Surah Al Maidah in Hindi [5:1-5:120]

यह सूरह मदीना में उतरी, इसमें 120 आयतें हैं।

  • इस सूरह में शरीअत (धर्म विधान) के पूरा होने की घोषणा के साथ उसके आदेशों, नियमों का पालन करने और धार्मिक नियमों को लागू करने पर जोर दिया गया है। क्योंकि यह धार्मिक विधान के पूरा होने का समय था, इसलिए व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन से जुड़े धार्मिक आदेशों के साथ मुसलमानों को अल्लाह की प्रतिज्ञा पर अटल रहने पर बल दिया गया है। इस संदर्भ में मुसलमानों को चेतावनी दी गई है कि वे यहूदियों और ईसाइयों की नीति न अपनाएं जिन्होंने वचन तोड़ा, धर्म विधान को नष्ट कर दिया और उससे बाहर निकल गए तथा धर्म में नई-नई बातें मिला दीं। क्योंकि कुरान की शैली मार्गदर्शन और प्रशिक्षण की है, इसलिए इन सभी बातों को मिलाकर वर्णित किया गया है ताकि लोगों में धार्मिक नियमों का पालन करने की भावना पैदा हो। इसमें यहूदियों और ईसाइयों को आखिरी हद तक आलोचित किया गया है और मुसलमानों का रास्ता बताया गया है।
  • इसमें प्रतिबंधों का पालन करने, अल्लाह से किए वादे को निभाने और न्याय की नीति अपनाने पर जोर दिया गया है।
  • इसमें धर्म के वे आदेश बताए गए हैं जो वैध और अवैध से जुड़े हैं।
  • इसमें प्रलय के दिन नबी (सल्लल्लाहु अलैही व सल्लम) के गवाही देने की बात कही गई है और ईसा (अलैहिस्सलाम) का उदाहरण दिया गया है।
  • इसमें यहूदियों, ईसाइयों आदि को अरबी नबी पर ईमान लाने का न्योता दिया गया है।

सूरह अल माइदा हिंदी में पढ़े

بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ

बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।

5:1

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ أَوْفُوا۟ بِٱلْعُقُودِ ۚ أُحِلَّتْ لَكُم بَهِيمَةُ ٱلْأَنْعَـٰمِ إِلَّا مَا يُتْلَىٰ عَلَيْكُمْ غَيْرَ مُحِلِّى ٱلصَّيْدِ وَأَنتُمْ حُرُمٌ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ يَحْكُمُ مَا يُرِيدُ

या अय्युहल्लज़ी-न आमनू औफू बिल्-अुक़ूदि, उहिल्लत् लकुम् बहीमतुल-अन् आमि इल्ला मा युत्ला अलैकुम् ग़ै-र मुहिल्लिस्-सैदि व अन्तुम् हुरूमुन्, इन्नल्लाह यह़्कुमु मा युरीद
हे वो लोगो जो ईमान लाये हो! प्रतिबंधों का पूर्ण रूप[1] से पालन करो। तुम्हारे लिए सब पशु ह़लाल (वैध) कर दिये गये, परन्तु, जिनका आदेश तुम्हें सुनाया जायेगा, लेकिन एह़राम[2] की स्थिति में शिकार न करो। बेशक अल्लाह जो आदेश चाहता है, देता है।

5:2

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ لَا تُحِلُّوا۟ شَعَـٰٓئِرَ ٱللَّهِ وَلَا ٱلشَّهْرَ ٱلْحَرَامَ وَلَا ٱلْهَدْىَ وَلَا ٱلْقَلَـٰٓئِدَ وَلَآ ءَآمِّينَ ٱلْبَيْتَ ٱلْحَرَامَ يَبْتَغُونَ فَضْلًۭا مِّن رَّبِّهِمْ وَرِضْوَٰنًۭا ۚ وَإِذَا حَلَلْتُمْ فَٱصْطَادُوا۟ ۚ وَلَا يَجْرِمَنَّكُمْ شَنَـَٔانُ قَوْمٍ أَن صَدُّوكُمْ عَنِ ٱلْمَسْجِدِ ٱلْحَرَامِ أَن تَعْتَدُوا۟ ۘ وَتَعَاوَنُوا۟ عَلَى ٱلْبِرِّ وَٱلتَّقْوَىٰ ۖ وَلَا تَعَاوَنُوا۟ عَلَى ٱلْإِثْمِ وَٱلْعُدْوَٰنِ ۚ وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ ۖ إِنَّ ٱللَّهَ شَدِيدُ ٱلْعِقَابِ

या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तुहिल्लू शआ़-इरल्लाहि व लश्शह़रल्-हरा-म व लल्-हद्-य व लल्क़लाइ-द व ला आम्मीनल् बैतल्-हरा-म यब्तग़ू-न फज़्लम् मिर्रब्बिहिम् व रिज़्वानन्, व इज़ा हलल्तुम् फ़स्तादू, व ला यज्रिमन्नकुम श-नआनु क़ौमिन् अन् सद्दूकुम् अनिल् मस्जिदिल्-हरामि अन् तअ्तदू . व तआ़वनू अलल्- बिर्रि वत्तक़्-वा, व ला तआ़वनू अलल्-इस्मि वल-उद्-वानि वत्तक़ुल्ला-ह, इन्नल्ला-ह शदीदुल्-अिक़ाब
हे ईमान वालो! अल्लाह की निशानियों[1] (चिन्हों) का अनादर न करो, न सम्मानित मासों का[2], न (ह़ज की) क़ुर्बानी का, न उन (ह़ज की) क़ुर्बानियों का, जिनके गले में पट्टे पड़े हों और न उनका, जो अपने पालनहार की अनुग्रह और उसकी प्रसन्नता की खोज में सम्मानित घर (काबा) की ओर जा रहे हों। जब एह़राम खोल दो, तो शिकार कर सकते हो। तुम्हें किसी गिरोह की शत्रुता इस बात पर न उभार दे कि अत्याचार करने लगो, क्योंकि उन्होंने मस्जिदे-ह़राम से तुम्हें रोक दिया था, सदाचार तथा संयम में एक-दूसरे की सहायता करो तथा पाप और अत्याचार में एक-दूसरे की सहायता न करो और अल्लाह से डरते रहो। निःसंदेह अल्लाह कड़ी यातना देने वाला है।

5:3

حُرِّمَتْ عَلَيْكُمُ ٱلْمَيْتَةُ وَٱلدَّمُ وَلَحْمُ ٱلْخِنزِيرِ وَمَآ أُهِلَّ لِغَيْرِ ٱللَّهِ بِهِۦ وَٱلْمُنْخَنِقَةُ وَٱلْمَوْقُوذَةُ وَٱلْمُتَرَدِّيَةُ وَٱلنَّطِيحَةُ وَمَآ أَكَلَ ٱلسَّبُعُ إِلَّا مَا ذَكَّيْتُمْ وَمَا ذُبِحَ عَلَى ٱلنُّصُبِ وَأَن تَسْتَقْسِمُوا۟ بِٱلْأَزْلَـٰمِ ۚ ذَٰلِكُمْ فِسْقٌ ۗ ٱلْيَوْمَ يَئِسَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ مِن دِينِكُمْ فَلَا تَخْشَوْهُمْ وَٱخْشَوْنِ ۚ ٱلْيَوْمَ أَكْمَلْتُ لَكُمْ دِينَكُمْ وَأَتْمَمْتُ عَلَيْكُمْ نِعْمَتِى وَرَضِيتُ لَكُمُ ٱلْإِسْلَـٰمَ دِينًۭا ۚ فَمَنِ ٱضْطُرَّ فِى مَخْمَصَةٍ غَيْرَ مُتَجَانِفٍۢ لِّإِثْمٍۢ ۙ فَإِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٌۭ رَّحِيمٌۭ

हुर्रिमत् अलैकुमुल्मैततु वद्दमु व लह़्मुल-ख़िन्ज़ीरि व मा उहिल्-ल लिग़ैरिल्लाहि बिही वल्मुन्ख़नि-क़तु वल्मौ क़ूज़तु वल्मु-तरद्दियतु वन्नती-हतु व मा अ-कलस्सबुअु इल्ला मा ज़क्कैतुम्, व मा ज़ुबि-ह अलन्नुसुबि व अन् तस्तक़्सिमू बिल्अज़्लामि, ज़ालिकुम् फिस्क़ुन्, अल्यौ-म य-इसल्लज़ी-न क-फरू मिन् दीनिकुम् फ़ला तख़्शौहुम् वख़्शौनि, अल्यौ-म अक्मल्तु लकुम् दीनकुम् व अत्मम्तु अलैकुम् निअ्मती व रज़ीतु लकुमुल्-इस्ला-म दीनन्, फ़-मनिज़्तुर-र फी मख़्म- सतिन् ग़ै-र मु-तजानिफि ल्-लिइस्मिन्, फ़-इन्नल्ला-ह गफूरुर्रहीम
तुमपर मुर्दार[1] ह़राम (अवैध) कर दिया गया है तथा (बहता हुआ) रक्त, सूअर का मांस, जिसपर अल्लाह से अन्य का नाम पुकारा गया हो, जो श्वास रोध और आघात के कारण, गिरकर और दूसरे के सींग मारने से मरा हो, जिसे हिंसक पशु ने खा लिया हो, -परन्तु इनमें[2] से जिसे तुम वध (ज़िब्ह) कर लो- जिसे थान पर वध किया गया हो और ये कि पाँसे द्वारा अपना भाग निकालो। ये सब आदेश-उल्लंघन के कार्य हैं। आज काफ़िर तुम्हारे धर्म से निराश[3] हो गये हैं। अतः, उनसे न डरो, मुझी से डरो। आज[4] मैंने तुम्हारा धर्म तुम्हारे लिए परिपूर्ण कर दिय है तथा तुमपर अपना पुरस्कार पूरा कर दिया और तुम्हारे लिए इस्लाम को धर्म स्वरूप स्वीकार कर लिया है। फिर जो भूक से आतुर हो जाये, जबकि उसका झुकाव पाप के लिए न हो,(प्राण रक्षा के लिए खा ले) तो निश्चय अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान् है।

5:4

يَسْـَٔلُونَكَ مَاذَآ أُحِلَّ لَهُمْ ۖ قُلْ أُحِلَّ لَكُمُ ٱلطَّيِّبَـٰتُ ۙ وَمَا عَلَّمْتُم مِّنَ ٱلْجَوَارِحِ مُكَلِّبِينَ تُعَلِّمُونَهُنَّ مِمَّا عَلَّمَكُمُ ٱللَّهُ ۖ فَكُلُوا۟ مِمَّآ أَمْسَكْنَ عَلَيْكُمْ وَٱذْكُرُوا۟ ٱسْمَ ٱللَّهِ عَلَيْهِ ۖ وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ سَرِيعُ ٱلْحِسَابِ

यस्अलून-क माज़ा उहिल्-ल लहुम्, क़ुल उहिल्-ल लकुमुत्तय्यिबातु, व मा अल्लम्तुम् मिनल-जवारिहि मुकल्लिबी-न तुअल्लिमूनहुन्-न मिम्मा अल्ल-मकुमुल्लाहु, फ़कुलू मिम्मा अम्-सक्-न अलैकुम् वज़्कुरूस्मल्लाहि अलैहि, वत्तक़ुल्ला-ह, इन्नल्ला-ह सरीअुल हिसाब
वे आपसे प्रश्न करते हैं कि उनके लिए क्या ह़लाल (वैध) किया गया? आप कह दें कि सभी स्वच्छ पवित्र चीजें तुम्हारे लिए ह़लाल कर दी गयी हैं। और उन शिकारी जानवरों का शिकार जिन्हें तुमने उस ज्ञान द्वारा जो अल्लाह ने तुम्हें दिया है, उसमें से कुछ सिखाकर सधाया हो। तो जो (शिकार) वह तुमपर रोक दें उसमें से खाओ और उसपर अल्लाह का नाम[1] लो तथा अल्लाह से डरते रहो। निःसंदेह, अल्लाह शीघ्र ह़िसाब लेने वाला है।

5:5

ٱلْيَوْمَ أُحِلَّ لَكُمُ ٱلطَّيِّبَـٰتُ ۖ وَطَعَامُ ٱلَّذِينَ أُوتُوا۟ ٱلْكِتَـٰبَ حِلٌّۭ لَّكُمْ وَطَعَامُكُمْ حِلٌّۭ لَّهُمْ ۖ وَٱلْمُحْصَنَـٰتُ مِنَ ٱلْمُؤْمِنَـٰتِ وَٱلْمُحْصَنَـٰتُ مِنَ ٱلَّذِينَ أُوتُوا۟ ٱلْكِتَـٰبَ مِن قَبْلِكُمْ إِذَآ ءَاتَيْتُمُوهُنَّ أُجُورَهُنَّ مُحْصِنِينَ غَيْرَ مُسَـٰفِحِينَ وَلَا مُتَّخِذِىٓ أَخْدَانٍۢ ۗ وَمَن يَكْفُرْ بِٱلْإِيمَـٰنِ فَقَدْ حَبِطَ عَمَلُهُۥ وَهُوَ فِى ٱلْـَٔاخِرَةِ مِنَ ٱلْخَـٰسِرِينَ

अल्यौ-म उहिल्-ल लकुमुत्तय्यिबातु, व तआमुल्लज़ी-न ऊतुल्-किता-ब हिल्लुल्लकुम्, व तआ़मुकुम हिल्लुल्लहुम् वल्मुह़्सनातु मिनल-मुअ्मिनाति वल्मुह़्सनातु मिनल्लज़ी-न ऊतुल-किता-ब मिन् क़ब्लिकुम् इज़ा आतैतुमूहुन्-न उजू रहुन्-न मुह़्सिनी – न ग़ै-र मुसाफ़िही-न व ला मुत्तख़िज़ी अख़्दानिन्, व मंय्यक्फुर बिल्ईमानि फ-क़द हबि-त अ-मलुहू, व हु-व फ़िल-आख़ि-रति मिनल-ख़ासिरीन
आज सब स्वच्छ खाद्य तुम्हारे लिए ह़लाल (वैध) कर दिये गये हैं और ईमान वाली सतवंती स्त्रियाँ तथा उनमें से सतवंती स्त्रियाँ, जो तुमसे पहले पुस्तक दिये गये हैं, जबकि उन्हें उनका महर (विवाह उपहार) चुका दो, विवाह में लाने के लिए, व्यभिचार के लिए नहीं और न प्रेमिका बनाने के लिए। जो ईमान को नकार देगा, उसका सत्कर्म व्यर्थ हो जायेगा तथा परलोक में वह विनाशों में होगा।

5:6

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ إِذَا قُمْتُمْ إِلَى ٱلصَّلَوٰةِ فَٱغْسِلُوا۟ وُجُوهَكُمْ وَأَيْدِيَكُمْ إِلَى ٱلْمَرَافِقِ وَٱمْسَحُوا۟ بِرُءُوسِكُمْ وَأَرْجُلَكُمْ إِلَى ٱلْكَعْبَيْنِ ۚ وَإِن كُنتُمْ جُنُبًۭا فَٱطَّهَّرُوا۟ ۚ وَإِن كُنتُم مَّرْضَىٰٓ أَوْ عَلَىٰ سَفَرٍ أَوْ جَآءَ أَحَدٌۭ مِّنكُم مِّنَ ٱلْغَآئِطِ أَوْ لَـٰمَسْتُمُ ٱلنِّسَآءَ فَلَمْ تَجِدُوا۟ مَآءًۭ فَتَيَمَّمُوا۟ صَعِيدًۭا طَيِّبًۭا فَٱمْسَحُوا۟ بِوُجُوهِكُمْ وَأَيْدِيكُم مِّنْهُ ۚ مَا يُرِيدُ ٱللَّهُ لِيَجْعَلَ عَلَيْكُم مِّنْ حَرَجٍۢ وَلَـٰكِن يُرِيدُ لِيُطَهِّرَكُمْ وَلِيُتِمَّ نِعْمَتَهُۥ عَلَيْكُمْ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ

या अय्युहलज़ी-न आमनू इज़ा क़ुम्तुम् इलस्सलाति फ़ग़्सिलू वुजूहकुम् व ऐदि-यकुम् इलल्-मराफ़िक़ि वम्सहू बिरूऊसिकुम् व अर्जु-लकुम् इलल्कअ्बैनि, व इन् कुन्तुम् जुनुबन् फत्तह़्हरू, व इन् कुन्तुम् मरज़ा औ अला स-फ़रिन् औ जा-अ अ-हदुम् मिन्कुम् मिनल्ग़ा-इति औ लामस्तुमुन्निसा-अ फ़-लम् तजिदू माअन् फ़-तयम्म-मू सईदन् तय्यिबन् फम्सहू बिवुजूहिकुम् व ऐदीकुम् मिन्हु, मा युरीदुल्लाहु लि-यज्अ़-ल अलैकुम् मिन् ह रजिंव्-व लाकिंय्युरीदु लियुतह़्हि-रकुम् व लियुतिम्-म निअ्म-तहू अलैकुम् लअ़ल्लकुम तश्कुरून
हे ईमान वालो! जब नमाज़ के लिए खड़े हो, तो (पहले) अपने मुँह तथा हाथों को कुहनियों तक धो लो और अपने सिरों का मसह़[1] कर लो तथा अपने पावों को टखनों तक (धो लो) और यदि जनाबत[2] की स्थिति में हो, तो (स्नान करके) पवित्र हो जाओ तथा यदि रोगी अथवा यात्रा में हो अथवा तुममें से कोई शोच से आये अथवा तुमने स्त्रियों को स्पर्श किया हो और तुम जल न पाओ, तो शुध्द धूल से तयम्मुम कर लो और उससे अपने मुखों तथा हाथों का मसह़[3] कर लो। अल्लाह तुम्हारे लिए कोई संकीर्णता (तंगी) नहीं चाहता। परन्तु तुम्हें पवित्र करना चाहता है और ताकि तुमपर अपना पुरस्कार पूरा कर दे और ताकि तुम कृतज्ञ बनो।

5:7

وَٱذْكُرُوا۟ نِعْمَةَ ٱللَّهِ عَلَيْكُمْ وَمِيثَـٰقَهُ ٱلَّذِى وَاثَقَكُم بِهِۦٓ إِذْ قُلْتُمْ سَمِعْنَا وَأَطَعْنَا ۖ وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمٌۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ

वज़्कुरू निअ्-मतल्लाहि अलैकुम व मीसाक़हुल्लज़ी वास-क़कुम् बिही, इज़ क़ुल्तुम् समिअ्ना व अतअ्ना, वत्तक़ुल्ला-ह, इन्नल्ला-ह अलीमुम् बिज़ातिस्सुदूर
तथा अपने ऊपर अल्लाह के पुरस्कार और उस दृढ़ वचन को याद करो, जो तुमसे लिया है। जब तुमने कहाः हमने सुन लिया और आज्ञाकारी हो गये तथा (सुनो!) अल्लाह से डरते रहो। निःसंदेह अल्लाह दिलों के भेदों को भली-भाँति जानने वाला है।

5:8

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ كُونُوا۟ قَوَّٰمِينَ لِلَّهِ شُهَدَآءَ بِٱلْقِسْطِ ۖ وَلَا يَجْرِمَنَّكُمْ شَنَـَٔانُ قَوْمٍ عَلَىٰٓ أَلَّا تَعْدِلُوا۟ ۚ ٱعْدِلُوا۟ هُوَ أَقْرَبُ لِلتَّقْوَىٰ ۖ وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ خَبِيرٌۢ بِمَا تَعْمَلُونَ

या अय्युहल्लज़ी-न आमनू कूनू क़व्वामी-न लिल्लाहि शु-हदा-अ बिल्क़िस्ति, व ला यज्रिमन्नकुम् श-नआनु क़ौमिन् अला अल्ला तअ्दिलू, इअ्दिलू, हु-व अक़्रबु लित्तक़्वा, वत्तक़ुल्ला-ह, इन्नल्ला-ह ख़बीरूम्-बिमा तअ्मलून
हे ईमान वालो! अल्लाह के लिए खड़े रहने वाले, न्याय के साथ साक्ष्य देने वाले रहो तथा किसी गिरोह की शत्रुता तुम्हें इसपर न उभार दे कि न्याय न करो। वह (अर्थातः सबके साथ न्याय) अल्लाह से डरने के अधिक समीप[1] है। निःसंदेह तुम जो कुछ करते हो, अल्लाह उससे भली-भाँति सूचित है।

