मिनी-न लकारिहून
जिस तरह तुम्हारे परवरदिगार ने तुम्हें बिल्कुल ठीक (मसलहत से) तुम्हारे घर से (जंग बदर) में निकाला था और मोमिनीन का एक गिरोह (उससे) नाखुश था।
يُجَـٰدِلُونَكَ فِى ٱلْحَقِّ بَعْدَ مَا تَبَيَّنَ كَأَنَّمَا يُسَاقُونَ إِلَى ٱلْمَوْتِ وَهُمْ يَنظُرُونَ
युजादिलून क फ़िल्हक़्क़ि बअ्-द मा तबय्य-न कअन्नमा युसाक़ू-न इलल्मौति व हुम् यन्ज़ुरून
कि वह लोग सत्य के विषय में उसके स्पष्ट हो जाने के बाद भी तुमसे सच्ची बात में झगड़तें थें और इस तरह (करने लगे) गोया (ज़बरदस्ती) मौत के मुँह में ढकेले जा रहे हैं। और उसे (अपनी आँखों से) देख रहे हैं।
وَإِذْ يَعِدُكُمُ ٱللَّهُ إِحْدَى ٱلطَّآئِفَتَيْنِ أَنَّهَا لَكُمْ وَتَوَدُّونَ أَنَّ غَيْرَ ذَاتِ ٱلشَّوْكَةِ تَكُونُ لَكُمْ وَيُرِيدُ ٱللَّهُ أَن يُحِقَّ ٱلْحَقَّ بِكَلِمَـٰتِهِۦ وَيَقْطَعَ دَابِرَ ٱلْكَـٰفِرِينَ
व इज़् यअिदु कुमुल्लाहु इह़्दत्ताइ-फ़तैनि अन्नहा लकुम् व तवद्दू-न अन्-न ग़ै-र जातिश्शौ-कति तकूनु लकुम् व युरीदुल्लाहु अंय्युह़िक़्क़ल-हक़् क़ बिकलिमातिही व यक़्त अ़ दाबिरल्-काफ़िरीन
और (ये वक़्त था) जब अल्लाह तुमसे वायदा कर रहा था कि (कुफ्फार मक्का) दो जमाअतों में से एक तुम्हारे लिए ज़रूरी हैं और तुम ये चाहते थे कि कमज़ोर जमाअत तुम्हारे हाथ लगे (ताकि बग़ैर लड़े भिड़े माले ग़नीमत हाथ आ जाए) और अल्लाह ये चाहता था कि अपनी बातों से हक़ को साबित (क़दम) करें और काफिरों की जड़ काट डाले।
لِيُحِقَّ ٱلْحَقَّ وَيُبْطِلَ ٱلْبَـٰطِلَ وَلَوْ كَرِهَ ٱلْمُجْرِمُونَ
लियुहिक़्क़ल् हक़् क़ व युब्तिलल्-बाति-ल व लौ करिहल्-मुज्रिमून
ताकि हक़ को (हक़) साबित कर दे और बातिल का मिटियामेट कर दे यद्यपि गुनाहगार (कुफ्फार उससे) नाखुश ही क्यों न हो।
إِذْ تَسْتَغِيثُونَ رَبَّكُمْ فَٱسْتَجَابَ لَكُمْ أَنِّى مُمِدُّكُم بِأَلْفٍۢ مِّنَ ٱلْمَلَـٰٓئِكَةِ مُرْدِفِينَ
इज़् तस्तग़ीसू-न रब्बकुम् फ़स्तजा-ब लकुम् अन्नी मुमिद्दुकुम् बिअल्फ़िम् मिनल्-मलाइ कति मुर्दिफ़ीन
(ये वह वक़्त था) जब तुम अपने परवदिगार से फरियाद कर रहे थे। उसने तुम्हारी सुन ली और जवाब दे दिया कि मैं तुम्हारी लगातार हज़ार फरिश्तों से मदद करूँगा।
وَمَا جَعَلَهُ ٱللَّهُ إِلَّا بُشْرَىٰ وَلِتَطْمَئِنَّ بِهِۦ قُلُوبُكُمْ ۚ وَمَا ٱلنَّصْرُ إِلَّا مِنْ عِندِ ٱللَّهِ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٌ
व मा ज-अ-लहुल्लाहु इल्ला बुश्रा व लितत्मइन्-न बिही क़ुलूबुकुम्, व मन्नस् रू इल्ला मिन् अिन्दिल्लाहि, इन्नल्ला-ह अज़ीज़ुन हकीम
और (ये आसमानी मदद) अल्लाह ने सिर्फ तुम्हारी ख़ातिर (ख़ुशी) के लिए की थी और तुम्हारे दिलों को संतोष हो जाये और (याद रखो) मदद अल्लाह के सिवा और कहीं से (कभी) नहीं होती। बेशक अल्लाह ग़ालिब हिकमत वाला है।
إِذْ يُغَشِّيكُمُ ٱلنُّعَاسَ أَمَنَةًۭ مِّنْهُ وَيُنَزِّلُ عَلَيْكُم مِّنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءًۭ لِّيُطَهِّرَكُم بِهِۦ وَيُذْهِبَ عَنكُمْ رِجْزَ ٱلشَّيْطَـٰنِ وَلِيَرْبِطَ عَلَىٰ قُلُوبِكُمْ وَيُثَبِّتَ بِهِ ٱلْأَقْدَامَ
इज़् युग़श्शीकुमुन्नुआ-स अ-म-नतम् मिन्हु व युनज़्ज़िलु अलैकुम् मिनस्समा-इ माअल्-लियुतह़्हि-रकुम् बिही व युज़्हि ब अन्कुम् रिज्ज़श्शैतानि व लियरबि-त अ़ला क़ुलूबिकुम् व युसब्बि-त बिहिल्अक़्दाम
ये वह वक़्त था जब अपनी तरफ से इत्मिनान देने के लिए तुम पर नींद को ग़ालिब कर रहा था और तुम पर आसमान से पानी बरस रहा था ताकि उससे तुम्हें पाक (पाकीज़ा कर दे और तुम से शैतान की गन्दगी दूर कर दे और तुम्हारे दिल मज़बूत कर दे और पानी से (बालू जम जाए) और तुम्हारे क़दम (अच्छी तरह) जमे रहे।
إِذْ يُوحِى رَبُّكَ إِلَى ٱلْمَلَـٰٓئِكَةِ أَنِّى مَعَكُمْ فَثَبِّتُوا۟ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ ۚ سَأُلْقِى فِى قُلُوبِ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ ٱلرُّعْبَ فَٱضْرِبُوا۟ فَوْقَ ٱلْأَعْنَاقِ وَٱضْرِبُوا۟ مِنْهُمْ كُلَّ بَنَانٍۢ
इज़् यूही रब्बु-क इलल्मलाइ-कति अन्नी म-अ़कुम् फ़- सब्बितुल्लज़ी-न आमनू, सउल्क़ी फ़ी क़ुलूबिल्लज़ी-न क-फरूर्रूअ्-ब फ़ज़्रिबू फ़ौक़ल् अअ्नाक़ि वज़्रिबू मिन्हुम् कुल-ल बनान
(ऐ रसूल! ये वह वक़्त था) जब तुम्हारा परवरदिगार फरिश्तों से फरमा रहा था कि मै यकीनन तुम्हारे साथ हूँ तुम ईमानदारों को साबित क़दम रखो मै बहुत जल्द काफिरों के दिलों में (तुम्हारा रौब) डाल दूँगा (फिर क्या है अब) तो उन कुफ्फार की गर्दनों पर मारो और उनकी पोर-पोर पर आघात पहुँचाओ।
ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمْ شَآقُّوا۟ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ ۚ وَمَن يُشَاقِقِ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ فَإِنَّ ٱللَّهَ شَدِيدُ ٱلْعِقَابِ
ज़ालि-क बिअन्नहुम् शाक़्क़ुल्ला-ह व रसूलहू, व मंय्युशाक़िक़िल्ला-ह व रसूलहू फ़-इन्नल्ला-ह शदीदुल् -अिक़ाब
ये (सज़ा) इसलिए है कि उन लोगों ने अल्लाह और उसके रसूल की मुख़ालिफ की और जो शख़्स (भी) अल्लाह और उसके रसूल की मुख़ालफ़त करेगा तो (याद रहें कि) अल्लाह बड़ा सख़्त अज़ाब करने वाला है।
ذَٰلِكُمْ فَذُوقُوهُ وَأَنَّ لِلْكَـٰفِرِينَ عَذَابَ ٱلنَّارِ
ज़ालिकुम फ़ज़ूक़ूहु व अन्-न लिल्काफ़िरी-न अज़ाबन्नार
(काफिरों दुनिया में तो) लो फिर उस (सज़ा का चखो और (फिर आख़िर में तो) काफिरों के वास्ते जहन्नुम का अज़ाब ही है।
