Surah Al Isra In Hindi [17:1-17:111]

Yeh Quran Kareem ki 17veen Surah hai aur issmein 111 aayatein hain. Yeh Surah Makkee hai, yaani yeh Makkah mein naazil hui thi.

Surah Al-Isra mein kayi aham maudoo’n par roushni daalee gayi hai, jaisay:

  1. Isra aur Miraj ka waaqi’a – Hazrat Muhammad (s.a.w) ka raatoun raat Makkah se Masjid-e-Aqsa tak safar aur wahaun se aasmaan par urraana.
  2. Bani Israeel ki kahaani aur un par hui azaabein – Unke imaan aur kufr ke sawaalaat par roushni daalee gayi hai.
  3. Allah ki qudrat aur uski niamaton ki taraf tawajjuh dilayi gayi hai.
  4. Akhirat ki haqeeqat, jahannum aur jannat ke mazmoon bayaan kiye gaye hain.
  5. Muslim’on ke liye nek amal karne aur ibadat karne ki tarbeeyat di gayi hai.

Yeh Surah iman, ibadat, akhlaaq aur mua’asharati zindagi ke liye raah-numa hai. Iskey mataalib gahre aur ameeq hain.

सूरह बनी इसराईल को हिंदी में पढ़ें

بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ

बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।

17:1

سُبْحَـٰنَ ٱلَّذِىٓ أَسْرَىٰ بِعَبْدِهِۦ لَيْلًۭا مِّنَ ٱلْمَسْجِدِ ٱلْحَرَامِ إِلَى ٱلْمَسْجِدِ ٱلْأَقْصَا ٱلَّذِى بَـٰرَكْنَا حَوْلَهُۥ لِنُرِيَهُۥ مِنْ ءَايَـٰتِنَآ ۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلْبَصِيرُ

सुब्हानल्लज़ी अस्रा बिअ़ब्दिही लैलम्-मिनल्- मस्जिदिल्-हरामि इलल् मस्जिदिल्-अक़्सल्लज़ी बारक्ना हौलहू लिनुरियहू मिन् आयातिना, इन्नहू हुवस्समी अुल्-बसीर
वह अल्लाह (हर ऐब से) पाक व पाकीज़ा है जिसने अपने बन्दों को रातों रात मस्जिदुल हराम (ख़ान ऐ काबा) से मस्जिदुल अक़सा (आसमानी मस्जिद) तक की सैर कराई जिसके चैगिर्द हमने हर किस्म की बरकत मुहय्या कर रखी हैं ताकि हम उसको (अपनी कुदरत की) निशानियाँ दिखाए इसमें शक नहीं कि (वह सब कुछ) सुनता (और) देखता है।

17:2

وَءَاتَيْنَا مُوسَى ٱلْكِتَـٰبَ وَجَعَلْنَـٰهُ هُدًۭى لِّبَنِىٓ إِسْرَٰٓءِيلَ أَلَّا تَتَّخِذُوا۟ مِن دُونِى وَكِيلًۭا

व आतैना मूसल्-किता-ब व जअ़ल्नाहु हुदल् लि-बनी इस्राई-ल अल्ला तत्तख़िज़ू मिन् दूनी वकीला
और हमने मूसा को किताब (तौरैत) अता की और उस को बनी इसराईल की रहनुमा क़रार दिया (और हुक्म दे दिया) कि ऐ उन लोगों की औलाद जिन्हें हम ने नूह के साथ कश्ती में सवार किया था।

17:3

ذُرِّيَّةَ مَنْ حَمَلْنَا مَعَ نُوحٍ ۚ إِنَّهُۥ كَانَ عَبْدًۭا شَكُورًۭا

ज़ुर्रिय्य-त मन् हमल्ना म-अ़ नूहिन् इन्नहू का-न अब्दन् शकूरा
मेरे सिवा किसी को अपना कारसाज़ न बनाना बेशक नूह बड़ा शुक्र गुज़ार बन्दा था।

17:4

وَقَضَيْنَآ إِلَىٰ بَنِىٓ إِسْرَٰٓءِيلَ فِى ٱلْكِتَـٰبِ لَتُفْسِدُنَّ فِى ٱلْأَرْضِ مَرَّتَيْنِ وَلَتَعْلُنَّ عُلُوًّۭا كَبِيرًۭا

व क़ज़ैना इला बनी इस्राईल फिल्-किताबि लतुफ्सिदुन्-न फिल्अर्ज़ि मर्रतैनि व ल-तअ्लुन्-न अलुव्वन् कबीरा
और हमने बनी इसराईल से इसी किताब (तौरैत) में साफ साफ बयान कर दिया था कि तुम लोग रुए ज़मीन पर दो मरतबा ज़रुर फसाद फैलाओगे और बड़ी सरकशी करोगे।

17:5

فَإِذَا جَآءَ وَعْدُ أُولَىٰهُمَا بَعَثْنَا عَلَيْكُمْ عِبَادًۭا لَّنَآ أُو۟لِى بَأْسٍۢ شَدِيدٍۢ فَجَاسُوا۟ خِلَـٰلَ ٱلدِّيَارِ ۚ وَكَانَ وَعْدًۭا مَّفْعُولًۭا

फ़-इज़ा जा-अ वअ्दु ऊलाहुमा बअ़स्-ना अ़लैकुम् अिबादल्-लना उली बअ्सिन् शदीदिन् फ़जासू ख़िलालद् दियारि, व का-न वअ्दम्-मफ़अूला
फिर जब उन दो फसादों में पहले का वक़्त आ पहुँचा तो हमने तुम पर कुछ अपने बन्दों (नजतुलनस्र) और उसकी फौज को मुसल्लत {ग़ालिब} कर दिया जो बड़े सख़्त लड़ने वाले थे तो वह लोग तुम्हारे घरों के अन्दर घुसे (और खूब क़त्ल व ग़ारत किया) और अल्लाह के अज़ाब का वायदा जो पूरा होकर रहा।

17:6

ثُمَّ رَدَدْنَا لَكُمُ ٱلْكَرَّةَ عَلَيْهِمْ وَأَمْدَدْنَـٰكُم بِأَمْوَٰلٍۢ وَبَنِينَ وَجَعَلْنَـٰكُمْ أَكْثَرَ نَفِيرًا

सुम्-म रदद्-ना लकुमुल्कर्र-त अलैहिम् व अम्दद्-ना कुम् बिअम्वालिंव्-व बनी-न व जअ़ल्नाकुम् अक्स-र नफ़ीरा
फिर हमने तुमको दोबारा उन पर ग़लबा देकर तुम्हारे दिन फेरे और माल से और बेटों से तुम्हारी मदद की और तुमको बड़े जत्थे वाला बना दिया।

17:7

إِنْ أَحْسَنتُمْ أَحْسَنتُمْ لِأَنفُسِكُمْ ۖ وَإِنْ أَسَأْتُمْ فَلَهَا ۚ فَإِذَا جَآءَ وَعْدُ ٱلْـَٔاخِرَةِ لِيَسُـۥٓـُٔوا۟ وُجُوهَكُمْ وَلِيَدْخُلُوا۟ ٱلْمَسْجِدَ كَمَا دَخَلُوهُ أَوَّلَ مَرَّةٍۢ وَلِيُتَبِّرُوا۟ مَا عَلَوْا۟ تَتْبِيرًا

इन् अह्सन्तुम् अह्सन्तुम् लिअन्फुसिकुम, व इन् अ- सअ्तुम् फ़-लहा, फ़-इज़ा जा-अ वअ्दुल्-आख़िरति लि-यसूऊ वुजू- हकुम् व लियद्ख़ुलुल्-मस्जि-द कमा द-ख़लूहु अव्व-ल मर्रतिंव्-व लियुतब्बिरू मा अ़लौ तत्बीरा
अगर तुम अच्छे काम करोगे तो अपने फायदे के लिए अच्छे काम करोगे और अगर तुम बुरे काम करोगे तो (भी) अपने ही लिए फिर जब दूसरे वक़्त का वायदा आ पहुँचा तो (हमने तैतूस रोगी को तुम पर मुसल्लत किया) ताकि वह लोग (मारते मारते) तुम्हारे चेहरे बिगाड़ दें (कि पहचाने न जाओ) और जिस तरह पहली दफा मस्जिद बैतुल मुक़द्दस में घुस गये थे उसी तरह फिर घुस पड़ें और जिस चीज़ पर क़ाबू पाए खूब अच्छी तरह बरबाद कर दी।

17:8

عَسَىٰ رَبُّكُمْ أَن يَرْحَمَكُمْ ۚ وَإِنْ عُدتُّمْ عُدْنَا ۘ وَجَعَلْنَا جَهَنَّمَ لِلْكَـٰفِرِينَ حَصِيرًا

अ़सा रब्बुकुम् अंय्यर्ह-मकुम् व इन् अुत्तुम् उद्-ना • व जअ़ल्ना जहन्न-म लिल्काफ़िरी-न हसीरा
(अब भी अगर तुम चैन से रहो तो) उम्मीद है कि तुम्हारा परवरदिगार तुम पर तरस खाए और अगर (कहीं) वही शरारत करोगे तो हम भी फिर पकड़ेंगे और हमने तो काफिरों के लिए जहन्नुम को क़ैद खाना बना ही रखा है।

17:9

إِنَّ هَـٰذَا ٱلْقُرْءَانَ يَهْدِى لِلَّتِى هِىَ أَقْوَمُ وَيُبَشِّرُ ٱلْمُؤْمِنِينَ ٱلَّذِينَ يَعْمَلُونَ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ أَنَّ لَهُمْ أَجْرًۭا كَبِيرًۭا

इन्-न हाज़ल्क़ुरआ-न यह्दी लिल्लती हि-य अक़्वमु व युबश्शिरूल्-मुअ्मिनीनल्लज़ी-न यअ्मलूनस्सालिहाति अन्-न लहुम् अज्रन् कबीरा
इसमें शक नहीं कि ये क़ुरान उस राह की हिदायत करता है जो सबसे ज़्यादा सीधी है और जो इमानदार अच्छे अच्छे काम करते हैं उनको ये खुशख़बरी देता है कि उनके लिए बहुत बड़ा अज्र और सवाब (मौजूद) है।

17:10

وَأَنَّ ٱلَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِٱلْـَٔاخِرَةِ أَعْتَدْنَا لَهُمْ عَذَابًا أَلِيمًۭا

व अन्नल्लज़ी-न ला युअ्मिनू-न बिल्आख़िरति अअ्तद्-ना लहुम् अ़ज़ाबन अलीमा
और ये भी कि बेशक जो लोग आखि़रत पर इमान नहीं रखते हैं उनके लिए हमने दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है।

17:11

وَيَدْعُ ٱلْإِنسَـٰنُ بِٱلشَّرِّ دُعَآءَهُۥ بِٱلْخَيْرِ ۖ وَكَانَ ٱلْإِنسَـٰنُ عَجُولًۭا

व यद्अुल-इन्सानु बिश्शर्रि दुआ़-अहू बिल्ख़ैरि, व कानल्-इन्सानु अ़जूला
और आदमी कभी (आजिज़ होकर अपने हक़ में) बुराई (अज़ाब वग़ैरह की दुआ) इस तरह माँगता है जिस तरह अपने लिए भलाई की दुआ करता है और आदमी तो बड़ा जल्दबाज़ है।

17:12

وَجَعَلْنَا ٱلَّيْلَ وَٱلنَّهَارَ ءَايَتَيْنِ ۖ فَمَحَوْنَآ ءَايَةَ ٱلَّيْلِ وَجَعَلْنَآ ءَايَةَ ٱلنَّهَارِ مُبْصِرَةًۭ لِّتَبْتَغُوا۟ فَضْلًۭا مِّن رَّبِّكُمْ وَلِتَعْلَمُوا۟ عَدَدَ ٱلسِّنِينَ وَٱلْحِسَابَ ۚ وَكُلَّ شَىْءٍۢ فَصَّلْنَـٰهُ تَفْصِيلًۭا

व जअ़ल्नल्लै-ल वन्नहा-र आयतैनि फ़-महौना आयतल्लैलि व जअ़ल्ना आयतन्नहारि मुब्सि-रतल्- लितब्तग़ू फ़ज़्लम् मिर्रब्बिकुम् व लितअ्-लमू अ़-ददस्सिनी-न वल्-हिसा-ब, व कुल्-ल शैइन् फ़स्सल्नाहु तफ़्सीला
और हमने रात और दिन को (अपनी क़ुदरत की) दो निशानियाँ क़रार दिया फिर हमने रात की निशानी (चाँद) को धुँधला बनाया और दिन की निशानी (सूरज) को रौशन बनाया (कि सब चीज़े दिखाई दें) ताकि तुम लोग अपने परवरदिगार का फज़ल ढूँढते फिरों और ताकि तुम बरसों की गिनती और हिसाब को जानो (बूझों) और हमने हर चीज़ को खूब अच्छी तरह तफसील से बयान कर दिया है।

