Surah An Nisa In Hindi 4:1-4:176

सूरह निसा अल्लाह की कुरआन की चौथी सूरह है। इसमें 176 आयतें हैं और यह मदीना में नाज़िल हुई है। इस सूरह का नाम “निसा” यानी “औरतों” से लिया गया है क्योंकि यह महिलाओं के अधिकारों और विवाह संबंधी नियमों पर विस्तार से प्रकाश डालती है।

महत्वपूर्ण बिंदु:

  • महिलाओं के अधिकार और विवाह संबंधी नियम
  • उत्तराधिकार के नियम
  • यतीमों की संपत्ति का प्रबंधन
  • युद्ध के नियम और शांति के सिद्धांत
  • ईमानदारी और न्याय का महत्व
  • अल्लाह पर विश्वास और उसके प्रति समर्पण की अहमियत
  • लोगों के बीच भाईचारे और एकता का संदेश
  • नेकी और पाप के बारे में चेतावनी और सलाह

यह सूरह मुसलमानों के लिए एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक है क्योंकि इसमें समाज के विभिन्न पहलुओं और व्यवहार के सिद्धांतों पर विस्तृत जानकारी दी गई है।

सूरह निसा हिंदी में पढ़े

بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ

बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।

4:1

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ ٱتَّقُوا۟ رَبَّكُمُ ٱلَّذِى خَلَقَكُم مِّن نَّفْسٍۢ وَٰحِدَةٍۢ وَخَلَقَ مِنْهَا زَوْجَهَا وَبَثَّ مِنْهُمَا رِجَالًۭا كَثِيرًۭا وَنِسَآءًۭ ۚ وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ ٱلَّذِى تَسَآءَلُونَ بِهِۦ وَٱلْأَرْحَامَ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلَيْكُمْ رَقِيبًۭا

या अय्युहन्नासुत्तक़ू रब्बकुमुल्लज़ी ख़-ल-क़कुम् मिन् नफ्सिंव्वाहि-दतिंव व ख़-ल-क़ मिन्हा ज़ौजहा व बस्-स मिन्हुमा रिजालन् कसीरंव-व निसाअन्, वत्तक़ुल्लाहल्लज़ी तसाअलू-न बिही वल्अरहा-म, इन्नल्ला-ह का-न अलैकुम् रक़ीबा
हे मनुष्यों! अपने[1] उस पालनहार से डरो, जिसने तुम्हें एक जीव (आदम) से उत्पन्न किया तथा उसीसे उसकी पत्नी (हव्वा) को उत्पन्न किया और उन दोनों से बहुत-से नर-नारी फैला दिये। उस अल्लाह से डरो, जिसके द्वारा तुम एक-दूसरे से (अधिकार) मांगते हो तथा रक्त संबंधों को तोड़ने से डरो। निःसंदेह अल्लाह तुम्हारा निरीक्षक है।

4:2

وَءَاتُوا۟ ٱلْيَتَـٰمَىٰٓ أَمْوَٰلَهُمْ ۖ وَلَا تَتَبَدَّلُوا۟ ٱلْخَبِيثَ بِٱلطَّيِّبِ ۖ وَلَا تَأْكُلُوٓا۟ أَمْوَٰلَهُمْ إِلَىٰٓ أَمْوَٰلِكُمْ ۚ إِنَّهُۥ كَانَ حُوبًۭا كَبِيرًۭا

व आतुल्-यतामा अम्वालहुम् व ला त-तबद्दलुल्ख़बी-स बित्तय्यिबि, व ला तअ्कुलू अम्वालहुम् इला अम्वालिकुम्, इन्नहू का-न हूबन् कबीरा
तथा (हे संरक्षको!) अनाथों को उनके धन चुका दो और (उनकी) अच्छी चीज़ से (अपनी) बुरी चीज़ न बदलो और उनके धन, अपने धनों में मिलाकर न खाओ। निःसंदेह ये बहुत बड़ा पाप है।

4:3

وَإِنْ خِفْتُمْ أَلَّا تُقْسِطُوا۟ فِى ٱلْيَتَـٰمَىٰ فَٱنكِحُوا۟ مَا طَابَ لَكُم مِّنَ ٱلنِّسَآءِ مَثْنَىٰ وَثُلَـٰثَ وَرُبَـٰعَ ۖ فَإِنْ خِفْتُمْ أَلَّا تَعْدِلُوا۟ فَوَٰحِدَةً أَوْ مَا مَلَكَتْ أَيْمَـٰنُكُمْ ۚ ذَٰلِكَ أَدْنَىٰٓ أَلَّا تَعُولُوا۟

व इन् खिफ्तुम् अल्ला तुक़्सितू फ़िल्यतामा फ़न्किहू मा ता-ब लकुम् मिनन्निसा-इ मसना व सुला-स व रूबा अ, फ़-इन् ख़िफ्तुम् अल्ला तअ्दिलू फ़वाहि-दतन् औ मा म-लकत् ऐमानुकुम्, ज़ालि-क अद्ना अल्ला तअूलू
और यदि तुम डरो कि अनाथ (बालिकाओं) के विषय[1] में न्याय नहीं कर सकोगे, तो नारियों में से जो भी तुम्हें भायें, दो से, तीन से, चार तक से विवाह कर लो और यदि डरो कि (उनके बीच) न्याय नहीं कर सकोगे, तो एक ही से करो अथवा जो तुम्हारे स्वामित्व[2] में हो, उसीपर बस करो। ये अधिक समीप है कि अन्याय न करो।

4:4

وَءَاتُوا۟ ٱلنِّسَآءَ صَدُقَـٰتِهِنَّ نِحْلَةًۭ ۚ فَإِن طِبْنَ لَكُمْ عَن شَىْءٍۢ مِّنْهُ نَفْسًۭا فَكُلُوهُ هَنِيٓـًۭٔا مَّرِيٓـًۭٔا

व आतुन्निसा-अ सदुक़ातिहिन्-न निह़्ल-तन्, फ़-इन् तिब्-न लकुम् अन् शैइम् मिन्हु नफ्सन् फ़कुलूहु हनीअम्-मरीआ
तथा स्त्रियों को उनके महर (विवाह उपहार) प्रसन्नता से चुका दो। फिर यदि वे उसमें से कुछ तुम्हें अपनी इच्छा से दे दें, तो प्रसन्न होकर खाओ।

4:5

وَلَا تُؤْتُوا۟ ٱلسُّفَهَآءَ أَمْوَٰلَكُمُ ٱلَّتِى جَعَلَ ٱللَّهُ لَكُمْ قِيَـٰمًۭا وَٱرْزُقُوهُمْ فِيهَا وَٱكْسُوهُمْ وَقُولُوا۟ لَهُمْ قَوْلًۭا مَّعْرُوفًۭا

व ला तुअतुस्सु-फ़ हा-अ अम्वालकुमुल्लती ज-अलल्लाहु लकुम् क़ियामंव-वरज़ुक़ूहुम् फ़ीहा वक्सूहुम् व क़ूलू लहुम् कौलम् मअरूफ़ा
तथा अपने धन, जिसे अल्लाह ने तुम्हारे लिए जीवन स्थापन का साधन बनाया है, अज्ञानों को न[1] दो। हाँ, उसमें से उन्हें खाना-कपड़ा दो और उनसे भली बात बोलो।

4:6

وَٱبْتَلُوا۟ ٱلْيَتَـٰمَىٰ حَتَّىٰٓ إِذَا بَلَغُوا۟ ٱلنِّكَاحَ فَإِنْ ءَانَسْتُم مِّنْهُمْ رُشْدًۭا فَٱدْفَعُوٓا۟ إِلَيْهِمْ أَمْوَٰلَهُمْ ۖ وَلَا تَأْكُلُوهَآ إِسْرَافًۭا وَبِدَارًا أَن يَكْبَرُوا۟ ۚ وَمَن كَانَ غَنِيًّۭا فَلْيَسْتَعْفِفْ ۖ وَمَن كَانَ فَقِيرًۭا فَلْيَأْكُلْ بِٱلْمَعْرُوفِ ۚ فَإِذَا دَفَعْتُمْ إِلَيْهِمْ أَمْوَٰلَهُمْ فَأَشْهِدُوا۟ عَلَيْهِمْ ۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ حَسِيبًۭا

वब्तलु ल्-यतामा हत्ता इज़ा ब-लगुन्निका-ह, फ़-इन् आनस्तुम् मिन्हुम् रूश्दन् फद्फ़अू इलैहिम् अम्वालहुम्, व ला तअ्कुलूहा इसराफंव्-व बिदारन् अंय्यक्बरू, व मन् का-न ग़निय्यन् फ़ल्यस्तअ्फिफ, व मन् का-न फ़क़ीरन् फ़ल्यअ्कुल बिल्मअ्-रूफि, फ़- इज़ा द-फ़अ्तुम इलैहिम् अम्वालहुम् फ़-अश्हिदू अलैहिम्, व कफ़ा बिल्लाहि हसीबा
तथा अनाथों की परीक्षा लेते रहो, यहाँ तक कि वे विवाह की आयु को पहुँच जायें, तो यदि तुम उनमें सुधार देखो, तो उनका धन उन्हें समर्पित कर दो और उसे अपव्यय तथा शीघ्रता से इसलिए न खाओ कि वे बड़े हो जायेंगे और जो धनी हो, तो वह बचे तथा जो निर्धन हो, वह नियमानुसार खा ले तथा जब तुम उनका धन उनके ह़वाले करो, तो उनपर साक्षी बना लो और अल्लाह ह़िसाब लेने के लिए काफ़ी है।

4:7

لِّلرِّجَالِ نَصِيبٌۭ مِّمَّا تَرَكَ ٱلْوَٰلِدَانِ وَٱلْأَقْرَبُونَ وَلِلنِّسَآءِ نَصِيبٌۭ مِّمَّا تَرَكَ ٱلْوَٰلِدَانِ وَٱلْأَقْرَبُونَ مِمَّا قَلَّ مِنْهُ أَوْ كَثُرَ ۚ نَصِيبًۭا مَّفْرُوضًۭا

लिर्रिजालि नसीबुम्-मिम्मा त-रकल्-वालिदानि वल-अक़रबू-न, व लिन्निसा-इ नसीबुम्-मिम्मा त रकल्-वालिदानि वल्-अक़्रबू-न मिम्मा क़ल्-ल मिन्हु औ कसु-र, नसीबम् मफ़्रूज़ा
और पुरुषों के लिए उसमें से भाग है, जो माता-पिता तथा समीपवर्तियों ने छोड़ा है तथा स्त्रियों के लिए उसमें से भाग है, जो माता-पिता तथा समीपवर्तियों ने छोड़ा हो, वह थोड़ा हो अथवा अधिक, सबके भाग[1] निर्धारित हैं।

4:8

وَإِذَا حَضَرَ ٱلْقِسْمَةَ أُو۟لُوا۟ ٱلْقُرْبَىٰ وَٱلْيَتَـٰمَىٰ وَٱلْمَسَـٰكِينُ فَٱرْزُقُوهُم مِّنْهُ وَقُولُوا۟ لَهُمْ قَوْلًۭا مَّعْرُوفًۭا

व इज़ा ह-ज़रल क़िस्म-त उलुल्क़ुरबा वल्-यतामा वल्मसाकीनु फर्ज़ुक़ूहुम् मिन्हु व क़ूलू लहुम क़ौलम् मअ्-रूफ़ा
और जब मीरास विभाजन के समय समीपवर्ती[1], अनाथ और निर्धन उपस्थित हों, तो उन्हें भी थोड़ा बहुत दे दो तथा उनसे भली बात बोलो।

4:9

وَلْيَخْشَ ٱلَّذِينَ لَوْ تَرَكُوا۟ مِنْ خَلْفِهِمْ ذُرِّيَّةًۭ ضِعَـٰفًا خَافُوا۟ عَلَيْهِمْ فَلْيَتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَلْيَقُولُوا۟ قَوْلًۭا سَدِيدًا

वल्यख़्शल्लज़ी-न लौ त-रकू मिन् ख़ल्फिहिम् ज़ुर्रिय्यतन ज़िआ़फन् ख़ाफू अलैहिम्, फ़ल्यत्तक़ुल्ला-ह वल्-यक़ूलू क़ौलन् सदीदा
और उन लोगों को डरना चाहिए, जो अपने पीछे निर्बल संतान छोड़ जायें और उनके नाश होने का भय हो, अतः उन्हें चाहिए कि अल्लाह से डरें और सीधी बात बोलें।

4:10

إِنَّ ٱلَّذِينَ يَأْكُلُونَ أَمْوَٰلَ ٱلْيَتَـٰمَىٰ ظُلْمًا إِنَّمَا يَأْكُلُونَ فِى بُطُونِهِمْ نَارًۭا ۖ وَسَيَصْلَوْنَ سَعِيرًۭا

इन्नल्लज़ी-न यअ्कुलू-न अम्वालल् यतामा ज़ुल्मन् इन्नमा यअ्कुलू-न फ़ी बुतूनिहिम् नारन्, व स-यस्लौ-न सईरा
जो लोग अनाथों का धन अत्याचार से खाते हैं, वे अपने पेटों में आग भरते हैं और शीघ्र ही नरक की अग्नि में प्रवेश करेंगे।

4:11

يُوصِيكُمُ ٱللَّهُ فِىٓ أَوْلَـٰدِكُمْ ۖ لِلذَّكَرِ مِثْلُ حَظِّ ٱلْأُنثَيَيْنِ ۚ فَإِن كُنَّ نِسَآءًۭ فَوْقَ ٱثْنَتَيْنِ فَلَهُنَّ ثُلُثَا مَا تَرَكَ ۖ وَإِن كَانَتْ وَٰحِدَةًۭ فَلَهَا ٱلنِّصْفُ ۚ وَلِأَبَوَيْهِ لِكُلِّ وَٰحِدٍۢ مِّنْهُمَا ٱلسُّدُسُ مِمَّا تَرَكَ إِن كَانَ لَهُۥ وَلَدٌۭ ۚ فَإِن لَّمْ يَكُن لَّهُۥ وَلَدٌۭ وَوَرِثَهُۥٓ أَبَوَاهُ فَلِأُمِّهِ ٱلثُّلُثُ ۚ فَإِن كَانَ لَهُۥٓ إِخْوَةٌۭ فَلِأُمِّهِ ٱلسُّدُسُ ۚ مِنۢ بَعْدِ وَصِيَّةٍۢ يُوصِى بِهَآ أَوْ دَيْنٍ ۗ ءَابَآؤُكُمْ وَأَبْنَآؤُكُمْ لَا تَدْرُونَ أَيُّهُمْ أَقْرَبُ لَكُمْ نَفْعًۭا ۚ فَرِيضَةًۭ مِّنَ ٱللَّهِ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلِيمًا حَكِيمًۭا

यूसीकुमुल्लाहु फ़ी औलादिकुम्, लिज़्ज़-करि मिस्लु हज़्ज़िल उन्सयैनि फ़-इन् कुन्-न निसाअन् फ़ौक़स्- नतैनि फ़-लहुन्-न सुलुसा मा त-र-क, व इन् कानत् वाहि-दतन् फ-लहन्निस्फु, व लि-अ-बवैहि लिकुल्लि वाहिदिम्-मिन्हुमस्सुदुसु मिम्मा त-र-क इन् का-न लहू व लदुन् फ़-इल्लम् यकुल्लहू व-लदुंव्-व वरि-सहू अ-बवाहू फ़-लिउम्मिहिस्सुलुसु, फ़-इन् का-न लहू इख़्वतुन् फ़-लिउम्मिहिस्सुदुसु मिम्-बअ्दि वसिय्यतिंय् यूसी बिहा औ दैनिन्, आबाउकुम् व अब्नाउकुम् ला तदरू-न अय्युहुम् अक़्रबु लकुम् नफ्अन्, फ़री-ज़तम् मिनल्लाहि , इन्नल्ला-ह का-न अलीमन् हकीमा
अल्लाह तुम्हारी संतान के संबंध में तुम्हें आदेश देता है कि पुत्र का भाग, दो पुत्रियों के बराबर है। यदि पुत्रियाँ दो[1] से अधिक हों, तो उनके लिए छोड़े हुए धन का दो तिहाई (भाग) है। यदि एक ही हो, तो उसके लिए आधा है और उसके माता-पिता, दोनों में से प्रत्येक के लिए उसमें से छठा भाग है, जो छोड़ा हो, यदि उसके कोई संतान[2] हों। और यदि उसके कोई संतान (पुत्र या पुत्री) न हों और उसका वारिस उसका पिता हो, तो उसकी माता का तिहाई (भाग)[3] है, (और शेष पिता का)। फिर यदि (माता पिता के सिवा) उसके एक से अधिक भाई अथवा बहनें हों, तो उसकी माता के लिए छठा भाग है, जो वसिय्यत[4] तथा क़र्ज़ चुकाने के पश्चात् होगा। तुम नहीं जानते कि तुम्हारे पिताओं और पुत्रों में से कौन तुम्हारे लिए अधिक लाभदायक हैं। वास्तव में, अल्लाह अति बड़ा तथा गुणी, ज्ञानी, तत्वज्ञ है।

4:12

وَلَكُمْ نِصْفُ مَا تَرَكَ اَزْوَاجُكُمْ اِنْ لَّمْ يَكُنْ لَّهُنَّ وَلَدٌ ۚ فَاِنْ كَانَ لَهُنَّ وَلَدٌ فَلَكُمُ الرُّبُعُ مِمَّا تَرَكْنَ مِنْۢ بَعْدِ وَصِيَّةٍ يُّوْصِيْنَ بِهَآ اَوْ دَيْنٍ ۗ وَلَهُنَّ الرُّبُعُ مِمَّا تَرَكْتُمْ اِنْ لَّمْ يَكُنْ لَّكُمْ وَلَدٌ ۚ فَاِنْ كَانَ لَكُمْ وَلَدٌ فَلَهُنَّ الثُّمُنُ مِمَّا تَرَكْتُمْ مِّنْۢ بَعْدِ وَصِيَّةٍ تُوْصُوْنَ بِهَآ اَوْ دَيْنٍ ۗ وَاِنْ كَانَ رَجُلٌ يُّوْرَثُ كَلٰلَةً اَوِ امْرَاَةٌ وَّلَهٗٓ اَخٌ اَوْ اُخْتٌ فَلِكُلِّ وَاحِدٍ مِّنْهُمَا السُّدُسُۚ فَاِنْ كَانُوْٓا اَكْثَرَ مِنْ ذٰلِكَ فَهُمْ شُرَكَاۤءُ فِى الثُّلُثِ مِنْۢ بَعْدِ وَصِيَّةٍ يُّوْصٰى بِهَآ اَوْ دَيْنٍۙ غَيْرَ مُضَاۤرٍّ ۚ وَصِيَّةً مِّنَ اللّٰهِ ۗ وَاللّٰهُ عَلِيْمٌ حَلِيْمٌۗ

व लकुम् निस्फु मा त-र-क अज़्वाजुकुम् इल्लम् युकुल्लहुन्-न व लदुन्, फ़-इन का न लहुन्-न व-लदुन् फ़-लकुमुर्रूबुअु मिम्मा तरक्-न मिम्-बअ्दि वसिय्यतिंय्यूसी-न बिहा औ दैनिन्, व लहुन्नर्रूबुअु मिम्मा तरक्तुम् इल्लम् यकुल्लकुम् व-लदुन्, फ़-इन् का-न लकुम व-लदुन् फ़-लहुन्नस्सुमुनु मिम्मा तरक्तुम् मिम् -बअ्दि वसिय्यतिन् तूसू-न बिहा औ दैनिन्, व इन् का-न रजुलुंय्यू-रसु कलाल-तन् अविम-र-अतुंव-व् लहू अखुन् औ उख़्तुन् फ़ लिकुल्लि वाहिदिम् मिन्हुमस्सुदुसु, फ़-इन् कानू अक्स-र मिन् ज़ालि-क फ़हुम् शु-रका-उ फिस्सुलुसि मिम्-बअ्दि वसिय्यतिंय्यूसा बिहा औ दैनिन् ग़ै-र मुज़ाररिन् वसिय्यतम् मिनल्लाहि, वल्लाहु अलीमुन् हलीम
और तुम्हारे लिए उसका आधा है, जो तुम्हारी पत्नियाँ छोड़ जायें, यदि उनके कोई संतान (पुत्र या पुत्री) न हों। फिर यदि उनके कोई संतान हों, तो तुम्हारे लिए उसका चौथाई है, जो वे छोड़ गयी हों, वसिय्यत (उत्तरदान) या ऋण चुकाने के पश्चात्। जबकि (पत्नयों) के लिए उसका चौथाई है, जो (माल आदि) तुमने छोड़ा हो, यदि तुम्हारे कोई संतान (पुत्र या पुत्री) न हों। फिर यदि तुम्हारे कोई संतान हों, तो उनके लिए उसका आठवाँ[1] (भाग) है, जो तुमने छोड़ा है, वसिय्यत (उत्तरदान) जो तुमने की हो, पूरी करने अथवा ऋण चुकाने के पश्चात्। फिर यदि किसी ऐसे पुरुष या स्त्री का वारिस होने की बात हो, जो ‘कलाला’[2] हो तथा (दूसरी माता से) उसका भाई अथवा बहन हो, तो उनमें से प्रत्येक के लिए छठा (भाग) है। फिर यदि (माँ जाये) (भाई या बहनें) इससे अधिक हों, तो वे सब तिहाई (भाग) में (बराबर के) साझी होंगे। ये वसिय्यत (उत्तरदान) तथा ऋण चुकाने के पश्चात होगा। किसी को हानि नहीं पहुँचायी जायेगी। ये अल्लाह की ओर से वसिय्यत है और अल्लाह ज्ञानी तथा ह़िक्मत वाला है।

4:13

تِلْكَ حُدُودُ ٱللَّهِ ۚ وَمَن يُطِعِ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ يُدْخِلْهُ جَنَّـٰتٍۢ تَجْرِى مِن تَحْتِهَا ٱلْأَنْهَـٰرُ خَـٰلِدِينَ فِيهَا ۚ وَذَٰلِكَ ٱلْفَوْزُ ٱلْعَظِيمُ

तिल-क हुदूदुल्लाहि व मंय्युतिअिल्ला-ह व रसूलहू युद्ख़िल्हु जन्नातिन् तज्री मिन् तह़्तिहल-अन्हारू ख़ालिदी-न फ़ीहा, व ज़ालिकल फौजुल अज़ीम
ये अल्लाह की (निर्धारित) सीमायें हैं और जो अल्लाह तथा उसके रसूल का आज्ञाकारी रहेगा, तो वह उसे ऐसे स्वर्गों में प्रवेश देगा, जिनमें नहरें प्रवाहित होंगी। उनमें वे सदावासी होंगे तथा यही बड़ी सफलता है।

4:14

وَمَن يَعْصِ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ وَيَتَعَدَّ حُدُودَهُۥ يُدْخِلْهُ نَارًا خَـٰلِدًۭا فِيهَا وَلَهُۥ عَذَابٌۭ مُّهِينٌۭ

व मंय्यअ्सिल्ला-ह व रसूलहू व य-तअद्-द हुदू-दहू युदख़िल्हु नारन् ख़ालिदन् फ़ीहा, व लहू अज़ाबुम् मुहीन
और जो अल्लाह तथा उसके रसूल की अवज्ञा तथा उसकी सीमाओं का उल्लंघन करेगा, उसे नरक में प्रवेश देगा। जिसमें वह सदावासी होगा और उसी के लिए अपमानकारी यातना है।

4:15

وَٱلَّـٰتِى يَأْتِينَ ٱلْفَـٰحِشَةَ مِن نِّسَآئِكُمْ فَٱسْتَشْهِدُوا۟ عَلَيْهِنَّ أَرْبَعَةًۭ مِّنكُمْ ۖ فَإِن شَهِدُوا۟ فَأَمْسِكُوهُنَّ فِى ٱلْبُيُوتِ حَتَّىٰ يَتَوَفَّىٰهُنَّ ٱلْمَوْتُ أَوْ يَجْعَلَ ٱللَّهُ لَهُنَّ سَبِيلًۭا

वल्लाती यअ्तीनल्-फ़ाहि-श-त मिन्निसा-इकुम् फस् तशहिदू अलैहिन्-न अर-ब अतम् मिन्कुम्, फ-इन् शहिदू फ़-अम्सिकूहुन्-न फ़िल्बुयूति हत्ता य-तवफ्फाहुन्नल्मौतु औ-यज्अलल्लाहु लहुन्-न सबीला
तथा तुम्हारी स्त्रियों में से, जो व्यभिचार कर जायेँ, तो उनपर अपनों में से चार साक्षी लाओ। फिर यदि वे साक्ष्य (गवाही) दें, तो उन्हें घरों में बंद कर दो, यहाँ तक कि उन्हें मौत आ जाये अथवा अल्लाह उनके लिए कोई अन्य[1] राह बना दे।

4:16

وَٱلَّذَانِ يَأْتِيَـٰنِهَا مِنكُمْ فَـَٔاذُوهُمَا ۖ فَإِن تَابَا وَأَصْلَحَا فَأَعْرِضُوا۟ عَنْهُمَآ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ تَوَّابًۭا رَّحِيمًا

वल्लज़ानि यअ्तियानिहा मिन्कुम् फ-आज़ूहुमा, फ इन् ताबा व अस्लहा फ-अअ्-रिज़ू अन्हुमा, इन्नल्ला-ह का-न तव्वाबर्रहीमा
और तुममें से जो दो व्यक्ति ऐसा करें, तो दोनों को दुःख पहुँचाओ, यहाँ तक कि (जब) वे तौबा (क्षमा याचना) कर लें और अपना सुधार कर लें, तो उन्हें छोड़ दो। निश्चय अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान् है।

4:17

إِنَّمَا ٱلتَّوْبَةُ عَلَى ٱللَّهِ لِلَّذِينَ يَعْمَلُونَ ٱلسُّوٓءَ بِجَهَـٰلَةٍۢ ثُمَّ يَتُوبُونَ مِن قَرِيبٍۢ فَأُو۟لَـٰٓئِكَ يَتُوبُ ٱللَّهُ عَلَيْهِمْ ۗ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمًۭا

इन्नमत्तौबतु अलल्लाहि लिल्लज़ी-न यअ् मलूनस्सू-अ बि-जहालतिन् सुम्-म यतूबू-न मिन् क़रीबिन् फ़-उलाइ-क यतूबुल्लाहु अलैहिम्, व कानल्लाहु अलीमन् हकीमा
अल्लाह के पास उन्हीं की तौबा (क्षमा याचना) स्वीकार्य है, जो अनजाने में बुराई कर जाते हैं, फिर शीघ्र ही क्षमा याचना कर लेते हैं, तो अल्लाह उनकी तौबा (क्षमा याचना) स्वीकार कर लेता है तथा अल्लाह बड़ा ज्ञानी गुणी है।

