Surah An Nahl In Hindi [16:1-16:128]

सूरह अन-नहल मदीनह में नाज़िल हुई एक लम्बी सूरह है। इसमें 128 आयतें हैं। इसका नाम “अन नहल” या शहद की मक्खी से लिया गया है, क्योंकि इसमें शहद की मक्खी का ज़िक्र आता है।

यह सूरह मुख्य रूप से इस्लाम की बुनियादी तालीमात पर रोशनी डालती है। इसमें अल्लाह की वहदानियत, उसकी कुदरत के निशान, पैगम्बरों की भेजी जाने की ज़रूरत, आखिरत और जन्नत-जहन्नम का विस्तार से वर्णन किया गया है।

साथ ही इसमें शिर्क, झूठे खुदाओं की पूजा, नाशुक्रगुज़ारी और गुनाहों से बचने की तलकीन दी गई है। मुशरिकों को हिदायत की दावत दी गई और मोमिनों को धैर्य रखने का संदेश दिया गया है।

सूरह के आखिर में अदल और इन्साफ पर चलने की तलकीन दी गई है। कुल मिलाकर यह सूरह इस्लाम की बुनियादी तालीमात को समेटे हुए है।

सूरह अन नहल को हिंदी में पढ़ें

بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ

बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।

16:1

أَتَىٰٓ أَمْرُ ٱللَّهِ فَلَا تَسْتَعْجِلُوهُ ۚ سُبْحَـٰنَهُۥ وَتَعَـٰلَىٰ عَمَّا يُشْرِكُونَ

अता अम्रुल्लाहि फ़ला तस्तअ्जिलूहु, सुब्हानहू व तआ़ला अ़म्मा युश्रिकून
ऐ कुफ़्फ़ारे मक्का! (अल्लाह का हुक्म (क़यामत गोया) आ पहुँचा तो (ऐ काफिरों बे फायदे) तुम इसकी जल्दी न मचाओ जिस चीज़ को ये लोग शरीक क़रार देते हैं उससे वह अल्लाह पाक व पाकीज़ा और बरतर है।

16:2

يُنَزِّلُ ٱلْمَلَـٰٓئِكَةَ بِٱلرُّوحِ مِنْ أَمْرِهِۦ عَلَىٰ مَن يَشَآءُ مِنْ عِبَادِهِۦٓ أَنْ أَنذِرُوٓا۟ أَنَّهُۥ لَآ إِلَـٰهَ إِلَّآ أَنَا۠ فَٱتَّقُونِ

युनज़्ज़िलुल्-मलाइ-क-त बिर्रूहि मिन् अमरिही अ़ला मंय्यशा-उ मिन् अिबादिही अन् अन्ज़िरू अन्नहू ला इला-ह इल्ला अ-ना फ़त्तक़ून
वही अपने हुक्म से अपने बन्दों में से जिसके पास चाहता है ‘वहीं’ देकर फ़रिश्तों को भेजता है कि लोगों को इस बात से आगाह कर दें कि मेरे सिवा कोई माबूद नहीं तो मुझी से डरते रहो।

16:3

خَلَقَ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضَ بِٱلْحَقِّ ۚ تَعَـٰلَىٰ عَمَّا يُشْرِكُونَ

ख़-लक़स्समावाति वल्अर्ज़ बिल्हक़्क़ि, तआ़ला अ़म्मा युश्रिकून
उसी ने सारे आसमान और ज़मीन मसलहत व हिकमत से पैदा किए तो ये लोग जिसको उसका शरीक बनाते हैं उससे कहीं बरतर है।

16:4

خَلَقَ ٱلْإِنسَـٰنَ مِن نُّطْفَةٍۢ فَإِذَا هُوَ خَصِيمٌۭ مُّبِينٌۭ

ख़-लक़ल्-इन्सा-न मिन् नुत्फ़तिन् फ़-इज़ा हु-व ख़सीमुम्-मुबीन
उसने इन्सान को नुत्फे से पैदा किया फिर वह यकायक (हम ही से) खुल्लम खुल्ला झगड़ने वाला हो गया।

16:5

وَٱلْأَنْعَـٰمَ خَلَقَهَا ۗ لَكُمْ فِيهَا دِفْءٌۭ وَمَنَـٰفِعُ وَمِنْهَا تَأْكُلُونَ

वल-अन्आ़-म ख़-ल-क़हा, लकुम् फ़ीहा दिफ़उंव्-व मनाफ़िअु व मिन्हा तअ्कुलून
उसी ने चरपायों को भी पैदा किया कि तुम्हारे लिए ऊन (ऊन की खाल और ऊन) से जाडे़ का सामान है।

16:6

وَلَكُمْ فِيهَا جَمَالٌ حِينَ تُرِيحُونَ وَحِينَ تَسْرَحُونَ

व लकुम् फ़ीहा जमालुन् ही-न तुरीहू-न व ही-न तस्-रहून
इसके अलावा और भी फायदें हैं और उनमें से बाज़ को तुम खाते हो और जब तुम उन्हें सिरे शाम चराई पर से लाते हो जब सवेरे ही सवेरे चराई पर ले जाते हो।

16:7

وَتَحْمِلُ أَثْقَالَكُمْ إِلَىٰ بَلَدٍۢ لَّمْ تَكُونُوا۟ بَـٰلِغِيهِ إِلَّا بِشِقِّ ٱلْأَنفُسِ ۚ إِنَّ رَبَّكُمْ لَرَءُوفٌۭ رَّحِيمٌۭ

व तह़्मिलु अस्क़ा-लकुम् इला ब-लदिल्-लम् तकूनू बालिग़ीहि इल्ला बिशिक़्क़िल्-अन्फुसि, इन्-न रब्बकुम् ल-रऊफुर्-रहीम
तो उनकी वजह से तुम्हारी रौनक़ भी है और जिन शहरों तक बग़ैर बड़ी जान ज़ोख़म में डाले बगै़र के पहुँच न सकते थे वहाँ तक ये चैपाए भी तुम्हारे बोझे भी उठा लिए फिरते हैं इसमें शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार बड़ा शफीक़ मेहरबान है।

16:8

وَٱلْخَيْلَ وَٱلْبِغَالَ وَٱلْحَمِيرَ لِتَرْكَبُوهَا وَزِينَةًۭ ۚ وَيَخْلُقُ مَا لَا تَعْلَمُونَ

वल्ख़ै-ल वल्बिग़ा-ल वल्हमी-र लितर्कबूहा व ज़ी-नतन्, व यख़्लुक़ु मा ला तअ्लमून
और (उसी ने) घोड़ों ख़च्चरों और गधों को (पैदा किया) ताकि तुम उन पर सवार हो और (इसमें) ज़ीनत (भी) है।

16:9

وَعَلَى ٱللَّهِ قَصْدُ ٱلسَّبِيلِ وَمِنْهَا جَآئِرٌۭ ۚ وَلَوْ شَآءَ لَهَدَىٰكُمْ أَجْمَعِينَ

व अ़लल्लाहि क़स्दुस्सबीलि व मिन्हा जा-इरून्, व लौ शा-अ ल-हदाकुम् अज्मईन
(उसके अलावा) और चीज़े भी पैदा करेगा जिनको तुम नहीं जानते हो और (खुश्क व तर में) सीधी राह (की हिदायत तो अल्लाह ही के जि़म्मे हैं और बाज़ रस्ते टेढे़ हैं।

16:10

هُوَ ٱلَّذِىٓ أَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءًۭ ۖ لَّكُم مِّنْهُ شَرَابٌۭ وَمِنْهُ شَجَرٌۭ فِيهِ تُسِيمُونَ

हुवल्लज़ी अन्ज़-ल मिनस्समा-इ माअल्लकुम् मिन्हु शराबुंव्-व मिन्हु श-जरून् फ़ीहि तुसीमून
और अगर अल्लाह चाहता तो तुम सबको मजि़ले मक़सूद तक पहुँचा देता वह वही (अल्लाह) है जिसने आसमान से पानी बरसाया जिसमें से तुम सब पीते हो और इससे दरख़्त शादाब होते हैं।

16:11

يُنۢبِتُ لَكُم بِهِ ٱلزَّرْعَ وَٱلزَّيْتُونَ وَٱلنَّخِيلَ وَٱلْأَعْنَـٰبَ وَمِن كُلِّ ٱلثَّمَرَٰتِ ۗ إِنَّ فِى ذَٰلِكَ لَـَٔايَةًۭ لِّقَوْمٍۢ يَتَفَكَّرُونَ

युम्बितु लकुम् बिहिज़्ज़र्-अ वज़्ज़ैतू-न वन्नख़ी-ल वल्-अअ्ना-ब व मिन् कुल्लिस्स-मराति, इन्-न फ़ी ज़ालि- क ल-आ-यतल्-लिक़ौमिंय्य तफ़क्करून
जिनमें तुम (अपने मवेशियों को) चराते हो इसी पानी से तुम्हारे वास्ते खेती और जै़तून और खुरमें और अंगूर उगाता है और हर तरह के फल (पैदा करता है) इसमें शक नहीं कि इसमें ग़ौर करने वालो के वास्ते (कुदरते अल्लाह की) बहुत बड़ी निशानी है।

16:12

وَسَخَّرَ لَكُمُ ٱلَّيْلَ وَٱلنَّهَارَ وَٱلشَّمْسَ وَٱلْقَمَرَ ۖ وَٱلنُّجُومُ مُسَخَّرَٰتٌۢ بِأَمْرِهِۦٓ ۗ إِنَّ فِى ذَٰلِكَ لَـَٔايَـٰتٍۢ لِّقَوْمٍۢ يَعْقِلُونَ

व सख़्ख़-र लकुमुल-लै-ल वन्नहा-र, वश्शम्-स वल्क़-म-र, वन्नुजूमु मुसख़्ख़रातुम्-बिअ्मरिही, इन्-न फ़ी ज़ालि-क लआयातिल्-लिक़ौमिंय्यअ्क़िलून
उसी ने तुम्हारे वास्ते रात को और दिन को और सूरज और चाँद को तुम्हारा ताबेए बना दिया है और सितारे भी उसी के हुक्म से (तुम्हारे) फरमाबरदार हैं कुछ शक ही नहीं कि (इसमें) समझदार लोगों के वास्ते यक़ीनन (कुदरत अल्लाह की) बहुत सी निशानियाँ हैं।

16:13

وَمَا ذَرَأَ لَكُمْ فِى ٱلْأَرْضِ مُخْتَلِفًا أَلْوَٰنُهُۥٓ ۗ إِنَّ فِى ذَٰلِكَ لَـَٔايَةًۭ لِّقَوْمٍۢ يَذَّكَّرُونَ

व मा ज़-र अ लकुम् फ़िल्अर्ज़ि मुख़्तलिफ़न् अल्वानुहू, इन्-न फ़ी ज़ालि-क लआ यतल् लिक़ौमिंय्यज़्ज़क्करून
और जो तरह तरह के रंगों की चीज़े उसमें ज़मीन में तुम्हारे नफे के वास्ते पैदा की।

16:14

وَهُوَ ٱلَّذِى سَخَّرَ ٱلْبَحْرَ لِتَأْكُلُوا۟ مِنْهُ لَحْمًۭا طَرِيًّۭا وَتَسْتَخْرِجُوا۟ مِنْهُ حِلْيَةًۭ تَلْبَسُونَهَا وَتَرَى ٱلْفُلْكَ مَوَاخِرَ فِيهِ وَلِتَبْتَغُوا۟ مِن فَضْلِهِۦ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ

व हुवल्लज़ी सख़्ख़रल्-बह्-र लितअ्कुलू मिन्हु लह़्मन् तरिय्यंव्-व तस्तख़्रिजू मिन्हु हिल्य-तन् तल्बसूनहा, व तरल्फुल्-क मवाख़ि-र फीहि व लितब्तग़ू मिन् फ़ज़्लिही व लअ़ल्लकुम् तश्कुरून
कुछ शक नहीं कि इसमें भी इबरत व नसीहत हासिल करने वालों के वास्ते (कुदरते अल्लाह की) बहुत सी निशानी है और वही (वह अल्लाह है जिसने दरिया को (भी तुम्हारे) क़ब्ज़े में कर दिया ताकि तुम इसमें से (मछलियों का) ताज़ा ताज़ा गोश्त खाओ और इसमें से जे़वर (की चीज़े मोती वगैरह) निकालो जिन को तुम पहना करते हो और तू कश्तियों को देखता है कि (आमद व रफत में) दरिया में (पानी को) चीरती फाड़ती आती है।

16:15

وَأَلْقَىٰ فِى ٱلْأَرْضِ رَوَٰسِىَ أَن تَمِيدَ بِكُمْ وَأَنْهَـٰرًۭا وَسُبُلًۭا لَّعَلَّكُمْ تَهْتَدُونَ

व अल्क़ा फ़िलअर्ज़ि रवासि-य अन् तमी-द बिकुम् व अन्हारंव्-व सुबुलल्-लअ़ल्लकुम् तह़्तदून
और (दरिया को तुम्हारे ताबेए) इसलिए (कर दिया) कि तुम लोग उसके फज़ल (नफा तिजारत) की तलाश करो और ताकि तुम शुक्र करो और उसी ने ज़मीन पर (भारी भारी) पहाड़ों को गाड़ दिया।

16:16

وَعَلَـٰمَـٰتٍۢ ۚ وَبِٱلنَّجْمِ هُمْ يَهْتَدُونَ

व अ़लामातिन्, व बिन्नज्मि हुम् यह्-तदून
ताकि (ऐसा न हों) कि ज़मीन तुम्हें लेकर झुक जाए (और तुम्हारे क़दम न जमें) और (उसी ने) नदियाँ और रास्ते (बनाए)।

16:17

أَفَمَن يَخْلُقُ كَمَن لَّا يَخْلُقُ ۗ أَفَلَا تَذَكَّرُونَ

अ फ़मंय्यख़्लुक़ु कमल्-ला यख़्लुक़ु, अ फ़ला तज़क्करून
ताकि तुम (अपनी अपनी मंजि़ले मक़सूद तक पहुँचों (उसके अलावा रास्तों में) और बहुत सी निशानियाँ (पैदा की हैं) और बहुत से लोग सितारे से भी राह मालूम करते हैं।

16:18

وَإِن تَعُدُّوا۟ نِعْمَةَ ٱللَّهِ لَا تُحْصُوهَآ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ لَغَفُورٌۭ رَّحِيمٌۭ

व इन् तअुद्दू निअ्-मतल्लाहि ला तुह्सूहा, इन्नल्ला-ह ल-ग़फूरुर्रहीम
तो क्या जो (अल्लाह इतने मख़लूकात को) पैदा करता है वह उन (बुतों के बराबर हो सकता है जो कुछ भी पैदा नहीं कर सकते तो क्या तुम (इतनी बात भी) नहीं समझते और अगर तुम अल्लाह की नेअमतों को गिनना चाहो तो (इस कसरत से हैं कि) तुम नहीं गिन सकते हो।