17:13

وَكُلَّ إِنسَـٰنٍ أَلْزَمْنَـٰهُ طَـٰٓئِرَهُۥ فِى عُنُقِهِۦ ۖ وَنُخْرِجُ لَهُۥ يَوْمَ ٱلْقِيَـٰمَةِ كِتَـٰبًۭا يَلْقَىٰهُ مَنشُورًا

व कुल्-ल इन्सानिन् अल्ज़म्-नाहु ताइ-रहू फी अुनुक़िही, व नुख़्रिजु लहू यौमल्-क़ियामति किताबंय्-यल्क़ाहु मन्शूरा
और हमने हर आदमी के नामए अमल को उसके गले का हार बना दिया है (कि उसकी किस्मत उसके साथ रहे) और क़यामत के दिन हम उसे उसके सामने निकल के रख देगें कि वह उसको एक खुली हुयी किताब अपने रुबरु पाएगा।

17:14

ٱقْرَأْ كِتَـٰبَكَ كَفَىٰ بِنَفْسِكَ ٱلْيَوْمَ عَلَيْكَ حَسِيبًۭا

इक़रअ् किता-ब क, कफ़ा बिनफ्सिकल्-यौ-म अ़लै-क हसीबा
और हम उससे कहेंगें कि अपना नामए अमल पढ़ ले और आज अपने हिसाब के लिए तू आप ही काफी हैं।

17:15

مَّنِ ٱهْتَدَىٰ فَإِنَّمَا يَهْتَدِى لِنَفْسِهِۦ ۖ وَمَن ضَلَّ فَإِنَّمَا يَضِلُّ عَلَيْهَا ۚ وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٌۭ وِزْرَ أُخْرَىٰ ۗ وَمَا كُنَّا مُعَذِّبِينَ حَتَّىٰ نَبْعَثَ رَسُولًۭا

मनिह्तदा फ़-इन्नमा यह्तदी लिनफ़्सिही व मन् ज़ल-ल फ़-इन्नमा यज़िल्लु अ़लैहा, व ला तज़िरू वाज़ि-रतुंव् -विज़्-र उख्रा, व मा कुन्ना मुअ़ज़्ज़िबी-न हत्ता नब्अ़ स रसूला
जो शख़्स रुबरु होता है तो बस अपने फायदे के लिए शह पर आता है और जो शख़्स गुमराह होता है तो उसने भटक कर अपना आप बिगाड़ा और कोई शख़्स किसी दूसरे (के गुनाह) का बोझ अपने सर नहीं लेगा और हम तो जब तक रसूल को भेजकर तमाम हुज्जत न कर लें किसी पर अज़ाब नहीं किया करते।

17:16

وَإِذَآ أَرَدْنَآ أَن نُّهْلِكَ قَرْيَةً أَمَرْنَا مُتْرَفِيهَا فَفَسَقُوا۟ فِيهَا فَحَقَّ عَلَيْهَا ٱلْقَوْلُ فَدَمَّرْنَـٰهَا تَدْمِيرًۭا

व इज़ा अरद्-ना अन्नुह़्लि-क क़र्यतन् अमर्ना मुत्-रफ़ीहा फ़-फ़-सक़ू फ़ीहा फ़-हक़् क़ अ़लैहल्क़ौ लु फ़-दम्मरनाहा तदमीरा
और हमको जब किसी बस्ती का वीरान करना मंज़ूर होता है तो हम वहाँ के खुशहालों को (इताअत का) हुक्म देते हैं तो वह लोग उसमें नाफरमानियाँ करने लगे तब वह बस्ती अज़ाब की मुस्तहक़ होगी उस वक़्त हमने उसे अच्छी तरह तबाह व बरबाद कर दिया।

17:17

وَكَمْ أَهْلَكْنَا مِنَ ٱلْقُرُونِ مِنۢ بَعْدِ نُوحٍۢ ۗ وَكَفَىٰ بِرَبِّكَ بِذُنُوبِ عِبَادِهِۦ خَبِيرًۢا بَصِيرًۭا

व कम् अह़्लक्ना मिनल्क़ुरूनि मिम्-बअ्दि नूहिन्, व कफ़ा बिरब्बि-क बिज़ुनूबि अिबादिही ख़बीरम्-बसीरा
और नूह के बाद से (उस वक़्त तक) हमने कितनी उम्मतों को हलाक कर मारा और (ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार अपने बन्दों के गुनाहों को जानने और देखने के लिए काफी है।

17:18

مَّن كَانَ يُرِيدُ ٱلْعَاجِلَةَ عَجَّلْنَا لَهُۥ فِيهَا مَا نَشَآءُ لِمَن نُّرِيدُ ثُمَّ جَعَلْنَا لَهُۥ جَهَنَّمَ يَصْلَىٰهَا مَذْمُومًۭا مَّدْحُورًۭا

मन् का-न युरीदुल-आ़जि-ल त अ़ज्जल्ना लहू फ़ीहा मा नशा-उ लिमन् नुरीदु सुम्म जअ़ल्ना लहू जहन्न-म, यस्लाहा मज़्मूमम् मद्हूरा
(और गवाह शाहिद की ज़रुरत नहीं) और जो शख़्स दुनिया का ख़्वाहाँ हो तो हम जिसे चाहते और जो चाहते हैं उसी दुनिया में सिरदस्त {फ़ौरन} उसे अता करते हैं (मगर) फिर हमने उसके लिए तो जहन्नुम ठहरा ही रखा है कि वह उसमें बुरी हालत से रौंदा हुआ दाखि़ल होगा।

17:19

وَمَنْ أَرَادَ ٱلْـَٔاخِرَةَ وَسَعَىٰ لَهَا سَعْيَهَا وَهُوَ مُؤْمِنٌۭ فَأُو۟لَـٰٓئِكَ كَانَ سَعْيُهُم مَّشْكُورًۭا

व मन् अरादल्-आख़िर-त व सआ़ लहा सअ्-यहा व हु-व मुअ्मिनुन् फ़-उलाइ-क का-न सअ्युहुम् मश्कूरा
और जो शख़्स आखि़र का मुतमइनी हो और उसके लिए खूब जैसी चाहिए कोशिश भी की और वह इमानदार भी है तो यही वह लोग हैं जिनकी कोशिश मक़बूल होगी।

17:20

كُلًّۭا نُّمِدُّ هَـٰٓؤُلَآءِ وَهَـٰٓؤُلَآءِ مِنْ عَطَآءِ رَبِّكَ ۚ وَمَا كَانَ عَطَآءُ رَبِّكَ مَحْظُورًا

कुल्लन-नुमिद्दु हाउला-इ व हाउला-इ मिन् अ़ता-इ रब्बि-क, व मा का-न अ़ता-उ रब्बि-क मह्ज़ूरा
(ऐ रसूल!) उनको (ग़रज़ सबको) हम ही तुम्हारे परवरदिगार की (अपनी) बख़्शिश से मदद देते हैं और तुम्हारे परवरदिगार की बख़्शिश तो (आम है) किसी पर बन्द नहीं।

17:21

ٱنظُرْ كَيْفَ فَضَّلْنَا بَعْضَهُمْ عَلَىٰ بَعْضٍۢ ۚ وَلَلْـَٔاخِرَةُ أَكْبَرُ دَرَجَـٰتٍۢ وَأَكْبَرُ تَفْضِيلًۭا

उन्ज़ुर् कै-फ़ फ़ज़्ज़ल्ना बअ्-ज़हुम् अ़ला बअ्ज़िन्, व लल्आख़िरतु अक्बरू द-रजातिंव्-व अक्बरू तफ़्ज़ीला
(ऐ रसूल!) ज़रा देखो तो कि हमने बाज़ लोगों को बाज़ पर कैसी फज़ीलत दी है और आखि़रत के दर्जे तो यक़ीनन (यहाँ से) कहीं बढ़के है और वहाँ की फज़ीलत भी तो कैसी बढ़ कर है।

17:22

لَّا تَجْعَلْ مَعَ ٱللَّهِ إِلَـٰهًا ءَاخَرَ فَتَقْعُدَ مَذْمُومًۭا مَّخْذُولًۭا

ला तज्अ़ल् मअ़ल्लाहि इलाहन् आ-ख-र फ़-तक़अु-द मज़्मूमम्-मख़्ज़ूला
और देखो कहीं अल्लाह के साथ दूसरे को (उसका) शरीक न बनाना वरना तुम बुरे हाल में ज़लील रुसवा बैठै के बैठें रह जाओगे।

17:23

۞ وَقَضَىٰ رَبُّكَ أَلَّا تَعْبُدُوٓا۟ إِلَّآ إِيَّاهُ وَبِٱلْوَٰلِدَيْنِ إِحْسَـٰنًا ۚ إِمَّا يَبْلُغَنَّ عِندَكَ ٱلْكِبَرَ أَحَدُهُمَآ أَوْ كِلَاهُمَا فَلَا تَقُل لَّهُمَآ أُفٍّۢ وَلَا تَنْهَرْهُمَا وَقُل لَّهُمَا قَوْلًۭا كَرِيمًۭا

व क़ज़ा रब्बु-क अल्ला तअ्बुदू इल्ला इय्याहु व बिल्-वालिदैनि इह्सानन्, इम्मा यब्लु ग़न्-न अिन्द-कल् कि-ब-र अ-हदुहुमा औ किलाहुमा फ़ला तक़ुल्-लहुमा उफ्फिंव्-व ला तन्हर्-हुमा व क़ुल्-लहुमा क़ौलन् करीमा
और तुम्हारे परवरदिगार ने तो हुक्म ही दिया है कि उसके सिवा किसी दूसरे की इबादत न करना और माँ बाप से नेकी करना अगर उनमें से एक या दोनों तेरे सामने बुढ़ापे को पहुँचे (और किसी बात पर खफा हों) तो (ख़बरदार उनके जवाब में उफ तक) न कहना और न उनको झिड़कना और जो कुछ कहना सुनना हो तो बहुत अदब से कहा करो।

17:24

وَٱخْفِضْ لَهُمَا جَنَاحَ ٱلذُّلِّ مِنَ ٱلرَّحْمَةِ وَقُل رَّبِّ ٱرْحَمْهُمَا كَمَا رَبَّيَانِى صَغِيرًۭا

वख़्फिज़् लहुमा जनाहज़्ज़ुल्लि मिनर्रह्-मति व क़ुर्रब्बिर्हम्हुमा कमा रब्बयानी सग़ीरा
और उनके सामने नियाज़ {रहमत} से ख़ाकसारी का पहलू झुकाए रखो और उनके हक़ में दुआ करो कि मेरे पालने वाले जिस तरह इन दोनों ने मेरे छोटेपन में मेरी मेरी परवरिश की है।

17:25

رَّبُّكُمْ أَعْلَمُ بِمَا فِى نُفُوسِكُمْ ۚ إِن تَكُونُوا۟ صَـٰلِحِينَ فَإِنَّهُۥ كَانَ لِلْأَوَّٰبِينَ غَفُورًۭا

रब्बुकुम् अअ्लमु बिमा फी नुफूसिकुम्, इन् तकूनू सालिही-न फ़-इन्नहू का-न लिल्-अव्वाबी-न ग़फूरा
इसी तरह तू भी इन पर रहम फरमा तुम्हारे दिल की बात तुम्हारा परवरदिगार ख़ूब जानता है अगर तुम (वाक़ई) नेक होगे और भूले से उनकी ख़ता की है तो वह तुमको बख़्श देगा क्योंकि वह तो तौबा करने वालों का बड़ा बख्शने वाला है।

17:26

وَءَاتِ ذَا ٱلْقُرْبَىٰ حَقَّهُۥ وَٱلْمِسْكِينَ وَٱبْنَ ٱلسَّبِيلِ وَلَا تُبَذِّرْ تَبْذِيرًا

व आति ज़ल्क़ुर्बा हक़्क़हू वल्-मिस्की-न वब्-नस्सबीलि व ला तु बज़्ज़िर तब्ज़ीरा
और क़राबतदारों और मोहताज और परदेसी को उनका हक़ दे दो और ख़बरदार फुज़ूल ख़र्ची मत किया करो।

17:27

إِنَّ ٱلْمُبَذِّرِينَ كَانُوٓا۟ إِخْوَٰنَ ٱلشَّيَـٰطِينِ ۖ وَكَانَ ٱلشَّيْطَـٰنُ لِرَبِّهِۦ كَفُورًۭا