4:18

وَلَيْسَتِ ٱلتَّوْبَةُ لِلَّذِينَ يَعْمَلُونَ ٱلسَّيِّـَٔاتِ حَتَّىٰٓ إِذَا حَضَرَ أَحَدَهُمُ ٱلْمَوْتُ قَالَ إِنِّى تُبْتُ ٱلْـَٔـٰنَ وَلَا ٱلَّذِينَ يَمُوتُونَ وَهُمْ كُفَّارٌ ۚ أُو۟لَـٰٓئِكَ أَعْتَدْنَا لَهُمْ عَذَابًا أَلِيمًۭا

व लै सतित्तौबतु लिल्लज़ी-न यअ्मलूनस्सय्यिआति हत्ता इज़ा ह-ज़-र अ-ह-दहुमुल्मौतु क़ा-ल इन्नी तुब्तुल-आ-न व लल्लज़ी-न यमूतू-न व हुम् कुफ्फारून्, उलाइ-क अअ्तद्ना लहुम् अज़ाबन् अलीमा
और उनकी तौबा (क्षमा याचना) स्वीकार्य नहीं, जो बुराईयाँ करते रहते हैं, यहाँ तक कि जब उनमें से किसी की मौत का समय आ जाता है, तो कहता हैः अब मैंने तौबा कर ली। न ही उनकी (तौबा स्वीकार की जायेगी) जो काफ़िर रहते हुए मर जाते हैं, इन्हीं के लिए हमने दुःखदायी यातना तैयार कर रखी है।

4:19

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ لَا يَحِلُّ لَكُمْ أَن تَرِثُوا۟ ٱلنِّسَآءَ كَرْهًۭا ۖ وَلَا تَعْضُلُوهُنَّ لِتَذْهَبُوا۟ بِبَعْضِ مَآ ءَاتَيْتُمُوهُنَّ إِلَّآ أَن يَأْتِينَ بِفَـٰحِشَةٍۢ مُّبَيِّنَةٍۢ ۚ وَعَاشِرُوهُنَّ بِٱلْمَعْرُوفِ ۚ فَإِن كَرِهْتُمُوهُنَّ فَعَسَىٰٓ أَن تَكْرَهُوا۟ شَيْـًۭٔا وَيَجْعَلَ ٱللَّهُ فِيهِ خَيْرًۭا كَثِيرًۭا

या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला यहिल्लु लकुम् अन् तरिसुन्निसा-अ करहन्, व ला तअ्ज़ुलूहुन्-न लि- तज़्हबू बि-बअ्ज़ि मा आतैतुमूहुन्-न इल्ला अंय्यअ्ती-न बिफ़ाहि-शतिम् मुबय्यिनतिन्, व आशिरूहुन्-न बिल्-मअ्-रूफि, फ़-इन् करिह़्तुमूहुन्-न फ़-असा अन् तक् रहू शैअंव्-व यज् अ़लल्लाहु फ़ीहि ख़ैरन् कसीरा
हे ईमान वालो! तुम्हारे लिए ह़लाल (वैध) नहीं कि बलपूर्वक स्त्रियों के वारिस बन जाओ[1] तथा उन्हें इसलिए न रोको कि उन्हें जो दिया हो, उसमें से कुछ मार लो। परन्तु ये कि खुली बुराई कर जायेँ तथा उनके साथ उचित[2] व्यवहार से रहो। फिर यदि वे तुम्हें अप्रिय लगें, तो संभव है कि तुम किसी चीज़ को अप्रिय समझो और अल्लाह ने उसमें बड़ी भलाई[3] रख दी हो।

4:20

وَإِنْ أَرَدتُّمُ ٱسْتِبْدَالَ زَوْجٍۢ مَّكَانَ زَوْجٍۢ وَءَاتَيْتُمْ إِحْدَىٰهُنَّ قِنطَارًۭا فَلَا تَأْخُذُوا۟ مِنْهُ شَيْـًٔا ۚ أَتَأْخُذُونَهُۥ بُهْتَـٰنًۭا وَإِثْمًۭا مُّبِينًۭا

व इन् अरत्तुमुस्तिब्दा-ल ज़ौजिम् मका-न जौजिंव व आतैतुम् इह़्दाहुन्-न क़िन्तारन् फला तअ्ख़ुज़ु मिन्हु शैअन्, अ-तअ्ख़ुज़ूनहू बुह्तानंव् व इस्मम् मुबीना
और यदि तुम किसी पत्नी के स्थान पर किसी दूसरी पत्नी से विवाह करना चाहो और तुमने उनमें से एक को (सोने चाँदी) का ढेर भी (महर में) दिया हो, तो उसमें से कुछ न लो। क्या तुम चाहते हो कि उसे आरोप लगाकर तथा खुले पाप द्वारा ले लो?

4:21

وَكَيْفَ تَأْخُذُونَهُۥ وَقَدْ أَفْضَىٰ بَعْضُكُمْ إِلَىٰ بَعْضٍۢ وَأَخَذْنَ مِنكُم مِّيثَـٰقًا غَلِيظًۭا

व कै-फ़ तअ्ख़ुज़ूनहू व क़द् अफ्ज़ा बअ्ज़ुकुम् इला बअ्जिंव-व अख़ज़्-न मिन्कुम् मीसाकन् ग़लीज़ा
तथा तुम उसे ले भी कैसे सकते हो, जबकि तुम एक-दूसरे से मिलन कर चुके हो तथा उन्होंने तुमसे (विवाह के समय) दृढ़ वचन लिया है।

4:22

وَلَا تَنكِحُوا۟ مَا نَكَحَ ءَابَآؤُكُم مِّنَ ٱلنِّسَآءِ إِلَّا مَا قَدْ سَلَفَ ۚ إِنَّهُۥ كَانَ فَـٰحِشَةًۭ وَمَقْتًۭا وَسَآءَ سَبِيلًا

व ला तन्किहू मा न-क-ह आबाउकुम् मिनन्निसा-इ इल्ला मा क़द् स-ल-फ, इन्नहू का-न फ़ाहि-शतंव् व मक़्तन्, व सा-अ सबीला
और उन स्त्रियों से विवाह[1] न करो, जिनसे तुम्हारे पिताओं ने विवाह किया हो, परन्तु जो पहले हो चुका[2]। वास्तव में, ये निर्लज्जा की तथा अप्रिय बात और बुरी रीति थी।

4:23

حُرِّمَتْ عَلَيْكُمْ أُمَّهَـٰتُكُمْ وَبَنَاتُكُمْ وَأَخَوَٰتُكُمْ وَعَمَّـٰتُكُمْ وَخَـٰلَـٰتُكُمْ وَبَنَاتُ ٱلْأَخِ وَبَنَاتُ ٱلْأُخْتِ وَأُمَّهَـٰتُكُمُ ٱلَّـٰتِىٓ أَرْضَعْنَكُمْ وَأَخَوَٰتُكُم مِّنَ ٱلرَّضَـٰعَةِ وَأُمَّهَـٰتُ نِسَآئِكُمْ وَرَبَـٰٓئِبُكُمُ ٱلَّـٰتِى فِى حُجُورِكُم مِّن نِّسَآئِكُمُ ٱلَّـٰتِى دَخَلْتُم بِهِنَّ فَإِن لَّمْ تَكُونُوا۟ دَخَلْتُم بِهِنَّ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ وَحَلَـٰٓئِلُ أَبْنَآئِكُمُ ٱلَّذِينَ مِنْ أَصْلَـٰبِكُمْ وَأَن تَجْمَعُوا۟ بَيْنَ ٱلْأُخْتَيْنِ إِلَّا مَا قَدْ سَلَفَ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ غَفُورًۭا رَّحِيمًۭا

हुर्रिमत् अलैकुम् उम्महातुकुम् व बनातुकुम् व अ- ख़वातुकुम् व अम्मातुकुम् व ख़ालातुकुम् व बनातुल- अखि व बनातुल्-उख़्ति व उम्महातु-कुमुल्लाती अर्ज़अ्नकुम् व अ-ख़वातुकुम् मिनर्रज़ा-अति व उम्महातु निसा-इकु म् व रबा-इबुकुमुल्लाती फ़ी हुजूरिकुम् मिन्निसा इकुमुल्लाती दख़ल्तुम् बिहिन्-न, फ़-इल्लम् तकूनू दख़ल्तुम बिहिन्-न फ़ला जुना-ह अलैकुम्, व हला-इलु अब्ना-इकुमुल्लज़ी-न मिन् अस्लाबिकुम्, व अन् तज्मअू बइनल-उख़्तैनि इल्ला मा क़द् स-ल-फ़, इन्नल्ला-ह का-न ग़फूरर्रहीमा
तुमपर[1] ह़राम (अवैध) कर दी गयी हैं; तुम्हारी मातायें, तुम्हारी पुत्रियाँ, तुम्हारी बहनें, तुम्हारी फूफियाँ, तुम्हारी मोसियाँ और भतीजियाँ, भाँजियाँ, तुम्हारी वे मातायें जिन्होंने तुम्हें दूध पिलाया हो तथा दूध पीने से संबंधित बहनें, तुम्हारी पत्नियों की मातायें, तुम्हारी पत्नियों की पुत्रियाँ जिनका पालन पोषण तुम्हारी गोद में हुआ हो और उन पत्नियों से तुमने संभोग किया हो, यदि उनसे संभोग न किया हो, तो तुमपर कोई दोष नहीं, तुम्हारे सगे पुत्रों की पत्नियाँ और ये[2] कि तुम दो बहनों को एकत्र करो, परन्तु जो हो चुका। वास्तव में, अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है।

4:24

وَالْمُحْصَنٰتُ مِنَ النِّسَاۤءِ اِلَّا مَا مَلَكَتْ اَيْمَانُكُمْ ۚ كِتٰبَ اللّٰهِ عَلَيْكُمْ ۚ وَاُحِلَّ لَكُمْ مَّا وَرَاۤءَ ذٰلِكُمْ اَنْ تَبْتَغُوْا بِاَمْوَالِكُمْ مُّحْصِنِيْنَ غَيْرَ مُسٰفِحِيْنَ ۗ فَمَا اسْتَمْتَعْتُمْ بِهٖ مِنْهُنَّ فَاٰتُوْهُنَّ اُجُوْرَهُنَّ فَرِيْضَةً ۗوَلَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ فِيْمَا تَرَاضَيْتُمْ بِهٖ مِنْۢ بَعْدِ الْفَرِيْضَةِۗ اِنَّ اللّٰهَ كَانَ عَلِيْمًا حَكِيْمًا

वल-मुह़्सनातु मिनन्निसा-इ इल्ला मा म-लकत् ऐमानुकुम्, किताबल्लाहि अलैकुम्, व उहिल्-ल लकुम् मा वरा-अ ज़ालिकुम् अन् तब्तग़ू बिअम्वालिकुम् मुह़्सिनी-न ग़ै-र मुसाफ़िही-न, फ़मस् तम्त अ्तुम् बिही मिन्हुन्-न फ़आतूहुन्-न उजूरहुन्-न फ़री ज़तन्, व ला जुना-ह अलैकुम् फ़ीमा-तराज़ैतुम् बिही मिम्- बअ्दिल फ़री-ज़ति, इन्नल्ला-ह का-न अलीमन् हकीमा
तथा उन स्त्रियों से (विवाह वर्जित है), जो दूसरों के निकाह़ में हों। परन्तु तुम्हारी दासियाँ[1] जो (युध्द में) तुम्हारे हाथ आयी हों। (ये) तुमपर अल्लाह ने लिख दिया[2] है। और इनके सिवा (दूसरी स्त्रियाँ) तुम्हारे लिए ह़लाल (उचित) कर दी गयी हैं। (प्रतिबंध ये है कि) अपने धनों द्वारा व्यभिचार से सुरक्षित रहने के लिए विवाह करो। फिर उनमें से जिससे लाभ उठाओ, उन्हें उनका महर (विवाह उपहार) अवश्य चुका दो तथा महर (विवाह उपहार) निर्धारित करने के पश्चात् (यदि) आपस की सहमति से (कोई कमी या अधिक्ता कर लो), तो तुमपर कोई दोष नहीं। निःसंदेह, अल्लाह अति ज्ञानी, तत्वज्ञ है।

4:25

وَمَن لَّمْ يَسْتَطِعْ مِنكُمْ طَوْلًا أَن يَنكِحَ ٱلْمُحْصَنَـٰتِ ٱلْمُؤْمِنَـٰتِ فَمِن مَّا مَلَكَتْ أَيْمَـٰنُكُم مِّن فَتَيَـٰتِكُمُ ٱلْمُؤْمِنَـٰتِ ۚ وَٱللَّهُ أَعْلَمُ بِإِيمَـٰنِكُم ۚ بَعْضُكُم مِّنۢ بَعْضٍۢ ۚ فَٱنكِحُوهُنَّ بِإِذْنِ أَهْلِهِنَّ وَءَاتُوهُنَّ أُجُورَهُنَّ بِٱلْمَعْرُوفِ مُحْصَنَـٰتٍ غَيْرَ مُسَـٰفِحَـٰتٍۢ وَلَا مُتَّخِذَٰتِ أَخْدَانٍۢ ۚ فَإِذَآ أُحْصِنَّ فَإِنْ أَتَيْنَ بِفَـٰحِشَةٍۢ فَعَلَيْهِنَّ نِصْفُ مَا عَلَى ٱلْمُحْصَنَـٰتِ مِنَ ٱلْعَذَابِ ۚ ذَٰلِكَ لِمَنْ خَشِىَ ٱلْعَنَتَ مِنكُمْ ۚ وَأَن تَصْبِرُوا۟ خَيْرٌۭ لَّكُمْ ۗ وَٱللَّهُ غَفُورٌۭ رَّحِيمٌۭ

व मल्लम् यस्ततिअ् मिन्कुम तौलन् अय्यन् किहल् मुह़्सनातिल्-मुअ्मिनाति फ-मिम्मा म-लकत् ऐमानुकुम् मिन् फ़-तयातिकुमुल् मुअ्मिनाति, वल्लाहु अअ्लमु बिईमानिकुम, बअ् ज़ुकुम् मिम्-बअ्ज़िन, फ़न्किहू हुन्-न बि-इज़्नि अह़्लिहिन्-न व आतूहुन्-न उजूरहुन्-न बिल्मअ्-रूफ़ि मुह्सनातिन् ग़ै-र मुसाफ़िहातिंव्वला मुत्तख़िज़ाति अख़्दानिन्, फ़-इज़ा उह़्सिन्-न फ़-इन् अतै-न बिफाहि-शतिन् फ़- अलैहिन्-न निस्फु मा अलल् मुह्सनाति मिनल-अज़ाबि, ज़ालि-क लिमन् ख़शियल अ-न-त मिन्कुम्, व अन् तस्बिरू ख़ैरुल्लकुम्, वल्लाहु ग़फूरुर्रहीम
और जो व्यक्ति तुममें से स्वतंत्र ईमान वालियों से विवाह करने की सकत न रखे, तो वह अपने हाथों में आई हुई अपनी ईमान वाली दासियों से (विवाह कर ले)। दरअसल, अल्लाह तुम्हारे ईमान को अधिक जानता है। तुम आपस में एक ही हो[1]। अतः तुम उनके स्वामियों की अनुमति से उन (दासियों) से विवाह कर लो और उन्हें नियमानुसार उनके महर (विवाह उपहार) चुका दो, वे सती हों, व्यभिचारिणी न हों, न गुप्त प्रेमी बना रखी हों। फिर जब वे विवाहित हो जायें, तो यदि व्यभिचार कर जायें, तो उनपर उसका आधा[2] दण्ड है, जो स्वतंत्र स्त्रियों पर है। ये (दासी से विवाह) उसके लिए है, जो तुममें से व्यभिचार से डरता हो और सहन करो, तो ये तुम्हारे लिए अधिक अच्छा है और अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है।

4:26

يُرِيدُ ٱللَّهُ لِيُبَيِّنَ لَكُمْ وَيَهْدِيَكُمْ سُنَنَ ٱلَّذِينَ مِن قَبْلِكُمْ وَيَتُوبَ عَلَيْكُمْ ۗ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌۭ

युरीदुल्लाहु लि-युबय्यि-न लकुम् व यह्दि-यकुम् सु-ननल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिकुम् व यतू-ब अलैकुम्, वल्लाहु अलीमुन् हकीम
अल्लाह चाहता है कि तुम्हारे लिए उजागर कर दे तथा तुम्हें भी उनकी नीतियों की राह दर्शा दे, जो तुमसे पहले थे और तुम्हारी क्षमा याचना स्वीकार करे। अल्लाह अति ज्ञानी तत्वज्ञ है।

4:27

وَٱللَّهُ يُرِيدُ أَن يَتُوبَ عَلَيْكُمْ وَيُرِيدُ ٱلَّذِينَ يَتَّبِعُونَ ٱلشَّهَوَٰتِ أَن تَمِيلُوا۟ مَيْلًا عَظِيمًۭا

वल्लाहु युरीदु अंय्यतू-ब अलैकुम्, वयुरीदुल्लज़ी-न यत्तबिअूनश्श हवाति अन् तमीलू मैलन् अज़ीमा
और अल्लाह चाहता है कि तुमपर दया करे तथा जो लोग आकांक्षाओं के पीछे पड़े हुए हैं, वे चाहते हैं कि तुम बहुत अधिक झुक[1] जाओ।

4:28

يُرِيدُ ٱللَّهُ أَن يُخَفِّفَ عَنكُمْ ۚ وَخُلِقَ ٱلْإِنسَـٰنُ ضَعِيفًۭا

युरीदुल्लाहु अंय्युख़फ्फि-फ अन्कुम्, व ख़ुलिक़ल् – इन्सानु ज़ईफा
अल्लाह तुम्हारा (बोझ) हल्का करना[1] चाहता है तथा मानव निर्बल पैदा किया गया है।

4:29

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ لَا تَأْكُلُوٓا۟ أَمْوَٰلَكُم بَيْنَكُم بِٱلْبَـٰطِلِ إِلَّآ أَن تَكُونَ تِجَـٰرَةً عَن تَرَاضٍۢ مِّنكُمْ ۚ وَلَا تَقْتُلُوٓا۟ أَنفُسَكُمْ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِكُمْ رَحِيمًۭا

या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तअ्कुलू अम्वालकुम् बैनकुम् बिल्बातिलि इल्ला अन् तकू-न तिजा-रतन् अन् तराज़िम् मिन्कुम्, व ला तक़्तुलू अन्फु-सकुम्, इन्नल्ला-ह का-न बिकुम रहीमा
हे ईमान वालो! आपस में एक-दूसरे का धन अवैध रूप से न खाओ, परन्तु ये कि लेन-देन तुम्हारी आपस की स्वीकृति से (धर्म विधानुसार) हो और आत्म हत्या[1] न करो, वास्तव में, अल्लाह तुम्हारे लिए अति दयावान् है।

4:30

وَمَن يَفْعَلْ ذَٰلِكَ عُدْوَٰنًۭا وَظُلْمًۭا فَسَوْفَ نُصْلِيهِ نَارًۭا ۚ وَكَانَ ذَٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ يَسِيرًا

व मंय्यफ्अल ज़ालि-क अुद्-वानंव-व ज़ुल्मन् फ़सौ-फ़ नुस्लीहि नारन्, व का-न ज़ालि-क अलल्लाहि यसीरा
और जो अतिक्रमण तथा अत्याचार से ऐसा करेगा, समीप है कि हम उसे अग्नि में झोंक देंगे और ये अल्लाह के लिए सरल है।

4:31

إِن تَجْتَنِبُوا۟ كَبَآئِرَ مَا تُنْهَوْنَ عَنْهُ نُكَفِّرْ عَنكُمْ سَيِّـَٔاتِكُمْ وَنُدْخِلْكُم مُّدْخَلًۭا كَرِيمًۭا

इन् तज्तनिबू कबा-इ-र मा तुन्हौ-न अन्हु नुकफ्फिर अन्कुम् सय्यि आतिकुम् व नुद्खिल्कुम् मुद्-ख़लन् करीमा
तथा यदि तुम, उन महा पापों से बचते रहे, जिनसे तुम्हें रोका जा रहा है, तो हम तुम्हारे लिए तुम्हारे दोषों को क्षमा कर देंगे और तुम्हें सम्मानित स्थान में प्रवेश देंगे।

4:32

وَلَا تَتَمَنَّوْا۟ مَا فَضَّلَ ٱللَّهُ بِهِۦ بَعْضَكُمْ عَلَىٰ بَعْضٍۢ ۚ لِّلرِّجَالِ نَصِيبٌۭ مِّمَّا ٱكْتَسَبُوا۟ ۖ وَلِلنِّسَآءِ نَصِيبٌۭ مِّمَّا ٱكْتَسَبْنَ ۚ وَسْـَٔلُوا۟ ٱللَّهَ مِن فَضْلِهِۦٓ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِكُلِّ شَىْءٍ عَلِيمًۭا

व ला त-तमन्नौ मा फज़्जलल्लाहु बिही बअ्ज़कुम् अला बअ्ज़िन्, लिर्रिजालि नसीबुम् मिम्-मक्त-सबू, व लिन्निसा-इ नसीबुम् मिम्-मक्त-सब्-न, वस्अलुल्ला- ह मिन् फ़ज्लिही, इन्नल्ला- ह का-न बिकुल्लि शैइन् अलीमा
तथा उसकी कामना न करो, जिसके द्वारा अल्लाह ने तुम्हें एक-दूसरे पर श्रेष्ठता दी है। पुरुषों के लिए उसका भाग है, जो उन्होंने कमाया[1] और स्त्रियों के लिए उसका भाग है, जो उन्होंने कमाया है। तथा अल्लह से उससे अधिक की प्रार्थना करते रहो। निःसंदेह अल्लाह सब कुछ जानता है।

4:33

وَلِكُلٍّۢ جَعَلْنَا مَوَٰلِىَ مِمَّا تَرَكَ ٱلْوَٰلِدَانِ وَٱلْأَقْرَبُونَ ۚ وَٱلَّذِينَ عَقَدَتْ أَيْمَـٰنُكُمْ فَـَٔاتُوهُمْ نَصِيبَهُمْ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍۢ شَهِيدًا

व लिकुल्लिन् जअल्ना मवालि-य मिम्मा त-रकल्- वालिदानि वल-अक़्रबू-न, वल्लज़ी-न अ-क़दत् ऐमानुकुम् फ़-आतूहुम् नसीबहुम्, इन्नल्ला-ह का-न अला कुल्लि शैइन् शहीदा
और हमने प्रत्येक के लिए वारिस (उत्तराधिकारी) बना दिये हैं, उसमें से जो माता-पिता तथा समीपवर्तियों ने छोड़ा हो तथा जिनसे तुमने समझौता[1] किया हो, उन्हें उनका भाग दो। वास्तव में, अल्लाह प्रत्येक चीज़ से सूचित है।

4:34

ٱلرِّجَالُ قَوَّٰمُونَ عَلَى ٱلنِّسَآءِ بِمَا فَضَّلَ ٱللَّهُ بَعْضَهُمْ عَلَىٰ بَعْضٍۢ وَبِمَآ أَنفَقُوا۟ مِنْ أَمْوَٰلِهِمْ ۚ فَٱلصَّـٰلِحَـٰتُ قَـٰنِتَـٰتٌ حَـٰفِظَـٰتٌۭ لِّلْغَيْبِ بِمَا حَفِظَ ٱللَّهُ ۚ وَٱلَّـٰتِى تَخَافُونَ نُشُوزَهُنَّ فَعِظُوهُنَّ وَٱهْجُرُوهُنَّ فِى ٱلْمَضَاجِعِ وَٱضْرِبُوهُنَّ ۖ فَإِنْ أَطَعْنَكُمْ فَلَا تَبْغُوا۟ عَلَيْهِنَّ سَبِيلًا ۗ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلِيًّۭا كَبِيرًۭا

अर्रिजालु क़व्वामू-न अलन्निसा-इ बिमा फज़्ज़लल्लाहु बअ्ज़हुम् अला बअ्जिंव् व बिमा अन्फक़ू मिन् अम्वालिहिम्, फ़स्सालिहातु क़ानितातुन् हाफ़िज़ातुल्-लिल् ग़ैबि बिमा हफ़िज़ल्लाहु, वल्लाती तख़ाफू-न नुशूज़हुन्-न फ-अिज़ूहुन-न वह़्जुरुहुन्न फिल्मज़ाजिअि वज़्रिब्रूहुन्-न, फ इन् अ-तअ्नकुम् फला तब्ग़ू अलैहिन्-न सबीलन्, इन्नल्ला-ह का-न अलिय्यन् कबीरा
पुरुष स्त्रियों के व्यवस्थापक[1] हैं, इस कारण कि अल्लाह ने उनमें से एक को दूसरे पर प्रधानता दी है तथा इस कारण कि उन्होंने अपने धनों में से (उनपर) ख़र्च किया है। अतः, सदाचारी स्त्रियाँ वो हैं, जो आज्ञाकारी तथा उनकी (अर्थात, पतियों की) अनुपस्थिति में अल्लाह की रक्षा में उनके अधिकारों की रक्षा करती हों। फिर तुम्हें जिनकी अवज्ञा का डर हो, तो उन्हें समझाओ और शयनागारों (सोने के स्थानों) में उनसे अलग हो जाओ तथा उन्हें मारो। फिर यदि वे तुम्हारी बात मानें, तो उनपर अत्याचार का बहाना न खोजो और अल्लाह सबसे ऊपर, सबसे बड़ा है।

4:35

وَإِنْ خِفْتُمْ شِقَاقَ بَيْنِهِمَا فَٱبْعَثُوا۟ حَكَمًۭا مِّنْ أَهْلِهِۦ وَحَكَمًۭا مِّنْ أَهْلِهَآ إِن يُرِيدَآ إِصْلَـٰحًۭا يُوَفِّقِ ٱللَّهُ بَيْنَهُمَآ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلِيمًا خَبِيرًۭا

व इन् ख़िफ्तुम् शिक़ा-क़ बैनिहिमा फ़ब्-असू ह-कमम् मिन् अह़्लिही व ह-कमम् मिन् अह़्लिहा, इंय्युरीदा इस्लाहंय्युवफ्फ़िक़िल्लाहु बैनहुमा, इन्नल्ला-ह का-न अलीमन् ख़बीरा
और यदि तुम्हें[1] दोनों के बीच वियोग का डर हो, तो एक मध्यस्त उस (पति) के घराने से तथा एक मध्यस्त उस (पत्नी) के घराने से नियुक्त करो, यदि वे दोनों संधि कराना चाहेंगे, तो अल्लाह उन दोनों[2] के बीच संधि करा देगा। वास्तव में, अल्लाह अति ज्ञानी सर्वसूचित है।