16:19

وَٱللَّهُ يَعْلَمُ مَا تُسِرُّونَ وَمَا تُعْلِنُونَ

वल्लाहु यअ्लमु मा तुसिर्रु-न व मा तुअ्लिनून
बेशक अल्लाह बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है कि (तुम्हारी नाफरमानी पर भी नेअमत देता है)।

16:20

وَٱلَّذِينَ يَدْعُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ لَا يَخْلُقُونَ شَيْـًۭٔا وَهُمْ يُخْلَقُونَ

वल्लज़ी-न यद्अू न मिन् दूनिल्लाहि ला यख़्लुक़ू-न शैअंव्-व हुम् युख़्लक़ून
और जो कुछ तुम छिपाकर करते हो और जो कुछ ज़ाहिर करते हो (ग़रज़) अल्लाह (सब कुछ) जानता है और (ये कुफ्फार) अल्लाह को छोड़कर जिन लोगों को (हाजत के वक़्त) पुकारते हैं वह कुछ भी पैदा नहीं कर सकते।

16:21

أَمْوَٰتٌ غَيْرُ أَحْيَآءٍۢ ۖ وَمَا يَشْعُرُونَ أَيَّانَ يُبْعَثُونَ

अम्वातुन ग़ैरू अह़्याइन्, वमा-यश्अुरू-न, अय्या-न युब्अ़सून
(बल्कि) वह ख़ुद दूसरों के बनाए हुए मुर्दे बेजान हैं और इतनी भी ख़बर नहीं कि कब (क़यामत) होगी और कब मुर्दे उठाए जाएगें।

16:22

إِلَـٰهُكُمْ إِلَـٰهٌۭ وَٰحِدٌۭ ۚ فَٱلَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِٱلْـَٔاخِرَةِ قُلُوبُهُم مُّنكِرَةٌۭ وَهُم مُّسْتَكْبِرُونَ

इलाहुकुम् इलाहुंव्वाहिदुन्, फ़ल्लज़ी-न ला युअ्मिनू-न बिल्आख़िरति क़ुलूबुहुम् मुन्कि-रतुंव्-व हुम् मुस्तक्बिरून
(फिर क्या काम आएगी) तुम्हारा परवरदिगार (यकता अल्लाह है तो जो लोग आख़िरत पर इमान नहीं रखते उनके दिल ही (इस वजह के हैं कि हर बात का) इन्कार करते हैं और वह बड़े मग़रुर हैं।

16:23

لَا جَرَمَ أَنَّ ٱللَّهَ يَعْلَمُ مَا يُسِرُّونَ وَمَا يُعْلِنُونَ ۚ إِنَّهُۥ لَا يُحِبُّ ٱلْمُسْتَكْبِرِينَ

ला ज-र-म अन्नल्ला-ह यअ्लमु मा युसिर्रु-न व मा युअ्लिनू-न, इन्नहू ला युहिब्बुल-मुस्तक्बिरीन
ये लोग जो कुछ छिपा कर करते हैं और जो कुछ ज़ाहिर बज़ाहिर करते हैं (ग़रज़ सब कुछ) अल्लाह ज़रुर जानता है वह हरगिज़ तकब्बुर करने वालों को पसन्द नहीं करता।

16:24

وَإِذَا قِيلَ لَهُم مَّاذَآ أَنزَلَ رَبُّكُمْ ۙ قَالُوٓا۟ أَسَـٰطِيرُ ٱلْأَوَّلِينَ

व इज़ा क़ी-ल लहुम् माज़ा अन्ज़-ल रब्बुकुम्, क़ालू असातीरूल्- अव्वलीन
और जब उनसे कहा जाता है कि तुम्हारे परवरदिगार ने क्या नाजि़ल किया है तो वह कहते हैं कि (अजी कुछ भी नहीं बस) अगलो के किस्से हैं।

16:25

لِيَحْمِلُوٓا۟ أَوْزَارَهُمْ كَامِلَةًۭ يَوْمَ ٱلْقِيَـٰمَةِ ۙ وَمِنْ أَوْزَارِ ٱلَّذِينَ يُضِلُّونَهُم بِغَيْرِ عِلْمٍ ۗ أَلَا سَآءَ مَا يَزِرُونَ

लियह़्मिलू औज़ारहुम् कामि-लतंय्-यौमल-क़ियामति, व मिन् औज़ारिल्लज़ी-न युज़िल्लू-नहुम् बिग़ैरि अिल्मिन्, अला सा-अ मा यज़िरून
(उनको बकने दो ताकि क़यामत के दिन) अपने (गुनाहों) के पूरे बोझ और जिन लोगों को उन्होंने बे समझे बूझे गुमराह किया है उनके (गुनाहों के) बोझ भी उन्हीं को उठाने पड़ेगें ज़रा देखो तो कि ये लोग कैसा बुरा बोझ अपने ऊपर लादे चले जा रहें हैं।

16:26

قَدْ مَكَرَ ٱلَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ فَأَتَى ٱللَّهُ بُنْيَـٰنَهُم مِّنَ ٱلْقَوَاعِدِ فَخَرَّ عَلَيْهِمُ ٱلسَّقْفُ مِن فَوْقِهِمْ وَأَتَىٰهُمُ ٱلْعَذَابُ مِنْ حَيْثُ لَا يَشْعُرُونَ

क़द् म-करल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिहिम् फ़-अतल्लाहु बुन्या-नहुम् मिनल्-क़वाअिदि फ़-ख़र्-र अ़लैहिमुस्सक़्फु मिन् फ़ौक़िहिम् व अताहुमुल्-अ़ज़ाबु मिन् हैसु ला यश्अुरून
बेशक जो लोग उनसे पहले थे उन्होंने भी मक्कारियाँ की थीं तो (अल्लाह का हुक्म) उनके ख़्यालात की इमारत की जड़ की तरफ से आ पड़ा (पस फिर क्या था) इस ख़्याली इमारत की छत उन पर उनके ऊपर से धम से गिर पड़ी (और सब ख़्याल हवा हो गए) और जिधर से उन पर अज़ाब आ पहुँचा उसकी उनको ख़बर तक न थी।

16:27

ثُمَّ يَوْمَ ٱلْقِيَـٰمَةِ يُخْزِيهِمْ وَيَقُولُ أَيْنَ شُرَكَآءِىَ ٱلَّذِينَ كُنتُمْ تُشَـٰٓقُّونَ فِيهِمْ ۚ قَالَ ٱلَّذِينَ أُوتُوا۟ ٱلْعِلْمَ إِنَّ ٱلْخِزْىَ ٱلْيَوْمَ وَٱلسُّوٓءَ عَلَى ٱلْكَـٰفِرِينَ

सुम्-म यौमल क़ियामति युख़्ज़ीहिम् व यक़ूलु ऐ-न शु-रकाइ-यल्लज़ी-न कुन्तुम् तुशाक़्क़ू-न फ़ीहिम्, क़ालल्लज़ी-न ऊतुल-अिल्-म इन्नल् ख़िज़्यल् यौ-म वस्सू-अ अ़लल्-काफ़िरीन
(फिर उसी पर इकतिफा नहीं) उसके बाद क़यामत के दिन अल्लाह उनको रुसवा करेगा और फरमाएगा कि (अब बताओ) जिसको तुमने मेरा शरीक बना रखा था और जिनके बारे में तुम (इमानदारों से) झगड़ते थे कहाँ हैं (वह तो कुछ जवाब देगें नहीं मगर) जिन लोगों को (अल्लाह की तरफ से) इल्म दिया गया है कहेगें कि आज के दिन रुसवाई और ख़राबी (सब कुछ) काफिरों पर ही है।

16:28

ٱلَّذِينَ تَتَوَفَّىٰهُمُ ٱلْمَلَـٰٓئِكَةُ ظَالِمِىٓ أَنفُسِهِمْ ۖ فَأَلْقَوُا۟ ٱلسَّلَمَ مَا كُنَّا نَعْمَلُ مِن سُوٓءٍۭ ۚ بَلَىٰٓ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمٌۢ بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ

अल्लज़ी-न त तवफ़्फ़ाहुमुल् मलाइ-कतु ज़ालिमी अन्फुसिहिम्, फ़-अल्क़वुस्स-ल-म मा कुन्ना नअ्-मलु मिन् सूइन्, बला इन्नल्ला-ह अ़लीमुम्-बिमा कुन्तुम् तअ्मलून
वह लोग हैं कि जब फरिश्ते उनकी रुह क़ब्ज़ करने लगते हैं (और) ये लोग (कुफ्र करके) आप अपने ऊपर सितम ढ़ाते रहे तो इताअत पर आमादा नज़र आते हैं और (कहते हैं कि) हम तो (अपने ख़्याल में) कोई बुराई नहीं करते थे (तो फरिष्ते कहते हैं) हाँ जो कुछ तुम्हारी करतूते थी अल्लाह उससे खूब अच्छी तरह वाकि़फ हैं।

16:29

فَٱدْخُلُوٓا۟ أَبْوَٰبَ جَهَنَّمَ خَـٰلِدِينَ فِيهَا ۖ فَلَبِئْسَ مَثْوَى ٱلْمُتَكَبِّرِينَ

फ़द्ख़ुलू अब्वा-ब जहन्न-म ख़ालिदी-न फ़ीहा, फ़ लबिअ्-स मस्वल् मु-तकब्बिरीन
(अच्छा तो लो) जहन्नुम के दरवाज़ों में दाखि़ल हो और इसमें हमेषा रहोगे ग़रज़ तकब्बुर करने वालो का भी क्या बुरा ठिकाना है।

16:30

۞ وَقِيلَ لِلَّذِينَ ٱتَّقَوْا۟ مَاذَآ أَنزَلَ رَبُّكُمْ ۚ قَالُوا۟ خَيْرًۭا ۗ لِّلَّذِينَ أَحْسَنُوا۟ فِى هَـٰذِهِ ٱلدُّنْيَا حَسَنَةٌۭ ۚ وَلَدَارُ ٱلْـَٔاخِرَةِ خَيْرٌۭ ۚ وَلَنِعْمَ دَارُ ٱلْمُتَّقِينَ

व क़ी-ल लिल्लज़ीनत्तक़ौ माज़ा-अन्ज़-ल रब्बुकुम, क़ालू ख़ैरन्, लिल्लज़ी-न अह़्सनू फ़ी हाज़िहिद्दुन्या ह-स-नतुन्, व लदारूल् आख़िरति ख़ैरून्, व लनिअ्-म दारूल्-मुत्तक़ीन
और जब परहेज़गारों से पूछा जाता है कि तुम्हारे परवरदिगार ने क्या नाजि़ल किया है तो बोल उठते हैं सब अच्छे से अच्छा जिन लोगों ने नेकी की उनके लिए इस दुनिया में (भी) भलाई (ही भलाई) है और आखि़रत का घर क्या उम्दा है।

16:31

جَنَّـٰتُ عَدْنٍۢ يَدْخُلُونَهَا تَجْرِى مِن تَحْتِهَا ٱلْأَنْهَـٰرُ ۖ لَهُمْ فِيهَا مَا يَشَآءُونَ ۚ كَذَٰلِكَ يَجْزِى ٱللَّهُ ٱلْمُتَّقِينَ

जन्नातु अद्-निंय्यद्ख़ुलूनहा तज्री मिन् तह़्तिहल् – अन्हारू लहुम् फ़ीहा मा यशाऊ-न, कज़ालि-क यज्ज़िल्लाहुल मुत्तक़ीन
सदा बहार (हरे भरे) बाग़ हैं जिनमें (वे तकल्लुफ) जा पहुँचेगें उनके नीचे नहरें जारी होंगी और ये लोग जो चाहेगें उनके लिए मुयय्या (मौजू़द) है यूँ अल्लाह परहेज़गारों (को उनके किए) की जज़ा अता फरमाता है।

16:32

ٱلَّذِينَ تَتَوَفَّىٰهُمُ ٱلْمَلَـٰٓئِكَةُ طَيِّبِينَ ۙ يَقُولُونَ سَلَـٰمٌ عَلَيْكُمُ ٱدْخُلُوا۟ ٱلْجَنَّةَ بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ

अल्लज़ी-न त-तवफ़्फ़ाहुमुल् मलाइ कतु तय्यिबी-न यक़ूलू न सलामुन् अ़लैकुमुद्ख़ुलुल्-जन्न-त बिमा कुन्तुम् तअ्मलून
(ये) वह लोग हैं जिनकी रुहें फरिश्ते इस हालत में क़ब्ज़ करतें हैं कि वह (नजासते कुफ्र से) पाक व पाकीज़ा होते हैं तो फरिश्ते उनसे (निहायत तपाक से) कहते है सलामुन अलैकुम जो नेकियाँ दुनिया में तुम करते थे उसके सिले में जन्नत में (बेतकल्लुफ) चले जाओ।

16:33

هَلْ يَنظُرُونَ إِلَّآ أَن تَأْتِيَهُمُ ٱلْمَلَـٰٓئِكَةُ أَوْ يَأْتِىَ أَمْرُ رَبِّكَ ۚ كَذَٰلِكَ فَعَلَ ٱلَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ ۚ وَمَا ظَلَمَهُمُ ٱللَّهُ وَلَـٰكِن كَانُوٓا۟ أَنفُسَهُمْ يَظْلِمُونَ

हल् यन्ज़ुरू-न इल्ला अन् तअ्ति-यहुमुल्-मलाइ-कतु औ यअ्ति-य अम्रू रब्बु-क, कज़ालि-क फ़-अ़लल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिहिम्, व मा ज़-ल-महुमुल्लाहु व लाकिन् कानू अन्फु-सहुम् यज़्लिमून
(ऐ रसूल!) क्या ये (एहले मक्का) इसी बात के मुन्तिज़र है कि उनके पास फरिश्ते (क़ब्ज़े रुह को) आ ही जाएँ या (उनके हलाक करने को) तुम्हारे परवरदिगार का अज़ाब ही आ पहुँचे जो लोग उनसे पहले हो गुज़रे हैं वह ऐसी बातें कर चुके हैं और अल्लाह ने उन पर (ज़रा भी) जुल्म नहीं किया बल्कि वह लोग ख़ुद कुफ्ऱ की वजह से अपने ऊपर आप जुल्म करते रहे।

16:34

فَأَصَابَهُمْ سَيِّـَٔاتُ مَا عَمِلُوا۟ وَحَاقَ بِهِم مَّا كَانُوا۟ بِهِۦ يَسْتَهْزِءُونَ

फ़-असाबहुम् सय्यिआतु मा अ़मिलू व हा-क़ बिहिम् मा कानू बिही यस्तह्ज़िऊन
फिर जो जो करतूतें उनकी थी उसकी सज़ा में बुरे नतीजे उनको मिले और जिस (अज़ाब) की वह हँसी उड़ाया करते थे उसने उन्हें (चारो तरफ से) घेर लिया।