इन्नल्-मु बज़्ज़िरी-न कानू इख़्वानश् शयातीनि, व कानश्शैतानु लिरब्बिही कफूरा
क्योंकि फुज़ूलख़र्ची करने वाले यक़ीनन शैतानों के भाई है और शैतान अपने परवरदिगार का बड़ा नाशुक्री करने वाला है।

17:28

وَإِمَّا تُعْرِضَنَّ عَنْهُمُ ٱبْتِغَآءَ رَحْمَةٍۢ مِّن رَّبِّكَ تَرْجُوهَا فَقُل لَّهُمْ قَوْلًۭا مَّيْسُورًۭا

व इम्मा तुअ्-रिज़न्-न अन्हुमुब्तिग़ा-अ रह़्मतिम्-मिर्रब्बि-क तरजूहा फ़क़ुल-लहुम् क़ौलम्-मैसूरा
और तुमको अपने परवरदिगार के फज़ल व करम के इन्तज़ार में जिसकी तुम को उम्मीद हो (मजबूरन) उन (ग़रीबों) से मुँह मोड़ना पड़े तो नरमी से उनको समझा दो।

17:29

وَلَا تَجْعَلْ يَدَكَ مَغْلُولَةً إِلَىٰ عُنُقِكَ وَلَا تَبْسُطْهَا كُلَّ ٱلْبَسْطِ فَتَقْعُدَ مَلُومًۭا مَّحْسُورًا

व ला तज्अ़ल् य-द-क म़ग़्लू-लतन् इला अुनुक़ि-क व ला तब्सुत्हा कुल्लल्बस्ति फ़-तक़अु-द मलूमम्-मह्सूरा
और अपने हाथ को न तो गर्दन से बँधा हुआ (बहुत तंग) कर लो (कि किसी को कुछ दो ही नहीं) और न बिल्कुल खोल दो कि सब कुछ दे डालो और आखि़र तुम को मलामत ज़दा हसरत से बैठना पड़े।

17:30

إِنَّ رَبَّكَ يَبْسُطُ ٱلرِّزْقَ لِمَن يَشَآءُ وَيَقْدِرُ ۚ إِنَّهُۥ كَانَ بِعِبَادِهِۦ خَبِيرًۢا بَصِيرًۭا

इन्-न रब्ब-क यब्सुतुर्रिज़्-क़ लिमंय्यशा-उ व यक़्दिरू, इन्नहू का-न बिअिबादिही ख़बीरम्-बसीरा
इसमें शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार जिसके लिए चाहता है रोज़ी को फराख़ {बढ़ा} देता है और जिसकी रोज़ी चाहता है तंग रखता है इसमें शक नहीं कि वह अपने बन्दों से बहुत बाख़बर और देखभाल रखने वाला है।

17:31

وَلَا تَقْتُلُوٓا۟ أَوْلَـٰدَكُمْ خَشْيَةَ إِمْلَـٰقٍۢ ۖ نَّحْنُ نَرْزُقُهُمْ وَإِيَّاكُمْ ۚ إِنَّ قَتْلَهُمْ كَانَ خِطْـًۭٔا كَبِيرًۭا

व ला तक़्तुलू औलादकुम् ख़श्य-त इम्लाक़िन्, नह़्नु नरज़ुक़ुहुम् व इय्याकुम्, इन्-न क़त्लहुम् का-न ख़ित् अन् कबीरा
और (लोगों) मुफलिसी {ग़रीबी} के ख़ौफ से अपनी औलाद को क़त्ल न करो (क्योंकि) उनको और तुम को (सबको) तो हम ही रोज़ी देते हैं बेशक औलाद का क़त्ल करना बहुत सख़्त गुनाह है।

17:32

وَلَا تَقْرَبُوا۟ ٱلزِّنَىٰٓ ۖ إِنَّهُۥ كَانَ فَـٰحِشَةًۭ وَسَآءَ سَبِيلًۭا

व ला तक़्र्बुज्ज़िना इन्नहू का-न फ़ाहि-शतन्, व सा-अ सबीला
और (देखो) ज़िना के पास भी न फटकना क्योंकि बेशक वह बड़ी बेहयाई का काम है और बहुत बुरा चलन है।

17:33

وَلَا تَقْتُلُوا۟ ٱلنَّفْسَ ٱلَّتِى حَرَّمَ ٱللَّهُ إِلَّا بِٱلْحَقِّ ۗ وَمَن قُتِلَ مَظْلُومًۭا فَقَدْ جَعَلْنَا لِوَلِيِّهِۦ سُلْطَـٰنًۭا فَلَا يُسْرِف فِّى ٱلْقَتْلِ ۖ إِنَّهُۥ كَانَ مَنصُورًۭا

व ला तक़्तुलुन्-नफ़्सल्लती हर्रमल्लाहु इल्ला बिल्हक़्क़ि, व मन् क़ुति-ल मज़्लूमन् फ़-क़द् जअ़ल्ना लि-वलिय्यिही सुल्तानन् फ़ला युस्रिफ्-फ़िल्क़त्लि, इन्नहू का-न मन्सूरा
और जिस जान का मारना अल्लाह ने हराम कर दिया है उसके क़त्ल न करना मगर जायज़ तौर पर और जो शख़्स नाहक़ मारा जाए तो हमने उसके वारिस को (क़ातिल पर क़सास का क़ाबू दिया है तो उसे चाहिए कि क़त्ल {ख़ून का बदला लेने) में ज़्यादती न करे बेशक वह मदद दिया जाएगा।

17:34

وَلَا تَقْرَبُوا۟ مَالَ ٱلْيَتِيمِ إِلَّا بِٱلَّتِى هِىَ أَحْسَنُ حَتَّىٰ يَبْلُغَ أَشُدَّهُۥ ۚ وَأَوْفُوا۟ بِٱلْعَهْدِ ۖ إِنَّ ٱلْعَهْدَ كَانَ مَسْـُٔولًۭا

व ला तक़्र्बू मालल् यतीमि इल्ला बिल्लती हि-य अह्सनु हत्ता यब्लु-ग़ अशुद्दहू, व औफू बिल्अ़ह्दि, इन्नल्-अ़ह्-द का-न मस्ऊला
(कि क़त्ल ही करे और माफ न करे) और यतीम जब तक जवानी को पहुँचे उसके माल के क़रीब भी न पहुँच जाना मगर हाँ इस तरह पर कि (यतीम के हक़ में) बेहतर हो और एहद को पूरा करो क्योंकि (क़यामत में) एहद की ज़रुर पूछ गछ होगी।

17:35

وَأَوْفُوا۟ ٱلْكَيْلَ إِذَا كِلْتُمْ وَزِنُوا۟ بِٱلْقِسْطَاسِ ٱلْمُسْتَقِيمِ ۚ ذَٰلِكَ خَيْرٌۭ وَأَحْسَنُ تَأْوِيلًۭا

व औफुल्कै ल इज़ा किल्तुम् व ज़िनू बिल-क़िस्तासिल्-मुस्तक़ीमि, ज़ालि-क ख़ैरूंव्-व अह्सनु तअ्वीला
और जब नाप तौल कर देना हो तो पैमाने को पूरा भर दिया करो और (जब तौल कर देना हो तो) बिल्कुल ठीक तराजू से तौला करो (मामले में) यही (तरीक़ा) बेहतर है और अन्जाम (भी उसका) अच्छा है।

17:36

وَلَا تَقْفُ مَا لَيْسَ لَكَ بِهِۦ عِلْمٌ ۚ إِنَّ ٱلسَّمْعَ وَٱلْبَصَرَ وَٱلْفُؤَادَ كُلُّ أُو۟لَـٰٓئِكَ كَانَ عَنْهُ مَسْـُٔولًۭا

व ला तक़्फु मा लै-स ल-क बिही अिल्मुन्, इन्नस्सम्-अ वल्ब स-र वल्फुआ-द कुल्लू उलाइ-क का-न अ़न्हु मस्ऊला
और जिस चीज़ का कि तुम्हें यक़ीन न हो (ख़्वाह मा ख़्वाह) उसके पीछे न पड़ा करो (क्योंकि) कान और आँख और दिल इन सबकी (क़यामत के दिना यक़ीनन बाज़पुर्स होती है।

17:37

وَلَا تَمْشِ فِى ٱلْأَرْضِ مَرَحًا ۖ إِنَّكَ لَن تَخْرِقَ ٱلْأَرْضَ وَلَن تَبْلُغَ ٱلْجِبَالَ طُولًۭا

व ला तम्शि फ़िल्अर्ज़ि म रहन्, इन्न-क लन् तख़्रिक़ल्-अर्ज़ व लन् तब्लुग़ल्-जिबा-ल तूला
और (देखो) ज़मीन पर अकड़ कर न चला करो क्योंकि तू (अपने इस धमाके की चाल से) न तो ज़मीन को हरगिज़ फाड़ डालेगा और न (तनकर चलने से) हरगिज़ लम्बाई में पहाड़ों के बराबर पहुँच सकेगा।

17:38

كُلُّ ذَٰلِكَ كَانَ سَيِّئُهُۥ عِندَ رَبِّكَ مَكْرُوهًۭا

कुल्लु ज़ालि-क का-न सय्यिउहू अिन्-द रब्बि-क मक्रूहा
(ऐ रसूल!) इन सब बातों में से जो बुरी बात है वह तुम्हारे परवरदिगार के नज़दीक नापसन्द है।

17:39

ذَٰلِكَ مِمَّآ أَوْحَىٰٓ إِلَيْكَ رَبُّكَ مِنَ ٱلْحِكْمَةِ ۗ وَلَا تَجْعَلْ مَعَ ٱللَّهِ إِلَـٰهًا ءَاخَرَ فَتُلْقَىٰ فِى جَهَنَّمَ مَلُومًۭا مَّدْحُورًا

ज़ालि-क मिम्मा औहा इलै-क रब्बु-क मिनल् हिक्मति, व ला तज्अ़ल् मअ़ल्लाहि इलाहन् आख़-र फ़-तुल्क़ा फ़ी जहन्न-म मलूमम्-मदहूरा
ये बात तो हिकमत की उन बातों में से जो तुम्हारे परवरदिगार ने तुम्हारे पास ‘वही’ भेजी और अल्लाह के साथ कोई दूसरा माबूद न बनाना और न तू मलामत ज़दा राइन्द {धुत्कारा} होकर जहन्नुम में झोंक दिया जाएगा।

17:40

أَفَأَصْفَىٰكُمْ رَبُّكُم بِٱلْبَنِينَ وَٱتَّخَذَ مِنَ ٱلْمَلَـٰٓئِكَةِ إِنَـٰثًا ۚ إِنَّكُمْ لَتَقُولُونَ قَوْلًا عَظِيمًۭا

अ-फ़अस्फाकुम् रब्बुकुम् बिल्बनी-न वत्त-ख-ज़ मिनल्-मलाइ-कति इनासन, इन्नकुम् ल-तक़ूलू-न क़ौलन् अ़ज़ीमा
(ऐ मुशरेकीन मक्का!) क्या तुम्हारे परवरदिगार ने तुम्हें चुन चुन कर बेटे दिए हैं और खुद बेटियाँ ली हैं (यानि) फरिश्ते इसमें शक नहीं कि बड़ी (सख़्त) बात कहते हो।

17:41

وَلَقَدْ صَرَّفْنَا فِى هَـٰذَا ٱلْقُرْءَانِ لِيَذَّكَّرُوا۟ وَمَا يَزِيدُهُمْ إِلَّا نُفُورًۭا

व ल क़द् सर्रफ्ना फ़ी हाज़ल क़ुरआनि लि-यज़्ज़क्करू, व मा यज़ीदुहुम् इल्ला नुफूरा
और हमने तो इसी क़ुरान में तरह तरह से बयान कर दिया ताकि लोग किसी तरह समझें मगर उससे तो उनकी नफरत ही बढ़ती गई।

17:42

قُل لَّوْ كَانَ مَعَهُۥٓ ءَالِهَةٌۭ كَمَا يَقُولُونَ إِذًۭا لَّٱبْتَغَوْا۟ إِلَىٰ ذِى ٱلْعَرْشِ سَبِيلًۭا

क़ुल् लौ का-न म-अ़हू आलि-हतुन् कमा यक़ूलू-न इज़ल्-लब्तग़ौ इला ज़िल-अर्शि सबीला
(ऐ रसूल! उनसे) तुम कह दो कि अगर अल्लाह के साथ जैसा ये लोग कहते हैं और माबूद भी होते तो अब तक उन माबूदों ने अर्श तक (पहुँचाने की कोई न कोई राह निकाल ली होती।