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ إِذَا لَقِيتُمُ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ زَحْفًۭا فَلَا تُوَلُّوهُمُ ٱلْأَدْبَارَ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू इज़ा लक़ीतुमुल्लज़ी-न क-फरू ज़ह्फ़न् फला तुवल्लूहुमुल अद्-बार
ऐ ईमानदारों! जब तुमसे कुफ़्फ़ार से मैदाने जंग में मुक़ाबला हुआ तो (ख़बरदार) उनकी तरफ पीठ न करना।
وَمَن يُوَلِّهِمْ يَوْمَئِذٍۢ دُبُرَهُۥٓ إِلَّا مُتَحَرِّفًۭا لِّقِتَالٍ أَوْ مُتَحَيِّزًا إِلَىٰ فِئَةٍۢ فَقَدْ بَآءَ بِغَضَبٍۢ مِّنَ ٱللَّهِ وَمَأْوَىٰهُ جَهَنَّمُ ۖ وَبِئْسَ ٱلْمَصِيرُ
व मंय्युवल्लिहिम् यौमइज़िन् दुबु-रहू इल्ला मु- तहर्रिफ़ल् लिक़ितालिन् औ मु-तहय्यिज़न् इला फ़ि अतिन् फ़-क़द् बा-अ बि-ग़-ज़ बिम् मिनल्लाहि व मअ्वाहु जहन्नमु, व बिअ्सल्मसीर
(याद रहे कि) उस शख़्स के सिवा जो लड़ाई वास्ते कतराए या किसी जमाअत के पास (जाकर) मौके़ पाए (और) जो शख़्स भी उस दिन उन कुफ़्फ़ार की तरफ पीठ फेरेगा वह यक़ीनी (हिर फिर के) अल्लाह के ग़जब में आ गया और उसका ठिकाना जहन्नुम ही हैं और वह क्या बुरा ठिकाना है।
فَلَمْ تَقْتُلُوهُمْ وَلَـٰكِنَّ ٱللَّهَ قَتَلَهُمْ ۚ وَمَا رَمَيْتَ إِذْ رَمَيْتَ وَلَـٰكِنَّ ٱللَّهَ رَمَىٰ ۚ وَلِيُبْلِىَ ٱلْمُؤْمِنِينَ مِنْهُ بَلَآءً حَسَنًا ۚ إِنَّ ٱللَّهَ سَمِيعٌ عَلِيمٌۭ
फ़-लम् तक़्तुलूहुम् व लाकिन्नल्ला-ह क़-त-लहुम्, व मा रमै-त इज़् रमै-त व लाकिन्नल्ला-ह रमा, व लियुब्लियल्-मुअ्मिनी-न मिन्हु बलाअन् ह-सनन्, इन्नल्ला-ह समीअुन् अलीम
और (मुसलमानों!) उन कुफ़्फ़ार को कुछ तुमने तो क़त्ल किया नही बल्कि उनको तो अल्लाह ने क़त्ल किया और (ऐ रसूल!) जब तुमने तीर मारा तो कुछ तुमने नही मारा बल्कि ख़़ुद अल्लाह ने तीर मारा। और ताकि अपनी तरफ से मोमिनीन पर खूब एहसान करे। बेशक अल्लाह (सबकी) सुनता और (सब कुछ) जानता है।
ذَٰلِكُمْ وَأَنَّ ٱللَّهَ مُوهِنُ كَيْدِ ٱلْكَـٰفِرِينَ
ज़ालिकुम् व अन्नल्ला-ह मूहिनु कैदिल्-काफ़िरीन
यह तो हुआ, और यह (जान लो) कि अल्लाह इनकार करनेवालों की चाल को कमज़ोर कर देनेवाला है।
إِن تَسْتَفْتِحُوا۟ فَقَدْ جَآءَكُمُ ٱلْفَتْحُ ۖ وَإِن تَنتَهُوا۟ فَهُوَ خَيْرٌۭ لَّكُمْ ۖ وَإِن تَعُودُوا۟ نَعُدْ وَلَن تُغْنِىَ عَنكُمْ فِئَتُكُمْ شَيْـًۭٔا وَلَوْ كَثُرَتْ وَأَنَّ ٱللَّهَ مَعَ ٱلْمُؤْمِنِينَ
इन् तस्तफ्तिहू फ़-क़द् जा-अकुमुल्-फ़त्हू, व इन् तन्तहू फ़हु-व ख़ैरूल्लकुम्, व इन् तअूदू नअुद्, व लन् तुग़्निय अ़न्कुम् फ़ि अतुकुम् शैअंव्-व लौ कसुरत्, व अन्नल्ला-ह मअल्-मुअ्मिनीन
(काफिर) अगर तुम ये चाहते हो (कि जो हक़ पर हो उसकी) फ़तेह हो (मुसलमानों की) फ़तेह भी तुम्हारे सामने आ मौजूद हुयी अब क्या गु़रूर बाक़ी है और अगर तुम (अब भी मुख़तलिफ़ इस्लाम) से बाज़ रहो तो तुम्हारे वास्ते बेहतर है और अगर कहीं तुम पलट पड़े तो (याद रहे) हम भी पलट पड़ेगें (और तुम्हें तबाह कर छोड़ देगें) और तुम्हारी जमाअत अगरचे बहुत ज़्यादा भी हो हरगिज़ कुछ काम न आएगी और अल्लाह तो यक़ीनी मोमिनीन के साथ है।
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ أَطِيعُوا۟ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ وَلَا تَوَلَّوْا۟ عَنْهُ وَأَنتُمْ تَسْمَعُونَ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू अतीअुल्ला-ह व रसूलहू व ला तवल्लौ अन्हु व अन्तुम् तस्मअून
(ऐ ईमानदारों! अल्लाह और उसके रसूल के आज्ञाकारी रहो और उससे मुँह न मोड़ो, जब तुम समझ रहे हो।
وَلَا تَكُونُوا۟ كَٱلَّذِينَ قَالُوا۟ سَمِعْنَا وَهُمْ لَا يَسْمَعُونَ
व ला तकूनू कल्लज़ी-न क़ालू समिअ्ना व हुम् ला यस्मअून
तथा उनके समान न हो जाओ, जिन्होंने कहा कि हमने सुन लिया, जबकि वास्तव में वे सुनते नहीं थे।
۞ إِنَّ شَرَّ ٱلدَّوَآبِّ عِندَ ٱللَّهِ ٱلصُّمُّ ٱلْبُكْمُ ٱلَّذِينَ لَا يَعْقِلُونَ
इन्-न शर्रद्दवाब्बि अिन्दल्लाहिस्सुम्मुल-बुक्मुल्लज़ी-न ला यअ्क़िलून
इसमें शक नहीं कि ज़मीन पर चलने वाले तमाम हैवानात से बदतर अल्लाह के नज़दीक वह बहरे गूँगे (कुफ्फार) हैं जो कुछ नहीं समझते।
وَلَوْ عَلِمَ ٱللَّهُ فِيهِمْ خَيْرًۭا لَّأَسْمَعَهُمْ ۖ وَلَوْ أَسْمَعَهُمْ لَتَوَلَّوا۟ وَّهُم مُّعْرِضُونَ
व लौ अलिमल्लाहु फ़ीहिम् ख़ैरल् ल-अस्म-अहुम्, व लौ अस्म-अहुम् ल-तवल्लौ व हुम् मुअ्-रिज़ून
और अगर अल्लाह उनमें नेकी (की बू भी) देखता तो ज़रूर उनमें सुनने की क़ाबलियत अता करता मगर ये ऐसे हैं कि अगर उनमें सुनने की क़ाबिलयत भी देता तो मुँह फेर कर भागते।
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ ٱسْتَجِيبُوا۟ لِلَّهِ وَلِلرَّسُولِ إِذَا دَعَاكُمْ لِمَا يُحْيِيكُمْ ۖ وَٱعْلَمُوٓا۟ أَنَّ ٱللَّهَ يَحُولُ بَيْنَ ٱلْمَرْءِ وَقَلْبِهِۦ وَأَنَّهُۥٓ إِلَيْهِ تُحْشَرُونَ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनुस्तजीबू लिल्लाहि व लिर्रसूलि इज़ा दआकुम् लिमा युह़्यीकुम्, वअ्लमू अन्नल्ला-ह यहूलु बैनल्-मरइ व क़ल्बिही व अन्नहू इलैहि तुह्शरून
हे ईमान वालो! जब तुम को हमारा रसूल (मोहम्मद) जब वह तुम्हें उस चीज़ की ओर बुलाए जो तुम्हें जीवन प्रदान करनेवाली है, तो तुम अल्लाह और रसूल के हुक्म दिल से कुबूल कर लो और जान लो कि अल्लाह वह क़ादिर मुतलिक़ है कि आदमी और उसके दिल (इरादे) के दरमियान इस तरह आ जाता है और ये भी समझ लो कि तुम सबके सब उसके सामने हाजिर किये जाओगे।
وَٱتَّقُوا۟ فِتْنَةًۭ لَّا تُصِيبَنَّ ٱلَّذِينَ ظَلَمُوا۟ مِنكُمْ خَآصَّةًۭ ۖ وَٱعْلَمُوٓا۟ أَنَّ ٱللَّهَ شَدِيدُ ٱلْعِقَابِ
वत्तक़ू फित् न-तल्-ला तुसीबन्नल्लज़ी-न ज़-लमू मिन्कुम् खास्स-तन्, वअ्लमू अन्नल्ला-ह शदीदुल अिक़ाब