16:35

وَقَالَ ٱلَّذِينَ أَشْرَكُوا۟ لَوْ شَآءَ ٱللَّهُ مَا عَبَدْنَا مِن دُونِهِۦ مِن شَىْءٍۢ نَّحْنُ وَلَآ ءَابَآؤُنَا وَلَا حَرَّمْنَا مِن دُونِهِۦ مِن شَىْءٍۢ ۚ كَذَٰلِكَ فَعَلَ ٱلَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ ۚ فَهَلْ عَلَى ٱلرُّسُلِ إِلَّا ٱلْبَلَـٰغُ ٱلْمُبِينُ

व क़ालल्लज़ी-न अश्रकू लौ शाअल्लाहु मा अ़बद्-ना मिन् दूनिही मिन् शैइन् नह़्नू व ला आबाउना व ला हर्रम्-ना मिन् दूनिही मिन् शैइन्, कज़ालि-क फ़-अ़लल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिहिम् फ़-हल् अ़लर्रूसुलि इल्लल् बलाग़ुल-मुबीन
और मुशरेकीन कहते हैं कि अगर अल्लाह चाहता तो न हम ही उसके सिवा किसी और चीज़ की इबादत करते और न हमारे बाप दादा और न हम बग़ैर उस (की मर्ज़ी) के किसी चीज़ को हराम कर बैठते जो लोग इनसे पहले हो गुज़रे हैं वह भी ऐसे (हीला हवाले की) बातें कर चुके हैं तो (कहा करें) पैग़म्बरों पर तो उसके सिवा कि एहकाम को साफ साफ पहुँचा दे और कुछ भी नहीं।

16:36

وَلَقَدْ بَعَثْنَا فِى كُلِّ أُمَّةٍۢ رَّسُولًا أَنِ ٱعْبُدُوا۟ ٱللَّهَ وَٱجْتَنِبُوا۟ ٱلطَّـٰغُوتَ ۖ فَمِنْهُم مَّنْ هَدَى ٱللَّهُ وَمِنْهُم مَّنْ حَقَّتْ عَلَيْهِ ٱلضَّلَـٰلَةُ ۚ فَسِيرُوا۟ فِى ٱلْأَرْضِ فَٱنظُرُوا۟ كَيْفَ كَانَ عَـٰقِبَةُ ٱلْمُكَذِّبِينَ

व ल-क़द् बअ़स्-ना फ़ी कुल्लि उम्मतिर्रसूलन् अनिअ्बुदुल्ला-ह वज्तनिबुत्ताग़ू-त, फ़मिन्हुम् मन् हदल्लाहु व मिन्हुम् मन् हक़्क़त् अ़लैहिज़्ज़लालतु, फ़सीरू फ़िल्अर्ज़ि फ़न्ज़ुरू कै-फ़ का-न आक़ि-बतुल्-मुकज़्ज़िबीन
और हमने तो हर उम्मत में एक (न एक) रसूल इस बात के लिए ज़रुर भेजा कि लोगों अल्लाह की इबादत करो और बुतों (की इबादत) से बचे रहो ग़रज़ उनमें से बाज़ की तो अल्लाह ने हिदायत की और बाज़ के (सर) पर गुमराही सवार हो गई तो ज़रा तुम लोग रुए ज़मीन पर चल फिर कर देखो तो कि (पैग़म्बराने अल्लाह के) झुठलाने वालों को क्या अन्जाम हुआ।

16:37

إِن تَحْرِصْ عَلَىٰ هُدَىٰهُمْ فَإِنَّ ٱللَّهَ لَا يَهْدِى مَن يُضِلُّ ۖ وَمَا لَهُم مِّن نَّـٰصِرِينَ

इन तह्-रिस् अ़ला हुदाहुम् फ़-इन्नल्ला-ह ला यह्दी मंय्युज़िल्लु व मा लहुम् मिन्-नासिरीन
(ऐ रसूल!) अगर तुमको इन लोगों के राहे रास्त पर जाने का हौका है (तो बे फायदा) क्योंकि अल्लाह तो हरगिज़ उस शख़्स की हिदायत नहीं करेगा जिसको (नाज़िल होने की वजह से) गुमराही में छोड़ देता है और न उनका कोई मददगार है।

16:38

وَأَقْسَمُوا۟ بِٱللَّهِ جَهْدَ أَيْمَـٰنِهِمْ ۙ لَا يَبْعَثُ ٱللَّهُ مَن يَمُوتُ ۚ بَلَىٰ وَعْدًا عَلَيْهِ حَقًّۭا وَلَـٰكِنَّ أَكْثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ

व अक़्समू बिल्लाहि जह्-द ऐमानिहिम्, ला यब्अ़सुल्लाहु मंय्यमूतु, बला वअ्दन् अ़लैहि हक़्क़ंव्-व लाकिन्-न अक्सरन्नासि ला यअ्लमून
(कि अज़ाब से बचाए) और ये कुफ्फार अल्लाह की जितनी क़समें उनके इमकान में तुम्हें खा (कर कहते) हैं कि जो शख़्स मर जाता है फिर उसको अल्लाह दोबारा जि़न्दा नहीं करेगा (ऐ रसूल) तुम कह दो कि हाँ ज़रुर ऐसा करेगा इस पर अपने वायदे की (वफा) लाजि़म व ज़रुरी है मगर बहुतेरे आदमी नहीं जानते हैं।

16:39

لِيُبَيِّنَ لَهُمُ ٱلَّذِى يَخْتَلِفُونَ فِيهِ وَلِيَعْلَمَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓا۟ أَنَّهُمْ كَانُوا۟ كَـٰذِبِينَ

लियुबय्यि न लहुमुल्लज़ी यख़्तलिफू-न फ़ीहि व लियअ्-लमल्लज़ी-न क-फरू अन्नहुम् कानू काज़िबीन
(दोबारा ज़िन्दा करना इसलिए ज़रुरी है) कि जिन बातों पर ये लोग झगड़ा करते हैं उन्हें उनके सामने साफ वाज़ेए कर देगा और ताकि कुफ्फार ये समझ लें कि ये लोग (दुनिया में) झूठे थे।

16:40

إِنَّمَا قَوْلُنَا لِشَىْءٍ إِذَآ أَرَدْنَـٰهُ أَن نَّقُولَ لَهُۥ كُن فَيَكُونُ

इन्नमा क़ौलुना लिशैइन् इज़ा अरद्-ना हु अन्-नक़ू-ल लहू कुन् फ़-यकून
हम जब किसी चीज़ (के पैदा करने) का इरादा करते हैं तो हमारा कहना उसके बारे में इतना ही होता है कि हम कह देते हैं कि ‘हो जा’ बस फौरन हो जाती है (तो फिर मुर्दों का जिलाना भी कोई बात है)।

16:41

وَٱلَّذِينَ هَاجَرُوا۟ فِى ٱللَّهِ مِنۢ بَعْدِ مَا ظُلِمُوا۟ لَنُبَوِّئَنَّهُمْ فِى ٱلدُّنْيَا حَسَنَةًۭ ۖ وَلَأَجْرُ ٱلْـَٔاخِرَةِ أَكْبَرُ ۚ لَوْ كَانُوا۟ يَعْلَمُونَ

वल्लज़ी-न हाजरू फ़िल्लाहि मिम्-बअ्दि मा ज़ुलिमू लनुबव्विअन्नहुम् फ़िद्दुन्या ह-स-नतन्, व लअज्रुल-आख़िरति अक्बरू • लौ कानू यअ्लमून
और जिन लोगों ने (कुफ़्फ़ार के ज़ुल्म पर ज़ुल्म सहने के बाद अल्लाह की खुशी के लिए घर बार छोड़ा हिजरत की हम उनको ज़रुर दुनिया में भी अच्छी जगह बिठाएँगें और आख़िरत की जज़ा तो उससे कहीं बढ़ कर है काश ये लोग जिन्होंने अल्लाह की राह में सख्तियों पर सब्र किया।

16:42

ٱلَّذِينَ صَبَرُوا۟ وَعَلَىٰ رَبِّهِمْ يَتَوَكَّلُونَ

अल्लज़ी-न स-बरू व अ़ला रब्बिहिम् य-तवक्कलून
और अपने परवरदिगार ही पर भरोसा रखते हैं (आख़िरत का सवाब) जानते होते।

16:43

وَمَآ أَرْسَلْنَا مِن قَبْلِكَ إِلَّا رِجَالًۭا نُّوحِىٓ إِلَيْهِمْ ۚ فَسْـَٔلُوٓا۟ أَهْلَ ٱلذِّكْرِ إِن كُنتُمْ لَا تَعْلَمُونَ

व मा अर्सल्ना मिन् क़ब्लि-क इल्ला रिजालन् नूही इलैहिम् फस्अलू अह् लज़्ज़िक्-रि इन कुन्तुम् ला तअ्लमून
और (ऐ रसूल) तुम से पहले आदमियों ही को पैग़म्बर बना बनाकर भेजा किए जिन की तरफ हम वहीं भेजते थे तो (तुम एहले मक्का से कहो कि) अगर तुम खुद नहीं जानते हो तो एहले जि़क्र (आलिमों से) पूछो (और उन पैग़म्बरों को भेजा भी तो) रौशन दलीलों और किताबों के साथ।

16:44

بِٱلْبَيِّنَـٰتِ وَٱلزُّبُرِ ۗ وَأَنزَلْنَآ إِلَيْكَ ٱلذِّكْرَ لِتُبَيِّنَ لِلنَّاسِ مَا نُزِّلَ إِلَيْهِمْ وَلَعَلَّهُمْ يَتَفَكَّرُونَ

बिल्-बय्यिनाति वज़्ज़ुबुरि, व अन्ज़ल्ना इलैकज़्ज़िक्र लितुबय्यि-न लिन्नासि मा नुज़्ज़ि-ल इलैहिम् व लअ़ल्लहुम् य तफ़क्करून
और तुम्हारे पास क़ुरान नाजि़ल किया है ताकि जो एहकाम लोगों के लिए नाजि़ल किए गए है तुम उनसे साफ साफ बयान कर दो ताकि वह लोग खुद से कुछ ग़ौर फिक्र करें।

16:45

أَفَأَمِنَ ٱلَّذِينَ مَكَرُوا۟ ٱلسَّيِّـَٔاتِ أَن يَخْسِفَ ٱللَّهُ بِهِمُ ٱلْأَرْضَ أَوْ يَأْتِيَهُمُ ٱلْعَذَابُ مِنْ حَيْثُ لَا يَشْعُرُونَ

अ-फ-अमिनल्लज़ी-न म-करूस्सय्यिआति अंय्यख़्सिफ़ल्लाहु बिहिमुल-अर्-ज़ औ यअ्ति-यहुमुल्-अ़ज़ाबु मिन हैसु ला यश्अुरून
तो क्या जो लोग बड़ी बड़ी मक्कारियाँ (शिर्क वग़ैरह) करते थे (उनको इस बात का इत्मिनान हो गया है (और मुत्तलिक़ ख़ौफ नहीं) कि अल्लाह उन्हें ज़मीन में धसा दे या ऐसी तरफ से उन पर अज़ाब आ पहुँचे कि उसकी उनको ख़बर भी न हो।

16:46

أَوْ يَأْخُذَهُمْ فِى تَقَلُّبِهِمْ فَمَا هُم بِمُعْجِزِينَ

औ यअ्ख़ु-ज़हुम् फी तक़ल्लुबिहिम् फ़मा हुम् बिमुअ्जिज़ीन
उनके चलते फिरते (अल्लाह का अज़ाब) उन्हें गिरफ्तार करे तो वह लोग उसे ज़ेर नहीं कर सकते।

16:47

أَوْ يَأْخُذَهُمْ عَلَىٰ تَخَوُّفٍۢ فَإِنَّ رَبَّكُمْ لَرَءُوفٌۭ رَّحِيمٌ

औ यअ्ख़ु-ज़हुम् अला तख़व्वुफ़िन्, फ़-इन्-न रब्बकुम् ल-रऊफुर्रहीम
या वह अज़ाब से डरते हो तो (उसी हालत में) धर पकड़ करे इसमें तो शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार बड़ा शफीक़ रहम वाला है।

16:48

أَوَلَمْ يَرَوْا۟ إِلَىٰ مَا خَلَقَ ٱللَّهُ مِن شَىْءٍۢ يَتَفَيَّؤُا۟ ظِلَـٰلُهُۥ عَنِ ٱلْيَمِينِ وَٱلشَّمَآئِلِ سُجَّدًۭا لِّلَّهِ وَهُمْ دَٰخِرُونَ

अ-व लम् यरौ इला मा ख़-लक़ल्लाहु मिन् शैइंय्-य तफ़य्यउ ज़िलालुहू अ़निल्-यमीनि वश्शमाइलि सुज्जदल्-लिल्लाहि व हुम् दाख़िरून
क्या उन लोगों ने अल्लाह की मख़लूक़ात में से कोई ऐसी चीज़ नहीं देखी जिसका साया (कभी) दाहिनी तरफ और कभी बायी तरफ पलटा रहता है कि (गोया) अल्लाह के सामने सर सजदा है और सब इताअत का इज़हार करते हैं।

16:49

وَلِلَّهِ يَسْجُدُ مَا فِى ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَمَا فِى ٱلْأَرْضِ مِن دَآبَّةٍۢ وَٱلْمَلَـٰٓئِكَةُ وَهُمْ لَا يَسْتَكْبِرُونَ

व लिल्लाहि यस्जुदू मा फ़िस्समावाति व मा फिल्अर्ज़ि मिन् दाब्बतिंव्-वल्-मलाइ-कतु व हुम् ला यस्तक्बिरून
और जितनी चीज़ें (चादँ सूरज वग़ैरह) आसमानों में हैं और जितने जानवर ज़मीन में हैं सब अल्लाह ही के आगे सर सजूद हैं और फरिश्ते तो (है ही) और वह हुक्में अल्लाह से सरकशी नहीं करते। (सजदा)

16:50

يَخَافُونَ رَبَّهُم مِّن فَوْقِهِمْ وَيَفْعَلُونَ مَا يُؤْمَرُونَ ۩

यख़ाफू-न रब्बहुम् मिन् फौक़िहिम् व यफ्अलू-न मा युअ्मरून *सज़्दा*
और अपने परवरदिगार से जो उनसे (कहीं) बरतर (बड़ा) व आला है डरते हैं और जो हुक्में दिया जाता है फौरन बजा लाते हैं।

16:51

۞ وَقَالَ ٱللَّهُ لَا تَتَّخِذُوٓا۟ إِلَـٰهَيْنِ ٱثْنَيْنِ ۖ إِنَّمَا هُوَ إِلَـٰهٌۭ وَٰحِدٌۭ ۖ فَإِيَّـٰىَ فَٱرْهَبُونِ