5:9

وَعَدَ ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ ۙ لَهُم مَّغْفِرَةٌۭ وَأَجْرٌ عَظِيمٌۭ

व-अदल्लाहुल्लज़ी-न आमनू व अमिलुस्सालिहाति, लहुम् मग़्फिरतुंव् व अज्रून अज़ीम
जो लोग ईमान लाये तथा सत्कर्म किये, तो उनसे अल्लाह का वचन है कि उनके लिए क्षमा तथा बड़ा प्रतिफल है।

5:10

وَٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ وَكَذَّبُوا۟ بِـَٔايَـٰتِنَآ أُو۟لَـٰٓئِكَ أَصْحَـٰبُ ٱلْجَحِيمِ

वल्लज़ी-न क-फरू व कज़्ज़बू बिआयातिना उलाइ-क अस्हाबुल-जहीम
तथा जो काफ़िर रहे और हमारी आयतों को मिथ्या कहा, तो वही लोग नारकी हैं।

5:11

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ ٱذْكُرُوا۟ نِعْمَتَ ٱللَّهِ عَلَيْكُمْ إِذْ هَمَّ قَوْمٌ أَن يَبْسُطُوٓا۟ إِلَيْكُمْ أَيْدِيَهُمْ فَكَفَّ أَيْدِيَهُمْ عَنكُمْ ۖ وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ ۚ وَعَلَى ٱللَّهِ فَلْيَتَوَكَّلِ ٱلْمُؤْمِنُونَ

या अय्युहल्लज़ी-न आमनुज़्कुरू निअ्- मतल्लाहि अलैकुम इज़् हम्-म क़ौमुन् अंय्यब्सुतू इलैकुम् ऐदि – यहुम् फ़-कफ्-फ़ ऐदि-यहुम् अ़न्कुम्, वत्तक़ुल्ला-ह, व अलल्लाहि फल्य-तवक्कलिल् मुअ्मिनून
हे ईमान वालो! अल्लाह के उस उपकार को याद करो, जब एक गिरोह ने तुम्हारी ओर हाथ बढ़ाना[1] चाहा, तो अल्लाह ने उनके हाथों को तुमसे रोक दिया तथा अल्लाह से डरते रहो और ईमान वालों को अल्लाह ही पर निरभर करना चाहिए।

5:12

وَلَقَدْ اَخَذَ اللّٰهُ مِيْثَاقَ بَنِيْٓ اِسْرَاۤءِيْلَۚ وَبَعَثْنَا مِنْهُمُ اثْنَيْ عَشَرَ نَقِيْبًاۗ وَقَالَ اللّٰهُ اِنِّيْ مَعَكُمْ ۗ لَىِٕنْ اَقَمْتُمُ الصَّلٰوةَ وَاٰتَيْتُمُ الزَّكٰوةَ وَاٰمَنْتُمْ بِرُسُلِيْ وَعَزَّرْتُمُوْهُمْ وَاَقْرَضْتُمُ اللّٰهَ قَرْضًا حَسَنًا لَّاُكَفِّرَنَّ عَنْكُمْ سَيِّاٰتِكُمْ وَلَاُدْخِلَنَّكُمْ جَنّٰتٍ تَجْرِيْ مِنْ تَحْتِهَا الْاَنْهٰرُۚ فَمَنْ كَفَرَ بَعْدَ ذٰلِكَ مِنْكُمْ فَقَدْ ضَلَّ سَوَاۤءَ السَّبِيْلِ

व ल-क़द् अ-ख़ज़ल्लाहु मीसा क़ बनी इस्राई-ल, व बअ़स्-ना मिन्हुमुस्-नै अ-श-र नक़ीबन्, व क़ालल्लाहु इन्नी म-अ़कुम्, ल-इन् अक़म्तुमुस्सला-त व आतैतुमुज़्ज़का-त व आमन्तुम् बिरूसुली व अज़्ज़रतुमूहुम् व अक़्रज़्तुमुल्ला-ह क़र्जन् ह-सनल् ल-उकफ्फिरन्-न अन्कुम् सय्यिआतिकुम् व ल- उद्ख़िलन्नकुम् जन्नातिन् तज्री मिन् तह़्तिहल्-अन्हारू, फ़-मन् क-फ़-र बअ्-द ज़ालि-क मिन्कुम् फ़-क़द् ज़ल्-ल सवाअस्सबील
तथा अल्लाह ने बनी इस्राईल से (भी) दृढ़ वचन लिया था और उनमें बारह प्रमुख नियुक्त कर दिये थे तथा अल्लाह ने कहा था कि मैं तुम्हारे साथ हूँ, यदि तुम नमाज की स्थापना करते रहे, ज़कात देते रहे, मेरे रसूलों पर ईमान (विश्वास) रखे रहे, उन्हें समर्थन देते रहे तथा अल्लाह को उत्तम ऋण देते रहे। (अगर ऐसा हुआ) तो मैं अवश्य तुम्हें तुम्हारे पाप क्षमा कर दूँगा और तुम्हें ऐसे स्वर्गों में प्रवेश दूँगा, जिनमें नहरें प्रवाहित होंगी और तुममें से जो इसके पश्चात् भी कुफ़्र (अविश्वास) करेगा, (दरअसल) वह सुपथ[1] से विचलित हो गया।

5:13

فَبِمَا نَقْضِهِم مِّيثَـٰقَهُمْ لَعَنَّـٰهُمْ وَجَعَلْنَا قُلُوبَهُمْ قَـٰسِيَةًۭ ۖ يُحَرِّفُونَ ٱلْكَلِمَ عَن مَّوَاضِعِهِۦ ۙ وَنَسُوا۟ حَظًّۭا مِّمَّا ذُكِّرُوا۟ بِهِۦ ۚ وَلَا تَزَالُ تَطَّلِعُ عَلَىٰ خَآئِنَةٍۢ مِّنْهُمْ إِلَّا قَلِيلًۭا مِّنْهُمْ ۖ فَٱعْفُ عَنْهُمْ وَٱصْفَحْ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ يُحِبُّ ٱلْمُحْسِنِينَ

फबिमा नक़्ज़िहिम मीसाक़हुम् लअन्नाहुम् व जअ़ल्ना क़ुलूबहुम् क़ासि-यतन्. युहर्रिफूनल्कलि-म अम्-मवाज़िअिही, व नसू ह़ज्ज़म् मिम्मा ज़ुक्किरू बिही, व ला तज़ालु तत्तलिअु अला ख़ाइ-नतिम् मिन्हुम इल्ला क़लीलम् मिन्हुम् फ़अ्फु अन्हुम् वस्फ़ह्, इन्नल्ला-ह युहिब्बुल मुह़्सिनीन
तो उनके अपना वचन भंग करने के कारण, हमने उन्हें धिक्कार दिया और उनके दिलों को कड़ा कर दिया। वे अल्लाह की बातों को, उनके वास्तविक स्थानों से फेर देते[1] हैं तथा जिस बात का उन्हें निर्देश दिया गया था, उसे भुला दिया और (अब) आप बराबर उनके किसी न किसी विश्वासघात से सूचित होते रहेंगे, परन्तु उनमें बहुत थोड़े के सिवा, जो ऐसा नहीं करते। अतः आप उन्हें क्षमा कर दें और उन्हें जाने दें। निःसंदेह अल्लाह उपकारियों से प्रेम करता है।

5:14

وَمِنَ ٱلَّذِينَ قَالُوٓا۟ إِنَّا نَصَـٰرَىٰٓ أَخَذْنَا مِيثَـٰقَهُمْ فَنَسُوا۟ حَظًّۭا مِّمَّا ذُكِّرُوا۟ بِهِۦ فَأَغْرَيْنَا بَيْنَهُمُ ٱلْعَدَاوَةَ وَٱلْبَغْضَآءَ إِلَىٰ يَوْمِ ٱلْقِيَـٰمَةِ ۚ وَسَوْفَ يُنَبِّئُهُمُ ٱللَّهُ بِمَا كَانُوا۟ يَصْنَعُونَ

व मिनल्लज़ी-न क़ालू इन्ना नसारा अख़ज़्ना मीसाक़हुम् फ़-नसू हज़्ज़म् मिम्मा ज़ुक्किरू बिही, फ़-अग़्रैना बैनहुमुल अदा-व-त वल्बग़्ज़ा-अ इला यौमिल्-क़ियामति, व सौ-फ युनब्बिउहुमुल्लाहु बिमा कानू यस्-नअून
तथा जिन्होंने कहा कि हम नसारा (ईसाई) हैं, हमने उनसे (भी) दृढ़ वचन लिया था, तो उन्हें जिस बात का निर्देश दिया गया था, उसे भुला बैठे, तो प्रलय के दिन तक के लिए हमने उनके बीच शत्रुता तथा पारस्परिक (आपसी) विद्वेष भड़का दिया और शीघ्र ही अल्लाह जो कुछ वे करते रहे हैं, उन्हें[1] बता देगा।

5:15

يَـٰٓأَهْلَ ٱلْكِتَـٰبِ قَدْ جَآءَكُمْ رَسُولُنَا يُبَيِّنُ لَكُمْ كَثِيرًۭا مِّمَّا كُنتُمْ تُخْفُونَ مِنَ ٱلْكِتَـٰبِ وَيَعْفُوا۟ عَن كَثِيرٍۢ ۚ قَدْ جَآءَكُم مِّنَ ٱللَّهِ نُورٌۭ وَكِتَـٰبٌۭ مُّبِينٌۭ

या अह़्लल्-किताबि क़द् जाअकुम् रसूलुना युबय्यिनु लकुम् कसीरम्-मिम्मा कुन्तुम् तुख़्फू-न मिनल्-किताबि व यअ्फू अन् कसीरिन्, क़द् जाअकुम् मिनल्लाहि नूरूंव्-व किताबुम् मुबीन
हे अह्ले किताब! तुम्हारे पास हमारे रसूल आ गये हैं[1], जो तुम्हारे लिए उन बहुत सी बातों को उजागर कर रहे हैं, जिन्हें तुम छुपा रहे थे और बहुत सी बातों को छोड़ भी रहे हैं। अब तुम्हारे पास अल्लाह की ओर से प्रकाश तथा खुली पुस्तक (कुर्आन) आ गई है।

5:16

يَهْدِى بِهِ ٱللَّهُ مَنِ ٱتَّبَعَ رِضْوَٰنَهُۥ سُبُلَ ٱلسَّلَـٰمِ وَيُخْرِجُهُم مِّنَ ٱلظُّلُمَـٰتِ إِلَى ٱلنُّورِ بِإِذْنِهِۦ وَيَهْدِيهِمْ إِلَىٰ صِرَٰطٍۢ مُّسْتَقِيمٍۢ

यह़्दी बिहिल्लाहु मनित्त-ब-अ रिज़्वानहू सुबुलस्सलामि व युख़्रिजुहुम् मिनज़्ज़ुलुमाति इलन्नूरि बि -इज़्निही व यह़्दीहिम् इला सिरातिम् मुस्तक़ीम
जिसके द्वारा अल्लाह उन्हें शान्ति का मार्ग दिखा रहा है, जो उसकी प्रसन्नता पर चलते हों, उन्हें अपनी अनुमति से अंधेरों से निकालकर प्रकाश की ओर ले जाता है और उन्हें सुपथ दिखाता है।

5:17

لَّقَدْ كَفَرَ ٱلَّذِينَ قَالُوٓا۟ إِنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلْمَسِيحُ ٱبْنُ مَرْيَمَ ۚ قُلْ فَمَن يَمْلِكُ مِنَ ٱللَّهِ شَيْـًٔا إِنْ أَرَادَ أَن يُهْلِكَ ٱلْمَسِيحَ ٱبْنَ مَرْيَمَ وَأُمَّهُۥ وَمَن فِى ٱلْأَرْضِ جَمِيعًۭا ۗ وَلِلَّهِ مُلْكُ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا ۚ يَخْلُقُ مَا يَشَآءُ ۚ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍۢ قَدِيرٌۭ

ल-क़द् क-फरल्लज़ी-न क़ालू इन्नल्ला-ह हुवल्- मसीहुब्नु मर्य-म, क़ुल फ़-मंय्यम्लिकु मिनल्लाहि शैअन् इन् अरा-द अंय्युह़्लिकल्-मसीहब्-न मर्य-म व उम्म-हू व मन् फिलअर्ज़ि जमीअ़न्, व लिल्लाहि मुल्कुस्समावाति वल्अर्ज़ि व मा बैनहुमा, यख़्लुक़ु मा यशा-उ, वल्लाहु अला कुल्लि शैइन् क़दीर
निश्चय वे काफ़िर[1] हो गये, जिन्होंने कहा कि मर्यम का पुत्र मसीह़ ही अल्लाह है। (हे नबी!) उनसे कह दो कि यदि अल्ललाह मर्यम के पुत्र और उसकी माता तथा जो भी धरती में है, सबका विनाश कर देना चाहे, तो किसमें शक्ति है कि वह उसे रोक दे? तथा आकाश और धरती और जो भी इनके बीच है, सब अल्लाह ही का राज्य है, वह जो चाहे, उतपन्न करता है तथा वह जो चाहे, कर सकता है।

5:18

وَقَالَتِ ٱلْيَهُودُ وَٱلنَّصَـٰرَىٰ نَحْنُ أَبْنَـٰٓؤُا۟ ٱللَّهِ وَأَحِبَّـٰٓؤُهُۥ ۚ قُلْ فَلِمَ يُعَذِّبُكُم بِذُنُوبِكُم ۖ بَلْ أَنتُم بَشَرٌۭ مِّمَّنْ خَلَقَ ۚ يَغْفِرُ لِمَن يَشَآءُ وَيُعَذِّبُ مَن يَشَآءُ ۚ وَلِلَّهِ مُلْكُ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا ۖ وَإِلَيْهِ ٱلْمَصِيرُ

व क़ालतिल्-यहूदु वन्नसारा नह़्नु अब्नाउल्लाहि व अहिब्बाउहू, क़ुल फ़लि-म युअ़ज़्ज़िबुकुम् बिज़ु नूबिकुम्, बल् अन्तुम ब-शरूम् मिम्-मन् ख़-ल-क, यग़्फिरू लिमंय्यशा-उ व युअ़ज़्ज़िबु मंय्यशा-उ, व लिल्लाहि मुल्कुस्समावाति वल्अर्ज़ी व मा बैनहुमा, व इलैहिल-मसीर
तथा यहूदी और ईसाईयों ने कहा कि हम अल्लाह के पुत्र तथा प्रियवर हैं। आप पूछें कि फिर वह तुम्हें तुम्हारे पापों का दण्ड क्यों देता है? बल्कि तुमभी वैसे ही मानव पूरुष हो, जैसे दूसरे हैं, जिनकी उत्पत्ति उसने की है। वह जिसे चाहे, क्षमा कर दे और जिसे चाहे, दण्ड दे तथा आकाश और धरती तथा जो उन दोनों के बीच है, अल्लाह ही का राज्य (अधिपत्य)[1] है और उसी की ओर सबको जाना है।

5:19

يَـٰٓأَهْلَ ٱلْكِتَـٰبِ قَدْ جَآءَكُمْ رَسُولُنَا يُبَيِّنُ لَكُمْ عَلَىٰ فَتْرَةٍۢ مِّنَ ٱلرُّسُلِ أَن تَقُولُوا۟ مَا جَآءَنَا مِنۢ بَشِيرٍۢ وَلَا نَذِيرٍۢ ۖ فَقَدْ جَآءَكُم بَشِيرٌۭ وَنَذِيرٌۭ ۗ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍۢ قَدِيرٌۭ

या अह़्लल्-किताबि क़द् जाअकुम् रसूलुना युबय्यिनु लकुम् अला फ़त् रतिम् मिनर्रुसुलि अन् तक़ूलू मा जाअना मिम्-बशीरिंव-व ला नज़ीरिन्, फ़-क़द् जा-अकुम् बशीरूंव् व नज़ीरून्, वल्लाहु अला कुल्लि शैइन् क़दीर
हे अह्ले किताब! तुम्हारे पास रसुलों के आने का क्रम बंद होने के पश्चात्, हमारे रसूल आ गये[1] हैं, वह तुम्हारे लिए (सत्य को) उजागर कर रहे हैं, ताकि तुम ये न कहो कि हमारे पास कोई शुभ सूचना सुनाने वाला तथा सावधान करने वाला (नबी) नहीं आया, तो तुम्हारे पास शुभ सूचना सुनाने तथा सावधान करने वाला आ गया है तथा अल्लाह जो चाहे, कर सकता है।

5:20

وَإِذْ قَالَ مُوسَىٰ لِقَوْمِهِۦ يَـٰقَوْمِ ٱذْكُرُوا۟ نِعْمَةَ ٱللَّهِ عَلَيْكُمْ إِذْ جَعَلَ فِيكُمْ أَنۢبِيَآءَ وَجَعَلَكُم مُّلُوكًۭا وَءَاتَىٰكُم مَّا لَمْ يُؤْتِ أَحَدًۭا مِّنَ ٱلْعَـٰلَمِينَ

व इज़् क़ा-ल मूसा लिक़ौमिही या क़ौमिज़्कुरू निअ् – मतल्लाहि अलैकुम् इज़् ज-अ-ल फ़ीकुम् अम्बिया-अ व ज-अ-लकुम् मुलूकंव्, व आताकुम् मा लम् युअ्ति अ-हदम् मिनल्-आलमीन
तथा याद करो, जब मूसा ने अपनी जाति से कहाः हे मेरी जाति! अपने ऊपर अल्लाह के पुरस्कार को याद करो कि उसने तुममें नबी और शासक बनाये तथा तुम्हें वह कुछ दिया, जो संसार वासियों में किसी को नहीं दिया।

5:21

يَـٰقَوْمِ ٱدْخُلُوا۟ ٱلْأَرْضَ ٱلْمُقَدَّسَةَ ٱلَّتِى كَتَبَ ٱللَّهُ لَكُمْ وَلَا تَرْتَدُّوا۟ عَلَىٰٓ أَدْبَارِكُمْ فَتَنقَلِبُوا۟ خَـٰسِرِينَ

या क़ौमिद्ख़ुलुल् अर्ज़ल मुक़द्द-सतल्लती क-तबल्लाहु लकुम् व ला तर्तद्दू अला अदबारिकुम् फ़-तन्क़लिबू ख़ासिरीन
हे मेरी जाति! उस पवित्र धरती (बैतुल मक़्दिस) में प्रवेश कर जाओ, जिसे अल्लाह ने तुम्हारे लिए लिख दिया है और पीछे न फिरो, अन्यथा असफल हो जाओगे।

5:22

قَالُوا۟ يَـٰمُوسَىٰٓ إِنَّ فِيهَا قَوْمًۭا جَبَّارِينَ وَإِنَّا لَن نَّدْخُلَهَا حَتَّىٰ يَخْرُجُوا۟ مِنْهَا فَإِن يَخْرُجُوا۟ مِنْهَا فَإِنَّا دَٰخِلُونَ

क़ालू या मूसा इन्-न फ़ीहा क़ौमन् जब्बारी-न, व इन्ना लन् नद्ख़ु-लहा हत्ता यख़्रूजू मिन्हा, फ़-इंय्यख़्रूजू मिन्हा फ़-इन्ना दाख़िलून
उन्होंने कहाः हे मूसा! उसमें बड़े बलवान लोग हैं और हम उसमें कदापि प्रवेश नहीं करेंगे, जब तक वे उससे निकल न जायें, यदि वे निकल जाते हैं, तभी हम उसमें प्रवेश कर सकते हैं।

5:23

قَالَ رَجُلَانِ مِنَ ٱلَّذِينَ يَخَافُونَ أَنْعَمَ ٱللَّهُ عَلَيْهِمَا ٱدْخُلُوا۟ عَلَيْهِمُ ٱلْبَابَ فَإِذَا دَخَلْتُمُوهُ فَإِنَّكُمْ غَـٰلِبُونَ ۚ وَعَلَى ٱللَّهِ فَتَوَكَّلُوٓا۟ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ

क़ा-ल रजुलानि मिनल्लज़ी-न यख़ाफू-न अन् अमल्लाहु अलैहिमद्ख़ुलू अलैहिमुल्बा-ब, फ़-इज़ा दख़ल्तुमूहु फ़-इन्नकुम् ग़ालिबू-न, व अलल्लाहि फ़- तवक्कलू इन् कुन्तुम् मुअ्मिनीन
उनमें से दो व्यक्तियों ने, जो (अल्लाह से) डरते थे, जिनपर अल्लाह ने पुरस्कार किया था, कहा कि उनपर द्वार से प्रवेश कर जाओ, जबतुम उसमें प्रवेश कर जाओगे, तो निश्चय तुम प्रभुत्वशाली होगे तथा अल्लाह ही पर भरोसा करो, यदि तुम ईमान वाले हो।

5:24

قَالُوا۟ يَـٰمُوسَىٰٓ إِنَّا لَن نَّدْخُلَهَآ أَبَدًۭا مَّا دَامُوا۟ فِيهَا ۖ فَٱذْهَبْ أَنتَ وَرَبُّكَ فَقَـٰتِلَآ إِنَّا هَـٰهُنَا قَـٰعِدُونَ

क़ालू या मूसा इन्ना लन् नद्ख़ु-लहा अ-बदम् मा दामू फ़ीहा फज़्हब् अन्-त व रब्बु-क फ़क़ातिला इन्ना हाहुना क़ाअिदून
वे बोलेः हे मूसा! हम उसमें कदापि प्रवेश नहीं करेंगे, जब तक वे उसमें (उपस्थित) रहेंगे, अतः तुम और तुम्हारा पालनहार जाओ, फिर तुम दोनों युध्द करो, हम यहीं बैठे रहेंगे।

5:25

قَالَ رَبِّ إِنِّى لَآ أَمْلِكُ إِلَّا نَفْسِى وَأَخِى ۖ فَٱفْرُقْ بَيْنَنَا وَبَيْنَ ٱلْقَوْمِ ٱلْفَـٰسِقِينَ

क़ा-ल रब्बि इन्नी ला अम्लिकु इल्ला नफ्सी व अख़ी फ्फरूक़् बैनना व बैनल् क़ौमिल फ़ासिक़ीन
(ये दशा देखकर) मूसा ने कहः हे मेरे पालनहार! मैं अपने और अपने भाई के सिवा किसी पर कोई अधिकार नहीं रखता। अतः तु हमारे तथा अवज्ञाकारी जाति के बीच निर्णय कर दे।

5:26

قَالَ فَإِنَّهَا مُحَرَّمَةٌ عَلَيْهِمْ ۛ أَرْبَعِينَ سَنَةًۭ ۛ يَتِيهُونَ فِى ٱلْأَرْضِ ۚ فَلَا تَأْسَ عَلَى ٱلْقَوْمِ ٱلْفَـٰسِقِينَ

क़ा-ल फ़-इन्नहा मुहर्र-मतुन् अलैहिम् अरबई-न स-नतन्, यतीहू-न फ़िल्अर्जि, फ़ला तअ्-स अलल् क़ौमिल्-फ़ासिक़ीन
अल्लाह ने कहाः वह (धरती) उनपर चालीस वर्ष के लिए ह़राम (वर्जित) कर दी गई। वे धरती में फिरते रहेंगे, अतः तुम अवज्ञाकारी जाति पर तरस न खाओ[1]

5:27

۞ وَٱتْلُ عَلَيْهِمْ نَبَأَ ٱبْنَىْ ءَادَمَ بِٱلْحَقِّ إِذْ قَرَّبَا قُرْبَانًۭا فَتُقُبِّلَ مِنْ أَحَدِهِمَا وَلَمْ يُتَقَبَّلْ مِنَ ٱلْـَٔاخَرِ قَالَ لَأَقْتُلَنَّكَ ۖ قَالَ إِنَّمَا يَتَقَبَّلُ ٱللَّهُ مِنَ ٱلْمُتَّقِينَ

वत्लु अलैहिम् न-बअब्नै आद-म बिल्हक़्क़ि • इज़् क़र्रबा क़ुर्बानन् फतुक़ुब्बि-ल मिन् अ-हदिहिमा व लम् यु-तक़ब्बल् मिनल् आख़रि, क़ा-ल ल-अक़्तुलन्न-क, क़ा-ल इन्नमा य-तक़ब्बलुल्लाहु मिनल् मुत्तक़ीन
तथा उनेहें आदम के दो पुत्रों का सही समाचार[1] सुना दो, जब दोनों ने एक उपायन (क़ुर्बानी) प्रस्तुत की, तो एक से स्वीकार की गई तथा दूसरे से स्वीकार नहीं की गई। उस (दूसरे) ने कहाः मैं अवश्य तेरी हत्या कर दूँगा। उस (प्रथम) ने कहाः अल्लाह आज्ञाकारों ही से स्वीकार करता है।

5:28

لَئِنۢ بَسَطتَ إِلَىَّ يَدَكَ لِتَقْتُلَنِى مَآ أَنَا۠ بِبَاسِطٍۢ يَدِىَ إِلَيْكَ لِأَقْتُلَكَ ۖ إِنِّىٓ أَخَافُ ٱللَّهَ رَبَّ ٱلْعَـٰلَمِينَ

ल-इम् बसत्-त इलय्-य य-द-क लितक़्तु-लनी मा अ-ना बिबासितिंय् यदि-य इलै-क लिअक़्तु ल-क, इन्नी अख़ाफुल्ला-ह रब्बल्-आलमीन
यदि तुम मेरी हत्या करने के लिए मेरी ओर हाथ बढ़ाओगे[1], तो भी मैं तुम्हारी ओर तुम्हारी हत्या करने के लिए हाथ बढ़ाने वाला नहीं हूँ। मैं विश्व के पालनहार अल्लाह से डरता हूँ।

5:29

إِنِّىٓ أُرِيدُ أَن تَبُوٓأَ بِإِثْمِى وَإِثْمِكَ فَتَكُونَ مِنْ أَصْحَـٰبِ ٱلنَّارِ ۚ وَذَٰلِكَ جَزَٰٓؤُا۟ ٱلظَّـٰلِمِينَ

इन्नी उरीदू अन् तबू-अ बि-इस्मी व इस्मि-क फ़-तकू-न मिन् अस्हाबिन्नारि, व ज़ालि-क जज़ाउज़्ज़ालिमीन
मैं चाहता हूँ कि तुम मेरी (हत्या के) पाप और अपने पाप के साथ फिरो और नारकी हो जाओ और यही अत्याचारियों का प्रतिकार (बदला) है।

5:30

فَطَوَّعَتْ لَهُۥ نَفْسُهُۥ قَتْلَ أَخِيهِ فَقَتَلَهُۥ فَأَصْبَحَ مِنَ ٱلْخَـٰسِرِينَ

फ़तव्व-अत् लहू नफ्सुहू क़त्-ल अख़ीहि फ़-क़-त-लहू फ़-अस्ब-ह मिनल् ख़ासिरीन
अंततः, उसने स्वयं को अपने भाई की हत्या पर तैयार कर लिया और विनाशों में हो गया।

5:31

فَبَعَثَ ٱللَّهُ غُرَابًۭا يَبْحَثُ فِى ٱلْأَرْضِ لِيُرِيَهُۥ كَيْفَ يُوَٰرِى سَوْءَةَ أَخِيهِ ۚ قَالَ يَـٰوَيْلَتَىٰٓ أَعَجَزْتُ أَنْ أَكُونَ مِثْلَ هَـٰذَا ٱلْغُرَابِ فَأُوَٰرِىَ سَوْءَةَ أَخِى ۖ فَأَصْبَحَ مِنَ ٱلنَّـٰدِمِينَ

फ़-ब-असल्लाहु ग़ुराबंय्यब्हसु फ़िल्अर्ज़ि लियुरि-यहू कै-फ़ युवारी सौअ-त अख़ीहि, क़ा-ल या वै-लता अ- अज़ज़्तु अन् अकू-न मिस्-ल हाज़ल्ग़ुराबि फ़-उवारि-य सौअ-त अख़ी, फ़ अस्ब-ह मिनन्नादिमीन
फिर अल्लाह ने एक कौआ भेजा, जो भूमि कुरेद रहा था, ताकि उसे दिखाये कि अपने भाई के शव को कैसे छुपाये, उसने कहाः मुझपर खेद है! क्या मैं इस कौआ जैसा भी न हो सका कि अपने भाई का शव छुपा सकूँ, फिर बड़ा लज्जित हूआ।

5:32

مِنْ أَجْلِ ذَٰلِكَ كَتَبْنَا عَلَىٰ بَنِىٓ إِسْرَٰٓءِيلَ أَنَّهُۥ مَن قَتَلَ نَفْسًۢا بِغَيْرِ نَفْسٍ أَوْ فَسَادٍۢ فِى ٱلْأَرْضِ فَكَأَنَّمَا قَتَلَ ٱلنَّاسَ جَمِيعًۭا وَمَنْ أَحْيَاهَا فَكَأَنَّمَآ أَحْيَا ٱلنَّاسَ جَمِيعًۭا ۚ وَلَقَدْ جَآءَتْهُمْ رُسُلُنَا بِٱلْبَيِّنَـٰتِ ثُمَّ إِنَّ كَثِيرًۭا مِّنْهُم بَعْدَ ذَٰلِكَ فِى ٱلْأَرْضِ لَمُسْرِفُونَ

मिन् अज्लि ज़ालि-क, कतब्ना अला बनी इस्राई-ल अन्नहू मन् क़-त-ल नफ़्सम् बिग़ैरि नफ्सिन् औ फ़सादिन् फिल्अर्ज़ि फ़-कअन्नमा क़-तलन्ना-स जमीअन्, व मन् अह़्याहा फ़-कअन्नमा अह़्यन्ना-स जमीअ़न्, व ल-क़द् जाअत्हुम् रूसुलुना बिल्बय्यिनाति, सुम्-म इन्-न कसीरम् मिन्हुम् बअ्-द ज़ालि-क फ़िल्अर्ज़ि ल मुस्रिफून
इसी कारण हमने बनी इस्राईल पर लिख दिया[1] कि जिसने भी किसी प्राणी की हत्या की, किसी प्राणी का ख़ून करने अथवा धरती में विद्रोह के बिना, तो समझो उसने पूरे मनुष्यों की हत्या[2] कर दी और जिसने जीवित रखा एक प्राणी को, तो वास्तव में, उसने जीवित रखा सभी मनुष्यों को तथा उनके पास हमारे रसूल खुली निशानियाँ लाये, फिर भी उनमें से अधिकांश धरती में विद्रोह करने वाले हैं।

5:33

إِنَّمَا جَزَٰٓؤُا۟ ٱلَّذِينَ يُحَارِبُونَ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ وَيَسْعَوْنَ فِى ٱلْأَرْضِ فَسَادًا أَن يُقَتَّلُوٓا۟ أَوْ يُصَلَّبُوٓا۟ أَوْ تُقَطَّعَ أَيْدِيهِمْ وَأَرْجُلُهُم مِّنْ خِلَـٰفٍ أَوْ يُنفَوْا۟ مِنَ ٱلْأَرْضِ ۚ ذَٰلِكَ لَهُمْ خِزْىٌۭ فِى ٱلدُّنْيَا ۖ وَلَهُمْ فِى ٱلْـَٔاخِرَةِ عَذَابٌ عَظِيمٌ

इन्नमा जज़ा-उल्लज़ी-न युहारिबूनल्ला-ह व रसूलहू व यस्औ-न फ़िल्अर्ज़ि फ़सादन् अंय्युक़त्तलू औ युसल्लबू औ तुक़त्त-अ ऐदीहिम् व अर्जुलुहुम मिन् ख़िलाफिन् औ युन्फौ मिनल अर्ज़ि, ज़ालि-क लहुम ख़िज़्युन फिद्दुन्या व लहुम् फिल्-आख़ि-रति अज़ाबुन अज़ीम
जो लोग[1] अल्लाह और उसके रसूल से युध्द करते हों तथा धरती में उपद्रव करते फिर रहे हों, उनका दण्ड ये है कि उनकी हत्या की जाये तथा उन्हें फाँसी दी जाये अथवा उनके हाथ-पाँव विपरीत दिशाओं से काट दिये जायें अथवा उन्हें देश निकाला दे दिया जाये। ये उनके लिए संसार में अपमान है तथा परलोक में उनके लिए इससे बड़ा दण्ड है।

5:34

إِلَّا ٱلَّذِينَ تَابُوا۟ مِن قَبْلِ أَن تَقْدِرُوا۟ عَلَيْهِمْ ۖ فَٱعْلَمُوٓا۟ أَنَّ ٱللَّهَ غَفُورٌۭ رَّحِيمٌۭ

इल्लल्लज़ी-न ताबू मिन् क़ब्लि अन् तक़्दिरू अलैहिम्, फअ्लमू अन्नल्ला-ह ग़फूरूर्रहीम
परन्तु जो तौबा (क्षमा याचना) कर लें, इससे पहले कि तुम उन्हें अपने नियंत्रण में लाओ, तो तुम जान लो कि अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है।

5:35

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ ٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَٱبْتَغُوٓا۟ إِلَيْهِ ٱلْوَسِيلَةَ وَجَـٰهِدُوا۟ فِى سَبِيلِهِۦ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ

या अय्युहल्लज़ी-न आमनुत्तक़ुल्ला-ह वब्तग़ू इलैहिल वसी-ल त व जाहिदू फ़ी सबीलिही लअ़ल्लकुम् तुफ्लिहून
हे ईमान वालो! अल्लाह (की अवज्ञा) से डरते रहो और उसकी ओर वसीला[1] खोजो तथा उसकी राह में जिहाद करो, ताकी तुम सफल हो जाओ।

5:36

إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ لَوْ أَنَّ لَهُم مَّا فِى ٱلْأَرْضِ جَمِيعًۭا وَمِثْلَهُۥ مَعَهُۥ لِيَفْتَدُوا۟ بِهِۦ مِنْ عَذَابِ يَوْمِ ٱلْقِيَـٰمَةِ مَا تُقُبِّلَ مِنْهُمْ ۖ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌۭ

इन्नल्लज़ी-न क-फरू लौ अन्-न लहुम् मा फिल्अर्ज़ि जमीअंव्-व मिस्लहू म-अहू लियफ्तदू बिही मिन् अज़ाबि यौमिल्-क़ियामति मा तुक़ुब्बि-ल मिन्हुम्, व लहुम् अज़ाबुन् अलीम
जो लोग काफ़िर हैं, यद्यपि धरती के सभी (धन-धान्य) उनके अधिकार (स्वामित्व) में आ जायें और उसी के समान और भी हो, ताकि वे, ये सब प्रलय के दिन की यातना से अर्थ दण्ड स्वरूप देकर मुक्त हो जायें, तो भी उनसे स्वीकार नहीं किया जायेगा और उन्हें दुखदायी यातना होगी।

5:37

يُرِيدُونَ أَن يَخْرُجُوا۟ مِنَ ٱلنَّارِ وَمَا هُم بِخَـٰرِجِينَ مِنْهَا ۖ وَلَهُمْ عَذَابٌۭ مُّقِيمٌۭ ٣٧

युरीदू-न अंय्यख़्रूजू मिनन्नारि व मा हुम् बिख़ारिजी-न मिन्हा, व लहुम् अज़ाबुम् मुक़ीम
वे चाहेंगे कि नरक से निकल जायें, जबकि वे उससे निकल नहीं सकेंगे और उन्हीं के लिए स्थायी यातना है।

5:38

وَٱلسَّارِقُ وَٱلسَّارِقَةُ فَٱقْطَعُوٓا۟ أَيْدِيَهُمَا جَزَآءًۢ بِمَا كَسَبَا نَكَـٰلًۭا مِّنَ ٱللَّهِ ۗ وَٱللَّهُ عَزِيزٌ حَكِيمٌۭ

वस्सारिक़ु वस्सारि-क़तु फ़क़्तअू ऐदि-यहुमा जज़ाअम् बिमा क-सबा नकालम् मिनल्लाहि, वल्लाहु अज़ीज़ुन हकीम
चोर, पुरुष और स्त्री दोनों के हाथ काट दो, उनके करतूत के बदले, जो अल्लाह की ओर से शिक्षाप्रद दण्ड है[1] और अल्लाह प्रभावशाली गुणी है।

5:39

فَمَن تَابَ مِنۢ بَعْدِ ظُلْمِهِۦ وَأَصْلَحَ فَإِنَّ ٱللَّهَ يَتُوبُ عَلَيْهِ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٌۭ رَّحِيمٌ

फ-मन् ता-ब मिम्-बअ्दि ज़ुल्मिही व अस्ल-ह फ़- इन्नल्ला-ह यतूबु अलैहि, इन्नल्ला-ह ग़फूरुर्रहीम
फिर जो अपने अत्याचार (चोरी) के पश्चात् तौबा (क्षमा याचना) कर ले और अपने को सुधार ले, तो अल्लाह उसकी तौबा स्वीकार कर लेगा[1]। निःसंदेह अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है।

5:40

أَلَمْ تَعْلَمْ أَنَّ ٱللَّهَ لَهُۥ مُلْكُ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ يُعَذِّبُ مَن يَشَآءُ وَيَغْفِرُ لِمَن يَشَآءُ ۗ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍۢ قَدِيرٌۭ

अलम् तअ्लम् अन्नल्ला-ह लहू मुल्कुस्समावाति वल्अर्ज़ि, युअ़ज़्ज़िबु मंय्यशा-उ व यग़्फिरू लिमंय्यशा- उ, वल्लाहु अला कुल्लि शैइन क़दीर
क्या तुम जानते नहीं कि अल्लाह ही के लिए है, आकाशों तथा धरती का राज्य। वह जिसे चाहे, क्षमा कर दे और जिसे चाहे, दण्ड दे तथा अल्लाह जो चाहे, कर सकता है।

5:41

يٰٓاَيُّهَا الرَّسُوْلُ لَا يَحْزُنْكَ الَّذِيْنَ يُسَارِعُوْنَ فِى الْكُفْرِ مِنَ الَّذِيْنَ قَالُوْٓا اٰمَنَّا بِاَفْوَاهِهِمْ وَلَمْ تُؤْمِنْ قُلُوْبُهُمْ ۛ وَمِنَ الَّذِيْنَ هَادُوْا ۛ سَمّٰعُوْنَ لِلْكَذِبِ سَمّٰعُوْنَ لِقَوْمٍ اٰخَرِيْنَۙ لَمْ يَأْتُوْكَ ۗ يُحَرِّفُوْنَ الْكَلِمَ مِنْۢ بَعْدِ مَوَاضِعِهٖۚ يَقُوْلُوْنَ اِنْ اُوْتِيْتُمْ هٰذَا فَخُذُوْهُ وَاِنْ لَّمْ تُؤْتَوْهُ فَاحْذَرُوْا ۗوَمَنْ يُّرِدِ اللّٰهُ فِتْنَتَهٗ فَلَنْ تَمْلِكَ لَهٗ مِنَ اللّٰهِ شَيْـًٔا ۗ اُولٰۤىِٕكَ الَّذِيْنَ لَمْ يُرِدِ اللّٰهُ اَنْ يُّطَهِّرَ قُلُوْبَهُمْ ۗ لَهُمْ فِى الدُّنْيَا خِزْيٌ ۖوَّلَهُمْ فِى الْاٰخِرَةِ عَذَابٌ عَظِيْمٌ