और उस फितने से डरते रहो जो ख़ास उन्हीं लोगों पर नही पड़ेगा जिन्होने तुम में से ज़ुल्म किया (बल्कि तुम सबके सब उसमें पड़ जाओगे) और यक़ीन मानों कि अल्लाह बड़ा सख़्त अज़ाब करने वाला है।
وَٱذْكُرُوٓا۟ إِذْ أَنتُمْ قَلِيلٌۭ مُّسْتَضْعَفُونَ فِى ٱلْأَرْضِ تَخَافُونَ أَن يَتَخَطَّفَكُمُ ٱلنَّاسُ فَـَٔاوَىٰكُمْ وَأَيَّدَكُم بِنَصْرِهِۦ وَرَزَقَكُم مِّنَ ٱلطَّيِّبَـٰتِ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ
वज़्कुरू इज़् अन्तुम् क़लीलुम् मुस्तज़्अफू-न फ़िल्अर्ज़ि तख़ाफू न अंय्य तख़त्त फकुमुन्नासु फ़आवाकुम् व अय्य-दकुम् बिनसरिही व र-ज़-क़ कुम् मिनत्तय्यिबाति लअ़ल्लकुम् तश्कुरून
(मुसलमानों वह वक़्त याद करो) जब तुम थोड़े थे, धरती में निर्बल थे, और बिल्कुल बेबस थे। उससे सहमे जाते थे कि कहीं लोग तुमको उचक न ले जाए, तो अल्लाह ने तुमको (मदीने में) पनाह दी और अपनी सहायता से तुम्हें शक्ति प्रदान की और तुम्हे पाक व पाकीज़ा चीज़े खाने को दी ताकि तुम शुक्र गुज़ारी करो।
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ لَا تَخُونُوا۟ ٱللَّهَ وَٱلرَّسُولَ وَتَخُونُوٓا۟ أَمَـٰنَـٰتِكُمْ وَأَنتُمْ تَعْلَمُونَ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तख़ूनुल्ला-ह वर्रसू-ल व तख़ूनू अमानातिकुम व अन्तुम् तअ्लमून
ऐ ईमान लानेवालो! न तो अल्लाह और रसूल की (अमानत में) ख़्यानत करो और न अपनी अमानतों में ख़्यानत करो हालाँकि समझते बूझते हो।
وَٱعْلَمُوٓا۟ أَنَّمَآ أَمْوَٰلُكُمْ وَأَوْلَـٰدُكُمْ فِتْنَةٌۭ وَأَنَّ ٱللَّهَ عِندَهُۥٓ أَجْرٌ عَظِيمٌۭ
वअ्लमू अन्नमा अम्वालुकुम् व औलादुकुम् फ़ित्-नतुंव्-व अन्नल्ला-ह अिन्दहू अज्रुन् अ़ज़ीम
और यक़ीन जानों कि तुम्हारे माल और तुम्हारी औलाद तुम्हारी आज़माइश (इम्तेहान) की चीज़े हैं कि जो उनकी मोहब्बत में भी अल्लाह को न भूले और वह दीनदार है।
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ إِن تَتَّقُوا۟ ٱللَّهَ يَجْعَل لَّكُمْ فُرْقَانًۭا وَيُكَفِّرْ عَنكُمْ سَيِّـَٔاتِكُمْ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ۗ وَٱللَّهُ ذُو ٱلْفَضْلِ ٱلْعَظِيمِ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू इन् तत्तक़ुल्ला-ह यज् अल्लकुम् फुरक़ानंव्-व युकफ्फिर अ़न्कुम् सय्यिआतिकुम् व यग़्फिर् लकुम्, वल्लाहु ज़ुल्फ़ज़्लिल्-अज़ीम
हे ईमान वालो! यदि तुम अल्लाह से डरोगे, तो तुम्हें विवेक प्रदान करेगा तथा तुमसे तुम्हारी बुराईयाँ दूर कर देगा, तुम्हे क्षमा कर देगा और अल्लाह बड़ा दयाशील है।
وَإِذْ يَمْكُرُ بِكَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ لِيُثْبِتُوكَ أَوْ يَقْتُلُوكَ أَوْ يُخْرِجُوكَ ۚ وَيَمْكُرُونَ وَيَمْكُرُ ٱللَّهُ ۖ وَٱللَّهُ خَيْرُ ٱلْمَـٰكِرِينَ
व इज़् यम्कुरू बिकल्लज़ी-न क-फ़रू लियुस्बितू-क औ यक़्तुलू-क औ युख़रिजू-क, व यम्कुरू-न व यम्कुरूल्लाहु, वल्लाहु ख़ैरूल् माकिरीन
और (ऐ रसूल! वह वक़्त याद करो) जब काफ़िर आपके विरुध्द षड्यंत्र रच रहे थे, ताकि तुमको क़ैद कर लें या तुमको मार डाले या तुम्हें (घर से) निकाल बाहर करे। वह तो ये चाल चल रहे थे। और अल्लाह भी (उनके खिलाफ) चाल चल रहा था।
وَإِذَا تُتْلَىٰ عَلَيْهِمْ ءَايَـٰتُنَا قَالُوا۟ قَدْ سَمِعْنَا لَوْ نَشَآءُ لَقُلْنَا مِثْلَ هَـٰذَآ ۙ إِنْ هَـٰذَآ إِلَّآ أَسَـٰطِيرُ ٱلْأَوَّلِينَ
व इज़ा तुत्ला अ़लैहिम् आयातुना क़ालू क़द् समिअ्ना लौ नशा-उ लक़ुल्ना मिस्-ल हाज़ा, इन् हाज़ा इल्ला असातीरूल-अव्वलीन
और जब उनको हमारी आयतें सुनाई जाती हैं, तो कहते हैः हमने (इसे) सुन लिया है। यदि हम चाहें, तो इसी (क़ुर्आन) जैसी बातें कह दें। ये तो वही प्राचीन लोगों की कथायें हैं।
وَإِذْ قَالُوا۟ ٱللَّهُمَّ إِن كَانَ هَـٰذَا هُوَ ٱلْحَقَّ مِنْ عِندِكَ فَأَمْطِرْ عَلَيْنَا حِجَارَةًۭ مِّنَ ٱلسَّمَآءِ أَوِ ٱئْتِنَا بِعَذَابٍ أَلِيمٍۢ
व इज़् क़ालुल्लाहुम्-म इन् का-न हाज़ा हुवल्-हक़् क़ मिन् अिन्दि-क फ़अम्तिर् अलैना हिजा-रतम् मिनस्समा-इ अविअ्तिना बिअज़ाबिन् अलीम
और (ऐ रसूल! वह वक़्त याद करो) जब उन काफिरों ने दुआएँ माँगीं थी कि अल्लाह अगर ये (दीन इस्लाम) हक़ है और तेरे पास से (आया है) तो हम पर आसमान से पत्थर बरसा या हम पर कोई और दर्दनाक अज़ाब ही नाज़िल फरमा।
وَمَا كَانَ ٱللَّهُ لِيُعَذِّبَهُمْ وَأَنتَ فِيهِمْ ۚ وَمَا كَانَ ٱللَّهُ مُعَذِّبَهُمْ وَهُمْ يَسْتَغْفِرُونَ
व मा कानल्लाहु लियुअ़ज़्ज़ि-बहुम् व अन्-त फ़ीहिम्, व मा कानल्लाहु मुअज़्ज़ि-बहुम् व हुम् यस्तग़्फिरून
हालाँकि जब तक तुम उनके दरम्यिान मौजूद हो और अल्लाह ऐसा नहीं कि तुम उनके बीच उपस्थित हो और वह उन्हें यातना देने लग जाए, और न अल्लाह ऐसा है कि वे क्षमा-याचना कर रहे हों और वह उन्हें यातना से ग्रस्त कर दे।
وَمَا لَهُمْ أَلَّا يُعَذِّبَهُمُ ٱللَّهُ وَهُمْ يَصُدُّونَ عَنِ ٱلْمَسْجِدِ ٱلْحَرَامِ وَمَا كَانُوٓا۟ أَوْلِيَآءَهُۥٓ ۚ إِنْ أَوْلِيَآؤُهُۥٓ إِلَّا ٱلْمُتَّقُونَ وَلَـٰكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُونَ
व मा लहुम् अल्-ला युअ़ज़्ज़ि-बहुमुल्लाहु व हुम् यसुद्दू-न अनिल् मस्जिदिल्-हरामि व मा कानू औलिया-अहू, इन् औलिया-उहू इल्लल्-मुत्तक़ू-न व लाकिन् न अक्स रहुम् ला यअ्लमून
और जब ये लोग लोगों को मस्जिदुल हराम (ख़ान ए काबा की इबादत) से रोकते है तो फिर उनके लिए कौन सी बात बाक़ी है कि उन पर अज़ाब न नाज़िल करे और ये लोग तो ख़ानाए काबा के व्यवस्थापक भी नहीं (फिर क्यों रोकते है) उसके संरक्षक तो केवल अल्लाह के आज्ञाकारी हैं, मगर इन काफ़िरों में से बहुतेरे नहीं जानते।