व क़ालल्लाहु ला तत्तख़िज़ू इलाहैनिस्-नैनि, इन्नमा हु-व इलाहुंव्-वाहिदुन, फ़-इय्या-य फ़र्हबून
और अल्लाह ने फरमाया था कि दो दो माबूद न बनाओ माबूद तो बस वही यकता अल्लाह है सिर्फ मुझी से डरते रहो।

16:52

وَلَهُۥ مَا فِى ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ وَلَهُ ٱلدِّينُ وَاصِبًا ۚ أَفَغَيْرَ ٱللَّهِ تَتَّقُونَ

व लहू मा फ़िस्समावाति वलअर्ज़ि व लहुद्दीनु वासिबन् अ-फ़ग़ैरल्लाहि तत्तक़ून
और जो कुछ आसमानों में हैं और जो कुछ ज़मीन में हैं (ग़रज़) सब कुछ उसी का है और ख़ालिस फरमाबरदारी हमेशा उसी को लाजि़म (जरूरी) है तो क्या तुम लोग अल्लाह के सिवा (किसी और से भी) डरते हो।

16:53

وَمَا بِكُم مِّن نِّعْمَةٍۢ فَمِنَ ٱللَّهِ ۖ ثُمَّ إِذَا مَسَّكُمُ ٱلضُّرُّ فَإِلَيْهِ تَجْـَٔرُونَ

व मा बिकुम् मिन् निअ्मतिन् फमिनल्लाहि सुम्-म इज़ा मस्सकुमुज़्-ज़ुर्रू फ़-इलैहि तज् अरून
और जितनी नेअमतें तुम्हारे साथ हैं (सब ही की तरफ से हैं) फिर जब तुमको तकलीफ छू भी गई तो तुम उसी के आगे फरियाद करने लगते हो।

16:54

ثُمَّ إِذَا كَشَفَ ٱلضُّرَّ عَنكُمْ إِذَا فَرِيقٌۭ مِّنكُم بِرَبِّهِمْ يُشْرِكُونَ

सुम्-म इज़ा क-शफ़ज़्ज़ुर्-र अन्कुम् इज़ा फ़रीक़ुम्-मिन्कुम् बिरब्बिहिम् युश्रिकून
फिर जब वह तुमसे तकलीफ को दूर कर देता है तो बस फौरन तुममें से कुछ लोग अपने परवरदिगार को शरीक ठहराते हैं।

16:55

لِيَكْفُرُوا۟ بِمَآ ءَاتَيْنَـٰهُمْ ۚ فَتَمَتَّعُوا۟ ۖ فَسَوْفَ تَعْلَمُونَ

लियक्फुरु बिमा आतैनाहुम्, फ़-तमत्तअू, फ़सौ-फ़ तअ्लमून
ताकि जो (नेअमतें) हमने उनको दी है उनकी नाशुक्री करें तो (ख़ैर दुनिया में चन्द रोज़ चैन कर लो फिर तो अनक़रीब तुमको मालूम हो जाएगा।

16:56

وَيَجْعَلُونَ لِمَا لَا يَعْلَمُونَ نَصِيبًۭا مِّمَّا رَزَقْنَـٰهُمْ ۗ تَٱللَّهِ لَتُسْـَٔلُنَّ عَمَّا كُنتُمْ تَفْتَرُونَ

व यज्अलू-न लिमा ला यअ्लमू-न नसीबम् मिम्मा रज़क़्नाहुम्, तल्लाहि लतुस् अलुन्-न अ़म्मा कुन्तुम् तफ़्तरून
और हमने जो रोज़ी उनको दी है उसमें से ये लोग उन बुतों का हिस्सा भी क़रार देते है जिनकी हक़ीकत नहीं जानते तो अल्लाह की (अपनी) कि़स्म जो इफ़तेरा परदाजि़याँ तुम करते थे (क़यामत में) उनकी बाज़पुर्स (पूछ गछ) तुम से ज़रुर की जाएगी।

16:57

وَيَجْعَلُونَ لِلَّهِ ٱلْبَنَـٰتِ سُبْحَـٰنَهُۥ ۙ وَلَهُم مَّا يَشْتَهُونَ

व यज्अ़लू-न लिल्लाहिल्-बनाति सुब्हानहू, व लहुम् मा यश्तहून
और ये लोग अल्लाह के लिए बेटियाँ तजवीज़ करते हैं (सुबान अल्लाह) वह उस से पाक व पाकीज़ा है।

16:58

وَإِذَا بُشِّرَ أَحَدُهُم بِٱلْأُنثَىٰ ظَلَّ وَجْهُهُۥ مُسْوَدًّۭا وَهُوَ كَظِيمٌۭ

व इज़ा बुश्शि-र अ-हदुहुम् बिल्उन्सा ज़ल्-ल वज्हुहू मुस्वद्दंव्-व हु-व कज़ीम
और अपने लिए (बेटे) जो मरग़ूब (दिल पसन्द) हैं और जब उसमें से किसी एक को लड़की पैदा होने की जो खुशख़बरी दीजिए रंज के मारे मुँह काला हो जाता है।

16:59

يَتَوَٰرَىٰ مِنَ ٱلْقَوْمِ مِن سُوٓءِ مَا بُشِّرَ بِهِۦٓ ۚ أَيُمْسِكُهُۥ عَلَىٰ هُونٍ أَمْ يَدُسُّهُۥ فِى ٱلتُّرَابِ ۗ أَلَا سَآءَ مَا يَحْكُمُونَ

य-तवारा मिनल्-क़ौमि मिन् सू-इ मा बुश्शि-र बिही, अयुम्सिकुहू अला हूनिन् अम् यदुस्सुहू फित्तुराबि, अला सा-अ मा यह्कुमून
और वह ज़हर का सा घूँट पीकर रह जाता है (बेटी की) जिसकी खुशखबरी दी गई है अपनी क़ौम के लोगों से छिपा फिरता है (और सोचता है) कि क्या इसको जि़ल्लत उठाके जि़न्दा रहने दे या (जि़न्दा ही) इसको ज़मीन में गाड़ दे-देखो तुम लोग किस क़दर बुरा एहकाम (हुक्म) लगाते हैं।

16:60

لِلَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِٱلْـَٔاخِرَةِ مَثَلُ ٱلسَّوْءِ ۖ وَلِلَّهِ ٱلْمَثَلُ ٱلْأَعْلَىٰ ۚ وَهُوَ ٱلْعَزِيزُ ٱلْحَكِيمُ

लिल्लज़ी-न ला युअ्मिनू-न बिल्आख़िरति म- सलुस्सौइ, व लिल्लाहिल् म-सलुल्-अअ्ला, व हुवल् अ़ज़ीज़ुल हकीम
बुरी (बुरी) बातें तो उन्हीं लोगों के लिए ज़्यादा मुनासिब हैं जो आखि़रत का यक़ीन नहीं रखते और अल्लाह की शान के लायक़ तो आला सिफते (बहुत बड़ी अच्छाइया) हैं और वही तो ग़ालिब है।

16:61

وَلَوْ يُؤَاخِذُ ٱللَّهُ ٱلنَّاسَ بِظُلْمِهِم مَّا تَرَكَ عَلَيْهَا مِن دَآبَّةٍۢ وَلَـٰكِن يُؤَخِّرُهُمْ إِلَىٰٓ أَجَلٍۢ مُّسَمًّۭى ۖ فَإِذَا جَآءَ أَجَلُهُمْ لَا يَسْتَـْٔخِرُونَ سَاعَةًۭ ۖ وَلَا يَسْتَقْدِمُونَ

व लौ युआख़िज़ुल्लाहुन्ना-स बिज़ुल्मिहिम् मा त-र-क अ़लैहा मिन् दाब्बतिंव्-व लाकिंय्युअख़्ख़िरूहुम् इला अ-जलिम् मुसम्मन्, फ़-इज़ा जा-अ अ-जलुहुम् ला यस्तअ्ख़िरू-न सा-अतंव्-व ला यस्तक़्दिमून
और अगर (कहीं) अल्लाह अपने बन्दों की नाफरमानियों की गिरफ़त करता तो रुए ज़मीन पर किसी एक जानदार को बाक़ी न छोड़ता मगर वह तो एक मुक़र्रर वक़्त तक उन सबको मोहलत देता है फिर जब उनका (वह) वक़्त आ पहुँचेगा तो न एक घड़ी पीछे हट सकते हैं और न आगे बढ़ सकते हैं।

16:62

وَيَجْعَلُونَ لِلَّهِ مَا يَكْرَهُونَ وَتَصِفُ أَلْسِنَتُهُمُ ٱلْكَذِبَ أَنَّ لَهُمُ ٱلْحُسْنَىٰ ۖ لَا جَرَمَ أَنَّ لَهُمُ ٱلنَّارَ وَأَنَّهُم مُّفْرَطُونَ

व यज्अ़लू-न लिल्लाहि मा यक्रहू-न व तसिफु अल्सिनतुहुमुल्-कज़िब अन्न लहुमुल्-हुस्-ना, ला ज-र-म अन्-न लहुमुन्ना-र व अन्नहुम् मुफ्-रतून
और ये लोग खुद जिन बातों को पसन्द नहीं करते उनको अल्लाह के वास्ते क़रार देते हैं और अपनी ही ज़बान से ये झूठे दावे भी करते हैं कि (आखि़रत में भी) उन्हीं के लिए भलाई है (भलाई तो नहीं मगर) हाँ उनके लिए जहन्नुम की आग ज़रुरी है और यही लोग सबसे पहले (उसमें) झोंके जाएँगें।

16:63

تَٱللَّهِ لَقَدْ أَرْسَلْنَآ إِلَىٰٓ أُمَمٍۢ مِّن قَبْلِكَ فَزَيَّنَ لَهُمُ ٱلشَّيْطَـٰنُ أَعْمَـٰلَهُمْ فَهُوَ وَلِيُّهُمُ ٱلْيَوْمَ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌۭ

तल्लाहि ल-क़द् अर्सल्ना इला उ-ममिम् मिन् क़ब्लि-क फ़-ज़य्य-न लहुमुश्शैतानु अअ्मालहुम् फहु-व वलिय्युहुमुल्-यौ-म व लहुम् अज़ाबुन् अलीम
(ऐ रसूल!) अल्लाह की (अपनी) कसम तुमसे पहले उम्मतों के पास बहुतेरे पैग़म्बर भेजे तो शैतान ने उनकी कारस्तानियों को उम्दा कर दिखाया तो वही (शैतान) आज भी उन लोगों का सरपरस्त बना हुआ है हालाँकि उनके वास्ते दर्दनाक अज़ाब है।

16:64

وَمَآ أَنزَلْنَا عَلَيْكَ ٱلْكِتَـٰبَ إِلَّا لِتُبَيِّنَ لَهُمُ ٱلَّذِى ٱخْتَلَفُوا۟ فِيهِ ۙ وَهُدًۭى وَرَحْمَةًۭ لِّقَوْمٍۢ يُؤْمِنُونَ

व मा अन्ज़ल्ना अ़लैकल्-किता-ब इल्ला लितुबय्यि-न लहुमुल्लज़िख़्त-लफू फ़ीहि, व हुदंव्-व रह़्म-तल् लिक़ौमिंय्युअ्मिनून
और हमने तुम पर किताब (क़ुरान) तो इसी लिए नाजि़ल की ताकि जिन बातों में ये लोग बाहम झगड़ा किए हैं उनको तुम साफ साफ बयान करो (और यह किताब) इमानदारों के लिए तो (अज़सरतापा) हिदायत और रहमत है।

16:65

وَٱللَّهُ أَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءًۭ فَأَحْيَا بِهِ ٱلْأَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَآ ۚ إِنَّ فِى ذَٰلِكَ لَـَٔايَةًۭ لِّقَوْمٍۢ يَسْمَعُونَ

वल्लाहु अन्ज़-ल मिनस्समा इ मा-अन् फ़-अह़्या बिहिल्अर्-ज़ बअ्-द मौतिहा, इन्-न फ़ी ज़ालि-क लआ-यतल् लिकौमिंय्यस्मअून
और अल्लाह ही ने आसमान से पानी बरसाया तो उसके ज़रिए ज़मीन को मुर्दा होने के बाद जि़न्दा (षादाब) (हरी भरी) किया क्या कुछ शक नहीं कि इसमें जो लोग बसते हैं उनके वास्ते (कु़दरते अल्लाह की) बहुत बड़ी निशानी है।

16:66

وَإِنَّ لَكُمْ فِى ٱلْأَنْعَـٰمِ لَعِبْرَةًۭ ۖ نُّسْقِيكُم مِّمَّا فِى بُطُونِهِۦ مِنۢ بَيْنِ فَرْثٍۢ وَدَمٍۢ لَّبَنًا خَالِصًۭا سَآئِغًۭا لِّلشَّـٰرِبِينَ

व इन्-न लकुम् फ़िल्-अन्आमि लअिब्र-तन्, नुस्क़ी कुम् मिम्मा फ़ी बुतूनिही मिम्-बैनि फ़रसिंव्-व दमिल्-ल-बनन् खालिसन् साइग़ल्-लिश्शारिबीन
और इसमें शक नहीं कि चैपायों में भी तुम्हारे लिए (इबरत की बात) है कि उनके पेट में ख़ाक, बला, गोबर और ख़ून (जो कुछ भरा है) उसमें से हमे तुमको ख़ालिस दूध पिलाते हैं जो पीने वालों के लिए खुशगवार है।

16:67

وَمِن ثَمَرَٰتِ ٱلنَّخِيلِ وَٱلْأَعْنَـٰبِ تَتَّخِذُونَ مِنْهُ سَكَرًۭا وَرِزْقًا حَسَنًا ۗ إِنَّ فِى ذَٰلِكَ لَـَٔايَةًۭ لِّقَوْمٍۢ يَعْقِلُونَ

व मिन् स-मरातिन्नख़ीलि वल्अअ्नाबि तत्तख़िज़ू-न मिन्हु स-करंव्-व रिज़्क़न् ह-सनन्, इन्-न फ़ी ज़ालि- क लआ-यतल् लिक़ौमिंय्यअ्क़िलून
और इसी तरह खुरमें और अंगूर के फल से (हम तुमको शीरा पिलाते हैं) जिसकी (कभी तो) तुम शराब बना लिया करते हो और कभी अच्छी रोज़ी (सिरका वगै़रह) इसमें शक नहीं कि इसमें भी समझदार लोगों के लिए (क़ुदरत अल्लाह की) बड़ी निशानी है।

16:68

وَأَوْحَىٰ رَبُّكَ إِلَى ٱلنَّحْلِ أَنِ ٱتَّخِذِى مِنَ ٱلْجِبَالِ بُيُوتًۭا وَمِنَ ٱلشَّجَرِ وَمِمَّا يَعْرِشُونَ