या अय्युहर्रसूलु ला यह्ज़ुनकल्लज़ी-न युसारिअू-न फ़िल्कुफ्रि मिनल्लज़ी-न क़ालू आमन्ना बिअफ़्वाहिहिम् व लम् तुअ्मिन् क़ुलूबुहुम्, व मिनल्लज़ी-न हादू, सम्माअू-न लिल्कज़िबि सम्माअू-न लिक़ौमिन् आख़री-न, लम् यअ्तू-क, युहर्रिफूनल्-कलि-म मिम्-बअ्दि मवाज़िअिही, यक़ूलू-न इन् ऊतीतुम् हाज़ा फ़ख़ुज़ूहु व इल्लम् तुअ्तौहू फ़ह़्ज़रू, व मंय्युरिदिल्लाहु फ़ित्-नतहू फ़-लन् तम्लि-क लहू मिनल्लाहि शैअन्, उला-इकल्लज़ी-न लम् युरिदिल्लाहु अंय्युतह़्हि-र क़ुलूबहुम्, लहुम् फ़िद्दुन्या ख़िज़्युंव्-व लहुम् फ़िल्-आख़ि-रति अज़ाबुन् अज़ीम
हे नबी! वे आपको उदासीन न करें, जो कुफ़्र में तीव्र गामी हैं; उनमें से जिन्होंने कहा कि हम ईमान लाये, जबकि उनके दिल ईमान नहीं लाये और उनमें से जो यहूदी हैं, जिनकी दशा ये है कि मिथ्या बातें सुनने के लिए कान लगाये रहते हैं तथा दूसरों के लिए, जो आपके पास नहीं आये, कान लगाये रहते हैं। वे शब्दों को उनके निश्चित स्थानों के पश्चात् वास्तविक अर्थों से फेर देते हैं। वे कहते हैं कि यदि तुम्हें यही आदेश दिया जाये (जो हमने बताया है) तो मान लो और यदि वह न दिये जाओ, तो उससे बचो। (हे नबी!) जिसे अल्लाह अपनी परीक्षा में डालना चाहे, आप उसे अल्लाह से बचाने के लिए कुछ नहीं कर सकते। यही वे हैं, जिनके दिलों को अल्लाह ने पवित्र करना नहीं चाहा। उन्हीं के लिए संसार में अपमान है और उन्हीं के लिए परलोक में घोर[1] यातना है।

5:42

سَمَّـٰعُونَ لِلْكَذِبِ أَكَّـٰلُونَ لِلسُّحْتِ ۚ فَإِن جَآءُوكَ فَٱحْكُم بَيْنَهُمْ أَوْ أَعْرِضْ عَنْهُمْ ۖ وَإِن تُعْرِضْ عَنْهُمْ فَلَن يَضُرُّوكَ شَيْـًۭٔا ۖ وَإِنْ حَكَمْتَ فَٱحْكُم بَيْنَهُم بِٱلْقِسْطِ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ يُحِبُّ ٱلْمُقْسِطِينَ

सम्माअू-न लिल्कज़िबि अक्कालू-न लिस्सुह्ति, फ़- इन् जाऊ-क फ़ह़्कुम् बैनहुम् औ अअ्-रिज़् अन्हुम्, व इन् तुअ्-रिज़् अन्हुम् फ़-लंय्यज़ुर्रू-क शैअन्, व इन् हकम्-त फ़ह़्कुम् बैनहुम् बिल्क़िस्ति, इन्नल्ला-ह युहिब्बुल मुक़्सितीन
वे मिथ्या बातें सुनने वाले, अवैध भक्षी हैं। अतः यदि वे आपके पास आयें, तो आप उनके बीच निर्णय कर दें अथवा उनसे मुँह फेर लें (आपको अधिकार है)। और यदि आप उनसे मुँह फेर लें, तो वे आपको कोई हाणि नहीं पहुँचा सकेंगे और यदि निर्णय करें, तो न्याय के साथ निर्णय करें। निःसंदेह अल्लाह न्यायकारियों से प्रेम करता है।

5:43

وَكَيْفَ يُحَكِّمُونَكَ وَعِندَهُمُ ٱلتَّوْرَىٰةُ فِيهَا حُكْمُ ٱللَّهِ ثُمَّ يَتَوَلَّوْنَ مِنۢ بَعْدِ ذَٰلِكَ ۚ وَمَآ أُو۟لَـٰٓئِكَ بِٱلْمُؤْمِنِينَ

व कै-फ़ युहक्किमून-क व अिन्दहुमुत्तौरातु फ़ीहा हुक्मुल्लाहि सुम्-मय तवल्लौ-न मिम् बअ्दि ज़ालि-क, व मा उलाइ-क बिल्-मुअ्मिनीन 
और वे आपको निर्णयकारी कैसे बना सकते हैं, जबकि उनके पास तौरात (पुस्तक) मौजूद है, जिसमें अल्लाह का आदेश है, फिर इसके पश्चात उससे मुँह फेर रहे हैं? वास्तव में, वे ईमान वाले हैं ही[1] नहीं।

5:44

إِنَّآ أَنزَلْنَا ٱلتَّوْرَىٰةَ فِيهَا هُدًۭى وَنُورٌۭ ۚ يَحْكُمُ بِهَا ٱلنَّبِيُّونَ ٱلَّذِينَ أَسْلَمُوا۟ لِلَّذِينَ هَادُوا۟ وَٱلرَّبَّـٰنِيُّونَ وَٱلْأَحْبَارُ بِمَا ٱسْتُحْفِظُوا۟ مِن كِتَـٰبِ ٱللَّهِ وَكَانُوا۟ عَلَيْهِ شُهَدَآءَ ۚ فَلَا تَخْشَوُا۟ ٱلنَّاسَ وَٱخْشَوْنِ وَلَا تَشْتَرُوا۟ بِـَٔايَـٰتِى ثَمَنًۭا قَلِيلًۭا ۚ وَمَن لَّمْ يَحْكُم بِمَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ فَأُو۟لَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلْكَـٰفِرُونَ

इन्ना अन्ज़ल्नत्तौरा-त फ़ीहा हुदंव्-व नूरून्, यह़्कुमु बिहन्न बिय्यूनल्लज़ी-न अस्लमू लिल्लज़ी-न हादू वर्रब्बानिय्यू-न वल्-अह़्बारू बिमस्तुह़्फ़िज़ू मिन् किताबिल्लाहि व कानू अलैहि शु-हदा-अ, फ़ला तख़्शवुन्ना-स वख़्शौनि व ला तश्तरू बिआयाती स- मनन् क़लीलन्, व मल्लम् यह्कुम् बिमा अन्ज़लल्लाहु फ़-उलाइ-क हुमुल्काफिरून
निःसंदेह, हमने ही तौरात उतारी, जिसमें मार्गदर्शन तथा प्रकाश है, जिसके अनुसार वो नबी निर्णय करते रहे, जो आज्ञाकारी थे, उनके लिए जो यहूदी थे तथा धर्माचारी और विद्वान लोग, क्योंकि वे अल्लाह की पुस्तक के रक्षक बनाये गये थे और उसके (सत्य होने के) साक्षी थे। अतः, तुमभी लोगों से न डरो, मुझी से डरो और मेरी आयतों के बदले तनिक मूल्य न खरीदो और जो अल्लाह की उतारी (पुस्तक के) अनुसार निर्णय न करें, तो वही काफ़िर हैं।

5:45

وَكَتَبْنَا عَلَيْهِمْ فِيهَآ أَنَّ ٱلنَّفْسَ بِٱلنَّفْسِ وَٱلْعَيْنَ بِٱلْعَيْنِ وَٱلْأَنفَ بِٱلْأَنفِ وَٱلْأُذُنَ بِٱلْأُذُنِ وَٱلسِّنَّ بِٱلسِّنِّ وَٱلْجُرُوحَ قِصَاصٌۭ ۚ فَمَن تَصَدَّقَ بِهِۦ فَهُوَ كَفَّارَةٌۭ لَّهُۥ ۚ وَمَن لَّمْ يَحْكُم بِمَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ فَأُو۟لَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلظَّـٰلِمُونَ

व कतब्-ना अलैहिम् फ़ीहा अन्नफ़्-स बिन्नफ्सि, वल्ऐ- न बिल् ऐनि वल्अन्-फ़ बिल् अन्फ़ि वल्अुज़ु-न बिल-उज़ुनि वस्सिन्-न बिस्सिन्नि, वल्-जुरू-ह क़िसासुन, फ़-मन् तसद्द-क़ बिही फ़हु-व कफ्फारतुल्लहू, व मल्लम् यह्कुम् बिमा अन्ज़ लल्लाहु फ़-उलाइ-क हुमुज़्ज़ालिमून
और हमने उन (यहूदियों) पर उस (तौरात) में लिख दिया कि प्राण के बदले प्राण, आँख के बदले आँख, नाक के बदले नाक, कान के बदले कान और दाँत के बदले दाँत[1] हैं तथा सभी आघातों में बराबरी का बदला है। फिर जो कोई बदला लेने को दान (क्षमा) कर दे, तो वह उसके लिए (उसके पापों का) प्रायश्चित हो जायेगा तथा जो अल्लाह की उतारी (पुस्तक के) अनुसार निर्णय न करें, वही अत्याचारी हैं।

5:46

وَقَفَّيْنَا عَلَىٰٓ ءَاثَـٰرِهِم بِعِيسَى ٱبْنِ مَرْيَمَ مُصَدِّقًۭا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ مِنَ ٱلتَّوْرَىٰةِ ۖ وَءَاتَيْنَـٰهُ ٱلْإِنجِيلَ فِيهِ هُدًۭى وَنُورٌۭ وَمُصَدِّقًۭا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ مِنَ ٱلتَّوْرَىٰةِ وَهُدًۭى وَمَوْعِظَةًۭ لِّلْمُتَّقِينَ

व क़फ्फैना अला आसारिहिम् बिअीसब्नि मर य-म मुसद्दिक़ल्लिमा बै-न यदैहि मिनत्तौराति, व आतैनाहुल् इन्जी-ल फ़ीहि हुदंव्-व नूरूंव्-व मुसद्दिक़ल्-लिमा बै-न यदैहि मिनत्तौराति व हुदंव्-व मौअि-ज़तल् लिल्मुत्तक़ीन
फिर हमने उन नबियों के पश्चात् मर्यम के पुत्र ईसा को भेजा, उसे सच बताने वाला, जो उसके सामने तौरात थी तथा उसे इंजील प्रदान की, जिसमें मार्गदर्शन तथा प्रकाश है, उसे सच बताने वाली, जो उसके आगे तौरात थी तथा अल्लाह से डरने वालों के लिए सर्वथा मार्गदर्शन तथा शिक्षा थी।

5:47

وَلْيَحْكُمْ أَهْلُ ٱلْإِنجِيلِ بِمَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ فِيهِ ۚ وَمَن لَّمْ يَحْكُم بِمَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ فَأُو۟لَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلْفَـٰسِقُونَ

वल्यह्कुम् अह्लुल्-इन्जीलि बिमा अन्ज़लल्लाहु फ़ीहि, व मल्लम् यह्कुम् बिमा अन्ज़लल्लाहु फ़-उलाइ-क हुमुल फ़ासिक़ून
और इंजील के अनुयायी भी उसीसे निर्णय करें, जो अल्लाह ने उसमें उतारा है और जो उससे निर्णय न करें, जिसे अल्लाह ने उतारा है, वही अधर्मी हैं।

5:48

وَأَنزَلْنَآ إِلَيْكَ ٱلْكِتَـٰبَ بِٱلْحَقِّ مُصَدِّقًۭا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ مِنَ ٱلْكِتَـٰبِ وَمُهَيْمِنًا عَلَيْهِ ۖ فَٱحْكُم بَيْنَهُم بِمَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ ۖ وَلَا تَتَّبِعْ أَهْوَآءَهُمْ عَمَّا جَآءَكَ مِنَ ٱلْحَقِّ ۚ لِكُلٍّۢ جَعَلْنَا مِنكُمْ شِرْعَةًۭ وَمِنْهَاجًۭا ۚ وَلَوْ شَآءَ ٱللَّهُ لَجَعَلَكُمْ أُمَّةًۭ وَٰحِدَةًۭ وَلَـٰكِن لِّيَبْلُوَكُمْ فِى مَآ ءَاتَىٰكُمْ ۖ فَٱسْتَبِقُوا۟ ٱلْخَيْرَٰتِ ۚ إِلَى ٱللَّهِ مَرْجِعُكُمْ جَمِيعًۭا فَيُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمْ فِيهِ تَخْتَلِفُونَ

व अन्ज़ल्ना इलैकल्- किता-ब बिल्हक़्क़ि मुसद्दिक़ल्लिमा बै-न यदैहि मिनल्-किताबि व मुहैमिनन् अलैहि फ़ह़्कुम् बैनहुम् बिमा अन्ज़लल्लाहु व ला तत्तबिअ् अह़्वा-अहुम् अम्मा जाअ-क मिनल् हक़्क़ि, लिकुल्लिन् जअ़ल्ना मिन्कुम् शिर्-अतंव् व मिन्हाजन्, व लौ शाअल्लाहु ल-ज-अ-लकुम उम्मतंव्-वाहि-दतंव्-व लाकिल्लियब्लु-वकुम् फी मा आताकुम् फ़स्तबिक़ुल-ख़ैराति, इलल्लाहि मर्जिअुकुम् जमीअ़न् फ़युनब्बिउकुम् बिमा कुन्तुम् फ़ीहि तख़्तलिफून
और (हे नबी!) हमने आपकी ओर सत्य पर आधारित पुस्तक (क़ुर्आन) उतार दी, जो अपने पूर्व की पुस्तकों को सच बताने वाली तथा संरक्षक[1] है, अतः आप लोगों का निर्णय उसीसे करें, जो अल्लाह ने उतारा है तथा उनकी मनमानी पर उस सत्य से विमुख होकर न चलें, जो आपके पास आया है। हमने तुममें से प्रत्येक के लिए एक धर्म विधान तथा एक कार्य प्रणाली बना दिया[2] था और यदि अल्लाह चाहता, तो तुम्हें एक ही समुदाय बना देता, परन्तु उसने जो कुछ दिया है, उसमें तुम्हारी परीक्षा लेना चाहता है। अतः, भलाईयों में एक-दूसरे से अग्रसर होने का प्रयास करो[3], अल्लाह ही की ओर तुम सबको लौटकर जाना है। फिर वह तुम्हें बता देगा, जिन बातों में तुम विभेद करते रहे।

5:49

وَأَنِ ٱحْكُم بَيْنَهُم بِمَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ وَلَا تَتَّبِعْ أَهْوَآءَهُمْ وَٱحْذَرْهُمْ أَن يَفْتِنُوكَ عَنۢ بَعْضِ مَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ إِلَيْكَ ۖ فَإِن تَوَلَّوْا۟ فَٱعْلَمْ أَنَّمَا يُرِيدُ ٱللَّهُ أَن يُصِيبَهُم بِبَعْضِ ذُنُوبِهِمْ ۗ وَإِنَّ كَثِيرًۭا مِّنَ ٱلنَّاسِ لَفَـٰسِقُونَ

व अनिह़्कुम् बैनहुम् बिमा अन्जलल्लाहु व ला तत्तबिअ् अह़्वा-अहुम् वह़्ज़रहुम् अंय्यफ्तिनू-क अम्बअ्ज़ि मा अन्ज़लल्लाहु इलै-क, फ़-इन् तवल्लौ फ़अ लम् अन्नमा युरीदुल्लाहु अंय्युसीबहुम् बि-बअ्ज़ि ज़ुनूबिहिम्, व इन्-न कसीरम् मिनन्नासि लफ़ासिक़ून
तथा (हे नबी!) आप उनका निर्णय उसीसे करें, जो अल्लाह ने उतारा है और उनकी मनमानी पर न चलें तथा उनसे सावधान रहें कि आपको जो अल्लाह ने आपकी ओर उतारा है, उसमें से कुछ से फेर न दें। फिर यदि वे मुँह फेरें, तो जान लें कि अल्लाह चाहता है कि उनके कुछ पापों के कारण उन्हें दण्ड दे। वास्तव में, बहुत-से लोग उल्लंघनकारी हैं।

5:50

أَفَحُكْمَ ٱلْجَـٰهِلِيَّةِ يَبْغُونَ ۚ وَمَنْ أَحْسَنُ مِنَ ٱللَّهِ حُكْمًۭا لِّقَوْمٍۢ يُوقِنُونَ

अ-फ़हुक्मल् जाहिलिय्यति यब्ग़ू-न, व मन् अह्सनु मिनल्लाहि हुक्मल लिक़ौमिंय्यूक़िनून
तो क्या वे जाहिलिय्यत (अंधकार युग) का निर्णय चाहते हैं? और अल्लाह से अच्छा निर्णय किसका हो सकता है, उनके लिए जो विश्वास रखते हैं?

5:51

 يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا لَا تَتَّخِذُوا الْيَهُوْدَ وَالنَّصٰرٰٓى اَوْلِيَاۤءَ ۘ بَعْضُهُمْ اَوْلِيَاۤءُ بَعْضٍۗ وَمَنْ يَّتَوَلَّهُمْ مِّنْكُمْ فَاِنَّهٗ مِنْهُمْ ۗ اِنَّ اللّٰهَ لَا يَهْدِى الْقَوْمَ الظّٰلِمِيْنَ

या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तत्तख़िज़ुल् यहू-द वन्नसारा औलिया-अ • बअ्ज़ुहुम् औलिया-उ बअ्ज़िन्, व मंय्य-तवल्लहुम् मिन्कुम् फ-इन्नहू मिन्हुम्, इन्नल्ला-ह ला यह़्दिल् क़ौमज़-ज़ालिमीन
हे ईमान वालो! तुम यहूदी तथा ईसाईयों को अपना मित्र न बनाओ, वे एक-दूसरे के मित्र हैं और जो कोई तुममें से उन्हें मित्र बनायेगा, वह उन्हीं में होगा तथा अल्लाह अत्याचारियों को सीधी राह नहीं दिखाता।

5:52

فَتَرَى ٱلَّذِينَ فِى قُلُوبِهِم مَّرَضٌۭ يُسَـٰرِعُونَ فِيهِمْ يَقُولُونَ نَخْشَىٰٓ أَن تُصِيبَنَا دَآئِرَ ةٌۭ ۚ فَعَسَى ٱللَّهُ أَن يَأْتِىَ بِٱلْفَتْحِ أَوْ أَمْرٍۢ مِّنْ عِندِهِۦ فَيُصْبِحُوا۟ عَلَىٰ مَآ أَسَرُّوا۟ فِىٓ أَنفُسِهِمْ نَـٰدِمِينَ

फ़-तरल्लज़ी-न फी क़ुलूबिहिम् मरजुंय्युसारिअू-न फ़ीहिम् यक़ूलू-न नख़्शा अन् तुसीबना दा-इ-रतुन्, फ़ असल्लाहु अंय्यअ्ति-य बिल्फ़त्हि औ अम्रिम् मिन् अिन्दिही फ़युस्बिहू अला मा असर्रु फ़ी अन्फुसिहिम् नादिमीन
फिर (हे नबी!) आप देखेंगे कि जिनके दिलों में (द्विधा का) रोग है, वे उन्हीं में दौड़े जा रहे हैं, वे कहते हैं कि हम डरते हैं कि हम किसी आपदा के कुचक्र में न आ जायेँ, तो दूर नहीं कि अल्लाह उन्हें विजय प्रदान करेगा अथवा उसके पास से कोई बात हो जायेगी, तो वे लोग उस बात पर, जो उन्होंने अपने मन में छुपा रखी है, लज्जित होंगे।

5:53

وَيَقُولُ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ أَهَـٰٓؤُلَآءِ ٱلَّذِينَ أَقْسَمُوا۟ بِٱللَّهِ جَهْدَ أَيْمَـٰنِهِمْ ۙ إِنَّهُمْ لَمَعَكُمْ ۚ حَبِطَتْ أَعْمَـٰلُهُمْ فَأَصْبَحُوا۟ خَـٰسِرِينَ

व यक़ू लुल्लज़ी-न आमनू अ-हाउलाइल्लज़ी-न अक़्समू बिल्लाहि जह्-द ऐमानिहिम्, इन्नहुम् ल-म-अकुम्, हबितत् अअ्मालुहुम् फ़अस्बहू ख़ासिरीन
तथा (उस समय) ईमान वाले कहेंगेः क्या यही वे हैं, जो अल्लाह की बड़ी गंभीर शपथें लेकर कहा करते थे कि वे तुम्हारे साथ हैं? इनके कर्म अकारथ गये और अंततः वे असफल हो गये।