4:36

وَاعْبُدُوا اللّٰهَ وَلَا تُشْرِكُوْا بِهٖ شَيْـًٔا وَّبِالْوَالِدَيْنِ اِحْسَانًا وَّبِذِى الْقُرْبٰى وَالْيَتٰمٰى وَالْمَسٰكِيْنِ وَالْجَارِ ذِى الْقُرْبٰى وَالْجَارِ الْجُنُبِ وَالصَّاحِبِ بِالْجَنْۢبِ وَابْنِ السَّبِيْلِۙ وَمَا مَلَكَتْ اَيْمَانُكُمْ ۗ اِنَّ اللّٰهَ لَا يُحِبُّ مَنْ كَانَ مُخْتَالًا فَخُوْرًاۙ

वअ्बुदुल्ला-ह व ला तुश्रिकू बिही शैअंव्-व बिल्-वालिदैनि इह़्सानंव्-व बि-ज़िल्कुरबा वल्यतामा वल्मसाकीनि वल्जारि ज़िल्क़ुरबा वल्जारिल-जुनुबि वस्साहिबि बिल ज़म्बि वब्निस्सबीलि, व मा म-लकत् ऐमानुकुम्, इन्नल्ला-ह ला युहिब्बु मन् का-न मुख़्तालन् फ़खूरा
तथा अल्लाह की इबादत (वंदना) करो, किसी चीज़ को उसका साझी न बनाओ तथा माता-पिता, समीपवर्तियों, अनाथों, निर्धनों, समीप और दूर के पड़ोसी, यात्रा के साथी, यात्रि और अपने दास दासियों के साथ उपकार करो। निःसंदेह अल्लाह उससे प्रेम नहीं करता, जो अभिमानी अहंकारी[1] हो।

4:37

ٱلَّذِينَ يَبْخَلُونَ وَيَأْمُرُونَ ٱلنَّاسَ بِٱلْبُخْلِ وَيَكْتُمُونَ مَآ ءَاتَىٰهُمُ ٱللَّهُ مِن فَضْلِهِۦ ۗ وَأَعْتَدْنَا لِلْكَـٰفِرِينَ عَذَابًۭا مُّهِينًۭا

अल्लज़ी-न यब्ख़लू-न व यअ्मुरूनन्-ना-स बिल् -बुख़्लि व यक्तुमू-न मा आताहुमुल्लाहु मिन् फज़्लिही, व अअ्तद्ना लिल्काफ़िरी-न अज़ाबम्-मुहीना
और जो स्वयं कृपण (कंजूसी) करते हैं तथा दूसरों को भी कृपण (कंजूसी) का आदेश देते हैं और उसे छुपाते हैं, जो अल्लाह ने उन्हें अपनी दया से प्रदान किया है। हमने कृतघ्नों के लिए अपमानकारी यातना तैयार कर रखी है।

4:38

وَٱلَّذِينَ يُنفِقُونَ أَمْوَٰلَهُمْ رِئَآءَ ٱلنَّاسِ وَلَا يُؤْمِنُونَ بِٱللَّهِ وَلَا بِٱلْيَوْمِ ٱلْـَٔاخِرِ ۗ وَمَن يَكُنِ ٱلشَّيْطَـٰنُ لَهُۥ قَرِينًۭا فَسَآءَ قَرِينًۭا

वल्लज़ी-न युन्फ़िक़ू-न अम्वालहुम् रिआअन्नासि वला युअ्मिनू-न बिल्लाहि वला बिल् यौमिल्-आख़िरि, व मंय्यकुनिश्शैतानु लहू क़रीनन् फ़सा-अ क़रीना
तथा जो लोग अपना धन, लोगों को दिखाने के लिए दान करते हैं और अल्लह तथा अंतिम दिन (प्रलय) पर ईमान नहीं रखते तथा शैतान जिसका साथी हो, तो वह बहुत बुरा साथी[1] है।

4:39

وَمَاذَا عَلَيْهِمْ لَوْ ءَامَنُوا۟ بِٱللَّهِ وَٱلْيَوْمِ ٱلْـَٔاخِرِ وَأَنفَقُوا۟ مِمَّا رَزَقَهُمُ ٱللَّهُ ۚ وَكَانَ ٱللَّهُ بِهِمْ عَلِيمًا

व माज़ा अलैहिम् लौ आमनू बिल्लाहि वल्यौमिल्- आख़िरि व अन्फक़ू मिम्मा र-ज़-क-हुमुल्लाहु, व कानल्लाहु बिहिम् अलीमा
और उनका क्या बिगड़ जाता, यदि वे अल्लाह तथा अन्तिम दिन (परलोक) पर ईमान (विश्वास) रखते और अल्लाह ने जो उन्हें दिया है, उसमें से दान करते? और अल्लाह उन्हें भली-भाँति जानता है।

4:40

إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَظْلِمُ مِثْقَالَ ذَرَّةٍۢ ۖ وَإِن تَكُ حَسَنَةًۭ يُضَـٰعِفْهَا وَيُؤْتِ مِن لَّدُنْهُ أَجْرًا عَظِيمًۭا

इन्नल्ला-ह ला यज़्लिमु मिस्क़ा-ल ज़र्रतिन्, व इन् तकु ह-स-नतंय्युज़ाअिफ्हा व युअ्ति मिल्लदुन्हु अज्रन् अ़ज़ीमा
अल्लाह कण भर भी किसी पर अत्याचार नहीं करता, यदि कुछ भलाई (किसी ने) की हो, तो (अल्लाह) उसे अधिक कर देता है तथा अपने पास से बड़ा प्रतिफल प्रदान करता है।

4:41

فَكَيْفَ إِذَا جِئْنَا مِن كُلِّ أُمَّةٍۭ بِشَهِيدٍۢ وَجِئْنَا بِكَ عَلَىٰ هَـٰٓؤُلَآءِ شَهِيدًۭا

फ़कै-फ़ इज़ा जिअ्ना मिन् कुल्लि उम्मतिम् बि-शहीदिंव्-व जिअ्ना बि-क अला हा-उला-इ शहीदा
तो क्या दशा होगी, जब हम प्रत्येक उम्मत (समुदाय) से एक साक्षी लायेंगे और (हे नबी!) आपको उनपर (बनाकर) साक्षी लायेंगे[1]

4:42

يَوْمَئِذٍۢ يَوَدُّ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ وَعَصَوُا۟ ٱلرَّسُولَ لَوْ تُسَوَّىٰ بِهِمُ ٱلْأَرْضُ وَلَا يَكْتُمُونَ ٱللَّهَ حَدِيثًۭا

यौमइजिंय्-यवद्दुल्लज़ी-न क-फरू व अ-सवुर्-रसू-ल लौ तुसव्वा बिहिमुल्-अर्ज़ु, व ला यक्तुमूनल्ला-ह हदीसा
उस दिन, जो काफ़िर तथा रसूल के अवज्ञाकारी हो गये, ये कामना करेंगे कि उनके सहित भूमि बराबर[1] कर दी जाये और वे अल्लाह से कोई बात छुपा नहीं सकेंगे।

4:43

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ لَا تَقْرَبُوا۟ ٱلصَّلَوٰةَ وَأَنتُمْ سُكَـٰرَىٰ حَتَّىٰ تَعْلَمُوا۟ مَا تَقُولُونَ وَلَا جُنُبًا إِلَّا عَابِرِى سَبِيلٍ حَتَّىٰ تَغْتَسِلُوا۟ ۚ وَإِن كُنتُم مَّرْضَىٰٓ أَوْ عَلَىٰ سَفَرٍ أَوْ جَآءَ أَحَدٌۭ مِّنكُم مِّنَ ٱلْغَآئِطِ أَوْ لَـٰمَسْتُمُ ٱلنِّسَآءَ فَلَمْ تَجِدُوا۟ مَآءًۭ فَتَيَمَّمُوا۟ صَعِيدًۭا طَيِّبًۭا فَٱمْسَحُوا۟ بِوُجُوهِكُمْ وَأَيْدِيكُمْ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَفُوًّا غَفُورًا

या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तक़्रबुस्सला-त व अन्तुम् सुकारा हत्ता तअ्लमू मा तक़ूलू-न व ला जुनुबन् इल्ला आबिरी सबीलिन् हत्ता तग़्तसिलू, व इन् कुन्तुम् मर्ज़ा औ अला स-फ़रिन् औ जा-अ अ-हदुम् मिन्कुम् मिनल्ग़ा-इति औ लामस्तुमुन्निसा-अ फ़-लम् तजिदू माअन् फ़-तयम्ममू सईदन् तय्यिबन् फम्सहू बिवुजूहिकुम् व ऐदीकुम्, इन्नल्ला-ह का-न अफुव्वन् ग़फूरा
हे ईमान वालो! तुम जब नशे[1] में रहो, तो नमाज़ के समीप न जाओ, जब तक जो कुछ बोलो, उसे न समझो और न जनाबत[2] की स्थिति में (मस्जिदों के समीप जाओ), परन्तु रास्ता पार करते हुए। यदि तुम रोगी हो अथवा यात्रा में रहो या स्त्रियों से सहवास कर लो, फिर जल न पाओ, तो पवित्र मिट्टी से तयम्मुम[3] कर लो; उसे अपने मुखों तथा हाथों पर फेर लो। वास्तव में, अल्लाह अति क्षांत (सहिष्णु) क्षमाशील है।

4:44

أَلَمْ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ أُوتُوا۟ نَصِيبًۭا مِّنَ ٱلْكِتَـٰبِ يَشْتَرُونَ ٱلضَّلَـٰلَةَ وَيُرِيدُونَ أَن تَضِلُّوا۟ ٱلسَّبِيلَ

अलम् त-र इलल्लज़ी-न ऊतू नसीबम् मिनल किताबि यश्तरूनज़्ज़ला-ल-त व युरीदू-न अन् तज़िल्लुस्सबील
क्या आपने उनकी दशा नहीं देखी, जिन्हें पुस्तक[1] का कुछ भाग दिया गया? वे कुपथ ख़रीद रहे हैं तथा चाहते हैं कि तुमभी सुपथ से विचलित हो जाओ।

4:45

وَٱللَّهُ أَعْلَمُ بِأَعْدَآئِكُمْ ۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ وَلِيًّۭا وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ نَصِيرًۭا

वल्लाहु अअ्लमु बि-अअ्दा-इकुम्, व कफ़ा बिल्लाहि वलिय्यंव्-व कफ़ा बिल्लाहि नसीरा
तथा अल्लाह तुम्हारे शत्रुओं से भली-भाँति अवगत है और (तुम्हारे लिए) अल्लाह की रक्षा काफ़ी है तथा अल्लाह की सहायता काफ़ी है।

4:46

مِّنَ ٱلَّذِينَ هَادُوا۟ يُحَرِّفُونَ ٱلْكَلِمَ عَن مَّوَاضِعِهِۦ وَيَقُولُونَ سَمِعْنَا وَعَصَيْنَا وَٱسْمَعْ غَيْرَ مُسْمَعٍۢ وَرَٰعِنَا لَيًّۢا بِأَلْسِنَتِهِمْ وَطَعْنًۭا فِى ٱلدِّينِ ۚ وَلَوْ أَنَّهُمْ قَالُوا۟ سَمِعْنَا وَأَطَعْنَا وَٱسْمَعْ وَٱنظُرْنَا لَكَانَ خَيْرًۭا لَّهُمْ وَأَقْوَمَ وَلَـٰكِن لَّعَنَهُمُ ٱللَّهُ بِكُفْرِهِمْ فَلَا يُؤْمِنُونَ إِلَّا قَلِيلًۭا

मिनल्लज़ी-न हादू युहर्रिफूनल कलि-म अम्मवाज़िअिही व यक़ूलू-न समिअ्ना व असैना वस्मअ् ग़ै-र मुस्मअिव्-व राअिना लय्यम् बि अल्सिनतिहिम् व तअ्नन् फ़िद्दीनि, व लौ अन्नहुम क़ालू समिअ्ना व अतअ्-न वस्मअ् वन्ज़ुर्ना लका-न ख़ैरल्लहुम् व अक्-व म, वला किल्-ल-अ-नहुमुल्लाहु बिकुफ्रिहिम् फला युअ्मिनू-न इल्ला क़लीला
(हे नबी!) यहूदियों में से कुछ लोग ऐसे हैं, जो शब्दों को उनके (वास्तविक) स्थानों से फेरते हैं और (आपसे) कहते हैं कि हमने सुन लिया तथा (आपकी) अवज्ञा की और आप सुनिए, आप सुनाये न जायें! तथा अपनी ज़ुबानें मोड़कर “राइना” कहते और सत्धर्म में व्यंग करते हैं और यदि वे “हमने सुन लिया और आज्ञाकारी हो गये” और “हमें देखिए” कहते, तो उनके लिए अधिक अच्छी तथा सही बात होती। परन्तु अल्लाह ने उनके कुफ़्र के कारण उन्हें धिक्कार दिया है। अतः, उनमें से थोड़े ही ईमान लायेंगे।

4:47

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ أُوتُوا۟ ٱلْكِتَـٰبَ ءَامِنُوا۟ بِمَا نَزَّلْنَا مُصَدِّقًۭا لِّمَا مَعَكُم مِّن قَبْلِ أَن نَّطْمِسَ وُجُوهًۭا فَنَرُدَّهَا عَلَىٰٓ أَدْبَارِهَآ أَوْ نَلْعَنَهُمْ كَمَا لَعَنَّآ أَصْحَـٰبَ ٱلسَّبْتِ ۚ وَكَانَ أَمْرُ ٱللَّهِ مَفْعُولًا

या अय्युहल्लज़ी-न ऊतुल्-किता-ब आमिनू बिमा नज़्ज़ल्ना मुसद्दिक़ल्लिमा म-अकुम् मिन् क़ब्लि अन्नत्मि-स वुजूहन् फ़-नरूद्दहा अला अदबारिहा औ नल्अ नहुम् कमा ल-अन्ना अस्हाबस्सब्ति, व का-न अमरूल्लाहि मफ्अूला
हे अहले किताब! उस (क़ुर्आन) पर ईमान लाओ, जिसे हमने उन (पुस्तकों) का प्रमाणकारी बनाकर उतारा है, जो तुम्हारे साथ हैं, इससे पहले कि हम चेहरे बिगाड़ कर पीछे कर दें अथवा उन्हें ऐसे ही धिक्कार[1] दें, जैसे शनिवार वालों को धिक्कार दिया। अल्लाह का आदेश पूरा हो कर रहा।

4:48

إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَغْفِرُ أَن يُشْرَكَ بِهِۦ وَيَغْفِرُ مَا دُونَ ذَٰلِكَ لِمَن يَشَآءُ ۚ وَمَن يُشْرِكْ بِٱللَّهِ فَقَدِ ٱفْتَرَىٰٓ إِثْمًا عَظِيمًا

इन्नल्ला-ह ला यग़्फ़िरू अंय्युश्र क बिही व यग़्फ़िरू मा दू-न ज़ालि-क लिमंय्यशा-उ व मंय्युश्रिक् बिल्लाहि फ-क़दिफ्तरा इस्मन् अज़ीमा
निःसंदेह अल्लाह ये नहीं क्षमा करेगा कि उसका साझी बनाया जाये[1] और उसके सिवा जिसे चाहे, क्षमा कर देगा। जो अल्लाह का साझी बनाता है, तो उसने महा पाप गढ़ लिया।

4:49

أَلَمْ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ يُزَكُّونَ أَنفُسَهُم ۚ بَلِ ٱللَّهُ يُزَكِّى مَن يَشَآءُ وَلَا يُظْلَمُونَ فَتِيلًا

अलम् त-र इलल्लज़ी-न युज़क्कू-न अन्फुसहुम, बलिल्लाहु युज़क्की मंय्यशा-उ वला युज़्लमू-न फतीला
क्या आपने उन्हें नहीं देखा, जो अपने आप पवित्र बन रहे हैं? बल्कि अल्लाह जिसे चाहे, पवित्र करता है और (लोगों पर) कण बराबर अत्याचार नहीं किया जायेगा।

4:50

ٱنظُرْ كَيْفَ يَفْتَرُونَ عَلَى ٱللَّهِ ٱلْكَذِبَ ۖ وَكَفَىٰ بِهِۦٓ إِثْمًۭا مُّبِينًا

उन्ज़ुर कै-फ यफ्तरू-न अलल्लाहिल-कज़ि-ब, व कफा बिही इस्मम् मुबीना
देखो, ये लोग कैसे अल्लाह पर मिथ्या आरोप लगा रहे[1] हैं! उनके खुले पाप के लिए यही बहुत है।

4:51

أَلَمْ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ أُوتُوا۟ نَصِيبًۭا مِّنَ ٱلْكِتَـٰبِ يُؤْمِنُونَ بِٱلْجِبْتِ وَٱلطَّـٰغُوتِ وَيَقُولُونَ لِلَّذِينَ كَفَرُوا۟ هَـٰٓؤُلَآءِ أَهْدَىٰ مِنَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ سَبِيلًا

अलम् त-र इलल्लज़ी-न ऊतू नसीबम् मिनल्-किताबि युअ्मिनू-न बिल-जिब्ति वत्ताग़ूति व यक़ूलू-न लिल्लज़ी-न क-फरू हा-उला-इ अह्दा मिनल्लज़ी-न आमनू सबीला
(हे नबी!) क्या आपने उनकी दशा नहीं देखी, जिन्हें पुस्तक का कुछ भाग दिया गया? वे मूर्तियों तथा शैतानों पर ईमान (विश्वास) रखते हैं और काफ़िरों[1] के बारे में कहते हैं कि ये ईमान वालों से अधिक सीधी डगर पर हैं।

4:52

أُو۟لَـٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ لَعَنَهُمُ ٱللَّهُ ۖ وَمَن يَلْعَنِ ٱللَّهُ فَلَن تَجِدَ لَهُۥ نَصِيرًا

उला-इकल्लज़ी-न ल-अ नहुमुल्लाहु, व मंय्यल अनिल्लाहु फ़-लन् तजि-द लहू नसीरा
और जिसे अल्लाह धिक्कार दे, आप उसका कदापि कोई सहायक नहीं पाएंगे।

4:53

أَمْ لَهُمْ نَصِيبٌۭ مِّنَ ٱلْمُلْكِ فَإِذًۭا لَّا يُؤْتُونَ ٱلنَّاسَ نَقِيرًا

अम् लहुम् नसीबुम् मिनल-मुल्कि फ-इज़ल्ला युअ्तूनन्ना-स नक़ीरा
क्या उनके पास राज्य का कोई भाग है, इसलिए लोगों को (उसमें से) तनिक भी नहीं देंगे?

4:54

أَمْ يَحْسُدُونَ ٱلنَّاسَ عَلَىٰ مَآ ءَاتَىٰهُمُ ٱللَّهُ مِن فَضْلِهِۦ ۖ فَقَدْ ءَاتَيْنَآ ءَالَ إِبْرَٰهِيمَ ٱلْكِتَـٰبَ وَٱلْحِكْمَةَ وَءَاتَيْنَـٰهُم مُّلْكًا عَظِيمًۭا

अम् यह़्सुदूनन्ना-स अला मा आताहुमुल्लाहु मिन् फ़ज़्लिही, फ़-क़द् आतैना आ-ल इब्राहीमल्-किता-ब वल्हिक्म-त व आतैनाहुम् मुल्कन् अज़ीमा
बल्कि वे लोगों[1] से उस अनुग्रह पर विद्वेष कर रहे हैं, जो अल्लाह ने उन्हें प्रदान किया है। तो हमने (पहले भी) इब्राहीम के घराने को पुस्तक तथा ह़िक्मत (तत्वदर्शिता) दी है और उन्हें विशाल राज्य प्रदान किया है।

4:55

فَمِنْهُم مَّنْ ءَامَنَ بِهِۦ وَمِنْهُم مَّن صَدَّ عَنْهُ ۚ وَكَفَىٰ بِجَهَنَّمَ سَعِيرًا

फ-मिन्हुम मन् आम-न बिही व मिन्हुम् मन् सद् -द अन्हु, व कफ़ा बि-जहन्न-म सईरा
फिर उनमें से कोई ईमान लाया और कोई उससे विमुख हो गया। (तो विमुख होने वाले के लिए) नरक की भड़कती अग्नि बहुत है।

4:56

إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ بِـَٔايَـٰتِنَا سَوْفَ نُصْلِيهِمْ نَارًۭا كُلَّمَا نَضِجَتْ جُلُودُهُم بَدَّلْنَـٰهُمْ جُلُودًا غَيْرَهَا لِيَذُوقُوا۟ ٱلْعَذَابَ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَزِيزًا حَكِيمًۭا

इन्नल्लज़ी-न क-फरू बिआयातिना सौ-फ़ नुस्लीहिम् नारन्, कुल्लमा नज़िजत् जुलूदुहुम् बद्दल्नाहुम् जुलूदन ग़ै रहा लि-यज़ूक़ुल-अज़ा-ब, इन्नल्ला-ह का-न अज़ीज़न हकीमा
वास्तव में, जिन लोगों ने हमारी आयतों के साथ कुफ़्र (अविश्वास) किया, हम उन्हें नरक में झोंक देंगे। जब-जब उनकी खालें पकेंगी, हम उनकी खालें बदल देंगे, ताकि वे यातना चखें, निःसंदेह अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ है।

4:57

وَٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ سَنُدْخِلُهُمْ جَنَّـٰتٍۢ تَجْرِى مِن تَحْتِهَا ٱلْأَنْهَـٰرُ خَـٰلِدِينَ فِيهَآ أَبَدًۭا ۖ لَّهُمْ فِيهَآ أَزْوَٰجٌۭ مُّطَهَّرَةٌۭ ۖ وَنُدْخِلُهُمْ ظِلًّۭا ظَلِيلًا

वल्लज़ी-न आमनू व अमिलुस्सालिहाति सनुद्ख़िलुहुम् जन्नातिन् तज्री मिन् तह़्तिहल-अन्हारू ख़ालिदी-न फ़ीहा अ-बदन्, लहुम् फ़ीहा अज़्वाजुम् मुतह़्ह-रतुंव्-व नुद्ख़िलुहुम् ज़िल्लन् ज़लीला
और जो लोग ईमान लाये तथा सदाचार किये, हम उन्हें ऐसे स्वर्गों में प्रवेश देंगे, जिनमें नहरें प्रवाहित हैं। जिनमें वे सदावासी होंगे, उनके लिए उनमें निर्मल पत्नियाँ होंगी और हम उन्हें घनी छाँवों में रखेंगे।

4:58

۞ إِنَّ ٱللَّهَ يَأْمُرُكُمْ أَن تُؤَدُّوا۟ ٱلْأَمَـٰنَـٰتِ إِلَىٰٓ أَهْلِهَا وَإِذَا حَكَمْتُم بَيْنَ ٱلنَّاسِ أَن تَحْكُمُوا۟ بِٱلْعَدْلِ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ نِعِمَّا يَعِظُكُم بِهِۦٓ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ سَمِيعًۢا بَصِيرًۭا

इन्नल्ला-ह यअ्मुरूकुम् अन् तु-अद्दुल अमानाति इला अह़्लिहा, व इज़ा हकम्तुम् बैनन्नासि अन् तह़्कुमू बिल-अद्लि, इन्नल्ला-ह निअिम्मा यअिज़ुकुम बिही, इन्नल्ला-ह का-न समीअ़म् बसीरा
अल्लाह[1] तुम्हें आदेश देता है कि धरोहर उनके स्वामियों को चुका दो और जब लोगों के बीच निर्णय करो, तो न्याय के साथ निर्णय करो। अल्लाह तुम्हें अच्छी बात का निर्देश दे रहा है। निःसंदेह अल्लाह सब कुछ सुनने-देखने वाला है।

4:59

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ أَطِيعُوا۟ ٱللَّهَ وَأَطِيعُوا۟ ٱلرَّسُولَ وَأُو۟لِى ٱلْأَمْرِ مِنكُمْ ۖ فَإِن تَنَـٰزَعْتُمْ فِى شَىْءٍۢ فَرُدُّوهُ إِلَى ٱللَّهِ وَٱلرَّسُولِ إِن كُنتُمْ تُؤْمِنُونَ بِٱللَّهِ وَٱلْيَوْمِ ٱلْـَٔاخِرِ ۚ ذَٰلِكَ خَيْرٌۭ وَأَحْسَنُ تَأْوِيلًا

या अय्युहल्लज़ी-न आमनू अतीअुल्ला-ह व अतीउर्रसू-ल व उलिल्-अम्रि मिन्कुम्, फ़-इन् तनाज़अ्तुम् फी शैइन् फरूद्दूहु इलल्लाहि वर्रसूलि इन् कुन्तुम् तुअ्मिनू-न बिल्लाहि वल्यौमिल-आख़िरि, ज़ालि-क खैरूंव्-व अह्सनु तअ्वीला
हे ईमान वालो! अल्लाह की आज्ञा का अनुपालन करो और रसूल की आज्ञा का अनुपालन करो तथा अपने शासकों की आज्ञापालन करो। फिर यदि किसी बात में तुम आपस में विवाद (विभेद) कर लो, तो उसे अल्लाह और रसूल की ओर फेर दो, यदि तुम अल्लाह तथा अन्तिम दिन (प्रलय) पर ईमान रखते हो। ये तुम्हारे लिए अच्छा[1] और इसका परिणाम अच्छा है।

4:60

أَلَمْ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ يَزْعُمُونَ أَنَّهُمْ ءَامَنُوا۟ بِمَآ أُنزِلَ إِلَيْكَ وَمَآ أُنزِلَ مِن قَبْلِكَ يُرِيدُونَ أَن يَتَحَاكَمُوٓا۟ إِلَى ٱلطَّـٰغُوتِ وَقَدْ أُمِرُوٓا۟ أَن يَكْفُرُوا۟ بِهِۦ وَيُرِيدُ ٱلشَّيْطَـٰنُ أَن يُضِلَّهُمْ ضَلَـٰلًۢا بَعِيدًۭا

अलम् त-र इलल्लज़ी-न यज़्अुमू-न अन्नहुम् आमनू बिमा उन्ज़ि-ल इलै-क व मा उन्ज़ि-ल मिन् क़ब्लि-क युरीदू-न अंय्य तहाकमू इलत्ताग़ूति व क़द् उमिरू अंय्यक्फुरु बिही, व युरीदुश्शैतानु अंय्युज़िल्लहुम् ज़लालम् बईदा
(हे नबी!) क्या आपने उन द्विधावादियों (मुनाफ़िक़ों) को नहीं जाना, जिनका ये दावा है कि जो कुछ आपपर अवतरित हुआ है तथा जो कुछ आपसे पूर्व अवतरित हुआ है, उनपर ईमान रखते हैं, किन्तु चाहते हैं कि अपने विवाद का निर्णय विद्रोही के पास ले जायें, जबकि उन्हें आदेश दिया गया है कि उसे अस्वीकार कर दें? और शैतान चाहता है कि उन्हें सत्धर्म से बहुत दूर[1] कर दे।