व औहा रब्बु-क इलन्नह़्लि अनित्तख़िज़ी मिनल्-जिबालि बुयूतंव्-व मिनश्श-जरि व मिम्मा यअ्-रिशून
और (ऐ रसूल!) तुम्हारे परवरदिगार ने शहद की मक्खियों के दिल में ये बात डाली कि तू पहाड़ों और दरख़्तों और ऊँची ऊँची ट्ट्टियाँ (और मकानात पाट कर) बनाते हैं।

16:69

ثُمَّ كُلِى مِن كُلِّ ٱلثَّمَرَٰتِ فَٱسْلُكِى سُبُلَ رَبِّكِ ذُلُلًۭا ۚ يَخْرُجُ مِنۢ بُطُونِهَا شَرَابٌۭ مُّخْتَلِفٌ أَلْوَٰنُهُۥ فِيهِ شِفَآءٌۭ لِّلنَّاسِ ۗ إِنَّ فِى ذَٰلِكَ لَـَٔايَةًۭ لِّقَوْمٍۢ يَتَفَكَّرُونَ

सुम्-म कुली मिन् कुल्लिस्स-मराति फ़स्लुकी सुबु-ल रब्बिकि जुलुलन्, यख़्रुजु मिम्-बुतू निहा शराबुम्-मुख़्तलिफुन् अल्वानुहू फ़ीहि शिफ़ाउल्-लिन्नासि, इन्-न फ़ी ज़ालि-क लआ-यतल् लिक़ौमिंय्य-तफ़क्करून
उनमें अपने छत्ते बना फिर हर तरह के फलों (के पूर से) (उनका अर्क) चूस कर फिर अपने परवरदिगार की राहों में ताबेदारी के साथ चली मक्खियों के पेट से पीने की एक चीज़ निकलती है (शहद) जिसके मुख़्तलिफ रंग होते हैं इसमें लोगों (के बीमारियों) की शिफ़ा (भी) है इसमें शक नहीं कि इसमें ग़ौर व फिक्र करने वालों के वास्ते (क़ुदरते अल्लाह की बहुत बड़ी निशानी है)।

16:70

وَٱللَّهُ خَلَقَكُمْ ثُمَّ يَتَوَفَّىٰكُمْ ۚ وَمِنكُم مَّن يُرَدُّ إِلَىٰٓ أَرْذَلِ ٱلْعُمُرِ لِكَىْ لَا يَعْلَمَ بَعْدَ عِلْمٍۢ شَيْـًٔا ۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمٌۭ قَدِيرٌۭ

वल्लाहु ख़-ल-क़कुम् सुम्-म य-तवफ़्फ़ाकुम्, व मिन्कुम् मंय्युरद्दु इला अरज़लिल्-अुमुरि लिकै ला यअ्ल-म बअ्-द अिल्मिन् शैअन्, इन्नल्ला-ह अ़लीमुन् क़दीर
और अल्लाह ही ने तुमको पैदा किया फिर वही तुमको (दुनिया से) उठा लेगा और तुममें से बाज़ ऐसे भी हैं जो ज़लील ज़िन्दगी (सख़्त बुढ़ापे) की तरफ लौटाए जाते हैं (बहुत कुछ) जानने के बाद (ऐसे सड़ीले हो गए कि) कुछ नहीं जान सके बेशक अल्लाह (सब कुछ) जानता और (हर तरह की) कुदरत रखता है।

16:71

وَٱللَّهُ فَضَّلَ بَعْضَكُمْ عَلَىٰ بَعْضٍۢ فِى ٱلرِّزْقِ ۚ فَمَا ٱلَّذِينَ فُضِّلُوا۟ بِرَآدِّى رِزْقِهِمْ عَلَىٰ مَا مَلَكَتْ أَيْمَـٰنُهُمْ فَهُمْ فِيهِ سَوَآءٌ ۚ أَفَبِنِعْمَةِ ٱللَّهِ يَجْحَدُونَ

वल्लाहु फ़ज़्ज़-ल बअ्ज़कुम् अ़ला बअ्ज़िन् फ़िर्रिज़्क़ि, फ़-मल्लज़ी-न फुज़्ज़िलू बिराद्दी रिज़्क़िहिम् अ़ला मा म-लकत् ऐमानुहुम् फ़हुम् फीहि सवाउन्, अ-फ़बिनिअ्-मतिल्लाहि यज्हदून
और अल्लाह ही ने तुममें से बाज़ को बाज़ पर रिज्क (दौलत में) तरजीह दी है फिर जिन लोगों को रोज़ी ज़्यादा दी गई है वह लोग अपनी रोज़ी में से उन लोगों को जिन पर उनका दस्तरस (इख़्तेयार) है (लौन्डी ग़ुलाम वग़ैरह) देने वाला नहीं (हालाँकि इस माल में तो सब के सब मालिक गुलाम वग़ैरह) बराबर हैं तो क्या ये लोग अल्लाह की नेअमत के मुन्किर हैं।

16:72

وَٱللَّهُ جَعَلَ لَكُم مِّنْ أَنفُسِكُمْ أَزْوَٰجًۭا وَجَعَلَ لَكُم مِّنْ أَزْوَٰجِكُم بَنِينَ وَحَفَدَةًۭ وَرَزَقَكُم مِّنَ ٱلطَّيِّبَـٰتِ ۚ أَفَبِٱلْبَـٰطِلِ يُؤْمِنُونَ وَبِنِعْمَتِ ٱللَّهِ هُمْ يَكْفُرُونَ

वल्लाहु ज-अ़-ल लकुम् मिन् अन्फुसिकुम् अज़्वाजंव्-व ज-अ-ल लकुम् मिन् अज़्वाजिकुम् बनी-न व ह-फ-दतंव्-व र-ज़-क़ कुम् मिनत्तय्यिबाति, अ-फ़बिल्बातिलि युअ्मिनू-न व बिनिअ्-मतिल्लाहि हुम् यक्फुरून
और अल्लाह ही ने तुम्हारे लिए बीबियाँ तुम ही में से बनाई और उसी ने तुम्हारे वास्ते तुम्हारी बीवियों से बेटे और पोते पैदा किए और तुम्हें पाक व पाकीज़ा रोज़ी खाने को दी तो क्या ये लोग बिल्कुल बातिल (सुल्तान बुत वग़ैरह) पर इमान रखते हैं और अल्लाह की नेअमत (वहदानियत वग़ैरह से) इन्कार करते हैं।

16:73

وَيَعْبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ مَا لَا يَمْلِكُ لَهُمْ رِزْقًۭا مِّنَ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ شَيْـًۭٔا وَلَا يَسْتَطِيعُونَ

व यअ्बुदू-न मिन् दूनिल्लाहि मा ला यम्लिकु लहुम रिज़्क़म्-मिनस्समावाति वल्अर्ज़ि शैअंव्-व ला यस्ततीअून
और अल्लाह को छोड़कर ऐसी चीज़ की परसतिश करते हैं जो आसमानों और ज़मीन में से उनको रिज़क़ देने का कुछ भी न एख़्तियार रखते हैं और न कुदरत हासिल कर सकते हैं।

16:74

فَلَا تَضْرِبُوا۟ لِلَّهِ ٱلْأَمْثَالَ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ يَعْلَمُ وَأَنتُمْ لَا تَعْلَمُونَ

फ़ला तज़्रिबू लिल्लाहिल्-अम्सा-ल, इन्नल्ला-ह यअ़लमु व अन्तुम् ला तअ्लमून
तो तुम (दुनिया के लोगों पर कयास करके ख़ुद) मिसालें न गढ़ो बेशक अल्लाह (सब कुछ) जानता है और तुम नहीं जानते।

16:75

۞ ضَرَبَ ٱللَّهُ مَثَلًا عَبْدًۭا مَّمْلُوكًۭا لَّا يَقْدِرُ عَلَىٰ شَىْءٍۢ وَمَن رَّزَقْنَـٰهُ مِنَّا رِزْقًا حَسَنًۭا فَهُوَ يُنفِقُ مِنْهُ سِرًّۭا وَجَهْرًا ۖ هَلْ يَسْتَوُۥنَ ۚ ٱلْحَمْدُ لِلَّهِ ۚ بَلْ أَكْثَرُهُمْ لَا يَعْلَمُونَ

ज़-रबल्लाहु म-सलन् अ़ब्दम्- मम्लूकल्-ला यक़्दिरू अ़ला शैइंव्-व मर्रज़क़्नाहु मिन्ना रिज़्क़न् ह-सनन् फ़हु-व युन्फ़िक़ु मिन्हु सिर्रंव्-व जहरन्, हल् यस्तवू-न, अल्हम्दु लिल्लाहि, बल् अक्सरूहुम् ला यअ्लमून
एक मसल अल्लाह ने बयान फरमाई कि एक ग़ुलाम है जो दूसरे के कब्जे़ में है (और) कुछ भी एख़्तियार नहीं रखता और एक शख़्स वह है कि हमने उसे अपनी बारगाह से अच्छी (खासी) रोज़ी दे रखी है तो वह उसमें से छिपा के दिखा के (ग़रज़ हर तरह अल्लाह की राह में) ख़र्च करता है क्या ये दोनो बराबर हो सकते हैं (हरगिज़ नहीं) अल्हमदोलिल्लाह (कि वह भी उसके मुक़र्रर हैं) मगर उनके बहुतेरे (इतना भी) नहीं जानते।

16:76

وَضَرَبَ ٱللَّهُ مَثَلًۭا رَّجُلَيْنِ أَحَدُهُمَآ أَبْكَمُ لَا يَقْدِرُ عَلَىٰ شَىْءٍۢ وَهُوَ كَلٌّ عَلَىٰ مَوْلَىٰهُ أَيْنَمَا يُوَجِّههُّ لَا يَأْتِ بِخَيْرٍ ۖ هَلْ يَسْتَوِى هُوَ وَمَن يَأْمُرُ بِٱلْعَدْلِ ۙ وَهُوَ عَلَىٰ صِرَٰطٍۢ مُّسْتَقِيمٍۢ

व ज़-रबल्लाहु म-सलर्रजुलैनि अ-हदुहुमा अब्कमु ला यक़्दिरू अ़ला शैइंव्-व हु-व कल्लुन् अ़ला मौलाहु, ऐ-नमा युवज्जिह्हु ला यअ्ति बिख़ैरिन्, हल् यस्तवी हु-व, व मंय्यअ्मुरू बिल-अ़द्लि, व हु-व अ़ला सिरातिम्-मुस्तक़ीम
और अल्लाह एक दूसरी मसल बयान फरमाता है दो आदमी हैं कि एक उनमें से बिल्कुल गूँगा उस पर गुलाम जो कुछ भी (बात वग़ैरह की) कुदरत नहीं रखता और (इस वजह से) वह अपने मालिक को दूभर हो रहा है कि उसको जिधर भेजता है (ख़ैर से) कभी भलाई नहीं लाता क्या ऐसा ग़ुलाम और वह शख़्स जो (लोगों को) अदल व मियाना रवी का हुक्म करता है वह खुद भी ठीक सीधी राह पर क़ायम है (दोनों बराबर हो सकते हैं (हरगिज़ नहीं)।

16:77

وَلِلَّهِ غَيْبُ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ ۚ وَمَآ أَمْرُ ٱلسَّاعَةِ إِلَّا كَلَمْحِ ٱلْبَصَرِ أَوْ هُوَ أَقْرَبُ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍۢ قَدِيرٌۭ

व लिल्लाहि ग़ैबुस्समावाति वल्अर्ज़ि व मा अम्रूस्सा-अ़ति इल्ला क-लम्हिल्-ब-सरि औ हु-व अक़्रबु, इन्नल्ला-ह अ़ला कुल्लि शैइन् क़दीर
और सारे आसमान व ज़मीन की ग़ैब की बातें अल्लाह ही के लिए मख़सूस हैं और अल्लाह क़यामत का वाकेए होना तो ऐसा है जैसे पलक का झपकना बल्कि इससे भी जल्दी बेशक अल्लाह हर चीज़ पर क़ुदरत कामेला रखता है।

16:78

وَٱللَّهُ أَخْرَجَكُم مِّنۢ بُطُونِ أُمَّهَـٰتِكُمْ لَا تَعْلَمُونَ شَيْـًۭٔا وَجَعَلَ لَكُمُ ٱلسَّمْعَ وَٱلْأَبْصَـٰرَ وَٱلْأَفْـِٔدَةَ ۙ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ

वल्लाहु अख़्र-जकुम् मिम्-बुतूनि उम्महातिकुम् ला तअ्लमू-न शैअंव्-व ज-अ-ल लकुमुस्सम्-अ़ वल्अब्सा-र वल्-अफ्इ-द-त, लअल्लकुम् तश्कुरून
और अल्लाह ही ने तुम्हें तुम्हारी माओं के पेट से निकाला (जब) तुम बिल्कुल नासमझ थे और तुम को कान दिए और आँखें (अता की) दिल (इनायत किए) ताकि तुम शुक्र करो।

16:79

أَلَمْ يَرَوْا۟ إِلَى ٱلطَّيْرِ مُسَخَّرَٰتٍۢ فِى جَوِّ ٱلسَّمَآءِ مَا يُمْسِكُهُنَّ إِلَّا ٱللَّهُ ۗ إِنَّ فِى ذَٰلِكَ لَـَٔايَـٰتٍۢ لِّقَوْمٍۢ يُؤْمِنُونَ

अलम् यरौ इलत्तैरि मुसख़्ख़रातिन् फ़ी जव्विस्समा-इ, मा युम्सिकुहुन्-न इल्लल्लाहु, इन्-न फ़ी ज़ालि-क लआयातिल्-लिकौमिंय्युअ्मिनून
क्या उन लोगों ने परिन्दों की तरफ ग़ौर नहीं किया जो आसमान के नीचे हवा में घिरे हुए (उड़ते रहते हैं) उनको तो बस अल्लाह ही (गिरने से) रोकता है बेशक इसमें भी (कुदरते अल्लाह की) इमानदारों के लिए बहुत सी निशानियाँ हैं।

16:80

وَٱللَّهُ جَعَلَ لَكُم مِّنۢ بُيُوتِكُمْ سَكَنًۭا وَجَعَلَ لَكُم مِّن جُلُودِ ٱلْأَنْعَـٰمِ بُيُوتًۭا تَسْتَخِفُّونَهَا يَوْمَ ظَعْنِكُمْ وَيَوْمَ إِقَامَتِكُمْ ۙ وَمِنْ أَصْوَافِهَا وَأَوْبَارِهَا وَأَشْعَارِهَآ أَثَـٰثًۭا وَمَتَـٰعًا إِلَىٰ حِينٍۢ