5:54

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ مَن يَرْتَدَّ مِنكُمْ عَن دِينِهِۦ فَسَوْفَ يَأْتِى ٱللَّهُ بِقَوْمٍۢ يُحِبُّهُمْ وَيُحِبُّونَهُۥٓ أَذِلَّةٍ عَلَى ٱلْمُؤْمِنِينَ أَعِزَّةٍ عَلَى ٱلْكَـٰفِرِينَ يُجَـٰهِدُونَ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ وَلَا يَخَافُونَ لَوْمَةَ لَآئِمٍۢ ۚ ذَٰلِكَ فَضْلُ ٱللَّهِ يُؤْتِيهِ مَن يَشَآءُ ۚ وَٱللَّهُ وَٰسِعٌ عَلِيمٌ

या अय्यु हल्लज़ी-न आमनू मंय्यर्तद्-द मिन्कुम् अन् दीनिही फ़सौ-फ़ यअ्तिल्लाहु बिक़ौमिंय्-युहिब्बुहुम् व युहिब्बूनहू, अज़िल्लतिन् अलल्-मुअ्मिनी-न अअिज़्ज़तिन् अलल्काफ़िरी-न, युजाहिदू-न फ़ी सबीलिल्लाहि व ला यख़ाफून लौ-म त ला-इमिन्, ज़ालि-क फज़्लुल्लाहि युअ्तीहि मंय्यशा-उ, वल्लाहु वासिअुन् अलीम
हे ईमान वालो! तुममें से जो अपने धर्म से फिर जायेगा, तो अल्लाह (उसके स्थान पर) ऐसे लोगों को पैदा कर देगा, जिनसे वह प्रेम करेगा और वे उससे प्रेम करेंगे। वे ईमान वालों के लिए कोमल तथा काफ़िरों के लिए कड़े[1] होंगे, अल्लाह की राह में जिहाद करेंगे, किसी निंदा करने वाले की निंदा से नहीं डरेंगे। ये अल्लाह की दया है, जिसे चाहे प्रदान करता है और अल्लाह (की दया) विशाल है और वह अति ज्ञानी है।

5:55

إِنَّمَا وَلِيُّكُمُ ٱللَّهُ وَرَسُولُهُۥ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ ٱلَّذِينَ يُقِيمُونَ ٱلصَّلَوٰةَ وَيُؤْتُونَ ٱلزَّكَوٰةَ وَهُمْ رَٰكِعُونَ

इन्नमा वलिय्युकुमुल्लाहु व रसूलुहू वल्लज़ी-न आमनुल्लज़ी-न युक़ीमूनस्सला-त व युअ्तूनज़्ज़का-त व हुम् राकिअून
तुम्हारे सहायक केवल अल्लाह और उसके रसूल तथा वो हैं, जो ईमान लाये, नमाज़ की स्थापना करते हैं, ज़कात देते हैं और अल्लाह के आगे झुकने वाले हैं।

5:56

وَمَن يَتَوَلَّ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ فَإِنَّ حِزْبَ ٱللَّهِ هُمُ ٱلْغَـٰلِبُونَ

व मंय्य-तवल्लल्ला-ह व रसूलहू वल्लज़ी-न आमनू फ़-इन्-न हिज़्बल्लाहि हुमुल्-ग़ालिबून
तथा जो अल्लाह और उसके रसूल तथा ईमान वालों को सहायक बनायेगा, तो निश्चय अल्लाह का दल ही छाकर रहेगा।

5:57

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ لَا تَتَّخِذُوا۟ ٱلَّذِينَ ٱتَّخَذُوا۟ دِينَكُمْ هُزُوًۭا وَلَعِبًۭا مِّنَ ٱلَّذِينَ أُوتُوا۟ ٱلْكِتَـٰبَ مِن قَبْلِكُمْ وَٱلْكُفَّارَ أَوْلِيَآءَ ۚ وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ

या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तत्तख़िज़ुल्लज़ीनत्त ख़ज़ू दीनकुम् हुज़ुवंव्-व लअिबम् मिनल्लज़ी-न ऊतुल्-किता-ब मिन् क़ब्लिकुम् वल्कुफ्फ़ा-र औलिया-अ, वत्तक़ुल्ला-ह इन् कुन्तुम् मुअ्मिनीन
हे ईमान वालो! उन्हें जिन्होंने तुम्हारे धर्म को उपहास तथा खेल बना रखा है, उनमें से, जो तुमसे पहले पुस्तक दिये गये हैं तथा काफ़िरों को सहायक (मित्र) न बनाओ और अल्लाह से डरते रहो, यदि तुम वास्तव में ईमान वाले हो।

5:58

وَإِذَا نَادَيْتُمْ إِلَى ٱلصَّلَوٰةِ ٱتَّخَذُوهَا هُزُوًۭا وَلَعِبًۭا ۚ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمْ قَوْمٌۭ لَّا يَعْقِلُونَ

व इज़ा नादैतुम् इलस्सलातित्-त ख़ज़ूहा हुज़ुवंव्-व लअिबन्, ज़ालि-क बि-अन्नहुम् क़ौमुल्ला यअ्क़िलून
और जब तुम नमाज़ के लिए पुकारते हो, तो वे उसका उपहास करते तथा खेल बनाते हैं, इसलिए कि वे समझ नहीं रखते।

5:59

قُلْ يَـٰٓأَهْلَ ٱلْكِتَـٰبِ هَلْ تَنقِمُونَ مِنَّآ إِلَّآ أَنْ ءَامَنَّا بِٱللَّهِ وَمَآ أُنزِلَ إِلَيْنَا وَمَآ أُنزِلَ مِن قَبْلُ وَأَنَّ أَكْثَرَكُمْ فَـٰسِقُونَ

क़ुल् या अह़्लल्-किताबि हल् तन्क़िमू-न मिन्ना इल्ला अन् आमन्ना बिल्लाहि व मा उन्ज़ि-ल इलैना व मा उन्ज़ि-ल मिन् क़ब्लु, व अन्-न अक्स रकुम् फ़ासिक़ून
(हे नबी!) आप कह दें कि हे अह्ले किताब! इसके सिवा हमारा दोष किया है, जिसका तुम बदला लेना चाहते हो कि हम अल्लाह पर तथा जो हमारी ओर उतारा गया और जो हमसे पूर्व उतारा गया, उसपर ईमान लाये हैं और इसलिए कि तुममें अधिक्तर उल्लंघनकारी हैं?

5:60

قُلْ هَلْ أُنَبِّئُكُم بِشَرٍّۢ مِّن ذَٰلِكَ مَثُوبَةً عِندَ ٱللَّهِ ۚ مَن لَّعَنَهُ ٱللَّهُ وَغَضِبَ عَلَيْهِ وَجَعَلَ مِنْهُمُ ٱلْقِرَدَةَ وَٱلْخَنَازِيرَ وَعَبَدَ ٱلطَّـٰغُوتَ ۚ أُو۟لَـٰٓئِكَ شَرٌّۭ مَّكَانًۭا وَأَضَلُّ عَن سَوَآءِ ٱلسَّبِيلِ

क़ुल हल् उनब्बिउकुम् बि-शर्रिम् मिन ज़ालि-क मसू- बतन् जिन्दल्लाहि, मल्ल-अ नहुल्लाहु व ग़ज़ि-ब अ़लैहि व ज-अ-ल मिन्हुमुल क़ि-र-द-त वल्ख़नाज़ी-र व अ-ब-दत्ताग़ू-त, उलाइ-क शर्रुम् मकानंव्-व अज़ल्लु अन् सवा-इस्सबील
आप उनसे कह दें कि क्या तुम्हें बता दूँ, जिनका प्रतिफल (बदला) अल्लाह के पास इससे भी बुरा है? वे हैं, जिन्हें अल्लाह ने धिक्कार दिया और उनपर उसका प्रकोप हुआ तथा उनमें से बंदर और सूअर बना दिये गये तथा ताग़ूत ( असुर, धर्म विरोधी शक्तियों) को पूजने लगे। इन्हीं का स्थान सबसे बुरा है तथा सर्वाधिक कुपथ हैं।

5:61

وَإِذَا جَآءُوكُمْ قَالُوٓا۟ ءَامَنَّا وَقَد دَّخَلُوا۟ بِٱلْكُفْرِ وَهُمْ قَدْ خَرَجُوا۟ بِهِۦ ۚ وَٱللَّهُ أَعْلَمُ بِمَا كَانُوا۟ يَكْتُمُونَ

व इज़ा जाऊकुम् क़ालू आमन्ना व क़द्द-ख़लू बिल्कुफ्रि व हुम् क़द् ख़-रजू बिही, वल्लाहु अअ्लमु बिमा कानू यक्तुमून
जब वे[1] तुम्हारे पास आते हैं, तो कहते हैं कि हम ईमान लाये, जबकि वे कुफ़्र लिए हुए आये और उसी के साथ वापिस हुए तथा अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है, जिसे वे छुपा रहे हैं।

5:62

وَتَرَىٰ كَثِيرًۭا مِّنْهُمْ يُسَـٰرِعُونَ فِى ٱلْإِثْمِ وَٱلْعُدْوَٰنِ وَأَكْلِهِمُ ٱلسُّحْتَ ۚ لَبِئْسَ مَا كَانُوا۟ يَعْمَلُونَ

व तरा कसीरम् मिन्हुम् युसारिअू-न फिल् इस्मि वल् अुदवानि व अक्लिहिमुस्सुह-त, लबिअ्-स मा कानू यअ्मलून
तथा आप उनमें से बहुतों को देखेंगे कि पाप तथा अत्याचार और अपने अवैध खाने में दौड़ रहे हैं। वे बड़ा कुकर्म कर रहे हैं।

5:63

لَوْلَا يَنْهَىٰهُمُ ٱلرَّبَّـٰنِيُّونَ وَٱلْأَحْبَارُ عَن قَوْلِهِمُ ٱلْإِثْمَ وَأَكْلِهِمُ ٱلسُّحْتَ ۚ لَبِئْسَ مَا كَانُوا۟ يَصْنَعُونَ

लौ ला यन्हाहुमुर्रब्बानिय्यू-न वल्-अह्बारू अन् क़ौलिहिमुल-इस्- म व अक्लिहिमुस्सुह् त, लबिअ्-स मा कानू यस् नअून
उन्हें उनके धर्माचारी तथा विद्वान पाप की बात करने तथा अवैध खाने से क्यों नहीं रोकते? वे बहुत बुरी रीति बना रहे हैं।

5:64

وَقَالَتِ ٱلْيَهُودُ يَدُ ٱللَّهِ مَغْلُولَةٌ ۚ غُلَّتْ أَيْدِيهِمْ وَلُعِنُوا۟ بِمَا قَالُوا۟ ۘ بَلْ يَدَاهُ مَبْسُوطَتَانِ يُنفِقُ كَيْفَ يَشَآءُ ۚ وَلَيَزِيدَنَّ كَثِيرًۭا مِّنْهُم مَّآ أُنزِلَ إِلَيْكَ مِن رَّبِّكَ طُغْيَـٰنًۭا وَكُفْرًۭا ۚ وَأَلْقَيْنَا بَيْنَهُمُ ٱلْعَدَٰوَةَ وَٱلْبَغْضَآءَ إِلَىٰ يَوْمِ ٱلْقِيَـٰمَةِ ۚ كُلَّمَآ أَوْقَدُوا۟ نَارًۭا لِّلْحَرْبِ أَطْفَأَهَا ٱللَّهُ ۚ وَيَسْعَوْنَ فِى ٱلْأَرْضِ فَسَادًۭا ۚ وَٱللَّهُ لَا يُحِبُّ ٱلْمُفْسِدِينَ

व क़ालतिल्-यहूदु यदुल्लाहि मग़्लूलतुन्, ग़ुल्लत् ऐदीहिम् व लुअिनू बिमा क़ालू • बल् यदाहु मब्सूततानि, युन्फ़िक़ु कै-फ़ यशा उ, व ल-यज़ीद्-न्न कसीरम् मिन्हुम् मा उन्ज़ि-ल इलै-क मिर्रब्बि-क तुग़्यानंव्-व कुफ्रन्, व अल्क़ै ना बैनहुमुल्-अदाव-त वल्ब़ग़्ज़ा-अ इला यौमिल् क़ियामति, कुल्लमा औक़दू नारल्-लिल्-हरबि अत्-फ़-अहल्लाहु, व यस्औ-न फिल्अर्ज़ि फ़सादन्, वल्लाहु ला युहिब्बुल् मुफ्सिदीन
तथा यहूदियों ने कहा कि अल्लाह के हाथ बंधे[1] हुए हैं, उन्हीं के हाथ बंधे हुए हैं और वे अपने इस कथन के कारण धिक्कार दिये गये हैं; बल्कि उसके दोनों हाथ खुले हुए हैं, वह जैसे चाहे, व्यय (खर्च) करता है और इनमें से अधिक्तर को, जो (क़ुर्आन) आपके पालनहार की ओर से आपपर उतारा गया है, उल्लंघन तथा कुफ़्र (अविश्वास) में अधिक कर देगा और हमने उनके बीच प्रलय के दिन तक के लिए शत्रुता तथा बैर डाल दिया है। जब कभी वे युध्द की अग्नि सुलगाते हैं, तो अल्लाह उसे बुझा[2] देता है। वे धरती में उपद्रव का प्रयास करते हैं और अल्लाह विद्रोहियों से प्रेम नहीं करता।

5:65

وَلَوْ أَنَّ أَهْلَ ٱلْكِتَـٰبِ ءَامَنُوا۟ وَٱتَّقَوْا۟ لَكَفَّرْنَا عَنْهُمْ سَيِّـَٔاتِهِمْ وَلَأَدْخَلْنَـٰهُمْ جَنَّـٰتِ ٱلنَّعِيمِ

व लौ अन्-न अह़्लल्-किताबि आमनू वत्तक़ौ ल-कफ्फर् ना अन्हुम् सय्यिआतिहिम् व ल-अद्ख़ल्नाहुम् जन्नातिन् नईम
और यदि अह्ले किताब ईमान लाते तथा अल्लाह से डरते, तो हम अवश्य उनके दोषों को क्षमा कर देते और उन्हें सुख के स्वर्गों में प्रवेश देते।

5:66

وَلَوْ أَنَّهُمْ أَقَامُوا۟ ٱلتَّوْرَىٰةَ وَٱلْإِنجِيلَ وَمَآ أُنزِلَ إِلَيْهِم مِّن رَّبِّهِمْ لَأَكَلُوا۟ مِن فَوْقِهِمْ وَمِن تَحْتِ أَرْجُلِهِم ۚ مِّنْهُمْ أُمَّةٌۭ مُّقْتَصِدَةٌۭ ۖ وَكَثِيرٌۭ مِّنْهُمْ سَآءَ مَا يَعْمَلُونَ

व लौ अन्नहुम् अक़ामुत्तौरा-त वल् इन्जी-ल व मा उन्ज़ि-ल इलैहिम् मिर्रब्बिहिम् ल-अ-कलू मिन् फौक़िहिम् व मिन् तह़्ति अर्जुलिहिम्, मिन्हुम् उम्मतुम् मुक़्तसि-दतुन्, व कसीरूम् मिन्हुम् सा-अ मा यअ्मलून
तथा यदि वे स्थापित[1] रखते तौरात और इंजील को और जो भी उनकी ओर उतारा गया है, उनके पालनहार की ओर से, तो अवश्य अपने ऊपर (आकाश) से तथा पैरों के नीचे (धरती) से[2], जीविका पाते। उनमें एक संतुलित समुदाय भी है और उनमें से बहुत-से कुकर्म कर रहे हैं।

5:67

 يٰٓاَيُّهَا الرَّسُوْلُ بَلِّغْ مَآ اُنْزِلَ اِلَيْكَ مِنْ رَّبِّكَ ۗوَاِنْ لَّمْ تَفْعَلْ فَمَا بَلَّغْتَ رِسٰلَتَهٗ ۗوَاللّٰهُ يَعْصِمُكَ مِنَ النَّاسِۗ اِنَّ اللّٰهَ لَا يَهْدِى الْقَوْمَ الْكٰفِرِيْنَ

या अय्युहर्रसूलु बल्लिग़् मा उन्ज़ि-ल इलै-क मिर्रब्बि-क, व इल्लम् तफ्अल् फ़मा बल्लग़्-त रिसाल-तहू, वल्लाहु यअ्सिमु-क मिनन्नासि, इन्नल्ला-ह ला यह़्दिल क़ौमल-काफ़िरीन
हे रसूल![1] जो कुछ आपपर आपके पालनहार की ओर से उतारा गया है, उसे (सबको) पहुँचा दें और यदि ऐसा नहीं किया, तो आपने उसका उपदेश नहीं पहुँचाया और अल्लाह (विरोधियों से) आपकी रक्षा करेगा[2], निश्चय अल्लाह काफ़िरों को मार्गदर्शन नहीं देता।

5:68

قُلْ يَـٰٓأَهْلَ ٱلْكِتَـٰبِ لَسْتُمْ عَلَىٰ شَىْءٍ حَتَّىٰ تُقِيمُوا۟ ٱلتَّوْرَىٰةَ وَٱلْإِنجِيلَ وَمَآ أُنزِلَ إِلَيْكُم مِّن رَّبِّكُمْ ۗ وَلَيَزِيدَنَّ كَثِيرًۭا مِّنْهُم مَّآ أُنزِلَ إِلَيْكَ مِن رَّبِّكَ طُغْيَـٰنًۭا وَكُفْرًۭا ۖ فَلَا تَأْسَ عَلَى ٱلْقَوْمِ ٱلْكَـٰفِرِينَ

क़ुल या अह़्लल्-किताबि लस्तुम् अला शैइन् हत्ता तुक़ीमुत्तौरा-त वल्-इन्ज़ी-ल व मा उन्ज़ि-ल इलैकुम मिर्रब्बिकुम्, व ल-यज़ीदन्-न कसीरम्-मिन्हुम् मा उन्ज़ि-ल इलै-क मिर्रब्बि-क तुग़्यानंव्-व कुफ्रन्, फला तअ्-स अलल् क़ौमिल-काफिरीन
(हे नबी!) आप कह दें कि हे अह्ले किताब! तुम किसी धर्म पर नहीं हो, जब तक तौरात तथा इंजील और उस (क़ुर्आन) की स्थापना[1] न करो, जो तुम्हारी ओर तुम्हारे पालनहार की ओर से उतारा गया है तथा उनमें से अधिक्तर को जो (क़ुर्आन) आपके पालनहार की ओर से उतारा गया है, अवश्य उल्लंघन तथा कुफ़्र (अविश्वास) में अधिक कर देगा। अतः, आप काफ़िरों (के अविश्वास) पर दुखी न हों।

5:69

إِنَّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَٱلَّذِينَ هَادُوا۟ وَٱلصَّـٰبِـُٔونَ وَٱلنَّصَـٰرَىٰ مَنْ ءَامَنَ بِٱللَّهِ وَٱلْيَوْمِ ٱلْـَٔاخِرِ وَعَمِلَ صَـٰلِحًۭا فَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ

इन्नल्लज़ी-न आमनू वल्लज़ी-न हादू वस्साबिऊ-न वन्नसारा मन् आम-न बिल्लाहि वल्यौमिल् आख़िरि व अमि-ल सालिहन फ़ला ख़ौफुन अलैहिम् व ला हुम् यह़्ज़नून
वास्तव में, जो ईमान लाये, जो यहूदी हुए, साबी तथा ईसाई, जो भी अल्लाह तथा अन्तिम दिन (प्रलय) पर ईमान लायेगा तथा सत्कर्म करेगा, तो उन्हीं के लिए कोई डर नहीं और न वे उदासीन[1] होंगे।

5:70

لَقَدْ أَخَذْنَا مِيثَـٰقَ بَنِىٓ إِسْرَٰٓءِيلَ وَأَرْسَلْنَآ إِلَيْهِمْ رُسُلًۭا ۖ كُلَّمَا جَآءَهُمْ رَسُولٌۢ بِمَا لَا تَهْوَىٰٓ أَنفُسُهُمْ فَرِيقًۭا كَذَّبُوا۟ وَفَرِيقًۭا يَقْتُلُونَ