17:43

سُبْحَـٰنَهُۥ وَتَعَـٰلَىٰ عَمَّا يَقُولُونَ عُلُوًّۭا كَبِيرًۭا

सुब्हानहू व तआ़ला अम्मा यक़ूलू-न अुलुव्वन् कबीरा
जो बेहूदा बातें ये लोग (अल्लाह की निस्बत) कहा करते हैं वह उनसे बहुत बढ़के पाक व पाकीज़ा और बरतर है।

17:44

تُسَبِّحُ لَهُ ٱلسَّمَـٰوَٰتُ ٱلسَّبْعُ وَٱلْأَرْضُ وَمَن فِيهِنَّ ۚ وَإِن مِّن شَىْءٍ إِلَّا يُسَبِّحُ بِحَمْدِهِۦ وَلَـٰكِن لَّا تَفْقَهُونَ تَسْبِيحَهُمْ ۗ إِنَّهُۥ كَانَ حَلِيمًا غَفُورًۭا

तुसब्बिहु लहुस्समावातुस्सब् अु वल्अर्ज़ु व मन् फ़ीहिन्-न, व इम्-मिन् शैइन् इल्ला युसब्बिहु बिहम्दिही व लाकिल्-ला तफ़्क़हू-न तस्बी-हहुम्, इन्नहू का-न हलीमन् ग़फूरा
सातों आसमान और ज़मीन और जो लोग इनमें (सब) उसकी तस्बीह करते हैं और (सारे जहाँन) में कोई चीज़ ऐसी नहीं जो उसकी (हम्द व सना) की तस्बीह न करती हो मगर तुम लोग उनकी तस्बीह नहीं समझते इसमें शक नहीं कि वह बड़ा बुर्दबार बख़्शने वाला है।

17:45

وَإِذَا قَرَأْتَ ٱلْقُرْءَانَ جَعَلْنَا بَيْنَكَ وَبَيْنَ ٱلَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِٱلْـَٔاخِرَةِ حِجَابًۭا مَّسْتُورًۭا

व इज़ा क़रअ्तल-क़ुरआ-न जअ़ल्ना बैन-क व बैनल्लज़ी-न ला युअ्मिनू-न बिल्-आख़िरति हिजाबम्-मस्तूरा
और जब तुम क़ुरान पढ़ते हो तो हम तुम्हारे और उन लोगों के दरम्यिान जो आखि़रत का यक़ीन नहीं रखते एक गहरा पर्दा डाल देते हैं।

17:46

وَجَعَلْنَا عَلَىٰ قُلُوبِهِمْ أَكِنَّةً أَن يَفْقَهُوهُ وَفِىٓ ءَاذَانِهِمْ وَقْرًۭا ۚ وَإِذَا ذَكَرْتَ رَبَّكَ فِى ٱلْقُرْءَانِ وَحْدَهُۥ وَلَّوْا۟ عَلَىٰٓ أَدْبَـٰرِهِمْ نُفُورًۭا

व जअ़ल्ना अ़ला क़ुलूबिहिम् अकिन्नतन् अय्यंफ़क़हूहु व फ़ी आज़ानिहिम् वक़्रन्, व इज़ा ज़कर् त रब्ब-क फ़िल्क़ुरआनि वह्दहू वल्लौ अ़ला अद्-बारिहिम् नुफूरा
और (गोया) हम उनके कानों में गरानी पैदा कर देते हैं कि न सुन सकें जब तुम क़ुरान में अपने परवरदिगार का तन्हा जि़क्र करते हो तो कुफ्फार उलटे पावँ नफरत करके (तुम्हारे पास से) भाग खड़े होते हैं।

17:47

نَّحْنُ أَعْلَمُ بِمَا يَسْتَمِعُونَ بِهِۦٓ إِذْ يَسْتَمِعُونَ إِلَيْكَ وَإِذْ هُمْ نَجْوَىٰٓ إِذْ يَقُولُ ٱلظَّـٰلِمُونَ إِن تَتَّبِعُونَ إِلَّا رَجُلًۭا مَّسْحُورًا

नह्नु अअ्लमु बिमा यस्तमिअू-न बिही इज़् यस्तमिअू-न इलै-क व इज़् हुम् नज्वा इज़् यक़ूलुज़्ज़ालिमू-न इन् तत्तबिअू-न इल्ला रजुलम्-मस्हूरा
जब ये लोग तुम्हारी तरफ कान लगाते हैं तो जो कुछ ये ग़ौर से सुनते हैं हम तो खूब जानते हैं और जब ये लोग बाहम कान में बात करते हैं तो उस वक़्त ये ज़ालिम (इमानदारों से) कहते हैं कि तुम तो बस एक (दीवाने) आदमी के पीछे पड़े हो जिस पर किसी ने जादू कर दिया है।

17:48

ٱنظُرْ كَيْفَ ضَرَبُوا۟ لَكَ ٱلْأَمْثَالَ فَضَلُّوا۟ فَلَا يَسْتَطِيعُونَ سَبِيلًۭا

उन्ज़ुर् कै-फ़ ज़-रबू लकल्-अम्सा-ल फ़-ज़ल्लू फ़ला यस्ततीअू-न सबीला
(ऐ रसूल!) ज़रा देखो तो ये कम्बख़्त तुम्हारी निस्बत कैसी कैसी फब्तियाँ कहते हैं तो (इसी वजह से) ऐसे गुमराह हुए कि अब (हक़ की) राह किसी तरह पा ही नहीं सकते।

17:49

وَقَالُوٓا۟ أَءِذَا كُنَّا عِظَـٰمًۭا وَرُفَـٰتًا أَءِنَّا لَمَبْعُوثُونَ خَلْقًۭا جَدِيدًۭا

व क़ालू अ-इज़ा कुन्ना अिज़ामंव्-व रूफ़ातन् अ-इन्ना लमब्अूसू न ख़ल्कन् जदीदा
और ये लोग कहते हैं कि जब हम (मरने के बाद सड़ गल कर) हड्डियाँ रह जाएँगें और रेज़ा रेज़ा हो जाएँगें तो क्या नये सिरे से पैदा करके उठा खड़े किए जाएँगें।

17:50

۞ قُلْ كُونُوا۟ حِجَارَةً أَوْ حَدِيدًا

क़ुल कूनू हिजा रतन् औ हदीदा
(ऐ रसूल!) तुम कह दो कि तुम (मरने के बाद) चाहे पत्थर बन जाओ या लोहा या कोई और चीज़ जो तुम्हारे ख़्याल में बड़ी (सख़्त) हो।

17:51

أَوْ خَلْقًۭا مِّمَّا يَكْبُرُ فِى صُدُورِكُمْ ۚ فَسَيَقُولُونَ مَن يُعِيدُنَا ۖ قُلِ ٱلَّذِى فَطَرَكُمْ أَوَّلَ مَرَّةٍۢ ۚ فَسَيُنْغِضُونَ إِلَيْكَ رُءُوسَهُمْ وَيَقُولُونَ مَتَىٰ هُوَ ۖ قُلْ عَسَىٰٓ أَن يَكُونَ قَرِيبًۭا

औ ख़ल्क़म्-मिम्मा यक्बुरू फ़ी सुदूरिकुम्, फ़-स यक़ू लू-न मंय्युईदुना, क़ुलिल्लज़ी फ़-त रकुम् अव्व-ल मर्रतिन्, फ़-सयुन्ग़िज़ू-न इलै-क रूऊ-सहुम् व यफ़ूलू-न मता हु-व, क़ुल अ़सा अंय्यकू-न क़रीबा
और उसका जि़न्दा होना दुश्वार हो वह भी ज़रुर जि़न्दा हो गई तो ये लोग अनक़रीब ही तुम से पूछेगें भला हमें दोबारा कौन जि़न्दा करेगा तुम कह दो कि वही (अल्लाह) जिसने तुमको पहली मरतबा पैदा किया (जब तुम कुछ न थे) इस पर ये लोग तुम्हारे सामने अपने सर मटकाएँगें और कहेगें (अच्छा अगर होगा) तो आखि़र कब तुम कह दो कि बहुत जल्द अनक़रीब ही होगा।

17:52

يَوْمَ يَدْعُوكُمْ فَتَسْتَجِيبُونَ بِحَمْدِهِۦ وَتَظُنُّونَ إِن لَّبِثْتُمْ إِلَّا قَلِيلًۭا

यौ-म यद्अूकुम् फ़-तस्तजीबू-न बिहम्दिही व तज़ुन्नू – न इल्लबिस्तुम् इल्ला क़लीला
जिस दिन अल्लाह तुम्हें (इसराफील के ज़रिए से) बुंलाएगा तो उसकी हम्दो सना करते हुए उसकी तामील करोगे (और क़ब्रों से निकलोगे) और तुम ख़्याल करोगे कि (मरने के बाद क़ब्रों में) बहुत ही कम ठहरे।

17:53

وَقُل لِّعِبَادِى يَقُولُوا۟ ٱلَّتِى هِىَ أَحْسَنُ ۚ إِنَّ ٱلشَّيْطَـٰنَ يَنزَغُ بَيْنَهُمْ ۚ إِنَّ ٱلشَّيْطَـٰنَ كَانَ لِلْإِنسَـٰنِ عَدُوًّۭا مُّبِينًۭا

व क़ुल्-लिअिबादी यक़ूलुल्लती हि-य अह्सनु, इन्नश्शैता-न यन्ज़गु बैनहुम्, इन्नश्शैता-न का-न लिल्इन्सानि अ़दुव्वम्-मुबीना
और (ऐ रसूल!) मेरे (सच्चे) बन्दों (मोमिनों से कह दो कि वह (काफिरों से) बात करें तो अच्छे तरीक़े से (सख़्त कलामी न करें) क्योंकि शैतान तो (ऐसी ही) बातों से फसाद डलवाता है इसमें तो शक ही नहीं कि शैतान आदमी का खुला हुआ दुश्मन है।

17:54

رَّبُّكُمْ أَعْلَمُ بِكُمْ ۖ إِن يَشَأْ يَرْحَمْكُمْ أَوْ إِن يَشَأْ يُعَذِّبْكُمْ ۚ وَمَآ أَرْسَلْنَـٰكَ عَلَيْهِمْ وَكِيلًۭا

रब्बुकुम् अअ्लमु बिकुम्, इंय्यशअ् यरहम्कुम् औ इंय्यशअ् युअ़ज़्ज़िब्कुम्, व मा अर्सल्ना-क अ़लैहिम् वकीला
तुम्हारा परवरदिगार तुम्हारे हाल से खूब वाकि़फ है अगर चाहेगा तुम पर रहम करेगा और अगर चाहेगा तुम पर अज़ाब करेगा और (ऐ रसूल) हमने तुमको कुछ उन लोगों का जि़म्मेदार बनाकर नहीं भेजा है।

17:55

وَرَبُّكَ أَعْلَمُ بِمَن فِى ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ ۗ وَلَقَدْ فَضَّلْنَا بَعْضَ ٱلنَّبِيِّـۧنَ عَلَىٰ بَعْضٍۢ ۖ وَءَاتَيْنَا دَاوُۥدَ زَبُورًۭا

व रब्बु-क अअ्लमु बिमन् फिस्समावाति वलअर्ज़ि, व ल-क़द् फ़ज़्ज़ल्ना बअ्ज़न्नबिय्यी-न अ़ला बअ्जिंव् व आतैना दावू-द ज़बूरा
और जो लोग आसमानों में है और ज़मीन पर हैं (सब को) तुम्हारा परवरदिगार खूब जानता है और हम ने यक़ीनन बाज़ पैग़म्बरों को बाज़ पर फज़ीलत दी और हम ही ने दाऊद को जू़बूर अता की।

17:56

قُلِ ٱدْعُوا۟ ٱلَّذِينَ زَعَمْتُم مِّن دُونِهِۦ فَلَا يَمْلِكُونَ كَشْفَ ٱلضُّرِّ عَنكُمْ وَلَا تَحْوِيلًا

क़ुलिद्उल्लज़ी-न ज़अ़म्तुम् मिन् दूनिही फ़ला यम्लिकू-न कश्फ़ज़्ज़ुर्रि अन्कुम् व ला तह़्वीला
(ऐ रसूल!) तुम उनसे कह दों कि अल्लाह के सिवा और जिन लोगों को माबूद समझते हो उनको (वक़्त पडे़) पुकार के तो देखो कि वह न तो तुम से तुम्हारी तकलीफ ही दफा कर सकते हैं और न उसको बदल सकते हैं।