4:61

وَإِذَا قِيلَ لَهُمْ تَعَالَوْا۟ إِلَىٰ مَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ وَإِلَى ٱلرَّسُولِ رَأَيْتَ ٱلْمُنَـٰفِقِينَ يَصُدُّونَ عَنكَ صُدُودًۭا

व इज़ा क़ी-ल लहुम् तआलौ इला मा अन्ज़लल्लाहु व इलर्रसूलि रअय्तल्-मुनाफ़िक़ी-न यसुद्दू-न अन्-क सुदूदा
तथा जब उनसे कहा जाता है कि उस (क़ुर्आन) की ओर आओ, जो अल्लाह ने उतारा है तथा रसूल की (सुन्नत की) ओर, तो आप मुनाफ़िक़ों (द्विधावादियों) को देखते हैं कि वे आपसे मुँह फेर रहे हैं।

4:62

فَكَيْفَ إِذَآ أَصَـٰبَتْهُم مُّصِيبَةٌۢ بِمَا قَدَّمَتْ أَيْدِيهِمْ ثُمَّ جَآءُوكَ يَحْلِفُونَ بِٱللَّهِ إِنْ أَرَدْنَآ إِلَّآ إِحْسَـٰنًۭا وَتَوْفِيقًا

फ़कै-फ़ इज़ा असाबत्हुम् मुसीबतुम् बिमा क़द्दमत् ऐदीहिम् सुम्-म जाऊ-क यहलिफू-न, बिल्लाहि इन् अरद्ना इल्ला इहसानंव्-व तौफीक़ा
फिर यदि उनके अपने ही करतूतों के कारण उनपर कोई आपदा आ पड़े, तो फिर आपके पास आ कर शपथ लेते हैं कि हमने[1] तो केवल भलाई तथा (दोनों पक्षों में) मेल कराना चाहा था।

4:63

أُو۟لَـٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ يَعْلَمُ ٱللَّهُ مَا فِى قُلُوبِهِمْ فَأَعْرِضْ عَنْهُمْ وَعِظْهُمْ وَقُل لَّهُمْ فِىٓ أَنفُسِهِمْ قَوْلًۢا بَلِيغًۭا

उलाइ-कल्लज़ी-न यअ् लमुल्लाहु मा फ़ी क़ुलूबिहिम्, फ़-अअ्-रिज़् अन्हुम् व अिज़्हुम् व क़ुल्-लहुम् फ़ी अन्फुसिहिम् क़ौलम् बलीग़ा
यही वो लोग हैं, जिनके दिलों के भीतर की बातें अल्लाह जानता है। अतः, आप उन्हें क्षमा कर दें और उनसे ऐसी प्रभावी बात बोलें, जो उनके दिलों में उतर जाये।

4:64

وَمَآ أَرْسَلْنَا مِن رَّسُولٍ إِلَّا لِيُطَاعَ بِإِذْنِ ٱللَّهِ ۚ وَلَوْ أَنَّهُمْ إِذ ظَّلَمُوٓا۟ أَنفُسَهُمْ جَآءُوكَ فَٱسْتَغْفَرُوا۟ ٱللَّهَ وَٱسْتَغْفَرَ لَهُمُ ٱلرَّسُولُ لَوَجَدُوا۟ ٱللَّهَ تَوَّابًۭا رَّحِيمًۭا

व मा अरसल्ना मिर्रसूलिन् इल्ला लियुता-अ बि- इज़्निल्लाहि, व लौ अन्नहुम् इज़्-ज़-लमू अन्फु-सहुम् जाऊ-क फ़स्तग़्फरूल्ला-ह वस्तग़्फ-र लहुमुर्रसूलु ल-व-जदुल्ला-ह तव्वाबर्रहीमा
और हमने जो भी रसूल भेजा, वो इसलिए, ताकि अल्लाह की अनुमति से, उसकी आज्ञा का पालन किया जाये और जब उन लोगों ने अपने ऊपर अत्याचार किया, तो यदि वे आपके पास आते, फिर अल्लाह से क्षमा याचना करते तथा उनके लिए रसूल क्षमा की प्रार्थना करते, तो अल्लाह को अति क्षमाशील दयावान् पाते।

4:65

فَلَا وَرَبِّكَ لَا يُؤْمِنُونَ حَتَّىٰ يُحَكِّمُوكَ فِيمَا شَجَرَ بَيْنَهُمْ ثُمَّ لَا يَجِدُوا۟ فِىٓ أَنفُسِهِمْ حَرَجًۭا مِّمَّا قَضَيْتَ وَيُسَلِّمُوا۟ تَسْلِيمًۭا

फ़ला व रब्बि-क ला युअ्मिनू-न हत्ता युहक्किमू-क फ़ीमा श-ज-र बैनहुम् सुम्-म ला यजिदू फ़ी अन्फुसिहिम् ह-रजम्-मिम्मा क़ज़ै-त व युसल्लिमू तस्लीमा
तो आपके पालनहार की शपथ! वे कभी ईमान वाले नहीं हो सकते, जब तक अपने आपस के विवाद में आपको निर्णायक न बनाएँ[1], फिर आप जो निर्णय कर दें, उससे अपने दिलों में तनिक भी संकीर्णता (तंगी) का अनुभव न करें और पूर्णता स्वीकार कर लें।

4:66

وَلَوْ أَنَّا كَتَبْنَا عَلَيْهِمْ أَنِ ٱقْتُلُوٓا۟ أَنفُسَكُمْ أَوِ ٱخْرُجُوا۟ مِن دِيَـٰرِكُم مَّا فَعَلُوهُ إِلَّا قَلِيلٌۭ مِّنْهُمْ ۖ وَلَوْ أَنَّهُمْ فَعَلُوا۟ مَا يُوعَظُونَ بِهِۦ لَكَانَ خَيْرًۭا لَّهُمْ وَأَشَدَّ تَثْبِيتًۭا

व लौ अन्ना कतब् ना अलैहिम् अनिक़्तुलू अन्फु-सकुम् अविख़्रूजू मिन् दियारिकुम् मा फ़-अलूहु इल्ला क़लीलुम्-मिन्हुम, व लौ अन्नहुम् फ़-अलू मा यू-अज़ू-न बिही लका-न ख़ैरल्लहुम् व अशद् -द तस्बीता
और यदि हम उन्हें[1] आदेश देते कि स्वयं को वध करो तथा अपने घरों से निकल जाओ, तो इनमें से थोड़े के सिवा कोई ऐसा नहीं करता। जबकि उन्हें जो निर्देश दिया जाता है, यदि वे उसका पालन करते, तो उनके लिए अच्छा और अधिक स्थिरता का कारण होता।

4:67

وَإِذًۭا لَّـَٔاتَيْنَـٰهُم مِّن لَّدُنَّآ أَجْرًا عَظِيمًۭا

व इज़ल-लआतैनाहुम् मिल्लदुन्ना अज्रन् अज़ीमा
और हम उन्हें अपने पास से बहुत बड़ा प्रतिफल देते।

4:68

وَلَهَدَيْنَـٰهُمْ صِرَٰطًۭا مُّسْتَقِيمًۭا

वल-हदैनाहुम् सिरातम् मुस्तक़ीमा
तथा हम उन्हें सीधी डगर दर्शा देते।

4:69

وَمَن يُطِعِ ٱللَّهَ وَٱلرَّسُولَ فَأُو۟لَـٰٓئِكَ مَعَ ٱلَّذِينَ أَنْعَمَ ٱللَّهُ عَلَيْهِم مِّنَ ٱلنَّبِيِّـۧنَ وَٱلصِّدِّيقِينَ وَٱلشُّهَدَآءِ وَٱلصَّـٰلِحِينَ ۚ وَحَسُنَ أُو۟لَـٰٓئِكَ رَفِيقًۭا

व मंय्युतिअिल्ला-ह वर्रसू-ल फ-उलाइ-क मअ़ल्लज़ी-न अन् अ-मल्लाहु अलैहिम् मिनन्-नबिय्यी-न वसिद्दीक़ी-न वश्शु-हदा-इ वस्सालिही-न, व हसु-न उलाइ-क रफ़ीक़ा
तथा जो अल्लाह और रसूल की आज्ञा का अनुपालन करेंगे, वही (स्वर्ग में), उनके साथ होंगे, जिनपर अल्लाह ने पुरस्कार किया है, अर्थात नबियों, सत्यवादियों, शहीदों और सदाचारियों के साथ और वे क्या ही अच्छे साथी हैं?

4:70

ذَٰلِكَ ٱلْفَضْلُ مِنَ ٱللَّهِ ۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ عَلِيمًۭا

ज़ालिकल्-फज़्लु मिनल्लाहि, व कफ़ा बिल्लाहि अलीमा
ये प्रदान अल्लाह की ओर से है और अल्लाह का ज्ञान बहुत[1] है।

4:71

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ خُذُوا۟ حِذْرَكُمْ فَٱنفِرُوا۟ ثُبَاتٍ أَوِ ٱنفِرُوا۟ جَمِيعًۭا

या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ख़ुज़ू हिज़्रकुम फ़न्फिरू सुबातिन् अविन्फ़िरू जमीआ
हे ईमान वालो! अपने (शत्रु से) बचाव के साधन तैयार रखो, फिर गिरोहों में अथवा एक साथ निकल पड़ो।

4:72

وَإِنَّ مِنكُمْ لَمَن لَّيُبَطِّئَنَّ فَإِنْ أَصَـٰبَتْكُم مُّصِيبَةٌۭ قَالَ قَدْ أَنْعَمَ ٱللَّهُ عَلَىَّ إِذْ لَمْ أَكُن مَّعَهُمْ شَهِيدًۭا

व इन्-न मिन्कुम् ल-मल्लयुबत्तिअन्-न फ़-इन् असाबत्कुम् मुसीबतुन् क़ा-ल क़द् अन्अ-मल्लाहु अलय्-य इज़् लम् अकुम् म-अहुम् शहीदा
और तुममें कोई ऐसा व्यक्ति[1] भी है, जो तुमसे अवश्य पीछे रह जोएगा और यदि तुमपर (युध्द में) कोई आपदा आ पड़े, तो कहेगाः अल्लाह ने मुझपर उपकार किया कि मैं उनके साथ उपस्थित न था।

4:73

وَلَئِنْ أَصَـٰبَكُمْ فَضْلٌۭ مِّنَ ٱللَّهِ لَيَقُولَنَّ كَأَن لَّمْ تَكُنۢ بَيْنَكُمْ وَبَيْنَهُۥ مَوَدَّةٌۭ يَـٰلَيْتَنِى كُنتُ مَعَهُمْ فَأَفُوزَ فَوْزًا عَظِيمًۭا

व ल-इन असाबकुम् फज़्लुम मिनल्लाहि ल-यक़ूलन्-न क-अल्लम् तकुम् बैनकुम् व बैनहू मवद्दतुंय-यालैतनी कुन्तु म-अहुम् फ़-अफू-ज़ फौज़न् अज़ीमा
और यदि तुमपर अल्लाह की दया हो जाये, तो वे अवश्य ये कामना करेगा कि काश! मैं भी उनके साथ होता, तो बड़ी सफलता प्राप्त कर लेता। मानो उसके और तुम्हारे मध्य कोई मित्रता ही न थी।

4:74

۞ فَلْيُقَـٰتِلْ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ ٱلَّذِينَ يَشْرُونَ ٱلْحَيَوٰةَ ٱلدُّنْيَا بِٱلْـَٔاخِرَةِ ۚ وَمَن يُقَـٰتِلْ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ فَيُقْتَلْ أَوْ يَغْلِبْ فَسَوْفَ نُؤْتِيهِ أَجْرًا عَظِيمًۭا

फल्युक़ातिल् फी सबीलिल्लाहिल्लज़ी-न यश्रूनल् -हयातद्दुन्या बिल्आख़ि-रति, व मंय्युक़ातिल फी सबीलिल्लाहि फ-युक़्तल् औ यग़्लिब् फ़सौ-फ नुअ्तीहि अज्रन् अज़ीमा
तो चाहिए कि अल्लाह की राह[1] में वे लोग युध्द करें, जो आख़िरत (परलोक) के बदले सांसारिक जीवन बेच चुके हैं और जो अल्लाह की राह में युध्द करेगा, वो मारा जाये अथवा विजयी हो जाये, हम उसे बड़ा प्रतिफल प्रदान करेंगे।

4:75

وَمَا لَكُمْ لَا تُقَـٰتِلُونَ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ وَٱلْمُسْتَضْعَفِينَ مِنَ ٱلرِّجَالِ وَٱلنِّسَآءِ وَٱلْوِلْدَٰنِ ٱلَّذِينَ يَقُولُونَ رَبَّنَآ أَخْرِجْنَا مِنْ هَـٰذِهِ ٱلْقَرْيَةِ ٱلظَّالِمِ أَهْلُهَا وَٱجْعَل لَّنَا مِن لَّدُنكَ وَلِيًّۭا وَٱجْعَل لَّنَا مِن لَّدُنكَ نَصِيرًا

व मा लकुम् ला तुक़ातिलू-न फी सबीलिल्लाहि वल्-मुस्तज़्अफ़ी न मिनर्रिजालि वन्निसा-इ वल्-विल्दानिल्लज़ी-न यक़ूलू-न रब्बना अख़्रिज्ना मिन् हाज़िहिल् क़रयतिज़्ज़ालिमि अह़्लुहा, वज्अल्लना मिल्लदुन्-क वलिय्यंव-वज्अल्लना मिल्लदुन्-क नसीरा
और तुम्हें क्या हो गया है कि अल्लाह की राह में युध्द नहीं करते, जबकि कितने ही निर्बल पुरुष, स्त्रियाँ और बच्चे हैं, जो गुहार रहे हैं कि हे हमारे पालनहार! हमें इस नगर[1] से निकाल दे, जिसके निवासी अत्याचारी हैं और हमारे लिए अपनी ओर से कोई रक्षक बना दे और हमारे लिए अपनी ओर से कोई सहायक बना दे।

4:76

ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ يُقَـٰتِلُونَ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ ۖ وَٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ يُقَـٰتِلُونَ فِى سَبِيلِ ٱلطَّـٰغُوتِ فَقَـٰتِلُوٓا۟ أَوْلِيَآءَ ٱلشَّيْطَـٰنِ ۖ إِنَّ كَيْدَ ٱلشَّيْطَـٰنِ كَانَ ضَعِيفًا

अल्लज़ी-न आमनू युक़ातिलू-न फ़ी सबीलिल्लाहि, वल्लज़ी-न क-फरू युक़ातिलू-न फी सबीलित्ताग़ूति फ़क़ातिलू औलिया-अश्शैतानि, इन्-न कैद्श्शैतानि का-न ज़ईफ़ा
जो लोग ईमान लाये, वे अल्लाह की राह में युध्द करते हैं और जो काफ़िर हैं, वे उपद्रव के लिए युध्द करते हैं। तो शैतान के साथियों से युध्द करो। निःसंदेह शैतान की चाल निर्बल होती है।

4:77

أَلَمْ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ قِيلَ لَهُمْ كُفُّوٓا۟ أَيْدِيَكُمْ وَأَقِيمُوا۟ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتُوا۟ ٱلزَّكَوٰةَ فَلَمَّا كُتِبَ عَلَيْهِمُ ٱلْقِتَالُ إِذَا فَرِيقٌۭ مِّنْهُمْ يَخْشَوْنَ ٱلنَّاسَ كَخَشْيَةِ ٱللَّهِ أَوْ أَشَدَّ خَشْيَةًۭ ۚ وَقَالُوا۟ رَبَّنَا لِمَ كَتَبْتَ عَلَيْنَا ٱلْقِتَالَ لَوْلَآ أَخَّرْتَنَآ إِلَىٰٓ أَجَلٍۢ قَرِيبٍۢ ۗ قُلْ مَتَـٰعُ ٱلدُّنْيَا قَلِيلٌۭ وَٱلْـَٔاخِرَةُ خَيْرٌۭ لِّمَنِ ٱتَّقَىٰ وَلَا تُظْلَمُونَ فَتِيلًا

अलम् त-र इलल्लज़ी-न क़ी-ल लहुम् कुफ्फू ऐदी-यकुम् व अक़ीमुस्सला-त व आतुज़्ज़का-त, फ़-लम्मा कुति-ब अलैहिमुल्-क़ितालु इज़ा फरीक़ुम् मिन्हुम् यख़्शौनन्ना-स क-ख़श् यतिल्लाहि औ अशद्-द ख़श्य -तन्, व क़ालू रब्बना लि-म कतब्-त अलैनल-क़िता-ल, लौ ला अख़्ख़र्तना इला अ-जलिन् क़रीबिन्, क़ुल मताअुद्दुन्या क़लीलुन्, वल आख़ि-रतु ख़ैरूल्-लि मनित्तक़ा, व ला तुज़्लमू-न फ़तीला
(हे नबी!) क्या आपने उनकी दशा नहीं देखी, जिनसे कहा गया था कि अपने हाथों को (युध्द से) रोके रखो, नमाज़ की स्थापना करो और ज़कात दो? परन्तु जब उनपर युध्द करना लिख दिया गया, तो उनमें से एक गिरोह लोगों से ऐसे डर रहा है, जैसे अल्लाह से डर रहा हो या उससे भी अधिक तथा वे कहते हैं कि हे हमारे पालनहार! हमें युध्द करने का आदेश क्यों दे दिया, क्यों न हमें थोड़े दिनों का और अवसर दिया? आप कह दें कि सांसारिक सुख बहुत थोड़ा है तथा परलोक उसके लिए अधिक अच्छा है, जो अल्लाह[1] से डरा और उनपर कण भर भी अत्याचार नहीं किया जायेगा।

4:78

أَيْنَمَا تَكُونُوا۟ يُدْرِككُّمُ ٱلْمَوْتُ وَلَوْ كُنتُمْ فِى بُرُوجٍۢ مُّشَيَّدَةٍۢ ۗ وَإِن تُصِبْهُمْ حَسَنَةٌۭ يَقُولُوا۟ هَـٰذِهِۦ مِنْ عِندِ ٱللَّهِ ۖ وَإِن تُصِبْهُمْ سَيِّئَةٌۭ يَقُولُوا۟ هَـٰذِهِۦ مِنْ عِندِكَ ۚ قُلْ كُلٌّۭ مِّنْ عِندِ ٱللَّهِ ۖ فَمَالِ هَـٰٓؤُلَآءِ ٱلْقَوْمِ لَا يَكَادُونَ يَفْقَهُونَ حَدِيثًۭا

ऐ-न मा तकूनू युद्रिक्कुमुल्-मौतु व लौ कुन्तुम् फ़ी बुरूजिम् मुशय्य- दतिन्, व इन् तुसिब्हुम् ह-स-नतुंय्यक़ूलू हाज़िही मिन् अिन्दिल्लाहि व इन् तुसिब्हुम् सय्यि-अतुंय्यक़ूलू हाज़िही मिन् अिन्दि-क, क़ुल कुल्लुम् मिन् अिन्दिल्लाहि, फ़मालि हा-उला इल्क़ौमि ला यकादू-न यफ़्क़हू-न हदीसा
तुम जहाँ भी रहो, तुम्हें मौत आ पकड़ेगी, यद्यपि दृढ़ दुर्गों में क्यों न रहो। तथा उन्हें यदि कोई सुख पहुँचता है, तो कहते हैं कि ये अल्लाह की ओर से है और यदि कोई आपदा आ पड़े, तो कहते हैं कि ये आपके कारण है। (हे नबी!) उनसे कह दो कि सब अल्लाह की ओर से है। इन लोगों को क्या हो गया कि कोई बात समझने के समीप भी नहीं[1] होते?

4:79

مَّآ أَصَابَكَ مِنْ حَسَنَةٍ فَمِنَ ٱللَّهِ وَمَآ أَصَابَكَ مِن سَيِّئَةٍ فَمِن نَّفْسِكَ وَأَرْسَلْنَٰكَ لِلنَّاسِ رَسُولًا وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ شَهِيدًا

मा असाब-क मिन् ह-स-नतिन् फ़मिनल्लाहि, व मा असाब-क मिन सय्यि-अतिन् फ़-मिन्नफ्सि-क, व अरसल्ना-क लिन्नासि रसूलन, व कफ़ा बिल्लाहि शहीदा
(वास्तविक्ता तो ये है कि) तुम्हें जो सुख पहुँचता है, वह अल्लाह की ओर से होता है तथा जो हानि पहुँचती है, वह स्वयं (तुम्हारे कुकर्मों के) कारण होती है और हमने आपको सब मानव का रसूल (संदेशवाहक) बनाकर भेजा[1] है और (आपके रसूल होने के लिए) अल्लाह का साक्ष्य बहुत है।

4:80

مَّن يُطِعِ ٱلرَّسُولَ فَقَدْ أَطَاعَ ٱللَّهَ وَمَن تَوَلَّىٰ فَمَآ أَرْسَلْنَٰكَ عَلَيْهِمْ حَفِيظًا

मंय्युतिअिर रसू-ल फ़-क़द् अताअल्ला-ह, व मन् तवल्ला फ़मा अरसल्ना-क अलैहिम् हफ़ीज़ा
जिसने रसूल की आज्ञा का अनुपालन किया, (वास्तव में) उसने अल्लाह की आज्ञा का पालन किया तथा जिसने मुँह फेर लिया, तो (हे नबी!) हमने आपको उनका प्रहरी (रक्षक) बनाकर नहीं भेजा[1] है।

4:81

وَيَقُولُونَ طَاعَةٌۭ فَإِذَا بَرَزُوا۟ مِنْ عِندِكَ بَيَّتَ طَآئِفَةٌۭ مِّنْهُمْ غَيْرَ ٱلَّذِى تَقُولُ ۖ وَٱللَّهُ يَكْتُبُ مَا يُبَيِّتُونَ ۖ فَأَعْرِضْ عَنْهُمْ وَتَوَكَّلْ عَلَى ٱللَّهِ ۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ وَكِيلًا

व यक़ूलू-न ताअतुन, फ़-इज़ा ब-रज़ू मिन् अिन्दि-क बय्य-त ता-इ-फतुम् मिन्हुम् ग़ैरल्लज़ी तक़ूलु, वल्लाहु यक्तुबु मा युबय्यितू-न, फ़-अअ्-रिज़ अन्हुम् व तवक्कल अलल्लाहि, व कफ़ा बिल्लाहि वकीला
तथा वे (आपके सामने) कहते हैं कि हम आज्ञाकारी हैं और जब आपके पास से जाते हैं, तो उनमें से कुछ लोग, रात में, आपकी बात के विरुध्द परामर्श करते हैं और वे जो परामर्श कर रहे हैं, उसे अल्लाह लिख रहा है। अतः आप उनपर ध्यान न दें और अल्लाह पर भरोसा करें तथा अल्लाह पर भरोसा काफ़ी है।

4:82

أَفَلَا يَتَدَبَّرُونَ ٱلْقُرْءَانَ ۚ وَلَوْ كَانَ مِنْ عِندِ غَيْرِ ٱللَّهِ لَوَجَدُوا۟ فِيهِ ٱخْتِلَـٰفًۭا كَثِيرًۭا

अ-फला य-तदब्बरूनल् क़ुरआ-न, व लौ का-न मिन् अिन्दि ग़ैरिल्लाहि ल-व जदू फीहिख़्तिलाफ़न् कसीरा
तो क्या वे क़ुर्आन के अर्थों पर सोच-विचार नहीं करते? यदि वे अल्लाह के सिवा दूसरे की ओर से होता, तो उसमें बहुत सी प्रतिकूल (बेमेल) बातें पाते[1]

4:83

وَإِذَا جَآءَهُمْ أَمْرٌۭ مِّنَ ٱلْأَمْنِ أَوِ ٱلْخَوْفِ أَذَاعُوا۟ بِهِۦ ۖ وَلَوْ رَدُّوهُ إِلَى ٱلرَّسُولِ وَإِلَىٰٓ أُو۟لِى ٱلْأَمْرِ مِنْهُمْ لَعَلِمَهُ ٱلَّذِينَ يَسْتَنۢبِطُونَهُۥ مِنْهُمْ ۗ وَلَوْلَا فَضْلُ ٱللَّهِ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَتُهُۥ لَٱتَّبَعْتُمُ ٱلشَّيْطَـٰنَ إِلَّا قَلِيلًۭا

व इज़ा जा-अहुम् अम्रूम् मिनल्-अम्नि अविल्ख़ौफि अज़ाअू बिही, व लौ रद्दूहु इलर्रसूलि व इला उलिल्-अमरि मिन्हुम् ल-अलि-महुल्लज़ी-न यस्तम्बितूनहू मिन्हुम्, व लौ ला फज़्लुल्लाहि अलैकुम्व रह़्मतुहू लत्त-बअ्तुमुश्शैता-न इल्ला क़लीला
और जब उनके पास शांति या भय की कोई सूचना आती है, तो उसे फैला देते हैं। जबकि यदि वे उसे अल्लाह के रसूल तथा अपने अधिकारियों की ओर फेर देते, तो जो बात की तह तक पहुँचने वाले हैं, वे उसकी वास्तविक्ता जान लेते। यदि तुमपर अल्लाह की अनुकम्पा तथा दया न होती, तो तुममें थोड़े के सिवा सब शैतान के पीछे भाग[1] जाते।

4:84

فَقَـٰتِلْ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ لَا تُكَلَّفُ إِلَّا نَفْسَكَ ۚ وَحَرِّضِ ٱلْمُؤْمِنِينَ ۖ عَسَى ٱللَّهُ أَن يَكُفَّ بَأْسَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ ۚ وَٱللَّهُ أَشَدُّ بَأْسًۭا وَأَشَدُّ تَنكِيلًۭا

फक़ातिल् फ़ी सबीलिल्लाहि, ला तुकल्लफु इल्ला नफ्स-क व हर्रिज़िल-मुअ्मिनी-न, असल्लाहु अंय्यकुफ्-फ़ बअ्सल्लज़ी-न क-फरू, वल्लाहु अशद्दु बअ्संव् व अशद्दु तन्कीला
तो (हे नबी!) आप अल्लाह की राह में युध्द करें। केवल आपपर ये भार डाला जा रहा है तथा ईमान वालों को (इसकी) प्रेरणा दें। संभव है कि अल्लाह काफ़िरों का बल (तोड़ दे)। अल्लाह का बल और उसका दण्ड सबसे कड़ा है।

4:85

مَّن يَشْفَعْ شَفَـٰعَةً حَسَنَةًۭ يَكُن لَّهُۥ نَصِيبٌۭ مِّنْهَا ۖ وَمَن يَشْفَعْ شَفَـٰعَةًۭ سَيِّئَةًۭ يَكُن لَّهُۥ كِفْلٌۭ مِّنْهَا ۗ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍۢ مُّقِيتًۭا

मंय्यश्फअ् शफ़ा-अतन् हस नतंय्यकुल्लहू नसीबुम् मिन्हा, व मंय्यश्फअ् शफा-अतन् सय्यि-अतंय्यकुल्लहू किफ्लुम् मिन्हा, व कानल्लाहु अला कुल्लि शैइम्-मुक़ीता
जो अच्छी अनुशंसा (सिफ़ारिश) करेगा, उसे उसका भाग (प्रतिफल) मिलेगा तथा जो बुरी अनुशंसा (सिफ़ारिश) करेगा, तो उसे भी उसका भाग (कुफल)[1] मिलेगा और अल्लाह प्रत्येक चीज़ का निरीक्षक है।

4:86

وَإِذَا حُيِّيتُم بِتَحِيَّةٍۢ فَحَيُّوا۟ بِأَحْسَنَ مِنْهَآ أَوْ رُدُّوهَآ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍ حَسِيبًا

व इज़ा हुय्यीतुम बि-तहिय्यतिन् फहय्यू बि-अह्स-न मिन्हा औ रूद्दूहा, इन्नल्ला-ह का-न अला कुल्लि शैइन् हसीबा
और जब तुमसे सलाम किया जाये, तो उससे अच्छा उत्तर दो अथवा उसी को दोहरा दो। निःसंदेह अल्लाह प्रत्येक विषय का ह़िसाब लेने वाला है।

4:87

ٱللَّهُ لَآ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ ۚ لَيَجْمَعَنَّكُمْ إِلَىٰ يَوْمِ ٱلْقِيَـٰمَةِ لَا رَيْبَ فِيهِ ۗ وَمَنْ أَصْدَقُ مِنَ ٱللَّهِ حَدِيثًۭا

अल्लाहु ला इला-ह इल्ला हु-व, ल-यज्म अन्नकुम् इला यौमिल् क़ियामति ला रै-ब फ़ीहि, व मन् अस्दक़ु मिनल्लाहि हदीसा
अल्लाह के सिवा कोई वंदनीय (पूज्य) नहीं, वह अवश्य तुम्हें प्रलय के दिन एकत्र करेगा, इसमें कोई संदेह नहीं तथा बात कहने में अल्लाह से अधिक सच्चा कौन हो सकता है?