وَمَا كَانَ صَلَاتُهُمْ عِندَ ٱلْبَيْتِ إِلَّا مُكَآءًۭ وَتَصْدِيَةًۭ ۚ فَذُوقُوا۟ ٱلْعَذَابَ بِمَا كُنتُمْ تَكْفُرُونَ
व मा का-न सलातुहुम् अिन्दल्-बैति इल्ला मुकाअंव्-व तस्दि-यतन्, फ़ज़ूक़ुल-अ़ज़ा-ब बिमा कुन्तुम् तक्फुरून
और ख़ानाए काबे के पास सीटियाँ तालिया बजाने के सिवा उनकी नमाज ही क्या थी तो (ऐ काफिरों!) तो अब यातना का मज़ा चखो, उस इनकार के बदले में जो तुम करते रहे हो।
إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ يُنفِقُونَ أَمْوَٰلَهُمْ لِيَصُدُّوا۟ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ ۚ فَسَيُنفِقُونَهَا ثُمَّ تَكُونُ عَلَيْهِمْ حَسْرَةًۭ ثُمَّ يُغْلَبُونَ ۗ وَٱلَّذِينَ كَفَرُوٓا۟ إِلَىٰ جَهَنَّمَ يُحْشَرُونَ
इन्नल्लज़ी-न क-फरू युन्फ़िक़ू-न अम्वालहुम् लि- यसुद्दू अन् सबीलिल्लाहि, फ़-सयुन्फिक़ूनहा सुम्-म तकूनु अलैहिम् हस्-रतन् सुम्-म युग़्लबू-न, वल्लज़ी-न क-फरू इला जहन्न-म युह्शरून
निश्चय ही इनकार करनेवाले अपने माल अल्लाह के मार्ग से रोकने के लिए ख़र्च करते हैं। वे तो उनको ख़र्च करते रहेंगे, फिर यही उनके लिए पश्चाताप बनेगा। फिर वे पराभूत होंगे और इनकार करनेवाले जहन्नम की ओर समेट लाए जाएँगे।
لِيَمِيزَ ٱللَّهُ ٱلْخَبِيثَ مِنَ ٱلطَّيِّبِ وَيَجْعَلَ ٱلْخَبِيثَ بَعْضَهُۥ عَلَىٰ بَعْضٍۢ فَيَرْكُمَهُۥ جَمِيعًۭا فَيَجْعَلَهُۥ فِى جَهَنَّمَ ۚ أُو۟لَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلْخَـٰسِرُونَ
लि-यमीज़ल्लाहुल्-ख़बी-स मिनत्तय्यिबि व यज्अ़लल् ख़बी-स बअ्ज़हू अला बअ्जिन् फ़-यरकु-महू जमीअ़न् फ़-यज्अ-लहू फ़ी जहन्न-म, उलाइ-क हुमुल्- ख़ासिरून
ताकि अल्लाह पाक को नापाक से जुदा कर दे और नापाक लोगों को एक दूसरे पर रख के ढेर बनाए फिर सब को जहन्नुम में झोंक दे यही लोग घाटा उठाने वाले हैं।
قُل لِّلَّذِينَ كَفَرُوٓا۟ إِن يَنتَهُوا۟ يُغْفَرْ لَهُم مَّا قَدْ سَلَفَ وَإِن يَعُودُوا۟ فَقَدْ مَضَتْ سُنَّتُ ٱلْأَوَّلِينَ
क़ुल लिल्लज़ी-न क-फरू इंय्यन्तहू युग़्फर् लहुम् मा क़द् स-ल-फ, व इंय्यअूदू फ-क़द् मज़त् सुन्नतुल अव्वलीन
(ऐ रसूल!) उन इनकार करनेवालों से कह दो कि वे यदि बाज़ आ जाएँ तो जो कुछ हो चुका, उसे क्षमा कर दिया जाएगा, किन्तु यदि वे फिर भी वही करेंगे तो पूर्ववर्ती लोगों के सिलसिले में जो रीति अपनाई गई वह सामने से गुज़र चुकी है।
وَقَـٰتِلُوهُمْ حَتَّىٰ لَا تَكُونَ فِتْنَةٌۭ وَيَكُونَ ٱلدِّينُ كُلُّهُۥ لِلَّهِ ۚ فَإِنِ ٱنتَهَوْا۟ فَإِنَّ ٱللَّهَ بِمَا يَعْمَلُونَ بَصِيرٌۭ
व क़ातिलूहुम् हत्ता ला तकू-न फित्-नतुंव्-व यकूनद्दीनु कुल्लुहू लिल्लाहि, फ़-इनिन्तहौ फ़-इन्नल्ला-ह बिमा यअ्मलू-न बसीर
मुसलमानों! काफ़िरों से लड़े जाओ यहाँ तक कि कोई फसाद (बाक़ी) न रहे और (बिल्कुल सारी दुनिया में) अल्लाह का दीन ही दीन हो जाए फिर अगर ये लोग (फ़साद से) न बाज़ आए तो अल्लाह उनकी कारवाइयों को ख़ूब देखता है।
وَإِن تَوَلَّوْا۟ فَٱعْلَمُوٓا۟ أَنَّ ٱللَّهَ مَوْلَىٰكُمْ ۚ نِعْمَ ٱلْمَوْلَىٰ وَنِعْمَ ٱلنَّصِيرُ
व इन् तवल्लौ फअ्लमू अन्नल्ला-ह मौलाकुम्, निअ्मल् मौला व निअ्मन्-नसीर
और यदि वे मुँह फेरें, तो (मुसलमानों) समझ लो कि अल्लाह यक़ीनी तुम्हारा संरक्षक है और वह क्या अच्छा संरक्षक है और क्या अच्छा मददगार है।
۞ وَٱعْلَمُوٓا۟ أَنَّمَا غَنِمْتُم مِّن شَىْءٍۢ فَأَنَّ لِلَّهِ خُمُسَهُۥ وَلِلرَّسُولِ وَلِذِى ٱلْقُرْبَىٰ وَٱلْيَتَـٰمَىٰ وَٱلْمَسَـٰكِينِ وَٱبْنِ ٱلسَّبِيلِ إِن كُنتُمْ ءَامَنتُم بِٱللَّهِ وَمَآ أَنزَلْنَا عَلَىٰ عَبْدِنَا يَوْمَ ٱلْفُرْقَانِ يَوْمَ ٱلْتَقَى ٱلْجَمْعَانِ ۗ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍۢ قَدِيرٌ
वअ्लमू अन्नमा ग़निम्तुम् मिन् शैइन् फ-अन् न लिल्लाहि खुमु-सहू व लिर्रसूलि व लिज़िल्क़ुरबा वल्यतामा वल्मसाकीनि वब् नि
स्-सबीलि, इन् कुन्तुम् आमन्तुम् बिल्लाहि व मा अन्ज़ल्ना अला अब्दिना यौमल्फुरक़ानि यौमल् तक़ल्जम्आनि, वल्लाहु अला कुल्लि शैइन् क़दीर
और जान लो कि जो कुछ तुम (माल लड़कर) लूटो तो उनमें का पाचवां हिस्सा मख़सूस अल्लाह और रसूल और (रसूल के) क़राबतदारों और यतीमों और मिस्कीनों और परदेसियों का है अगर तुम अल्लाह पर और उस (ग़ैबी इमदाद) पर ईमान ला चुके हो जो हमने ख़ास बन्दे (मोहम्मद) पर फ़ैसले के दिन (जंग बदर में) नाजि़ल की थी जिस दिन (मुसलमानों और काफिरों की) दो जमाअतें बाहम गुथ गयी थी और अल्लाह तो हर चीज़ पर क़ादिर है।
إِذْ أَنتُم بِٱلْعُدْوَةِ ٱلدُّنْيَا وَهُم بِٱلْعُدْوَةِ ٱلْقُصْوَىٰ وَٱلرَّكْبُ أَسْفَلَ مِنكُمْ ۚ وَلَوْ تَوَاعَدتُّمْ لَٱخْتَلَفْتُمْ فِى ٱلْمِيعَـٰدِ ۙ وَلَـٰكِن لِّيَقْضِىَ ٱللَّهُ أَمْرًۭا كَانَ مَفْعُولًۭا لِّيَهْلِكَ مَنْ هَلَكَ عَنۢ بَيِّنَةٍۢ وَيَحْيَىٰ مَنْ حَىَّ عَنۢ بَيِّنَةٍۢ ۗ وَإِنَّ ٱللَّهَ لَسَمِيعٌ عَلِيمٌ
इज़् अन्तुम् बिल् अुद्-वतिद्दुन्या व हुम् बिल् अुद्-वतिल्-क़ुसवा वर्रक्बु अस्फ-ल मिन्कुम्, व लौ तवा अत्तुम् लख़्त-लफ्तुम् फिल्मी आ़दि, व लाकिल्-लियक़्ज़ियल्लाहु अम्रन का न मफ़अूलल् लियह़्लि-क मन् ह-ल-क अम्बय्यि-नतिंव्-व यह़्या मन् हय्-य अ़म्बय्यि नतिन्, व इन्नल्ला-ह ल समीअुन् अलीम