17:57

أُو۟لَـٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ يَدْعُونَ يَبْتَغُونَ إِلَىٰ رَبِّهِمُ ٱلْوَسِيلَةَ أَيُّهُمْ أَقْرَبُ وَيَرْجُونَ رَحْمَتَهُۥ وَيَخَافُونَ عَذَابَهُۥٓ ۚ إِنَّ عَذَابَ رَبِّكَ كَانَ مَحْذُورًۭا

उलाइ-कल्लज़ी-न यद्अू-न यब्तग़ू-न इला रब्बिहिमुल्-वसी-ल-त अय्युहुम् अक्ऱबु व यर्-जू-न रह़्म तहू व यख़ाफू-न अ़ज़ाबहू, इन्-न अज़ा-ब रब्बि-क का-न मह्ज़ूरा
ये लोग जिनको मुशरेकीन (अपना अल्लाह समझकर) इबादत करते हैं वह खुद अपने परवरदिगार की क़ुरबत के ज़रिए ढूँढते फिरते हैं कि (देखो) इनमें से कौन ज़्यादा कुरबत रखता है और उसकी रहमत की उम्मीद रखते और उसके अज़ाब से डरते हैं इसमें शक नहीं कि तेरे परवरदिगार का अज़ाब डरने की चीज़ है।

17:58

وَإِن مِّن قَرْيَةٍ إِلَّا نَحْنُ مُهْلِكُوهَا قَبْلَ يَوْمِ ٱلْقِيَـٰمَةِ أَوْ مُعَذِّبُوهَا عَذَابًۭا شَدِيدًۭا ۚ كَانَ ذَٰلِكَ فِى ٱلْكِتَـٰبِ مَسْطُورًۭا

व इम्-मिन् क़र्यतिन् इल्ला नह्नु मुह़्लिकूहा क़ब्-ल यौमिल्-क़ियामति औ मुअ़ज़्ज़िबूहा अ़ज़ाबन् शदीदन्, का-न ज़ालि-क फ़िल्किताबि मस्तूरा
और कोई बस्ती नहीं है मगर रोज़ क़यामत से पहले हम उसे तबाह व बरबाद कर छोड़ेगें या (नाफरमानी) की सज़ा में उस पर सख़्त से सख़्त अज़ाब करेगें (और) ये बात किताब (लौहे महफूज़) में लिखी जा चुकी है।

17:59

وَمَا مَنَعَنَآ أَن نُّرْسِلَ بِٱلْـَٔايَـٰتِ إِلَّآ أَن كَذَّبَ بِهَا ٱلْأَوَّلُونَ ۚ وَءَاتَيْنَا ثَمُودَ ٱلنَّاقَةَ مُبْصِرَةًۭ فَظَلَمُوا۟ بِهَا ۚ وَمَا نُرْسِلُ بِٱلْـَٔايَـٰتِ إِلَّا تَخْوِيفًۭا

व मा-म-न अ़ना अन्नुर्सि-ल बिल्आयाति इल्ला अन् कज़्ज़-ब बिहल्-अव्वलू-न, व आतैना समूदन्ना-क़-त मुब्सि-रतन् फ़-ज़-लमू बिहा, व मा नुर्सिलु बिल्आयाति इल्ला तख़्वीफ़ा
और हमें मौजिज़ात भेजने से किसी चीज़ ने नहीं रोका मगर इसके सिवा कि अगलों ने उन्हें झुठला दिया और हमने क़ौमे समूद को (मौजिज़े से) ऊँटनी अता की जो (हमारी कुदरत की) दिखाने वाली थी तो उन लोगों ने उस पर ज़ुल्म किया यहाँ तक कि मार डाला और हम तो मौजिज़े सिर्फ डराने की ग़रज़ से भेजा करते हैं।

17:60

وَإِذْ قُلْنَا لَكَ إِنَّ رَبَّكَ أَحَاطَ بِٱلنَّاسِ ۚ وَمَا جَعَلْنَا ٱلرُّءْيَا ٱلَّتِىٓ أَرَيْنَـٰكَ إِلَّا فِتْنَةًۭ لِّلنَّاسِ وَٱلشَّجَرَةَ ٱلْمَلْعُونَةَ فِى ٱلْقُرْءَانِ ۚ وَنُخَوِّفُهُمْ فَمَا يَزِيدُهُمْ إِلَّا طُغْيَـٰنًۭا كَبِيرًۭا

व इज़् क़ुल्ना ल-क इन्-न रब्ब-क अहा-त बिन्नासि, व मा जअ़ल्नर्रूअ्यल्लती अरैना-क इल्ला फित् न-तल्-लिन्नासि वश्श-ज-रतल्-मल्अू न-त फ़िल्क़ुरआनि, व नुख़व्विफुहुम्, फ़मा यज़ीदुहुम् इल्ला तुग़्यानन् कबीरा
और (ऐ रसूल!) वह वक़्त याद करो जब तुमसे हमने कह दिया था कि तुम्हारे परवरदिगार ने लोगों को (हर तरफ से) रोक रखा है कि (तुम्हारा कुछ बिगाड़ नहीं सकते और हमने जो ख़्वाब तुमाको दिखलाया था तो बस उसे लोगों (के इमान) की आज़माइश का ज़रिया ठहराया था और (इसी तरह) वह दरख़्त जिस पर क़ुरान में लानत की गई है और हम बावजूद कि उन लोगों को (तरह तरह) से डराते हैं मगर हमारा डराना उनकी सख़्त सरकशी को बढ़ाता ही गया।

17:61

وَإِذْ قُلْنَا لِلْمَلَـٰٓئِكَةِ ٱسْجُدُوا۟ لِـَٔادَمَ فَسَجَدُوٓا۟ إِلَّآ إِبْلِيسَ قَالَ ءَأَسْجُدُ لِمَنْ خَلَقْتَ طِينًۭا

व इज़् क़ुल्ना लिल्मलाइ कतिस्जुदू लिआद-म फ़-स जदू इल्ला इब्ली-स, क़ा-ल अ-अस्जुदु लिमन् ख़लक़्-त तीना
और जब हम ने फरिश्तौं से कहा कि आदम को सजदा करो तो सबने सजदा किया मगर इबलीस वह (गुरुर से) कहने लगा कि क्या मै ऐसे शख़्स को सजदा करुँ जिसे तूने मिट्टी से पैदा किया है।

17:62

قَالَ أَرَءَيْتَكَ هَـٰذَا ٱلَّذِى كَرَّمْتَ عَلَىَّ لَئِنْ أَخَّرْتَنِ إِلَىٰ يَوْمِ ٱلْقِيَـٰمَةِ لَأَحْتَنِكَنَّ ذُرِّيَّتَهُۥٓ إِلَّا قَلِيلًۭا

क़ा-ल अ-रऐ-त-क हाज़ल्लज़ी कर्रम्-त अ़लय्-य, ल-इन् अख़्ख़र्तनि इला यौमिल-क़ियामति ल- अह्तनिकन्-न ज़ुर्रिय्य-तहू इल्ला क़लीला
और (शेख़ी से) बोला भला देखो तो सही यही वह शख़्स है जिसको तूने मुझ पर फज़ीलत दी है अगर तू मुझ को क़यामत तक की मोहलत दे तो मैं (दावे से कहता हूँ कि) कम लोगों के सिवा इसकी नस्ल की जड़ काटता रहूँगा।

17:63

قَالَ ٱذْهَبْ فَمَن تَبِعَكَ مِنْهُمْ فَإِنَّ جَهَنَّمَ جَزَآؤُكُمْ جَزَآءًۭ مَّوْفُورًۭا

क़ालज़्हब् फ़-मन् तबि-अ-क मिन्हुम् फ़-इन्-न जहन्न-म जज़ाउकुम् जज़ाअम्-मौफूरा
अल्लाह ने फरमाया चल (दूर हो) उनमें से जो शख़्स तेरी पैरवी करेगा तो (याद रहे कि) तुम सबकी सज़ा जहन्नुम है और वह भी पूरी पूरी सज़ा है।

17:64

وَٱسْتَفْزِزْ مَنِ ٱسْتَطَعْتَ مِنْهُم بِصَوْتِكَ وَأَجْلِبْ عَلَيْهِم بِخَيْلِكَ وَرَجِلِكَ وَشَارِكْهُمْ فِى ٱلْأَمْوَٰلِ وَٱلْأَوْلَـٰدِ وَعِدْهُمْ ۚ وَمَا يَعِدُهُمُ ٱلشَّيْطَـٰنُ إِلَّا غُرُورًا

वस्तफ्ज़िज़् मनिस्त-तअ्-त मिन्हुम् बिसौति-क व अज्लिब् अ़लैहिम् बिख़ैलि-क व रजिलि-क व शारिक्हुम फिल् अम्वालि वल्-औलादि व अिदहुम, व मा यअिदुहुमुश्-शैतानु इल्ला ग़ुरूरा
और इसमें से जिस पर अपनी (चिकनी चुपड़ी) बात से क़ाबू पा सके वहां और अपने (चेलों के लश्कर) सवार और पैदल (सब) से चढ़ाई कर और माल और औलाद में उनके साथ साझा करे और उनसे (खूब झूटे) वायदे कर और शैतान तो उनसे जो वायदे करता है धोखे (की टट्ट्) के सिवा कुछ नहीं होता।

17:65

إِنَّ عِبَادِى لَيْسَ لَكَ عَلَيْهِمْ سُلْطَـٰنٌۭ ۚ وَكَفَىٰ بِرَبِّكَ وَكِيلًۭا

इन्-न अिबादी लै-स ल-क अलैहिम् सुल्तानुन्, व कफा बिरब्बि-क वकीला
बेशक जो मेरे (ख़ास) बन्दें हैं उन पर तेरा ज़ोर नहीं चल (सकता) और कारसाज़ी में तेरा परवरदिगार काफी है।

17:66

رَّبُّكُمُ ٱلَّذِى يُزْجِى لَكُمُ ٱلْفُلْكَ فِى ٱلْبَحْرِ لِتَبْتَغُوا۟ مِن فَضْلِهِۦٓ ۚ إِنَّهُۥ كَانَ بِكُمْ رَحِيمًۭا

रब्बुकुमुल्लज़ी युज़्जी लकुमुल फुल्-क फिलबह्-रि लितब्तग़ू मिन् फ़ज्लिही, इन्नहू का-न बिकुम् रहीमा
(लोगों) तुम्हारा परवरदिगार वह (क़ादिरे मुत्तलिक़) है जो तुम्हारे लिए समन्दर में जहाज़ों को चलाता है ताकि तुम उसके फज़ल व करम (रोज़ी) की तलाश करो इसमें शक नहीं कि वह तुम पर बड़ा मेहरबान है।

17:67

وَإِذَا مَسَّكُمُ ٱلضُّرُّ فِى ٱلْبَحْرِ ضَلَّ مَن تَدْعُونَ إِلَّآ إِيَّاهُ ۖ فَلَمَّا نَجَّىٰكُمْ إِلَى ٱلْبَرِّ أَعْرَضْتُمْ ۚ وَكَانَ ٱلْإِنسَـٰنُ كَفُورًا

व इज़ा मस्सकुमुज़्ज़ुर्रु फ़िल्बह्-रि ज़ल्-ल मन् तद्अू -न इल्ला इय्याहु, फ़-लम्मा नज्जाकुम् इलल्-बर्रि अअ्-रज़्तुम्, व कानल्-इन्सानु कफूरा
और जब समन्दर में कभी तुम को कोई तकलीफ पहुँचे तो जिनकी तुम इबादत किया करते थे ग़ायब हो गए मगर बस वही (एक अल्लाह याद रहता है) उस पर भी जब अल्लाह ने तुम को छुटकारा देकर खुशकी तक पहुँचा दिया तो फिर तुम इससे मुँह मोड़ बैठें और इन्सान बड़ा ही नाशुक्रा है।

17:68

أَفَأَمِنتُمْ أَن يَخْسِفَ بِكُمْ جَانِبَ ٱلْبَرِّ أَوْ يُرْسِلَ عَلَيْكُمْ حَاصِبًۭا ثُمَّ لَا تَجِدُوا۟ لَكُمْ وَكِيلًا

अ-फ़-अमिन्तुम् अंय्यख़्सि-फ़ बिकुम् जानिबल्-बर्रि औ युर्सि-ल अ़लैकुम् हासिबऩ सुम्-म ला तजिदू लकुम् वकीला
तो क्या तुम उसको इस का भी इत्मिनान हो गया कि वह तुम्हें खुश्की तरफ (ले जाकर) (क़ारुन की तरह) ज़मीन में धंसा दे या तुम पर (क़ौम) लूत की तरह पत्थरों का मेंह बरसा दे फिर (उस वक़्त) तुम किसी को अपना कारसाज़ न पाओगे।