वल्लाहु ज-अ-ल लकुम् मिम्-बुयूतिकुम् स-कनंव्-व ज-अ-ल लकुम् मिन् जुलूदिल्-अन्आ़मि बुयूतन् तस्तख़िफ्फूनहा यौ-म ज़अ्निकुम् व यौ-म इक़ामतिकुम्, व मिन् अस्वाफ़िहा व औबारिहा व अश्आ़रिहा असासंव्-व मताअ़न् इला हीन
और अल्लाह ही ने तुम्हारे घरों को तुम्हारा ठिकाना क़रार दिया और उसी ने तुम्हारे वास्ते चैपायों की खालों से तुम्हारे लिए (हलके फुलके) डेरे (ख़ेमे) बना जिन्हें तुम हलका पाकर अपने सफर और हजर (ठहरने) में काम लाते हो और इन चारपायों की ऊन और रुई और बालो से एक वक़्त ख़ास (क़यामत तक) के लिए तुम्हारे बहुत से असबाब और अबकार आमद (काम की) चीज़े बनाई।

16:81

وَٱللَّهُ جَعَلَ لَكُم مِّمَّا خَلَقَ ظِلَـٰلًۭا وَجَعَلَ لَكُم مِّنَ ٱلْجِبَالِ أَكْنَـٰنًۭا وَجَعَلَ لَكُمْ سَرَٰبِيلَ تَقِيكُمُ ٱلْحَرَّ وَسَرَٰبِيلَ تَقِيكُم بَأْسَكُمْ ۚ كَذَٰلِكَ يُتِمُّ نِعْمَتَهُۥ عَلَيْكُمْ لَعَلَّكُمْ تُسْلِمُونَ

वल्लाहु ज-अ-ल लकुम् मिम्मा ख़-ल-क़ ज़िलालंव्-व ज-अ-ल लकुम् मिनल् जिबालि अक्नानंव्-व ज-अ़-ल लकुम् सराबी-ल तक़ीकुमुल्हर्-र व सराबी-ल तक़ीकुम् बअ्सकुम्, कज़ालि-क युतिम्मु निअ्-मतहू अ़लैकुम् लअ़ल्लकुम् तुस्लिमून
और अल्लाह ही ने तुम्हारे आराम के लिए अपनी पैदा की हुई चीज़ों के साए बनाए और उसी ने तुम्हारे (छिपने बैठने) के वास्ते पहाड़ों में घरौन्दे (ग़ार वग़ैरह) बनाए और उसी ने तुम्हारे लिए कपड़े बनाए जो तुम्हें (सर्दी) गर्मी से महफूज़ रखें और (लोहे) के कुर्ते जो तुम्हें हाथियों की ज़द (मार) से बचा लें यूँ अल्लाह अपनी नेअमत तुम पर पूरी करता है।

16:82

فَإِن تَوَلَّوْا۟ فَإِنَّمَا عَلَيْكَ ٱلْبَلَـٰغُ ٱلْمُبِينُ

फ-इन् तवल्लौ फ़-इन्नमा अ़लैकल्-बलाग़ुल-मुबीन
तुम उसकी फरमाबरदारी करो उस पर भी अगर ये लोग (इमान से) मुँह फेरे तो तुम्हारा फर्ज़ सिर्फ (एहकाम का) साफ पहुँचा देना है।

16:83

يَعْرِفُونَ نِعْمَتَ ٱللَّهِ ثُمَّ يُنكِرُونَهَا وَأَكْثَرُهُمُ ٱلْكَـٰفِرُونَ

यअ्-रिफू-न निअ्-मतल्लाहि सुम्-म युन्किरूनहा व अक्सरूहुमुल् काफिरून
(बस) ये लोग अल्लाह की नेअमतों को पहचानते हैं फिर (जानबुझ कर) उनसे मुकर जाते हैं और इन्हीं में से बहुतेरे नाशुक्रे हैं।

16:84

وَيَوْمَ نَبْعَثُ مِن كُلِّ أُمَّةٍۢ شَهِيدًۭا ثُمَّ لَا يُؤْذَنُ لِلَّذِينَ كَفَرُوا۟ وَلَا هُمْ يُسْتَعْتَبُونَ

व यौ-म नब्असु मिन् कुल्लि उम्मतिन् शहीदन् सुम्-म ला युअ्ज़नु लिल्लज़ी-न क-फ़रू व ला हुम् युस्तअ्तबून
और जिस दिन हम एक उम्मत में से (उसके पैग़म्बरों को) गवाह बनाकर क़ब्रों से उठा खड़ा करेगे फिर तो काफिरों को न (बात करने की) इजाज़त दी जाएगी और न उनका उज्र (जवाब) ही सुना जाएगा।

16:85

وَإِذَا رَءَا ٱلَّذِينَ ظَلَمُوا۟ ٱلْعَذَابَ فَلَا يُخَفَّفُ عَنْهُمْ وَلَا هُمْ يُنظَرُونَ

व इज़ा रअल्लजी-न ज़-लमुल्-अ़ज़ा-ब फ़ला युखफ़्फ़फु अ़न्हुम् व ला हुम् युन्ज़रून
और जिन लोगों ने (दुनिया में) शरारतें की थी जब वह अज़ाब को देख लेगें तो उनके अज़ाब ही में तख़फ़ीफ़ की जाएगी और न उनको मोहलत ही दी जाएगी।

16:86

وَإِذَا رَءَا ٱلَّذِينَ أَشْرَكُوا۟ شُرَكَآءَهُمْ قَالُوا۟ رَبَّنَا هَـٰٓؤُلَآءِ شُرَكَآؤُنَا ٱلَّذِينَ كُنَّا نَدْعُوا۟ مِن دُونِكَ ۖ فَأَلْقَوْا۟ إِلَيْهِمُ ٱلْقَوْلَ إِنَّكُمْ لَكَـٰذِبُونَ

व इज़ा रअल्लज़ी-न अश्रकू शु-रका-अहुम् क़ालू रब्बना हाउला-इ शु-रकाउनल्लज़ी-न कुन्ना नद्अू मिन् दूनि-क, फ़अल्क़ौ इलैहिमुल्क़ौ-ल इन्नकुम् लकाज़िबून
और जिन लोगों ने दुनिया में अल्लाह का शरीक (दूसरे को) ठहराया था जब अपने (उन) शरीकों को (क़यामत में) देखेंगे तो बोल उठेगें कि ऐ हमारे परवरदिगार यही तो हमारे शरीक हैं जिन्हें हम (मुसीबत) के वक़्त तुझे छोड़ कर पुकारा करते थे तो वह शरीक उन्हीं की तरफ बात को फेंक मारेगें कि तुम निरे झूठे हो।

16:87

وَأَلْقَوْا۟ إِلَى ٱللَّهِ يَوْمَئِذٍ ٱلسَّلَمَ ۖ وَضَلَّ عَنْهُم مَّا كَانُوا۟ يَفْتَرُونَ

व अल्क़ौ इलल्लाहि यौमइज़ि निस्स-ल-म व ज़ल्-ल अ़न्हुम् मा कानू यफ़्तरून
और उस दिन अल्लाह के सामने सर झुका देंगे और जो इफ़तेरा परदाजि़याँ दुनिया में किया करते थे उनसे गायब हो जाएँगें।

16:88

ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ وَصَدُّوا۟ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ زِدْنَـٰهُمْ عَذَابًۭا فَوْقَ ٱلْعَذَابِ بِمَا كَانُوا۟ يُفْسِدُونَ

अल्लज़ी-न क-फरू व सद्दू अन् सबीलिल्लाहि ज़िद्-ना हुम् अ़ज़ाबन् फ़ौक़ल्-अ़ज़ाबि बिमा कानू युफ्सिदून
जिन लोगों ने कुफ्र एख़्तेयार किया और लोगों को अल्लाह की राह से रोका उनके फ़साद वाले कामों के बदले में उनके लिए हम अज़ाब पर अज़ाब बढ़ाते जाएँगें।

16:89

وَيَوْمَ نَبْعَثُ فِى كُلِّ أُمَّةٍۢ شَهِيدًا عَلَيْهِم مِّنْ أَنفُسِهِمْ ۖ وَجِئْنَا بِكَ شَهِيدًا عَلَىٰ هَـٰٓؤُلَآءِ ۚ وَنَزَّلْنَا عَلَيْكَ ٱلْكِتَـٰبَ تِبْيَـٰنًۭا لِّكُلِّ شَىْءٍۢ وَهُدًۭى وَرَحْمَةًۭ وَبُشْرَىٰ لِلْمُسْلِمِينَ

व यौ-म नब्असु फ़ी कुल्लि उम्मतिन् शहीदन् अ़लैहिम् मिन् अन्फुसिहिम् व जिअ्ना बि-क शहीदन् अ़ला हाउला-इ, व नज़्ज़ल्ना अ़लैकल्-किता-ब तिब्यानल्-लिकुल्लि शैइंव्-व हुदंव्-व रह़्मतंव्-व बुश्रा लिल्मुस्लिमीन
और वह दिन याद करो जिस दिन हम हर एक गिरोह में से उन्हीं में का एक गवाह उनके मुक़ाबिल ला खड़ा करेगें और (ऐ रसूल) तुम को उन लोगों पर (उनके) सामने गवाह बनाकर ला खड़ा करेंगें और हमने तुम पर किताब (क़ुरान) नाजि़ल की जिसमें हर चीज़ का (शाफी) बयान है और मुसलमानों के लिए (सरमापा) हिदायत और रहमत और खुशख़बरी है।

16:90

۞ إِنَّ ٱللَّهَ يَأْمُرُ بِٱلْعَدْلِ وَٱلْإِحْسَـٰنِ وَإِيتَآئِ ذِى ٱلْقُرْبَىٰ وَيَنْهَىٰ عَنِ ٱلْفَحْشَآءِ وَٱلْمُنكَرِ وَٱلْبَغْىِ ۚ يَعِظُكُمْ لَعَلَّكُمْ تَذَكَّرُونَ

इन्नल्ला-ह यअ्मुरू बिल-अ़द्लि वल्-इह़्सानि व ईता-इ ज़िल्क़ुरबा व यन्हा अनिल्-फ़ह्शा-इ वल्मुन्करि वल्बग़्यि, यअिज़ुकुम् लअ़ल्लकुम् तज़क्करून
इसमें शक नहीं कि अल्लाह इन्साफ और (लोगों के साथ) नेकी करने और क़राबतदारों को (कुछ) देने का हुक्म करता है और बदकारी और नाशएस्ता हरकतों और सरकशी करने को मना करता है (और) तुम्हें नसीहत करता है ताकि तुम नसीहत हासिल करो।

16:91

وَأَوْفُوا۟ بِعَهْدِ ٱللَّهِ إِذَا عَـٰهَدتُّمْ وَلَا تَنقُضُوا۟ ٱلْأَيْمَـٰنَ بَعْدَ تَوْكِيدِهَا وَقَدْ جَعَلْتُمُ ٱللَّهَ عَلَيْكُمْ كَفِيلًا ۚ إِنَّ ٱللَّهَ يَعْلَمُ مَا تَفْعَلُونَ

व औफू बि-अ़ह़्दिल्लाहि इज़ा आ़हत्तुम् व ला तन्क़ुज़ुल् -ऐमा-न बअ्-द तौकीदिहा व क़द् जअ़ल्तुमुल्ला-ह अ़लैकुम् कफ़ीलन्, इन्नल्ला-ह यअ्लमु मा तफ़्अलून
और जब तुम लोग बाहम क़ौल व क़रार कर लिया करो तो अल्लाह के एहदो पैमान को पूरा करो और क़समों को उनके पक्का हो जाने के बाद न तोड़ा करो हालाँकि तुम तो अल्लाह को अपना ज़ामिन बना चुके हो जो कुछ भी तुम करते हो अल्लाह उसे ज़रुर जानता है।

16:92

وَلَا تَكُونُوا۟ كَٱلَّتِى نَقَضَتْ غَزْلَهَا مِنۢ بَعْدِ قُوَّةٍ أَنكَـٰثًۭا تَتَّخِذُونَ أَيْمَـٰنَكُمْ دَخَلًۢا بَيْنَكُمْ أَن تَكُونَ أُمَّةٌ هِىَ أَرْبَىٰ مِنْ أُمَّةٍ ۚ إِنَّمَا يَبْلُوكُمُ ٱللَّهُ بِهِۦ ۚ وَلَيُبَيِّنَنَّ لَكُمْ يَوْمَ ٱلْقِيَـٰمَةِ مَا كُنتُمْ فِيهِ تَخْتَلِفُونَ

व ला तकूनू कल्लती न-क़ज़त् ग़ज़्लहा मिम्-बअ्दि क़ुव्वतिन् अन्कासन्, तत्तख़िज़ू-न ऐमानकुम् द-ख़लम्-बैनकुम् अन् तकू-न उम्मतुन् हि-य अरबा मिन् उम्मतिन्, इन्नमा यब्लूकुमुल्लाहु बिही, व लयुबय्यिनन्-न लकुम् यौमल्-क़ियामति मा कुन्तुम फ़ीहि तख़्तलिफून
और तुम लोग (क़समों के तोड़ने में) उस औरत के ऐसे न हो जो अपना सूत मज़बूत कातने के बाद टुकड़े टुकड़े करके तोड़ डाले कि अपने एहदो को आपस में उस बात की मक्कारी का ज़रिया बनाने लगो कि एक गिरोह दूसरे गिरोह से (ख़्वामख़वाह) बढ़ जाए इससे बस अल्लाह तुमको आज़माता है (कि तुम किसी की पालाइश करते हो) और जिन बातों में तुम दुनिया में झगड़ते थे क़यामत के दिन अल्लाह खुद तुम से साफ साफ बयान कर देगा।

16:93

وَلَوْ شَآءَ ٱللَّهُ لَجَعَلَكُمْ أُمَّةًۭ وَٰحِدَةًۭ وَلَـٰكِن يُضِلُّ مَن يَشَآءُ وَيَهْدِى مَن يَشَآءُ ۚ وَلَتُسْـَٔلُنَّ عَمَّا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ

व लौ शा-अल्लाहु ल-ज-अ़-लकुम् उम्मतंव्-वाहि -दतंव्-व लाकिंय्-युज़िल्लू मंय्यशा-उ, व यह्दी मंय्यशा-उ, व लतुस्अलुन्-न अ़म्मा कुन्तुम् तअ्मलून
और अगर अल्लाह चाहता तो तुम सबको एक ही (किस्म के) गिरोह बना देता मगर वह तो जिसको चाहता है गुमराही में छोड़ देता है और जिसकी चाहता है हिदायत करता है और जो कुछ तुम लोग दुनिया में किया करते थे उसकी बाज़ पुर्स (पुछ गछ) तुमसे ज़रुर की जाएगी।

16:94

وَلَا تَتَّخِذُوٓا۟ أَيْمَـٰنَكُمْ دَخَلًۢا بَيْنَكُمْ فَتَزِلَّ قَدَمٌۢ بَعْدَ ثُبُوتِهَا وَتَذُوقُوا۟ ٱلسُّوٓءَ بِمَا صَدَدتُّمْ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ ۖ وَلَكُمْ عَذَابٌ عَظِيمٌۭ