(ये वह वक़्त था) जब तुम (मैदाने जंग में मदीने के) क़रीब नाके पर थे और वह कुफ़्फ़ार बईद (दूर के) के नाके पर और (काफि़ले के) सवार तुम से नषेब में थे और अगर तुम एक दूसरे से (वक़्त की तक़रीर का) वायदा कर लेते हो तो और वक़्त पर गड़बड़ कर देते मगर (अल्लाह ने अचानक तुम लोगों को इकट्ठा कर दिया ताकि जो बात सदनी (होनी) थी वह पूरी कर दिखाए ताकि जो शख़्स हलाक (गुमराह) हो वह (हक़ की) हुज्जत तमाम होने के बाद हलाक हो और जो जि़न्दा रहे वह हिदायत की हुज्जत तमाम होने के बाद जि़न्दा रहे और अल्लाह यक़ीनी सुनने वाला ख़बरदार है।
إِذْ يُرِيكَهُمُ ٱللَّهُ فِى مَنَامِكَ قَلِيلًۭا ۖ وَلَوْ أَرَىٰكَهُمْ كَثِيرًۭا لَّفَشِلْتُمْ وَلَتَنَـٰزَعْتُمْ فِى ٱلْأَمْرِ وَلَـٰكِنَّ ٱللَّهَ سَلَّمَ ۗ إِنَّهُۥ عَلِيمٌۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ
इज़् युरीकहुमुल्लाहु फ़ी मनामि-क क़लीलन्, व लौ अराकहुम् कसीरल् ल फ़शिल्तुम् व ल-तनाज़अ्तुम् फ़िल्-अम्रि व लाकिन्नल्ला-ह सल्ल-म, इन्नहू अलीमुम बिज़ातिस्सुदूर
(ये वह वक़्त था) जब अल्लाह ने तुम्हें ख़्वाब में कुफ़्फ़ार को कम करके दिखलाया था और अगर उनको तुम्हें ज़्यादा करते दिखलाता तुम यक़ीनन हिम्मत हार देते और लड़ाई के बारे में झगड़ने लगते मगर अल्लाह ने इसे (बदनामी) से बचाया इसमें तो शक ही नहीं कि वह दिली ख़्यालात से वाकि़फ़ है।
وَإِذْ يُرِيكُمُوهُمْ إِذِ ٱلْتَقَيْتُمْ فِىٓ أَعْيُنِكُمْ قَلِيلًۭا وَيُقَلِّلُكُمْ فِىٓ أَعْيُنِهِمْ لِيَقْضِىَ ٱللَّهُ أَمْرًۭا كَانَ مَفْعُولًۭا ۗ وَإِلَى ٱللَّهِ تُرْجَعُ ٱلْأُمُورُ
व इज़् युरीकुमूहुम् इज़िल्तक़ैतुम् फ़ी अअ्युनिकुम् क़लीलंव्-व युक़ल्लिलुकुम फ़ी अअ्युनिहिम् लि-यक़्ज़ियल्लाहु अमरन् का-न मफ्अूलन्, व इलल्लाहि तुरजअुल-उमूर
(ये वह वक़्त था) जब तुम लोगों ने मुठभेड़ की तो अल्लाह ने तुम्हारी आँखों में कुफ़्फ़ार को बहुत कम करके दिखलाया और उनकीआँखों में तुमको थोड़ा कर दिया ताकि अल्लाह को जो कुछ करना मंज़ूर था वह पूरा हो जाए और कुल बातों का दारोमदार तो अल्लाह ही पर है।
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ إِذَا لَقِيتُمْ فِئَةًۭ فَٱثْبُتُوا۟ وَٱذْكُرُوا۟ ٱللَّهَ كَثِيرًۭا لَّعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू इज़ा लक़ीतुम् फ़ि-अतन् फस्बुतू वज़्कुरूल्ला-ह कसीरल्-लअ़ल्लकुम् तुफ्लिहून
ऐ इमानदारों जब तुम किसी फौज से मुठभेड़ करो तो ख़बरदार अपने क़दम जमाए रहो और अल्लाह को बहुंत याद करते रहो ताकि तुम फलाह पाओ।
وَأَطِيعُوا۟ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ وَلَا تَنَـٰزَعُوا۟ فَتَفْشَلُوا۟ وَتَذْهَبَ رِيحُكُمْ ۖ وَٱصْبِرُوٓا۟ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ مَعَ ٱلصَّـٰبِرِينَ
व अतीअुल्ला-ह व रसूलहू व ला तनाज़अू फ़-तफ्शलू व तज़्ह-ब रीहुकुम वस्बिरू, इन्नल्ला-ह मअ़स्साबिरीन
और अल्लाह की और उसके रसूल की इताअत करो और आपस में झगड़ा न करो वरना तुम हिम्मत हारोगे और तुम्हारी हवा उखड़ जाएगी और (जंग की तकलीफ़ को) झेल जाओ (क्योंकि) अल्लाह तो यक़ीनन सब्र करने वालों का साथी है।
وَلَا تَكُونُوا۟ كَٱلَّذِينَ خَرَجُوا۟ مِن دِيَـٰرِهِم بَطَرًۭا وَرِئَآءَ ٱلنَّاسِ وَيَصُدُّونَ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ ۚ وَٱللَّهُ بِمَا يَعْمَلُونَ مُحِيطٌۭ
व ला तकूनू कल्लज़ी न ख़- रजू मिन् दियारिहिम् ब-तरंव् व रिआअन्नासि व यसुद्दू-न अन् सबीलिल्लाहि, वल्लाहु बिमा यअ्मलू-न मुहीत
और उन लोगों के ऐसे न हो जाओ जो इतराते हुए और लोगों के दिखलाने के वास्ते अपने घरों से निकल खड़े हुए और लोगों को अल्लाह की राह से रोकते हैं और जो कुछ भी वह लोग करते हैं अल्लाह उस पर (हर तरह से) अहाता किए हुए है।
وَإِذْ زَيَّنَ لَهُمُ ٱلشَّيْطَـٰنُ أَعْمَـٰلَهُمْ وَقَالَ لَا غَالِبَ لَكُمُ ٱلْيَوْمَ مِنَ ٱلنَّاسِ وَإِنِّى جَارٌۭ لَّكُمْ ۖ فَلَمَّا تَرَآءَتِ ٱلْفِئَتَانِ نَكَصَ عَلَىٰ عَقِبَيْهِ وَقَالَ إِنِّى بَرِىٓءٌۭ مِّنكُمْ إِنِّىٓ أَرَىٰ مَا لَا تَرَوْنَ إِنِّىٓ أَخَافُ ٱللَّهَ ۚ وَٱللَّهُ شَدِيدُ ٱلْعِقَابِ
व इज़् ज़य्य-न लहुमुश्शैतानु अअ्मालहुम् व क़ा-ल ला ग़ालि-ब लकुमुल्यौ-म मिनन्नासि व इन्नी जारूल्लकुम्, फ-लम्मा तरा-अतिल्-फ़ि अतानि न-क-स अला अ़क़िबैहि व क़ा-ल इन्नी बरीउम् मिन्कुम् इन्नी अरा माला तरौ-न इन्नी अख़ाफुल्ला-ह, वल्लाहु शदीदुल् – अिक़ाब
और जब शैतान ने उनकी कारस्तानियों को उम्दा कर दिखाया और उनके कान में फूंक दिया कि लोगों में आज कोई ऐसा नहीं जो तुम पर ग़ालिब आ सके और मै तुम्हारा मददगार हूँ फिर जब दोनों लष्कर मुकाबिल हुए तो अपने उलटे पाव भाग निकला और कहने लगा कि मै तो तुम से अलग हूँ मै वह चीजें देख रहा हूँ जो तुम्हें नहीं सूझती मैं तो अल्लाह से डरता हूँ और अल्लाह बहुत सख़्त अज़ाब वाला है।
إِذْ يَقُولُ ٱلْمُنَـٰفِقُونَ وَٱلَّذِينَ فِى قُلُوبِهِم مَّرَضٌ غَرَّ هَـٰٓؤُلَآءِ دِينُهُمْ ۗ وَمَن يَتَوَكَّلْ عَلَى ٱللَّهِ فَإِنَّ ٱللَّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٌۭ
इज़् यक़ूलुल्-मुनाफ़िक़ू-न वल्लज़ी-न फ़ी क़ुलूबिहिम् म-रज़ुन् ग़र्-र हा-उला-इ दीनुहुम, व मंय्य तवक्कल् अ़लल्लाहि फ़-इन्नल्ला-ह अ़ज़ीज़ुन् हकीम
(ये वक़्त था) जब मुनाफिक़ीन और जिन लोगों के दिल में (कुफ्र का) मजऱ् है कह रहे थे कि उन मुसलमानों को उनके दीन ने धोके में डाल रखा है (कि इतराते फिरते हैं हालाकि जो शख़्स अल्लाह पर भरोसा करता है (वह ग़ालिब रहता है क्योंकि) अल्लाह तो यक़ीनन ग़ालिब और हिकमत वाला है।
وَلَوْ تَرَىٰٓ إِذْ يَتَوَفَّى ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ ۙ ٱلْمَلَـٰٓئِكَةُ يَضْرِبُونَ وُجُوهَهُمْ وَأَدْبَـٰرَهُمْ وَذُوقُوا۟ عَذَابَ ٱلْحَرِيقِ