17:69

أَمْ أَمِنتُمْ أَن يُعِيدَكُمْ فِيهِ تَارَةً أُخْرَىٰ فَيُرْسِلَ عَلَيْكُمْ قَاصِفًۭا مِّنَ ٱلرِّيحِ فَيُغْرِقَكُم بِمَا كَفَرْتُمْ ۙ ثُمَّ لَا تَجِدُوا۟ لَكُمْ عَلَيْنَا بِهِۦ تَبِيعًۭا

अम् अमिन्तुम् अंय्युई-दकुम् फ़ीहि ता रतन उख़्रा फयुर्-सि-ल अ़लैकुम् क़ासिफ़म्-मिनर् रीहि फयुग़्रि क़कुम् बिमा कफर्तुम्, सुम्-म ला तजिदू लकुम् अ़लैना बिही तबीआ
या तुमको इसका भी इत्मेनान हो गया कि फिर तुमको दोबारा इसी समन्दर में ले जाएगा उसके बाद हवा का एक ऐसा झोका जो (जहाज़ के) परख़चे उड़ा दे तुम पर भेजे फिर तुम्हें तुम्हारे कुफ्र की सज़ा में डुबा मारे फिर तुम किसी को (ऐसा हिमायती) न पाओगे जो हमारा पीछा करे और (तुम्हें छोड़ा जाए)।

17:70

۞ وَلَقَدْ كَرَّمْنَا بَنِىٓ ءَادَمَ وَحَمَلْنَـٰهُمْ فِى ٱلْبَرِّ وَٱلْبَحْرِ وَرَزَقْنَـٰهُم مِّنَ ٱلطَّيِّبَـٰتِ وَفَضَّلْنَـٰهُمْ عَلَىٰ كَثِيرٍۢ مِّمَّنْ خَلَقْنَا تَفْضِيلًۭا

व ल-क़द् कर्रम्ना बनी आद-म व हमल्नाहुम् फ़िल्बर्रि वल्बह्-रि व रज़क़्नाहुम् मिनत्तय्यिबाति व फज़्ज़ल्नाहुम् अ़ला कसीरिम्-मिम्मन् ख़लक़्ना तफ़्ज़ीला
और हमने यक़ीनन आदम की औलाद को इज़्ज़त दी और खुश्की और तरी में उनको (जानवरों कश्तियों के ज़रिए) लिए लिए फिरे और उन्हें अच्छी अच्छी चीज़ें खाने को दी और अपने बहुतेरे मख़लूक़ात पर उनको अच्छी ख़ासी फज़ीलत दी।

17:71

يَوْمَ نَدْعُوا۟ كُلَّ أُنَاسٍۭ بِإِمَـٰمِهِمْ ۖ فَمَنْ أُوتِىَ كِتَـٰبَهُۥ بِيَمِينِهِۦ فَأُو۟لَـٰٓئِكَ يَقْرَءُونَ كِتَـٰبَهُمْ وَلَا يُظْلَمُونَ فَتِيلًۭا

यौ-म नद्अू कुल्-ल उनासिम् बि- इमामिहिम्, फ़ मन् ऊति य किताबहू बियमीनिही फ़-उलाइ-क यक़्रऊ-न किताबहुम् व ला युज़्लमू-न फतीला
उस दिन (को याद करो) जब हम तमाम लोगों को उन पेशवाओं के साथ बुलाएँगें तो जिसका नामए अमल उनके दाहिने हाथ में दिया जाएगा तो वह लोग (खुश खुश) अपना नामए अमल पढ़ने लगेगें और उन पर रेशा बराबर ज़ुल्म नहीं किया जाएगा।

17:72

وَمَن كَانَ فِى هَـٰذِهِۦٓ أَعْمَىٰ فَهُوَ فِى ٱلْـَٔاخِرَةِ أَعْمَىٰ وَأَضَلُّ سَبِيلًۭا

व मन् का-न फ़ी हाज़िही अअ्मा फहु-व फिल्आख़िरति अअ्मा व अज़ल्लु सबीला
और जो शख़्स इस (दुनिया) में (जान बूझकर) अंधा बना रहा तो वह आखि़रत में भी अंधा ही रहेगा और (नजात) के रास्ते से बहुत दूर भटका सा हुआ।

17:73

وَإِن كَادُوا۟ لَيَفْتِنُونَكَ عَنِ ٱلَّذِىٓ أَوْحَيْنَآ إِلَيْكَ لِتَفْتَرِىَ عَلَيْنَا غَيْرَهُۥ ۖ وَإِذًۭا لَّٱتَّخَذُوكَ خَلِيلًۭا

व इन् कादू लयफ्तिनू-न-क अ़निल्लज़ी औहैना इलै-क लितफ़्तरि-य अ़लैना ग़ैरहू, व इज़ल् लत्त-ख़ज़ू-क ख़लीला
और (ऐ रसूल!) हमने तो (क़ुरान) तुम्हारे पास ‘वही’ के ज़रिए भेजा अगर चे लोग तो तुम्हें इससे बहकाने ही लगे थे ताकि तुम क़ुरान के अलावा फिर (दूसरी बातों का) इफ़तेरा बाँधों और (जब तुम ये कर गुज़रते उस वक़्त ये लोग तुम को अपना सच्चा दोस्त बना लेते।

17:74

وَلَوْلَآ أَن ثَبَّتْنَـٰكَ لَقَدْ كِدتَّ تَرْكَنُ إِلَيْهِمْ شَيْـًۭٔا قَلِيلًا

व लौ ला अन् सब्बत्-ना-क ल-क़द् कित्-त तर्-कनु इलैहिम् शैअन् क़लीला
और अगर हम तुमको साबित क़दम न रखते तो ज़रुर तुम भी ज़रा (ज़हूर) झुकने ही लगते।

17:75

إِذًۭا لَّأَذَقْنَـٰكَ ضِعْفَ ٱلْحَيَوٰةِ وَضِعْفَ ٱلْمَمَاتِ ثُمَّ لَا تَجِدُ لَكَ عَلَيْنَا نَصِيرًۭا

इज़ल् ल-अज़क़्ना-क ज़िअ्फल्-हयाति व ज़िअ्फ़ल्-ममाति सुम्-म ला तजिदु ल-क अ़लैना नसीरा
और (अगर तुम ऐसा करते तो) उस वक़्त हम तुमको जि़न्दगी में भी और मरने पर भी दोहरे (अज़ाब) का मज़ा चखा देते और फिर तुम को हमारे मुक़ाबले में कोई मददगार भी न मिलता।

17:76

وَإِن كَادُوا۟ لَيَسْتَفِزُّونَكَ مِنَ ٱلْأَرْضِ لِيُخْرِجُوكَ مِنْهَا ۖ وَإِذًۭا لَّا يَلْبَثُونَ خِلَـٰفَكَ إِلَّا قَلِيلًۭا

व इन् कादू लयस्तफिज़्जू-न-क मिनल्अर्ज़ि लियुख़्रिजू-क मिन्हा व इज़ल्-ला यल्बसू-न ख़िलाफ़-क इल्ला क़लीला
और ये लोग तो तुम्हें (सर ज़मीन मक्के) से दिल बर्दाश्त करने ही लगे थे ताकि तुम को वहाँ से (शाम की तरफ) निकाल बाहर करें और ऐसा होता तो तुम्हारे पीछे में ये लोग चन्द रोज़ के सिवा ठहरने भी न पाते।

17:77

سُنَّةَ مَن قَدْ أَرْسَلْنَا قَبْلَكَ مِن رُّسُلِنَا ۖ وَلَا تَجِدُ لِسُنَّتِنَا تَحْوِيلًا

सुन्न-त मन् क़द् अरसल्ना क़ब्ल-क मिर्रूसुलिना व ला तजिदु लिसुन्नतिना तह़्वीला
तुमसे पहले जितने रसूल हमने भेजे हैं उनका बराबर यही दस्तूर रहा है और जो दस्तूर हमारे (ठहराए हुए) हैं उनमें तुम तग़्य्युर तबद्दुल {रद्दो बदल} न पाओगे।

17:78

أَقِمِ ٱلصَّلَوٰةَ لِدُلُوكِ ٱلشَّمْسِ إِلَىٰ غَسَقِ ٱلَّيْلِ وَقُرْءَانَ ٱلْفَجْرِ ۖ إِنَّ قُرْءَانَ ٱلْفَجْرِ كَانَ مَشْهُودًۭا

अक़िमिस्सला-त लिदुलूकिश्शम्सि इला ग़-सक़िल्लैलि व क़ुरआनल्-फ़ज्रि, इन्-न क़ुरआनल-फ़ज्रि का-न मशहूदा
(ऐ रसूल!) सूरज के ढलने से रात के अँधेरे तक नमाज़े ज़ोहर, अ०, मग़रिब, इशा पढ़ा करो और नमाज़ सुबह (भी) क्योंकि सुबह की नमाज़ पर (दिन और रात दोनों के फरिश्तौं की) गवाही होती है।

17:79

وَمِنَ ٱلَّيْلِ فَتَهَجَّدْ بِهِۦ نَافِلَةًۭ لَّكَ عَسَىٰٓ أَن يَبْعَثَكَ رَبُّكَ مَقَامًۭا مَّحْمُودًۭا

व मिनल्लैलि फ़-तहज्जद् बिही नाफ़ि-लतल् ल-क, अ़सा अंय्यब्अ-स-क रब्बु-क मक़ामम्-मह़्मूदा
और रात के ख़ास हिस्से में नमाजे़ तहज्जुद पढ़ा करो ये सुन्नत तुम्हारी खास फज़ीलत हैं क़रीब है कि क़यामत के दिन अल्लाह तुमको मक़ामे महमूद तक पहुँचा दे।

17:80

وَقُل رَّبِّ أَدْخِلْنِى مُدْخَلَ صِدْقٍۢ وَأَخْرِجْنِى مُخْرَجَ صِدْقٍۢ وَٱجْعَل لِّى مِن لَّدُنكَ سُلْطَـٰنًۭا نَّصِيرًۭا

व क़ुर्रब्बि अद्ख़िल्नी मुद्ख़-ल सिद्किंव्-व अख़्रिज्-नी मुख़्र-ज सिद्किंव्-वज्अ़ल्-ली मिल्लदुन्-क सुल्तानन् नसीरा
और ये दुआ माँगा करो कि ऐ मेरे परवरदिगार मुझे (जहाँ) पहुँचा अच्छी तरह पहुँचा और मुझे (जहाँ से निकाल) तो अच्छी तरह निकाल और मुझे ख़ास अपनी बारगाह से एक हुकूमत अता फरमा जिस से (हर कि़स्म की) मदद पहुँचे।

17:81

وَقُلْ جَآءَ ٱلْحَقُّ وَزَهَقَ ٱلْبَـٰطِلُ ۚ إِنَّ ٱلْبَـٰطِلَ كَانَ زَهُوقًۭا

व क़ुल जाअल्-हक़्क़ु व ज़-हक़ल्-बातिलु, इन्नल-बाति-ल का-न ज़हूक़ा
और (ऐ रसूल!) कह दो कि (दीन) हक़ आ गया और बातिल नेस्तनाबूद हुआ इसमें शक नहीं कि बातिल मिटने वाला ही था।

17:82

وَنُنَزِّلُ مِنَ ٱلْقُرْءَانِ مَا هُوَ شِفَآءٌۭ وَرَحْمَةٌۭ لِّلْمُؤْمِنِينَ ۙ وَلَا يَزِيدُ ٱلظَّـٰلِمِينَ إِلَّا خَسَارًۭا

व नुनज़्ज़िलु मिनल्-क़ुरआनि मा हु-व शिफाउंव्-व रह़्मतुल् लिल मुअ्मिनी-न, व ला यज़ीदुज़्ज़ालिमी-न इल्ला ख़सारा
और हम तो क़ुरान में वही चीज़ नाजि़ल करते हैं जो मोमिनों के लिए (सरासर) शिफा और रहमत है (मगर) नाफरमानों को तो घाटे के सिवा कुछ बढ़ाता ही नहीं।

17:83

وَإِذَآ أَنْعَمْنَا عَلَى ٱلْإِنسَـٰنِ أَعْرَضَ وَنَـَٔا بِجَانِبِهِۦ ۖ وَإِذَا مَسَّهُ ٱلشَّرُّ كَانَ يَـُٔوسًۭا

व इज़ा अन्अ़म्-ना अलल्-इन्सानि अअ्-र-ज़ व नआ बिजानिबिही, व इज़ा मस्सहुश्शर्रु का-न यऊसा
और जब हमने आदमी को नेअमत अता फरमाई तो (उल्टे) उसने (हमसे) मुँह फेरा और पहलू बचाने लगा और जब उसे कोई तकलीफ छू भी गई तो मायूस हो बैठा।