4:88

فَمَا لَكُمْ فِى الْمُنٰفِقِيْنَ فِئَتَيْنِ وَاللّٰهُ اَرْكَسَهُمْ بِمَا كَسَبُوْا ۗ اَتُرِيْدُوْنَ اَنْ تَهْدُوْا مَنْ اَضَلَّ اللّٰهُ ۗوَمَنْ يُّضْلِلِ اللّٰهُ فَلَنْ تَجِدَ لَهٗ سَبِيْلًا

फमा लकुम् फिल्मुनाफिक़ी-न फि-अतैनि वल्लाहु अर्क-सहुम् बिमा क-सबू, अतुरीदू-न अन् तह़्दू मन् अज़ल्लल्लाहु, व मंय्युज़्लिलिल्लाहु फ-लन् तजि-द लहू सबीला
तुम्हें क्या हुआ है कि मुनाफ़िक़ों (द्विधावादियों) के बारे में दो पक्ष[1] बन गये हो, जबकि अल्लाह ने उनके कुकर्मों के कारण उन्हें ओंधा कर दिया है। क्या तुम उसे सुपथ दर्शा देना चाहते हो, जिसे अल्लाह ने कुपथ कर दिया हो? और जिसे अल्लाह कुपथ कर दे, तो तुम उसके लिए कोई राह नहीं पा सकते।

4:89

وَدُّوا۟ لَوْ تَكْفُرُونَ كَمَا كَفَرُوا۟ فَتَكُونُونَ سَوَآءًۭ ۖ فَلَا تَتَّخِذُوا۟ مِنْهُمْ أَوْلِيَآءَ حَتَّىٰ يُهَاجِرُوا۟ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ ۚ فَإِن تَوَلَّوْا۟ فَخُذُوهُمْ وَٱقْتُلُوهُمْ حَيْثُ وَجَدتُّمُوهُمْ ۖ وَلَا تَتَّخِذُوا۟ مِنْهُمْ وَلِيًّۭا وَلَا نَصِيرًا

वद्-दू लौ तक्फुरू-न कमा क-फरू फ़-तकूनू-न सवा-अन् फला तत्तख़िज़ू मिन्हुम् औलिया-अ हत्ता युहाजिरू फी सबीलिल्लाहि, फ़-इन् तवल्लौ फख़ुज़ू-हुम् वक़्तुलू-हुम् हैसु वजत्तुमू-हुम्, व ला तत्तख़िज़ू मिन्हुम् वलिय्यंव्-व ला नसीरा
(हे ईमान वालो!) वे तो ये कामना करते हैं कि उन्हीं के समान तुमभी काफ़िर हो जाओ तथा उनके बराबर हो जाओ। अतः उनमें से किसी को मित्र न बनाओ, जब तक वे अल्लाह की राह में हिजरत न करें। यदि वे इससे विमुख हों, तो उन्हें जहाँ पाओ, वध करो और उनमें से किसी को मित्र न बनाओ और न सहायक।

4:90

إِلَّا ٱلَّذِينَ يَصِلُونَ إِلَىٰ قَوْمٍۭ بَيْنَكُمْ وَبَيْنَهُم مِّيثَـٰقٌ أَوْ جَآءُوكُمْ حَصِرَتْ صُدُورُهُمْ أَن يُقَـٰتِلُوكُمْ أَوْ يُقَـٰتِلُوا۟ قَوْمَهُمْ ۚ وَلَوْ شَآءَ ٱللَّهُ لَسَلَّطَهُمْ عَلَيْكُمْ فَلَقَـٰتَلُوكُمْ ۚ فَإِنِ ٱعْتَزَلُوكُمْ فَلَمْ يُقَـٰتِلُوكُمْ وَأَلْقَوْا۟ إِلَيْكُمُ ٱلسَّلَمَ فَمَا جَعَلَ ٱللَّهُ لَكُمْ عَلَيْهِمْ سَبِيلًۭا

इल्लल्लज़ी-न यसिलू-न इला क़ौमिम् बैनकुम् व बैनहुम् मीसाक़ुन् औ जाऊकुम् हसिरत् सुदूरूहुम् अंय्युक़ातिलूकुम् औ युक़ातिलू क़ौमहुम्, व लौ शा-अल्लाहु ल-सल्ल-तहुम् अलैकुम् फ़-लक़ातलूकुम, फ़- इनिअ्-त ज़लूकुम् फ-लम् युक़ातिलूकुम् व अल्क़ौ इलैकुमुस्स-ल-म, फमा ज-अलल्लाहु लकुम् अलैहिम् सबीला
परन्तु उनमें से जो किसी ऐसी क़ौम से जा मिलें, जिनके और तुम्हारे बीच संधि हो अथवा ऐसे लोग हों, जो तुम्हारे पास इस स्थिति में आयें कि उनके दिल इससे संकुचित हो रहे हों कि तुमसे युध्द करें अथवा (तुम्हारे साथ) अपनी जाति से युध्द करें। यदि अल्लाह चाहता, तो उनहें तुमपर सामर्थ्य दे देता, फिर वे तुमसे युध्द करते। यदि वे तुमसे विलग रह गये, तुमसे युध्द नहीं किया और तुमसे संधि कर ली, तो उनके विरुध्द अल्लाह ने तुम्हारे लिए कोई (युध्द करने की) राह नहीं बनाई[1] है।

4:91

سَتَجِدُونَ ءَاخَرِينَ يُرِيدُونَ أَن يَأْمَنُوكُمْ وَيَأْمَنُوا۟ قَوْمَهُمْ كُلَّ مَا رُدُّوٓا۟ إِلَى ٱلْفِتْنَةِ أُرْكِسُوا۟ فِيهَا ۚ فَإِن لَّمْ يَعْتَزِلُوكُمْ وَيُلْقُوٓا۟ إِلَيْكُمُ ٱلسَّلَمَ وَيَكُفُّوٓا۟ أَيْدِيَهُمْ فَخُذُوهُمْ وَٱقْتُلُوهُمْ حَيْثُ ثَقِفْتُمُوهُمْ ۚ وَأُو۟لَـٰٓئِكُمْ جَعَلْنَا لَكُمْ عَلَيْهِمْ سُلْطَـٰنًۭا مُّبِينًۭا

स-तजिदू-न आ-ख़री-न युरीदू-न अंय्य अ्मनूकुम व यअ्मनू क़ौमहुम, कुल्लमा रूद्दू इलल-फित्नति उर्किसू फ़ीहा, फ-इल्लम् यअ्-तज़िलूकुम् व युल्क़ू इलैकुमुस्स-ल-म व यकुफ्फू ऐदि-यहुम् फख़ुज़ूहुम् वक़्तुलूहुम् हैसु सक़िफ़्तुमूहुम, व उला-इकुम् जअल्ना लकुम् अलैहिम् सुल्तानम् मुबीना
तथा तुम्हें कुछ ऐसे दूसरे लोग भी मिलेंगे, जो तुम्हारी ओर से भी शान्त रहना चाहते हैं और अपनी जाति की ओर से शांत रहना (चाहते हैं)। फिर जब भी उपद्रव की ओर फेर दिये जायेँ, तो उसमें ओंधे होकर गिर जाते हैं। तो यदि वे तुमसे विलग न रहें और तुमसे संधि न करें तथा अपना हाथ न रोकें, तो उन्हें पकड़ो और जहाँ पाओ, वध करो। हमने उनके विरुध्द तुम्हारे लिए खुला तर्क बना दिया है।

4:92

وَمَا كَانَ لِمُؤْمِنٍ أَن يَقْتُلَ مُؤْمِنًا إِلَّا خَطَـًۭٔا ۚ وَمَن قَتَلَ مُؤْمِنًا خَطَـًۭٔا فَتَحْرِيرُ رَقَبَةٍۢ مُّؤْمِنَةٍۢ وَدِيَةٌۭ مُّسَلَّمَةٌ إِلَىٰٓ أَهْلِهِۦٓ إِلَّآ أَن يَصَّدَّقُوا۟ ۚ فَإِن كَانَ مِن قَوْمٍ عَدُوٍّۢ لَّكُمْ وَهُوَ مُؤْمِنٌۭ فَتَحْرِيرُ رَقَبَةٍۢ مُّؤْمِنَةٍۢ ۖ وَإِن كَانَ مِن قَوْمٍۭ بَيْنَكُمْ وَبَيْنَهُم مِّيثَـٰقٌۭ فَدِيَةٌۭ مُّسَلَّمَةٌ إِلَىٰٓ أَهْلِهِۦ وَتَحْرِيرُ رَقَبَةٍۢ مُّؤْمِنَةٍۢ ۖ فَمَن لَّمْ يَجِدْ فَصِيَامُ شَهْرَيْنِ مُتَتَابِعَيْنِ تَوْبَةًۭ مِّنَ ٱللَّهِ ۗ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمًۭا

व मा का-न लिमुअ्मिनिन् अंय्यक़्तु-ल मुअ्मिनन् इल्ला ख़-तअन्, व मन् क़-त-ल मुअ्मिनन् ख़-तअन् फ़-तह़रीरू र-क़-बतिम् मुअ्मिनतिंव्-व दि-यतुम् मुसल्ल-मतुन् इला अह्-लिही इल्ला अंय्यस्सदक़ू, फ़ इन् का-न मिन् क़ौमिन् अदुविल्लकुम् व हु-व मुअ्मिनुन् फ़-तहरीरू र-क़-बतिम् मुअ्मि-नतिन्, व इन् का-न मिन् क़ौमिम् बैनकुम् व बैनहुम् मिसाक़ुन् फ-दि-यतुम् मुसल्ल-मतुन् इला अह़्लिही व तहरीरू र-क़-बतिम् मुअ्मि-नतिन्, फ़-मल्लम् यजिद् फ़सियामु शह्-रैनि मु-तताबिऐनि, तौब-तम् मिनल्लाहि, व कानल्लाहु अलीमन् हकीमा
किसी ईमान वाले के लिए वैध नहीं कि वो किसी ईमान वाले की हत्या कर दे, परन्तु चूक[1] से। फिर जो किसी ईमान वाले की चूक से हत्या कर दे, तो उसे एक ईमान वाला दास मुक्त करना है और उसके घर वालों को दियत (अर्थदण्ड)[2] देना है, परन्तु ये कि वे दान (क्षमा) कर दें। फिर यदि वह (निहत) उस जाति में से हो, जो तुम्हारी शत्रु है और वह (निहत) ईमान वाला है, तो एक ईमान वाला दास मुक्त करना है और यदि ऐसी क़ौम से हो, जिसके और तुम्हारे बीच संधि है, तो उसके घर वालों को अर्थदण्ड देना तथा एक ईमान वाला दास (भी) मुक्त करना है और जो दास न पाये, उसे निरन्तर दो महीने रोज़ा रखना है। अल्लाह की ओर से (उसके पाप की) यही क्षमा है और अल्लाह अति ज्ञानी तत्वज्ञ है।

4:93

وَمَن يَقْتُلْ مُؤْمِنًۭا مُّتَعَمِّدًۭا فَجَزَآؤُهُۥ جَهَنَّمُ خَـٰلِدًۭا فِيهَا وَغَضِبَ ٱللَّهُ عَلَيْهِ وَلَعَنَهُۥ وَأَعَدَّ لَهُۥ عَذَابًا عَظِيمًۭا

व मंय्यक़्तुल मुअ्मिनम् मु-तअम्मिदन फ-जज़ा-उहू जहन्नमु ख़ालिदन फ़ीहा व ग़ज़िबल्लाहु अलैहि व ल -अ-नहू व अ-अद्-द लहू अज़ाबन् अज़ीमा
और जो किसी ईमान वाले की हत्या जान-बूझ कर कर दे, उसका कुफल (बदला) नरक है, जिसमें वह सदावासी होगा और उसपर अल्लाह का प्रकोप तथा धिक्कार है और उसने उसके लिए घोर यातना तैयार कर रखी है।

4:94

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ إِذَا ضَرَبْتُمْ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ فَتَبَيَّنُوا۟ وَلَا تَقُولُوا۟ لِمَنْ أَلْقَىٰٓ إِلَيْكُمُ ٱلسَّلَـٰمَ لَسْتَ مُؤْمِنًۭا تَبْتَغُونَ عَرَضَ ٱلْحَيَوٰةِ ٱلدُّنْيَا فَعِندَ ٱللَّهِ مَغَانِمُ كَثِيرَةٌۭ ۚ كَذَٰلِكَ كُنتُم مِّن قَبْلُ فَمَنَّ ٱللَّهُ عَلَيْكُمْ فَتَبَيَّنُوٓا۟ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرًۭا

या अय्युहल्लज़ी-न आमनू इज़ा ज़रब्तुम फ़ी सबीलिल्लाहि फ़-तबय्यनू व ला तक़ूलू लिमन् अल्क़ा इलैकुमुस्सला-म लस्-त मुअ्मिनन्, तब्तग़ू-न अ-रज़ल् हयातिदुन्या, फ-अिन्दल्लाहि मग़ानिमु कसीरतुन्, कज़ालि-क कुन्तुम् मिन् क़ब्लु फ़-मन्नल्लाहु अलैकुम् फ़-तबय्यनू, इन्नल्ला-ह का-न बिमा तअ्मलू-न ख़बीरा
हे ईमान वालो! जब तुम अल्लाह की राह में (जिहाद के लिए) निकलो, तो भली-भाँति परख[1] लो और कोई तुम्हें सलाम[2] करे, तो ये न कहो कि तुम ईमान वाले नहीं हो। क्या तुम सांसारिक जीवन का उपकरण चाहते हो? जबकि अल्लाह के पास बहुत-से परिहार (शत्रुधन) हैं। तुमभी पहले ऐसे[3] ही थे, तो अल्लाह ने तुमपर उपकार किया। अतः, भली-भाँति परख लिया करो। निःसंदेह, अल्लाह उससे सूचित है, जो तुम कर रहे हो।

4:95

لَّا يَسْتَوِى ٱلْقَـٰعِدُونَ مِنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ غَيْرُ أُو۟لِى ٱلضَّرَرِ وَٱلْمُجَـٰهِدُونَ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ بِأَمْوَٰلِهِمْ وَأَنفُسِهِمْ ۚ فَضَّلَ ٱللَّهُ ٱلْمُجَـٰهِدِينَ بِأَمْوَٰلِهِمْ وَأَنفُسِهِمْ عَلَى ٱلْقَـٰعِدِينَ دَرَجَةًۭ ۚ وَكُلًّۭا وَعَدَ ٱللَّهُ ٱلْحُسْنَىٰ ۚ وَفَضَّلَ ٱللَّهُ ٱلْمُجَـٰهِدِينَ عَلَى ٱلْقَـٰعِدِينَ أَجْرًا عَظِيمًۭا

ला यस्तविल् क़ाअिदू-न मिनल मुअ्मिनी-न ग़ैरू उलिज़्ज़ररि वल्मुजाहिदू-न फ़ी सबीलिल्लाहि बि-अम्वालिहिम् व अन्फुसिहिम्, फ़ज़्ज़-लल्लाहुल मुजाहिदी-न बि-अम्वालिहिम् व अन्फुसिहिम् अलल्-क़ाअिदी-न द-र-जतन्, व कुल्लंव्-व-अदल्लाहुल-हुस्ना, व फज़्ज़-लल्लाहुल मुजाहिदी-न अलल्-क़ाअिदी-न अज्रन् अज़ीमा
ईमान वालों में जो अकारण अपने घरों में रह जाते हैं और जो अल्लाह की राह में अपने धनों और प्राणों के द्वारा जिहाद करते हैं, दोनों बराबर नहीं हो सकते। अल्लाह ने उन्हें जो अपने धनों तथा प्राणों के द्वारा जिहाद करते हैं, उनपर जो घरों में रह जाते हैं, पद में प्रधानता दी है और प्रत्येक को अल्लाह ने भलाई का वचन दिया है और अल्लाह ने जिहाद करने वालों को उनपर, जो घरों में बैठे रह जाने वाले हैं, बड़े प्रतिफल में भी प्रधानता दी है।

4:96

دَرَجَـٰتٍۢ مِّنْهُ وَمَغْفِرَةًۭ وَرَحْمَةًۭ ۚ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورًۭا رَّحِيمًا

द-रजातिम् मिन्हु व मग़्फि-रतंव् व रह्- मतन्, व कानल्लाहु ग़फूरर्रहीमा
अल्लाह की ओर से कई (उच्च) श्रेणियाँ तथा क्षमा और दया है और अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है।

4:97

إِنَّ ٱلَّذِينَ تَوَفَّىٰهُمُ ٱلْمَلَـٰٓئِكَةُ ظَالِمِىٓ أَنفُسِهِمْ قَالُوا۟ فِيمَ كُنتُمْ ۖ قَالُوا۟ كُنَّا مُسْتَضْعَفِينَ فِى ٱلْأَرْضِ ۚ قَالُوٓا۟ أَلَمْ تَكُنْ أَرْضُ ٱللَّهِ وَٰسِعَةًۭ فَتُهَاجِرُوا۟ فِيهَا ۚ فَأُو۟لَـٰٓئِكَ مَأْوَىٰهُمْ جَهَنَّمُ ۖ وَسَآءَتْ مَصِيرًا

इन्नल्लज़ी-न तवफ्फाहुमुल् मलाइ-कतु ज़ालिमी अन्फुसिहिम् क़ालू फ़ी-म कुन्तुम, क़ालू कुन्ना मुस्तज़्अफ़ी-न फ़िल्अर्जि, क़ालू अलम् तकुन् अर्ज़ुल्लाहि वासि-अ़तन् फतुहाजिरू फ़ीहा, फ़- उलाइ-क मअ्वाहुम् जहन्नमु, व साअत् मसीरा
निःसंदेह वे लोग, जिनके प्राण फ़रिश्ते निकालते हैं, इस दशा में कि वे अपने ऊपर (कुफ़्र के देश में रहकर) अत्याचार करने वाले हों, तो उनसे कहते हैं, तुम किस चीज़ में थे? वे कहते हैं कि हम धरती में विवश थे। तब फ़रिश्ते कहते हैं, क्या अल्लाह की धरती विस्तृत नहीं थी कि तुम उसमें हिजरत कर[1] जाते? तो इन्हीं का आवास नरक है और वह क्या ही बुरा स्थान है!

4:98

إِلَّا ٱلْمُسْتَضْعَفِينَ مِنَ ٱلرِّجَالِ وَٱلنِّسَآءِ وَٱلْوِلْدَٰنِ لَا يَسْتَطِيعُونَ حِيلَةًۭ وَلَا يَهْتَدُونَ سَبِيلًۭا

इल्लल-मुस्तज़् अफी-न मिनर्रिजालि वन्निसा-इ वल् विल्दानि ला यस्ततीअू-न ही लतंव्-व ला यह़्तदू-न सबीला
परन्तु जो पुरुष, स्त्रियाँ तथा बच्चे ऐसे विवश हूँ कि कोई उपाय न रखते हों और न (हिजरत की) कोई राह पाते हों।

4:99

فَأُو۟لَـٰٓئِكَ عَسَى ٱللَّهُ أَن يَعْفُوَ عَنْهُمْ ۚ وَكَانَ ٱللَّهُ عَفُوًّا غَفُورًۭا

फ-उलाइ-क असल्लाहू अंय्यअ्फु व अन्हुम्, व कानल्लाहु अफुव्वन् ग़फूरा
तो आशा है कि अल्लाह उन्हें क्षमा कर देगा। निःसंदेह अल्लाह अति ज्ञान्त क्षमाशील है।

4:100

وَمَنْ يُّهَاجِرْ فِيْ سَبِيْلِ اللّٰهِ يَجِدْ فِى الْاَرْضِ مُرٰغَمًا كَثِيْرًا وَّسَعَةً ۗوَمَنْ يَّخْرُجْ مِنْۢ بَيْتِهٖ مُهَاجِرًا اِلَى اللّٰهِ وَرَسُوْلِهٖ ثُمَّ يُدْرِكْهُ الْمَوْتُ فَقَدْ وَقَعَ اَجْرُهٗ عَلَى اللّٰهِ ۗوَكَانَ اللّٰهُ غَفُوْرًا رَّحِيْمًا ࣖ

व मंय्युहाजिर् फी सबीलिल्लाहि यजिद् फ़िल्अर्ज़ि मुरा-ग़मन् कसीरंव्-व स-अतन्, व मंय्यख़्रूज् मिम्-बैतिही मुहाजिरन् इलल्लाहि व रसूलिही सुम्-म युद्रिक्हुल् मौतु फ़-क़द् व्-क़-अ अज्रूहू अलल्लाहि, व कानल्लाहु ग़फूरर्रहीमा
तथा जो कोई अल्लाह की राह में हिजरत करेगा, वह धरती में बहुत-से निवास स्थान तथा विस्तार पायेगा और जो अपने घर से अल्लाह और उसके रसूल की ओर निकल गया, फिर उसे (राह में ही) मौत ने पकड़ लिया, तो उसका प्रतिफल अल्लाह के पास निश्चित हो गया और अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान् है।

4:101

وَإِذَا ضَرَبْتُمْ فِى ٱلْأَرْضِ فَلَيْسَ عَلَيْكُمْ جُنَاحٌ أَن تَقْصُرُوا۟ مِنَ ٱلصَّلَوٰةِ إِنْ خِفْتُمْ أَن يَفْتِنَكُمُ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓا۟ ۚ إِنَّ ٱلْكَـٰفِرِينَ كَانُوا۟ لَكُمْ عَدُوًّۭا مُّبِينًۭا

व इज़ा ज़रब्तुम् फ़िल् अर्ज़ि फ़्लै-स अलैकुम् जुनाहुन् अन् तक़्सुरू मिनस्सलाति, इन् ख़िफ्तुम् अंय्यफ्ति नकुमुल्लज़ी-न क-फरू, इन्नल्-काफिरी-न कानू लकुम अदुव्वम-मुबीना
और जब तुम धरती में यात्रा करो, तो नमाज़[1] क़स्र (संक्षिप्त) करने में तुमपर कोई दोष नहीं, यदि तुम्हें डर हो कि काफ़िर तुम्हें सतायेंगे। वास्तव में, काफ़िर तुम्हारे खुले शत्रु हैं।

4:102

وَإِذَا كُنتَ فِيهِمْ فَأَقَمْتَ لَهُمُ ٱلصَّلَوٰةَ فَلْتَقُمْ طَآئِفَةٌۭ مِّنْهُم مَّعَكَ وَلْيَأْخُذُوٓا۟ أَسْلِحَتَهُمْ فَإِذَا سَجَدُوا۟ فَلْيَكُونُوا۟ مِن وَرَآئِكُمْ وَلْتَأْتِ طَآئِفَةٌ أُخْرَىٰ لَمْ يُصَلُّوا۟ فَلْيُصَلُّوا۟ مَعَكَ وَلْيَأْخُذُوا۟ حِذْرَهُمْ وَأَسْلِحَتَهُمْ ۗ وَدَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ لَوْ تَغْفُلُونَ عَنْ أَسْلِحَتِكُمْ وَأَمْتِعَتِكُمْ فَيَمِيلُونَ عَلَيْكُم مَّيْلَةًۭ وَٰحِدَةًۭ ۚ وَلَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ إِن كَانَ بِكُمْ أَذًۭى مِّن مَّطَرٍ أَوْ كُنتُم مَّرْضَىٰٓ أَن تَضَعُوٓا۟ أَسْلِحَتَكُمْ ۖ وَخُذُوا۟ حِذْرَكُمْ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ أَعَدَّ لِلْكَـٰفِرِينَ عَذَابًۭا مُّهِينًۭا