व लौ तरा इज़् य-तवफ्फ़ल्लज़ी-न क-फरूल्मलाइ-कतु यज़्रिबू न वुजू-हहुम् व अदबारहुम्, व ज़ूक़ू अज़ाबल्-हरीक़
और काश (ऐ रसूल) तुम देखते जब फ़रिश्ते काफि़रों की जान निकाल लेते थे और रूख़ और पुश्त(पीठ) पर कोड़े मारते थे और (कहते थे कि) अज़ाब जहन्नुम के मज़े चखों।
ذَٰلِكَ بِمَا قَدَّمَتْ أَيْدِيكُمْ وَأَنَّ ٱللَّهَ لَيْسَ بِظَلَّـٰمٍۢ لِّلْعَبِيدِ
ज़ालि-क बिमा क़द्द-मत् ऐदीकुम् व अन्नल्ला-ह लै-स बिज़ल्लामिल्-लिल् अ़बीद
ये सज़ा उसकी है जो तुम्हारे हाथों ने पहले किया कराया है और अल्लाह बन्दों पर हरगिज़ ज़ुल्म नहीं किया करता है।
كَدَأْبِ ءَالِ فِرْعَوْنَ ۙ وَٱلَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ ۚ كَفَرُوا۟ بِـَٔايَـٰتِ ٱللَّهِ فَأَخَذَهُمُ ٱللَّهُ بِذُنُوبِهِمْ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ قَوِىٌّۭ شَدِيدُ ٱلْعِقَابِ
कदअ्बि आलि फ़िरऔ-न, वल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिहिम्, क-फ़ रू बिआयातिल्लाहि फ़-अ-ख़-ज़हुमुल्लाहु बिज़ुनूबिहिम्, इन्नल्ला-ह क़विय्युन् शदीदुल-अिक़ाब
(उन लोगों की हालत) क़ौमे फिरआऊन और उनके लोगों की सी है जो उन से पहले थे और अल्लाह की आयतों से इन्कार करते थे तो अल्लाह ने भी उनके गुनाहों की वजह से उन्हें ले डाला बेशक अल्लाह ज़बरदस्त और बहुत सख़्त अज़ाब देने वाला है।
ذَٰلِكَ بِأَنَّ ٱللَّهَ لَمْ يَكُ مُغَيِّرًۭا نِّعْمَةً أَنْعَمَهَا عَلَىٰ قَوْمٍ حَتَّىٰ يُغَيِّرُوا۟ مَا بِأَنفُسِهِمْ ۙ وَأَنَّ ٱللَّهَ سَمِيعٌ عَلِيمٌۭ
ज़ालि-क बिअन्नल्ला-ह लम् यकु मुग़य्यिरन् निअ्-मतन् अन्अ़-महा अ़ला क़ौमिन् हत्ता युग़य्यिरू मा बिअन्फुसिहिम् व अन्नल्ला-ह समीअुन् अलीम
ये सज़ा इस वजह से (दी गई) कि जब कोई नेअमत अल्लाह किसी क़ौम को देता है तो जब तक कि वह लोग ख़ुद अपनी कलबी हालत (न) बदलें अल्लाह भी उसे नहीं बदलेगा और अल्लाह तो यक़ीनी (सब की सुनता) और सब कुछ जानता है।
كَدَأْبِ ءَالِ فِرْعَوْنَ ۙ وَٱلَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ ۚ كَذَّبُوا۟ بِـَٔايَـٰتِ رَبِّهِمْ فَأَهْلَكْنَـٰهُم بِذُنُوبِهِمْ وَأَغْرَقْنَآ ءَالَ فِرْعَوْنَ ۚ وَكُلٌّۭ كَانُوا۟ ظَـٰلِمِينَ
कदअ्बि आलि फ़िरऔ-न, वल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिहिम्, कज़्ज़बू बिआयाति रब्बिहिम् फ़-अह़्लक्नाहुम् बिज़ुनूबिहिम् व अग़्रक़्ना आ-ल फ़िरऔ-न, व कुल्लुन् कानू ज़ालिमीन
(उन लोगों की हालत) क़ौम फिरआऊन और उन लोगों की सी है जो उनसे पहले थे और अपने परवरदिगार की आयतों को झुठलाते थे तो हमने भी उनके गुनाहों की वजह से उनको हलाक़ कर डाला और फिरआऊन की क़ौम को डुबा मारा और (ये) सब के सब ज़ालिम थे।
إِنَّ شَرَّ ٱلدَّوَآبِّ عِندَ ٱللَّهِ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ فَهُمْ لَا يُؤْمِنُونَ
इन्-न शर्रद्दवाब्बि अिन्दल्लाहिल्लज़ी-न क-फरू फहुम् ला युअ्मिनून
इसमें शक नहीं कि अल्लाह के नज़दीक जानवरों में कुफ़्फ़ार सबसे बदतरीन तो (बावजूद इसके) फिर ईमान नहीं लाते।
ٱلَّذِينَ عَـٰهَدتَّ مِنْهُمْ ثُمَّ يَنقُضُونَ عَهْدَهُمْ فِى كُلِّ مَرَّةٍۢ وَهُمْ لَا يَتَّقُونَ
अल्लज़ी-न आहत्-त मिन्हुम् सुम्-म यन्क़ुज़ू-न अह्-दहुम् फ़ी कुल्लि मर्रतिंव्-व हुम् ला यत्तक़ून
ऐ रसूल जिन लोगों से तुम ने एहद व पैमान किया था फिर वह लोग अपने एहद को हर बार तोड़ डालते है और (फिर अल्लाह से) नहीं डरते।
فَإِمَّا تَثْقَفَنَّهُمْ فِى ٱلْحَرْبِ فَشَرِّدْ بِهِم مَّنْ خَلْفَهُمْ لَعَلَّهُمْ يَذَّكَّرُونَ
फ़-इम्मा तस्क़फ़न्नहुम् फ़िल्हर्बि फ-शर्रिद् बिहिम् मन् ख़ल्फ़हुम् लअल्लहुम यज़्ज़क्करून
तो अगर वह लड़ाई में तुम्हारे हाथे चढ़ जाएँ तो (ऐसी सख़्त गोशमाली दो कि) उनके साथ साथ उन लोगों का तो अगर वह लड़ाई में तुम्हारे हत्थे चढ़ जाएं तो (ऐसी सजा दो की) उनके साथ उन लोगों को भी तितिर बितिर कर दो जो उन के पुश्त पर हो ताकि ये इबरत हासिल करें।
وَإِمَّا تَخَافَنَّ مِن قَوْمٍ خِيَانَةًۭ فَٱنۢبِذْ إِلَيْهِمْ عَلَىٰ سَوَآءٍ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُحِبُّ ٱلْخَآئِنِينَ
व इम्मा तख़ाफ़न्-न मिन् क़ौमिन् ख़िया नतन् फ़म्बिज़् इलैहिम् अ़ला सवाइन्, इन्नल्ला-ह ला युहिब्बुल्-ख़ाइनीन
और अगर तुम्हें किसी क़ौम की ख़्यानत (एहद शिकनी(वादा खि़लाफी)) का ख़ौफ हो तो तुम भी बराबर उनका एहद उन्हीं की तरफ से फेंकी मारो (एहदो शिकन के साथ एहद शिकनी करो अल्लाह हरगिज़ दग़ाबाजों को दोस्त नहीं रखता।
وَلَا يَحْسَبَنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ سَبَقُوٓا۟ ۚ إِنَّهُمْ لَا يُعْجِزُونَ
व ला यह्स-बन्नल्लज़ी-न क-फ़रू स-बक़ू, इन्नहुम् ला युअ्जिज़ून
और कुफ़्फ़ार ये न ख़्याल करें कि वह (मुसलमानों से) आगे बढ़ निकले (क्योंकि) वह हरगिज़ (मुसलमानों को) हरा नहीं सकते।
وَأَعِدُّوا۟ لَهُم مَّا ٱسْتَطَعْتُم مِّن قُوَّةٍۢ وَمِن رِّبَاطِ ٱلْخَيْلِ تُرْهِبُونَ بِهِۦ عَدُوَّ ٱللَّهِ وَعَدُوَّكُمْ وَءَاخَرِينَ مِن دُونِهِمْ لَا تَعْلَمُونَهُمُ ٱللَّهُ يَعْلَمُهُمْ ۚ وَمَا تُنفِقُوا۟ مِن شَىْءٍۢ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ يُوَفَّ إِلَيْكُمْ وَأَنتُمْ لَا تُظْلَمُونَ
व अअिद्दू लहुम् मस्त-तअ्तुम् मिन् क़ुव्वतिंव्-व मिर्रिबातिल्ख़ैलि तुर्हिबू-न बिही अ़दुव्वल्लाहि व अ़दुव्वकुम् व आख़री-न मिन् दूनिहिम्, ला तअ्लमूनहुम्, अल्लाहु यअ्लमुहम्, व मा तुन्फिक़ू मिन् शैइन् फी सबीलिल्लाहि युवफ्-फ इलैकुम् व अन्तुम् ला तुज़्लमून