17:84

قُلْ كُلٌّۭ يَعْمَلُ عَلَىٰ شَاكِلَتِهِۦ فَرَبُّكُمْ أَعْلَمُ بِمَنْ هُوَ أَهْدَىٰ سَبِيلًۭا

क़ुल कुल्लुंय्य अ्मलु अ़ला शाकि-लतिही, फ़रब्बुकुम् अअ़लमु बिमन् हु-व अह्दा सबीला
(ऐ रसूल!) तुम कह दो कि हर (एक अपने तरीक़े पर कारगुज़ारी करता है फिर तुम में से जो शख़्स बिल्कुल ठीक सीधी राह पर है तुम्हारा परवरदिगार (उससे) खूब वाकि़फ है।

17:85

وَيَسْـَٔلُونَكَ عَنِ ٱلرُّوحِ ۖ قُلِ ٱلرُّوحُ مِنْ أَمْرِ رَبِّى وَمَآ أُوتِيتُم مِّنَ ٱلْعِلْمِ إِلَّا قَلِيلًۭا

व यस्अलून-क अनिर्रुहि, क़ुलिर्रुहु मिन् अम्रि रब्बी व मा ऊतीतुम् मिनल्-अिल्मि इल्ला क़लीला
और (ऐ रसूल!) तुमसे लोग रुह के बारे में सवाल करते हैं तुम (उनके जवाब में) कह दो कि रूह (भी) मेरे परदिगार के हुक्म से (पैदा हुई है) और तुमको बहुत थोड़ा सा इल्म दिया गया है।

17:86

وَلَئِن شِئْنَا لَنَذْهَبَنَّ بِٱلَّذِىٓ أَوْحَيْنَآ إِلَيْكَ ثُمَّ لَا تَجِدُ لَكَ بِهِۦ عَلَيْنَا وَكِيلًا

व ल-इन् शिअ्ना लनज़्ह-बन्-न बिल्लज़ी औहैना इलै-क सुम्-म ला तजिदु ल-क बिही अ़लैना वकीला
(इसकी हक़ीकत नहीं समझ सकते) और (ऐ रसूल) अगर हम चाहे तो जो (क़ुरान) हमने तुम्हारे पास ‘वही’ के ज़रिए भेजा है (दुनिया से) उठा ले जाएँ फिर तुम अपने वास्ते हमारे मुक़ाबले में कोई मददगार न पाओगे।

17:87

إِلَّا رَحْمَةًۭ مِّن رَّبِّكَ ۚ إِنَّ فَضْلَهُۥ كَانَ عَلَيْكَ كَبِيرًۭا

इल्ला रह़्म-तम् मिर्रब्बि-क, इन्-न फज़्लहू का-न अलै-क कबीरा
मगर ये सिर्फ तुम्हारे परवरदिगार की रहमत है (कि उसने ऐसा किया) इसमें शक नहीं कि उसका तुम पर बड़ा फज़ल व करम है।

17:88

قُل لَّئِنِ ٱجْتَمَعَتِ ٱلْإِنسُ وَٱلْجِنُّ عَلَىٰٓ أَن يَأْتُوا۟ بِمِثْلِ هَـٰذَا ٱلْقُرْءَانِ لَا يَأْتُونَ بِمِثْلِهِۦ وَلَوْ كَانَ بَعْضُهُمْ لِبَعْضٍۢ ظَهِيرًۭا

क़ुल् ल-इनिज्त म अ़तिल इन्सु वल्जिन्नु अ़ला अंय्यअ्तू बिमिस्लि हाज़ल्-क़ुरआनि ला यअ्तू-न बिमिस्लिही व लौ का-न बअ्ज़ुहुम् लिबअ्ज़िन ज़हीरा
(ऐ रसूल!) तुम कह दो कि (अगर सारे दुनिया जहाँन के) आदमी और जिन इस बात पर इकट्ठे हो कि उस क़ुरान का मिसल ले आएँ तो (ना मुमकिन) उसके बराबर नहीं ला सकते अगरचे (उसको कोशिश में) एक का एक मददगार भी बने।

17:89

وَلَقَدْ صَرَّفْنَا لِلنَّاسِ فِى هَـٰذَا ٱلْقُرْءَانِ مِن كُلِّ مَثَلٍۢ فَأَبَىٰٓ أَكْثَرُ ٱلنَّاسِ إِلَّا كُفُورًۭا

व ल-क़द् सर्रफ़्ना लिन्नासि फ़ी हाज़ल्-क़ुरआनि मिन् कुल्लि म-सलिन्, फ़-अबा अक्सरून्नासि इल्ला कुफूरा
और हमने तो लोगों (के समझाने) के वास्ते इस क़ुरान में हर कि़स्म की मसलें अदल बदल के बयान कर दीं उस पर भी अक्सर लोग बग़ैर नाशुक्री किए नहीं रहते।

17:90

وَقَالُوا۟ لَن نُّؤْمِنَ لَكَ حَتَّىٰ تَفْجُرَ لَنَا مِنَ ٱلْأَرْضِ يَنۢبُوعًا

व क़ालू लन् नुअ्मि-न ल-क हत्ता तफ़्जु-र लना मिनल्- अर्ज़ि यम्बूआ
(ऐ रसूल! कुफ्फार मक्के ने) तुमसे कहा कि जब तक तुम हमारे वास्ते ज़मीन से चश्मा (न) बहा निकालोगे हम तो तुम पर हरगिज़ इमान न लाएँगें।

17:91

أَوْ تَكُونَ لَكَ جَنَّةٌۭ مِّن نَّخِيلٍۢ وَعِنَبٍۢ فَتُفَجِّرَ ٱلْأَنْهَـٰرَ خِلَـٰلَهَا تَفْجِيرًا

औ तकू-न ल-क जन्नतुम् मिन् नख़ीलिंव्-व अि-नबिन् फ़तुफ़ज्जिरल्-अन्हा-र ख़िलालहा तफ़्जीरा
या (ये नहीं तो) खजूरों और अँगूरों का तुम्हारा कोई बाग़ हो उसमें तुम बीच बीच में नहरे जारी करके दिखा दो।

17:92

أَوْ تُسْقِطَ ٱلسَّمَآءَ كَمَا زَعَمْتَ عَلَيْنَا كِسَفًا أَوْ تَأْتِىَ بِٱللَّهِ وَٱلْمَلَـٰٓئِكَةِ قَبِيلًا

औ तुस्क़ितस्समा अ कमा ज़अ़म्-त अ़लैना कि सफ़न् औ तअ्ति-य बिल्लाहि वल्मलाइ कति क़बीला
या जैसा तुम गुमान रखते थे हम पर आसमान ही को टुकड़े (टुकड़े) करके गिराओ या अल्लाह और फरिष्तों को (अपने क़ौल की तस्दीक़) में हमारे सामने (गवाही में ला खड़ा कर दिया।

17:93

أَوْ يَكُونَ لَكَ بَيْتٌۭ مِّن زُخْرُفٍ أَوْ تَرْقَىٰ فِى ٱلسَّمَآءِ وَلَن نُّؤْمِنَ لِرُقِيِّكَ حَتَّىٰ تُنَزِّلَ عَلَيْنَا كِتَـٰبًۭا نَّقْرَؤُهُۥ ۗ قُلْ سُبْحَانَ رَبِّى هَلْ كُنتُ إِلَّا بَشَرًۭا رَّسُولًۭا

औ यकू-न ल-क बैतुम्-मिन् जुख़्रुफिन् औ तरक़ा फिस्समा-इ, व लन् नुअ्मि-न लिरूक़िय्यि-क हत्ता तुनज्ज़ि-ल अ़लैना किताबन् नक़्रउहू, क़ुल सुब्हा-न रब्बी हल् कुन्तु इल्ला ब-शरर्-रसूला
और जब तक तुम हम पर अल्लाह के यहाँ से एक किताब न नाजि़ल करोगे कि हम उसे खुद पढ़ भी लें उस वक़्त तक हम तुम्हारे (आसमान पर चढ़ने के भी) क़ायल न होगें (ऐ रसूल) तुम कह दो कि सुबहान अल्लाह मै एक आदमी (अल्लाह के) रसूल के सिवा आखि़र और क्या हूँ।

17:94

وَمَا مَنَعَ ٱلنَّاسَ أَن يُؤْمِنُوٓا۟ إِذْ جَآءَهُمُ ٱلْهُدَىٰٓ إِلَّآ أَن قَالُوٓا۟ أَبَعَثَ ٱللَّهُ بَشَرًۭا رَّسُولًۭا

व मा म-न अ़न्ना-स अंय्युअ्मिनू इज़् जा-अहुमुल्-हुदा इल्ला अन् क़ालू अ-ब-अ़सल्लाहु ब-शरर्रसूला
(जो ये बेहूदा बातें करते हो) और जब लोगों के पास हिदायत आ चुकी तो उनको इमान लाने से इसके सिवा किसी चीज़ ने न रोका कि वह कहने लगे कि क्या अल्लाह ने आदमी को रसूल बनाकर भेजा है।

17:95

قُل لَّوْ كَانَ فِى ٱلْأَرْضِ مَلَـٰٓئِكَةٌۭ يَمْشُونَ مُطْمَئِنِّينَ لَنَزَّلْنَا عَلَيْهِم مِّنَ ٱلسَّمَآءِ مَلَكًۭا رَّسُولًۭا

क़ुल् लौ का-न फ़िल् अर्ज़ि मलाइ कतुंय्यम्शू-न मुत्मइन्नी-न लनज़्ज़ल्ना अ़लैहिम् मिनस्समा-इ म-लकर्रसूला
(ऐ रसूल!) तुम कह दो कि अगर ज़मीन पर फ़रिश्ते (बसे हुये) होते कि इत्मेनान से चलते फिरते तो हम उन लोगों के पास फ़रिश्ते ही को रसूल बनाकर नाजि़ल करते।

17:96

قُلْ كَفَىٰ بِٱللَّهِ شَهِيدًۢا بَيْنِى وَبَيْنَكُمْ ۚ إِنَّهُۥ كَانَ بِعِبَادِهِۦ خَبِيرًۢا بَصِيرًۭا

क़ुल कफ़ा बिल्लाहि शहीदम्-बैनी व बैनकुम्, इन्नहू का-न बिअिबादिही ख़बीरम्-बसीरा
(ऐ रसूल!) तुम कह दो कि हमारे तुम्हारे दरम्यिान गवाही के वास्ते बस अल्लाह काफी है इसमें शक नहीं कि वह अपने बन्दों के हाल से खूब वाकि़फ और देखता रहता है।

17:97

وَمَن يَهْدِ ٱللَّهُ فَهُوَ ٱلْمُهْتَدِ ۖ وَمَن يُضْلِلْ فَلَن تَجِدَ لَهُمْ أَوْلِيَآءَ مِن دُونِهِۦ ۖ وَنَحْشُرُهُمْ يَوْمَ ٱلْقِيَـٰمَةِ عَلَىٰ وُجُوهِهِمْ عُمْيًۭا وَبُكْمًۭا وَصُمًّۭا ۖ مَّأْوَىٰهُمْ جَهَنَّمُ ۖ كُلَّمَا خَبَتْ زِدْنَـٰهُمْ سَعِيرًۭا

व मंय्यह्दिल्लाहु फहुवल्-मुह्तदि, व मंय्युज़्लिल् फ़-लन् तजि-द लहुम् औलिया-अ मिन् दूनिही, व नह्शुरूहुम् यौमल्-क़ियामति अ़ला वुजूहिहिम् अुम्यंव्-व बुक्मंव्-व सुम्मन्, मअ्वाहुम् जहन्नमु, कुल्लमा ख़बत् ज़िद्-ना-हुम् सईरा
और अल्लाह जिसकी हिदायत करे वही हिदायत याफता है और जिसको गुमराही में छोड़ दे तो (याद रखो कि) फिर उसके सिवा किसी को उसका सरपरस्त न पाआगे और क़यामत के दिन हम उन लोगों का मुँह के बल औंधे और गूँगें और बहरे क़ब्रों से उठाएँगें उनका ठिकाना जहन्नुम है कि जब कभी बुझने को होगी तो हम उन लोगों पर (उसे) और भड़का देंगे।

17:98

ذَٰلِكَ جَزَآؤُهُم بِأَنَّهُمْ كَفَرُوا۟ بِـَٔايَـٰتِنَا وَقَالُوٓا۟ أَءِذَا كُنَّا عِظَـٰمًۭا وَرُفَـٰتًا أَءِنَّا لَمَبْعُوثُونَ خَلْقًۭا جَدِيدًا