व ला तत्तख़िज़ू ऐमानकुम् द-ख़लम् बैनकुम् फ़-तज़िल्-ल क़-दमुम्-बअ्-द सुबूतिहा व तज़ूक़ुस्सू अ बिमा सदत्तुम् अ़न् सबीलिल्लाहि, व लकुम् अ़ज़ाबुन अज़ीम
और तुम अपनी क़समों को आपस में के फसाद का सबब न बनाओ ताकि (लोगों के) क़दम जमने के बाद (इस्लाम से) उखड़ जाएँ और फिर आखिरकार क़यामत में तुम्हें लोगों को अल्लाह की राह से रोकने की पादाष (रोकने के बदले) में अज़ाब का मज़ा चखना पड़े और तुम्हारे वास्ते बड़ा सख़्त अज़ाब हो।

16:95

وَلَا تَشْتَرُوا۟ بِعَهْدِ ٱللَّهِ ثَمَنًۭا قَلِيلًا ۚ إِنَّمَا عِندَ ٱللَّهِ هُوَ خَيْرٌۭ لَّكُمْ إِن كُنتُمْ تَعْلَمُونَ

व ला तश्तरू बि-अ़ह्दिल्लाहि स-मनन् क़लीलन्, इन्नमा जिन्दल्लाहि हु-व ख़ैरुल्लकुम् इन् कुन्तुम् तअ्लमून
और अल्लाह के एहदो पैमान के बदले थोड़ी क़ीमत (दुनयावी नफा) न तो अगर तुम जानते (बूझते) हो तो (समझ लो कि) जो कुछ अल्लाह के पास है वह उससे कहीं बेहतर है।

16:96

مَا عِندَكُمْ يَنفَدُ ۖ وَمَا عِندَ ٱللَّهِ بَاقٍۢ ۗ وَلَنَجْزِيَنَّ ٱلَّذِينَ صَبَرُوٓا۟ أَجْرَهُم بِأَحْسَنِ مَا كَانُوا۟ يَعْمَلُونَ

मा अिन्दकुम् यन्फ़दु व मा अिन्दल्लाहि बाक़िन्, व ल-नज़्ज़ियन्नल्लज़ी-न स-बरू अज्रहुम् बि-अह्सनि मा कानू यअ्मलून
(क्योंकि माल दुनिया से) जो कुछ तुम्हारे पास है एक न एक दिन ख़त्म हो जाएगा और (अज्र) अल्लाह के पास है वह हमेशा बाक़ी रहेगा (96) और जिन लोगों ने दुनिया में सब्र किया था उनको (क़यामत में) उनके कामों का हम अच्छे से अच्छा अज्र व सवाब अता करेंगें।

16:97

مَنْ عَمِلَ صَـٰلِحًۭا مِّن ذَكَرٍ أَوْ أُنثَىٰ وَهُوَ مُؤْمِنٌۭ فَلَنُحْيِيَنَّهُۥ حَيَوٰةًۭ طَيِّبَةًۭ ۖ وَلَنَجْزِيَنَّهُمْ أَجْرَهُم بِأَحْسَنِ مَا كَانُوا۟ يَعْمَلُونَ

मन अ़मि-ल सालिहम्-मिन् ज़-करिन् औ उन्सा व हु-व मुअ्मिनुन् फ़-लनुह़्यि-यन्नहू हयातन् तय्यि-बतन्, व लनज्ज़ियन्नहुम् अज्रहुम् बिअह्सनि मा कानू यअ्मलून
मर्द हो या औरत जो शख़्स नेक काम करेगा और वह इमानदार भी हो तो हम उसे (दुनिया में भी) पाक व पाकीज़ा जिन्दगी बसर कराएँगें और (आख़िरत में भी) जो कुछ वह करते थे उसका अच्छे से अच्छा अज्र व सवाब अता फरमाएँगें।

16:98

فَإِذَا قَرَأْتَ ٱلْقُرْءَانَ فَٱسْتَعِذْ بِٱللَّهِ مِنَ ٱلشَّيْطَـٰنِ ٱلرَّجِيمِ

फ़-इज़ा क़रअ्तल् क़ुरआ-न फ़स्तअिज़् बिल्लाहि मिनश्शैतानिर्रजीम
और जब तुम क़ुरान पढ़ने लगो तो शैतान मरदूद (के वसवसो) से अल्लाह की पनाह तलब कर लिया करो।

16:99

إِنَّهُۥ لَيْسَ لَهُۥ سُلْطَـٰنٌ عَلَى ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَعَلَىٰ رَبِّهِمْ يَتَوَكَّلُونَ

इन्नहू लै-स लहू सुल्तानुन् अलल्लज़ी-न आमनू व अ़ला रब्बिहिम् य-तवक्कलून
इसमें शक नहीं कि जो लोग इमानदार हैं और अपने परवरदिगार पर भरोसा रखते हैं उन पर उसका क़ाबू नहीं चलता।

16:100

إِنَّمَا سُلْطَـٰنُهُۥ عَلَى ٱلَّذِينَ يَتَوَلَّوْنَهُۥ وَٱلَّذِينَ هُم بِهِۦ مُشْرِكُونَ

इन्नमा सुल्तानुहू अ़लल्लज़ी-न य-तवल्लौनहू वल्लज़ी-न हुम् बिही मुश्रिकून
उसका क़ाबू चलता है तो बस उन्हीं लोगों पर जो उसको दोस्त बनाते हैं और जो लोग उसको अल्लाह का शरीक बनाते हैं।

16:101

وَإِذَا بَدَّلْنَآ ءَايَةًۭ مَّكَانَ ءَايَةٍۢ ۙ وَٱللَّهُ أَعْلَمُ بِمَا يُنَزِّلُ قَالُوٓا۟ إِنَّمَآ أَنتَ مُفْتَرٍۭ ۚ بَلْ أَكْثَرُهُمْ لَا يَعْلَمُونَ

व इज़ा बद्दल्ना आ-यतम् मका-न आयतिंव्-वल्लाहु अअ्लमु बिमा युनज़्ज़िलु क़ालू इन्नमा अन्-त मुफ़्तरिन्, बल् अक्सरूहुम् ला यअ्लमून
और (ऐ रसूल!) हम जब एक आयत के बदले दूसरी आयत नाज़िल करते हैं तो हालाँकि अल्लाह जो चीज़ नाजि़ल करता है उस (की मसलहतों) से खूब वाकिफ़ है मगर ये लोग (तुम को) कहने लगते हैं कि तुम बस बिल्कुल मुज़तरी (ग़लत बयान करने वाले) हो बल्कि खुद उनमें के बहुतेरे (मसालेह को) नहीं जानते।

16:102

قُلْ نَزَّلَهُۥ رُوحُ ٱلْقُدُسِ مِن رَّبِّكَ بِٱلْحَقِّ لِيُثَبِّتَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَهُدًۭى وَبُشْرَىٰ لِلْمُسْلِمِينَ

क़ुल नज़्ज़-लहु रूहुल्-क़ुदुसि मिर्रब्बि-क बिल्हक़्क़ि लियुसब्बितल्लज़ी-न आमनू व हुदंव्-व बुशरा लिल-मुस्लिमीन
(ऐ रसूल!) तुम (साफ) कह दो कि इस (क़ुरान) को तो रुहलकुदूस (जिबरील) ने तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से हक़ नाज़िल किया है ताकि जो लोग इमान ला चुके हैं उनको साबित क़दम रखे और मुसलमानों के लिए (अज़सरतापा) खुशखबरी है।

16:103

وَلَقَدْ نَعْلَمُ أَنَّهُمْ يَقُولُونَ إِنَّمَا يُعَلِّمُهُۥ بَشَرٌۭ ۗ لِّسَانُ ٱلَّذِى يُلْحِدُونَ إِلَيْهِ أَعْجَمِىٌّۭ وَهَـٰذَا لِسَانٌ عَرَبِىٌّۭ مُّبِينٌ

व ल-क़द् नअ्लमु अन्नहुम् यक़ूलू-न इन्नमा युअ़ल्लिमुहू ब-शरून्, लिसानुल्लज़ी युल्हिदू-न इलैहि अअ्-जमिय्युंव-व हाज़ा लिसानुन् अ-रबिय्युम् मुबीन
और (ऐ रसूल!) हम तहक़ीक़तन जानते हैं कि ये कुफ्फार तुम्हारी निस्बत कहा करते है कि उनको (तुम को) कोई आदमी क़ुरान सिखा दिया करता है हालॅाकि बिल्कुल ग़लत है क्योंकि जिस शख़्स की तरफ से ये लोग निस्बत देते हैं उसकी ज़बान तो अजमी है और ये तो साफ साफ अरबी ज़बान है।

16:104

إِنَّ ٱلَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِـَٔايَـٰتِ ٱللَّهِ لَا يَهْدِيهِمُ ٱللَّهُ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ

इन्नल्लज़ी-न ला युअ्मिनू-न बिआयातिल्लाहि ला यह्दीहिमुल्लाहु व लहुम् अ़ज़ाबुन् अलीम
इसमें तो शक ही नहीं कि जो लोग अल्लाह की आयतों पर इमान नहीं लाते अल्लाह भी उनको मंजि़ले मक़सूद तक नहीं पहुँचाएगा और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है।

16:105

إِنَّمَا يَفْتَرِى ٱلْكَذِبَ ٱلَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِـَٔايَـٰتِ ٱللَّهِ ۖ وَأُو۟لَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلْكَـٰذِبُونَ

इन्नमा यफ़्तरिल्-कज़िबल्लज़ी-न ला युअ्मिनू-न बिआयातिल्लाहि व उलाइ-क हुमुल्-काज़िबून
झूठ बोहतान तो बस वही लोग बांधा करते हैं जो अल्लाह की आयतों पर इमान नहीं रखतें।

16:106

مَن كَفَرَ بِٱللَّهِ مِنۢ بَعْدِ إِيمَـٰنِهِۦٓ إِلَّا مَنْ أُكْرِهَ وَقَلْبُهُۥ مُطْمَئِنٌّۢ بِٱلْإِيمَـٰنِ وَلَـٰكِن مَّن شَرَحَ بِٱلْكُفْرِ صَدْرًۭا فَعَلَيْهِمْ غَضَبٌۭ مِّنَ ٱللَّهِ وَلَهُمْ عَذَابٌ عَظِيمٌۭ

मन् क-फ़-र बिल्लाहि मिम्-बअ्दि ईमानिही इल्ला मन् उक्रि-ह व क़ल्बुहू मुत्मइन्नुम्-बिल्ईमानि व लाकिम्-मन् श-र-ह बिल्कुफ्रि सद्रन फ़-अलैहिम् ग़-ज़बुम्-मिनल्लाहि, व लहुम् अ़ज़ाबुन् अ़ज़ीम
और हक़ीक़त अम्र ये है कि यही लोग झूठे हैं उस शख़्स के सिवा जो (कलमाए कुफ्र) पर मजबूर किया जाए और उसका दिल इमान की तरफ से मुतमइन हो जो शख़्स भी इमान लाने के बाद कुफ्र एख़्तियार करे बल्कि खूब सीना कुशादा (जी खोलकर) कुफ्र करे तो उन पर अल्लाह का ग़ज़ब है और उनके लिए बड़ा (सख़्त) अज़ाब है।

16:107

ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمُ ٱسْتَحَبُّوا۟ ٱلْحَيَوٰةَ ٱلدُّنْيَا عَلَى ٱلْـَٔاخِرَةِ وَأَنَّ ٱللَّهَ لَا يَهْدِى ٱلْقَوْمَ ٱلْكَـٰفِرِينَ

ज़ालि-क बिअन्नहुमुस्त हब्बुल्-हयातद्दुन्या अ़लल्-आख़िरति व अन्नल्ला-ह ला यह्दिल् क़ौमल्-काफिरीन
ये इस वजह से कि उन लोगों ने दुनिया की चन्द रोज़ा ज़िन्दगी को आखि़रत पर तरजीह दी और इस वजह से की अल्लाह काफिरों को हरगिज़ मंजि़ले मक़सूद तक नहीं पहुँचाया करता।

16:108

أُو۟لَـٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ طَبَعَ ٱللَّهُ عَلَىٰ قُلُوبِهِمْ وَسَمْعِهِمْ وَأَبْصَـٰرِهِمْ ۖ وَأُو۟لَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلْغَـٰفِلُونَ

उलाइ-कल्लज़ी-न त-बअ़ल्लाहु अ़ला क़ुलूबिहिम् व सम्अिहिम् व अब्सारिहिम्, व उलाइ-क हुमुल्ग़ाफ़िलून
ये वही लोग हैं जिनके दिलों पर और उनके कानों पर और उनकी आँखों पर अल्लाह ने अलामात मुक़र्रर कर दी है।

16:109

لَا جَرَمَ أَنَّهُمْ فِى ٱلْـَٔاخِرَةِ هُمُ ٱلْخَـٰسِرُونَ

ला ज-र-म अन्नहुम् फ़िल्आख़िरति हुमुल्-ख़ासिरून
(कि इमान न लाएँगे) और यही लोग (इस सिरे के) बेखबर हैं कुछ शक नहीं कि यही लोग आखि़रत में भी यक़ीनन घाटा उठाने वाले हैं।

16:110

ثُمَّ إِنَّ رَبَّكَ لِلَّذِينَ هَاجَرُوا۟ مِنۢ بَعْدِ مَا فُتِنُوا۟ ثُمَّ جَـٰهَدُوا۟ وَصَبَرُوٓا۟ إِنَّ رَبَّكَ مِنۢ بَعْدِهَا لَغَفُورٌۭ رَّحِيمٌۭ

सुम्-म इन्-न रब्ब-क लिल्लज़ी-न हाजरू मिम्-बअ्दि मा फुतिनू सुम्-म जाहदू व स-बरू, इन्-न रब्ब-क मिम् बअ्दिहा ल-ग़फूरुर्रहीम
फिर इसमें शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार उन लोगों को जिन्होने मुसीबत में मुब्तिला होने क बाद घर बार छोडे़ फिर (अल्लाह की राह में) जिहाद किए और तकलीफों पर सब्र किया इसमें शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार इन सब बातों के बाद अलबत्ता बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है।

16:111

۞ يَوْمَ تَأْتِى كُلُّ نَفْسٍۢ تُجَـٰدِلُ عَن نَّفْسِهَا وَتُوَفَّىٰ كُلُّ نَفْسٍۢ مَّا عَمِلَتْ وَهُمْ لَا يُظْلَمُونَ

यौ-म तअ्ति कुल्लु नफ्सिन् तुजादिलु अ़न् नफ़्सिहा व तुवफ्फ़ा कुल्लु नफ़्सिम्-मा अ़मिलत् व हुम् ला युज़्लमून
और (उस दिन को याद) करो जिस दिन हर शख़्स अपनी ज़ात के बारे में झगड़ने को आ मौजूद होगा।