और (मुसलमानों तुम कुफ्फार के मुकाबले के) वास्ते जहाँ तक तुमसे हो सके (अपने बाज़ू के) ज़ोर से और बॅधे हुए घोड़े से लड़ाई का सामान मुहय्या करो इससे अल्लाह के दुष्मन और अपने दुश्मन और उसके सिवा दूसरे लोगों पर भी अपनी धाक बढ़ा लेगें जिन्हें तुम नहीं जानते हो मगर अल्लाह तो उनको जानता है और अल्लाह की राह में तुम जो कुछ भी ख़र्च करोगें वह तुम पूरा पूरा भर पाओगें और तुम पर किसी तरह ज़ुल्म नहीं किया जाएगा।
۞ وَإِن جَنَحُوا۟ لِلسَّلْمِ فَٱجْنَحْ لَهَا وَتَوَكَّلْ عَلَى ٱللَّهِ ۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلْعَلِيمُ
व इन् ज-नहू लिस्सल्मि फ़ज् नह् लहा व तवक्कल् अ़लल्लाहि, इन्नहू हुवस्समीअुल अ़लीम
और अगर ये कुफ्फार सुलह की तरफ माएल हो तो तुम भी उसकी तरफ माएल हो और अल्लाह पर भरोसा रखो (क्योंकि) वह बेशक (सब कुछ) सुनता जानता है।
وَإِن يُرِيدُوٓا۟ أَن يَخْدَعُوكَ فَإِنَّ حَسْبَكَ ٱللَّهُ ۚ هُوَ ٱلَّذِىٓ أَيَّدَكَ بِنَصْرِهِۦ وَبِٱلْمُؤْمِنِينَ
व इंय्युरीदू अंय्यख़्दअू-क फ़-इन्-न हस्ब-कल्लाहु, हुवल्लज़ी अय्य-द-क बिनस् रिही व बिल्मुअ्मिनीन
और अगर वह लोग तुम्हें फरेब देना चाहे तो (कुछ परवा नहीं) अल्लाह तुम्हारे वास्ते यक़ीनी काफी है-(ऐ रसूल) वही तो वह (अल्लाह) है जिसने अपनी ख़ास मदद और मोमिनीन से तुम्हारी ताईद की।
وَأَلَّفَ بَيْنَ قُلُوبِهِمْ ۚ لَوْ أَنفَقْتَ مَا فِى ٱلْأَرْضِ جَمِيعًۭا مَّآ أَلَّفْتَ بَيْنَ قُلُوبِهِمْ وَلَـٰكِنَّ ٱللَّهَ أَلَّفَ بَيْنَهُمْ ۚ إِنَّهُۥ عَزِيزٌ حَكِيمٌۭ
व अल्ल-फ़ बै-न क़ुलूबिहिम्, लौ अन्फक़्-त मा फिल्अर्ज़ि जमीअम्मा अल्लफ्-त बै-न क़ुलूबिहिम् व लाकिन्नल्ला-ह अल्ल-फ़ बैनहुम्, इन्नहू अज़ीज़ुन् हकीम
और उसी ने उन मुसलमानों के दिलों में बाहम ऐसी उलफ़त पैदा कर दी कि अगर तुम जो कुछ ज़मीन में है सब का सब खर्च कर डालते तो भी उनके दिलो में ऐसी उलफ़त पैदा न कर सकते मगर अल्लाह ही था जिसने बाहम उलफत पैदा की बेशक वह ज़बरदस्त हिक़मत वाला है।
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِىُّ حَسْبُكَ ٱللَّهُ وَمَنِ ٱتَّبَعَكَ مِنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ
या अय्युहन्नबिय्यु हस्बुकल्लाहु व मनित्त-ब-अ-क मिनल् मुअ्मिनीन
ऐ रसूल तुमको बस अल्लाह और जो मोमिनीन तुम्हारे ताबेए फरमान (फरमाबरदार) है काफी है।
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِىُّ حَرِّضِ ٱلْمُؤْمِنِينَ عَلَى ٱلْقِتَالِ ۚ إِن يَكُن مِّنكُمْ عِشْرُونَ صَـٰبِرُونَ يَغْلِبُوا۟ مِا۟ئَتَيْنِ ۚ وَإِن يَكُن مِّنكُم مِّا۟ئَةٌۭ يَغْلِبُوٓا۟ أَلْفًۭا مِّنَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ بِأَنَّهُمْ قَوْمٌۭ لَّا يَفْقَهُونَ
या अय्युहन्नबिय्यु हर्रिज़िल्-मुअ्मिनी-न अलल्- क़ितालि, इंय्यकुम्-मिन्कुम् अिश्रू-न साबिरू-न यग़्लिबू मि-अतैनि, व इंय्यकुम्-मिन्कुम् मि-अतुंय्यग़्लिबू अल्फम्-मिनल्लज़ी-न क-फरू बिअन्नहुम् क़ौमुल्-ला यफ़्क़हून
ऐ रसूल तुम मोमिनीन को जिहाद के वास्ते आमादा करो (वह घबराए नहीं अल्लाह उनसे वायदा करता है कि) अगर तुम लोगों में के साबित क़दम रहने वाले बीस भी होगें तो वह दो सौ (काफिरों) पर ग़ालिब आ जायेगे और अगर तुम लोगों में से साबित कदम रहने वालों सौ होगें तो हज़ार (काफिरों) पर ग़ालिब आ जाएँगें इस सबब से कि ये लोग ना समझ हैं।
ٱلْـَٔـٰنَ خَفَّفَ ٱللَّهُ عَنكُمْ وَعَلِمَ أَنَّ فِيكُمْ ضَعْفًۭا ۚ فَإِن يَكُن مِّنكُم مِّا۟ئَةٌۭ صَابِرَةٌۭ يَغْلِبُوا۟ مِا۟ئَتَيْنِ ۚ وَإِن يَكُن مِّنكُمْ أَلْفٌۭ يَغْلِبُوٓا۟ أَلْفَيْنِ بِإِذْنِ ٱللَّهِ ۗ وَٱللَّهُ مَعَ ٱلصَّـٰبِرِينَ
अल्आ-न ख़फ़्फ़-फ़ल्लाहु अन्कुम् व अलि म अन्-न फ़ीकुम् ज़अफ़न्, फ़-इंय्यकुम्-मिन्कुम् मि-अतुन् साबि -रतुंय्यग़्लिबू मि अतैनि, व इंय्यकुम्-मिन्कुम् अल्फुंय्-यग़्लिबू अल्फैनि बि-इज़्निल्लाहि, वल्लाहु मअस्- साबिरीन
अब अल्लाह ने तुम से (अपने हुक्म की सख़्ती में) तख़्फ़ीफ (कमी) कर दी और देख लिया कि तुम में यक़ीनन कमज़ोरी है तो अगर तुम लोगों में से साबित क़दम रहने वाले सौ होगें तो दो सौ (काफि़रों) पर ग़ालिब रहेंगें और अगर तुम लोगों में से (ऐसे) एक हज़ार होगें तो अल्लाह के हुक्म से दो हज़ार (काफि़रों) पर ग़ालिब रहेंगे और (जंग की तकलीफों को) झेल जाने वालों का अल्लाह साथी है।
مَا كَانَ لِنَبِىٍّ أَن يَكُونَ لَهُۥٓ أَسْرَىٰ حَتَّىٰ يُثْخِنَ فِى ٱلْأَرْضِ ۚ تُرِيدُونَ عَرَضَ ٱلدُّنْيَا وَٱللَّهُ يُرِيدُ ٱلْـَٔاخِرَةَ ۗ وَٱللَّهُ عَزِيزٌ حَكِيمٌۭ
मा का-न लि-नबिय्यिन् अंय्यकू-न लहू अस्रा हत्ता युस्ख़ि-न फ़िल्अर्ज़ि, तुरीदू-न अ-रज़द्दुन्या, वल्लाहु युरीदुल् आख़ि-र त, वल्लाहु अज़ीज़ुन् हकीम
कोई नबी जब कि रूए ज़मीन पर (काफिरों का) खून न बहाए उसके यहाँ कै़दियों का रहना मुनासिब नहीं तुम लोग तो दुनिया के साज़ो सामान के ख़्वाहा (चाहने वाले) हो और अल्लाह(तुम्हारे लिए) आखि़रत की (भलाई) का ख्वाहा है और अल्लाह ज़बरदस्त हिकमत वाला है।
لَّوْلَا كِتَـٰبٌۭ مِّنَ ٱللَّهِ سَبَقَ لَمَسَّكُمْ فِيمَآ أَخَذْتُمْ عَذَابٌ عَظِيمٌۭ
लौ ला किताबुम्-मिनल्लाहि स-ब-क़ लमस्सकुम् फ़ीमा अख़ज़्तुम् अ़ज़ाबुन् अ़ज़ीम
और अगर अल्लाह की तरफ से पहले ही (उसकी) माफी का हुक्म आ चुका होता तो तुमने जो (बदर के क़ैदियों के छोड़ देने के बदले) फिदिया लिया था।
فَكُلُوا۟ مِمَّا غَنِمْتُمْ حَلَـٰلًۭا طَيِّبًۭا ۚ وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٌۭ رَّحِيمٌۭ
फ़कुलू मिम्मा ग़निम्तुम् हलालन् तय्यिबंव्-वत्तक़ुल्ला-ह, इन्नल्ला-ह ग़फूरुर्रहीम