ज़ालि-क जज़ा-उहुम् बिअन्नहुम् क-फ़रू बिआयातिना व क़ालू अ-इज़ा कुन्ना अिज़ामंव्व रूफ़ातन् अ-इन्ना लमब्अूसू-न ख़ल्क़न् जदीदा
ये सज़ा उनकी इस वज़ह से है कि उन लोगों ने हमारी आयतों से इन्कार किया और कहने लगे कि जब हम (मरने के बाद सड़ गल) कर हड्डियाँ और रेज़ा रेज़ा हो जाएँगीं तो क्या फिर हम नये सिरे से पैदा करके उठाए जाएँगें।

17:99

۞ أَوَلَمْ يَرَوْا۟ أَنَّ ٱللَّهَ ٱلَّذِى خَلَقَ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضَ قَادِرٌ عَلَىٰٓ أَن يَخْلُقَ مِثْلَهُمْ وَجَعَلَ لَهُمْ أَجَلًۭا لَّا رَيْبَ فِيهِ فَأَبَى ٱلظَّـٰلِمُونَ إِلَّا كُفُورًۭا

अ-व लम् यरौ अन्नल्लाहल्लज़ी ख़लक़स्समावाति वल्अर्ज़ क़ादिरून् अला अंय्यख़्लु-क़ मिस्लहुम् व ज-अ-ल लहुम् अ जलल्-ला रै-ब फ़ीहि, फ़-अबज़्ज़ालिमू – न इल्ला कुफूरा
क्या उन लोगों ने इस पर भी नहीं ग़ौर किया कि वह अल्लाह जिसने सारे आसमान और ज़मीन बनाए इस पर भी (ज़रुर) क़ादिर है कि उनके ऐसे आदमी दोबारा पैदा करे और उसने उन (की मौत) की एक मियाद मुक़र्रर कर दी है जिसमें ज़रा भी शक नहीं उस पर भी ये ज़ालिम इन्कार किए बग़ैर न रहे।

17:100

قُل لَّوْ أَنتُمْ تَمْلِكُونَ خَزَآئِنَ رَحْمَةِ رَبِّىٓ إِذًۭا لَّأَمْسَكْتُمْ خَشْيَةَ ٱلْإِنفَاقِ ۚ وَكَانَ ٱلْإِنسَـٰنُ قَتُورًۭا

क़ुल् लौ अन्तुम् तम्लिकू न ख़ज़ाइ-न रह्-मति रब्बी इज़ल् ल-अम्सक्तुम् ख़श्य-तल इन्फ़ाक़ि, व कानल्-इन्सानु क़तूरा
(ऐ रसूल!) इनसे कहो कि अगर मेरे परवरदिगार के रहमत के ख़ज़ाने भी तुम्हारे एख़तियार में होते तो भी तुम खर्च हो जाने के डर से (उनको) बन्द रखते और आदमी बड़ा ही तंग दिल है।

17:101

وَلَقَدْ ءَاتَيْنَا مُوسَىٰ تِسْعَ ءَايَـٰتٍۭ بَيِّنَـٰتٍۢ ۖ فَسْـَٔلْ بَنِىٓ إِسْرَٰٓءِيلَ إِذْ جَآءَهُمْ فَقَالَ لَهُۥ فِرْعَوْنُ إِنِّى لَأَظُنُّكَ يَـٰمُوسَىٰ مَسْحُورًۭا

व ल-क़द् आतैना मूसा तिस्-अ आयातिम्-बय्यिनातिन् फ़स् अल् बनी इस्राई-ल इज़् जा-अहुम् फ़क़ा-ल लहू फिरऔनु इन्नी ल-अज़ुन्नु-क या मूसा मस्हूरा
और हमने यक़ीनन मूसा को खुले हुए नौ मौजिज़े अता किए तो (ऐ रसूल!) बनी इसराईल से (यही) पूछ देखो कि जब मूसा उनके पास आए तो फिरआऊन ने उनसे कहा कि ऐ मूसा मै तो समझता हूँ कि किसी ने तुम पर जादू करके दीवाना बना दिया है।

17:102

قَالَ لَقَدْ عَلِمْتَ مَآ أَنزَلَ هَـٰٓؤُلَآءِ إِلَّا رَبُّ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ بَصَآئِرَ وَإِنِّى لَأَظُنُّكَ يَـٰفِرْعَوْنُ مَثْبُورًۭا

क़ा-ल लक़द् अलिम् त मा अन्ज़-ल हाउला-इ इल्ला रब्बुस्समावाति वलअर्ज़ि बसाइ-र, व इन्नी ल-अज़ुन्नु-क या फिरऔ़नु मस्बूरा
मूसा ने कहा तुम ये ज़रुर जानते हो कि ये मौजिज़े सारे आसमान व ज़मीन के परवरदिगार ने नाजि़ल किए (और वह भी लोगों की) सूझ बूझ की बातें हैं और ऐ फिरआऊन मै तो ख़्याल करता हूँ कि तुम पर शामत आई है।

17:103

فَأَرَادَ أَن يَسْتَفِزَّهُم مِّنَ ٱلْأَرْضِ فَأَغْرَقْنَـٰهُ وَمَن مَّعَهُۥ جَمِيعًۭا

फ़-अरा-द अंय्यस्तफिज़्ज़हुम् मिनल्-अर्ज़ि फ़-अग़्रक्नाहु व मम्म अ़हू जमीआ
फिर फिरआऊन ने ये ठान लिया कि बनी इसराईल को (सर ज़मीने) मिस्र से निकाल बाहर करे तो हमने फिरआऊन और जो लोग उसके साथ थे सब को डुबो मारा।

17:104

وَقُلْنَا مِنۢ بَعْدِهِۦ لِبَنِىٓ إِسْرَٰٓءِيلَ ٱسْكُنُوا۟ ٱلْأَرْضَ فَإِذَا جَآءَ وَعْدُ ٱلْـَٔاخِرَةِ جِئْنَا بِكُمْ لَفِيفًۭا

व क़ुल्ना मिम्-बअ्दिही लि-बनी इस्राईलस्कुनुल् अर्-ज़ फ़-इज़ा जा-अ वअ्दुल-आख़िरति जिअ्ना बिकुम् लफ़ीफ़ा
और उसके बाद हमने बनी इसराईल से कहा कि (अब तुम ही) इस मुल्क में (खूब आराम से) रहो सहो फिर जब आखि़रत का वायदा आ पहुँचेगा तो हम तुम सबको समेट कर ले आएँगें।

17:105

وَبِٱلْحَقِّ أَنزَلْنَـٰهُ وَبِٱلْحَقِّ نَزَلَ ۗ وَمَآ أَرْسَلْنَـٰكَ إِلَّا مُبَشِّرًۭا وَنَذِيرًۭا

व बिल्हक़्क़ि अन्ज़ल्नाहु व बिल्हक़्क़ि न ज़-ल, व मा अर्सल्ना-क इल्ला मुबश्शिरंव्-व नज़ीरा
और (ऐ रसूल!) हमने इस क़ुरान को बिल्कुल ठीक नाजि़ल किया और बिल्कुल ठीक नाजि़ल हुआ और तुमको तो हमने (जन्नत की) खुशखबरी देने वाला और (अज़ाब से) डराने वाला (रसूल) बनाकर भेजा है।

17:106

وَقُرْءَانًۭا فَرَقْنَـٰهُ لِتَقْرَأَهُۥ عَلَى ٱلنَّاسِ عَلَىٰ مُكْثٍۢ وَنَزَّلْنَـٰهُ تَنزِيلًۭا

व क़ुरआनन् फ़रक़्नाहु लितक़्र-अहू अ़लन्नासि अ़ला मुक्सिंव्-व नज़्ज़ल्नाहु तन्ज़ीला
और क़ुरान को हमने थोड़ा थोड़ा करके इसलिए नाजि़ल किया कि तुम लोगों के सामने (ज़रुरत पड़ने पर) मोहलत दे देकर उसको पढ़ दिया करो।

17:107

قُلْ ءَامِنُوا۟ بِهِۦٓ أَوْ لَا تُؤْمِنُوٓا۟ ۚ إِنَّ ٱلَّذِينَ أُوتُوا۟ ٱلْعِلْمَ مِن قَبْلِهِۦٓ إِذَا يُتْلَىٰ عَلَيْهِمْ يَخِرُّونَ لِلْأَذْقَانِ سُجَّدًۭا

क़ुल आमिनू बिही औ ला तुअ्मिनू, इन्नल्लज़ी-न ऊतुल्-अिल्-म मिन् क़ब्लिही इज़ा युत्ला अ़लैहिम् यख़िर्रू-न लिल्अज़्कानि सुज्जदा
और (इसी वजह से) हमने उसको रफ्ता रफ्ता नाजि़ल किया तुम कह दो कि ख़्वाह तुम इस पर ईमान लाओ या न लाओ इसमें शक नहीं कि जिन लोगों को उसके क़ब्ल ही (आसमानी किताबों का इल्म अता किया गया है उनके सामने जब ये पढ़ा जाता है तो ठुडडियों से (मुँह के बल) सजदे में गिर पड़तें हैं।

17:108

وَيَقُولُونَ سُبْحَـٰنَ رَبِّنَآ إِن كَانَ وَعْدُ رَبِّنَا لَمَفْعُولًۭا

व यक़ूलू-न सुब्हा-न रब्बिना इन् का-न वअ्दु रब्बिना ल मफ्अूला
और कहते हैं कि हमारा परवरदिगार (हर ऐब से) पाक व पाकीज़ा है बेशक हमारे परवरदिगार का वायदा पूरा होना ज़रुरी था।

17:109

وَيَخِرُّونَ لِلْأَذْقَانِ يَبْكُونَ وَيَزِيدُهُمْ خُشُوعًۭا ۩

व यखिर्रू-न लिल्अज़्क़ानि यब्कू-न व यज़ीदुहुम् खुशूआ
और ये लोग (सजदे के लिए) मुँह के बल गिर पड़तें हैं और रोते चले जाते हैं और ये क़ुरान उन की ख़ाकसारी के बढ़ाता जाता है।

17:110

قُلِ ٱدْعُوا۟ ٱللَّهَ أَوِ ٱدْعُوا۟ ٱلرَّحْمَـٰنَ ۖ أَيًّۭا مَّا تَدْعُوا۟ فَلَهُ ٱلْأَسْمَآءُ ٱلْحُسْنَىٰ ۚ وَلَا تَجْهَرْ بِصَلَاتِكَ وَلَا تُخَافِتْ بِهَا وَٱبْتَغِ بَيْنَ ذَٰلِكَ سَبِيلًۭا

क़ुलिद्अुल्ला-ह अविद् उर्रह्-मा-न, अय्यम् मा तद्अू  फ़-लहुल् अस्माउल्-हुस्-ना, व ला तज्हर् बि-सलाति-क व ला तुख़ाफ़ित् बिहा वब्तग़ि बै-न ज़ालि-क सबीला
(ऐ रसूल!) तुम (उनसे) कह दो कि (तुम को एख़तियार है) ख़्वाह उसे अल्लाह (कहकर) पुकारो या रहमान कह कर पुकारो (ग़रज़) जिस नाम को भी पुकारो उसके तो सब नाम अच्छे (से अच्छे) हैं और (ऐ रसूल) न तो अपनी नमाज़ बहुत चिल्ला कर पढ़ो न और न बिल्कुल चुपके से बल्कि उसके दरम्यिान एक औसत तरीका एख़्तेयार कर लो।

17:111

وَقُلِ ٱلْحَمْدُ لِلَّهِ ٱلَّذِى لَمْ يَتَّخِذْ وَلَدًۭا وَلَمْ يَكُن لَّهُۥ شَرِيكٌۭ فِى ٱلْمُلْكِ وَلَمْ يَكُن لَّهُۥ وَلِىٌّۭ مِّنَ ٱلذُّلِّ ۖ وَكَبِّرْهُ تَكْبِيرًۢا

व क़ुलिल्-हम्दु लिल्लाहिल्लज़ी लम् यत्तख़िज़् वलदंव्-व लम् यकुल्-लहू शरीकुन् फ़िल्मुल्कि व लम् यकुल्लहू वलिय्युम्मिनज़्ज़ुल्लि व कब्बिरहु तक्बीरा
और कहो कि हर तरह की तारीफ उसी अल्लाह को (सज़ावार) है जो न तो कोई औलाद रखता है और न (सारे जहाँन की) सल्तनत में उसका कोई साझेदार है और न उसे किसी तरह की कमज़ोरी है न कोई उसका सरपरस्त हो और उसकी बड़ाई अच्छी तरह करते रहा करो।

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