ल-क़द् अख़ज़्ना मीसा-क़ बनी इस्राई-ल व अरसल्ना इलैहिम् रूसुलन्, कुल्लमा जाअहुम् रसूलुम् बिमा ला तह़्वा अन्फुसुहुम्, फ़रीक़न् कज़्ज़बू व फरीकंय्यक़्तुलून
हमने बनी इस्राईल से दृढ़ वचन लिया तथा उनके पास बहुत-से रसूल भेजे, (परन्तु) जब कभी कोई रसूल उनकी अपनी आकांक्षाओं के विरुध्द कुछ लाया, तो एक गिरोह को उन्होंने झुठला दिया तथा एक गिरोह को वध करते रहे।

5:71

وَحَسِبُوٓا۟ أَلَّا تَكُونَ فِتْنَةٌۭ فَعَمُوا۟ وَصَمُّوا۟ ثُمَّ تَابَ ٱللَّهُ عَلَيْهِمْ ثُمَّ عَمُوا۟ وَصَمُّوا۟ كَثِيرٌۭ مِّنْهُمْ ۚ وَٱللَّهُ بَصِيرٌۢ بِمَا يَعْمَلُونَ

व हसिबू अल्ला तकू-न फ़ित् नतुन् फ़-अमू व सम्मू सुम्-म ताबल्लाहु अलैहिम् सुम्-म अमू व सम्मू कसीरूम्-मिन्हुम्, वल्लाहु बसीरूम् बिमा यअ्मलून
तथा वे समझे कि कोई परीक्षा न होगी, इसलिए अंधे-बहरे हो गये, फिर अल्लाह ने उन्हें क्षमा कर दिया, फिर भी उनमें से अधिक्तर अंधे और बहरे हो गये तथा वे जो कुछ कर रहे हैं, अल्लाह उसे देख रहा है।

5:72

لَقَدْ كَفَرَ ٱلَّذِينَ قَالُوٓا۟ إِنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلْمَسِيحُ ٱبْنُ مَرْيَمَ ۖ وَقَالَ ٱلْمَسِيحُ يَـٰبَنِىٓ إِسْرَٰٓءِيلَ ٱعْبُدُوا۟ ٱللَّهَ رَبِّى وَرَبَّكُمْ ۖ إِنَّهُۥ مَن يُشْرِكْ بِٱللَّهِ فَقَدْ حَرَّمَ ٱللَّهُ عَلَيْهِ ٱلْجَنَّةَ وَمَأْوَىٰهُ ٱلنَّارُ ۖ وَمَا لِلظَّـٰلِمِينَ مِنْ أَنصَارٍۢ

ल-क़द् क-फरल्लज़ीन क़ालू इन्नल्ला-ह हुवल् – मसीहुब्नु मर-य-म, व क़ालल्मसीहु या बनी इस्राईल अ्बुदुल्ला-ह रब्बी व रब्बकुम, इन्नहू मंय्युश्रिक् बिल्लाहि फ़-क़द् हर्रमल्लाहु अलैहिल-जन्न-त व मअ्वाहुन्नारू, व मा लिज़्ज़ालिमी-न मिन् अन्सार
निश्चय वे काफ़िर हो गये, जिन्होंने कहा कि अल्लाह[1] मर्यम का पुत्र मसीह़ ही है। जबकि मसीह़ ने कहा थाः हे बनी इस्राईल! उस अल्लाह की इबादत (वंदना) करो, जो मेरा पालनहार तथा तुम्हारा पालनहार है, वास्तव में, जिसने अल्लाह का साझी बना लिया, उसपर अल्लाह ने स्वर्ग को ह़राम (वर्जित) कर दिया और उसका निवास स्थान नरक है तथा अत्याचारों का कोई सहायक न होगा।

5:73

لَّقَدْ كَفَرَ ٱلَّذِينَ قَالُوٓا۟ إِنَّ ٱللَّهَ ثَالِثُ ثَلَـٰثَةٍۢ ۘ وَمَا مِنْ إِلَـٰهٍ إِلَّآ إِلَـٰهٌۭ وَٰحِدٌۭ ۚ وَإِن لَّمْ يَنتَهُوا۟ عَمَّا يَقُولُونَ لَيَمَسَّنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ مِنْهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ

ल-क़द क-फरल्लज़ी-न क़ालू इन्नल्ला-ह सालिसु सलासतिन् • व मा मिन् इलाहिन् इल्ला इलाहुंव्वाहिदुन्, व इल्लम् यन्तहू अम्मा यक़ूलू-न ल-यमस्सन्नल्लज़ी-न क-फरू मिन्हुम् अज़ाबुन अलीम
निश्चय वे भी काफ़िर हो गये, जिन्होंने कहा कि अल्लाह तीन का तीसरा है! जबकि कोई पूज्य नहीं है, परन्तु वही अकेला पूज्य है और यदि वे जो कुछ कहते हैं, उससे नहीं रुके, तो उनमें से काफ़िरों को दुखदायी यातना होगी।

5:74

أَفَلَا يَتُوبُونَ إِلَى ٱللَّهِ وَيَسْتَغْفِرُونَهُۥ ۚ وَٱللَّهُ غَفُورٌۭ رَّحِيمٌۭ

अ-फ़ला यतूबू न इलल्लाहि व यस्तग़्फिरूनहू, वल्लाहु ग़फूरुर्रहीम
वे अल्लाह से तौबा तथा क्षमा याचना क्यों नहीं करते, जबकि अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है?

5:75

مَّا ٱلْمَسِيحُ ٱبْنُ مَرْيَمَ إِلَّا رَسُولٌۭ قَدْ خَلَتْ مِن قَبْلِهِ ٱلرُّسُلُ وَأُمُّهُۥ صِدِّيقَةٌۭ ۖ كَانَا يَأْكُلَانِ ٱلطَّعَامَ ۗ ٱنظُرْ كَيْفَ نُبَيِّنُ لَهُمُ ٱلْـَٔايَـٰتِ ثُمَّ ٱنظُرْ أَنَّىٰ يُؤْفَكُونَ

मल्मसीहुब्नु मर्-य-म इल्ला रसूलुन्, क़द् ख़-लत् मिन् क़ब्लिहिर्रुसुलु, व उम्मुहू सिद्दीक़तुन्, काना यअ्कुलानित्तआ-म, उन्ज़ुर् कै-फ नुबय्यिनु लहुमुल्-आयाति सुम्मन्ज़ुर् अन्ना युअ्फ़कून
मर्यम का पुत्र मसीह़ इसके सिवा कुछ नहीं कि वह एक रसूल है, उससे पहले भी बहुत-से रसूल हो चुके हैं, उसकी माँ सच्ची थी, दोनों भोजन करते थे, आप देखें कि हम कैसे उनके लिए निशानियाँ (एकेश्वरवाद के लक्षण) उजागर कर रहे हैं, फिर देखिए कि वे कहाँ बहके[1] जा रहे हैं?

5:76

قُلْ أَتَعْبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ مَا لَا يَمْلِكُ لَكُمْ ضَرًّۭا وَلَا نَفْعًۭا ۚ وَٱللَّهُ هُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلْعَلِيمُ

क़ुल अ-तअ्बुदून मिन् दूनिल्लाहि मा ला यम्लिकु लकुम् ज़र्रव् व ला नफ्अन्, वल्लाहु हुवस्समीअुल अलीम
आप उनसे कह दें कि क्या तुम अल्लाह के सिवा उसकी इबादत (वंदना) कर रहे हो, जो तुम्हें कोई हानि और लाभ नहीं पहुँचा सकता? तथा अल्लाह सब कुछ सुनने-जानने वाला है।

5:77

قُلْ يَـٰٓأَهْلَ ٱلْكِتَـٰبِ لَا تَغْلُوا۟ فِى دِينِكُمْ غَيْرَ ٱلْحَقِّ وَلَا تَتَّبِعُوٓا۟ أَهْوَآءَ قَوْمٍۢ قَدْ ضَلُّوا۟ مِن قَبْلُ وَأَضَلُّوا۟ كَثِيرًۭا وَضَلُّوا۟ عَن سَوَآءِ ٱلسَّبِيلِ

क़ुल या अह़्लल्-किताबि ला तग़्लू फ़ी दीनिकुम् ग़ैरल् -हक़्क़ि व ला तत्तबिअू अह़्वा-अ क़ौमिन् क़द् ज़ल्लू मिन् क़ब्लु व अज़ल्लू कसीरंव्-व ज़ल्लू अन् सवा-इस्सबील
(हे नबी!) कह दो कि हे अह्ले किताब! अपने धर्म में अवैध अति न करो[1] तथा उनकी अभिलाषाओं पर न चलो, जो तुमसे पहले कुपथ हो[2] चुके और बहुतों को कुपथ कर गये और संमार्ग से विचलित हो गये।

5:78

لُعِنَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ مِنۢ بَنِىٓ إِسْرَٰٓءِيلَ عَلَىٰ لِسَانِ دَاوُۥدَ وَعِيسَى ٱبْنِ مَرْيَمَ ۚ ذَٰلِكَ بِمَا عَصَوا۟ وَّكَانُوا۟ يَعْتَدُونَ

लुअिनल्लज़ी-न क-फरू मिम्-बनी इस्राई-ल अला लिसानि दावू-द व ईसब्-नि मर्-य-म, ज़ालि-क बिमा असौ व कानू यअ्तदून
बनी इस्राईल में से जो काफ़िर हो गये, वे दावूद तथा मर्यम के पुत्र ईसा की ज़बान पर धिक्कार दिये[1] गये, ये इस कारण कि उन्होंने अवज्ञा की तथी (धर्म की सीमा का) उल्लंघन कर रहे थे।

5:79

كَانُوا۟ لَا يَتَنَاهَوْنَ عَن مُّنكَرٍۢ فَعَلُوهُ ۚ لَبِئْسَ مَا كَانُوا۟ يَفْعَلُونَ

कानू ला य तनाहौ-न अम् मुन्करिन् फ़ अ़लूहु, लबिअ् -स मा कानू यफ्अलून
वे एक-दूसरे को किसी बुराई से, जो वे करते थे, रोकते नहीं थे, निश्चय वे बड़ी बुराई कर रहे थे[1]

5:80

تَرَىٰ كَثِيرًۭا مِّنْهُمْ يَتَوَلَّوْنَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ ۚ لَبِئْسَ مَا قَدَّمَتْ لَهُمْ أَنفُسُهُمْ أَن سَخِطَ ٱللَّهُ عَلَيْهِمْ وَفِى ٱلْعَذَابِ هُمْ خَـٰلِدُونَ

तरा कसीरम्-मिन्हुम् य-तवल्लौनल्लज़ी-न क-फरू, लबिअ्-स मा क़द्द-मत् लहुम् अन्फुसुहुम् अन् सख़ितल्लाहु अलैहिम् व फिल-अज़ाबि हुम् ख़ालिदून
आप उनमें से अधिक्तर को देखेंगे कि काफ़िरों को अपना मित्र बना रहे हैं। जो कर्म उन्होंने अपने लिए आगे भेजा है, बहुत बुरा है कि अल्लाह उनपर क्रुध्द हो गया तथा यातना में वही सदावासी होंगे।

5:81

وَلَوْ كَانُوا۟ يُؤْمِنُونَ بِٱللَّهِ وَٱلنَّبِىِّ وَمَآ أُنزِلَ إِلَيْهِ مَا ٱتَّخَذُوهُمْ أَوْلِيَآءَ وَلَـٰكِنَّ كَثِيرًۭا مِّنْهُمْ فَـٰسِقُونَ

व लौ कानू युअ्मिनू-न बिल्लाहि वन्नबिय्यि व मा उन्ज़ि-ल इलैहि मत्त ख़ज़ू हुम् औलिया-अ व लाकिन्-न कसीरम्-मिन्हुम् फ़ासिक़ून
और यदि वे अल्लाह पर तथा नबी पर और जो उनपर उतारा गया, उसपर ईमान लाते, तो उन्हें मित्र न बनाते[1], परन्तु उनमें अधिक्तर उल्लंघनकारी हैं।

5:82

 لَتَجِدَنَّ اَشَدَّ النَّاسِ عَدَاوَةً لِّلَّذِيْنَ اٰمَنُوا الْيَهُوْدَ وَالَّذِيْنَ اَشْرَكُوْاۚ وَلَتَجِدَنَّ اَقْرَبَهُمْ مَّوَدَّةً لِّلَّذِيْنَ اٰمَنُوا الَّذِيْنَ قَالُوْٓا اِنَّا نَصٰرٰىۗ ذٰلِكَ بِاَنَّ مِنْهُمْ قِسِّيْسِيْنَ وَرُهْبَانًا وَّاَنَّهُمْ لَا يَسْتَكْبِرُوْنَ ۔

ल-तजिदन्-न अशद्दन्नासि अदा-व तल्-लिल्लज़ी-न आमनुल्-यहू-द वल्लज़ी-न अश्रकू, व ल-तजिदन्-न अक़्र-बहुम् मवद्दतल-लिल्लज़ी-न आमनुल्लज़ी-न क़ालू इन्ना नसारा, ज़ालि-क बिअन्-न मिन्हुम किस्सीसी-न व रूह़्बानंव्-व अन्नहुम् ला यस्तक्बिरून
(हे नबी!) आप उनका, जो ईमान लाये हैं, सबसे कड़ा शत्रु यहूदियों तथा मिश्रणवादियों को पायेंगे और जो ईमान लाये हैं, उनके सबसे अधिक समीप आप उन्हें पायेंगे, जो अपने को ईसाई कहते हैं। ये बात इसलिए है कि उनमें उपासक तथा सन्यासी हैं और वे अभिमान[1] नहीं करते।

5:83

وَإِذَا سَمِعُوا۟ مَآ أُنزِلَ إِلَى ٱلرَّسُولِ تَرَىٰٓ أَعْيُنَهُمْ تَفِيضُ مِنَ ٱلدَّمْعِ مِمَّا عَرَفُوا۟ مِنَ ٱلْحَقِّ ۖ يَقُولُونَ رَبَّنَآ ءَامَنَّا فَٱكْتُبْنَا مَعَ ٱلشَّـٰهِدِينَ

व इज़ा समिअू मा उन्ज़ि-ल इलर्रसूलि तरा अअ्यु- नहुम् तफ़ीज़ु मिनद्दम्अि मिम्मा अ-रफू मिनल्-हक़्क़ि, यक़ूलू-न रब्बना आमन्ना फ़क़्तुब्ना मअश्शाहिदीन
तथा जब वे (ईसाई) उस (क़ुर्आन) को सुनते हैं, जो रसूल पर उतरा है, तो आप देखते हैं कि उनकी आँखें आँसू से उबल रही हैं, उस सत्य के कारण, जिसे उन्होंने पहचान लिया है। वे कहते हैं, हे हमारे पालनहार! हम ईमान ले आये, अतः हमें (सत्य) के साथियों में लिख[1] ले।

5:84

وَمَا لَنَا لَا نُؤْمِنُ بِٱللَّهِ وَمَا جَآءَنَا مِنَ ٱلْحَقِّ وَنَطْمَعُ أَن يُدْخِلَنَا رَبُّنَا مَعَ ٱلْقَوْمِ ٱلصَّـٰلِحِينَ

व मा लना ला नुअ्मिनु बिल्लाहि व मा जा-अना मिनल-हक़्क़ि, व नत्मअु अंय्युद्ख़ि-लना रब्बुना मअल् क़ौमिस्सालिहीन
(तथा कहते हैं) क्या कारण है कि हम अल्लाह पर तथा इस सत्य (क़ुर्आन) पर ईमान (विश्वास) न करें? और हम आशा रखते हैं कि हमारा पालनहार हमें सदाचारियों में सम्मिलित कर देगा।

5:85

فَأَثَـٰبَهُمُ ٱللَّهُ بِمَا قَالُوا۟ جَنَّـٰتٍۢ تَجْرِى مِن تَحْتِهَا ٱلْأَنْهَـٰرُ خَـٰلِدِينَ فِيهَا ۚ وَذَٰلِكَ جَزَآءُ ٱلْمُحْسِنِينَ

फ़-असाबहुमुल्लाहु बिमा क़ालू जन्नातिन् तज्री मिन् तह़्तिहल्-अन्हारू ख़ालिदी-न फ़ीहा, व ज़ालि-क जज़ाउल मुह़्सिनीन
तो अल्लाह ने उनके ये कहने के कारण उन्हें ऐसे स्वर्ग प्रदान कर दिये, जिनमें नहरें प्रवाहित हैं, वे उनमें सदावासी होंगे तथा यही सत्कर्मियों का प्रतिफल (बदला) है।

5:86

وَٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ وَكَذَّبُوا۟ بِـَٔايَـٰتِنَآ أُو۟لَـٰٓئِكَ أَصْحَـٰبُ ٱلْجَحِيمِ

वल्लज़ी-न क-फरू व कज़्ज़बू बिआयातिना उलाइ-क अस्हाबुल जहीम
तथा जो काफ़िर हो गये और हमारी आयतों को झुठला दिया, तो वही नारकी हैं।

5:87

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ لَا تُحَرِّمُوا۟ طَيِّبَـٰتِ مَآ أَحَلَّ ٱللَّهُ لَكُمْ وَلَا تَعْتَدُوٓا۟ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُحِبُّ ٱلْمُعْتَدِينَ

या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तुहर्रिमू तय्यिबाति मा अ -हल्लल्लाहु लकुम् व ला तअ्तदू, इन्नल्ला-ह ला युहिब्बुल् मुअ्तदीन
हे ईमान वालो! उन स्वच्छ पवित्र चीजों को जो अल्लाह ने तुम्हारे लिए ह़लाल (वैध) की हैं, ह़राम (अवैध)[1] न करो और सीमा का उल्लंघन न करो। निःसंदेह अल्लाह उल्लंघनकारियों[2] से प्रेम नहीं करता।

5:88

وَكُلُوا۟ مِمَّا رَزَقَكُمُ ٱللَّهُ حَلَـٰلًۭا طَيِّبًۭا ۚ وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ ٱلَّذِىٓ أَنتُم بِهِۦ مُؤْمِنُونَ

व कुलू मिम्मा र-ज़-क़ कुमुल्लाहु हलालन् तय्यिबंव् वत्तक़ुल्लाहल्लज़ी अन्तुम् बिही मुअ्मिनून
तथा उसमें से खाओ, जो ह़लाल (वैध) स्वच्छ चीज़ अल्लाह ने तुम्हें प्रदान की हैं तथा अल्लाह (की अवज्ञा) से डरते रहो, यदि तुम उसीपर ईमान (विश्वास) रखते हो।

5:89

لَا يُؤَاخِذُكُمُ ٱللَّهُ بِٱللَّغْوِ فِىٓ أَيْمَـٰنِكُمْ وَلَـٰكِن يُؤَاخِذُكُم بِمَا عَقَّدتُّمُ ٱلْأَيْمَـٰنَ ۖ فَكَفَّـٰرَتُهُۥٓ إِطْعَامُ عَشَرَةِ مَسَـٰكِينَ مِنْ أَوْسَطِ مَا تُطْعِمُونَ أَهْلِيكُمْ أَوْ كِسْوَتُهُمْ أَوْ تَحْرِيرُ رَقَبَةٍۢ ۖ فَمَن لَّمْ يَجِدْ فَصِيَامُ ثَلَـٰثَةِ أَيَّامٍۢ ۚ ذَٰلِكَ كَفَّـٰرَةُ أَيْمَـٰنِكُمْ إِذَا حَلَفْتُمْ ۚ وَٱحْفَظُوٓا۟ أَيْمَـٰنَكُمْ ۚ كَذَٰلِكَ يُبَيِّنُ ٱللَّهُ لَكُمْ ءَايَـٰتِهِۦ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ

ला युआख़िज़ुकुमुल्लाहु बिल्लग़्वि फ़ी ऐमानिकुम् व लाकिंयु आख़िज़ुकुम बिमा अक़्क़त्तुमुल्-ऐमा न, फ़-कफ्फारतुहू इत्आमु अ-श-रति मसाकी-न मिन् औ- सति मा तुत्अिमू-न अह़्लीकुम् औ किस्वतुहुम् औ तह़रीरू र-क़-बतिन्, फ़-मल्लम् यजिद् फ़सियामु सलासति अय्यामिन्, ज़ालि-क कफ्फारतु ऐमानिकुम् इज़ा हलफ्तुम्, वह्फ़ज़ू ऐमानकुम्, कज़ालि-क युबय्यिनुल्लाहु लकुम् आयातिही लअल्लकुम् तश्कुरून
अल्लाह तुम्हें तुम्हारी व्यर्थ शपथों[1] पर नहीं पकड़ता, परन्तु जो शपथ जान-बूझ कर ली हो, उसपर रकड़ता है, तो उसका[2] प्रायश्चित दस निर्धनों को भोजन कराना है, उस माध्यमिक भोजन में से, जो तुम अपने परिवार को खिलाते हो अथवा उन्हें वस्त्र दो अथवा एक दास मुक्त करो और जिसे ये सब उपलब्ध न हो, तो तीन दिन रोज़ा रखना है। ये तुम्हारी शपथों का प्रायश्चित है, जब तुम शपथ लो तथा अपनी शपथों की रक्षा करो, इसी प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतों (आदेशों) का वर्णन करता है, ताकि तुम उसका उपकार मानो।

5:90

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ إِنَّمَا ٱلْخَمْرُ وَٱلْمَيْسِرُ وَٱلْأَنصَابُ وَٱلْأَزْلَـٰمُ رِجْسٌۭ مِّنْ عَمَلِ ٱلشَّيْطَـٰنِ فَٱجْتَنِبُوهُ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ

या अय्युहल्लज़ी-न आमनू इन्नमल्-ख़म्रू वल्मैसिरू वल् अन्साबु वल अज़्लामु रिज्सुम्-मिन् अ-मलिश्शैतानि फज्तनिबूहु लअल्लकुम् तुफ्लिहून
हे ईमान वालो! निःसंदेह[1] मदिरा, जुआ, देवस्थान[2] और पाँसे[3] शैतानी मलिन कर्म हैं, अतः इनसे दूर रहो, ताकि तुम सफल हो जाओ।

5:91

إِنَّمَا يُرِيدُ ٱلشَّيْطَـٰنُ أَن يُوقِعَ بَيْنَكُمُ ٱلْعَدَٰوَةَ وَٱلْبَغْضَآءَ فِى ٱلْخَمْرِ وَٱلْمَيْسِرِ وَيَصُدَّكُمْ عَن ذِكْرِ ٱللَّهِ وَعَنِ ٱلصَّلَوٰةِ ۖ فَهَلْ أَنتُم مُّنتَهُونَ

इन्नमा युरीदुश्शैतानु अंय्यूक़ि-अ बैनकुमुल् अदा-व-त वल्-बग़्ज़ा-अ फ़िल्ख़म्रि वल्मैसिरि व यसुद्दकुम् अन् ज़िक्रिल्लाहि व अनि स्सलाति, फ़-हल् अन्तुम् मुन्तहून
शैतान तो यही चाहता है कि शराब (मदिरा) तथा जूए द्वारा तुम्हारे बीच बैर तथा द्वेष डाल दे और तुम्हें अल्लाह की याद तथा नमाज़ से रोक दे, तो क्या तुम रुकोगे या नहीं?