उसकी सज़ा में तुम पर बड़ा अज़ाब नाजि़ल होकर रहता तो (ख़ैर जो हुआ सो हुआ) अब तुमने जो माल ग़नीमत हासिल किया है उसे खाओ (और तुम्हारे लिए) हलाल तय्यब है और अल्लाह से डरते रहो बेशक अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है।
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِىُّ قُل لِّمَن فِىٓ أَيْدِيكُم مِّنَ ٱلْأَسْرَىٰٓ إِن يَعْلَمِ ٱللَّهُ فِى قُلُوبِكُمْ خَيْرًۭا يُؤْتِكُمْ خَيْرًۭا مِّمَّآ أُخِذَ مِنكُمْ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ۗ وَٱللَّهُ غَفُورٌۭ رَّحِيمٌۭ
या अय्युहन्नबिय्यु क़ुल् लिमन् फ़ी ऐदीकुम् मिनल्-अस्रा, इंय्यअ्-लमिल्लाहु फ़ी क़ुलूबिकुम् खैरंय्युअ्तिकुम् ख़ैरम् मिम्मा उख़ि-ज़ मिन्कुम् व यग़्फिर लकुम, वल्लाहु ग़फूरुर्रहीम
ऐ रसूल जो कै़दी तुम्हारे कब्जे़ में है उनसे कह दो कि अगर तुम्हारे दिलों में नेकी देखेगा तो जो (माल) तुम से छीन लिया गया है उससे कहीं बेहतर तुम्हें अता फरमाएगा और तुम्हें बख़्श भी देगा और अल्लाह तो बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है।
وَإِن يُرِيدُوا۟ خِيَانَتَكَ فَقَدْ خَانُوا۟ ٱللَّهَ مِن قَبْلُ فَأَمْكَنَ مِنْهُمْ ۗ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ
व इंय्युरीदू ख़ियान-त क फ़-क़द् ख़ानुल्ला-ह मिन् क़ब्लु फ़-अम्क-न मिन्हुम्, वल्लाहु अ़लीमुन् हकीम
और अगर ये लोग तुमसे फरेब करना चाहते है तो अल्लाह से पहले ही फरेब कर चुके हैं तो (उसकी सज़ा में) अल्लाह ने उन पर तुम्हें क़ाबू दे दिया और अल्लाह तो बड़ा वाकि़फकार हिकमत वाला है।
إِنَّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَهَاجَرُوا۟ وَجَـٰهَدُوا۟ بِأَمْوَٰلِهِمْ وَأَنفُسِهِمْ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ وَٱلَّذِينَ ءَاوَوا۟ وَّنَصَرُوٓا۟ أُو۟لَـٰٓئِكَ بَعْضُهُمْ أَوْلِيَآءُ بَعْضٍۢ ۚ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَلَمْ يُهَاجِرُوا۟ مَا لَكُم مِّن وَلَـٰيَتِهِم مِّن شَىْءٍ حَتَّىٰ يُهَاجِرُوا۟ ۚ وَإِنِ ٱسْتَنصَرُوكُمْ فِى ٱلدِّينِ فَعَلَيْكُمُ ٱلنَّصْرُ إِلَّا عَلَىٰ قَوْمٍۭ بَيْنَكُمْ وَبَيْنَهُم مِّيثَـٰقٌۭ ۗ وَٱللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌۭ
इन्नल्लज़ी-न आमनू व हाजरू व जाहदू बिअम्वालिहिम् व अन्फुसिहिम् फ़ी सबीलिल्लाहि वल्लज़ी-न आवव्-व न-सरू उलाइ-क बअ्ज़ुहुम् औलिया-उ बअ्ज़िन्, वल्लज़ी-न आमनू व लम् युहाजिरू मा लकुम् मिंव्वला यतिहिम् मिन् शैइन् हत्ता युहाजिरू, व इनिस्तन्सरूकुम फ़िद्दीनी फ़-अलैकुमुन्नस्रू इल्ला अला कौमिम् बैनकुम् व बैनहुम् मीसाक़ुन्, वल्लाहु बिमा तअ्मलू-न बसीर
जिन लोगों ने ईमान क़़ुबूल किया और हिजरत की और अपने अपने जान माल से अल्लाह की राह में जिहाद किया और जिन लोगों ने (हिजरत करने वालों को जगह दी और हर (तरह) उनकी ख़बर गीरी (मदद) की यही लोग एक दूसरे के (बाहम) सरपरस्त दोस्त हैं और जिन लेागों ने ईमान क़ुबूल किया और हिजरत नहीं की तो तुम लोगों को उनकी सरपरस्ती से कुछ सरोकार नहीं-यहाँ तक कि वह हिजरत एख़्तियार करें और (हा) मगर दीनी अम्र में तुम से मदद के ख़्वाहा हो तो तुम पर (उनकी मदद करना लाजि़म व वाजिब है मगर उन लोगों के मुक़ाबले में (नहीं) जिनमें और तुममें बाहम (सुलह का) एहदो पैमान है और जो कुछ तुम करते हो अल्लाह (सबको) देख रहा है।
وَٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ بَعْضُهُمْ أَوْلِيَآءُ بَعْضٍ ۚ إِلَّا تَفْعَلُوهُ تَكُن فِتْنَةٌۭ فِى ٱلْأَرْضِ وَفَسَادٌۭ كَبِيرٌۭ
वल्लज़ी-न क-फरू बअ्ज़ुहुम् औलिया-उ बअ्ज़िन्, इल्ला तफ्अ़लूहु तकुन् फ़ित् नतुन् फ़िलअर्ज़ि व फ़सादुन् कबीर
और जो लोग काफि़र हैं वह भी (बाहम) एक दूसरे के सरपरस्त हैं अगर तुम (इस तरह) वायदा न करोगे तो रूए ज़मीन पर फि़तना (फ़साद) बरपा हो जाएगा और बड़ा फ़साद होगा।
وَٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَهَاجَرُوا۟ وَجَـٰهَدُوا۟ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ وَٱلَّذِينَ ءَاوَوا۟ وَّنَصَرُوٓا۟ أُو۟لَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلْمُؤْمِنُونَ حَقًّۭا ۚ لَّهُم مَّغْفِرَةٌۭ وَرِزْقٌۭ كَرِيمٌۭ
वल्लज़ी-न आमनू व हाजरू व जाह़्दू फ़ी सबीलिल्लाहि वल्लज़ी-न आवव्-व न-सरू उलाइ-क हुमुल्-मुअ्मिनू-न हक़्क़न, लहुम् मग़्फि रतुंव् व रिज़्कुन् करीम
और जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और हिजरत की और अल्लाह की राह में लड़े भिड़े और जिन लोगों ने (ऐसे नाज़ुक वक़्त में मुहाजिरीन को जगह ही और उनकी हर तरह ख़बरगीरी (मदद) की यही लोग सच्चे ईमानदार हैं उन्हीं के वास्ते मग़फिरत और इज़्ज़त व आबरु वाली रोज़ी है।
وَٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ مِنۢ بَعْدُ وَهَاجَرُوا۟ وَجَـٰهَدُوا۟ مَعَكُمْ فَأُو۟لَـٰٓئِكَ مِنكُمْ ۚ وَأُو۟لُوا۟ ٱلْأَرْحَامِ بَعْضُهُمْ أَوْلَىٰ بِبَعْضٍۢ فِى كِتَـٰبِ ٱللَّهِ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ بِكُلِّ شَىْءٍ عَلِيمٌۢ
वल्लज़ी-न आमनू मिम्-बअदु व हाजरू व जाहदू म-अकुम् फ़-उलाई-क मिन्कुम्, व उलुल्-अरहामि बअ्ज़ुहुम, औला बिबअ्ज़िन् फी किताबिल्लाहि, इन्नल्ला-ह बिकुल्लि शैइन् अलीम
और जिन लोगों ने (सुलह हुदैबिया के) बाद ईमान क़ुबूल किया और हिजरत की और तुम्हारे साथ मिलकर जिहाद किया वह लोग भी तुम्हीं में से हैं और साहबाने क़राबत अल्लाह की किताब में बाहम एक दूसरे के (बनिस्बत औरों के) ज़्यादा हक़दार हैं बेशक अल्लाह हर चीज़ से ख़ूब वाकि़फ हैं।