16:112

وَضَرَبَ ٱللَّهُ مَثَلًۭا قَرْيَةًۭ كَانَتْ ءَامِنَةًۭ مُّطْمَئِنَّةًۭ يَأْتِيهَا رِزْقُهَا رَغَدًۭا مِّن كُلِّ مَكَانٍۢ فَكَفَرَتْ بِأَنْعُمِ ٱللَّهِ فَأَذَٰقَهَا ٱللَّهُ لِبَاسَ ٱلْجُوعِ وَٱلْخَوْفِ بِمَا كَانُوا۟ يَصْنَعُونَ

व ज़-रबल्लाहु म-सलन् क़र्-यतन् कानत् आमि-नतम् -मुत्मइन्नतंय्-यअ्तीहा रिज़्क़ुहा र-ग़दम्-मिन् कुल्लि मकानिन् फ़-क-फरत् बिअन्अु मिल्लाहि फ़-अज़ा-क़हल्लाहु लिबासल्-जूअि वल्ख़ौफ़ि बिमा कानू यस्-न अून
और हर शख़्स को जो कुछ भी उसने किया था उसका पूरा पूरा बदला मिलेगा और उन पर किसी तरह का जु़ल्म न किया जाएगा अल्लाह ने एक गाँव की मसल बयान फरमाई जिसके रहने वाले हर तरह के चैन व इत्मेनान में थे हर तरफ से बाफराग़त (बहुत ज़्यादा) उनकी रोज़ी उनके पास आई थी फिर उन लोगों ने अल्लाह की नूअमतों की नाशुक्री की तो अल्लाह ने उनकी करतूतों की बदौलत उनको मज़ा चखा दिया।

16:113

وَلَقَدْ جَآءَهُمْ رَسُولٌۭ مِّنْهُمْ فَكَذَّبُوهُ فَأَخَذَهُمُ ٱلْعَذَابُ وَهُمْ ظَـٰلِمُونَ

व ल-क़द् जाअहुम् रसूलुम्-मिन्हुम् फ़-कज़्ज़बूहु फ़-अ-ख़ ज़हुमुल्-अ़ज़ाबु व हुम् ज़ालिमून
कि भूक और ख़ौफ को ओढ़ना (बिछौना) बना दिया और उन्हीं लोगों में का एक रसूल भी उनके पास आया तो उन्होंने उसे झुठलाया।

16:114

فَكُلُوا۟ مِمَّا رَزَقَكُمُ ٱللَّهُ حَلَـٰلًۭا طَيِّبًۭا وَٱشْكُرُوا۟ نِعْمَتَ ٱللَّهِ إِن كُنتُمْ إِيَّاهُ تَعْبُدُونَ

फ़कुलू मिम्मा र-ज़-क़कुमुल्लाहु हलालन् तय्यिबंव्-वश्कुरू निअ्-मतल्लाहि इन् कुन्तुम् इय्याहु तअ्बुदून
फिर अज़ाब (अल्लाह) ने उन्हें ले डाला और वह ज़ालिम थे ही तो अल्लाह ने जो कुछ तुम्हें हलाल तय्यब (ताहिर) रोज़ी दी है उसको (शक़ से) खाओ और अगर तुम अल्लाह ही की परसतिश (का दावा करते हो)।

16:115

إِنَّمَا حَرَّمَ عَلَيْكُمُ ٱلْمَيْتَةَ وَٱلدَّمَ وَلَحْمَ ٱلْخِنزِيرِ وَمَآ أُهِلَّ لِغَيْرِ ٱللَّهِ بِهِۦ ۖ فَمَنِ ٱضْطُرَّ غَيْرَ بَاغٍۢ وَلَا عَادٍۢ فَإِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٌۭ رَّحِيمٌۭ

इन्नमा हर्र-म अलैकुमुल् मैत-त वद्द-म व लह़्मल्-ख़िन्जीरि व मा उहिल्-ल लिग़ैरिल्लाहि बिही, फ़ -मनिज़्तुर्-र ग़ै-र बागिंव्-व ला आदिन फ़-इन्नल्ला-ह ग़फूरूर्रहीम
उसकी नेअमत का शुक्र अदा किया करो तुम पर उसने मुरदार और खून और सूअर का गोश्त और वह जानवर जिस पर (ज़बाह के वक़्त) अल्लाह के सिवा (किसी) और का नाम लिया जाए हराम किया है फिर जो शख़्स (मारे भूक के) मजबूर हो अल्लाह से सरतापी (नाफरमानी) करने वाला हो और न (हद ज़रुरत से) बढ़ने वाला हो और (हराम खाए) तो बेशक अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है।

16:116

وَلَا تَقُولُوا۟ لِمَا تَصِفُ أَلْسِنَتُكُمُ ٱلْكَذِبَ هَـٰذَا حَلَـٰلٌۭ وَهَـٰذَا حَرَامٌۭ لِّتَفْتَرُوا۟ عَلَى ٱللَّهِ ٱلْكَذِبَ ۚ إِنَّ ٱلَّذِينَ يَفْتَرُونَ عَلَى ٱللَّهِ ٱلْكَذِبَ لَا يُفْلِحُونَ ١١٦

व ला तक़ूलू लिमा तसिफु अल्सि-नतुकुमुल्-कज़ि-ब हाज़ा हलालुंव्-व हाज़ा हरामुल्-लितफ़्तरू अ़लल्लाहिल्-कज़ि-ब, इन्नल्लज़ी-न यफ़्तरू-न अ़लल्लाहिल्-कज़ि-ब ला युफ्लिहून
और झूट मूट जो कुछ तुम्हारी ज़बान पर आए (बे समझे बूझे) न कह बैठा करों कि ये हलाल है और हराम है ताकि इसकी बदौलत अल्लाह पर झूठ बोहतान बाँधने लगो इसमें शक नहीं कि जो लोग अल्लाह पर झूठ बोहतान बाधते हैं वह कभी कामयाब न होगें।

16:117

مَتَـٰعٌۭ قَلِيلٌۭ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌۭ

मताअुन् क़लीलुंव्-व लहुम् अ़ज़ाबुन् अलीम
(दुनिया में) फायदा तो ज़रा सा है और (आख़िरत में) दर्दनाक अज़ाब है।

16:118

وَعَلَى ٱلَّذِينَ هَادُوا۟ حَرَّمْنَا مَا قَصَصْنَا عَلَيْكَ مِن قَبْلُ ۖ وَمَا ظَلَمْنَـٰهُمْ وَلَـٰكِن كَانُوٓا۟ أَنفُسَهُمْ يَظْلِمُونَ

व अ़लल्लज़ी-न हादू हर्रम्ना मा क़सस्ना अ़लै-क मिन् क़ब्लु, व मा ज़लम्-नाहुम् व लाकिन् कानू अन्फु-सहुम् यज़्लिमून
और यहूदियों पर हमने वह चीज़े हराम कर दीं थी जो तुमसे पहले बयान कर चुके हैं और हमने तो (इस की वजह से) उन पर कुछ ज़ुल्म नहीं किया।

16:119

ثُمَّ إِنَّ رَبَّكَ لِلَّذِينَ عَمِلُوا۟ ٱلسُّوٓءَ بِجَهَـٰلَةٍۢ ثُمَّ تَابُوا۟ مِنۢ بَعْدِ ذَٰلِكَ وَأَصْلَحُوٓا۟ إِنَّ رَبَّكَ مِنۢ بَعْدِهَا لَغَفُورٌۭ رَّحِيمٌ

सुम्-म इन्-न रब्ब-क लिल्लज़ी-न अमिलुस्सू-अ बि-जहालतिन् सुम्-म ताबू मिम्-बअ्दि ज़ालि-क व अस्लहू, इन्-न रब्ब-क मिम्-बअ्दिहा ल-ग़फूरूर्रहीम
मगर वह लोग खुद अपने ऊपर सितम तोड़ रहे हैं फिर इसमे शक नहीं कि जो लोग नादानी से गुनाह कर बैठे उसके बाद सदक़ दिल से तौबा कर ली और अपने को दुरुस्त कर लिया तो (ऐ रसूल) इसमें शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार इसके बाद बख़्शने वाला मेहरबान है।

16:120

إِنَّ إِبْرَٰهِيمَ كَانَ أُمَّةًۭ قَانِتًۭا لِّلَّهِ حَنِيفًۭا وَلَمْ يَكُ مِنَ ٱلْمُشْرِكِينَ

इन्-न इब्राही-म का-न उम्म-तन् क़ानितल्-लिल्लाहि हनीफ़न्, व लम् यकु मिनल्-मुश्रिकीन
इसमें शक नहीं कि इब्राहीम (लोगों के) पेशवा अल्लाह के फरमाबरदार बन्दे और बातिल से कतरा कर चलने वाले थे और मुशरेकीन से हरगिज़ न थे।

16:121

شَاكِرًۭا لِّأَنْعُمِهِ ۚ ٱجْتَبَىٰهُ وَهَدَىٰهُ إِلَىٰ صِرَٰطٍۢ مُّسْتَقِيمٍۢ

शाकिरल्-लिअन् अुमिही, इज्तबाहु व हदाहु इला सिरातिम् मुस्तक़ीम
उसकी नेअमतों के शुक्र गुज़ार उनको अल्लाह ने मुनतखि़ब कर लिया है और (अपनी) सीधी राह की उन्हें हिदायत की थी।

16:122

وَءَاتَيْنَـٰهُ فِى ٱلدُّنْيَا حَسَنَةًۭ ۖ وَإِنَّهُۥ فِى ٱلْـَٔاخِرَةِ لَمِنَ ٱلصَّـٰلِحِينَ

व आतैनाहु फ़िद्दुन्या ह-स नतन्, व इन्नहू फ़िल-आख़िरति लमिनस्-सालिहीन
और हमने उन्हें दुनिया में भी (हर तरह की) बेहतरी अता की थी।

16:123

ثُمَّ أَوْحَيْنَآ إِلَيْكَ أَنِ ٱتَّبِعْ مِلَّةَ إِبْرَٰهِيمَ حَنِيفًۭا ۖ وَمَا كَانَ مِنَ ٱلْمُشْرِكِينَ

सुम्-म औहैना इलै-क अनित्तबिअ् मिल्ल-त इब्राही-म हनीफ़न्, व मा का-न मिनल्-मुश्रिकीन
और वह आखि़रत में भी यक़ीनन नेको कारों से होगें ऐ रसूल फिर तुम्हारे पास वही भेजी कि इब्राहीम के तरीक़े की पैरवी करो जो बातिल से कतरा के चलते थे और मुशरे कीन से नहीं थे।

16:124

إِنَّمَا جُعِلَ ٱلسَّبْتُ عَلَى ٱلَّذِينَ ٱخْتَلَفُوا۟ فِيهِ ۚ وَإِنَّ رَبَّكَ لَيَحْكُمُ بَيْنَهُمْ يَوْمَ ٱلْقِيَـٰمَةِ فِيمَا كَانُوا۟ فِيهِ يَخْتَلِفُونَ

इन्नमा जुअिलस्सब्तु अलल्लज़ीनख़्त-लफू फ़ीहि, व इन्-न रब्ब-क ल-यह्कुमु बैनहुम् यौमल्-क़ियामति फ़ीमा कानू फ़ीहि यख़्तलिफून
(ऐ रसूल!) हफ्ते (के दिन) की ताज़ीम तो बस उन्हीं लोगों पर लाजि़म की गई थी (यहूद व नसारा इसके बारे में) एख़्तिलाफ करते थे और कुछ शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार उनके दरम्यिान जिस अग्र में वह झगड़ा करते थे, क़यामत के दिन फैसला कर देगा।

16:125

ٱدْعُ إِلَىٰ سَبِيلِ رَبِّكَ بِٱلْحِكْمَةِ وَٱلْمَوْعِظَةِ ٱلْحَسَنَةِ ۖ وَجَـٰدِلْهُم بِٱلَّتِى هِىَ أَحْسَنُ ۚ إِنَّ رَبَّكَ هُوَ أَعْلَمُ بِمَن ضَلَّ عَن سَبِيلِهِۦ ۖ وَهُوَ أَعْلَمُ بِٱلْمُهْتَدِينَ

उद्अु इला सबीलि रब्बि-क बिल्हिक्मति वल्मौअि-ज़तिल ह-स-नति व जादिल्हुम् बिल्लती हि-य अह्सनु, इन्-न रब्ब-क हु-व अअ्लमु बिमन् ज़ल-ल अन् सबीलिही व हु-व अअ्लमु बिल्मुह्तदीन
(ऐ रसूल) तुम (लोगों को) अपने परवरदिगार की राह पर हिकमत और अच्छी अच्छी नसीहत के ज़रिए से बुलाओ और बहस व मुबाश करो भी तो इस तरीक़े से जो लोगों के नज़दीक सबसे अच्छा हो इसमें शक नहीं कि जो लोग अल्लाह की राह से भटक गए उनको तुम्हारा परवरदिगार खूब जानता है।

16:126

وَإِنْ عَاقَبْتُمْ فَعَاقِبُوا۟ بِمِثْلِ مَا عُوقِبْتُم بِهِۦ ۖ وَلَئِن صَبَرْتُمْ لَهُوَ خَيْرٌۭ لِّلصَّـٰبِرِينَ

व इन् आ़क़ब्तुम् फ़आ़क़िबू बिमिस्लि मा ऊक़िब्तुम् बिही, व ल-इन् सबरतुम् लहु-व ख़ैरूल्-लिस्साबिरीन
और हिदायत याफ़ता लोगों से भी खूब वाकि़फ है और अगर (मुख़ालिफीन के साथ) सख़्ती करो भी तो वैसी ही सख़्ती करो जैसे सख़्ती उन लोगों ने तुम पर की थी और अगर तुम सब्र करो तो सब्र करने वालों के वास्ते बेहतर हैं।

16:127

وَٱصْبِرْ وَمَا صَبْرُكَ إِلَّا بِٱللَّهِ ۚ وَلَا تَحْزَنْ عَلَيْهِمْ وَلَا تَكُ فِى ضَيْقٍۢ مِّمَّا يَمْكُرُونَ

वस्बिर् व मा सब्रु-क इल्ला बिल्लाहि व ला तह्ज़न अ़लैहिम् व ला तकु फ़ी ज़ैक़िम्-मिम्मा यम्कुरून
और (ऐ रसूल!) तुम सब्र ही करो (और अल्लाह की (मदद) बग़ैर तो तुम सब्र कर भी नहीं सकते और उन मुख़ालिफीन के हाल पर तुम रंज न करो और जो मक्कारीयाँ ये लोग करते हैं उससे तुम तंग दिल न हो।

16:128

إِنَّ ٱللَّهَ مَعَ ٱلَّذِينَ ٱتَّقَوا۟ وَّٱلَّذِينَ هُم مُّحْسِنُونَ

इन्नल्ला-ह मअ़ल्लज़ीनत्तक़ौ वल्लज़ी-न हुम् मुह्सिनून
जो लोग परहेज़गार हैं और जो लोग नेको कार हैं अल्लाह उनका साथी है। (पारा 14 समाप्त)

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