व इज़ा कुन् त फ़ीहिम् फ़-अक़म्-त लहुमुस्सला-त फ़ल्तक़ुम् ताइ-फतुम् मिन्हुम् म-अ-क वल्यअ्ख़ुज़ू अस्लि-ह तहुम्, फ़-इज़ा स-जदू फ़ल्यकूनू मिंव्वरा-इकुम्, वल्तअ्ति ताइ-फतुन् उख़्रा लम् युसल्लू फ़्ल्युसल्लू म-अ-क वल्यअ्ख़ुज़ू हिज़्रहुम् व अस्लि-ह-तहुम्, वद्दल्लज़ी-न क-फरू लौ तग़्फुलू-न अन् अस्लि-हतिकुम् व अम्ति-अतिकुम फ़-यमीलू-न अलैकुम् मै-लतंव्वाहि-दतन्, व ला जुना-ह अलैकुम् इन् का-न बिकुम् अज़म्-मिम्-म-तरिन् औ कुन्तुम मरज़ा अन् त-ज़अू अस्लि-ह-तकुम्, व ख़ुज़ू हिज़्रकुम्, इन्नल्ला-ह-अ-अद्-द लिल्काफ़िरी-न अज़ाबम् मुहीना
तथा (हे नबी!) जब आप (रणक्षेत्र में) उपस्थित हों और उनके लिए नमाज़ की स्थापना करें, तो उनका एक गिरोह आपके साथ खड़ा हो जाये और अपने अस्त्र-शस्त्र लिए रहें और जब वे सज्दा कर लें, तो तुम्हारे पीछे हो जायें तथा दूसरा गिरोह आये, जिसने नमाज़ नहीं पढ़ी है और आपके साथ नमाज़ पढ़ें और अपने अस्त्र-शस्त्र लिए रहें। काफ़िर चाहते हैं कि तुम अपने शस्त्रों से निश्चेत हो जाओ, तो तुमपर यकायक धावा बोल दें। फिर तुमपर कोई दोष नहीं, यदि वर्षा के कारण तुम्हें दुःख हो अथवा तुम रोगी रहो कि अपने शस्त्र[1] उतार दो तथा अपने बचाव का ध्यान रखो। निःसंदेह अल्लाह ने काफ़िरों के लिए अपमानकारी यातना तैयार कर रखी है।

4:103

فَإِذَا قَضَيْتُمُ ٱلصَّلَوٰةَ فَٱذْكُرُوا۟ ٱللَّهَ قِيَـٰمًۭا وَقُعُودًۭا وَعَلَىٰ جُنُوبِكُمْ ۚ فَإِذَا ٱطْمَأْنَنتُمْ فَأَقِيمُوا۟ ٱلصَّلَوٰةَ ۚ إِنَّ ٱلصَّلَوٰةَ كَانَتْ عَلَى ٱلْمُؤْمِنِينَ كِتَـٰبًۭا مَّوْقُوتًۭا

फ-इज़ा क़ज़ैतुमुस्सला-त फ़ज़्कुरूल्ला-ह क़ियामंव्-व क़ुअूदंव्-व अला जुनूबिकुम्, फ-इज़त्मअ्नन्तुम् फ-अक़ीमुस्सला-त, इन्नस्सला-त कानत् अलल् मुअ्मिनी-न किताबम् मौक़ूता
फिर जब तुम नमाज़ पूरी कर लो, तो खड़े, बैठे, लेटे प्रत्येक स्थिति में अल्लाह का स्मरण करो और जब तुम शान्त हो जाओ, तो पूरी नमाज़ पढ़ो। निःसंदेह, नमाज़ ईमान वालों पर निर्धारित समय पर अनिवार्य की गयी है।

4:104

وَلَا تَهِنُوا۟ فِى ٱبْتِغَآءِ ٱلْقَوْمِ ۖ إِن تَكُونُوا۟ تَأْلَمُونَ فَإِنَّهُمْ يَأْلَمُونَ كَمَا تَأْلَمُونَ ۖ وَتَرْجُونَ مِنَ ٱللَّهِ مَا لَا يَرْجُونَ ۗ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمًا

व ला तहिनू फिब्तिग़ा-इल्-क़ौमि, इन् तकूनू तअ्लमू-न फ़-इन्नहुम् यअ्लमू-न कमा तअ्लमू-न, व तरजू-न मिनल्लाहि मा ला यरजू-न, व कानल्लाहु अ़लीमन् हकीमा
तथा तुम (शत्रु) जाति का पीछा करने में सिथिल न बनो, यदि तुम्हें दुःख पहुँचा है, तो तुम्हारे समान उन्हें भी दुःख पहुँचा है तथा तुम अल्लाह से जो आशा[1] रखते हो, वो आशा वे नहीं रखते तथा अल्लाह अति ज्ञानी तत्वज्ञ है।

4:105

إِنَّآ أَنزَلْنَآ إِلَيْكَ ٱلْكِتَـٰبَ بِٱلْحَقِّ لِتَحْكُمَ بَيْنَ ٱلنَّاسِ بِمَآ أَرَىٰكَ ٱللَّهُ ۚ وَلَا تَكُن لِّلْخَآئِنِينَ خَصِيمًۭا

इन्ना अन्ज़ल्ना इलैकल्-किता-ब बिल्-हक़्क़ि लि-तह़्कु-म बैनन्नासि बिमा अराकल्लाहु, व ला तकुल लिल-खाइनी-न खसीमा
(हे नबी!) हमने आपकी ओर इस पुस्तक (क़ुर्आन) को सत्य के साथ उतारा है, ताकि आप, लोगों के बीच उसके अनुसार निर्णय करें, जो अल्लाह ने आपको बताया है, और आप विश्वासघातियों के पक्षधर न[1] बनें।

4:106

وَٱسْتَغْفِرِ ٱللَّهَ ۖ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ غَفُورًۭا رَّحِيمًۭا

वस्तग़्फिरिल्ला-ह, इन्नल्ला-ह का-न ग़फूरर्रहीमा
तथा अल्लाह से क्षमा याचना करते रहें, निःसंदेह अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है।

4:107

وَلَا تُجَـٰدِلْ عَنِ ٱلَّذِينَ يَخْتَانُونَ أَنفُسَهُمْ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُحِبُّ مَن كَانَ خَوَّانًا أَثِيمًۭا

व ला तुजादिल् अनिल्लज़ी-न यख़्तानू-न अन्फु-सहुम, इन्नल्ला-ह ला युहिब्बु मन् का-न ख़व्वानन् असीमा
और उनका पक्ष न लें, जो स्वयं अपने साथ विश्वासघात करते हों, निःसंदेह अल्लाह विश्वासघाती, पापी से प्रेम नहीं करता[1]

4:108

يَسْتَخْفُونَ مِنَ ٱلنَّاسِ وَلَا يَسْتَخْفُونَ مِنَ ٱللَّهِ وَهُوَ مَعَهُمْ إِذْ يُبَيِّتُونَ مَا لَا يَرْضَىٰ مِنَ ٱلْقَوْلِ ۚ وَكَانَ ٱللَّهُ بِمَا يَعْمَلُونَ مُحِيطًا

यस्तख़्फू-न मिनन्नासि व ला यस्तख़्फू-न मिनल्लाहि व हु-व म-अहुम् इज़् युबय्यितू-न मा ला यरज़ा मिनल्क़ौलि, व कानल्लाहु बिमा यअ्मलू-न मुहीता
वे (अपने करतूत) लोगों सो छुपा सकते हैं,परन्तु अल्लाह से नहीं छुपा सकते और वह उनके साथ होता है, जब वे रात में उस बात का परामर्श करते हैं, जिससे वह प्रसन्न नहीं[1] होता तथा अल्लाह उसे घेरे हुए है, जो वे कर रहे हैं।

4:109

هَـٰٓأَنتُمْ هَـٰٓؤُلَآءِ جَـٰدَلْتُمْ عَنْهُمْ فِى ٱلْحَيَوٰةِ ٱلدُّنْيَا فَمَن يُجَـٰدِلُ ٱللَّهَ عَنْهُمْ يَوْمَ ٱلْقِيَـٰمَةِ أَم مَّن يَكُونُ عَلَيْهِمْ وَكِيلًۭا

हा-अन्तुम् हा-उला-इ जादल्तुम अन्हुम् फिल्हयातिद्दुन्या, फ-मंय्युजादिलुल्ला-ह अन्हुम् यौमल-क़ियामति अम्-मंय्यकूनु अलैहिम् वकीला
सुनो! तुम ही वो हो कि सांसारिक जीवन में उनकी ओर से झगड़ लिए। तो परलय के दिन उनकी ओर से कौन अल्लाह से झगड़ेगा और कौन उनका अभिभाषक (प्रतिनिधि) होगा?

4:110

وَمَن يَعْمَلْ سُوٓءًا أَوْ يَظْلِمْ نَفْسَهُۥ ثُمَّ يَسْتَغْفِرِ ٱللَّهَ يَجِدِ ٱللَّهَ غَفُورًۭا رَّحِيمًۭا

व मंय्यअ्मल सूअन् औ यज़्लिम् नफ्सहू सुम्-म यस्तग़्फिरिल्ला-ह यजिदिल्ला-ह ग़फूरर्रहीमा
जो व्यक्ति कोई कुकर्म करेगा अथवा अपने ऊपर अत्याचार करेगा, फिर अल्लाह से क्षमा याचना करेगा, तो वह उसे अति क्षमी दयावान् पायेगा।

4:111

وَمَن يَكْسِبْ إِثْمًۭا فَإِنَّمَا يَكْسِبُهُۥ عَلَىٰ نَفْسِهِۦ ۚ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمًۭا

व मंय्यकसिब इस्मन् फ-इन्नम यकसिबुहू अला नफ्सिही, व कानल्लाहु अलीमन् हकीमा
और जो व्यक्ति कोई पाप करता है, तो अपने ऊपर करता[1] है तथा अल्लाह अति ज्ञानी तत्वज्ञ है।

4:112

وَمَن يَكْسِبْ خَطِيٓـَٔةً أَوْ إِثْمًۭا ثُمَّ يَرْمِ بِهِۦ بَرِيٓـًۭٔا فَقَدِ ٱحْتَمَلَ بُهْتَـٰنًۭا وَإِثْمًۭا مُّبِينًۭا

व मंय्यक्सिब ख़ती-अतन् औ इस्मन् सुम-म् यर्मि बिही बरीअन् फ-क़दिह़्त-म-ल बुह्तानंव्-व इस्मम्-मुबीना
और जो व्यक्ति कोई चूक अथवा पाप स्वयं करे और किसी निर्दोष पर उसका आरोप लगा दे, तो उसने मिथ्या दोषारोपन तथा खुले पाप का[1] बोझ अपने ऊपर लाद लिया।

4:113

وَلَوْلَا فَضْلُ ٱللَّهِ عَلَيْكَ وَرَحْمَتُهُۥ لَهَمَّت طَّآئِفَةٌۭ مِّنْهُمْ أَن يُضِلُّوكَ وَمَا يُضِلُّونَ إِلَّآ أَنفُسَهُمْ ۖ وَمَا يَضُرُّونَكَ مِن شَىْءٍۢ ۚ وَأَنزَلَ ٱللَّهُ عَلَيْكَ ٱلْكِتَـٰبَ وَٱلْحِكْمَةَ وَعَلَّمَكَ مَا لَمْ تَكُن تَعْلَمُ ۚ وَكَانَ فَضْلُ ٱللَّهِ عَلَيْكَ عَظِيمًۭا

व लौ ला फज़्लुल्लाहि अलै-क व रह्-मतुहू ल-हम्मत्ता-इ-फतुम् मिन्हुम् अंय्युज़िल्लू-क, व मा युज़िल्लू-न इल्ला’ अन्फु-सहुम् व मा यज़िर्रून-क मिन शैइन्, व अन्ज़लल्लाहु अलैकल्-किता-ब वल्हिक्म-त व अल्ल-म-क मालम् तकुन् तअ्लमु, व का-न फज़्लुल्लाहि अलै-क अज़ीमा
और (हे नबी!) यदि आपपर अल्लाह की दया तथा कृपा न होती, तो उनके एक गिरोह ने संकल्प ले लिया था कि आपको कुपथ कर दें[1] और वे स्वयं को ही कुपथ कर रहे थे। तथा वे आपको कोई हानि नहीं पहुँचा सकते। क्योंकि अल्लाह ने आपपर पुस्तक (क़ुर्आन) तथा हिक्मत (सुन्नत) उतारी है और आपको उसका ज्ञान दे दिया है, जिसे आप नहीं जानते थे तथा ये आपपर अल्लाह की बड़ी दया है।

4:114

لَا خَيْرَ فِيْ كَثِيْرٍ مِّنْ نَّجْوٰىهُمْ اِلَّا مَنْ اَمَرَ بِصَدَقَةٍ اَوْ مَعْرُوْفٍ اَوْ اِصْلَاحٍۢ بَيْنَ النَّاسِۗ وَمَنْ يَّفْعَلْ ذٰلِكَ ابْتِغَاۤءَ مَرْضَاتِ اللّٰهِ فَسَوْفَ نُؤْتِيْهِ اَجْرًا عَظِيْمًا

ला ख़ै-र फी कसीरिम् मिन्नज्वाहुम् इल्ला मन् अ-म-र बि-स-द-क़तिन् औ मअ्-रूफिन् औ इस्लाहिम् बैनन्नासि, व मंय्यफ्अल ज़ालिकब् तिग़ा-अ मरज़ातिल्लाहि फ़सौ-फ़ नुअ्तीहि अज्रन् अज़ीमा
उनके अधिकांश सरगोशी में कोई भलाई नहीं होती, परन्तु जो दान, सदाचार या लोगों में सुधार कराने का आदेश दे और जो कोई ऐसे कर्म अल्लाह की प्रसन्नता के लिए करेगा, तो हम उसे बहुत भारी प्रतिफल प्रदान करेंगे।

4:115

وَمَن يُشَاقِقِ ٱلرَّسُولَ مِنۢ بَعْدِ مَا تَبَيَّنَ لَهُ ٱلْهُدَىٰ وَيَتَّبِعْ غَيْرَ سَبِيلِ ٱلْمُؤْمِنِينَ نُوَلِّهِۦ مَا تَوَلَّىٰ وَنُصْلِهِۦ جَهَنَّمَ ۖ وَسَآءَتْ مَصِيرًا

व मंय्युशाक़िक़िर्रसू-ल मिम्-बअ्दि मा तबय्य-न लहुल्हुदा व यत्तबिअ् ग़ै-र सबीलिल् मुअ्मिनी-न नुवल्लिही मा तवल्ला व नुस्लिही जहन्न-म, व साअत् मसीरा
तथा जो व्यक्ति अपने ऊपर मार्गदर्शन उजागर हो जाने के[1] पश्चात् रसूल का विरोध करे और ईमान वालों की राह के सिवा (दूसरी राह) का अनुसरण करे, तो हम उसे वहीं फेर[2] देंगे, जिधर फिरा है और उसे नरक में झोंक देंगे तथा वह बुरा निवास स्थान है।

4:116

إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَغْفِرُ أَن يُشْرَكَ بِهِۦ وَيَغْفِرُ مَا دُونَ ذَٰلِكَ لِمَن يَشَآءُ ۚ وَمَن يُشْرِكْ بِٱللَّهِ فَقَدْ ضَلَّ ضَلَـٰلًۢا بَعِيدًا

इन्नल्ला-ह ल यग़्फिरू अंय्युश्र-क बिही व यग़्फिरू मा दू-न ज़ालि-क लि-मंय्यशा-उ, व मय्युश्रिक् बिल्लाहि फ़-क़द् ज़ल-ल ज़लालम् बईदा
निःसंदेह, अल्लाह इसे क्षमा[1] नहीं करेगा कि उसका साझी बनाया जाये और इसके सिवा जिसे चाहेगा, क्षमा कर देगा तथा जो अल्लाह का साझी बनाता है, वह (दरअसल) कुपथ में बहुत दूर चला गया।

4:117

إِن يَدْعُونَ مِن دُونِهِۦٓ إِلَّآ إِنَـٰثًۭا وَإِن يَدْعُونَ إِلَّا شَيْطَـٰنًۭا مَّرِيدًۭا

इंय्यद्अू-न मिन् दूनिही इल्ला इनासन् व इंय्यद्अू-न इल्ला शैतानम् मरीदा
वे (मिश्रणवादी), अल्लाह के सिवा देवियों ही को पुकारते हैं और धिक्कारे हुए शैतान को पुकारते हैं।

4:118

لَّعَنَهُ ٱللَّهُ ۘ وَقَالَ لَأَتَّخِذَنَّ مِنْ عِبَادِكَ نَصِيبًۭا مَّفْرُوضًۭا

ल-अ-नहुल्लाहु • व का-ल ल-अत्तखिज़न्-न मिन् अिबादि-क नसीबम् मफ्रूज़ा
जिसे अल्लाह ने धिक्कार दिया है और जिसने कहा था कि मैं तेरे भक्तों से एक निश्चित भाग लेकर रहूँगा।

4:119

وَلَأُضِلَّنَّهُمْ وَلَأُمَنِّيَنَّهُمْ وَلَـَٔامُرَنَّهُمْ فَلَيُبَتِّكُنَّ ءَاذَانَ ٱلْأَنْعَـٰمِ وَلَـَٔامُرَنَّهُمْ فَلَيُغَيِّرُنَّ خَلْقَ ٱللَّهِ ۚ وَمَن يَتَّخِذِ ٱلشَّيْطَـٰنَ وَلِيًّۭا مِّن دُونِ ٱللَّهِ فَقَدْ خَسِرَ خُسْرَانًۭا مُّبِينًۭا

व ल-उज़िल्लन्नहुम् व ल-उमन्नियन्नहुम् व ल-आमुरन्नहुम फ-ल युबत्ति कुन-न आज़ानल-अन् आमि व ला-आमुरन्नहुम् फ़-लयुग़य्यिरून्-न ख़ल्कल्लाहि, व मंय्यत्तखिज़िश्शैता-न वलिय्यम् मिन् दूनिल्लाहि फ़-क़द् ख़सि-र ख़ुसरानम् मुबीना
और उन्हें अवश्य बहकाऊँगा, कामनायें दिलाऊँगा और आदेश दूँगा कि वे पशुओं के कान चीर दें तथा उन्हें आदेश दूँगा, तो वे अवश्य अल्लाह की संरचना में परिवर्तन[1] कर देंगे तथा जो शैतान को अल्लाह के सिवा सहायक बनायेगा, वह खुली क्षति में पड़ जायेगा।

4:120

يَعِدُهُمْ وَيُمَنِّيهِمْ ۖ وَمَا يَعِدُهُمُ ٱلشَّيْطَـٰنُ إِلَّا غُرُورًا

यअिदुहुम् व युमन्नीहिम्, व मा यअिदुहुमुश्शैतानु इल्ला ग़ुरूरा
वह उन्हें वचन देता तथा कामनाओं में उलझाता है और उन्हें जो वचन देता है, वह धोखे के सिवा कुछ नहीं है।

4:121

اُولٰۤىِٕكَ مَأْوٰىهُمْ جَهَنَّمُۖ وَلَا يَجِدُوْنَ عَنْهَا مَحِيْصًا

उलाइ-क मअ्वाहुम् जहन्नमु, व ला यजिदू न अन्हा महीसा
उन्हीं का निवास स्थान नरक है और वे उससे भागने की कोई राह नहीं पायेंगे।

4:122

وَالَّذِيْنَ اٰمَنُوْا وَعَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ سَنُدْخِلُهُمْ جَنّٰتٍ تَجْرِيْ مِنْ تَحْتِهَا الْاَنْهٰرُ خٰلِدِيْنَ فِيْهَآ اَبَدًاۗ وَعْدَ اللّٰهِ حَقًّا ۗوَمَنْ اَصْدَقُ مِنَ اللّٰهِ قِيْلًا

वल्लज़ी-न आमनू व अमिलुस्सालिहाति सनुद्ख़िलुहुम् जन्नातिन् तज्री मिन् तह़्तिहल-अन्हारू ख़ालिदी-न फ़ीहा अ-बदन्, वअ्दल्लाहि हक़्क़न, व मन् अस्दक़ु मिनल्लाहि क़ीला
तथा जो लोग ईमान लाये और सत्कर्म किये, हम उन्हें ऐसे स्वर्गों में प्रवेश देंगे, जिनमें नहरें प्रवाहित होंगी। वे उनमें सदावासी होंगे। ये अल्लाह का सत्य वचन है और अल्लाह से अधिक सत्य कथन किसका हो सकता है?

4:123

لَيْسَ بِاَمَانِيِّكُمْ وَلَآ اَمَانِيِّ اَهْلِ الْكِتٰبِ ۗ مَنْ يَّعْمَلْ سُوْۤءًا يُّجْزَ بِهٖۙ وَلَا يَجِدْ لَهٗ مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ وَلِيًّا وَّلَا نَصِيْرًا

लै-स बि-अमानिय्यिकुम् व ला अमानिय्यि अह्-लिल्-किताबि, मंय्यअ्मल् सूअंय्युज्-ज़ बिही, व ला यजिद् लहू मिन् दूनिल्लाहि वलिय्यंव्-व ला नसीरा
(ये प्रतिफल) तुम्हारी कामनाओं तथा अहले किताब की कामनाओं पर निर्भर नहीं। जो कोई भी दुष्कर्म करेगा, वह उसका कुफल पायेगा तथा अल्लाह के सिवा अपना कोई रक्षक और सहायक नहीं पायेगा।

4:124

وَمَنْ يَّعْمَلْ مِنَ الصّٰلِحٰتِ مِنْ ذَكَرٍ اَوْ اُنْثٰى وَهُوَ مُؤْمِنٌ فَاُولٰۤىِٕكَ يَدْخُلُوْنَ الْجَنَّةَ وَلَا يُظْلَمُوْنَ نَقِيْرًا

व मंय्यअ्मल् मिनस्सालिहाति मिन् ज़-करिन् औ उन्सा व हु-व मुअ्मिनुन् फ़-उलाइ-क यद्ख़्रुलूनल्-जन्न-त व ला युज़्लमू-न नक़ीरा
तथा जो सत्कर्म करेगा, वह नर हो अथवा नारी, फिर ईमान भी[1] रखता होगा, तो वही लोग स्वर्ग में प्रवेश पायेंगे और तनिक भी अत्याचार नहीं किये जायेंगे।

4:125

وَمَنْ اَحْسَنُ دِيْنًا مِّمَّنْ اَسْلَمَ وَجْهَهٗ لِلّٰهِ وَهُوَ مُحْسِنٌ وَّاتَّبَعَ مِلَّةَ اِبْرٰهِيْمَ حَنِيْفًا ۗوَاتَّخَذَ اللّٰهُ اِبْرٰهِيْمَ خَلِيْلًا

व मन् अह़्सनु दीनम् मिम्-मन् अस्ल-म वज्हहू लिल्लाहि व हु-व मुह़्सिनुंव्-वत्त-ब-अ मिल्ल-त इब्राही-म हनीफन्, वत्त ख़ज़ल्लाहु इब्राही-म ख़लीला
तथा उस व्यक्ति से अच्छा किसका धर्म हो सकता है, जिसने स्वयं को अल्लाह के लिए झुका दिया, वह एकेश्वरवादी भी हो और एकेश्वरवादी इब्राहीम के धर्म का अनुसरण कर रहा हो? और अल्लाह ने इब्राहीम को अपना विशुध्द मित्र बना लिया।

4:126

وَلِلّٰهِ مَا فِى السَّمٰوٰتِ وَمَا فِى الْاَرْضِۗ وَكَانَ اللّٰهُ بِكُلِّ شَيْءٍ مُّحِيْطًا ࣖ

व लिल्लाहि मा फिस्समावाति व मा फिल्अर्ज़ि, व कानल्लाहु बिकुल्लि शैइम् मुहीता
तथा अल्लाह ही का है, जो कुछ आकाशों तथा धरती में है और अल्लाह प्रत्येक चीज़ को अपने नियंत्रण में लिए हुए है।

4:127

وَيَسْتَفْتُوْنَكَ فِى النِّسَاۤءِۗ قُلِ اللّٰهُ يُفْتِيْكُمْ فِيْهِنَّ ۙوَمَا يُتْلٰى عَلَيْكُمْ فِى الْكِتٰبِ فِيْ يَتٰمَى النِّسَاۤءِ الّٰتِيْ لَا تُؤْتُوْنَهُنَّ مَا كُتِبَ لَهُنَّ وَتَرْغَبُوْنَ اَنْ تَنْكِحُوْهُنَّ وَالْمُسْتَضْعَفِيْنَ مِنَ الْوِلْدَانِۙ وَاَنْ تَقُوْمُوْا لِلْيَتٰمٰى بِالْقِسْطِ ۗوَمَا تَفْعَلُوْا مِنْ خَيْرٍ فَاِنَّ اللّٰهَ كَانَ بِهٖ عَلِيْمًا

व यस्तफ्तू न-क फिन्निसा-इ, कुलिल्लाहु युफ्तीकुम् फ़ीहिन्-न व मा युत्ला अलैकुम् फ़िल-किताबि फ़ी यतामन्निसा-इल्लाती ला तुअ्तूनहुन्न मा कुति-ब लहुन्- न व तर्ग़बू-न अन् तन्किहूहुन्-न वल्-मुस्तज़्अ़फी-न मिनल्-विल्दानि व अन् तक़ूमू लिल्यतामा बिल्क़िस्ति, व मा तफ्अलू मिन् ख़ैरिन् फ़-इन्नल्ला-ह का-न बिही अलीमा
(हे नबी!) वे स्त्रियों के बारे में आपसे धर्मादेश पूछ रहे हैं। आप कह दें कि अल्लाह उनके बारे में तुम्हें आदेश देता है और वे आदेश भी हैं, जो इससे पूर्व पुस्तक (क़ुर्आन) में तुम्हें, उन अनाथ स्त्रियों के बारे में सुनाये गये हैं, जिनके निर्धारित अधिकार तुम नहीं देते और उनसे विवाह करने की रुची रखते हो तथा उन बच्चों के बारे में भी, जो निर्बल हैं तथा (ये भी आदेश देता है कि) अनाथों के लिए न्याय पर स्थिर रहो[1] तथा तुम जो भी भलाई करते हो, अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है।

4:128

وَاِنِ امْرَاَةٌ خَافَتْ مِنْۢ بَعْلِهَا نُشُوْزًا اَوْ اِعْرَاضًا فَلَا جُنَاحَ عَلَيْهِمَآ اَنْ يُّصْلِحَا بَيْنَهُمَا صُلْحًا ۗوَالصُّلْحُ خَيْرٌ ۗوَاُحْضِرَتِ الْاَنْفُسُ الشُّحَّۗ وَاِنْ تُحْسِنُوْا وَتَتَّقُوْا فَاِنَّ اللّٰهَ كَانَ بِمَا تَعْمَلُوْنَ خَبِيْرًا