5:92

وَأَطِيعُوا۟ ٱللَّهَ وَأَطِيعُوا۟ ٱلرَّسُولَ وَٱحْذَرُوا۟ ۚ فَإِن تَوَلَّيْتُمْ فَٱعْلَمُوٓا۟ أَنَّمَا عَلَىٰ رَسُولِنَا ٱلْبَلَـٰغُ ٱلْمُبِينُ

व अतीअुल्ला-ह व अतीअुर्रसू-ल वह्ज़रू, फ़-इन् तवल्लैतुम् फअ्लमू अन्नमा अला रसूलिनल् बलागुल् मुबीन
तथा अल्लाह के आज्ञाकारी रहो, उसके रसूल के आज्ञाकारी रहो तथा (उनकी अवज्ञा से) सावधान रहो। यदि तुम विमुख हुए, तो जान लो कि हमारे रसूल पर केवल खुला उपदेश पहुँचा देना है।

5:93

لَيْسَ عَلَى ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ جُنَاحٌۭ فِيمَا طَعِمُوٓا۟ إِذَا مَا ٱتَّقَوا۟ وَّءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ ثُمَّ ٱتَّقَوا۟ وَّءَامَنُوا۟ ثُمَّ ٱتَّقَوا۟ وَّأَحْسَنُوا۟ ۗ وَٱللَّهُ يُحِبُّ ٱلْمُحْسِنِينَ

लै-स अलल्लज़ी-न आमनू व अमिलुस्सालिहाति जुनाहुन् फ़ीमा तअिमू इज़ा मत्तक़ौ व आमनू व अमिलुस्-सालिहाति सुम्मत्तक़ौ व आमनू सुम्मत्तक़ौ व अह्सनू, वल्लाहु युहिब्बुल मुह्सिनीन
उनपर जो ईमान लाये तथा सदाचार करते रहे, उसमें कोई दोष नहीं, जो (निषेधाज्ञा से पहले) खा लिया, जब वे अल्लाह से डरते रहे, ईमान पर स्थिर रहे, सत्कर्म करते रहे, फिर डरते और सत्कर्म करते रहे, फिर (रोके गये तो) अल्लाह से डरे और सदाचार करते रहे। अल्लाह सदाचारियों से प्रेम करता[1] है।

5:94

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ لَيَبْلُوَنَّكُمُ ٱللَّهُ بِشَىْءٍۢ مِّنَ ٱلصَّيْدِ تَنَالُهُۥٓ أَيْدِيكُمْ وَرِمَاحُكُمْ لِيَعْلَمَ ٱللَّهُ مَن يَخَافُهُۥ بِٱلْغَيْبِ ۚ فَمَنِ ٱعْتَدَىٰ بَعْدَ ذَٰلِكَ فَلَهُۥ عَذَابٌ أَلِيمٌۭ

या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ल-यब्लुवन्न-कुमुल्लाहु बिशैइम् मिनस्सैदि तनालुहू ऐदीकुम् व रिमाहुकुम् लि-यअ्-लमल्लाहु मंय्यख़ाफुहू बिल्गैबि फ़-मनिअ्तदा बअ्-द ज़ालि-क फ़-लहू अज़ाबुन् अलीम
हे ईमान वालो! अल्लाह कुछ शिकार द्वारा जिन तक तुम्हारे हाथ तथा भाले पहुँचेंगे, अवश्य तुम्हारी परीक्षा लेगा, ताकि ये जान ले कि तुममें से कौन उससे बिन देखे डरता है? फिर इस (आदेश) के पश्चात् जिसने (इसका) उल्लंघन किया, तो उसी के लिए दुःखदायी यातना है।

5:95

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ لَا تَقْتُلُوا۟ ٱلصَّيْدَ وَأَنتُمْ حُرُمٌۭ ۚ وَمَن قَتَلَهُۥ مِنكُم مُّتَعَمِّدًۭا فَجَزَآءٌۭ مِّثْلُ مَا قَتَلَ مِنَ ٱلنَّعَمِ يَحْكُمُ بِهِۦ ذَوَا عَدْلٍۢ مِّنكُمْ هَدْيًۢا بَـٰلِغَ ٱلْكَعْبَةِ أَوْ كَفَّـٰرَةٌۭ طَعَامُ مَسَـٰكِينَ أَوْ عَدْلُ ذَٰلِكَ صِيَامًۭا لِّيَذُوقَ وَبَالَ أَمْرِهِۦ ۗ عَفَا ٱللَّهُ عَمَّا سَلَفَ ۚ وَمَنْ عَادَ فَيَنتَقِمُ ٱللَّهُ مِنْهُ ۗ وَٱللَّهُ عَزِيزٌۭ ذُو ٱنتِقَامٍ

या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तक़्तुलुस्सै द व अन्तुम् हुरूमुन्, व मन् क़-त-लहू मिन्कुम् मु-तअ़म्मिदन फ-जज़ाउम्-मिस्लु मा क़-त-ल मिनन्न अ़मि यह़्कुमु बिही ज़वा अद् लिम्-मिन्कु म् हद् यम् बालिग़ल कअ्-बति औ कफ़्फ़ारतुन् तआ़मु मसाकी-न औ अद्लु ज़ालि-क सियामल्-लियज़ू-क़ व बा-ल अम्रिही, अफ़ल्लाहु अम्मा स-लफ, व मन् आ द फ़-यन्तक़िमुल्लाहु मिन्हु, वल्लाहु अज़ीजुन जुन्तिक़ाम
हे ईमान वलो! शिकार न करो[1], जब तुम एह़राम की स्थिति में रहो तथा तुममें से जो कोई जान-बूझ कर ऐसा कर जाये, तो पालतू पशु से शिकार किये पशु जैसा बदला (प्रतिकार) है, जिसका निर्णय तुममें से दो न्यायकारी व्यक्ति करेंगे, जो काबा तक हद्य (उपहार स्वरूप) भेजा जाये। अथवा[2] प्रायश्चित है, जो कुछ निर्धनों का खाना अथवा उसके बराबर रोज़े रखना है। ताकि अपने किये का दुष्परिणाम चखो। इस आदेश से पूर्व जो हुआ, अल्लाह ने उसे क्षमा कर दिया और जो फिर करेगा, अल्लाह उससे बदला लेगा और अल्लाह प्रभुत्वशाली बदला लेने वाला है।

5:96

أُحِلَّ لَكُمْ صَيْدُ ٱلْبَحْرِ وَطَعَامُهُۥ مَتَـٰعًۭا لَّكُمْ وَلِلسَّيَّارَةِ ۖ وَحُرِّمَ عَلَيْكُمْ صَيْدُ ٱلْبَرِّ مَا دُمْتُمْ حُرُمًۭا ۗ وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ ٱلَّذِىٓ إِلَيْهِ تُحْشَرُونَ

उहिल-ल लकुम सैदुल्बह्-रि व तआमुहू मताअल्लकुम् व लिस्सय्या-रति, व हुर्रि-म अ़लैकुम् सैदुल्बर्रि मा दुम्तुम् हुरूमन्, वत्तक़ुल्लाहल्लज़ी इलैहि तुह़्शरून
तथा तुम्हारे लिए जल का शिकार और उसका खाद्य[1] ह़लाल (वैध) कर दिया गया है, तुम्हारे तथा यात्रियों के लाभ के लिए तथा तुमपर थल का शिकार जब तक एह़राम की स्थिति में रहो, ह़राम (अवैध) कर दिया गया है और अल्लाह (की अवज्ञा) से डरते रहो, जिसकी ओर तुम सभी एकत्र किये जाओगे।

5:97

جَعَلَ اللّٰهُ الْكَعْبَةَ الْبَيْتَ الْحَرَامَ قِيٰمًا لِّلنَّاسِ وَالشَّهْرَ الْحَرَامَ وَالْهَدْيَ وَالْقَلَاۤىِٕدَ ۗذٰلِكَ لِتَعْلَمُوْٓا اَنَّ اللّٰهَ يَعْلَمُ مَا فِى السَّمٰوٰتِ وَمَا فِى الْاَرْضِۙ وَاَنَّ اللّٰهَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيْمٌ

ज-अलल्लाहुल कअ्-बतल् बैतल्-हरा-म क़ियामल् लिन्नासि वश्शह्-रल्-हरा-म वल्हद्-य वल्क़लाइ-द, ज़ालि-क लितअ्लमू अन्नल्ला-ह यअ्लमु मा फिस्समावाति व मा फिल्अर्ज़ि व अन्नल्ला-ह बिकुल्लि शैइन् अलीम
अल्लाह ने आदरणीय घर काबा को लोगों के लिए (शांति तथा एकता की) स्थापना का साधन बना दिया है तथा आदरणीय मासों[1] और (ह़ज) की क़ुर्बानी तथा क़ुर्बानी के पशुओं को, जिन्हें पट्टे पहनाये गये हों। ये इसलिए किया गया ताकि तुम्हें ज्ञान हो जाये कि अल्लाह, जो कुछ आकाशों और जो कुछ धरती में है, सबको जानता है। तथा निःसंदेह अल्लाह प्रत्येक विषय का ज्ञानी है।

5:98

ٱعْلَمُوٓا۟ أَنَّ ٱللَّهَ شَدِيدُ ٱلْعِقَابِ وَأَنَّ ٱللَّهَ غَفُورٌۭ رَّحِيمٌۭ

इअ्लमू अन्नल्ला-ह शदीदुल् अिक़ाबि व अन्नल्लाहा-ह ग़फूरुर्रहीम
तुम जान लो कि अल्लाह कड़ा दण्ड देने वाला है और ये कि अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् (भी) है।

5:99

مَّا عَلَى ٱلرَّسُولِ إِلَّا ٱلْبَلَـٰغُ ۗ وَٱللَّهُ يَعْلَمُ مَا تُبْدُونَ وَمَا تَكْتُمُونَ

मा अलर्रसूलि इल्लल्-बलाग़ु, वल्लाहु यअ्लमु मा तुब्दू-न व मा तक्तुमून
अल्लाह के रसूल का दायित्व इसके सिवा कुछ नहीं कि उपदेश पहुँचा दे और अल्लाह जो तुम बोलते और जो मन में रखते हो, सब जानता है।

5:100

قُل لَّا يَسْتَوِى ٱلْخَبِيثُ وَٱلطَّيِّبُ وَلَوْ أَعْجَبَكَ كَثْرَةُ ٱلْخَبِيثِ ۚ فَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ يَـٰٓأُو۟لِى ٱلْأَلْبَـٰبِ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ

क़ुल् ला यस्तविल्-ख़बीसु वत्तय्यिबु व लौ अअ्ज-ब-क कस् रतुल ख़बीसि, फत्तक़ुल्ला-ह या उलिल्-अल्बाबि लअ़ल्लकुम् तुफ्लिहून
(हे नबी!) कह दो कि मलिन तथा पवित्र समान नहीं हो सकते। यद्यपि मलिन की अधिक्ता तुम्हें भा रही हो। तो हे मतिमानो! अल्लाह (की अवज्ञा) से डरो, ताकि तुम सफल हो जाओ[1]

5:101

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ لَا تَسْـَٔلُوا۟ عَنْ أَشْيَآءَ إِن تُبْدَ لَكُمْ تَسُؤْكُمْ وَإِن تَسْـَٔلُوا۟ عَنْهَا حِينَ يُنَزَّلُ ٱلْقُرْءَانُ تُبْدَ لَكُمْ عَفَا ٱللَّهُ عَنْهَا ۗ وَٱللَّهُ غَفُورٌ حَلِيمٌۭ

या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तस्अलू अन् अश्या-अ इन् तुब्-द लकुम् तसुअ्कुम्, व इन् तस्अलू अन्हा ही-न युनज़्ज़लुल-क़ुरआनु तुब्-द लकुम्, अफ़ल्लाहु अन्हा, वल्लाहु ग़फूरून् हलीम
हे ईमान वालो! ऐसी बहुत सी चीज़ों के विषय में प्रश्न न करो, जो यदि तुम्हें बता दी जायें, तो तुम्हें बुरा लग जाये तथा यदि तुम, उनके विषय में, जबकि क़ुर्आन उतर रहा है, प्रश्न करोगे, तो वो तुम्हारे लिए खोल दी जायेंगी। अल्लाह ने तुम्हें क्षमा कर दिया और अल्लाह अति क्षमाशील सहनशील[1] है।

5:102

قَدْ سَأَلَهَا قَوْمٌۭ مِّن قَبْلِكُمْ ثُمَّ أَصْبَحُوا۟ بِهَا كَـٰفِرِينَ

क़द् स-अ-लहा क़ौमुम् मिन् क़ब्लिकुम् सुम्-म अस्बहू बिहा काफ़िरीन
ऐसे ही प्रश्न एक समुदाय ने तुमसे पहले[1] किये, फिर इसके कारण वे काफ़िर हो गये।

5:103

مَا جَعَلَ ٱللَّهُ مِنۢ بَحِيرَةٍۢ وَلَا سَآئِبَةٍۢ وَلَا وَصِيلَةٍۢ وَلَا حَامٍۢ ۙ وَلَـٰكِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ يَفْتَرُونَ عَلَى ٱللَّهِ ٱلْكَذِبَ ۖ وَأَكْثَرُهُمْ لَا يَعْقِلُونَ

मा ज-अलल्लाहु मिम् बही-रतिंव् व ला साइ-बतिंव्-व ला वसीलतिंव्-व ला हामिंव्-व लाकिन्नल्लज़ी-न क-फरू यफ्तरू-न अलल्लाहिल्-कज़ि-ब, व अक्सरूहुम् ल यअ्क़िलून
अल्लाह ने बह़ीरा, साइबा, वसीला और ह़ाम, कुछ नहीं बनाया[1] है, परन्तु जो काफ़िर हो गये वे अल्लाह पर झूठ घड़ रहे हैं और उनमें अधिक्तर निर्बोध हैं।

5:104

وَإِذَا قِيلَ لَهُمْ تَعَالَوْا۟ إِلَىٰ مَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ وَإِلَى ٱلرَّسُولِ قَالُوا۟ حَسْبُنَا مَا وَجَدْنَا عَلَيْهِ ءَابَآءَنَآ ۚ أَوَلَوْ كَانَ ءَابَآؤُهُمْ لَا يَعْلَمُونَ شَيْـًۭٔا وَلَا يَهْتَدُونَ

व इज़ा क़ी-ल लहुम् तआ़लौ इला मा अन्ज़लल्लाहु व इलर्रसूलि क़ालू हस्बुना मा वजद्ना अलैहि आबा-अना, अ-व लौ का-न आबाउहुम् ला यअ्लमू-न शैअंव्-व ला यह्तदून
और जब उनसे कहा जाता है कि उसकी ओर आओ, जो अल्लाह ने उतारा है तथा रसूल की ओर (आओ), तो कहते हैं, हमें वही बस है, जिसपर हमने अपने पूर्वजों को पाया है, क्या उनके पूर्वज कुछ न जानते रहे हों और न संमार्ग पर रहे हों (तब भी वे उन्हीं के रास्ते पर चलेंगे)?

5:105

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ عَلَيْكُمْ أَنفُسَكُمْ ۖ لَا يَضُرُّكُم مَّن ضَلَّ إِذَا ٱهْتَدَيْتُمْ ۚ إِلَى ٱللَّهِ مَرْجِعُكُمْ جَمِيعًۭا فَيُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ

या अय्युहल्लज़ी-न आमनू अलैकुम् अन्फु-सकुम्, ला यज़ुर्रूकुम् मन् ज़ल-ल इज़ह्तदैतुम्, इलल्लाहि मर्जिअुकुम् जमीअ़न् फ़युनब्बिउकुम् बिमा कुन्तुम् तअ्मलून
हे ईमान वालो! तुम अपनी चिन्ता करो, तुम्हें वे हानि नहीं पहुँचा सकेंगे, जो कुपथ हो गये, जब तुम सुपथ पर रहो। अल्लाह की ओर तुम सबको (परलोक में) फिर कर जाना है, फिर वह तुम्हें तुम्हारे[1] कर्मों से सूचित कर देगा।

5:106

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ شَهَـٰدَةُ بَيْنِكُمْ إِذَا حَضَرَ أَحَدَكُمُ ٱلْمَوْتُ حِينَ ٱلْوَصِيَّةِ ٱثْنَانِ ذَوَا عَدْلٍۢ مِّنكُمْ أَوْ ءَاخَرَانِ مِنْ غَيْرِكُمْ إِنْ أَنتُمْ ضَرَبْتُمْ فِى ٱلْأَرْضِ فَأَصَـٰبَتْكُم مُّصِيبَةُ ٱلْمَوْتِ ۚ تَحْبِسُونَهُمَا مِنۢ بَعْدِ ٱلصَّلَوٰةِ فَيُقْسِمَانِ بِٱللَّهِ إِنِ ٱرْتَبْتُمْ لَا نَشْتَرِى بِهِۦ ثَمَنًۭا وَلَوْ كَانَ ذَا قُرْبَىٰ ۙ وَلَا نَكْتُمُ شَهَـٰدَةَ ٱللَّهِ إِنَّآ إِذًۭا لَّمِنَ ٱلْـَٔاثِمِينَ

या अय्युहल्लज़ी-न आमनू शहादतु बैनिकुम् इजा ह-ज़-र अ-ह-द कुमुल्मौतु हीनल्-वसिय्यति इस्नानि ज़वा अ़द्लिम् मिन्कुम् औ आख़रानि मिन् ग़ैरिकुम् इन अन्तुम् ज़रब्तुम् फ़िल्अर्ज़ि फ़ असाबत्कुम् मुसीबतुल्मौति, तह़्बिसूनहुमा मिम्-बअ्दिस्सलाति फ़युक़्सिमानि बिल्लाहि इनिर्तब्तुम् ला नश्तरी बिही स-मनंव् व लौ का-नज़ा कुर्बा, व ला नक़्तुमु शहा-दतल्लाहि इन्ना इज़ल् लमिनल् आसिमीन
हे ईमान वालो! यदि किसी के मरण का समय हो, तो वसिय्यत[1] के समय तुममें से दो न्यायकारियों को अथवा तुम्हारे सिवा दो अन्य व्यक्तियों को गवाह बनाये, यदि तुम धरती में यात्रा कर रहे हो और तुम्हें मरण की आपदा आ पहुँचे। उन दोनों को नमाज़ के बाद रोक लो, फिर वे दोनों अल्लाह की शपथ लें, यदि तुम्हें उनपर संदेह हो। वे ये कहें कि हम गवाही के द्वारा कोई मूल्य नहीं खरीदते, यद्यपि वे समीपवर्ती क्यों न हों और न हम अल्लाह की गवाही को छुपाते हैं, यदि हम ऐसा करें, तो हम पापियों में हैं।

5:107

فَإِنْ عُثِرَ عَلَىٰٓ أَنَّهُمَا ٱسْتَحَقَّآ إِثْمًۭا فَـَٔاخَرَانِ يَقُومَانِ مَقَامَهُمَا مِنَ ٱلَّذِينَ ٱسْتَحَقَّ عَلَيْهِمُ ٱلْأَوْلَيَـٰنِ فَيُقْسِمَانِ بِٱللَّهِ لَشَهَـٰدَتُنَآ أَحَقُّ مِن شَهَـٰدَتِهِمَا وَمَا ٱعْتَدَيْنَآ إِنَّآ إِذًۭا لَّمِنَ ٱلظَّـٰلِمِينَ

फ-इन् अुसि-र अला अन्नहुमस्तहक़्क़ा इस्मन् फ़-आख़रानि यक़ू मानि मक़ा-महुमा मिनल्लज़ी नस् -तहक़्-क़ अलैहिमुल्-औलयानि फयुक़्सिमानि बिल्लाहि ल शहादतुना अहक़्क़ु मिन् शहादतिहिमा व मअ्तदैना, इन्ना इज़ल् लमिनज़्ज़ालिमीन
फिर यदि ज्ञान हो जाये कि वे दोनों (साक्षी) किसी पाप के अधिकारी हुए हैं, तो उन दोनों के स्थान पर दो अन्य गवाह खड़े हो जायेँ, उनमें से, जिनका अधिकार पहले दोनों ने दबाया है और वे दोनों शपथ लें कि हमारी गवाही उन दोनों की गवाही से अधिक सही है और हमने कोई अत्याचार नहीं किया है। यदि किया है, तो (निःसंदेह) हम अत्याचारी हैं।

5:108

ذَٰلِكَ أَدْنَىٰٓ أَن يَأْتُوا۟ بِٱلشَّهَـٰدَةِ عَلَىٰ وَجْهِهَآ أَوْ يَخَافُوٓا۟ أَن تُرَدَّ أَيْمَـٰنٌۢ بَعْدَ أَيْمَـٰنِهِمْ ۗ وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَٱسْمَعُوا۟ ۗ وَٱللَّهُ لَا يَهْدِى ٱلْقَوْمَ ٱلْفَـٰسِقِينَ

ज़ालि-क अद्ना अंय्यअ्तू बिश्शहा-दति अला वज्हिहा औ यख़ाफू अन् तुरद्-द ऐमानुम् बअ् द ऐमानिहिम्, वत्तक़ुल्ला-ह वस्मअू, वल्लाहु ला यह़्दिल् क़ौमल् फ़ासिक़ीन
इस प्रकार अधिक आशा है कि वे सही गवाही देंगे अथवा इस बात से डरेंगे कि उनकी शपथों को दूसरी शपथों के पश्चात् न माना जाये। अल्लाह से डरते रहो, (उसका आदेश) सुनो और अल्लाह उल्लंघनकारियों को सीधी राह नहीं[1] दिखाता।

5:109

يَوْمَ يَجْمَعُ اللّٰهُ الرُّسُلَ فَيَقُوْلُ مَاذَٓا اُجِبْتُمْ ۗ قَالُوْا لَا عِلْمَ لَنَا ۗاِنَّكَ اَنْتَ عَلَّامُ الْغُيُوْبِ

यौ-म यज्म अुल्लाहुर्रूसु-ल फ़-यक़ूलु माज़ा उजिब्तुम्, क़ालू ला अिल्-म लना, इन्न-क अन्-त अल्लामुल्- ग़ुयूब
जिस दिन अल्लाह सब रसूलों को एकत्र करेगा, फिर उनसे कहेगा कि तुम्हें (तुम्हारी जातियों की ओर से) क्या उत्तर दिया गया? वे कहेंगे कि हमें इसका कोई ज्ञान[1] नहीं। निःसंदेह तू ही सब छुपे तथ्यों का ज्ञानी है।

5:110

إِذْ قَالَ ٱللَّهُ يَـٰعِيسَى ٱبْنَ مَرْيَمَ ٱذْكُرْ نِعْمَتِى عَلَيْكَ وَعَلَىٰ وَٰلِدَتِكَ إِذْ أَيَّدتُّكَ بِرُوحِ ٱلْقُدُسِ تُكَلِّمُ ٱلنَّاسَ فِى ٱلْمَهْدِ وَكَهْلًۭا ۖ وَإِذْ عَلَّمْتُكَ ٱلْكِتَـٰبَ وَٱلْحِكْمَةَ وَٱلتَّوْرَىٰةَ وَٱلْإِنجِيلَ ۖ وَإِذْ تَخْلُقُ مِنَ ٱلطِّينِ كَهَيْـَٔةِ ٱلطَّيْرِ بِإِذْنِى فَتَنفُخُ فِيهَا فَتَكُونُ طَيْرًۢا بِإِذْنِى ۖ وَتُبْرِئُ ٱلْأَكْمَهَ وَٱلْأَبْرَصَ بِإِذْنِى ۖ وَإِذْ تُخْرِجُ ٱلْمَوْتَىٰ بِإِذْنِى ۖ وَإِذْ كَفَفْتُ بَنِىٓ إِسْرَٰٓءِيلَ عَنكَ إِذْ جِئْتَهُم بِٱلْبَيِّنَـٰتِ فَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ مِنْهُمْ إِنْ هَـٰذَآ إِلَّا سِحْرٌۭ مُّبِينٌۭ

इज़् क़ालल्लाहु या ईसब्-न मरयमज़्कुर् निअ्मती अलै-क व अला वालिदति-क. इज़् अय्यत्तु-क बिरूहिल्क़ुदुसि, तुकल्लिमुन्ना-स फ़िल्मह्दि व कह्-लन्, व इज़् अल्लम्तुकल् किता-ब वल्हिक्म त वत्तौरा-त वल्इन्जी-ल, व इज़् तख़्लुक़ु मिनत्तीनि कहै-अतित्तैरि बि-इज़्नी फ़तन्फुख़ु फ़ीहा फ़-तकूनु तैरम् बि-इज़्नी व तुब्रिउल्-अक्म-ह वल्अब्र-स बि-इज़्नी, व इज़् तुख़्रिजुल्मौता बि-इज़्नी, व इज़् कफ़फ्तु बनी इस्राई-ल अन्-क इज़् जिअ्तहुम् बिल्बय्यिनाति फक़ालल्लज़ी-न क-फरू मिन्हुम् इन् हाज़ा इल्ला सिहरूम् मुबीन
तथा याद करो, जब अल्लाह ने कहाः हे मर्यम के पुत्र ईसा! अपने ऊपर तथा अपनी माता के ऊपर मेरा पुरस्कार याद कर, जब मैंने पवित्रात्मा (जिब्रील) द्वारा तुझे समर्थन दिया, तू गहवारे (गोद) में तथा बड़ी आयु में लोगों से बातें कर रहा था तथा तुझे पुस्तक, प्रबोध, तौरात और इंजील की शिक्षा दी, जब तू मेरी अनुमति से मिट्टी से पक्षी का रूप बनाता और उसमें फूँकता, तो वह मेरी अनुमति से वास्तव में पक्षी बन जाता था और तू जन्म से अंधे तथा कोढ़ी को मेरी अनुमति से स्वस्थ कर देता था और जब तू मुर्दों को मेरी अनुमति से जीवित कर देता था और मैंने बनी इस्राईल से तुझे बचाया था, जब तू उनके पास खुली निशानियाँ लाया, तो उनमें से काफ़िरों ने कहा कि ये तो खुले जादू के सिवा कुछ नहीं है।

5:111

وَإِذْ أَوْحَيْتُ إِلَى ٱلْحَوَارِيِّـۧنَ أَنْ ءَامِنُوا۟ بِى وَبِرَسُولِى قَالُوٓا۟ ءَامَنَّا وَٱشْهَدْ بِأَنَّنَا مُسْلِمُونَ

व इज़् औहैतु इलल्-हवारिय्यी-न अन् आमिनू बी व बि -रसूली, क़ालू आमन्ना वश्हद् बिअन्नना मुस्लिमून
तथा याद कर, जब मैंने तेरे ह़वारियों के दिलों में ये बात डाल दी कि मुझपर तथा मेरे रसूल (ईसा) पर ईमान लाओ, तो सबने कहा कि हम ईमान लाये और तू साक्षी रह कि हम मुस्लिम (आज्ञाकारी) हैं।

5:112

إِذْ قَالَ ٱلْحَوَارِيُّونَ يَـٰعِيسَى ٱبْنَ مَرْيَمَ هَلْ يَسْتَطِيعُ رَبُّكَ أَن يُنَزِّلَ عَلَيْنَا مَآئِدَةًۭ مِّنَ ٱلسَّمَآءِ ۖ قَالَ ٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ

इज़ क़ालल-हवारिय्यू-न या ईसब् न मर् य-म हल् यस्ततीअु रब्बु-क अंय्युनज़्ज़ि-ल अलैना माइ-दतम् मिनस्समा-इ, क़ालत्तक़ुल्ला-ह इन् कुन्तुम् मुअ्मिनीन
जब ह़वारियों ने कहाः हे मर्यम के पुत्र ईसा! क्या तेरा पालनहार ये कर सकता है कि हमपर आकाश से थाल (दस्तरख्वान) उतार दे? उस (ईसा) ने कहाः तुम अल्लाह से डरो, यदि तुम वास्तव में ईमान वाले हो।

5:113

قَالُوا۟ نُرِيدُ أَن نَّأْكُلَ مِنْهَا وَتَطْمَئِنَّ قُلُوبُنَا وَنَعْلَمَ أَن قَدْ صَدَقْتَنَا وَنَكُونَ عَلَيْهَا مِنَ ٱلشَّـٰهِدِينَ

क़ालू नुरीदु अन् नअ्कु-ल मिन्हा व तत्मइन्-न क़ुलूबुना व नअ्ल-म अन् क़द् सदक़्तना व नकू-न अलैहा मिनश्शाहिदीन
उन्होंने कहाः हम चाहते हैं कि उसमें से खायें और हमारे दिलों को संतोष हो जाये तथा हमें विश्वास हो जाये कि तूने हमें जो कुछ बताया है, सच है और हम उसके साक्षियों में से हो जायेँ।

5:114

قَالَ عِيسَى ٱبْنُ مَرْيَمَ ٱللَّهُمَّ رَبَّنَآ أَنزِلْ عَلَيْنَا مَآئِدَةًۭ مِّنَ ٱلسَّمَآءِ تَكُونُ لَنَا عِيدًۭا لِّأَوَّلِنَا وَءَاخِرِنَا وَءَايَةًۭ مِّنكَ ۖ وَٱرْزُقْنَا وَأَنتَ خَيْرُ ٱلرَّٰزِقِينَ

क़ा-ल ईसब्नु मरयमल्लाहुम्-म रब्बना अन्ज़िल् अलैना माइ-दतम् मिनस्समा-इ तकूनु लना ईदल् लि-अव्वलिना व आख़िरिना व आयतम्-मिन् क, वरज़ुक्ना व अन्-त ख़ैरू र्राज़िक़ीन
मर्यम के पुत्र ईसा ने प्रार्थना कीः हे अल्लाह, हमारे पालनहार! हमपर आकाश से एक थाल उतार दे, जो हमारे तथा हमारे पश्चात् के लोगों के लिए उत्सव (का दिन) बन जाये तथा तेरी ओर से एक चिन्ह (निशानी)। तथा हमें जीविका प्रदान कर, तू उत्तम जीविका प्रदाता है।

5:115

قَالَ ٱللَّهُ إِنِّى مُنَزِّلُهَا عَلَيْكُمْ ۖ فَمَن يَكْفُرْ بَعْدُ مِنكُمْ فَإِنِّىٓ أُعَذِّبُهُۥ عَذَابًۭا لَّآ أُعَذِّبُهُۥٓ أَحَدًۭا مِّنَ ٱلْعَـٰلَمِينَ

क़ालल्लाहु इन्नी मुनज़्ज़िलुहा अलैकुम्, फ़-मंय्यक्फुर् बअ्दु मिन्कुम् फ़-इन्नी उअ़ज़्ज़िबुहू अ़ज़ाबल्-ला उअ़ज़्ज़िबुहू अ-हदम् मिनल-आलमीन
अल्लाह ने कहाः मैं तुमपर उसे उतारने वाला हूँ, फिर उसके पश्चात् भी जो कुफ़्र (अविश्वास) करेगा, तो मैं निश्चय उसे दण्ड दूँगा, ऐसा दण्ड[1] कि संसार वासियों में से किसी को, वैसी दण्ड नहीं दूँगा।

5:116

وَإِذْ قَالَ ٱللَّهُ يَـٰعِيسَى ٱبْنَ مَرْيَمَ ءَأَنتَ قُلْتَ لِلنَّاسِ ٱتَّخِذُونِى وَأُمِّىَ إِلَـٰهَيْنِ مِن دُونِ ٱللَّهِ ۖ قَالَ سُبْحَـٰنَكَ مَا يَكُونُ لِىٓ أَنْ أَقُولَ مَا لَيْسَ لِى بِحَقٍّ ۚ إِن كُنتُ قُلْتُهُۥ فَقَدْ عَلِمْتَهُۥ ۚ تَعْلَمُ مَا فِى نَفْسِى وَلَآ أَعْلَمُ مَا فِى نَفْسِكَ ۚ إِنَّكَ أَنتَ عَلَّـٰمُ ٱلْغُيُوبِ

व इज़् क़ालल्लाहु या ईसब्-न मर-य-म अ-अन्-त क़ुल्-त लिन्नासित्तख़िज़ूनी व उम्मि-य इलाहैनि मिन् दुनिल्लाहि, क़ा-ल सुब्हान-क मा यकूनु ली अन् अक़ूल मा लै-स ली, बिहक़्क़िन्, इन् कुन्तु क़ुल्तुहू फ़-क़द् अलिम्तहू, तअ्लमु मा फ़ी नफ़्सी व ला अअ्लमु मा फ़ी नफ्सि-क, इन्न-क अन्-त अल्लामुल्-ग़ुयूब
तथा जब अल्लाह (प्रलय के दिन) कहेगाः हे मर्यम के पुत्र ईसा! क्या तुमने लोगों से कहा था कि अल्लाह को छोड़कर मुझे तथा मेरी माता को पूज्य (आराध्य) बना लो? वह कहेगाः तू पवित्र है, मुझसे ये कैसे हो सकता है कि ऐसी बात कहूँ, जिसका मुझे कोई अधिकार नहीं? यदि मैंने कहा होगा, तो तुझे अवश्य उसका ज्ञान हुआ होगा। तू मेरे मन की बात जानता है और मैं तेरे मन की बात नहीं जानता। वास्तव में, तू ही परोक्ष (ग़ैब) का अति ज्ञानी है।

5:117

مَا قُلْتُ لَهُمْ إِلَّا مَآ أَمَرْتَنِى بِهِۦٓ أَنِ ٱعْبُدُوا۟ ٱللَّهَ رَبِّى وَرَبَّكُمْ ۚ وَكُنتُ عَلَيْهِمْ شَهِيدًۭا مَّا دُمْتُ فِيهِمْ ۖ فَلَمَّا تَوَفَّيْتَنِى كُنتَ أَنتَ ٱلرَّقِيبَ عَلَيْهِمْ ۚ وَأَنتَ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍۢ شَهِيدٌ

मा क़ुल्तु लहुम् इल्ला मा अमर्तनी बिही अनिअ्बुदुल्ला-ह रब्बी व रब्बकुम्, व कुन्तु अलैहिम् शहीदम् मा दुम्तु फ़ीहिम्, फ़-लम्मा तवफ्फ़ैतनी कुन-त अन्तर्रक़ी-ब अलैहिम्, व अन्-त अला कुल्लि शैइन् शहीद
मैंने केवल उनसे वही कहा था, जिसका तूने आदेश दिया था कि अल्लाह की इबादत करो, जो मेरा पालनहार तथा तुम सभी का पालनहार है। मैं उनकी दशा जानता था, जब तक उनमें था और जब तूने मेरा समय पूरा कर दिया[1], तो तू ही उन्हें जानता था और तू प्रत्येक वस्तु से सूचित है।

5:118

إِن تُعَذِّبْهُمْ فَإِنَّهُمْ عِبَادُكَ ۖ وَإِن تَغْفِرْ لَهُمْ فَإِنَّكَ أَنتَ ٱلْعَزِيزُ ٱلْحَكِيمُ

इन् तुअ़ज़्ज़िब्हुम् फ़-इन्नहुम् अिबादु-क, व इन् तग़्फिर लहुम् फ़-इन्न-क अन्तल् अज़ीज़ुल् हकीम
यदि तू उन्हें दण्ड दे, तो वे तेरे दास (बन्दे) हैं और यदि तू उन्हें क्षमा कर दे, तो वास्तव में तू ही प्रभावशाली गुणी है।

5:119

قَالَ ٱللَّهُ هَـٰذَا يَوْمُ يَنفَعُ ٱلصَّـٰدِقِينَ صِدْقُهُمْ ۚ لَهُمْ جَنَّـٰتٌۭ تَجْرِى مِن تَحْتِهَا ٱلْأَنْهَـٰرُ خَـٰلِدِينَ فِيهَآ أَبَدًۭا ۚ رَّضِىَ ٱللَّهُ عَنْهُمْ وَرَضُوا۟ عَنْهُ ۚ ذَٰلِكَ ٱلْفَوْزُ ٱلْعَظِيمُ

क़ालल्लाहु हाज़ा यौमु यन्फ़अुस्सादिक़ी-न सिद्क़ुहुम्, लहुम् जन्नातुन् तज्री मिन् तह़्तिहल्-अन्हारू ख़ालिदी – न फ़ीहा अ-बदन्, रज़ियल्लाहु अन्हुम् व रज़ू अन्हु, ज़ालिकल फौज़ुल् अज़ीम
अल्लाह कहेगाः ये वो दिन है, जिसमें सचों को उनका सच ही लाभ देगा। उन्हीं के लिए ऐसे स्वर्ग हैं, जिनमें नहरें प्रवाहित हैं। वे उनमें नित्य सदावासी होंगे, अल्लाह उनसे प्रसन्न हो गया तथा वे अल्लाह से प्रसन्न हो गये और यही सबसे बड़ी सफलता है।

5:120

لِلَّهِ مُلْكُ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ وَمَا فِيهِنَّ ۚ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍۢ قَدِيرٌۢ

लिल्लाहि मुल्कुस्समावाति वल्अर्ज़ि व मा फ़ीहिन्-न, व हु-व अला कुल्लि शैइन् क़दीर
आकाशों तथा धरती और उनमें जो कुछ है, सबका राज्य अल्लाह ही का[1] है तथा वह जो चाहे, कर सकता है।

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