व इनिम्-र अतुन् खाफत् मिम् बअ्लिहा नुशूज़न औ इअ्-राज़न फला जुना-ह अलैहिमा अंय्युस्लिहा बैनाहुमा सुल्हन, वस्सुल्हु खैरून्, व उहज़ि-रतिल् अन्फुसुश्शुह्-ह, व इन् तुह़्सिनू व तत्तक़ू फ़-इन्नल्ला-ह का-न बिमा तअ्मलू-न ख़बीरा
और यदि किसी स्त्री को अपने पति से दुर्व्यवहार अथवा विमुख होने की शंका हो, तो उन दोनों पर कोई दोष नहीं कि आपस में कोई संधि कर लें और संधि कर लेना ही अच्छा[1] है। लोभ तो सभी में होता है। यदि तुम एक-दूसरे के साथ उपकार करो और (अल्लाह से) डरते रहो, तो निःसंदेह तुम जो कुछ कर रहे हो, अल्लाह उससे सूचित है।

4:129

وَلَنْ تَسْتَطِيْعُوْٓا اَنْ تَعْدِلُوْا بَيْنَ النِّسَاۤءِ وَلَوْ حَرَصْتُمْ فَلَا تَمِيْلُوْا كُلَّ الْمَيْلِ فَتَذَرُوْهَا كَالْمُعَلَّقَةِ ۗوَاِنْ تُصْلِحُوْا وَتَتَّقُوْا فَاِنَّ اللّٰهَ كَانَ غَفُوْرًا رَّحِيْمًا

व लन् तस्ततीअू अन् तअ्दिलू बैनन्निसा-इ व लौ हरस्तुम् फला तमीलू कुल्लल्-मैलि फ़-त ज़रूहा कल्- मुअल्ल-क़ति, व इन् तुस्लिहू व तत्तक़ू फ़-इन्नल्ला-ह का-न ग़फूरर्रहीमा
और यदि तुम अपनी पत्नियों के बीच न्याय करना चाहो, तो भी ऐसा कदापि नहीं कर[1] सकोगे। अतः एक ही की ओर पूर्णतः झुक[2] न जाओ और (शेष को) बीच में लटकी हुई न छोड़ दो और यदि (अपने व्यवहार में) सुधार[3] रखो और (अल्लाह से) डरते रहो, तो निःसंदेह अल्लाह अति क्षमाशील दयावन् है।

4:130

وَاِنْ يَّتَفَرَّقَا يُغْنِ اللّٰهُ كُلًّا مِّنْ سَعَتِهٖۗ وَكَانَ اللّٰهُ وَاسِعًا حَكِيْمًا

व इंय्य-तफर्रक़ा युग़्निल्लाहु कुल्लम्-मिन् स-अतिही, व कानल्लाहु वासिअ़न् हकीमा
और यदि दोनों अलग हो जायें, तो अल्लाह प्रत्येक को अपनी दया से (दूसरे से) निश्चिंत[1] कर देगा और अल्लाह बड़ा उदार तत्वज्ञ है।

4:131

وَلِلَّهِ مَا فِى ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَمَا فِى ٱلْأَرْضِ ۗ وَلَقَدْ وَصَّيْنَا ٱلَّذِينَ أُوتُوا۟ ٱلْكِتَـٰبَ مِن قَبْلِكُمْ وَإِيَّاكُمْ أَنِ ٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ ۚ وَإِن تَكْفُرُوا۟ فَإِنَّ لِلَّهِ مَا فِى ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَمَا فِى ٱلْأَرْضِ ۚ وَكَانَ ٱللَّهُ غَنِيًّا حَمِيدًۭا

व लिल्लाहि मा फिस्समावाति व मा फिल्अर्ज़ि, व ल-क़द् वस्सैनल्लज़ी-न ऊतुल-किता-ब मिन् क़ब्लिकुम् व इय्याकुम् अनित्तक़ुल्ला-ह, व इन् तक्फुरु फ़-इन्-न लिल्लाहि मा फ़िस्समावाति व मा फ़िल्अर्ज़ि, व कानल्लाहु ग़निय्यन् हमीदा
तथा अल्लाह ही का है, जो आकाशों और धरती में है और हमने तुमसे पूर्व अहले किताब को तथा (खुद) तुम्हें आदेश दिया है कि अल्लाह से डरते रहो। यदि तुम कुफ्र (अवज्ञा) करोगे, तो निःसंदेह जो कुछ आकाशों तथा धरती में है, वह अल्लाह ही का है तथा अल्लाह निस्पृह[1] प्रशंसित है।

4:132

وَلِلَّهِ مَا فِى ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَمَا فِى ٱلْأَرْضِ ۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ وَكِيلًا

व लिल्लाहि मा फिस्समावाति व मा फ़िल्अर्ज़ि, व कफ़ा बिल्लाहि वकीला
तथा अल्लाह ही का है, जो कुछ आकाशों तथा धरती में है और अल्लाह काम बनाने के लिए बस है।

4:133

إِن يَشَأْ يُذْهِبْكُمْ أَيُّهَا ٱلنَّاسُ وَيَأْتِ بِـَٔاخَرِينَ ۚ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلَىٰ ذَٰلِكَ قَدِيرًۭا

इंय्यशअ् युज़्हिब्कुम् अय्युहन्नासु व यअ्ति बिआ-ख़री-न, व कानल्लाहु अला ज़ालि-क क़दीरा
और वह चाहे तो, हे लोगो! तुम्हें ले जाये[1] और तुम्हारे स्थान पर दूसरों को ला दे तथा अल्लाह ऐसा कर सकता है।

4:134

مَّن كَانَ يُرِيدُ ثَوَابَ ٱلدُّنْيَا فَعِندَ ٱللَّهِ ثَوَابُ ٱلدُّنْيَا وَٱلْـَٔاخِرَةِ ۚ وَكَانَ ٱللَّهُ سَمِيعًۢا بَصِيرًۭا

मन् का-न युरीदु सवाबद्दुन्या फ-अिन्दल्लाहि सवाबुद्दुन्या वल्आख़ि-रति, व कानल्लाहु समीअम्-बसीरा
जो सांसारिक प्रतिकार (बदला) चाहता हो, तो अल्लाह के पास संसार तथा परलोक दोनों का प्रतिकार (बदला) है तथा अल्लाह सबकी बात सुनता और सबके कर्म देख रहा है।

4:135

 يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا كُوْنُوْا قَوَّامِيْنَ بِالْقِسْطِ شُهَدَاۤءَ لِلّٰهِ وَلَوْ عَلٰٓى اَنْفُسِكُمْ اَوِ الْوَالِدَيْنِ وَالْاَقْرَبِيْنَ ۚ اِنْ يَّكُنْ غَنِيًّا اَوْ فَقِيْرًا فَاللّٰهُ اَوْلٰى بِهِمَاۗ فَلَا تَتَّبِعُوا الْهَوٰٓى اَنْ تَعْدِلُوْا ۚ وَاِنْ تَلْوٗٓا اَوْ تُعْرِضُوْا فَاِنَّ اللّٰهَ كَانَ بِمَا تَعْمَلُوْنَ خَبِيْرًا

या अय्युहल्लज़ी-न आमनू कूनू कव्वामी-न बिल्क़िस्ति शु-हदा-अ लिल्लाहि व लौ अला अन्फुसिकुम् अविल-वालिदैनि वल् अक़्रबी-न, इंय्यकुन् ग़निय्यन् औ फ़कीरन् फल्लाहु औला बिहिमा, फला तत्तबिअुल्-हवा अन् तअ्दिलू, व इन् तल्वू औ तुअ्-रिज़ू फ-इन्नल्ला-ह का-न बिमा तअ्मलू-न ख़बीरा
हे ईमान वालो! न्याय के साथ खड़े रहकर अल्लाह के लिए साक्षी (गवाह) बन जाओ। यद्यपि साक्ष्य (गवाही) तुम्हारे अपने अथवा माता पिता और समीपवर्तियों के विरुध्द हो, यदि कोई धनी अथवा निर्धन हो, तो अल्लाह तुमसे अधिक उन दोनों का हितैषी है। अतः अपनी मनोकांक्षा के लिए न्याय से न फिरो। यदि तुम बात घुमा फिरा कर करोगे अथवा साक्ष्य देने से कतराओगे, तो निःसंदेह अल्लाह उससे सूचित है, जो तुम करते हो।

4:136

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ ءَامِنُوا۟ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ وَٱلْكِتَـٰبِ ٱلَّذِى نَزَّلَ عَلَىٰ رَسُولِهِۦ وَٱلْكِتَـٰبِ ٱلَّذِىٓ أَنزَلَ مِن قَبْلُ ۚ وَمَن يَكْفُرْ بِٱللَّهِ وَمَلَـٰٓئِكَتِهِۦ وَكُتُبِهِۦ وَرُسُلِهِۦ وَٱلْيَوْمِ ٱلْـَٔاخِرِ فَقَدْ ضَلَّ ضَلَـٰلًۢا بَعِيدًا

या अय्युहल्लज़ी-न आमनू आमिनू बिल्लाहि व रसूलिही वल्-किताबिल्लज़ी नज़्ज़-ल अला रसूलिही वल्-किताबिल् लज़ी अन्ज़-ल मिन क़ब्लु, व मंय्यक्फुर बिल्लाहि व मलाइ-कतिही व कुतुबिही व रूसुलिही वल्यौमिल-आख़िरी फ़-क़द् ज़ल-ल ज़लालम्-बईदा
हे ईमान वालो! अल्लाह, उसके रसूल और उस पुस्तक (क़ुर्आन) पर, जो उसने अपने रसूल पर उतारी है तथा उन पुस्तकों पर, जो इससे पहले उतारी हैं, ईमान लाओ। जो अल्लाह, उसके फ़रिश्तों, उसकी पुस्तकों और अन्त दिवस (प्रलय) को अस्वीकार करेगा, वह कुपथ में बहुत दूर जा पड़ेगा।

4:137

إِنَّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ ثُمَّ كَفَرُوا۟ ثُمَّ ءَامَنُوا۟ ثُمَّ كَفَرُوا۟ ثُمَّ ٱزْدَادُوا۟ كُفْرًۭا لَّمْ يَكُنِ ٱللَّهُ لِيَغْفِرَ لَهُمْ وَلَا لِيَهْدِيَهُمْ سَبِيلًۢا

इन्नल्लज़ी-न आमनू सुम् म क-फरू सुम्-म आमनू सुम्-म क-फरू सुम्मज़्-दादू कुफ्रल्लम् यकुनिल्लाहु लि-यग़्फि-र लहुम् व ला लि-यह्दि-यहुम् सबीला
निःसंदेह जो ईमान लाये, फिर काफ़िर हो गये, फिर ईमान लाये, फिर काफ़िर हो गये, फिर कुफ़्र में बढ़ते ही चले गये, तो अल्लाह उन्हें कदापि क्षमा नहीं करेगा और न उन्हें सीधी डगर दिखायेगा।

4:138

بَشِّرِ ٱلْمُنَـٰفِقِينَ بِأَنَّ لَهُمْ عَذَابًا أَلِيمًا

बश्शिरिल्-मुनाफिक़ी-न बिअन्-न लहुम् अज़ाबन् अलीमा
(हे नबी!) आप मुनाफ़िक़ों (द्विधावादियों) को शुभ सूचना सुना दें कि उन्हीं के लिए दुःखदायी यातना है।

4:139

ٱلَّذِينَ يَتَّخِذُونَ ٱلْكَـٰفِرِينَ أَوْلِيَآءَ مِن دُونِ ٱلْمُؤْمِنِينَ ۚ أَيَبْتَغُونَ عِندَهُمُ ٱلْعِزَّةَ فَإِنَّ ٱلْعِزَّةَ لِلَّهِ جَمِيعًۭا

अल्लज़ी-न यत्तख़िज़ूनल्-काफ़िरी-न औलिया-अ मिन् दूनिल्-मुअ्मिनी-न, अ-यब्तग़ू-न अिन्दहुमुल्-अिज़्ज़-त फ-इन्नल-अिज़्ज़-त लिल्लाहि जमीआ़
जो ईमान वालों को छोड़कर, काफ़िरों को अपना सहायक मित्र बनाते हैं, क्या वे उनके पास मान सम्मान चाहते हैं? तो निःसंदेह सब मान सम्मान अल्लाह ही के लिए[1] है।

4:140

وَقَدْ نَزَّلَ عَلَيْكُمْ فِى ٱلْكِتَـٰبِ أَنْ إِذَا سَمِعْتُمْ ءَايَـٰتِ ٱللَّهِ يُكْفَرُ بِهَا وَيُسْتَهْزَأُ بِهَا فَلَا تَقْعُدُوا۟ مَعَهُمْ حَتَّىٰ يَخُوضُوا۟ فِى حَدِيثٍ غَيْرِهِۦٓ ۚ إِنَّكُمْ إِذًۭا مِّثْلُهُمْ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ جَامِعُ ٱلْمُنَـٰفِقِينَ وَٱلْكَـٰفِرِينَ فِى جَهَنَّمَ جَمِيعًا

व क़द् नज़्ज़-ल अ़लैकुम् फ़िल्किताबि अन् इज़ा समिअ्तुम् आयातिल्लाहि युक्फरू बिहा व युस्तह्ज़उ बिहा फला तक़्अुदू म-अ़हुम् हत्ता यख़ूज़ू फ़ी हदीसिन् ग़ैरिही, इन्नकुम् इज़म्-मिस्लुहुम, इन्नल्ला-ह जामिअुल-मुनाफ़िक़ी-न वल्काफिरी-न फ़ी जहन्नम जमीआ
और उस (अल्लाह) ने तुम्हारे लिए अपनी पुस्तक (क़ुर्आन) में ये आदेश उतार[1] दिया है कि जब तुम सुनो कि अल्लाह की आयतों को अस्वीकार किया जा रहा है तथा उनका उपहास किया जा रहा है, तो उनके साथ न बैठो, यहाँ तक कि वे दूसरी बात में लग जायें। निःसंदेह, तुम उस समय उन्हीं के समान हो जाओगे। निश्चय अल्लाह मुनाफ़िक़ों (द्विधावादियों) तथा काफ़िरों, सबको नरक में एकत्र करने वाला है।

4:141

ٱلَّذِينَ يَتَرَبَّصُونَ بِكُمْ فَإِن كَانَ لَكُمْ فَتْحٌۭ مِّنَ ٱللَّهِ قَالُوٓا۟ أَلَمْ نَكُن مَّعَكُمْ وَإِن كَانَ لِلْكَـٰفِرِينَ نَصِيبٌۭ قَالُوٓا۟ أَلَمْ نَسْتَحْوِذْ عَلَيْكُمْ وَنَمْنَعْكُم مِّنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ ۚ فَٱللَّهُ يَحْكُمُ بَيْنَكُمْ يَوْمَ ٱلْقِيَـٰمَةِ ۗ وَلَن يَجْعَلَ ٱللَّهُ لِلْكَـٰفِرِينَ عَلَى ٱلْمُؤْمِنِينَ سَبِيلًا

अल्लज़ी-न य-तरब्बसू-न बिकुम्, फ़-इन् का-न लकुम फ़त्हुम् मिनल्लाहि क़ालू अलम् नकुम् म-अकुम्, व इन् का-न लिल्काफ़िरी-न नसीबुन्, कालू अलम् नस्तह़्विज़् अलैकुम् व नम् नअ्कुम् मिनल-मुअ्मिनी-न, फ़ल्लाहु यह़्कुमु बैनकुम् यौमल-क़ियामति, व लंय्यज्-अलल्लाहु लिल्काफ़िरी-न अलल्-मुअ्मिनी न सबीला
जो तुम्हारी प्रतीक्षा में रहा करते हैं; यदि तुम्हें अल्लाह की सहायता से विजय प्राप्त हो, तो कहते हैं, क्या हम तुम्हारे साथ न थे? और यदि उन (काफ़िरों) का पल्ला भारी रहे, तो कहते हैं कि क्या हम तुमपर छा नहीं गये थे और तुम्हें ईमान वालों से बचा (नहीं) रहे थे? तो अल्लाह ही प्रलय के दिन तुम्हारे बीच निर्णय करेगा और अल्लाह काफ़िरों के लिए ईमान वालों पर कदापि कोई राह नहीं बनायेगा[1]

4:142

إِنَّ ٱلْمُنَـٰفِقِينَ يُخَـٰدِعُونَ ٱللَّهَ وَهُوَ خَـٰدِعُهُمْ وَإِذَا قَامُوٓا۟ إِلَى ٱلصَّلَوٰةِ قَامُوا۟ كُسَالَىٰ يُرَآءُونَ ٱلنَّاسَ وَلَا يَذْكُرُونَ ٱللَّهَ إِلَّا قَلِيلًۭا

इन्नल् -मुनाफ़िक़ी-न युख़ादिअूनल्ला-ह व हु-व ख़ादिअुहुम्, व इज़ा क़ामू इलस्-सलाति क़ामू कुसाला, युराऊनन्ना-स व ला यज़्कुरूनल्ला-ह इल्ला क़लीला
वास्तव में, मुनाफ़िक (द्विधावादी) अल्लाह को धोखा दे रहे हैं, जबकी, वही उन्हें धोखे में डाल रहा[1] है और जब वे नमाज़ के लिए खड़े होते हैं, तो आलसी होकर खड़े होते हैं, वे लोगों को दिखाते हैं और अल्लाह का स्मरण थोड़ा ही करते हैं।

4:143

مُّذَبْذَبِينَ بَيْنَ ذَٰلِكَ لَآ إِلَىٰ هَـٰٓؤُلَآءِ وَلَآ إِلَىٰ هَـٰٓؤُلَآءِ ۚ وَمَن يُضْلِلِ ٱللَّهُ فَلَن تَجِدَ لَهُۥ سَبِيلًۭا

मुज़ब्ज़बी-न बै-न ज़ालि-क, ला इला-हा-उला-इ व ला इला हा-उला-इ, व मंय्युज़्लिलिल्लाहु फलन् तजि-द लहू सबीला
वह इसके बीच द्विधा में पड़े हुए हैं, न इधर न उधर। दरअसल, जिसे अल्लाह कुपथ कर दे, आप उसके लिए कोई राह नहीं पा सकेंगे।

4:144

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ لَا تَتَّخِذُوا۟ ٱلْكَـٰفِرِينَ أَوْلِيَآءَ مِن دُونِ ٱلْمُؤْمِنِينَ ۚ أَتُرِيدُونَ أَن تَجْعَلُوا۟ لِلَّهِ عَلَيْكُمْ سُلْطَـٰنًۭا مُّبِينًا

या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तत्तख़िज़ुल-काफ़िरी-न औलिया-अ मिन् दूनिल मुअ्मिनी-न अतुरीदू-न अन् तज्अलू लिल्लाहि अलैकुम् सुल्तानम् मुबीना
हे ईमान वालो! ईमान वालों को छोड़कर काफ़िरों को सहायक मित्र न बनाओ। क्या तुम अपने विरुध्द अल्लाह के लिए खुला तर्क बनाना चाहते हो?

4:145

إِنَّ ٱلْمُنَـٰفِقِينَ فِى ٱلدَّرْكِ ٱلْأَسْفَلِ مِنَ ٱلنَّارِ وَلَن تَجِدَ لَهُمْ نَصِيرًا

इन्नल् मुनाफ़िक़ी-न फ़िद्दरकिल्-अस्फ़लि मिनन्नारि, व लन् तजि-द लहुम् नसीरा
निश्चय मुनाफ़िक़ (द्विधावादी) नरक की सबसे नीची श्रेणी में होंगे और आप उनका कोई सहायक नहीं पायेंगे।

4:146

إِلَّا ٱلَّذِينَ تَابُوا۟ وَأَصْلَحُوا۟ وَٱعْتَصَمُوا۟ بِٱللَّهِ وَأَخْلَصُوا۟ دِينَهُمْ لِلَّهِ فَأُو۟لَـٰٓئِكَ مَعَ ٱلْمُؤْمِنِينَ ۖ وَسَوْفَ يُؤْتِ ٱللَّهُ ٱلْمُؤْمِنِينَ أَجْرًا عَظِيمًۭا

इल्लल्लज़ी-न ताबू व अस्लहू वअ्त-समू बिल्लाहि व अख़्लसू दीनहुम् लिल्लाहि फ़-उलाइ-क मअल्- मुअ्मिनी-न, व सौ-फ युअ्तिल्लाहुल मुअ्मिनी-न अज्रन् अज़ीमा
परन्तु जिन्होंने क्षमा याचना कर ली, अपना सुधार कर लिया, अल्लाह को सुदृढ़ पकड़ लिया और अपने धर्म को विशुध्द कर लिया, तो वे लोग ईमान वालों के साथ होंगे और अल्लाह ईमान वालों को बहुत बड़ा प्रतिफल प्रदान करेगा।

4:147

مَّا يَفْعَلُ ٱللَّهُ بِعَذَابِكُمْ إِن شَكَرْتُمْ وَءَامَنتُمْ ۚ وَكَانَ ٱللَّهُ شَاكِرًا عَلِيمًۭا

मा यफ्अलुल्लाहु बि-अज़ाबिकुम् इन् शकरतुम् व आमन्तुम्, व कानल्लाहु शाकिरन् अलीमा
अल्लाह को क्या पड़ी है कि तुम्हें यातना दे, यदि तुम कृतज्ञ रहो तथा ईमान रखो और अल्लाह[1] बड़ा गुणग्राही अति ज्ञानी है।

4:148

 لَا يُحِبُّ اللّٰهُ الْجَهْرَ بِالسُّوْۤءِ مِنَ الْقَوْلِ اِلَّا مَنْ ظُلِمَ ۗ وَكَانَ اللّٰهُ سَمِيْعًا عَلِيْمًا

ला युहिब्बुल्लाहुल-जह्-र बिस्सू-इ मिनल्-कौलि इल्ला मन् ज़ुलि-म, व कानल्लाहु समीअन् अलीमा
अल्लाह को अपशब्द (बुरी बात) की चर्चा नहीं भाती, परन्तु जिसपर अत्याचार किया गया[1] हो और अल्लाह सब सुनता और जानता है।

4:149

إِن تُبْدُوا۟ خَيْرًا أَوْ تُخْفُوهُ أَوْ تَعْفُوا۟ عَن سُوٓءٍۢ فَإِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَفُوًّۭا قَدِيرًا

इन् तुब्बू ख़ैरन् औ तुख़्फूहु औ तअ्फू अन् सूइन् फ़-इन्नल्ला-ह का-न अ़फुव्वन् कदीरा
यदि तुमकोई भली बात खुल कर करो, उसे छुपाकर करो या किसी बुराई को क्षमा कर दो, (याद रखो कि) निःसंदेह अललाह अति क्षमी, सर्व शक्तिशाली है।

4:150

إِنَّ ٱلَّذِينَ يَكْفُرُونَ بِٱللَّهِ وَرُسُلِهِۦ وَيُرِيدُونَ أَن يُفَرِّقُوا۟ بَيْنَ ٱللَّهِ وَرُسُلِهِۦ وَيَقُولُونَ نُؤْمِنُ بِبَعْضٍۢ وَنَكْفُرُ بِبَعْضٍۢ وَيُرِيدُونَ أَن يَتَّخِذُوا۟ بَيْنَ ذَٰلِكَ سَبِيلًا

इन्नल्लज़ी-न यक्फुरू-न बिल्लाहि व रूसुलिही व युरीदू-न अंय्युफ़र्रिकू बैनल्लाहि व रूसुलिही व यक़ूलू -न नुअ्मिनु बि-बअ्जिंव-व नक्फुरु बि-बअ्जिंव व युरीदू-न अंय्यत्तख़िज़ू बै-न ज़ालि-क सबीला
जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों के साथ (अविश्वास) कुफ़्र करते हैं और चाहते हैं कि अल्लाह तथा उसके रसूलों के बीच अन्तर करें तथा कहते हैं कि हम कुछ पर ईमान रखते हैं और कुछ के साथ कुफ़्र करते हैं और इसके बीच राह[1] अपनाना चाहते हैं।

4:151

أُو۟لَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلْكَـٰفِرُونَ حَقًّۭا ۚ وَأَعْتَدْنَا لِلْكَـٰفِرِينَ عَذَابًۭا مُّهِينًۭا

उलाइ-क हुमुल काफ़िरू-न हक़्क़न्, व अअ्तद्ना लिल्काफ़िरी-न अज़ाबम् मुहीना
वही शुध्द काफ़िर हैं और हमने काफ़िरों के लिए अपमानकारी यातना तैयार कर रखी है।

4:152

وَٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ بِٱللَّهِ وَرُسُلِهِۦ وَلَمْ يُفَرِّقُوا۟ بَيْنَ أَحَدٍۢ مِّنْهُمْ أُو۟لَـٰٓئِكَ سَوْفَ يُؤْتِيهِمْ أُجُورَهُمْ ۗ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورًۭا رَّحِيمًۭا

वल्लज़ी-न आमनू बिल्लाहि व रूसुलिही व लम् युफ़र्रिकू बै-न अ-हदिम् मिन्हुम् उलाइ-क सौ-फ युअ्तीहिम् उजूरहुम्, व कानल्लाहु ग़फूरर्रहीमा
तथा जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाये और उनमें से किसी के बीच अन्तर नहीं किया, तो उन्हीं को, हम उनका प्रतिफल प्रदान करेंगे तथा अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है।

4:153

يَسْـَٔلُكَ أَهْلُ ٱلْكِتَـٰبِ أَن تُنَزِّلَ عَلَيْهِمْ كِتَـٰبًۭا مِّنَ ٱلسَّمَآءِ ۚ فَقَدْ سَأَلُوا۟ مُوسَىٰٓ أَكْبَرَ مِن ذَٰلِكَ فَقَالُوٓا۟ أَرِنَا ٱللَّهَ جَهْرَةًۭ فَأَخَذَتْهُمُ ٱلصَّـٰعِقَةُ بِظُلْمِهِمْ ۚ ثُمَّ ٱتَّخَذُوا۟ ٱلْعِجْلَ مِنۢ بَعْدِ مَا جَآءَتْهُمُ ٱلْبَيِّنَـٰتُ فَعَفَوْنَا عَن ذَٰلِكَ ۚ وَءَاتَيْنَا مُوسَىٰ سُلْطَـٰنًۭا مُّبِينًۭا

यस्अलु-क अह्लुल किताबि अन् तुनज्ज़िल अलैहिम् किताबम् मिनस-समा इ फ़ क़द् स-अलू मूसा अक्ब-र मिन् ज़ालि-क फ़कालू अरिनल्ला-ह जहर-तन् फ-अ ख़ज़त्हुमुस्साअि-क़तु बिज़ुल्मिहिम्, सुम्मत्त-ख़ज़ुल्-अिज्-ल मिम्-बअ्दि मा जाअत्हुमुल् बय्यिनातु फ़- अफ़ौना अन् ज़ालि-क, व आतैना मूसा सुल्तानम् मुबीना
(हे नबी!) आपसे अहले किताब माँग करते हैं कि आप उनपर आकाश से कोई पुस्तक उतार दें, तो इन्होंने मूसा से इससे भी बड़ी माँग की थी; उन्होंने कहा था कि हमें अल्लाह को प्रत्यक्ष[1] दिखा दो, तो इनके अत्याचारों के कारण, इन्हें बिजली ने धर लिया, फिर इन्होंने खुली निशानियाँ आने के पश्चात् बछड़े को पूज्य बना लिया, फिर हमने इसे भी क्षमा कर दिया और हमने मूसा को खुला प्रभुत्व प्रदान किया।

4:154

وَرَفَعْنَا فَوْقَهُمُ ٱلطُّورَ بِمِيثَـٰقِهِمْ وَقُلْنَا لَهُمُ ٱدْخُلُوا۟ ٱلْبَابَ سُجَّدًۭا وَقُلْنَا لَهُمْ لَا تَعْدُوا۟ فِى ٱلسَّبْتِ وَأَخَذْنَا مِنْهُم مِّيثَـٰقًا غَلِيظًۭا

व रफअ् ना फौक़हुमुत्तू-र बिमीसाक़िहिम् व क़ुल्ना लहुमुद्खुलुल्बा-ब सुज्जदंव्-व क़ुल्ना लहुम् ला तअ्दू फिस्सब्ति व अख़ज़्ना मिन्हुम मीसाक़न् ग़लीज़ा
और हमने (उनसे वचन लेने के लिए) उनके ऊपर तूर (पर्वत) उठा दिया तथा हमने उनसे कहाः द्वार में सज्दा करते हुए प्रवेश करो तथा हमने उनसे कहा कि शनिवार[1] के विषय में अति न करो और हमने उनसे दृढ़ वचन लिया।

4:155

فَبِمَا نَقْضِهِم مِّيثَـٰقَهُمْ وَكُفْرِهِم بِـَٔايَـٰتِ ٱللَّهِ وَقَتْلِهِمُ ٱلْأَنۢبِيَآءَ بِغَيْرِ حَقٍّۢ وَقَوْلِهِمْ قُلُوبُنَا غُلْفٌۢ ۚ بَلْ طَبَعَ ٱللَّهُ عَلَيْهَا بِكُفْرِهِمْ فَلَا يُؤْمِنُونَ إِلَّا قَلِيلًۭا

फबिमा नक़्ज़िहिम् मीसाक़हुम् व कुफ्रिहिम् बिआयातिल्लाहि व क़त्लिहिमुल अम्बिया-अ बिग़ैरि हक़्क़िंव् व क़ौलिहिम् क़ुलूबुना ग़ुल्फुन्, बल् त-बअल्लाहु अलैहा बिकुफ्रिहिम् फला युअ्मिनू-न इल्ला क़लीला
तो उनके अपना वचन भंग करने, उनके अल्लाह की आयतों के साथ कुफ़्र करने, उनके नबियों को अवैध वध करने तथा उनके ये कहने के कारण कि हमारे दिल बंद हैं। ( ऐसी बात नहीं है) बल्कि अल्लाह ने उनके दिलों पर मुहर लगा दी है। अतः इनमें से थोड़े ही इमान लायेंगे।

4:156

وَبِكُفْرِهِمْ وَقَوْلِهِمْ عَلَىٰ مَرْيَمَ بُهْتَـٰنًا عَظِيمًۭا

व बिकुफ्रिहिम् व क़ौलिहिम् अला मर य-म बुह़्तानन् अज़ीमा
तथा उनके कुफ़्र और मर्यम पर घोर आरोप लगाने के कारण।

4:157

وَّقَوْلِهِمْ اِنَّا قَتَلْنَا الْمَسِيْحَ عِيْسَى ابْنَ مَرْيَمَ رَسُوْلَ اللّٰهِۚ وَمَا قَتَلُوْهُ وَمَا صَلَبُوْهُ وَلٰكِنْ شُبِّهَ لَهُمْ ۗوَاِنَّ الَّذِيْنَ اخْتَلَفُوْا فِيْهِ لَفِيْ شَكٍّ مِّنْهُ ۗمَا لَهُمْ بِهٖ مِنْ عِلْمٍ اِلَّا اتِّبَاعَ الظَّنِّ وَمَا قَتَلُوْهُ يَقِيْنًاۢ ۙ

व क़ौलिहिम् इन्ना क़तल्नल्-मसी-ह ईसब्-न मर य-म रसूलल्लाहि, व मा क़-तलूहु व मा स-लबूहु व लाकिन् शुब्बि-ह लहुम, व इन्नल्लज़ीनख़्त लफू फ़ीहि लफ़ी शक्किम् मिन्हु, मा लहुम् बिही मिन् अिल्मिन् इल्लत्तिबाअज़्ज़न्नि, व मा क़-तलूहु यक़ीना
तथा उनके (गर्व से) कहने के कारण कि हमने अल्लाह के रसूल, मर्यम के पुत्र, ईसा मसीह़ को वध कर दिया, जबकि (वास्तव में) उसे वध नहीं किया और न सलीब (फाँसी) दी, परन्तु उनके लिए (इसे) संदिग्ध कर दिया गया। निःसंदेह, जिन लोगों ने इसमें विभेद किया, वे भी शंका में पड़े हुए हैं और उन्हें इसका कोई ज्ञान नहीं, केवल अनुमान के पीछे पड़े हुए हैं और निश्चय उसे उन्होंने वध नहीं किया है।

4:158

بَلْ رَّفَعَهُ اللّٰهُ اِلَيْهِ ۗوَكَانَ اللّٰهُ عَزِيْزًا حَكِيْمًا

बर्र-फ-अहुल्लाहु इलैहि, व कानल्लाहु अज़ीज़न् हकीमा
बल्कि अल्लाह ने उसे अपनी ओर आकाश में उठा लिया है तथा अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ है।

4:159

وَاِنْ مِّنْ اَهْلِ الْكِتٰبِ اِلَّا لَيُؤْمِنَنَّ بِهٖ قَبْلَ مَوْتِهٖ ۚوَيَوْمَ الْقِيٰمَةِ يَكُوْنُ عَلَيْهِمْ شَهِيْدًاۚ

व इम्-मिन् अहलिल्-किताबि इल्ला ल-युअ्मिनन्-न बिही कब्-ल मौतिही, व यौमल्-क़ियामति यकूनु अलैहिम् शहीदा
और सभी अहले किताब उस (ईसा) के मरण से पहले उसपर अवश्य ईमान[1] लायेंगे और प्रलय के दिन वह उनके विरुध्द साक्षी[2] होगा।

4:160

فَبِظُلْمٍ مِّنَ الَّذِيْنَ هَادُوْا حَرَّمْنَا عَلَيْهِمْ طَيِّبٰتٍ اُحِلَّتْ لَهُمْ وَبِصَدِّهِمْ عَنْ سَبِيْلِ اللّٰهِ كَثِيْرًاۙ

फ-बिज़ुल्मिम्-मिनल्लज़ी-न हादू हर्रम् ना अलैहिम् तय्यिबातिन् उहिल्लत् लहुम् व बि-सद्दिहिम् अन् सबीलिल्लाहि कसीरा
यहूदियों के (इसी) अत्याचार के कारण हमने उनपर स्वच्छ खाद्य पदार्थों को ह़राम (वर्जित) कर दिया, जो उनके लिए ह़लाल (वैध) थे तथा उनके बहुधा अल्लाह की राह से रोकने के कारण।

4:161

وَأَخْذِهِمُ ٱلرِّبَوٰا۟ وَقَدْ نُهُوا۟ عَنْهُ وَأَكْلِهِمْ أَمْوَٰلَ ٱلنَّاسِ بِٱلْبَـٰطِلِ ۚ وَأَعْتَدْنَا لِلْكَـٰفِرِينَ مِنْهُمْ عَذَابًا أَلِيمًۭا

व अख़्ज़िहिमुर्रिबा व क़द् नुहू अन्हु व अक्लिहिम् अम्वालन्नासि बिल्बातिलि, व अअ्-तद्- ना लिल्काफ़िरी-न मिन्हुम् अज़ाबन् अलीमा
तथा उनके ब्याज लेने के कारण जबकि उन्हें उससे रोका गया था और उनके लोगों का धन अवैध रूप से खाने के कारण। हमने उनमें से काफ़िरों के लिए दुःखदायी यातना तैयार कर रखी है।

4:162

لَّـٰكِنِ ٱلرَّٰسِخُونَ فِى ٱلْعِلْمِ مِنْهُمْ وَٱلْمُؤْمِنُونَ يُؤْمِنُونَ بِمَآ أُنزِلَ إِلَيْكَ وَمَآ أُنزِلَ مِن قَبْلِكَ ۚ وَٱلْمُقِيمِينَ ٱلصَّلَوٰةَ ۚ وَٱلْمُؤْتُونَ ٱلزَّكَوٰةَ وَٱلْمُؤْمِنُونَ بِٱللَّهِ وَٱلْيَوْمِ ٱلْـَٔاخِرِ أُو۟لَـٰٓئِكَ سَنُؤْتِيهِمْ أَجْرًا عَظِيمًا

लाकिनिर्रासिखू-न फिल्अिल्मि मिन्हुम् वल्मुअ्मिनू-न युअ्मिनू-न बिमा उन्ज़ि-ल इलै-क व मा उन्ज़ि-ल मिन् क़ब्लि-क वल्मुक़ीमीनस्सला-त वल्मुअ्तूनज़्ज़का-त वल्मुअ्मिनू-न बिल्लाहि वल्यौमिल्-आखिरि, उलाइ-क सनुअ्तीहिम् अज्रन् अज़ीमा
परन्तु जो उनमें से ज्ञान में पक्के हैं तथा वे ईमान वाले, जो आपकी ओर उतारी गयी (पुस्तक क़ुर्आन) तथा आपसे पूर्व उतारी गई (पुस्तक) पर ईमान रखते हैं और जो नमाज़ की स्थापना करने वाले, ज़कात देने वाले और अल्लाह तथा अन्तिम दिन पर ईमान रखने वाले हैं, उन्हीं को हम बहुत बड़ा प्रतिफल प्रदान करेंगे।

4:163

اِنَّآ اَوْحَيْنَآ اِلَيْكَ كَمَآ اَوْحَيْنَآ اِلٰى نُوْحٍ وَّالنَّبِيّٖنَ مِنْۢ بَعْدِهٖۚ وَاَوْحَيْنَآ اِلٰٓى اِبْرٰهِيْمَ وَاِسْمٰعِيْلَ وَاِسْحٰقَ وَيَعْقُوْبَ وَالْاَسْبَاطِ وَعِيْسٰى وَاَيُّوْبَ وَيُوْنُسَ وَهٰرُوْنَ وَسُلَيْمٰنَ ۚوَاٰتَيْنَا دَاوٗدَ زَبُوْرًاۚ

इन्ना औहैना इलै-क कमा औहैना इला नूहिंव्वन्नबिय्यी न मिम्-बअ्दही, व औहैना इला इब्राही-म व इस्माई-ल व इस्हा-क़ व यअ्क़ू-ब वल्अस्बाति व अीसा व अय्यू-ब व यूनु-स व हारू-न व सुलैमा-न, व आतैना दावू-द ज़बूरा
(हे नबी!) हमने आपकी ओर वैसे ही वह़्यी भेजी है, जैसे नूह़ और उसके पश्चात के नबियों के पास भेजी और इब्राहीम, इस्माईल, इस्ह़ाक़, याक़ूब तथा उसकी संतान, ईसा, अय्यूब, यूनुस, हारून और सुलैमान के पास वह़्यी भेजी और हमने दावूद को ज़बूर प्रदान[1] की थी।

4:164

وَرُسُلًۭا قَدْ قَصَصْنَـٰهُمْ عَلَيْكَ مِن قَبْلُ وَرُسُلًۭا لَّمْ نَقْصُصْهُمْ عَلَيْكَ ۚ وَكَلَّمَ ٱللَّهُ مُوسَىٰ تَكْلِيمًۭا

व रूसुलन् क़द् क़सस्-नाहुम् अलै-क मिन् क़ब्लु व रूसुलल्लम् नक़्सुस्हुम अलै-क, व कल्लमल्लाहु मूसा तक्लीमा
कुछ रसूल तो ऐसे हैं, जिनकी चर्चा हम इससे पहले आपसे कर चुके हैं और कुछ की चर्चा आपसे नहीं की है और अल्लाह ने मूसा से वास्तव में बात की।

4:165

رُّسُلًۭا مُّبَشِّرِينَ وَمُنذِرِينَ لِئَلَّا يَكُونَ لِلنَّاسِ عَلَى ٱللَّهِ حُجَّةٌۢ بَعْدَ ٱلرُّسُلِ ۚ وَكَانَ ٱللَّهُ عَزِيزًا حَكِيمًۭا

रूसुलम् मुबश्शिरी-न व मुन्ज़िरीन लिअल्ला यकू-न लिन्नासि अलल्लाहि हुज्जतुम्-बअ्दर्रूसुलि, व कानल्लाहु अज़ीज़न् हकीमा
ये सभी रसूल शुभ सूचना सुनाने वाले और डराने वाले थे, ताकि इन रसूलों के (आगमन के) पश्चात् लोगों के लिए अल्लाह पर कोई तर्क न रह[1] जाये और अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ है।

4:166

لَّـٰكِنِ ٱللَّهُ يَشْهَدُ بِمَآ أَنزَلَ إِلَيْكَ ۖ أَنزَلَهُۥ بِعِلْمِهِۦ ۖ وَٱلْمَلَـٰٓئِكَةُ يَشْهَدُونَ ۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ شَهِيدًا

लाकिनिल्लाहु यश्हदु बिमा अन्ज़-ल इलै-क अन्ज़-लहू बिअिल्मिही वल्मलाइ-कतु यशहदू-न, व कफ़ा बिल्लाहि शहीदा
(हे नबी!) (आपको यहूदी आदि नबी न मानें) परन्तु अल्लाह उस (क़ुर्आन) के द्वारा, जिसे आपपर उतारा है, साक्ष्य (गवाही) देता है (कि आप नबी हैं)। उसने इसे अपने ज्ञान के साथ उतारा है तथा फ़रिश्ते साक्ष्य देते हैं और अल्लाह का साक्ष्य ही बहुत है।

4:167

إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ وَصَدُّوا۟ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ قَدْ ضَلُّوا۟ ضَلَـٰلًۢا بَعِيدًا

इन्नल्लज़ी-न क-फरू व सद्दू अन् सबीलिल्लाहि क़द् ज़ल्लू ज़लालम् बईदा
वास्तव में, जिन्होंने कुफ़्र किया और अल्लाह की राह[1] से रोका, वे सुपथ से बहुत दूर जा पड़े।

4:168

إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ وَظَلَمُوا۟ لَمْ يَكُنِ ٱللَّهُ لِيَغْفِرَ لَهُمْ وَلَا لِيَهْدِيَهُمْ طَرِيقًا

इन्नल्लज़ी-न क-फरू व ज़-लमू लम् यकुनिल्लाहु लियग़्फि-र लहुम् व ला लियह़्दी-यहुम् तरीक़ा
निःसंदेह जो काफ़िर हो गये और अत्याचार करते रह गये, तो अल्लाह ऐसा नहीं है कि उन्हें क्षमा कर दे तथा न उन्हें कोई राह दिखायेगा।

4:169

إِلَّا طَرِيقَ جَهَنَّمَ خَـٰلِدِينَ فِيهَآ أَبَدًۭا ۚ وَكَانَ ذَٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ يَسِيرًۭا

इल्ला तरी-क़ जहन्न-म ख़ालिदी-न फीहा अ-बदन्, व का-न ज़ालि-क अलल्लाहि यसीरा
परन्तु नरक की राह, जिसमें वे सदावासी होंगे और ये अल्लाह के लिए सरल है।

4:170

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ قَدْ جَآءَكُمُ ٱلرَّسُولُ بِٱلْحَقِّ مِن رَّبِّكُمْ فَـَٔامِنُوا۟ خَيْرًۭا لَّكُمْ ۚ وَإِن تَكْفُرُوا۟ فَإِنَّ لِلَّهِ مَا فِى ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ ۚ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمًۭا

या अय्युहन्नासु क़द् जा अकुमुर्रसूलु बिल्हक़्क़ि मिर्रब्बिकुम् फआमिनू ख़ैरल्लकुम्, व इन तक्फुरू-फ़-इन्-न लिल्लाहि मा फिस्समावाति वल्अर्ज़ि, व कानल्लाहु अलीमन् हक़ीमा
हे लोगो! तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की ओर से रसूल सत्य लेकर[1] आ गये हैं। अतः, उनपर ईमान लाओ, यही तुम्हारे लिए अच्छा है तथा यदि कुफ़्र करोगे, तो (याद रखो कि) अल्लाह ही का है, जो आकाशों तथा धरती में है और अल्लाह बड़ा ज्ञानी गुणी है।

4:171

يَـٰٓأَهْلَ ٱلْكِتَـٰبِ لَا تَغْلُوا۟ فِى دِينِكُمْ وَلَا تَقُولُوا۟ عَلَى ٱللَّهِ إِلَّا ٱلْحَقَّ ۚ إِنَّمَا ٱلْمَسِيحُ عِيسَى ٱبْنُ مَرْيَمَ رَسُولُ ٱللَّهِ وَكَلِمَتُهُۥٓ أَلْقَىٰهَآ إِلَىٰ مَرْيَمَ وَرُوحٌۭ مِّنْهُ ۖ فَـَٔامِنُوا۟ بِٱللَّهِ وَرُسُلِهِۦ ۖ وَلَا تَقُولُوا۟ ثَلَـٰثَةٌ ۚ ٱنتَهُوا۟ خَيْرًۭا لَّكُمْ ۚ إِنَّمَا ٱللَّهُ إِلَـٰهٌۭ وَٰحِدٌۭ ۖ سُبْحَـٰنَهُۥٓ أَن يَكُونَ لَهُۥ وَلَدٌۭ ۘ لَّهُۥ مَا فِى ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَمَا فِى ٱلْأَرْضِ ۗ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ وَكِيلًۭا

या अह़्लल्-किताबि ला तग़्लू फ़ी दीनिकुम् व ला तक़ूलू अलल्लाहि इल्लल्-हक़्-क़, इन्नमल्-मसीहु ईसब्नु मर्य-म रसूलुल्लाहि व कलि-मतुहू, अल्क़ाहा इला मर्य-म व रूहुम्-मिन्हु, फ़आमिनू बिल्लाहि व रूसुलिही, व ला तक़ूलू सलासतुन, इन्तहू ख़ैरल्लकुम, इन्नमल्लाहु इलाहुंव्वाहिदुन्, सुब्हानहू अंय्यकू-न लहू व-लदुन् • लहू मा फिस्समावाति व मा फिल्अर्ज़ि व कफ़ा बिल्लाहि वकीला
हे अहले किताब (ईसाईयो!) अपने धर्म में अधिकता न[1] करो और अल्लाह पर केवल सत्य ही बोलो। मसीह़ मर्यम का पुत्र केवल अल्लाह का रसूल और उसका शब्द है, जिसे (अल्लाह ने) मर्यम की ओर डाल दिया तथा उसकी ओर से एक आत्मा[2] है, अतः, अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाओ और ये न कहो कि (अल्लाह) तीन हैं, इससे रुक जाओ, यही तुम्हारे लिए अच्छा है, इसके सिवा कुछ नहीं कि अल्लाह ही अकेला पूज्य है, वह इससे पवित्र है कि उसका कोई पुत्र हो, आकाशों तथा धरती में जो कुछ है, उसी का है और अल्लाह काम बनाने[3] के लिए बहुत है।

4:172

لَّن يَسْتَنكِفَ ٱلْمَسِيحُ أَن يَكُونَ عَبْدًۭا لِّلَّهِ وَلَا ٱلْمَلَـٰٓئِكَةُ ٱلْمُقَرَّبُونَ ۚ وَمَن يَسْتَنكِفْ عَنْ عِبَادَتِهِۦ وَيَسْتَكْبِرْ فَسَيَحْشُرُهُمْ إِلَيْهِ جَمِيعًۭا

लंय्यस्तन्किफल्-मसीहु अंय्यकू-न अब्दल्-लिल्लाहि व लल्मला-इ कतुल मुक़र्रबू-न, व मंय्यस्तन्किफ् अन्, अिबादतिही व यस्तक्बिर् फ-सयह्शुरूहुम् इलैहि जमीआ़
मसीह़ कदापि अल्लाह का दास होने को अपमान नहीं समझता और न (अल्लाह के) समीपवर्ती फ़रिश्ते। जो व्यक्ति उसकी (वंदना को) अपमान समझेगा तथा अभिमान करेगा, तो उन सभी को वह अपने पास एकत्र करेगा।

4:173

فَأَمَّا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ فَيُوَفِّيهِمْ أُجُورَهُمْ وَيَزِيدُهُم مِّن فَضْلِهِۦ ۖ وَأَمَّا ٱلَّذِينَ ٱسْتَنكَفُوا۟ وَٱسْتَكْبَرُوا۟ فَيُعَذِّبُهُمْ عَذَابًا أَلِيمًۭا وَلَا يَجِدُونَ لَهُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ وَلِيًّۭا وَلَا نَصِيرًۭا

फ अम्मल्लज़ी-न आमनू व अमिलुस्-सालिहाति फ़-युवफ्फीहिम् उजूरहुम् व यज़ीदुहुम् मिन् फज़्लिही, व अम्मल्लज़ीनस् तन्कफू वस्तक्बरू फ़-युअ़ज़्ज़िबुहुम् अज़ाबन् अलीमाव्, व ला यजिदू-न लहुम मिन् दूनिल्लाहि वलिय्यंव्-व ला नसीरा
फिर जो लोग ईमान लाये तथा सत्कर्म किये, तो उन्हें उनका भरपूर प्रतिफल देगा और उन्हें अपनी दया से अधिक भी देगा।[1] परन्तु जिन्होंने (वंदना को) अपमान समझा और अभिमान किया, तो उन्हें दुःखदायी यातना देगा तथा अल्लाह के सिवा वह कोई रक्षक और सहायक नहीं पायेगा।

4:174

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ قَدْ جَآءَكُم بُرْهَـٰنٌۭ مِّن رَّبِّكُمْ وَأَنزَلْنَآ إِلَيْكُمْ نُورًۭا مُّبِينًۭا

या अय्युहन्नासु क़द् जा-अकुम् बुरहानुम् मिर्रब्बिकुम् व अन्ज़ल्ना इलैकुम् नूरम् मुबीना
हे लोगो! तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की ओर से खुला प्रमाण[1] आ गया है और हमने तुम्हारी ओर खुली वह़्यी[2] उतार दी है।

4:175

فَأَمَّا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ بِٱللَّهِ وَٱعْتَصَمُوا۟ بِهِۦ فَسَيُدْخِلُهُمْ فِى رَحْمَةٍۢ مِّنْهُ وَفَضْلٍۢ وَيَهْدِيهِمْ إِلَيْهِ صِرَٰطًۭا مُّسْتَقِيمًۭا

फ-अम्मल्लज़ी-न आमनू बिल्लाहि वअ्त-समू बिही फ-सयुद्ख़िलुहुम् फी रह़्मतिम् मिन्हु व फ़ज़्लिंव्-व यह़्दीहिम् इलैहि सिरातम् मुस्तक़ीमा
तो जो लोग अल्लाह पर ईमान लाये तथा इस (क़ुर्आन) को दृढ़ता से पकड़ लिया, वे उन्हीं को अपनी दया तथा अनुग्रह से (स्वर्ग) में प्रवेश देगा और उन्हें अपनी ओर सीधी राह दिखा देगा।

4:176

يَسْتَفْتُونَكَ قُلِ ٱللَّهُ يُفْتِيكُمْ فِى ٱلْكَلَـٰلَةِ ۚ إِنِ ٱمْرُؤٌا۟ هَلَكَ لَيْسَ لَهُۥ وَلَدٌۭ وَلَهُۥٓ أُخْتٌۭ فَلَهَا نِصْفُ مَا تَرَكَ ۚ وَهُوَ يَرِثُهَآ إِن لَّمْ يَكُن لَّهَا وَلَدٌۭ ۚ فَإِن كَانَتَا ٱثْنَتَيْنِ فَلَهُمَا ٱلثُّلُثَانِ مِمَّا تَرَكَ ۚ وَإِن كَانُوٓا۟ إِخْوَةًۭ رِّجَالًۭا وَنِسَآءًۭ فَلِلذَّكَرِ مِثْلُ حَظِّ ٱلْأُنثَيَيْنِ ۗ يُبَيِّنُ ٱللَّهُ لَكُمْ أَن تَضِلُّوا۟ ۗ وَٱللَّهُ بِكُلِّ شَىْءٍ عَلِيمٌۢ

यस्तफ्तून-क, क़ुलिल्लाहु युफ्तीकुम् फिल्-कलालति, इनिम् रूउन् ह-ल-क लै-स लहू व लदुंव्-व लहू उख़्तुन् फ़-लहा निस्फु मा त-र-क, व हु-व यरिसुहा इल्लम् यकुल्लहा व लदुन्, फ-इन् का-नतस् नतैनि फ़-लहुमस्-सुलुसानि मिम्मा त-र-क, व इन् कानू इख़्वतररिजालंव्-व निसाअन् फ़-लिज़्ज़-करि मिस्लु हज़्ज़िल् उन्सयैनि, युबय्यिनुल्लाहु लकुम् अन् तज़िल्लू, वल्लाहु बिकुल्लि शैइन् अलीम
(हे नबी!) वे आपसे कलाला के विषय में आदेश चाहते हैं, तो आप कह दें कि वह कलाला के विषय में तुम्हें आदेश दे रहा है कि यदि कोई ऐसा पुरुष मर जाये, जिसके संतान न हों, (और न पिता-दादा हो।) और उसके एक बहन हों, तो उसके लिए उसके छोड़े हुए धन का आधा है और वह (पुरुष) उसके पूरे धन का वारिस होगा, यदि उस (बहन) के कोई संतान न हों, (और न पिता और दादा हो)। और यदि उसकी दो (अथवा अधिक) बहनें हों, तो उन्हें छोड़े हुए धन का दो तिहाई मिलेगा। यदि भाई-बहन दोनों हों, तो नर (भाई) को दो नारियों (बहनों) के बराबर[1] (भाग) मिलेगा। अल्लाह तुम्हारे लिए आदेश उजागर कर रहा है, ताकि तुम कुपथ न हो जाओ तथा अल्लाह सब कुछ जानता है।

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